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प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात / सांविधिक चलनिधि अनुपात रखने के प्रयोजन के लिए शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं की गणना

प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात / सांविधिक चलनिधि अनुपात
रखने के प्रयोजन के लिए शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं की गणना

संदर्भ : बैंपविवि. सं. आरइटी. बीसी.14 /12.01.001/2003-04

21 अगस्त 2003
30 श्रावण 1925 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)

प्रिय महोदय,

प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात / सांविधिक चलनिधि अनुपात
रखने के प्रयोजन के लिए शुद्ध मांग और मीयादी देयताओं की गणना

यह पाया गया है कि अनुसूचित वाणिज्य बैंक प्रेषण सुविधाओं और ब्याज / डिवीडंड वारंट के लिए प्रतिनिधि बैंकों के साथ की गयी व्यवस्था के संदर्भ में अपनी देयताओं की गणना करने के लिए एकसमान प्रथा नहीं अपना रहे हैं । दोनों ही व्यवस्थाओं के अंतर्गत स्वीकार करने वाले बैंक द्वारा अपने प्रतिनिधि बैंक को निधियों का अंतरण किया जाता है और प्रतिनिधि बैंक का यह दायित्व होता है कि वह उन लिखतों को स्वीकार करे । तथापि, निधियों का इस प्रकार का अंतरण और प्रतिनिधि बैंक द्वारा लिखत को स्वीकार करने का दायित्व किसी भी रूप में स्वीकार करने वाले बैंक के अपने ग्राहकों को ड्राफ्ट तथा ब्याज / डिवीडंड वारंट जारी करने के प्राथमिक दायित्व से मुक्त नहीं करता। अत: यह सूचित किया जाता है कि सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को देयता की गणना निम्नप्रकार करनी चाहिए :

i) जब कोई बैंक अपनी प्रेषण सुविधा योजना के अंतर्गत ग्राहक से निधियां स्वीकार करता है तब वह उसकी बहियों में देयता (अन्यों के प्रति देयता) बन जाती है । निधियां स्वीकार करने वाले बैंक की देयता केवल तभी समाप्त होगी जब स्वीकार करने वाले बैंक द्वारा अपने ग्राहकों को जारी ड्राफ्टों का प्रतिनिधि बैंक भुगतान कर देता है । अत:, स्वीकार करने वाले बैंक द्वारा प्रेषण सुविधा योजना के अंतर्गत अपने प्रतिनिधि बैंक पर जारी और भुगतान के लिए शेष ड्राफ्टों के संदर्भ में शेष राशि स्वीकार करने वाले बैंक की बहियों में बाहरी देयता के रूप में परिलक्षित होनी चाहिए और उसे प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात / सांविधिक चलनिधि अनुपात रखने के प्रयोजन के लिए शुद्ध मांग और मीयादी देयता की गणना के लिए भी हिसाब में लिया जाना चाहिए ।

ii) प्रतिनिधि बैंकों द्वारा प्राप्त राशि को उनकी ‘बैंकिंग तंत्र के प्रति देयता’ के रूप में दर्शाया जाना चाहिए, न कि ‘अन्यों के प्रति देयता’ के रूप में तथा इस देयता को प्रतिनिधि बैंकों द्वारा अपनी अंतर-बैंक आस्तियों में से घटाया जा सकता है । इसी प्रकार, ड्राफ्ट तथा ब्याज / डिवीडंड वारंट जारी करने वाले बैंकों द्वारा रखी जानी वाली राशि को अपनी बहियों में ‘बैंकिंग तंत्र के पास आस्तियां’ के रूप में माना जाना चाहिए तथा उसे उनकी अंतर-बैंक देयताओं में से घटाया जाना चाहिए ।

कृपया प्राप्ति-सूचना दें ।

भवदीय

(आर. सी. मित्तल)
महा प्रबंधक

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