पी.आर. ब्रह्मानंद स्मारक व्याख्यानमाला - आरबीआई - Reserve Bank of India
पी.आर. ब्रह्मानंद स्मारक व्याख्यानमाला
भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2004 में प्रोफेसर पलाहल्ली रामय्या ब्रहमानंद की स्मृति में, शिक्षण के लिए उनकी निरंतर प्रतिबद्धता, अर्थशास्त्र में अनुसंधान में उनके मौलिक योगदान, विशेष रूप से मौद्रिक अर्थशास्त्र, और भारतीय रिजर्व बैंक के साथ उनके लंबे सहयोग को देखते हुए एक व्याख्यान श्रृंखला शुरू की। "द ग्रेट डिप्रेशन एंड द ग्रेट रिसेशन: वट वी हेव लर्नड?" पर चौथा व्याख्यान हूवर इंस्टीट्यूशन के प्रोफेसर माइकल डी. बोर्डो द्वारा 9 अप्रैल 2012 को दिया गया था। ''सेंट्रल बैंक लेसन्स फ्राम द ग्लोबल क्राइसेस'' पर तीसरा व्याख्यान 11 फरवरी 2011 को बैंक ऑफ इज़राइल के गवर्नर प्रो. स्टेनली फिशर ने दिया था। 'गवर्नेंस,इंस्टीट्यूशंस एंड डेवलपमेंट' पर दूसरा व्याख्यान 28 जून 2007 को प्रोफेसर अविनाश के.दीक्षित, जॉन जे एफ.शेररेड, प्रिंसटन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के 52 यूनिवर्सिटी प्रोफेसर द्वारा दिया गया था। 'ड्रेन,होर्ड्स एंड फॉरेनर्स: डस द नाइन्टीअथ सेंचुरी इंडियन इकॉनामी हेव एनी लेशन्स फार द ट्वीनेंटि फर्स्ट संचुरी इंडिया?' पर इस श्रृंखला का पहला व्याख्यान 20 सितंबर 2004 को लॉर्ड मेघनाद देसाई, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस, लंदन द्वारा दिया गया था।
पी.आर.ब्रहमानंद : प्रोफ़ाइल
प्रोफेसर ब्रहमानंद का जन्म 1926 में हुआ था, उनके पिता पी.आर. रमय्या एक प्रसिद्ध कन्नड़ पत्रकार और मैसूर राज्य रियासत के स्वतंत्रता सेनानी थे, जो ताइनडू और दैनिक समाचार के मलिक और संपादक भी थे। उनकी माता, पी. आर जयलक्ष्मा, बैंगलोर की उप महापौर थी। महाराजा कॉलेज, मैसूर विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद, वह मुंबई विश्वविद्यालय (उस समय बॉम्बे विश्वविद्यालय) से जुड़े। अकादमिक गतिविधियों के लिए उनके झुकाव ने उन्हें 1949-50 के प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में उच्च रैंक हासिल करने के बावजूद करियर से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया। उन्हें 1956 में रॉकफेलर फाउंडेशन फैलोशिप से भी सम्मानित किया गया, जो किसी कारणवश, उन्होंने नहीं ली। प्रोफेसर ब्रहमानंद ने प्रोफेसर सी.एन.वकील के अनुसंधान सहायक के रूप में अपना करियर शुरू किया, और बाद में मुंबई विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के एक विशिष्ट प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। प्रोफेसर ब्रहमानंद, मुंबई विश्वविद्यालय, अर्थशास्त्र विभाग में मौद्रिक अर्थशास्त्र के पहले आरबीआई प्रोफेसर थे। विश्वविद्यालय में अपने कार्यकाल के दौरान, प्रोफेसर ब्रहमानंद ने कई प्रतिष्ठित पदों पर कार्य किया, जैसे बॉम्बे स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक, भारतीय आर्थिक संघ के अध्यक्ष, सोसाइटी ऑफ लेबर इकानामिक के अध्यक्ष, और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संघ के अध्यक्ष। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एक विज़िटिंग प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग और सोशल साइंस रिसर्च की भारतीय परिषद में रिसर्च फेलो, और सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज इंस्टिट्यूट और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, बैंगलोर में मानद फेलो के रूप में भी कार्य किया ।
