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सी.डी. देशमुख स्मारक व्याख्यान

चिंतामण द्वारकानाथ देशमुख भारतीय रिज़र्व बैंक के पहले भारतीय गवर्नर थे। बाद में, वे केंद्रीय वित्त मंत्री बने। रिज़र्व बैंक और राष्ट्र के लिए उनकी गुणात्मक सेवाओं की पहचान करने और उनकी स्थायी स्मृति में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1984 में एक वार्षिक व्याख्यान श्रृंखला शुरू की जिसका नाम है-‘चिंतामण देशमुख स्मारक व्याख्यान’।

सी डी देशमुखः प्रोफाइल

चिंतामण देशमुख का जन्म 14 जनवरी 1896 को महाराष्ट्र में रायगढ़ किला के पास नाटा में हुआ था। उनका परिवार एक जमींदार परिवार था जिसमें सार्वजनिक सेवा की परंपरा थी। चिंतामण के पिताजी द्वारका गणेश देशमुख एक प्रतिष्ठित वकील थे और उनकी माँ भगीरथीबाई एक बहुत धार्मिक महिला थी।

चिंतामण देशमुख का शैक्षणिक करियर बहुत उत्कृष्ट था। वे 1912 में मैट्रिकुलेशन परीक्षा में प्रथम आए और संस्कृत में पहली जगन्ननाथ शंकरसेट छात्रवृत्ति भी प्राप्त की। वर्ष 1917 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने वनस्पति, रसायन और जीव-विज्ञान के साथ प्राकृतिक विज्ञान ट्राइपॉस के क्षेत्र में स्नातक किया जिसमें उन्होंने वनस्पति में फ्रैंक स्मार्ट पुरस्कार प्राप्त किया। उन्होंने 1918 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा दी जो उस समय केवल लंदन में आयोजित की जाती थी और सफल अभ्यर्थियों की सूची में शीर्ष रहे।

भारतीय सिविल सेवा के अपने अधिकांश 21 वर्षों में चिंतामण देशमुख तत्कालीन केंद्रीय प्रांतीय और बेरार सरकार के साथ थे जहां अन्य बातों के बीच वे राजस्व सचिव और वित्त सचिव के पद धारण करने वालों में संभवतः सबसे युवा थे। लंदन में छुट्टी के दौरान उन्होंने दूसरे गोलमेज सम्मेलन के सचिव के रूप में कार्य किया जिसमें महात्मा गांधी ने भाग लिया था। केंद्रीय प्रांतीय और बेरार सरकार द्वारा प्रस्तुत ज्ञापन जो देशमुख ने सर ओटो नीमियर द्वारा पूछताछ के प्रयोजन के लिए तैयार किया गया था जिसके लिए भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत केंद्र और प्रांतों के बीच वित्तीय संबंधों पर अवार्ड दिया गया, इस ज्ञापन ने उन्हें काफी प्रशंसा दिलाई।

चिंतामण देशमुख का भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ संबंध जुलाई 1939 में शुरू हुआ जब उन्हें बैंक में संपर्क अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया जिससे कि भारत सरकार को बैंक के कार्यों के बारे में जानकारी मिलती रहे। तीन महीने बाद, उन्हें बैंक के केंद्रीय बोर्ड के सचिव के रूप में नियुक्त किया गया और दो वर्ष बाद 1941 में उप गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया। वे 11 अगस्त 1943 से 30 जून 1949 तक गवर्नर रहे।

चिंतामण देशमुख एक उत्कृष्ट गवर्नर सिद्ध हुए। उन्होंने रिज़र्व बैंक को निजी स्टेकधारकों के बैंक से राष्ट्रीयकृत संस्था में परिवर्तन करने की अध्यक्षता की तथा बैंकिंग कंपनियों के विनियमन के लिए व्यापक कानून लागू कराने तथा उद्योग को दीर्घावधि क्रेडिट उपलब्ध कराने के प्रावधान के लिए पहली वित्तीय संस्था नामतः भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (आईएफसीआई) स्थापित करने में सफलता हासिल की। उन्होंने ग्रामीण क्रेडिट के लिए पर्याप्त मशीनरी का निर्माण करने के लिए भी कई कदम उठाए। ग्रामीण क्रेडिट के प्रावधान पर चिंतामण देशमुख की भूमिका टिप्पणी करते हुए एक अग्रणी को-ऑपरेटर ने लिखा कि “वे अस्थिरचित्त अपरिवर्तनवाद या अहस्तक्षेप से प्रगतिशील दृष्टिकोण और संस्थागत मशीनरी के निर्माण के लिए सकारात्मक कदम अपनाने के दृष्टिकोण में पूर्ण परिवर्तन लाए जिससे कि कृषि क्रेडिट प्रदान किया जा सके और रिज़र्व बैंक की निधि को कृषि के विकास के लिए चैनेलाइज किया जा सके”।

