डेरेवेटिव के संबंध में व्यापक दिशा-निर्देश - आरबीआई - Reserve Bank of India
डेरेवेटिव के संबंध में व्यापक दिशा-निर्देश
भारिबैं/2006-07/333 20 अप्रैल 2007 अध्यक्ष /मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदय डेरेवेटिव के संबंध में व्यापक दिशा-निर्देश जैसा कि वर्ष 2006-07 की वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा के पैरा 137 में उल्लेख किया गया था, व्युत्पन्न (डेरिवेटिव) के संबंध में वर्तमान दिशा-निर्देशों की समीक्षा करने और बैंकों हेतु डेरिवेटिव के संबंध में व्यापक दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए रिज़र्व बैंक ने एक आंतरिक दल गठित किया था । 2. उक्त दल की सिफारिशों पर आधारित डेरिवेटिव के संबंध में व्यापक दिशा-निर्देशों का ड्राफ्ट 11 दिसंबर 2006 को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया था और वे सभी संबंधितों के अभिमतों के लिए खुले थे । 3. बैंकों तथा बाज़ार के सहभागियों के व्यापक क्षेत्र से अभिमत प्राप्त हुए। प्राप्त प्रतिपुष्टि के परिप्रेक्ष्य में उक्त दिशा-निर्देशों में उपयुक्त संशोधन किए गए हैं तथा वे अनुबंध में दिए गए हैं । 4. विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव के संदर्भ में दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। भवदीय (प्रशांत सरन) अनुबंध डेरिवेटिव के संबंध में व्यापक दिशा-निर्देश 1. डेरिवेटिव की परिभाषा डेरिवेटिव एक वित्तीय लिखत है : (क) जिसके मूल्य में परिवर्तन निर्दिष्ट ब्याज दर, प्रतिभूति कीमत, पण्य कीमत, विदेशी मुद्रा दर, मूल्यों या दरों के इंडेक्स, क्रेडिट रेटिंग या क्रेडिट इंडेक्स या इसी प्रकार के चर तत्व (जिसे कभी-कभी ‘आधार’ कहा जाता है) में होनेवाले परिरवर्तन के प्रतिक्रिया स्वरूप होता है ; (ख) बाज़ार स्थितियों में होने वाले परिवर्तन के प्रति समान प्रतिक्रिया दर्शानेवाली अन्य प्रकार की संविदाओं की तुलना में जिसके लिए किसी प्रारंभिक निवल निवेश की ज़रूरत नहीं है या कम प्रारंभिक निवल निवेश की ज़रूरत है । (ग) जिसका भावी तारीख में निपटान होता है। 1.1 भारत में, विभिन्न विनियामकों, जैसे भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) तथा वायदा बाज़ार कमीशन (एफएमसी), द्वारा भिन्न-भिन्न डेरिवेटिव लिखतों की अनुमति दी जाती है तथा उनका विनियमन किया जाता है। मोटे तौर पर, रिज़र्व बैंक को ब्याज दर डेरिवेटिव, विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव तथा क्रेडिट डेरिवेटिव विनियमित करने का अधिकार है। विनियामिक प्रयोजनों के लिए, डेरिवेटिव को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में निम्नानुसार परिभाषित किया गया है : "व्युत्पन्न" (डेरिवेटिव) का अर्थ है लिखत, जिसका भविष्य की तारीख में निपटान किया जाना है, जिसका मूल्य ब्याज दर, विदेशी मुद्रा दर, क्रेडिट रेटिंग या क्रेडिट इंडेक्स, प्रतिभूति के मूल्य (जिसे ‘आधार’ भी कहा जाता है) या उनमें से एक से अधिक के समन्वय में परिवर्तन से व्युत्पन्न होता है तथा जिसमें ब्याज दर स्वैप वायदा दर करार, विदेशी मुद्रा स्वैप, विदेशी मुद्रा-रुपया स्वैप, विदेशी मुद्रा स्वैप, विदेशी मुद्रा ऑप्शन्स, विदेशी मुद्रा-रुपया ऑप्शन्स या रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्दिष्ट किए जाने वाले अन्य लिखत शामिल हैं। 2. डेरिवेटिव बाज़ार डेरिवेटिव संविदाओं के दो स्पष्ट समूह हैं :
3. सहभागिता डेरिवेटिव वित्तीय और गैर-वित्तीय फर्मों दोनों के लिए उपयागी जोखिम प्रबंधन का काम करते हैं। इससे विभिन्न वित्तीय जोखिमों का ऐसी संस्थाओं को अंतरण किया जा सकता है जो लेने की इच्छुक हैं या उन्हें उठाने के लिए या उनका प्रबंध करने के लिए अधिक उपयुक्त हैं। इस बाज़ार के सहभागियों को मौटे तौर पर दो कार्यमूलक श्रेणियों में बांटा जा सकता है, अर्थात् मार्केट मेकर और उपयोगकर्ता।
डेरिवेटिव लेनदेन में कम से कम एक पार्टी मार्केट मेकर होना जरूरी है। 4. प्रयोजन उपयोगकर्ता प्रतिरक्षा (हेज) के लिए डेरिवेटिव लेनदेन कर सकते हैं । खास तौर से डेरिवेटिव लेनदेने की अवधि के दौरान विद्यमान अभिनिर्धारित जोखिम को निरंतर आधार पर कम करने या समाप्त करने के लिए अथवा जोखिम एक्सपोज़र के रूपांतरण के लिए, जैसी कि रिज़र्व बैंक द्वारा विशिष्ट रूप से अनुमति है। उपयागकर्ता परिसंपत्तियों और देयताओं के सजातीय समूह की प्रतिरक्षा भी कर सकते हैं, बशर्ते परिसंपत्तियों और देयताओं की प्रतिरक्षा किए जाने की अलग-अलग अनुमति हो। मार्केट मेकर उपयोगकर्ताओं के साथ डेरिवेटिव लेनदेन में प्रतिपार्टी के रूप में कार्य करने और उनमें आपस में डेरिवेटिव लेनदेन कर सकते हैं। 5. पात्रता मानदंड : (i) मार्केट मेकर :
बैंकों और प्राथ्ामिक व्यापारियों को मार्केट मेकर के रूप में डेरिवेटिव कारोबार करने के लिए स्टाफ और प्रणालियों दोनों की दृष्टि से डेरिवेटिव उत्पादों के बारे में पर्याप्त समझ और विशेषज्ञता विकसित करनी चाहिए। (ii) उपयोगकर्ता :
6. डेरिवेटिव लेनदेन करने के लिए स्थूल सिद्धांत विनियामक दृष्टिकोण से कोई डेरिवेटिव लेनदेने करने के लिए प्रमुख अपेक्षाओं में निम्नलिखित शामिल होंगी :
(क) उत्पाद बाज़ार दर पर मूल्यांकित (मार्किंग टु मार्केट) हो, यदि उस उत्पाद के लिए नकद (लिक्विड) बाज़ार विद्यमान हो। (ख) संरचित उत्पादों के मामले में जेन्रिक लिखत घटकों को बाज़ार दर पर मूल्यांकित किया जाए। (ग) यदि (क) ओर (ख) व्यवहार्य नहीं हैं तो उत्पाद का मूल्य मॉडल के अनुसार हो, बशर्ते :
यह सुनिश्चित किया जाए कि संरचित उत्पादों में ऐसा कोई डेरिवेटिव न हो जिसकी पृथक आधार पर अनुमति नहीं है।
7. अनुमत डेरिवेटिव लिखत इस समय, कुछ शर्तों के अधीन निम्नलिखित प्रकार के डेरिवेटिव लिखतों की अनुमति है :
इन जेन्रिक डेरिवेटिव की परिभाषाएं परिशिष्ट ‘क’ में दी गयी हैं।
(क) उत्पाद मार्केट : (i) ओवर दि काउंटर (ओटीसी) - वायदा दर करार एवं ब्याज दर स्वैप (ii) एक्सचेंज के माध्यम से क्रय - विक्रय -ब्याज दर फ्यूचर्स (ख) उत्पाद : (i) वायदा दर करार (एफआरए) (ii) ब्याज दर स्वैप (आइआरएस) पात्र संस्थाएं विभिन्न प्रकार के प्लेन वेनिला एफआरए /आइआरएस का कार्य कर सकती हैं । ऐसे स्वैप की अनुमति नहीं है जिनमें केप्स /फ्लोर्स/कॉलर्स जैसी ऑप्शन विशेषताएं हैं । (iii) ब्याज दर फ्यूचर्स (आइआरएफ) (ग) एफआरए/आइआरएस के लिए बेंचमार्क दर /दरें कोई भी देशी मुद्रा या ऋण बाज़ार रुपया ब्याज दर; या वायदा विदेशी मुद्रा दरों में निहित रुपया ब्याज दर, जैसा कि माइफर स्वैप के संदर्भ में रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमति है। (देखें 28 दिसंबर 2005 के बैंपविवि. के परिपत्र बैंपविवि. बीपी. बीसी. 53/21.04.157/2005-06 का पैरा 3)। (घ) सहभागी सभी कारोबारी संस्थाएं, बैंकों तथा प्राथमिक व्यापारियों सहित मार्केट मेकर (i) वायदा दर करार /ब्याज दर स्वैप के लिए - सभी वाणिज्य बैंक (स्थानीय क्षेत्र बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) तथा प्राथमिक व्यापारी (ii) ब्याज दर फ्यूचर्स के लिए - प्राथमिक व्यापारी (V) प्रयोजन : उपयोगकर्ता