भले ही प्रोफेसर ब्रहमानंद के योगदान ने अर्थशास्त्र के लगभग सभी क्षेत्रों को समृद्ध किया, मौद्रिक अर्थशास्त्र में उनकी विशेष क्षमता बनी रही। आर्थिक सिद्धांत में उनका बड़ा योगदान विकासशील देशों के लिए क्लासिक अर्थशास्त्र का पुनर्निर्माण था। उन्होंने मूल्य के एक परिवर्तनीय उपाय की तलाश में 'सर्राफा क्रांति' के लिए समानांतर अभ्यास किया और उन्हें भारत की मौद्रिक परंपराओं को समृद्ध करने के लिए श्रेय दिया जाता है। मौद्रिक सिद्धांत के क्षेत्र में, प्रोफेसर ब्रहमानंद ने विकासशील देशों में उत्पादन और कीमतों पर कमोडिटी होर्डिंग के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने बोहम-बावरक के समय वरीयता के विचार को शामिल करते हुए ब्याज दर के सामान्य सिद्धांत, नवाचार और उत्पादकता वृद्धि के सुम्पटेरियन अवधारणाओं और वितरण बदलावों के स्रेफियन सिद्धांतों को भी विकसित किया। उन्होंने एक विस्तारित क्लासिकल और मार्शलियन कोण से वेलफेयर अर्थशास्त्र और विकास की समस्याओं को देखा,और वेलफेयर अर्थशास्त्र के कई नियमों के लिए वैचारिक संशोधन प्रदान किए। विकास अर्थशास्त्र की परंपरा को सच करते हुए, प्रोफेसर ब्रहमानंद ने विकास के क्षेत्रीय दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्किंग में गहरी रुचि रखी । अप्लाइड इकोनॉमैट्रिक्स के उत्साही प्रैक्टिशनर के रूप में, उन्होंने आर्थिक सिद्धांतों को अनुभवी रूप से मान्य करने के समझदार रास्ते पर चलना शुरू किया। उन्हें समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान और इतिहास में महत्वपूर्ण विकास पर भी अच्छी जानकारी थी। एक शोधकर्ता के रूप में, उन्होनें कभी समझौता नहीं किया और अक्सर विचारों के लिए कई बार अकेले लड़ाई लड़ी। आयोजना के दिनों में, कई नीतिगत मुद्दों पर उनके असंतोषजनक नोट – यह उस समय में एक अनोखी बात - उनके दृढ़ विश्वास की ताकत की गवाही देते हैं।
हालांकि वह सरकार के प्रशासनिक पदों से पृथक रहे, प्रोफेसर ब्रहमानंद अकेले सिद्धांतों के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहे । प्रोफेसर सी. एन. वकील के सहयोग से 1950 के दशक में विकसित 'वेज-गूड मॉडल' ने विकास के महालनोबिस मॉडल का विकल्प प्रदान किया। उन्होंने 1974 में, मुद्रास्फीति की बढ़ती दर को कम करने के उपायों पर भारत सरकार के एक ज्ञापन को तैयार करने का भी नेतृत्व किया । उन्होंने आर्थिक संरचना, निवेश प्राथमिकताओं, तकनीकों की पसंद, बाजार हस्तक्षेप, ब्याज और विनिमय दर नीतियों, बैंक राष्ट्रीयकरण, सार्वजनिक वित्त नीति, जनसंख्या नीति, रोजगार कार्यक्रम और भारतीय अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कई पहलुओं से संबंधित तर्क-वितर्कों पर अपनी छाप छोड़ी। उनके विचारों के क्रिस्टलीकरण ने एक वैचारिक निकाय का रूप लिया जो 'बॉम्बे स्कूल ऑफ थॉट' के नाम से लोकप्रिय है।
