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बैंकिंग प्रणाली से वफ्षि और संबंधित गतिविधियों के लिए ऋण उपलब्ध कराने के संबंध में परार्मश्ादात्री समिति

भारिबैं / 2005-06 / 172
ग्राआऋवि.पीएलएफएस.बीसी.सं. 42/05.02.02/2005-06

अक्तूबर 1, 2005

अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक / मुख्य कार्यपालक अधिकारी
(सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक )
महोदय / महोदया

बैंकिंग प्रणाली से वफ्षि और संबंधित गतिविधियों के लिए ऋण उपलब्ध कराने के संबंध में परार्मश्ादात्री समिति

बैंकिंग प्रणाली से वफ्षि और संबंधित गतिविधियों को ऋण उपलब्ध कराने के संबंध में परामर्शदात्री समिति (व्यास समिति) की रिपोर्ट के पैरा 5.11 के अनुसार निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं :-

‘आनावारी’ की घोषणा के लिए राज्य सरकार की प्रक्रिया जटिल और लंबा समय लेनेवाली है । फलस्वरूप, किसानों के मौजूदा ऋणों के रूपांतरण और उनको नए ऋणों की मंजूरी में भी विलंब होता है । इसका परिणाम यह होता है कि ऐसे ऋण भी जिनके भुगतान की समयावधि का पुन: निर्धारण किया जा सकता है, अनर्जक परिसंपत्ति के रूप में वर्गीवफ्त कर दिए जाते हैं । विलंब को टालने के लिए अग्रणी बैंक के अग्रणी जिला प्रबंधक को चाहिए कि वे जिले में बाढ़/सूखा आदि के कारण फसल नष्ट होने की सूचना जिला प्राधिकारियों से समय पर प्राप्त करने की व्यवस्था करें । ऐसी सूचना के आधार पर, अग्रणी बैंक के जिला प्रबंधक की अध्यक्षता वाली एक समिति, जिसमें नाबाड़ के जिला विकास प्रबंधक, जिला वफ्षि अधिकारी और जिले में सदस्य के रूप में क्रियाशील कुछ बड़े बैंकों के प्रबंधक शामिल होंगे, वफ्षि वैज्ञानिकों/स्थानीय वफ्षि विश्वविद्यालय से परामर्श करके जिले में मौसम की असमान्यता के कारण हुई फसल की हानि पर विचार कर सकती है तथा वफ्षि ऋणों के रूपांतरण/उनके भुगतान की समयावधि पुन: निर्धारित करने के संबंध में कोई निर्णय ले सकती है । एक बार जब इस तरह का निर्णय ले लिया जाए तो इसके आधार पर जिले में क्रियाशील सभी बैंकों को चाहिए कि वे पात्र किसानों को दिए गए ऋणों के भुगतान की समयावधि पुन: निर्धारित करने की सुविधा प्रदान करें । राज्य स्तरीय बैंकर समिति के संयोजक को तुरंत इसकी रिपोर्ट की जाए तथा राज्य स्तरीय बैंकर समिति की होनेवाली अगली बैठक की कार्यवाही में इसे दर्ज किया जाए । बैंक अपनी शाखाओं को उपर्युक्त जिला स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर दिए गए ऋणों के रूपांतरण/ऋण अवधि के पुनर्निर्धारण के संबंध में निर्णय लेने के लिए प्राधिवफ्त कर सकते हैं ।

प्रावफ्तिक आपदा होने पर, जब राज्य सरकार द्वारा अनावारी घोषित करने में विलम्ब हो, ऋणों के पुनर्गठन के माध्यम से बैंकों द्वारा राहत उपाय उपलब्ध कराने के मुे िके संबंध में हमारे दिशानिर्देशों में स्पष्ट किया गया है तथा उसमें यह उल्लेख किया गया है कि ऐसे मामलों में बैंक जिला आयुक्त द्वारा जारी प्रमाण पत्र स्वीकार कर सकते हैं । तथापि, ऐसे प्रमाण पत्र हमेशा प्राप्त नहीं होते जिसके परिणामस्वरुप बैंक द्वारा राहत प्रदान करने में विलम्ब हो जाता है ।

अत: अनावारी की इस वर्तमान प्रणाली के विकल्प के रुप में यह निर्णय लिया गया है कि यह कार्य जिला परामर्शदात्री समिति को सौंपा जा सकता है जिसमें बैंकों और राज्य सरकार के प्रतिनिधि होते हैं तथा इसका अध्यक्ष जिला आयुक्त होता है । इस संबंध में हमारे दिशानिर्देशों में यह उल्लेख किया गया है कि किसी भी प्रावफ्तिक आपदा के तुरन्त बाद प्रभावित जिले / जिलों की जिला परामर्शदात्री समिति / समितियों के आयोजकों को एक बैठक का आयोजन करना चाहिए ताकि वित्तीय संस्थानों को सहयोग प्रदान करके तुरन्त कार्रवाई का जा सके । यदि आपदा से राज्य का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ है तो राज्य स्तरीय बैंकर समिति के आयोजक भी तुरन्त बैठक आयोजित करें ताकि राज्य / जिला प्राधिकरण के सहयोग से कार्रवाई हेतु कार्यक्रम तैयार करके उसका कार्यान्वयन किया जा सके ।

अत: अनावारी घोषणा की वर्तमान प्रणाली के विकल्प के रुप में निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाए :

प्रावफ्तिक आपदा यथा सूखा, बाढ़ आदि, होने पर जिला आयुक्त अग्रणी बैंक अधिकारी को डीसीसी की बैठक आयोजित करने के लिए कहे तथा डीसीसी को इस आशय की रिपोर्ट प्रस्तुत करें कि प्रभावित क्षेत्र में फसल की हानि किस सीमा तक हुई है । डीसीसी के सन्तुष्ट होने पर, कि प्रावफ्तिक आपदा होने पर फसल की अत्यधिक हानि हुई है, बिना अनावारी की घोषणा के भी प्रावफ्तिक आपदा से प्रभावित किसानों को स्थायी दिशानिर्देशों के अनुसार वफ्षि ऋणों के परिवर्तन / पुनर्गठन सहित राहत प्रदान की जाए ।

2. बैंकों से अनुरोध है कि वे अपने नियंत्रक कार्यालयों और शाखाओं को उपर्युक्त अनुदेश जारी करें । वफ्पया की गई कार्रवाई से हमें यथाशीघ्र अवगत कराएँ ।

3. वफ्पया पावती दें ।

भवदीय

( सी.एस.मूर्ति )

प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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