बचतों का गैर-बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ संस्थाओं में वित्तीयकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
बचतों का गैर-बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ संस्थाओं में वित्तीयकरण
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मिन्ट स्ट्रीट मेमो सं. 02 मनोरंजन दाश, भुपाल सिंह, स्नेहल हेरवाड़कर और रश्मि रंजन बेहेरा1 सार विमुद्रीकरण का एक महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव परिवारों द्वारा बचत के औपचारिक चैनलों में बदलाव लाना रहा है। विमुद्रीकरण के दौरान और बाद की अवधि में बचत प्रवाह का इक्विटी/ऋण उन्मुखी म्यूच्युअल फंडों और बीमा पॉलिसियों में विशिष्ट वृद्धि रही है। इसके अलावा, ऐसा प्रतीत होता है कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) पर संग्रह और संवितरण के मामले में सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। आगे की चुनौती इन निधियों को अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों में चेनेलाइज करना होगा। परिचय विमुद्रीकरण ने विभिन्न वित्तीय मध्यस्थ संस्थाओं को भिन्न-भिन्न रूप से प्रभावित किया। जैसाकि मिन्ट स्ट्रीट मेमो सं. 1: “विमुद्रीकरण और बैंक जमा वृद्धि” में बताया गया है, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) के समेकित तुलन पत्रों में विमुद्रीकरण के बाद की अवधि में ‘आधिक्य’ जमा वृद्धि देखी गई। गैर-बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ संस्थाएं जैसे ऋण/इक्विटी उन्मुखी म्यूच्युअल फंडों और बीमा कंपनियों को भी अभिलाभ हुआ तथा एनबीएफसी क्षेत्र का समग्र तुलन-पत्र में वर्ष 2016-17 के दौरान 14.5 प्रतिशत तक विस्तार हुआ। यह नोट तीन गैर-बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ संस्थाओं यथा म्यूच्युअल फंडों, बीमा कंपनियों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में बचतों के वित्तीयकरण का विस्तृत ब्यौरा उपलब्ध कराता है। 1. म्यूच्युअल फंड विमुद्रीकरण के बाद बैंक जमाराशियों पर ब्याज दरों में कमी और स्वर्ण की कीमत में गिरावट ने ऋण और इक्विटी उन्मुखी म्यूच्युअल फंडों का तुलनात्मक आकर्षण बढ़ा दिया। इसको प्रतिलक्षित करते हुए म्यूच्युअल फंडों की प्रबंधनाधीन आस्तियों (एयूएम) ने मार्च 2017 में ₹ 17.5 ट्रिलियन से अधिक सर्वाधिक उच्च स्तर छुआ तथा और जुलाई 2017 के अंत तक ₹ 20 ट्रिलियन तक पहुंच गई। उतार-चढ़ाव वाला इक्विटी बाजार में भी इक्विटी उन्मुखी म्यूच्युअल फंडों की आकर्षकता में सुधार हुआ। इक्विटी योजनाओं के अंतर्गत संसाधन जुटाना इस अवधि के दौरान दुगुना से अधिक हो गया। नवंबर 2015-जून 2016 में हुए निवल बहिर्वाहों के विपरीत नवंबर 2016-जून 2017 में आय/ऋण योजनाओं में भी निवल अंतर्वाह रहा। यह पिछले वर्ष की इस अवधि की तुलना में नवंबर 2016-जून 2017 के दौरान म्यूच्युअल फंडों द्वारा जुटाए गए समग्र संसाधनों में हुई तेज वृद्धि में दिखाई दिया (सारणी 1)। विमुद्रीकरण के बाद म्यूच्युअल फंडों द्वारा जुटाए गए उच्चतर संसाधनों का मुख्य कारण खुदरा और उच्च निवल मालियत वाले व्यक्तिगत (एचएनआई) निवेशक रहे। 2. जीवन बीमा कंपनियां जीवन बीमा कंपनियों द्वारा जुटाया गया प्रीमियम नवंबर 2016 में दोगुने से अधिक हुआ (सारणी 2)। भारतीय जीवन बीमा कंपनी (एलआईसी) द्वारा जमा किया गया प्रीमियम नवंबर 2016 में 142 प्रतिशत (वर्ष- दर- वर्ष) बढ़ गया; निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनियों की वसूली लगभग 50 प्रतिशत बढी। नवंबर 2016 में भारत के एलआईसी द्वारा कुल संग्रह का लगभग 85 प्रतिशत 'एकल प्रीमियम' पॉलिसी के तहत था, जो एकमुश्त में भुगतान किया गया है, गैर-एकल प्रीमियम पॉलिसी के विपरीत, जिसका मासिक,त्रैमासिक या वार्षिक भुगतान किया जा सकता है। भारतीय