चिंतामण देशमुख ने 1944 में ब्रेटन वूड्स कान्फ्रेंस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके कारण बाद में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (आईबीआरडी) की स्थापना हुई। इन दोनों संस्थाओं में चिंतामण देशमुख दस वर्षों के लिए गवर्नर बोर्ड के सदस्य रहे तथा 1950 में पैरिस में आयोजित इन दोनों संस्थाओं की संयुक्त वार्षिक बैठक में अध्यक्ष थे।

सितंबर 1949 में, तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिका और यूरोप में भारत के विशेष वित्तीय राजदूत के रूप में चिंतामण देशमुख को नियुक्त किया, जिसमें उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका से गेहूं ऋण के लिए प्रारंभिक बातचीत का आयोजन किया। वर्ष के अंत में, जवाहरलाल नेहरू ने चिंतामण देशमुख से योजना आयोग के संगठन पर काम करने के लिए कहा और 1 अप्रैल 1950 में इसके स्थापित होने पर उन्हें इसका सदस्य नियुक्त किया। इसके तुरंत बाद, चिंतामण देशमुख केंद्रीय मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री के रूप में शामिल हुए और जुलाई 1956 में इस्तीफा देने तक उस कार्यालय में सम्मान के साथ कार्य किया। देश के वित्त की उनकी कार्यप्रणाली को विकासशील देश की बदलती वित्तीय जरूरतों के साथ कल्पनात्मक रूप से निपटने में समझदारी के साथ-साथ एक मानवीय परिप्रेक्ष्य और दृष्टि से चिह्नित किया गया था। वित्तीय नीति को तेजी से विकास,सामाजिक न्याय और आर्थिक स्थिरता की उपलब्धि की सुविधा के लिए निर्देशित किया गया था। उन्होंने देश की पहली और दूसरी पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे वित्तीय संरचना के सामाजिक नियंत्रण के कार्य-क्षेत्र में ऐसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार थे जैसे कि एक नई कंपनी अधिनियम के अधिनियमन, और इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया और जीवन बीमा कंपनियों के राष्ट्रीयकरण।

शिक्षा और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में चिंतामण देशमुख द्वारा सार्वजनिक सेवा का एक अलग चरण 1956 से 1960 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अध्यक्षता के बाद से देखा गया, जिससे देश में विश्वविद्यालय शिक्षा के मानकों में सुधार के लिए ठोस आधार तैयार करने में मदद मिली। वह मार्च 1962 से फरवरी 1967 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के उप-कुलपति थे, उन्होनें इसे उच्च शिक्षा के लिए एक उत्कृष्ट संस्थान के रूप में विकसित किया।

चिंतामण देशमुख ने शिक्षा और शोध कार्य के लिए समर्पित अन्य महत्वपूर्ण संस्थानों के निर्माण के लिए उदारतापूर्वक अपना समय और ऊर्जा प्रदान की। वह 1945 से 1964 तक भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) के अध्यक्ष थे। यह उस समय की बात थी जब वे आईएसआई  के अध्यक्ष थे और केंद्रीय वित्त मंत्री थे जब आईएसआई द्वारा आयोजित किये जानेवाले राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की शुरुआत हुई (1951-52) और केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की स्थापना हुई। 1965 से 1974 तक वह आर्थिक विकास संस्थान, नई दिल्ली के अध्यक्ष थे। उन्होंने 1957 से 1960 तक राष्ट्रीय पुस्तक ट्रस्ट के मानद अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1959 में भारत अंतर्राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना की, जिसके वह जीवनभर अध्यक्ष थे। उन्होंने 1959 से 1973 तक हैदराबाद के भारतीय प्रशासनिक स्टाफ कॉलेज के गवर्नर बोर्ड की अध्यक्षता की और 1963-64 में भारतीय प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली के अध्यक्ष भी रहे। अन्य निकाय जिनके साथ चिंतामण देशमुख जुड़े थे, वह विश्व मामलों के भारतीय परिषद (1960-67) और संयुक्त राष्ट्र संस्थान प्रशिक्षण और अनुसंधान (1965-70) थे। अपनी पत्नी दुर्गाबाई के साथ चिंतामण देशमुख ने आंध्र महिला सभा, मद्रास और हैदराबाद द्वारा शुरु किए गए कार्यात्मक साक्षरता और परिवार नियोजन कार्य के बहुआयामी सामाजिक सेवा कार्य में भाग लिया, यह एक सामाजिक संगठन था जिसमें दुर्गाबाई संस्थापक अध्यक्ष थी। श्रीमती दुर्गाबाई की मृत्यु के बाद वे इसके अध्यक्ष बने।