(i) अंतर्निहित एक्सपोज़र की प्रतिरक्षा के लिए (उपर्युक्त पैरा 4 में यथा परिभाषित) (क) बैंक, प्राथमिक व्यापारी और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं अपने तुलनपत्र की परिसंपत्ति या देयता की किसी मद (मदों) संबंधी ब्याज दर की प्रतिरक्षा के लिए एफआरए / आइआरएस कर सकती हैं। (ख) बैंक सरकारी प्रतिभूतियों में अपने निवेश के एएफएस और एचएफटी संविभागों संबंध्ाां ब्याज दर जोखिम की प्रतिरक्षा के लिए ब्याज दर फ्यूचर्स लेनदेन कर सकते हैं। (ii) प्राथमिक व्यापारी आइआरएफ में ट्रेडिंग पोज़ीशन रख सकते हैं, परंतु वह इस संबंध में आंतरिक दिशा-निर्देशों के अधीन होगी। 8. जोखिम प्रबंधन और कॉर्पोरेट गवर्नेंस पहलू इस खंड में डेरिवेटिव कार्यकलापों में जोखिमों को नियंत्रित करने के लिए विवेकपूर्ण प्रणाली के मूलभूत सिद्धांत दिऐ गए हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं : क) निदेश मंडल तथा वरिष्ठ प्रबंध तंत्र द्वारा उचित निगरानी ; ख) पर्याप्त जोखिम प्रबंधन प्रक्रिया जिसमें यथोचित जोखिम सीमाएं, सुदृढ़ मापक क्रियाविधियां तथा सूचना प्रणाली, निरंतर जोखिम निगरानी तथा थोड़ -थोड़े समय पर प्रबंधन सूचना देना शामिल है; तथा ग) व्यापक आंतरिक नियंत्रक तथा लेखा परीक्षा क्रियाविधियां । 8.1. कॉर्पोरेट गवर्नेंस क) जब डेरिवेटिव जैसे संभाव्य रूप से जटिल उत्पादों का कार्य किया जाए, तब यह महत्वपूर्ण है कि बैंक जो कारोबार कर रहा है उसके स्वरूप को बोर्ड तथा वरिष्ठ प्रबंध तंत्र समझे। इसमें जोखिम और प्रतिफल के बीच संबंध के स्वरूप को समझना शामिल है, विशेष रूप से यह समझ कि ऊपर से कम जोखिम वाला करोबार उच्च प्रतिफल प्रदान कर सकता है अंतर्निहित रूप से संदिग्ध है। ख) निदेशक बोर्ड और वरिष्ठ प्रबंध तंत्र को अपने कार्यों द्वारा यह बताने की भी जरूरत है कि समूचे संगठन में कारगर नियंत्रण वातावरण के प्रति उनकी पूरी वचनबद्धता है। ग) विवेकशील जोखिम प्रबंधन का समर्थन करने के अलावा बोर्ड और वरिष्ठ प्रबंध तंत्र को अधिक स्थिर तथा टिकाऊ प्रतिफल कार्यनिष्पादन को प्रोत्साहित करना चाहिए तथा उच्च परंतु अस्थिर प्रतिफल को हतोत्साहित करना चाहिए । घ) निदेशक बोर्ड तथा वरिष्ठ प्रबंध तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंक का संगठन जोखिम का प्रबंधन करने के लिए अनुकूल हो। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि डेरिवेटिव गतिविधियों सहित सभी कारोबारी गतिविधियों के लिए स्पष्ट जिम्मेदारी और जवाबदेही निर्धारित करने की व्यवस्था है । V) प्रधान कार्यालय में केंद्रीय जोखिम नियंत्रण कार्य के संबंध में यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि डेरिवेटिव कार्यकलापों में ट्रेडिंग गतिविधियों के जोखिमों और एक्सपोज़र की मात्रा के बारे में पर्याप्त जागरूकता हो । सभी नए उत्पादों और प्रक्रियाओं में अनुपालन जोखिमों का पूरी तरह विश्लेषण किया जाना चाहिए तथा नए उत्पाद की शुरुआत करने से पहले आवश्यक नियंत्रणों के रूप में जोखिम कम करने के उचित तरीके अपनाने चाहिए। मुख्य अनुपालन अधिकारी को नए उत्पादों के अनुमोदन की प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए तथा ऐसे सभी उत्पाद उसके द्वारा अनुमोदित होने चाहिए। अनुपालन अधिकारी को भी इन दिशा-निर्देशों के परिप्रेक्ष्य में सभी विद्यमान उत्पादों की समीक्षा करनी चाहिए और उन्हें अनुमोदित करना चाहिए। ध 8.2 बोर्ड तथा वरिष्ठ प्रबंध तंत्र द्वारा निगरानी अभिशासन (कार्पोरेट गवर्नेंस) के लिए अपनी सामान्य जिम्मेदारी के अनुरूप बोर्ड को ऐसी लिखित नीतियों को अनुमोदित करना चाहिए जिनमें उस समग्र ढाँचे को परिभाषित किया गया हो जिसके भीतर डेरिवेटिव गतिविधियाँ की जानी चाहिए तथा जोखिमों को नियंत्रित किया जाना चाहिए। डेरिवेटिव गतिविधियों के प्रबंधन को बैंक के अन्य कार्यकलापों के समान ही संकल्पनात्मक ढांचे का उपयोग करते हुए बैंक की समग्र जोखिम प्रबंधन प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए । डेरिवेटिव के लिए बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतिगत ढांचा सामान्य स्वरूप का हो । लेकिन उक्त ढांचे में निम्नलिखित पहलू शामिल हों : क) संस्था की जोखिम लेने की समग्र प्रवृत्ति को स्थापित करना तथा यह सुनिश्चित करना कि वह संस्था की कार्य नीतिगत लक्ष्यों, पूंजी बल तथा जोखिम की प्रभावी, कारगर तथा शीघ्र प्रतिरक्षा अथवा अंतरित करने की प्रबंधन की क्षमता के अनुरूप है । ख) अनुमोदित डेरिवेटिव उत्पादों तथा प्राधिकृत डेरिवेटिव गतिविधियों को परिभाषित किया गया हो । ग) नये उत्पादों अथवा गतिविधियों के मूल्यांकन तथा अनुमोदन के लिए विस्तृत अपेक्षाएं । घ) अनुमोदित डेरिवेटिव गतिविधियों का विवेकपूर्ण ढंग से संचालन हो, इस दृष्टि से पर्याप्त स्टाफ संसाधन तथा अन्य संसाधन का प्रावधान हो । V) प्रमुख जोखिम नियंत्रण कार्य जिनमें आंतरिक लेखा परीक्षा शामिल है, के लिए उचित ढांचा तथा स्टाफ सुनिश्चित हो । च) प्रबंधन की जिम्मेदारियां निर्धारित की गयी हों । छ) बैंक के समक्ष विद्यमान विभिन्न प्रकार के जोखिमों को निर्धारित करें तथा इन्हें नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट तथा व्यापक सीमाएं स्थापित करें । ज) ऐसी जोखिम मापन पद्धतियां स्थापित करें जो कि डेरिवेटिव गतिविधियों के स्वरूप तथा मात्रा के अनुरूप हों । झ) जोखिम स्थितियों की स्ट्रेस जांच अवश्य कराएं, तथा ञ) बोर्ड (अथवा बोर्ड की समितियों) को प्रस्तुत की जानेवाली रिपोर्टों के स्वरूप तथा बारंबारता के ब्यौरे । बोर्ड को जो रिपोर्ट प्राप्त होंगी उनमें वे रिपोर्ट हो जो कि संस्था द्वारा लिए जानेवाले जोखिम के स्तर, नीतियों, क्रियाविधियों तथा सीमाओं के अनुपालन का स्तर तथा विभिन्न डेरिवेटिव तथा खरीद-बिक्री कार्यकलापों के वित्तीय निष्पादन को दर्शाते हों । आंतरिक तथा बाह्य लेखा परीक्षा रिपोर्टों की बोर्ड स्तरीय लेखा परीक्षा समितियों द्वारा समीक्षा की जाए तथा चिंता के महत्वपूर्ण मुद्दों की ओर बोर्ड का ध्यान आकर्षित किया जाए । 8.3 उपयुक्तता और औचित्य नीति डेरिवेटिव बाज़ार की तेज वृद्धि, विशेषत: स्ट्रक्चर्ड डेरिवेटिव की तेज वृद्धि ने मार्केट मेकर्स द्वारा ग्राहकों (यूजर्स) को दिये जा रहे डेरिवेटिव उत्पादों की ‘उपयुक्तता’ तथा ‘औचित्य’ तथा ग्राहक औचित्य पर ध्यान बढ़ा दिया है । मार्केट-मेकर्स को विशेषत: ग्रांहकों के साथ किए जानेवाले डेरिवेटिव लेनदेन जिम्मेदारी तथा सावधानी पूर्वक करने चाहिए जिससे अन्य बातों के साथ-साथ गलत बिक्री से बचा जा सकेगा । यह अनिवार्य है कि मार्केट मेकर्स सामान्यत: डेरिवेटिव उत्पाद और विशेषत: स्ट्रक्चर्ड उत्पाद केवल उन यूजर्स को दें जो इन लेनदेन में अतर्निहित जोखिम के स्वरूप को समझते हों और इसके साथ ही यह भी कि प्रस्तावित उत्पाद यूजर के व्यवसाय, वित्तीय परिचालनों, कुशलता तथा अत्याधुनिकता, आंतरिक नीतियों तथा जोखिम लेने की प्रवृत्ति से अनुरूप हैं — प्रारंभिक स्तर पर यूजर्स की संविदाओं के अंतर्गत जोखिम तथा भावी बाध्यताओं की कम समझ से संभाव्य विवाद हो सकते हैं तथा उसके परिणामस्वरूप मार्केट-मेकर्स की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंच सकती है । प्रति पार्टी यदि संविदा के अंतर्गत अपनी वित्तीय बाध्यताएं पूर्ण न कर पाए तो मार्केट मेकर्स को ऋण जोखिम का भी सामना करना पड़ सकता है । यूजर्स