पांच दशकों से अधिक समय तक का प्रोफेसर ब्रहमानंद का लेखन एक आकर्षक कहानी बताता हैं । उनके नाम लगभग तीस किताबें और छह सौ से ज्यादा लेख उनके नाम हैं। उनकी कुछ प्रसिद्ध किताबों / मोनोग्राफ में शामिल हैं: 'प्लानिंग फॉर ए शार्टेज इकॉनामी' और 'प्लानिंग फॉर एन एक्सपांडिंग इकॉनामी' (दोनों संयुक्त रूप से प्रोफेसर सी.एन.वकील के साथ), 'स्टडीज इन द इकॉनामिक्स ऑफ वेलफेयर मेक्जीमाइजेशन', 'एक्सप्लोरेशन इन द न्यू क्लासिकल थ्यॉरी ऑफ पोलिटिकल इकॉनामी एडं ए कनेक्टेड क्रिटिक ऑफ इकॉनामिक थ्यॉरी', 'प्लानिंग फॉर वेज गुड्स इकानामी', 'ए फ्रेमवर्क फॉर एन आप्टीमम मोनेटरी एंड बैंकिंग सिस्टम', 'ग्रोथलेस इन्फ्लामेशन बाय मीन्स ऑफ स्टॉकलेस मनी - ए न्यू क्लासिकल ट्रीट्रीज ऑन राइजिंग प्राइज' और 'गोल्ड मनी रिफ्ट - ए क्लासिकल ट्रीट्रीज ऑन इंटरनेशनल लिक्विडीटी'। 1980 में, उन्होंने 'द आईएमएफ लोन एंड इंडियाज इकानामिक फ्यूचर’ बहुचर्चित मोनोग्राफ तैयार किया।
रिजर्व बैंक ने 1835 से 1900 की अवधि के लिए भारत के मौद्रिक इतिहास को लिखने के लिए इस अनुकूल बुद्धिजीवी को अवसर प्रदान किया। यह काम व्यापक रूप से मिल्टन फ्राइडमैन और ऐना श्वार्टज़ के ढांचे में संरचित है (अर्थात, 'मोनेटरी ट्रेंड एन द युनाइटेड स्टेट एंड द युनाइटेड किंगडम-देयर रिलेशन टु इनकम, प्राइस एंड इंट्ररस्ट रेट्स: 1867-1975', शिकागो विश्वविद्यालय, 1983 और 'ए मोनेटरी हिस्ट्री ऑफ द युनाइटेड स्टेट्स 1867-1960', प्रिंसटन - 1963' भारत में मौद्रिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में सबसे अग्रणी कार्यों में से एक है। प्रोफेसर ब्रहमानंद ने उन्नीसवीं शताब्दी के लिए मौद्रिक डेटा एकत्र करने का चुनौतीपूर्ण कार्य पूरा किया। क्लासिकल मौद्रिक और अंतरराष्ट्रीय व्यापार सिद्धांत के विकास की इतिहास रिकॉर्डिंग के अलावा, यह काम मौद्रिक विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित करने वाले विभिन्न तर्क-वितर्कों पर फिर से विचार करने को मजबूर करता है।
23 जनवरी 2003 को उनके दुखद निधन ने भारतीय आर्थिक दुनिया में एक शून्यता ला दी है। अपने छात्रों के लिए एक मित्र, वैश्विक दृष्टिकोण के साथ एक दूरदर्शी, विचारों के कश्मकश में लगा एक व्यक्ति, इस व्यक्ति के कई पहलू थे जिसने संत की तरह अपना जीवन जीया और कई छात्रों को प्रेरित किया, जिनमें से कई ने सार्वजनिक नीति और अकादमिक क्षेत्रों में खुद को प्रतिष्ठित कराया है।
Dr. Rakesh Mohan, President Emeritus and Distinguished Fellow, Centre for Social and Economic Progress (CSEP), New Delhi
Delivered by Professor Devesh Kapur, Johns Hopkins University, Washington, D.C.
Stanley Fischer, Governor, Bank of Israel
Lord Meghnad Desai
फोटो गैलरी
पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: नवंबर 23, 2022