चिंतामण देशमुख के पुराने कॉलेज कैम्ब्रिज, जीसस कॉलेज, ने उन्हें 1952 में भारतीय और अंतरराष्ट्रीय वित्त और प्रशासन के क्षेत्रों में उनके विशिष्ट योगदान के सम्मान में मानद फेलो चुना। वे 1959 में प्रतिष्ठित सरकारी सेवा के लिए रामन मैगसेसे फाउंडेशन पुरस्कार के सह-प्राप्तकर्ता थे । कई अंतरराष्ट्रीय और भारतीय प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और संस्थानों ने उन्हें  मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की: इनमें प्रिंसटन विश्वविद्यालय (यूएसए), लीसेस्टर (यूके), पुणे, दिल्ली, इलाहाबाद, नागपुर और उस्मानिया (भारत), साथ ही साथ भारतीय सांख्यिकी संस्थान भी शामिल हैं।

चिंतामण देशमुख को बागवानी से बेहद लगाव था और हॉर्टीकल्चर उनका विशेष शौक था। संस्कृत के लिए उनका प्यार जग जाहिर है और उन्होंने 1969 में संस्कृत में अपनी कविताओं का एक खंड प्रकाशित किया। वे कई विदेशी भाषाओं में भी प्रवीण थे।

चिंतामण देशमुख का निधन 2 अक्टूबर 1982 को हैदराबाद में 87 की आयु में हुआ। आदर्शवाद और निष्पक्षता, संस्कृति और विज्ञान, अखंडता, समर्पण और कल्पना, के गुणों के दुर्लभ संयोजन के साथ, चिंतामण देशमुख का स्थान भारत के प्रतिष्ठित पुत्रों में हमेशा शीर्ष पर रहेगा।