को डेरिवेटिव उत्पाद प्रस्तुत करने से पूर्व मार्केट मेकर्स को उत्पादों की ‘यूजर औचित्य’ तथा ‘उपयुक्तता’ के संबंध में उचित सावधानी बरतनी चाहिए । प्रत्येक मार्केट मेकर को डेरिवेटिव व्यवसाय के लिए बोर्ड द्वारा अनुमोदित ‘ग्राहक औचित्य तथा उपयुक्तता नीति’ अपनानी चाहिए । नीति का लक्ष्य विवेकपूर्ण स्वरूप का है : अर्थात् डेरिवेटिव लेनदेन के स्वरूप तथा जोखिम के संबंध में यूजर की अपर्याप्त समझ के कारण जो ऋण, प्रतिष्ठा तथा मुकदमेबाजी जोखिम उठ सकते हैं उनसे मार्केट मेकर को बचाना । सामान्यत: मार्केट मेकर्स को ऐसे यूजर्स के साथ डेरिवेटिव लेनदेन नहीं करने चाहिए अथवा उन्हें स्ट्रक्चर्ड उत्पाद नहीं बेचने चाहिए जिनके पास ऐसी सुलिखित जोखिम प्रबंधन नीतियां नहीं हैं जिनमें अन्य बातों के साथ विभिन्न ऋण जोखिमों के लिए जोखिम सीमाएं निर्धारित हैं । इसके साथ ही स्ट्रक्चर्ड उत्पाद केवल उन यूजर्स को बेचे जाएं जो कि लेखांकन तथा प्रकटीकरण के विवेकपूर्ण मानदंडों का पालन करते हैं तथा जो कि इन उत्पादों के बाज़ार दर पर मूल्यांकन की स्थिति निरंतर आधार पर सुनिश्चित करने की क्षमता रखते हैं । स्ट्रक्चर्ड उत्पादों की बिक्री करते समय बिक्री करनेवाले बैंकों को केलक्युलेटर उपलब्ध कराना चाहिए अथवा कम-से-कम केलक्युलेटर तक पहुंच (जैसे मार्केट मेकर की वेबसाइट पर) देनी चाहिए जिससे यूजर्स निरंतर आधार पर इन स्ट्रक्चर्ड उत्पादों का बाज़ार दर पर मूल्यांकन कर सकेंगे । यूजर के साथ डेरिवेटिव लेनदेन करते समय अथवा उसे स्ट्रक्चर्ड डेरिवेटिव उत्पाद बेचते समय मार्केट मेकर को निम्नलिखित कार्य करना चाहिए : क) यह प्रलेखित करना चाहिए कि मूल्य निर्धारण किस तरह किया गया है तथा आवधिक मूल्यांकन कैसे किया जाएगा । स्ट्रक्चर्ड उत्पादों के मामले में, इस दस्तावेज में उत्पाद के जेनरिक तत्वों का विश्लेषण होना चाहिए ताकि एक ओर उसकी स्वीकार्यता दर्शाई जाए तथा दूसरी ओर उसकी कीमत तथा आवधिक मूल्यांकन सिद्धांत स्पष्ट हों ।यूजर के साथ निम्नलिखित जानकारी बांटी जाए : i) लेनदेन का वर्णन ii) लेनदेन के बिल्डिंग ब्लॉक्स iii) उचित जोखिम प्रकटीकरणों सहित तर्काधार iv) संवेदनशीलता विश्लेषण जिसमें उत्पादन पर असर डालनेवाले विभिन्न बाज़ार मानदंडों को निर्धारित किया गया हो । v) संभाव्य लाभ तथा हानि को दर्शाने वाला सिनॅरियो एनालिसिस ख) प्रस्तावित डेरिवेटिव लेनदेन के यूजर पर प्रत्याशित प्रभाव का विश्लेषण करना । ग) यह सुनिश्चित करना कि क्या यूजर के पास डेरिवेटिव लेनदेन करने के लिए उचित प्राधिकार है तथा क्या यूजर के बोर्ड ज्ञापन/नीति, डेरिवेटिव लेनदेन के अनुमोदन के स्तर, निर्णय लेने में तथा उसके द्वारा किए गए डेरिवेटिव कार्यकलापों की निगरानी में वरिष्ठ प्रबंधन के सहभाग के अनुसार डेरिवेटिव के विशिष्ट प्रकारों के प्रयोग पर कोई सीमाएं हैं घ) यह निर्धारित करें कि क्या प्रस्तावित लेनदेन डेरिवेटिव लेनदेन के संबंध में यूजर की नीतियों तथा क्रियाविधियों से अनुरूप हैं क्योंकि वे मार्केट मेकर को पता होती हैं । V) यह सुनिश्चित करें कि संविदा की शर्तें स्पष्ट हैं और मूल्यांकन करें कि क्या यूजर संविदा की शर्तें समझने के लिए तथा संविदा के अंतर्गत अपनी बाध्यताओं को पूर्ण करने के लिए सक्षम है । च) जहां मार्केट-मेकर को ऐसा लगता है कि कोई प्रस्तावित डेरिवेटिव लेनदेन ग्राहक के लिए उचित नहीं है वहां मार्केट-मेकर को ग्राहक को अपनी राय से अवगत कराना चाहिए । यदि ग्राहक फिर भी आगे बढ़ना चाहता है तो मार्केट मेकर को अपना विश्लेषण तथा ग्राहक के साथ हुई चर्चाओं को अपनी फाइलों में प्रलेखित करना चाहिए ताकि लेनदेन से ग्राहक का नुकसान होने की स्थिति में मुकदमे की संभाव्यता कम हो । ऐसे लेनदेन के लिए मार्केट-मेकर तथा यूजर दोनों के स्तर पर अनुमोदन अगले उच्चतर प्राधिकारी के स्तर पर लिया जाना चाहिए — छ) यह सुनिश्चित करें कि संविदा की शर्तें सुलिखित हैं, जिनमें रिस्क डिस्क्लोजर विवरण के रूप में ग्राहक को प्रस्तावित लेनदेन में अंतर्निहित जोखिम के बारे में बताया गया है । रिस्क डिस्क्लोजर विवरण में एक विस्तृत सिनॅरियो एनालिसिस (दोनों सकारात्मक तथा नकारात्मक) तथा अंडरलाइंग मार्केट वेरियेबल्स जैसे ब्याज दर तथा मुद्रा दर आदि के विभिन्न संयोजनों के अंतर्गत मात्रात्मक आधार पर पेआउट्स, सिनॅरियो एनालिसिस के लिए पूर्वानुमान तथा काउंटर पार्टी से इस आशय की लिखित प्राप्ति सूचना प्राप्त करना कि उन्होंने रिस्क डिस्क्लोजर विवरण को पढ़ा तथा समझा है, होना चाहिए । ज) गलतफहमियों की संभावना से बचने के लिए मार्केट-मेकर तथा यूजर के बीच के सभी महत्वपूर्ण संप्रेषण लिखित होना चाहिए अथवा बैठक की टिप्प्णों में रिकार्ड किया जाना चाहिए । झ) यह सुनिश्चित करें कि लेनदेन प्रचलित बाज़ार दरों पर किए जाते हैं तथा उन लेनदेन से बचें जिनके परिणामस्वरूप लाभ अथवा हानि की तेजी/आस्थगन हो । ञ) ग्राहक विवादों तथा शिकायतों के निपटान के लिए आंतरिक क्रियाविधियां स्थापित की जानी चाहिए । उनकी पूरी तरह जांच-पड़ताल की जानी चाहिए तथा उन पर उचित तथा त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिए । वरिष्ठ प्रबंध तंत्र तथा अनुपालन विभाग/अधिकारी को सभी ग्राहक विवादों तथा शिकायतों के बारे में नियमित अंतरालों पर अवगत कराया जाए । यह भी नोट किया जाए कि ‘ग्राहक औचित्य तथा उपयुक्तता’ समीक्षा की जिम्मेदारी मार्केट मेकर की है । 8.4 प्रलेखन बाज़ार सहभागियों को सूचित किया जाता है कि वे यह सुनिश्चित करें कि डेरिवेटिव संविदाओं के संबंध में सभी प्रलेखन आवश्यकताएं सभी तरह से पूर्ण हैं । उदाहरण के लिए
8.5 जोखिम निर्धारण मार्केट मेकर्स को अपनी डेरिवेटिव गतिविधियों में जिन विभिन्न प्रकार के जोखिमों का सामना करना होगा उनका निर्धारण करना चाहिए — जोखिम के मुख्य प्रकार हैं :
सामान्यत: डेरिवेटिव से संबद्ध जोखिम परिशिष्ट ‘ख’ में दिए गए हैं । 8.6 जोखिम गणना उचित निगरानी तथा नियंत्रण के लिए डेरिवेटिव संबंधी जोखिमों का सही मापन आवश्यक है । सभी महत्वपूर्ण जोखिमों का मापन किया जाना चाहिए और फिर उन्हें संपूर्ण कंपनी के लिए जोखिम प्रबंधन प्रणाली में एकीकृत किया जाना चाहिए । हानि के जोखिम का सीधे बाज़ार जोखिम तथा ऋण जोखिम (हालांकि सही नियंत्रण न किए जाने पर अन्य जोखिमों का उपार्जनों अथवा पूंजी पर समान अथवा उससे भी अधिक प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है) के संबंध में निर्धारण किया जा सकता है । इन दो प्रकार के जोखिमों का स्पष्ट संबंध है क्योंकि बाज़ार मूल्य में उतार-चढ़ाव के परिणामस्वरूप कोई डेरिवेटिव संविदा जिस सीमा तक "इन ख़् मनी" है वह ऋण जोखिम के स्तर का निर्धारण करेगी । यह डेरिवेटिव के जोखिम प्रबंधन में एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्पष्ट करता है — बाज़ार तथा ऋण जोखिम की गणना के लिए प्रयोग में लायी जानेवाली पद्धतियां निम्नलिखित से संबंधित हों : क) डेरिवेटिव ऑपरेशन का स्वरूप, मात्रा तथा जटिलता ख) डाटा संग्रहण प्रणालियों की क्षमता; तथा ग) गणना करने की प्रणाली द्वारा दिए गए परिणामों के स्वरूप, सीमाओं तथा अर्थ समझने की प्रबंध तंत्र की क्षमता । बाज़ार दर पर मूल्यांकन (मार्क-टू-मार्केट) गणना की प्रक्रिया जोखिम स्थितियों का बाज़ार