बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें - क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें - क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी)
आरबीआइ/2006-2007/394
ग्राआऋवि.केंका.आरआरबी. बीसी. 92/03.05.28-¤¸ú/2006-07
15 मई 2007
सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
महोदय
बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें - क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी)
कृपया वर्ष 2007-08 के वार्षिक नीति वक्तव्य के पैराग्राफ 168 (प्रतिलिपि संलग्न) का अवलोकन करें ।
2. रिज़र्व बैंक और बैंकिंग लोकपालों के कार्यालयों में अनेक शिकायतें प्राप्त हो रही हैं जो कुछ ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज और प्रभार लगाने से संबंधित हैं । इस संबंध में कृपया सभी वाण्ंाज्यि बैंकों को संबोधित (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित) रिज़र्व बैंक के 17 अक्तूबर 1994 के परिपत्र बैंपविवि.सं.डीआइआर. बीसी. 115/13.07.01/94 का संदर्भ लें, जिसके द्वारा बैंकों को 2 लाख रूपए से ऊपर की ऋण सीमाओं के लिए उधार देने की न्यूनतम ब्याज दर को समाप्त किए जाने के बारे में सूचित किया गया था —
3. आप सहमत होंगे कि हालांकि ब्याज दरें अविनियमित हो गयी हैं, तथापि एक विशेष स्तर से अधिक ब्याज दर को सूदखोरी माना जा सकता है, जो न तो निर्वहणीय है और न ही सामान्य बैंकिंग प्रथा के अनुरूप ।
4. अत: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के बोर्डों को सूचित किया जाता है कि वे समुचित आंतरिक सिद्धांत और प्रक्रियाएं निर्धारित करें ताकि उनके द्वारा ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज, प्रोसेसिंग और अन्य प्रभार न लगाया जाए । छोटे मूल्य के ऋणों, खास कर, व्यक्तिगत ऋण और इसी प्रकार के अन्य ऋणों के संबंध में ऐसे सिद्धांत और प्रक्रयाएं स्थापित करते समय बैंक अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित सामान्य दिशानिर्देशों को ध्यान में रखें :
5. इस परिपत्र की तारीख से तीन महीने के भीतर बैंक पुष्टि करें कि इस संबंध में उपयुक्त सिद्धांत और प्रक्रियाएं लागू कर दी गयी हैं ।
6. इस बीच, कृपया प्राप्ति-सूचना हमारे संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को दें ।
भवदीय
( सी.एस.मूर्ति )
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
उद्धरण
वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य
बैंकों द्वारा अत्यधिक ब्याज लगाये जाने के संबंध में शिकायतें
168. रिज़र्व बैंक और बैंकिंग लोकपालों के कार्यालयों में अनेक शिकायतें प्राप्त हो रही हैं जो कुछ ऋणों और अग्रिमों पर अत्यधिक ब्याज और प्रभार लगाने से संबंधित हैं । हालांकि ब्याज दरें अविनियमित हो गयी हैं, तथापि एक विशेष स्तर से अधिक ब्याज दर को सूदखोरी माना जा सकता है, जो न तो निर्वहणीय है और न सामान्य बैंकिंग प्रथा के अनुरूप है ।