अप्रैल 25, 2019
Central Banking and Innovation: Partners in the Quest for Financial Inclusion
भारतीय रिज़र्व बैंक ने 25 अप्रैल, 2019 को मुंबई में सत्रहवें सी. डी देशमुख स्मारक व्याख्यान की मेजबानी की। व्याख्यान श्री अगस्टिन कार्स्टेंस, महाप्रबंधक, अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) द्वारा दिया गया। गवर्नर श्री शक्तिकांत दास ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में अतिथियों का स्वागत किया और भारतीय रिज़र्व बैंक के पहले गवर्नर श्री सी. डी. देशमुख, जिन्होंने रिज़र्व बैंक और राष्ट्र के प्रति अपनी सराहनीय सेवाएं प्रदान की, की स्मृति में रिजर्व बैंक द्वारा स्थापित व्याख्यान श्रृंखला के महत्व पर प्रकाश डाला। श्री अगस्टिन कार्स्टेंस दिसंबर 2017 से बीआईएस के महाप्रबंधक हैं। श्री कार्स्टेंस ने 2010 से 2017 तक बैंक ऑफ मैक्सिको के गवर्नर के रूप में कार्य किया। 2011 से 2017 तक बीआईएस बोर्ड के सदस्य होने के नाते, वे 2013 से 2017 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था बैठक और आर्थिक परामर्शदात्री परिषद के अध्यक्ष रहें । उन्होंने 2015 से 2017 तक अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक और वित्तीय समिति, आईएमएफ की नीति सलाहकार समिति की अध्यक्षता की। आज के व्याख्यान में, श्री कार्स्टेंस ने एक आधुनिक अर्थव्यवस्था में वित्तीय सेवाओं तक पहुंच के महत्व पर प्रकाश डाला और अर्थव्यवस्था में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में केंद्रीय बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। वित्तीय समावेशन औपचारिक ऋण, बचत और बीमा सुविधाओं के उपयोग को बढ़ावा देकर गरीबी को कम करने में मदद कर सकता है। वित्तीय समावेशन में कुछ प्रमुख बाधाएं हैं, पर्याप्त धनराशि का अभाव, उच्च लागत और औपचारिक वित्तीय प्रणाली में विश्वास की कमी। श्री कार्स्टेंस ने कहा कि कीमत और वित्तीय स्थिरता नामक उनके मूल जनादेश पर ध्यान देकर केंद्रीय बैंक और वित्तीय प्राधिकरण वित्तीय प्रणाली में विश्वास बढ़ा सकते हैं और इस प्रकार से वित्तीय समावेशन के लिए आधार प्रदान कर सकते हैं। वित्तीय समावेशन की कुछ बाधाओं अर्थात् उच्च लागत, प्रलेखन और क्रेडिट इतिहास की कमी को दूर करने के लिए डिजिटल तकनीक और बड़े डेटा का उपयोग किया जा सकता है।
Lecture Series No. 17
नवंबर 04, 2017
The Good and the Bad Fiscal Theory of the Price Level
भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुंबई में 11 अप्रैल 2017 को सोलहवें सी.डी. देशमुख स्मृति व्याख्यान आयोजित किया। यह व्याख्यान प्रोफेसर विलेम ब्यूटर, वैश्विक मुख्य अर्थशास्त्री, सिटीग्रूप द्वारा किया गया। गवर्नर डॉ. उर्जित आर. पटेल ने अतिथियों का स्वागत किया और वर्ष 1984 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू की गई सी.डी. देशमुख स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रोफेसर विलेम ब्यूटर ने प्रिंसटन, ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी, एम्सटरडम, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स और राजनीति शास्त्र, येल और कैम्ब्रिज में पूर्णकालिक अकादमीय कार्य किए हैं। वे कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय और सार्वजनिक कार्य स्कूल (एसआईपीए) में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं और पहले बैंक ऑफ इंग्लैंड की मौद्रिक नीति समिति के सदस्य थे और यूरोपीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक, लंदन के अध्यक्ष के मुख्य अर्थशास्त्री और विशेष परामर्शदाता थे। समष्टि आर्थिक अनुसंधान, राजकोषीय और मौद्रिक नीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2013 में रॉयल सोसाइटी ऑफ साइंसेज ऑफ होलैंड द्वारा पहचान की गई। वे 1998 से ब्रिटिश अकादमी के फेलो रहे हैं।
Lecture Series No. 16
मार्च 01, 2013
A Revolution in Monetary Policy : Lessons in the Wake of the Global Financial Crisis
भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुंबई में 11 अप्रैल 2017 को सोलहवें सी.डी. देशमुख स्मृति व्याख्यान आयोजित किया। यह व्याख्यान प्रोफेसर विलेम ब्यूटर, वैश्विक मुख्य अर्थशास्त्री, सिटीग्रूप द्वारा किया गया। गवर्नर डॉ. उर्जित आर. पटेल ने अतिथियों का स्वागत किया और वर्ष 1984 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू की गई सी.डी. देशमुख स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रोफेसर विलेम ब्यूटर ने प्रिंसटन, ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी, एम्सटरडम, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स और राजनीति शास्त्र, येल और कैम्ब्रिज में पूर्णकालिक अकादमीय कार्य किए हैं। वे कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय और सार्वजनिक कार्य स्कूल (एसआईपीए) में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं और पहले बैंक ऑफ इंग्लैंड की मौद्रिक नीति समिति के सदस्य थे और यूरोपीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक, लंदन के अध्यक्ष के मुख्य अर्थशास्त्री और विशेष परामर्शदाता थे। समष्टि आर्थिक अनुसंधान, राजकोषीय और मौद्रिक नीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2013 में रॉयल सोसाइटी ऑफ साइंसेज ऑफ होलैंड द्वारा पहचान की गई। वे 1998 से ब्रिटिश अकादमी के फेलो रहे हैं।
Lecture Series No. 15
दिसंबर 07, 2000
Whither Central Banking?
Lecture Series No. 11
फ़रवरी 07, 2000
International Financial Regulation: The Quiet Revolution
Lecture Series No. 10
अक्‍तूबर 14, 1996
Lecture Series No. 9
मार्च 24, 1992
Lecture Series No. 7
जनवरी 11, 1990
Lecture Series No. 6
अक्‍तूबर 04, 1988
Lecture Series No. 5
नवंबर 24, 1987
Lecture Series No. 4
जनवरी 09, 1985
Lecture Series No. 2
जनवरी 18, 1984
Lecture Series No. 1

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पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: नवंबर 23, 2022

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