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मासिक अंतराल पर ब्याज लगाना - समेकित अनुदेश

मासिक अंतराल पर ब्याज लगाना - समेकित अनुदेश

संदर्भ : बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 8 /13.03.00/2002-03

26 जुलाई 2002
04 श्रावण 1924 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)

प्रिय महोदय,

मासिक अंतराल पर ब्याज लगाना - समेकित अनुदेश

कृपया आप 9 मार्च 2002 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 73/ 13.03.00/ 2001-02 देखें, जिसके साथ उसी तारीख का निदेश बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 72/ 13.03.00/ 2001-02 भेजा गया है । इसमें बैंकों से कहा गया है कि वे 1 अप्रैल 2002 से अग्रिमों पर मासिक अंतराल पर ब्याज लगाने की पद्धति अपनायें, ताकि 31 मार्च 2004 को समाप्त वर्ष से ऋण में हानि को पहचानने के लिए 90 दिन का मानदंड अपनाया जा सके । हमने उपर्युक्त विषय में कतिपय स्पष्टीकरण देते हुए 28 मई और 8 जून 2002 को बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. सं. क्रमश: 107 और 114 / 13.03.00/ 2001-02 भी जारी किये हैं । इस संबंध में परिचालनगत और प्रक्रिया संबंधी मुद्दों पर बैंकों से प्राप्त कतिपय सुझावों और बैंकों से चर्चा के आधार पर रिज़र्व बैंक ने उपर्युक्त परिपत्रों में निहित अनुदेशों की समीक्षा की है ।

2. इस विषय में उपर्युक्त परिपत्रों में दिये गये अनुदेशों का अधिक्रमण करते हुए अब बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे ऋणों औेर अग्रिमों पर मासिक अंतराल पर ब्याज लगाने की प्रणाली अपनाने के संबंध में निम्नलिखित समेकित अनुदेशों का पालन करें :

(i) बैंकों को यह विकल्प है कि वे मासिक अंतराल पर चक्रवृद्धि ब्याज लगाने के लिए 1 अप्रैल 2002 से, या 1 जुलाई 2002 से या 1 अप्रैल 2003 से यह पद्धति अपनायें ।

(ii) जुलाई 2002 से प्रारंभ तिमाही से बैंकों को यह सुनिश्चि करना चाहिए कि प्रभावी दर मासिक अंतराल पर ब्याज लगाने / चक्रवृद्धि ब्याज लगाने की प्रणाली अपनाये जाने के कारण मात्र से ही अधिक न हो जाये और ऋणकर्ताओं पर भार अधिक पड़े ।

उदाहरण के लिए :

यदि कोई बैंक किसी ऋणकर्ता के खाते पर 12 प्रतिशत की दर पर तिमाही अंतराल पर ब्याज लगाता है तो प्रभावी दर 12.55 प्रतिशत हो जाती है । यदि बैंक उसी खाते में 12 प्रतिशत की ब्याज दर मासिक अंतराल पर लगाता है तो प्रभावी दर 12.68 प्रतिशत हो जाती है । इसलिए बैंकों को ऋणकर्ता के खाते में लगायी गयी 12 प्रतिशत की ब्याज दर को इस तरह समायोजित करना चाहिए कि ऋणकर्ता के लिए प्रभावी ब्याज दर अब तक की तरह 12.55 प्रतिशत से अधिक न हो जाये । इस प्रकार उपर्युक्त उदाहरण में बैंकों को 11.88 प्रतिशत की ब्याज दर लगानी चाहिए (न कि 12 प्रतिशत की) । यदि ऐसा किया जायेगा तो मासिक अंतराल पर चव्र वृद्धि ब्याज दर लगाने पर भी प्रभावी दर 12.55 प्रतिशत होगी ।

  1. मासिक अंतराल पर ब्याज लगाने की पद्धति सभी प्रचलित खातों अर्थात् नकदी ऋण, ओवरड्राफ्ट, निर्यात पैकिंग ऋण खातों आदि तक सीमित होगा । मासिक अंतराल पर ब्याज लगाते समय बैंक प्रलेखन के उद्देश्य से ऋणकर्ता से सहमति पत्र /पूरक करार प्राप्त कर सकते हैं ।
  2. मासिक अंतराल पर ब्याज सभी नये और मौजूदा मीयादी ऋणों तथा लंबी /नियत अवधि के अन्य ऋणों पर लागू होगा ।
  3. लंबी /नियत अवधि के मौजूदा ऋणों के मामले में बैंक मासिक अंतराल पर ब्याज लगाना नियमों और शर्तों की समीक्षा करते समय अथवा ऐसे ऋण खातों का नवीकरण करते समय या ऋणकर्ता से सहमति प्राप्त करने के बाद लागू करेंगे ।
  4. चूंकि उपर्युक्त पैरा 2(ii) में दिये गये अनुदेश 1 जुलाई 2002 से प्रभावी हैं, अत: यदि किसी बैंक ने 30 जून 2002 को समाप्त तिमाही में उस पैरा में बतायी गयी पद्धति से भिन्न पद्धति अपनायी हो तो उस तिमाही के लिए समायोजन करने की आवश्यकता नहीं है ।
  5. 3. मासिक अंतराल पर ब्याज लगाने से संबंधित अनुदेश कृषि अग्रिमों पर लागू नहीं होंगे और बैंक फसल मौसमों से संबद्ध कृषि अग्रिमों पर ब्याज लगाने /चक्रवृद्धि ब्याज लगाने की वर्तमान प्रथा जारी रखेंगे । इस संबंध में बैंकों को यह सूचित किया जाता है कि वे हमारे ग्रामीण आयोजना और ऋण विभाग द्वारा जारी किये गये 29 जून 1998 के परिपत्र आरपीसीडी.सं. पीएलएफएस. बीसी. 129/05.02.27/97-98 में दिये गये अनुदेशों व ा पालन करें । जैसा कि उसमें बताया गया है, बैंकों को लंबे समय की फसलों के लिए कृषि अग्रिमों पर वार्षिक अंतराल पर ब्याज लगाना चाहिए । अल्प समय की फसलों और संबद्ध कृषि कार्यकलापों जैसे डेरी, मछली पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधु मक्खी पालन आदि के संबंध में यदि ऋण / किस्त का भुगतान अतिदेय हो जाये तो बैंक ब्याज लगाने और चक्रवृद्धि ब्याज लगाने के समय ऋण लेने वालों के साथ लचीलेपन और फसल कटने /बेचने के मौसम के आधार पर तय की गयी तारीखों को ध्यान में रखें ।

    4. कृपया प्राप्ति-सूचना भिजवायें ।

    भवदीय

    (एम. आर. श्रीनिवासन )
    प्रभारी मुख्य महा प्रबंधक

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