दर पर मूल्यांकन किए जाने से प्रारंभ होती है । यह जोखिम की स्थितियों के चालू मूल्य को निर्धारित करने तथा लेखा बहियों में लाभ तथा हानियां निर्धारित करने के लिए आवश्यक है । यह आवश्यक है कि पुनर्मूल्यांकन प्रक्रिया किसी स्वतंत्र जोखिम नियंत्रण यूनिट अथवा बैक ऑफिस स्टाफ, जो कि प्रंट ऑफिस में जोखिम लेने वालों से स्वतंत्र हैं, द्वारा की जाए और पुनर्मूल्यांकन के लिए प्रयोग में लाए जानेवाले मूल्य निर्धारण तत्व ऐसे स्रोत से प्राप्त किए गए हैं जिसका स्वतंत्र रूप से सत्यापन किया जा सकता है । बाज़ार जोखिम की गणना जोखिम मापन प्रणाली को डेरिवेटिव पोज़ीशन्स में भावी हानि की संभाव्यता का मूल्यांकन करना चाहिए । इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, निम्नलिखित का अनुमान लगाना आवश्यक है : क) संविभाग के लिखतों की बाज़ार के तत्वों में परिवर्तनों के प्रति संवेदनशीलता जो उनके मूल्य पर प्रभाव डालती है (उदाहरणत: ब्याज दर, विनिमय दर तथा अस्थिरताएं); तथा ख) पिछली अस्थिरताओं तथा कोरिलेशन्स के आधार पर संबंधित बाज़ार तत्वों की बदलने की प्रवृत्ति । जोखिम प्रबंधन पद्धति में प्रयोग में लाए गए पूर्वानुमान तथा वेरिएबल्स पूर्णत: प्रलेखित होने चाहिए तथा उनकी नियमित रूप से वरिष्ठ प्रबंध तंत्र, स्वतंत्र जोखिम प्रबंधन यूनिट तथा आंतरिक लेखा-परीक्षा द्वारा समीक्षा की जानी चाहिए । स्ट्रेस टेस्ट दिन-प्रति-दिन आधार पर जोखिम की गणना करने के लिए प्रयोग में लाई जानेवाली मापन प्रणाली तथा पूर्वानुमानों के होते हुए, कंपनियों को वस्दट केस मार्केट सीनॅरियोज (अर्थात् वे जो हो सकते हैं लेकिन जिनकी संभावना कम है) के अंतर्गत जोखिम के मूल्यांकन के लिए नियमित स्ट्रेस टेस्ट संचालित करना चाहिए । स्ट्रेस टेस्ट में उन तत्वों को शामिल किया जाए जिनसे या तो अत्यधिक हानि हो सकती है अथवा जोखिम नियंत्रण बहुत कठिन हो सकता है । स्ट्रेस सिनॅरियोज, ऐसे तत्वों को ध्यान में लें जैसे किसी कंपनी को वास्तव में हुई सबसे बड़ी ऐतिहासिक हानि तथा ब्याज दरों अथवा अन्य बाज़ार तत्वों अथवा बाज़ार चलनिधि में उतार-चढ़ावों के संबंध में अत्यधिक पूर्वानुमानों के आधार पर वर्तमान संविभाग का मूल्यांकन । स्ट्रेस टेस्टिंग के परिणामों की वरिष्ठ प्रबंध तंत्र द्वारा नियमित समीक्षा की जानी चाहिए और निदेशक बोर्ड तथा वरिष्ठ प्रबंध तंत्र द्वारा अनुमोदित नीतियों तथा सीमाओं में वह प्रतिबिंबित होना चाहिए । ऑप्शन्स ऑप्शन्स में बाज़ार जोखिम की गणना में उनके नॉन-लिनियर मूल्य विशिष्टताओं के कारण विशेष विचार-विमर्श आवश्यक है । इसका अर्थ है कि मुख्यत: गामा तथा वॉलॅटिलिटी जोखिम के कारण यह आवश्यक नहीं है कि किसी ऑप्शन के मूल्य में अंडरलाइंग लिखत के मूल्य के साथ समानुपातिक रूप में उतार-चढ़ाव हो । इसलिए किसी ऑप्शन्स संविभाग के रिस्क एक्सपोज़र की गणना के लिए, जैसे उदाहरण के लिए अंडरलाइंग लिखतों के मूल्यों में परिवर्तनों के विभिन्न संयोजनों तथा वॉलॅटिलिटी में परिवर्तनों के लिए ऑप्शन्स संविभाग के मूल्य में परिवर्तन की गणना के लिए, सिम्युलेशन तकनीकों का उपयोग करना होगा । रिस्क एक्सपोज़र की मूल्य तथा वॉलॅटिलिटी परिवर्तन के उस संयोजन से गणना की जाएगी जिससे संविभाग में सबसे अधिक हानि हुई । अन्य अधिक विस्तृत सिम्युलेशन तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है । ऋण जोखिम की गणना डेरिवेटिव उत्पादों के ऋण जोखिम के दो भाग हैं : निपटान पूर्व जोखिम तथा निपटान जोखिम — इनकी निगरानी तथा प्रबंधन अलग से किया जाना चाहिए । लेनदेन की अवधि के दौरान किसी काउंटर पार्टी द्वारा संविदा का व्यतिक्रम करने के कारण संभाव्य हानि के जोखिम को निपटान पूर्व जोखिम कहते है । निपटान जोखिम तब होता है जहां प्रतिभूतियों अथवा नकदी का विनिमय होता है तथा हानि की राशि, विनिमय की जानेवाली राशियों के पूर्ण मूल्य के जितनी हो सकती है । साधारणत: इस जोखिम की समयावधि काफी कम है और यह जोखिम केवल तब होता है जब भुगतान के संबंध में कोई सुपुर्दगी नहीं होती है । 8.7 जोखिम सीमाएं जोखिम सीमाएं डेरिवेटिव गतिविधियों से संबद्ध विभिन्न जोखिमों के प्रति एक्सपोज़र को नियंत्रित करने का कार्य करती हैं । सीमाओं को सभी गतिविधियों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए तथा कुल (उदाहरण: व्यक्तिगत तथा भौगोलिक) जोखिमों के संदर्भ उनकी गणना की जानी चाहिए । सीमाएं कंपनी की कार्य नीतियों के स्वरूप, जोखिम प्रबंधन प्रणालियों तथा बोर्ड की जोखिम सीमाओं के अनुरूप होनी चाहिए । सीमाओं तथा कारोबारी नीतियों के बीच सुसंगति सुनिश्चित करने के लिए बोर्ड को समग्र बजट प्रक्रिया के एक भाग के रूप में सीमाओं का भी वार्षिक तौर पर अनुमोदन करना चाहिए । सीमाओं की प्रणाली में सीमाओं के अपवादों की रिपोर्टिंग तथा अनुमोदन की क्रियाविधि शामिल होनी चाहिए । यह आवश्यक है कि सीमाओं को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए और सीमाओं का उल्लेखनीय तथा निरंतर उल्लंघन वरिष्ठ प्रबंध तंत्र को रिपोर्ट किया जाना चाहिए और उसक़द्यी पूर्ण छानबीन की जानी चाहिए ।
बाज़ार जोखिम सीमाएं बाज़ार जोखिम सीमाएं कंपनी के विभिन्न स्तरों पर स्थापित की जानी चाहिए अर्थात् संपूर्ण कंपनी, जोखिम लेनेवाले विविध यूनिट, ट्रेडिंग डेस्क के मुख्य तथा अलग-अलग व्यापारी । यह भी उचित होगा कि इन सीमाओं के साथ-साथ विशिष्ट उत्पादों के लिए भी सीमाएं निर्धारित की जाएं । बाज़ार जोखिम सीमाओं की स्थापना तथा विनियोजन के निर्धारण के लिए, प्रबंध तंत्र को निम्नानुसार तत्वों को ध्यान में लेना चाहिए : क) ट्रेडिंग यूनिट का पिछला कार्य निष्पादन; ख) व्यापारियों का अनुभव तथा विशेषज्ञता; ग) मूल्यन, मूल्यांकन तथा गणन प्रणालियों की परिष्कृतता का स्तर; घ) आंतरिक नियंत्रणों की गुणवत्ता; V) बाज़ारों तथा विशिष्ट उत्पादों की चलनिधि के संबंध में ट्रेडिंग कार्यकलापों का पूर्वानुमानित स्तर; तथा च) परिणामी ट्रेड का निपटान करने की परिचालन प्रणालियों की क्षमता । सामान्यत: प्रयोग में लाई जानेवाली कुछ बाज़ार जोखिम सीमाएं हैं : नोशनल अथवा वॉल्यूम सीमाएं, स्टॉप लॉस सीमाएं, गॅप अथवा मैच्युरिटी सीमाएं, ऑप्शन्स सीमाएं तथा वैल्यू-एट-रिस्क सीमाएं । परिशिष्ट ‘ग’ में इनका वर्णन किया गया है । डेरिवेटिव ऑपरेशन के स्वरूप, आकार तथा जटिलता, बाज़ार वॉलॅटिलिटी तथा जोखिम गणन प्रणाली के प्रकार को ध्यान में रखते हुए सीमाओं का चयन किया जाए । सामान्यत:, किसी संस्था के बाज़ार जोखिम की समग्र राशि को वेल्यू-एट-रिस्क सीमाओं द्वारा सबसे अच्छी तरह नियंत्रित किया जाता है । इससे वरिष्ठ प्रबंधतंत्र को पूंजी तथा आय की राशि, जो संस्था अपनी व्यापार गतिविधियों के माध्यम से जोखिम पर डालती है, की निगरानी और नियंत्रण के आसानी से समझ आनेवाले तरीके प्राप्त होते हैं । जब वसूल न की गई हानियां एक विशिष्ट स्तर तक पहुंच जाती हैं तब विनिर्दिष्ट प्रबंधन कार्रवाई (अर्थात् पोजिशन क्लोज़ आउट करना) शुरू करने के लिए हानि रोक (स्टॉप लॉस ) सीमाएं उपयुक्त हो सकती हैं । तथापि, वे हानि की संभाव्य मात्रा को नियंत्रित नहीं करतीं, जो पोज़िशन या संविभाग (अर्थात् जोखिम पर मूल्य) में अंतर्निहित है और जो हानि रोक सीमा से अधिक हो सकती है । इस प्रकार यदि