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बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें

आरबीआइ/2006-07/377
बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 93/13.03.00/2006-07

7 मई 2007
17 वैशाख 1929 (शक)

सभी वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें

कृपया वर्ष 2007-08 के वार्षिक नीति वक्तव्य के पैराग्राफ 168 (प्रतिलिपि संलग्न) का अवलोकन करें ।

2. रिज़र्व बैंक और बैंकिंग लोकपालों के कार्यालयों में अनेक शिकायतें प्राप्त हो रही हैं जो कुछ ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज और प्रभार लगाने से संबंधित हैं । इस संबंध में कृपया रिज़र्व बैंक के 1 जुलाई 2006 के मास्टर परिपत्र बैंपविवि. डीआइआर. बीसी. 5/13.03.00/ 2006-07 का संदर्भ लें, जिसके द्वारा बैंकों को सूचित किया गया था कि वे ऋणों और अग्रिमों पर ब्याज दर निर्धारित करने के लिए अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित एक वस्तुनिष्ठ और पारदर्शी नीति अपनाएं । छोटे और सीमांत कृषकों को अल्पावधिक अग्रिमों के मामले में रिज़र्व बैंक ने बैंकों को (उपर्युक्त मास्टर परिपत्र के पैराग्राफ 10.2 के द्वारा) यह भी सूचित किया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि ब्याज की राशि मूल ऋण की राशि से अधिक न हो ।

3. आप सहमत होंगे कि हालांकि ब्याज दरें अविनियमित हो गयी हैं, तथापि एक विशेष स्तर से अधिक ब्याज दर को सूदखोरी माना जा सकता है, जो न तो निर्वहणीय है और न सामान्य बैंकिंग प्रथा के अनुरूप है ।

4. अत: बैंकों के बोर्डों को सूचित किया जाता है कि वे समुचित आंतरिक सिद्धांत और प्रक्रियाएं निर्धारित करें ताकि उनके द्वारा ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज, प्रोसेसिंग और अन्य प्रभार न लगाया जाए । छोटे मूल्य के ऋणों, खास कर, व्यक्तिगत ऋण और इसी प्रकार के अन्य ऋणों के संबंध में बैंक अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित सामान्य दिशानिर्देशों को ध्यान में रखें :

  • ऐसे ऋणों को मंजूर करने के लिए एक समुचित पूर्वानुमोदन प्रक्रिया निर्धारित की जानी चाहिए, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ संभावित उधारकर्ता के नकद-प्रवाह (कैशप्लो) को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए ।

  • बैंकों द्वारा लगायी गयी ब्याज दरों में अन्य बातों के साथ-साथ उधारकर्ता की आंतरिक रेटिंग को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त और न्यायोचित जोखिम प्रीमियम को शामिल करना चाहिए । इसके अलावा जोखिम के प्रश्न पर विचार करते समय, प्रतिभूति है या नहीं तथा उसका मूल्य क्या है, इसे ध्यान में रखना चाहिए ।

  • बैंकों द्वारा ऋण देने में बैंक की कुल लागत तथा उक्त लेनदेन से प्रत्याशित उचित लाभ को ध्यान में रखते हुए ऋण की चुकौती के लिए उधारकर्ता की कुल लागत, जिसमें ऋण का ब्याज और अन्य प्रभार शामिल है, न्यायोचित होनी चाहिए ।

  • ऐसे ऋणों के संबंध में प्रोसेसिंग और अन्य प्रभारों सहित ब्याज की एक समुचित सीमा निर्धारित की जानी चाहिए, जिसका उपयुक्त रीति से प्रचार किया जाना चाहिए ।

5. इस परिपत्र की तारीख से तीन महीने के भीतर बैंक पुष्टि करें कि इस संबंध में उपयुक्त सिद्धांत और प्रक्रियाएं लागू कर दी गयी हैं ।

6. इस बीच, कृपया प्राप्ति-सूचना दें ।

 

भवदीय

(पी. विजय भास्कर)

मुख्य महाप्रबंधक

संलग्नक : यथोक्त


उद्धरण

वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य

बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें

168. रिज़र्व बैंक और बैंकिंग लोकपालों के कार्यालयों में अनेक शिकायतें प्राप्त हो रही हैं जो कुछ ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज और प्रभार लगाने से संबंधित हैं । हालांकि ब्याज दरें अविनियमित हो गयी हैं, तथापि एक विशेष स्तर से अधिक ब्याज दर को सूदखोरी माना जा सकता है, जो न तो निर्वहणीय है और न सामान्य बैंकिंग प्रथा के अनुरूप है ।

  • अत: बैंकों के बोर्डों को सूचित किया जाता है कि वे समुचित आंतरिक सिद्धांत और प्रक्रियाएं निर्धारित करें ताकि उनके द्वारा ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज, प्रोसेसिंग और अन्य प्रभार न लगाया जाए ।

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