जीवन बीमा निगम ने 1 दिसंबर 2016 से खरीदे गए अपने जीवन अक्षय VI के तत्काल वार्षिकी योजना के वार्षिकी दरों में कमी की है, जिससे भारतीय जीवन बीमा निगम के लिए नवंबर 2016 के महीने में संग्रह में तेजी आई है। नवंबर 2016 से जनवरी 2017 के दौरान संचयी संग्रह में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना से 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई । विकास दर में आने वाली मंदी के बावजूद, मई-जून 2017 के दौरान प्रीमियम संग्रह में अभी भी दोहरे अंकों की वृद्धि देखी जा रही है। 3. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) अप्रैल-अक्तूबर 2016 के दौरान मासिक औसत वितरण की तुलना में नवंबर 2016 में एनबीएफसी की सभी श्रेणियों के ऋणों में गिरावट आई है, विशेष रूप से माइक्रो वित्त कंपनियों (एनबीएफसी-एमएफआई) द्वारा जिसके व्यवसाय में प्रचंड नकदी है (सारणी 3ए)। एसेट फाइनेंस कंपनियों (एएफसी) और लोन कंपनियां (एलसी) द्वारा संवितरण फरवरी 2017 तक संकुचित रहना जारी रहा। मार्च 2017 से वितरण सकारात्मक हुआ और अप्रैल-अक्तूबर 2016 के दौरान दर्ज मासिक औसत वितरण की तुलना में उच्च दर से बढ़ा। एमएफआई के मामले में, तथापि, अप्रैल-अक्टूबर 2016 के दौरान वितरण की मासिक औसत की तुलना में वितरण संकुचित होना जारी रहा, संभवतः राज्य सरकारों द्वारा ऋण छूट के प्रचलित अनिश्चितता को देखते हुए। इसके विपरीत, नवंबर 2016 से जून 2017 के दौरान एएफसी और एलसी के कर्ज और संग्रह (अर्थात, ऋण की चुकौती) अप्रैल-अक्टूबर 2016 (सारणी 3 बी) के दौरान मासिक औसत संग्रह के मुकाबले काफी बढ़े। एनबीएफसी-माइक्रो फाइनेंस कंपनियों (एमएफआई) द्वारा संग्रह अप्रैल-अक्टूबर 2016 की तुलना में नवंबर 2016-फरवरी 2017 के दौरान कम हुआ, परंतु मार्च,मई और जून 2017 माह में इसमें सुधार दिखाई दिया। अंत में, एनबीएफसी को बैंक क्रेडिट अक्टूबर 2016 में 5.1 प्रतिशत (वाई-ओ-वाई) से घटकर नवंबर 2016 में 1.3 प्रतिशत हो गया, लेकिन बाद में मार्च 2017 में 10.9 प्रतिशत तक सुधार हुआ। रिपोर्टिंग एनबीएफसी द्वारा प्रस्तुत रिटर्न के संदर्भ में, एनबीएफसी द्वारा ऋण और अग्रिम मार्च 2017 (16.4 प्रतिशत) के अंत में मार्च 2016 (16.6 प्रतिशत) (सारणी 4) को समाप्त वर्ष के समान दर से बढ़े हुए हैं (सारणी 4)। आगे… ऐसा प्रतीत होता है कि विमुद्रीकरण से बचतों के वित्तीयकरण में अभिवृद्धि हुई है। इसके सामांतर, निकट अवधि में अर्थव्यवस्था को अधिक औपचारिक रूप देने के लिए बदलाव हुआ है जिसमें सेवा और वस्तु कर (जीएसटी) शुरू करने और रियल एस्टेट (विनियमन तथा विकास) अधिनियम, 2016 (रेरा) और बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 जैसे विनियमनों से सहायता मिली है। इन गतिविधियों से भौतिक बचतों को वित्तीय बचतों में परिवर्तित करने में प्रोत्साहन मिल सकता है। रियल एस्टेट गतिविधि में निरंतर कमजोरी और आवास कीमतों में नरमी से भी संभावना है कि इससे भौतिक आस्तियों को वित्तीय बचतों में चेनेलाइज करने में मदद मिलेगी। अंततः मुद्रास्फीति में हुई हाल की कमी और मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं ने वास्तविक आय तथा परिवारों के प्रतिफलों को बढ़ाने में प्रभाव डाला है जिससे वित्तीय बचतों को और प्रोत्साहन मिल सकता है। 1 मनोरंजन दाश गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग में महाप्रबंधक हैं, भुपाल सिंह और स्नेहल हरवाड़कर मौद्रिक नीति विभाग में क्रमशः निदेशक और सहायक परामर्शदाता हैं तथा रश्मि रंजन बेहेरा आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक में अनुसंधान अधिकारी हैं। इस पेपर के निष्कर्ष और व्यक्त विचार पूरी तरह से लेखकों के हैं और इनकी आवश्यक रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक के अधिकारिक विचारों के रूप में व्याख्या नहीं की जाए। |