पोज़िशन से बाहर नहीं आया जा सकता (जैसे बाज़ार की चलनिधि समस्या के कारण) तो यह ज़रूरी नहीं है कि वे हानियों को रोकेंगे । विशिष्ट उत्पादों या अवधिपूर्णताओं के संबंध में (साथ ही संविभागों पर) सीमाएं निर्धारित करना उचित होगा ताकि इनमें संकेंद्रण से उत्पन्न होनेवाला बाज़ार और चलनिधि जोखिम कम किया जा सके। इसी प्रकार, ऑप्शन्स से जुड़े जोखिमों को निर्धारित मूल्य और समापन तारीख के आधार पर संकेंद्रण सीमाओं द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । इससे आय पर होनेवाला संभाव्य असर तथा एक ही समय पर किए जाने वाले ऑप्शन की बड़ी राशि के नकदी प्रवाह कम होता है। ऋण सीमाएं बैंकों को निपटान-पूर्व ऋण सीमाएं तथा निपटान ऋण सीमाएं दोनों निर्धारित करनी चाहिए। निपटान-पूर्व ऋण सीमाएं प्रतिपार्टी की विश्वसनीयता के आधार पर, पारंपरिक ऋण की ही तरह होनी चाहिए। उक्त सीमाओं की राशि निर्धारित करते समय जोखिम मापन प्रणाली की परिष्कृतता को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यदि आनुमानिक राशियों का उपयोग किया जाता है (जिसे उपयुक्त नहीं बताया गया है) तो ये सीमाएं तदनुरूप अधिक संरक्षी होनी चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि कंपनियां निपटान जोखिम के लिए अलग सीमाएं निर्धारित करें — निपटान जोखिम के कारण एक्सपोज़र की राशि कई बार निपटान-पूर्व जोखिम से उत्पन्न ऋण जोखिम से अधिक होती है क्योंकि डेरिवेटिव लेनदेनों के निपटान में लिखत अथवा मूल नकदी प्रवाह के कुल मूल्य का विनिमय शामिल हो सकता है। निपटान सीमाएं निर्धारित करते समय संबंधित निपटान प्रणालियों की कार्यक्षमता तथा विश्वसनीयता, एक्सपोज़र जिस अवधि के लिए बकाया है वह अवधि, प्रतिपार्टी की ऋण गुणवत्ता तथा कंपनी की अपनी पूंजी पर्याप्तता को ध्यान में रखा जाना चाहिए। कंपनियों में, डेरिवेटिव सहित प्रतिपार्टी के संबंध में निधि आधारित तथा निधीतर आधारित एक्सपोज़र को एकत्रित करने की एक कारगर प्रणाली होनी चाहिए। ये सकल एक्सपाज़र प्रबंधतंत्र या विनियामक द्वारा निर्धारित एकल प्रतिपार्टी एक्सपोज़र सीमाओं में से जो भी कम हो के भीतर होने चाहिए। चलनिधि सीमाएं डेरिवेटिव में नकदी प्रवाह /निधीयन चलनिधि जोखिम के संबंध में, कंपनी की समग्र चलनिधि नीति में डेरिवेटिव को शामिल करते हुए और विशेषकर, असंगत अवधिपूर्णता सीमाओं के ढांचे में डेरिवेटिव को शामिल करते हुए कार्रवाई की जा सकती है। एक खास मुद्दा उस सीमा का ध्यान रखना है जिस सीमा तक कंपनियों ने कतिपय विनिर्दिष्ट परिस्थितियों में किसी डेरिवेटिव संविदा को समाप्त करने के अधिकार की मंजूरी दी है और इस प्रकार निधियों की अप्रत्याशित आवश्यकता पैदा हुई है। कंपनियों के लिए यह आवश्यक है कि एक्सचेंज में क्रय-विक्रय किए जाने वाले डेरिवेटिव के संबंध में मार्जिन भुगतान करने की आवश्यकता के कारण उत्पन्न निधियन आवश्यकताओं को ध्यान में रखें। ग्राहकों की ओर से किए जाने वाले मार्जिन कॉल (और उपयोगकर्ता-ग्राहक संबंधी परिणामी ऋण जोखिम की निगरानी करना) और स्वामित्व व्यापारों के कारण उत्पन्न मार्जिन कॉलों के बीच अंतर करने की क्षमता कंपनी में होनी चाहिए। जैसा कि पहले नोट किया है, ऐसी संभावना कि कंपनी उचित लागत पर डेरिवेटिव पोजिशन से बाहर नहीं आ सकेगी, से उत्पन्न होनेवाले बाज़ार या उत्पाद चलनिधि जोखिम को, विशिष्ट बाज़ारों, एक्सचेंजों, उत्पादों और परिपक्वताओं में संकेंद्रण संबंधी सीमाएं निर्धारित कर कम किया जा सकता है। 8.8 प्रबंधन सूचना प्रणाली बोर्ड और प्रबंध तंत्र की रिपोर्टिंग की बारंबरता और गठन डेरिवेटिव गतिविधियों के स्वरूप और महत्व पर निर्भर होना चाहिए। जहां लागू हो, बोर्ड और प्रबंध तंत्र की रिपोर्टों में सभी कार्यमूलक और भौगोलिक प्रभागों की जानकारी समेकित होनी चाहिए। बोर्ड और प्रबंध तंत्र की रिपोर्टिंग जिसके पास जानी हो उसके अनुसार होनी चाहिए, वरिष्ठ प्रबंध तंत्र और बोर्ड को सार रूप में जानकारी प्रदान करने वाली तथा निम्न प्रबंध तंत्र को अधिक विस्तृत जानकारी देनेवाली हो । 8.9 स्वतंत्र जोखिम नियंत्रण प्रत्येक संस्था में डेरिवेटिव के विभिन्न जोखिमों की स्वतंत्र निगरानी और नियंत्रण के लिए एक तंत्र होना चाहिए। विभिन्न प्रकार के जोखिमों के बीच रहनेवाली अंतर्संबद्धता को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है। डेरिवेटिव में मार्केट मेकर्स संस्थाओं को एक यूनिट बनाना चाहिए जो डेरिवेटिव संबंधी जोखिमों की निगरानी और नियंत्रण के लिए जिम्मेवार हो। इस यूनिट द्वारा सीधे बोर्ड (या एल्को) या ऐसे वरिष्ठ प्रबंध तंत्र, जो ट्रेडिंग गतिविधियों के लिए सीधे जिम्मेदार नहीं हैं, को रिपोर्ट दी जानी चाहिए। जहां संस्था के आकार या डेरिवेटव गतिविधियों में उसकी संलग्नता को देखते हुए पूरी तरह डेरिवेटिव गतिवधियों के कार्य के लिए अलग यूनिट बनाने की जरूरत नहीं हो वहां बैक ऑफिस (या "मिडिल ऑफिस" में) में स्टाफ की सहायता से यह कार्य किया जाना चाहिए बशर्ते ऐसे स्टाफ को कारगर रूप से कार्य करने की आवश्यक स्वतंत्रता, विशेषज्ञता हो, संसाधन और वरिष्ठ प्रबंध तंत्र का समर्थन हो । किसी भी रूप में जोखिम नियंत्रण कार्य किया जाए, जरूरी यह है कि वह ट्रेडिंग कार्य के नियंत्रण तथा असर से दूर हो। किए जानेवाले न्यूनतम जोखिम नियंत्रण कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं : क) सीमाओं के मुकाबले बाज़ार जोखिम एक्सपाज़र की निगरानी तथा मिडिल ऑफिस को अपवादों की सूचना देना; ख) रिस्क एक्सपोज़रों का बाज़ार दर पर मूल्यांकन (मार्क-टु-मार्केट) तथा प्रंट और बैक ऑफिस के बीच जोखिम स्थितियों तथा लाभ/हानि का समाधान करना; ग) दैनिक लाभ/हानि परिणामों तथा सकल और निवल जोखिम स्थितियों सहित मेनेज़मेंट रिपोर्टें तैयार करना; तथा घ) सीमाओं के मुकाबले अलग-अलग प्रति पार्टियों को ऋण एक्सपोज़रों की निगरानी तथा मिडिल ऑफिस को अपवादों की सूचना देना । जोखिम प्रबंधन प्रणाली तथा जोखिम नियंत्रण यूनिट की कारगरता और स्वतंत्रता की भी आंतरिक लेखा-परीक्षा द्वारा नियमित समीक्षा की जानी चाहिए। 8.10 परिचालन नियंत्रण परिचालन जोखिम अपर्याप्त आंतरिक नियंत्रणों, मानवीय त्रुटियों या प्रबंधन विफलता के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है । कुछ उत्पादों की जटिलता तथा उनके स्वरूप में तेजी से होनेवाले बदलाव के कारण यह जोखिम डेरिवेटिव गतिविधियों में खास तौर से महत्वपूर्ण है। परिचालन जोखिम का प्रबंध करने के लिए अपनाए जाने वाले नियंत्रणों का स्वरूप की जानेवाली डेरिवेटिव गतिविधि की मात्रा और जटिलता के अनुरूप होना चाहिए। जैसा कि पहले नोट किया गया है, मात्रा संबंधी सीमाएं निर्धारित की जाएं ताकि यह सुनिश्चित हो कि किये जानेवाले लेनदेनों की संख्या उन्हें संभालनेवाली सहायक प्रणाली की क्षमता से अधिक नहीं होती। कार्यों का पृथक्करण अप्राधिकृत और कपटपूर्ण प्रथाओं को रोकने के लिए कार्यों का पृथक्करण जरूरी है। इसके कई व्यापक पहलू हैं, परंतु मूलभूत सिद्धांत यह है कि प्रंट ऑफिस और बैक ऑफिस के बीच कार्य और भौतिक दोनों दृष्टि से स्पष्ट अंतर होना चाहिए, इसमें प्रंट ऑफिस ट्रेडिंग कार्यकलाप करने के लिए जिम्मेदार होता है तथा बैक ऑफिस उक्त परिचालनों के परिणामस्वरूप होनेवाले व्यापार की प्रोसेसिंग के लिए जिम्मेदार होता है। किसी व्यक्ति द्वारा विश्वास के दुरुपयोग से बचने का आधारभूत और अनिवार्य उपाय इस बात पर जोर देना है कि हर वर्ष सभी स्टाफ को न्यूनतम लगातार अवधि की वार्षिक छुट्टी (जैसे 2 सप्ताह) लेनी चाहिए। संबंधित व्यक्ति की अनुपस्थिति में कपट को छिपाना अधिक मुश्किल हो जाता है। नीतियां और क्रियाविधियां प्रोसेसिंग और व्यापार की निगरानी के कार्य प्रवाह में विभिन्न स्तरों पर लागू आंतरिक नियंत्रणों को शामिल करने के लिए नीतियां और क्रियाविधियां स्थापित की जानी चाहिए और उनका प्रलेखन होना चाहिए। कर्तव्यों के पृथक्करण के अलावा इनमें निम्नलिखित शामिल हैं :
