कंपनीगत सामाजिक उत्तरदायित्व, सतत विकास और गैर-वित्तीय रिपोर्टिंग - बैंकों की भूमिका - आरबीआई - Reserve Bank of India
कंपनीगत सामाजिक उत्तरदायित्व, सतत विकास और गैर-वित्तीय रिपोर्टिंग - बैंकों की भूमिका
आरबीआइ सं. 2007-08/216
बैंपविवि. डीआइआर.बीसी. 58/13.27.00/2007-08
20 दिसंबर 2007
29 अग्रहायण 1929 (शक)
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
महोदय/महोदया
कंपनीगत सामाजिक उत्तरदायित्व, सतत विकास और गैर-वित्तीय रिपोर्टिंग - बैंकों की भूमिका
वर्तमान में, पूरे विश्व-भर में कंपनीगत सामाजिक उत्तरदायित्व, सतत विकास तथा गैर-वित्तीय रिपोर्टिंग के बारे में जागरूकता बढ़ती जा रही है । इसके परिणामस्वरूप सभी प्रकार की संस्थाओं में यह सुनिश्चित करने के लिए संगठित प्रयास किये जा रहे हैं कि लाभ कमाने, सामाजिक सेवा तथा परोपकार आदि जैसे उनके संबंधित लक्ष्यों को पाने में सतत विकास नज़र-अंदाज न हो जाए । कंपनीगत सामाजिक उत्तरदायित्व कंपनियों द्वारा अपने व्यावसायिक परिचालनों तथा अपने हित-धारकों को परस्पर प्रभावित करने के दौरान सामाजिक और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को एकीकृत करता है । सतत विकास अनिवार्यत: आर्थिक विकास की प्राप्ति में पर्यावरण संबंधी और सामाजिक प्रणालियों की गुणवत्ता बनाये रखने की प्रक्रियाओं से संबंधित है । इस संदर्भ में गैर-वित्तीय रिपोर्टिंग मूल रूप से अपनी गतिविधियों पर संस्थाओं द्वारा रिपोर्टिंग की एक प्रणाली है जिसमें विशेष रूप से "ट्रिपल बॉटम लाइन" अर्थात् पर्यावरण व सामाजिक तथा आर्थिक लेखाविधि के संबंध में रिपोर्टिंग शामिल है । सतत विकास में बैंकों सहित वित्तीय संस्थाओं का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे विश्व की आर्थिक और विकासात्मक गतिविधियों के वित्तपोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । इस संदर्भ में विशेष रूप से हमारे जैसे विकासशील देश में एक जिम्मेदार कंपनी के रूप में बैंकों की भूमिका के महत्व को आसानी से समझा जा सकता है । उनके कार्यकलापों में मानव अधिकारों तथा पर्यावरण के लिए चिंता प्रतिबिंबित होनी चाहिए ।
2. विश्व-भर में प्रमुख बैंकों सहित विभिन्न संस्थाओं द्वारा विभिन्न मोर्चों पर सतत विकास के लिए उपाय करने में तेजी के संदर्भ में यह आवश्यक हो गया है कि इस मुद्दे पर भारत में बैंकों का ध्यान आकर्षित करने और उनमें जागरूकता बढ़ाने के लिए किये जा रहे प्रयासों को सामने लाया जाए । संलग्नकों में कंपनीगत सामाजिक जिम्मेदारी, सतत विकास और गैर-वित्तीय रिपोर्टिंग की अवधारणाओं, उनकी आवश्यकता, इस संदर्भ में विश्व-भर में वित्तीय क्षेत्र द्वारा की गयी पहल तथा अन्य संबंधित मुद्दों की जानकारी दी गयी है तथा उसमें निहित मुद्दों के महत्व तथा इस संबंध में वैश्विक प्रयासों को रेखांकित किया गया है ।
3. सतत विकास के संदर्भ में विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन, विशेष महत्व रखते हैं क्योंकि ऐसे देश इन परिवर्तनों का सामना करने में कम समर्थ हैं । जलवायु परिवर्तन पर हाल ही के अध्ययनों के अनुसार एशिया की अधिकांश कंपनियां अपने व्यवसाय मॉडलों तथा पर्यावरण पर जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभावों के जोखिमों के प्रति अनजान बनी हुई हैं । उत्तरदाता कंपनियों में से लगभग दो तिहाई कंपनियों को जलवायु परिवर्तन के प्रति उनके दृष्टिकोण के लिए शून्य अंक प्रदान किये गये । निष्कर्षों से यह पता चलता है कि इस मुद्दे पर एशियाई व्यवसाय अपने अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिद्वन्दियों से बहुत पीछे हैं ।"मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स - प्रोग्रेस इन एशिया एंड दि पेसिफिक 2007" पर एशियाई विकास बैंक, यूएनडीपी तथा ईएससीएपी द्वारा संयुक्त रूप से किये गये एक अन्य अध्ययन के अनुसार सहॉााब्दि विकास लक्ष्य के 8 लक्ष्यों में से एक पर्यावरण संबंधी निरंतरता के संबंध में यह बात सामने आयी है कि कॉर्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन तथा ओजोन परत के उपभोग के मामले में भारत पिछड़ रहा है ।
4. इस प्रकार, हमारे देश में इस मुद्दे पर पर्याप्त जागरूकता का सामान्यत:अभाव है । इस संदर्भ में भारत में वित्तीय संस्थाओं द्वारा सतत विकास संबंधी प्रयासों की आवश्यकता तात्कालिक स्वरूप की बन गई है और विशेषकर बैंक इस संबंध में सार्थक भूमिका निभाकर काफी योगदान दे सकते हैं । इन परिस्थितियों में बैंकों को यह सूचित किया जाता है कि वे इन मुद्दों पर ध्यान दें और अपने निदेशक बोर्डों के अनुमोदन से सतत विकास के लिए उपयुक्त कार्ययोजना बनाने के लिए विचार करें । इस संदर्भ में, विशेष रूप से परियोजना वित्त (इक्वेटर सिद्धांत) तथा कार्बन व्यापार पर आइएफसी के सिद्धांतों की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है । साथ ही, बैंकों/वित्तीय संस्थाओं को यह सूचित किया जाता है कि वे इस संबंध में होने वाली घटनाओं से स्वयं को निरंतर अद्यतन रखें तथा ऐसी गतिविधियों के परिप्रेक्ष्य में अपनी कार्यनीतियों/योजनाओं आदि को परिवर्तित करें/संशोधित करें । इस संबंध में की गयी प्रगति को बैंकों के वार्षिक लेखे के साथ जनता की जानकारी में लाया जाए।
भवदीय
(पी. विजय भास्कर)
मुख्य महाप्रबंधक