चेक क्लियरिडग में विलंब - राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष 2006 का मामला संख्या 82
आरबीआई / 2008-09 /378 |
6 फरवरी 2009 |
17 माघ, शक 1930 |
सभी राज्य सहकारी बैंक और |
महोदय/महोदया, |
चेक क्लियरिडग में विलंब - राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण |
जैसा कि आपको विदित है, अगस्त 2006 के दौरान उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष एक मामला दर्ज किया गया था जिसमें चेक क्लियरिडग में विलंब और विशेष रूप से, स्थानीय और अंतर -सिटी क्लियरिडग में प्लोट के मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था। 2006 के मामला सं. 82 को जनहित में स्वीकार करते हुए शिकायत में भारतीय रिज़र्व बैंक (the Bank) और सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक (the banks) को प्रतिवादी बनाया गया था तथा चेक संग्रहण में हुए विलंब के लिए ब्याज के रुप में पर्याप्त क्षतिपूर्ति की मांग की गई थी। 2. भारतीय रिज़र्व बैंक और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों ने समय-समय पर कई एफिडेविट फाइल किए तथा आयोग ने अंतत: 27 अगस्त 2008 को मामला यह देखते हुए निपटा दिया था कि भारतीय रिज़र्व बैंक, भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के अंतर्गत अपनी इन व्यापक शक्तियों का प्रयोग करते हुए बाहरी केद्रों के चेकों के संग्रहण में हुए विलंब के कारण उत्पन्न प्लोट यदि कोई हो, को नियंत्रित करने का प्रयास करेगा। सुनवाई के दौरान आयोग ने आदेश पारित किए जिनके परिणामस्वरूप "बाहरी केद्रों के चेकों के संग्रहण के लिए समय सीमा" के बारे में अंतिम आदेश पारित किया जा सका जो @http:www.ncdrc.nic.in/CC820605.htm पर उपलब्ध है। |
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4. कृपया इसे अत्यावश्यक समझें तथा की गई कार्रवाई की सूचना इस पत्र की तारीख से एक माह के अंदर हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को दें। |
भवदीय |
(बी.पी.विजयेद्र) |
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