इन शीर्षों के अधीन कुछ प्रमुख नियंत्रणों की जांच-सूची परिशिष्ट घ में दी गयी है। आकस्मिकता योजना प्राकृतिक विपत्ति या सिस्टम के फेल होने की स्थिति में आकस्मिकता प्रणालियों और परिचालन समर्थन प्रदान करने के लिए योजनाएं बनी होनी चाहिए। इनमें संबंधित कार्यों के लिए आपतकालीन बैक अप तथा संकटकालीन समर्थन-कार्य शामिल हैं। आकस्मिकता योजनाओं की नियमित आधार पर समीक्षा तथा परीक्षण किया जाना चाहिए। 9. आंतरिक लेखा-परीक्षा आंतरिक लेखा-परीक्षा आंतरिक नियंत्रण प्रक्रिया का महत्वपूर्ण भाग है। लेखा-परीक्षा ऐसे योग्यताप्राप्त व्यावसायिकों द्वारा की जानी चाहिए जो उस कारोबार से स्वतंत्र हैं जिसकी लेखा-परीक्षा की जा रही है। लेखा-परीक्षा अनुपूरक होनी चाहिए और उसे जोखिम नियंत्रण कार्य का स्थान नहीं लेना चाहिए। लेखा-परीक्षा की व्याप्ति जोखिम के स्तर तथा कार्यकलापों की मात्रा के अनुरूप होनी चाहिए। आंतरिक लेखा-परीक्षा कार्य में निम्नलिखित कार्य करने चाहिए : क) समग्र जोखिम प्रबंधक प्रणाली, जिसमें नीतियों, क्रियाविधियों तथा सीमाओं का अनुपालन शामिल है, की पर्याप्तता तथा कारगरता की समीक्षा; ख) विभिन्न परिचालनगत नियंत्रणों (कार्यों के पृथक्करण सहित) की कारगरता की जांच तथा इनकी पर्याप्तता और स्थापित नीतियों तथा क्रियाविधियों के स्टाफ द्वारा अनुपालन की समीक्षा; ग) असाधारण घटनाओं जैसे सीमाओं के उल्लेखनीय उल्लंघन, अप्राधिकृत व्यापार तथा मिलान न किया गया मूल्यांकन अथवा लेखांकन भिन्नताओं की छान-बीन; घ) वरिष्ठ प्रबंधतंत्र तथा निदेशक बोर्ड को दी जाने वाली जानकारी की विश्वसनीयता तथा समयोचितता का मूल्यांकन; V) जोखिम एक्सपोज़र रिपोर्टों में दी गयी जानकारी के आधारभूत डाटा स्रोत तक पहुंचना तथा सत्यापन करना; च) जोखिम प्रबंधन प्रणाली की कारगरता तथा स्वतंत्रता का मूल्यांकन; छ) यह सुनिश्चित करना कि जोखिम गणन मॉडेल, जिनमें एलॉग्रिथम शामिल हैं, को सही ढंग से वैध किया गया है ; तथा ज) डेरिवेटिव मूल्यांकन प्रक्रिया की पर्याप्तता का मूल्यांकन शामिल करना तथा यह सुनिश्चित करना कि वह जोखिम लेनेवाले कार्यकलापों से स्वतंत्र पार्टियों द्वारा किया जाता है। लेखा परीक्षकों को डेरिवेटिव मूल्यांकन रिपोर्टों के सही होने की जांच करनी चाहिए। प्रतिरक्षा संबंधी लेनदेनों के लिए लेखा परीक्षकों को लेखांकन के औचित्य की समीक्षा करनी चाहिए। झ) ग्राहक उपर्युक्तता तथा औचित्य नीति के अनुपालन के अनुसार ग्राहकों को जारी किए गए जोखिम प्रकटीकरण विवरणों का मूल्यांकन। आंतरिक लेखा परीक्षा रिपोर्ट तैयार करते समय नियंत्रण की मुख्य खामियों का उल्लेख करना चाहिए तथा उन खामियों को दूर करने के लिए समय सारणी सहित प्रबंधन कार्रवाई योजना निर्धारित की जानी चाहिए। प्रबंधतंत्र को निर्धारित प्रणालीगत तथा आंतरिक नियंत्रण खामियों की छान-बीन कर और सुधारात्मक कार्रवाई कार्यान्वित करके लेखा परीक्षा के निष्कर्षों पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए। उसके बाद, प्रबंध तंत्र को नयी कार्यान्वित की गयी प्रणालियों तथा नियंत्रणों की आवधिक निगरानी करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि वे ठीक कार्य कर रहे हैं। सहमत समय सीमा के भीतर प्रबंध तंत्र द्वारा सिफारिशों का कार्यान्वयन न किये जाने की लेखा-परीक्षा समिति को रिपोर्ट की जानी चाहिए। 10. डेरिवेटिव से संबंधित विवेकपूर्ण मानंदड डेरिवेटिव से संबंधित विवेकपूर्ण मानदंड - न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अपेक्षाएं, ऋण एक्सपोज़र मानदंड, एएलएम आदि, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए गए अनुसार होंगे। 11. डेरिवेटिव पर विवेकपूर्ण सीमाएं : सभी नॉन-ऑप्शन डेरिवेटिव संविदा (जिनमें रुपया-विदेशी मुद्रा संविदाएं शामिल हैं) का कुल पीवी01, अंतिम तुलनपत्र की तारीख को बैंक की निवल मालियत के 0.25 प्रतिशत के भीतर होना चाहिए। कुल पीवी01 का निर्धारण चिहनों को ध्यान में लिए बिना विभिन्न बेंचमार्क के निवल पीवी01 के योग द्वारा किया जा सकता है। इन सीमाओं में, उन डेरिवेटिव के पीवी01 भी शामिल नहीं होंगे जो कि तुलनपत्र की मदों के लिए प्रतिरक्षा (हेज) के रूप में हैं, बशर्ते ये हेज 3 जून 2003 के हमारे परिपत्र आइडीएमसी. एमएसआरडी. 4801/06.01.03/2002-03 में निर्धारित प्रतिरक्षा प्रभावशीलता के मानदंड को पूरा करते हों। 12. विनियामक रिपोर्टिंग, तुलनपत्र प्रकटीकरण, मूल्यांकन तथा लेखांकन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित विद्यमान विनियामक रिपोर्टिंग तथा तुलनपत्र प्रकटीकरण वर्तमान में जारी रहेंगे। मूल्यांकन तथा लेखांकन पर विद्यमान दिशा-निर्देश इस संबंध में संशोधित दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप दिए जाने तक जारी रहेंगे। संशोधित लेखांकन दिशा-निर्देशों के अनुरूप रिपार्टिंग अपेक्षाएं बाद में सूचित की जाएंगी। परिशिष्ट क उत्पादन परिभाषाएं फार्वड रेट एग्रीमेण्ट (एफआरए) फॉर्वड रेट एग्रीमेंट दो पार्टियों के बीच प्रारंभ तारीख से अवधिपूर्णता की तारीख तक विशिष्ट अवधि के लिए निपटान की तारीख को ‘नोशनल प्रिंसिपल’ राशि के लिए ब्याज के भुगतानों का विनिमय करने की वित्तीय संविदा है। तदनुसार, निपटान की तारीख को एक पार्टी द्वारा दूसरी पार्टी को संविदा (निर्धारित) तथा निपटान दर के आधार पर नकद भुगतान किए जाते हैं। निपटान दर, निपटान तारीख को प्रचलित सहमत बेंचमार्क /संदर्भ दर है। ब्याज दर स्वैप (आइआरएस) ब्याज दर स्वैप एक ऐसी वित्तीय संविदा है, जो विनिर्दिष्ट अवधि में बहुविध अवसरों पर ‘आनुमानिक मूलधन’ (नोशनल प्रिंसिपल) राशि के लिए ब्याज अदायगियों के प्रवाह की अदलाबदली या स्वैपिंग करनेवाले दो पार्टियों के बीच होती है। ऐसी संविदाओं में सामान्यत: ‘स्थिर से अस्थिर’ या ‘अस्थिर से अस्थिर’ ब्याज दरों का विनिमय निहित होता है। तदनुसार, स्वैप अवधि में आनेवाली प्रत्येक अदायगी तारीख को, स्थिर /अस्थिर और अस्थिर दरों पर आधारित नकद अदायगियां संबंधित दोनों पार्टियों द्वारा एक दूसरे को की जाती हैं। ब्याज दर भावी सौदे (फ्यूचर्स) (आइआरएफ) ब्याज दर भावी सौदे एक ऐसी मानकीकृत विनिमय- व्यापारिक संविदा है जिसमें वास्तविक अथवा आनुमानिक ब्याजयुक्त लिखत आधारभूत परिसंपत्ति के रूप में होता है (होते हैं)। विदेशी मुद्रा वायदा विदेशी मुद्रा वायदा एक ओवर-दि-काउंटर संविदा है जिसके तहत किसी विनिर्दिष्ट मुद्रा की विनिर्दिष्ट राशि किसी विनिर्दिष्ट भावी तारीख को, जो हाज़िर निपटान तारीख के बाद की तारीख हो, अन्य मुद्रा में मूल्यवर्गित किसी ज्ञात मूल्य (वायदा मूल्य के रूप में ज्ञात) जो संविदा करते समय विनिर्दिष्ट किया गया हो, पर खरीदार विक्रेता से खरीदने के लिए सहमत है और विक्रेता खरीदार को बेचने के लिए सहमत है। मुद्रा स्वैप मुद्रा स्वैप एक ब्याज दर स्वैप है जिसमें स्वैप के दो ‘लेग’ भिन्न मुद्राओं में मूल्यवर्गित किए जाते हैं। इसके अलावा, पार्टियां आपस में दो मुद्राओं को सामान्य रूप से विद्यमान हाज़िर दर पर विनिमय करने के लिए इस करार के साथ सहमत हो सकती हैं कि वे उसी हाजिर विनिमय दर पर भविष्य में एक निश्चित तिथि को, आम तौर पर स्वैप परिपक्व होने पर, मुद्रा का विपरीत विनिमय करेंगी। मुद्रा ऑप्शंस मुद्रा ऑप्शन एक संविदा है जहाँ ऑप्शन के क्रेता को खरीदने (कॉल ऑप्शन) या बेचने (पुट ऑप्शन) का अधिकार है लेकिन बाध्यता नहीं है और ऑप्शन का विक्रेता (अथवा राइटर) भविष्य में एक विनिर्दिष्ट तारीख (यूरोपीय ऑप्शन) या आपस में सहमति के बाद निर्धारित तारीख (अमेरिकन ऑप्शन) को विनिर्दिष्ट मुद्रा की आपास में सहमति से निश्चित राशि पहले से सहमति के आधार पर और दूसरी मुद्रा में मूल्यवर्गित मूल्य (जिसे स्ट्राइक मूल्य कहा जाता है) पर बेचने के लिए तैयार होता है। ब्याज दर कैप और फ्लोर ब्याज दर कैप वह ब्याज दर ऑप्शन है जिसमें संदर्भ दर स्ट्राइक दर से अधिक हो जाने पर भुगतान किया जाता है। इसी प्रकार ब्याज दर फ्लोर वह ब्याज दर ऑप्शन है जिसमें संदर्भ दर स्ट्राइक दर से कम हो जाने पर भुगतान किया जाता है। परिशिष्ट ख डेरिवेटिव जोखिमों के प्रकार 1. ऋण जोखिम ऋण जोखिम काउंटर पार्टी द्वारा संस्था के प्रति कोई दायित्व पूरा न करने से हुई हानि का जोखिम है। डेरिवेटिव उत्पादों में ऋण जोखिम दो प्रकार के हैं : निपटान-पूर्व जोखिम लेनदेन के परिचालन के दौरान काउंटर पार्टी द्वारा संविदा में की गयी चूक से उत्पन्न हानि का जोखिम है। एक्सपोज़र का स्तर संविदा की पूरी अवधि के दौरान घटता-बढ़ता रहता है तथा हानि की मात्रा चूक होने पर ही पता लगेगी। निपटान जोखिम किसी संविदा के अंतर्गत संस्था द्वारा अपना दायित्व पूरा करने के बाद निपटान तारीख को काउंटर पार्टी द्वारा अपना दायित्व पूरा नहीं करने पर उत्पन्न हानि का जोखिम है। अक्सर अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में टाइम जोन की भिन्नता के कारण निपटान जोखिम उत्पन्न होता है। यह जोखिम केवल उन लेनदेनों में होता है जिनमें सुपुर्दगी बनाम आदयगी नहीं होती है और यह आम तौर पर थोड़ी देर के लिए (24 घंटे से कम अवधि के लिए) होता है। 2. बाज़ार जोखिम बाजार जोखिम किसी लिखत या लिखतों के संविभाग के बाजार मूल्य (कीमत) में प्रतिकूल परिवर्तन से उत्पन्न हानि का जोखिम है। डेरिवेटिव लिखतों के मामले में ऐसा एक्सपोज़र तब उत्पन्न होता है जब अन्तर्निहित ब्याज दरों, विनिमय दरों, इक्विटी मूल्यों और पण्य मूल्यों जैसे बाजार घटकों में परिवर्तन आता है अथवा जब इन घटकों में अस्थिरता आती है। 3. चलनिधि जोखिम कोई संस्था जब अपनी निधीयन संबंधी आवश्यकता की पूर्ति करने में अथवा उपयुक्त मूल्य पर कोई लेनदेन निष्पादित करने में चूक करती है तो उससे उत्पन्न हानि के जोखिम को चलनिधि जोखिम कहते हैं। डेरिवेटिव गतिविधि में शामिल संस्थाओं के सामने दो प्रकार के चलनिधि जोखिम हैं : बाज़ार चलनिधि जोखिम और निधीयन चलनिधि जोखिम । बाजार चलनिधि जोखिम वह जोखिम है जब कोई संस्था अपनी प्रतिबद्धता से बाहर निकलने या अपने पोजीशंस को पर्याप्त मात्रा में यथोचित मूल्य पर शीघ्र ऑफसेट करने में असमर्थ हो। यह असमर्थता कुछ उत्पादों (उदाहरण के लिए एक्सोटिक डेरिवेटिव, लोंग-डेटेड ऑप्शन) में अपर्याप्त बाजार गहराई, बाजार व्यवधान या बाजार तक पहुँच में बैंक की असमर्थता (उदाहरण के लिए संस्था या किसी बड़ी काउंटर पार्टी की ऋण श्रेणी घटाये जाने के कारण) के कारण हो सकती है। निधीयन चलनिधि जोखिम नकदी प्रवाह विसंगति के कारण समुचित लागत पर आवश्यक निधि जुटाने की किसी संस्था की संभाव्य असमर्थता है। इस प्रकार की निधीयन आवश्यकता स्वैप बुक करने, ऑप्शन निष्पादित करने और गतिशील हेजिंग रणनीति के कार्यान्वयन में नकदी प्रवाह की विसंगति से उत्पन्न हो सकती है। 4. परिचालन जोखिम परिचालन जोखिम अपर्याप्त प्रणाली और नियंत्रण, सूचना प्रणाली की कमियों, मानवीय भूल या प्रबंधन असफलता के परिणामस्वरूप होनेवाली हानि का जोखिम है। डेरिवेटिव उत्पादों की जटिलता और उनमें निरंतर विकास के कारण डेरिवेटिव गतिविधियों से चुनौतीपूर्ण परिचालन जोखिम उत्पन्न हो सकता है। 5. विधिक जोखिम विधिक जोखिम ऐसी संविदाओं से उत्पन्न होनेवाली हानि का जोखिम है जिन्हें कानूनी दृष्टि से लागू नहीं किया जा सकता (उदाहरण के लिए, यदि काउंटरपार्टी के पास किसी विशेष प्रकार के डेरिवेटिव लेनदेन करने का प्राधिकार या अधिकार न हो) या जो सही-सही प्रलेखित नहीं हैं। 6. विनियामक जोखिम विनियामक जोखिम विनियामक या विधिक अपेक्षा का अनुपालन नहीं करने से उत्पन्न हानि का जोखिम है। 7. प्रतिष्ठा जोखिम प्रतिष्ठा जोखिम प्रतिकूल जनमत और प्रतिष्ठा की क्षति से उत्पन्न हानि का जोखिम है। परिशिष्ट ग आम तौर पर प्रयुक्त बाजार जोखिम सीमाएँ 1. नोशनल या मात्रात्मक सीमा डेरिवेटिव संविदाओं की नोशनल राशि पर आधारित सीमाएँ डेरिवेटिव लेनदेनों के जोखिमों के नियंत्रण की सर्वाधिक बुनियादी और सरलतम सीमाएँ हैं। लेनदेन की मात्रा, चलनिधि और निपटान जोखिमों को सीमित करने में ये सीमाएँ उपयोगी हैं। तथापि, ये सीमाएँ मूल्य संवदेनशीलता और अस्थिरता को गणना में शामिल नहीं कर सकतीं और संस्था के जोखिम (पूंजी या आय के रूप में) के वास्तविक स्तर के संबंध में इनसे कोई संकेत नहीं मिलता। अत:, डेरिवेटिव प्रतिभागियों को बाजार जोखिम का नियंत्रण करने के लिए केवल इन सीमाओं के प्रयोग पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। 2. हानि रोक सीमाएँ ये सीमाएँ इसलिए स्थापित की जाती हैं ताकि किसी पोजीशन में होनीवाली हानि एक विनिर्दिष्ट स्तर से अधिक न हो। जब ये सीमाएँ आ जाती हैं तो पोजीशन या तो समाप्त की जाती है या हेजिंग की जाती है। आमतौर पर हानि रोक सीमाओं में एक दिन, एक सप्ताह या एक माह की संचित संभाव्य हानि से संबद्ध सीमाएँ आती हैं। कुछ संस्थाओं में हानि रोक सीमाओं के अलावा प्रबंधन कार्रवाई प्रेरक (एमएटी) सीमाएँ भी होती हैं। इनका प्रयोजन पहले से सचेत करना है। उदाहरण के लिए प्रबंधन एमएटी सीमा हानि रोक सीमा के 75 प्रतिशत पर रख सकती है। जब संभाव्य हानि, हानि रोक सीमा के 75 प्रतिशत तक पहुँचती है तो प्रबंधन पोजीशन के संबंध में सतर्क हो जाएगा और कुछ कार्रवाई करने के लिए प्रेरित हो सकता है। उदाहरण के लिए प्रबंधन पोजीशन की निरंतर निगरानी कर सकता है या हानि रोक सीमा तक पहुँचने के पहले पोजीशन कम कर सकता है या समाप्त कर सकता है। उपर्युक्त हानि सचेतक (ट्रिगर) अन्य सीमाओं के सहायक हैं, लेकिन आमतौर पर वे पर्याप्त नहीं हैं। वे भविष्य की सूचना नहीं देते हैं, वे अब तक की होने वाली हानि पर आधारित होते हैं, तथा वे बाजार विशेषताओं के आधार पर जोखिम ग्रस्त अर्जन की संभावना की माप नहीं कर सकते। वे हानि रोक सीमा से बड़ी हानि नहीं बचा सकेंगे यदि पोजीशन समाप्त करना संभव न हो, उदाहरण के लिए बाजार में चलनिधि की समस्या के कारण। 3. अंतराल अथवा परिपक्वता बैंड सीमाएं इन सीमाओं का उद्देश्य किसी निश्चित अवधि के दौरान परिपक्व होने वाले या पुनर्मूल्यांकित होने वाले डेरिवेटिव की मार्त्रगां या राशि का नियंत्रण कर हानि एक्सपोज़र को नियंत्रित करना है। उदाहरण के लिए, प्रबंधन 3 महीने, 6 महीने, 9 महीने, एक वर्ष आदि के प्रत्येक परिपक्वता बैंड के लिए अंतराल सीमाएँ निर्धारित कर सकता है ताकि एक परिपक्वता बैंक के दौरान अनेक परिपक्वताएँ संकेद्रित न हो जाएँ। इस प्रकार की सीमाओं का प्रयोग परिपक्वता अवधियों को अलग-अलग रखकर और/या डेरिवेटव का पुनर्मूल्यांकन कर मूल्य को प्रभावित करने वाले बाजार घटकों के परिवर्तन के प्रभाव को कम करते हुए डेरिवेटिव से होने वाली आय में अस्थिरता को कम करने के लिए किया जा सकता है। चलनिधि जोखिम नियंत्रण के लिए परिपक्वता सीमाओं का तथा ब्याज दर प्रबंधन के लिए पुनर्मूल्यांकन सीमाओं का उपयोग किया जा सकता है। नोशनल और हानि रोक सीमाओं के समान ही अंतराल सीमाएँ भी अन्य सीमाओं की अनुपूरक हो सकती हैं, लेकिन वे अपने आप में प्रर्याप्त नहीं हैं क्योंकि वे किसी विशेष डेरिवेटिव पोजीशन में संस्था के लिए बाजार जोखिम एक्सपोज़र का तर्क संगत अनुमान नहीं दर्शाती हैं। 4. जोखिम-पर-मूल्य सीमाएँ इन सीमाओं का प्रयोग डेरिवेटिव उत्पादों की कुछ किस्मों में अथवा पूरी ट्रेडिंग बही में संभावित हानि की राशि को बोर्ड अथवा वरिष्ठ प्रबंधतंत्र द्वारा अनुमोदित स्तर (या पूंजी अथवा आय के प्रतिशत) तक सीमित करने के लिए किया जाता है। सीमाओं के अनुपालन पर निगरानी रखने के लिए प्रबंधन पोजीशन के वर्तमान बाजार मूल्य की गणना करता है तथा उसके बाद सांख्यिकी मॉडलिंग तकनीक का प्रयोग कर बाजार घटकों के ऐतिहासिक परिवर्तनों की पृष्ठभूमि में संभावित हानि का अनुमान लगाता है (एक स्तर तक गोपनीयता रखते हुए)— जोखिम-पर-मूल्य की गणना के तीन मुख्य तरीके हैं कोरिलेशन विधि, जिसे वेरिएंस/कोवेरिएंस मैट्रिक्स विधि भी कहा जाता है; ऐतिहासिक सिमुलेशन और मोंटेकार्लो सिमुलेशन। जोखिम-पर-मूल्य (वीएआर) सीमाओं का लाभ यह है कि वे जोखिमग्रस्त पूंजी या अर्जन से सीधे जुड़ी हुई हैं। अन्य बातों के साथ-साथ बोर्ड और वरिष्ठ प्रबंधतंत्र उसे अधिक आसानी से समझते हैं। वीएआर सीमाओं के स्तर में बोर्ड और वरिष्ठ प्रबंधतंत्र द्वारा प्राधिकृत अधिकतम एक्सपोज़र, जोखिम माप प्रणाली की गुणवत्ता और परिष्कृतता तथा अनुमानित और वास्तविक परिणामों की तुलना कर सम्भावित हानि के मूल्यांकन में प्रयुक्त मॉडल का कार्यनिष्पादन प्रतिबिम्बित होना चाहिए। ऐसे मॉडलों के प्रयोग में एक कमी यह है कि ये मॉडल उतने ही अच्छे हो सकते हैं जितनी वे पूर्वधारणाएँ जिन पर वे आधारित हैं (तथा विभिन्न अस्थिरताओं, कोरिलेशंस और सेंसिटिविटीज़ की गणना के लिए प्रयुक्त आँकड़ों की गुणवत्ता)। 5. ऑप्शन सीमाएँ इन्हें विशेष रूप से ऑप्शन के जोखिम नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। ऑप्शन सीमाओं में डेल्टा, गामा, वेगा, थेटा और आरएचओ सीमाएँ आ सकती हैं। डेल्टा अंतर्निहित लिखत के मूल्य में इकाई परिवर्तन से ऑप्शन मूल्य में प्रत्याशित परिवर्तन की राशि की माप है। गामा अंतर्निहित लिखत के मूल्य में इकाई परिवर्तन से डेल्टा में प्रत्याशित परिवर्तन की राशि की माप है। वेगा अंतर्निहित लिखत की मूल्य अस्थिरता में इकाई परिवर्तन से ऑप्शन के मूल्य में प्रत्याशित परिवर्तन की राशि की माप है। थेटा ऑप्शन की समाप्ति के समय में परिवर्तन से ऑप्शन मूल्य में प्रत्याशित परिवर्तन की राशि की माप है। आरएचओ ब्याज दर में परिवर्तन से ऑप्शन मूल्य में प्रत्याशित परिवर्तन की राशि की माप है। परिशिष्ट घ परिचालनात्मक नियंत्रणों के संबंध में सिफारिशें क. कार्यों का पृथक्करण प्रंट कार्यालय और बैक कार्यालयों के बीच कार्य और स्थान की दृष्टि से स्पष्ट पृथक्करण होना चाहिए । एक मध्यवर्ती कार्यालय होना चाहिए जो ट्रेडिंग रूम से स्वतंत्र हो और इसे अन्य बातों के साथ-साथ जोखिम से जुड़ी निगरानी, उत्पाद अनुमोदन, प्रयुक्त मूल्यांकन मॉडल का वैधीकरण, स्ट्रेस टेस्टिंग, जोखिम सीमाओं की बैक टेस्टिंग तथा विनियामक सूचना और अनुपालन के लिए उत्त्रदायी होना चाहिए । ख. ट्रेड एंट्री और लेनदेनों का प्रलेखीकरण प्रबंध तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डेरिवेटिव लेनदेनों के लिए स्पष्ट और पूरी तरह से सुलिखित लेखा परीक्षा के योग्य लेनदेनों की श्रृंखला उपलब्ध कराने के लिए प्रक्रियाएं सुस्थापित हों। सभी डेरिवेटिव लेनदेनों का क्रमवार नियंत्रण होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी लेनदेनों का हिसाब रखा जाता है और जो लेनदेन किये जाते हैं उनके लेखा परीक्षा योग्य अभिलेख रखे जाते हैं । बाज़ार और ऋण जोखिम सीमाओं की गणना करते समय प्रत्येक लेनदेन का अद्यतन (अर्थात् बाज़ार दर पर मूल्यांकन) किया जाना चाहिए ।
ग. पुष्टि प्रक्रिया पुष्टि करने की प्रयुक्त विधि ऐसी होनी चाहिए ताकि उसमें लेनदेन की श्रृंखलाओं का अभिलेख हो जो विवाद की स्थिति में संस्था की स्थिति को समर्थन दे सके । घ. निपटान और वितरण प्रक्रिया निधि अंतरण का आरंभ करने और उसके प्राधिकार के लिए विनिर्दिष्ट प्रक्रिया स्थापित की जानी चाहिए । त्रुटि या निधि के गलत प्रयोग का पता लगाने के लिए अंतरित निधि की नोस्ट्रो खातों और सामान्य लेजर के साथ प्रतिदिन अलग से मिलान करना एक आवश्यक नियंत्रण प्रक्रिया है । V. मिलान प्रक्रियाएं सभी महत्चपूर्ण आंकड़ों, रिपोर्टों और प्रणालियों का सामयिक आधार पर मिलान किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संस्था की आधिकारिक बही व्यापारियों के अभिलेख से मेल खाती है । कम-से-कम निम्नलिखित रिपोर्टों का मिलान किया जाना चाहिए : असामान्य मदें और ऐसी मदें जो काफी लंबे समय से बकाया हों तो उनकी जांच की जानी चाहिए । शेष राशियों और खातों के सही-सही मिलान सुनिश्चित करने के लिए लेनदेन की श्रृंखलाओं का पर्याप्त अभिलेख रहना चाहिए । मिलान के रिकार्ड और प्रलेख रखे जाने चाहिए तथा उनकी अलग से समीक्षा की जानी चाहिए । इस प्रकार के रिकार्डों को नष्ट करने के पहले समुचित अवधि तक सुरक्षित रखना चाहिए । च. पुनर्मूल्यांकन प्रक्रियाएं संस्थाओं के ट्रेडिंग संविभाग में शामिल डेरिवेटिव लिखतों के संपूर्ण वर्ग के लिए पुनर्मूल्यांकन प्रक्रिया होनी चाहिए । पुनर्मूल्यांकन दरें व्यापारियों से स्वतंत्र स्रोत (अथवा ओटीसी डेरिवेटिव के मामले में अलग स्रोतों से) से प्राप्त की जानी चाहिए या उनकी जांच की जानी चाहिए, जो बाज़ार स्तर का प्रतिनिधित्व करे तथा समुचित रूप से अनुमोदित हो । पुनर्मूल्यांकन गणना की स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए । पुनर्मूल्यांकन दरें और गणना पूर्णतया अभिलेखबद्ध होनी चाहिए । छ. अपवाद रिपोर्टें त्रुटि, धोखाधड़ी और हानि का पता लगाने के लिए बैक कार्यालय को ऐसी प्रबंधकीय रिपोर्टें प्रस्तुत करना चाहिए जो निम्नलिखित मदों के संबंध में वर्तमान स्थिति और प्रवृत्ति दर्शाती हों ।
संस्था की प्रबंध सूचना प्रणाली/रिपोर्टिंग प्रणाली से असामान्य प्रकृति की गतिविधियों (अर्थात् मात्रा में वृद्धि, नये ट्रेडिंग काउंटरपार्टी आदि) का पता चलना चाहिए ताकि प्रबंधन द्वारा उनकी समीक्षा की जा सके । |