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माइक्रो और छोटे उद्यमों को ऋण देना

आरबीआई / 2008-09/ 324

आरबीआई / 2008-09/ 324
ग्राआऋवि.एसएमइ ऍण्ड एनएफएस.बीसी.सं. 76/06.02.31(पी)/2008-09

16 दिसंबर 2008

सभी वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और स्थानीय क्षेत्र के बैंक (एलएबी)

प्रिय महोदय,

माइक्रो और छोटे उद्यमों को ऋण देना

वैश्विक गतिविधियों और घरेलू ऋण बाजारों के असर के आघातों के संदर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक ने रोजगारोन्मुख माइक्रो और छोटे उद्यम (एमएसई) क्षेत्र को ऋण बढ़ाने के कई उपाय किए हैं।

2. इस क्षेत्र को सहायता प्रदान करने के लिए रिज़र्व बैंक ने विशेष रूप से निम्नलिखित उपाय किए हैं :

(क) दिनांक 13 अक्तूबर 2008 के परिपत्र डीबीओडी.सं. बीपी.बीसी. 58/21.04.048/2008-09 द्वारा बैंकों को सूचित किया गया था कि वे जहां आवश्यक हो, एसएमई को दिए गए ऋणों का पुनर्गठन करें और स्वीकृत सीमा की जमानत पर ऋण देना जारी रखें।

(ख) दिनांक 27 अगस्त 2008 के परिपत्र डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी.37/21.04.132/2008-09 द्वारा अग्रिमों के पुनर्गठन पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश भी जारी किए गए हैं जो सभी प्रकार के ऋण के पुनर्गठन तंत्र के विवेकपूर्ण मानदंडों को एक समान बनाते हैं (प्राकृतिक आपदाओं के कारण पुनर्गठित ऋणों को छोड़कर)।

(ग) वर्तमान अर्थव्यवस्था की मंदी के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं का सामना करने के लिए हमारे दिनांक 8 दिसंबर 2008 के परिपत्र डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी. 93/21.04.132/2008-09 के अनुसार यह निर्णय किया गया है कि एक उपाय के रूप में, बैंकों द्वारा 30 जून 2009 तक दूसरी बार पुनर्गठित किए गए एक्सपोज़र (वाणिज्यिक स्थावर संपदा, पूंजी बाजार एक्सपोजर और वैयक्तिक / उपभोक्ता ऋण को छोड़कर) भी आपवादिक विनियामक व्यवस्था के अंतर्गत पात्र माने जाएंगे।

(घ) भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने दिनांक 1 नवंबर 2008 के परिपत्र सं. एमपीडी.बीसी. 309/02.01.009/2008-09 द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 17 (3बी) के अंतर्गत विशेष पुनर्वित्त सुविधा आरंभ की है जिसके अनुसार सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (आरआरबी को छोड़कर) को 90 दिनों तक की अवधि के लिए एलएएफ रेपो दर पर 24 अक्तूबर 2008 को प्रत्येक बैंक के एनडीटीएल के 1.0 प्रतिशत तक रिज़र्व बैंक द्वारा पुनर्वित्त प्रदान किया जाता है। बैंकों को दिनांक 18 नवंबर 2008 के परिपत्र सं.एमपीडी.बीसी.311/02.01.009/2008-09 द्वारा प्रोत्साहित किया गया है कि वे इस सुविधा का उपयोग करते हुए माइक्रो और छोटे उद्यमों को वित्त प्रदान करें।

(ङ) बैंकों को सूचित किया गया है कि वे मार्च 2009 के सूचना देने वाले अंतिम शुक्रवार की स्थिति के अनुसार कमज़ोर वर्ग की श्रेणी को उधार देने के 10 प्रतिशत के उप-लक्ष्य की उपलब्धि में अनुमानित कमी के आधार पर सिड़बी में रखी माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) (पुनर्वित्त) निधि में अग्रिम तौर पर कुल 2000 करोड़ रुपए की राशि का अंशदान करें।

(च) रिज़र्व बैंक ने इस क्षेत्र को सीधे और बैंकों, एनबीएफसी और एसएफसी के माध्यम से वृद्धिगत रूप से आगे ऋण देने के लिए सिड़बी को 7000 करोड़ रुपए की पुनर्वित्त सीमा मंजूर की है।

3. माइक्रो और लघु उद्यम (एमएसइ) क्षेत्र को होनेवाली समस्याओं को बैंकों द्वारा सक्रिय रूप से तुंत दूर किया जाए और समय पर ऋण के पुनर्गठन, परिचालन नियंत्रण, अतिरिक्त सुविधाएं आदि हेतु कदम उठाने के लिए हम एसएलबीसी आयोजकों से अनुरोध करते हैं कि वे एसएलबीसी की विशेष बैठकों का आयोजन तुंत करें जिसमें एमएसई क्षेत्र के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाए ताकि वे अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकें और इस क्षेत्र तथा बैंकिंग प्रणाली के हित में ठोस उपाय कर सकें। इन बैठकों में भारतीय रिज़र्व बैंक के ऋण पुनर्गठन संबंधी दिशा-निर्देशों को समझाया और बताया जा सकता है।

4. साथ ही, दिनांक 16 अक्तूबर 2000 के हमारे परिपत्र आइइसीडी/5/08.12.01/2000-01 (जिसे दिनांक 30 मई 2003 के परिपत्र सं. आइइसीडी.सं. 20/08.12.01/2002-03 के द्वारा दोहराया गया) के अनुसार :-

(i) बैंकों को सूचित किया गया था कि वे अपने बड़े कोर्पोरेट उधारकर्ताओं (अर्थात् बैंकिंग प्रणाली से 10 करोड़ रुपए और उससे अधिक की कार्यशील पूंजीगत सीमा का लाभ लेने वाले उधारकर्ता) को ऋण सीमाएं स्वीकृत / नवीकृत करते समय समग्र सीमाओं के भीतर अलग-से, विशेषत: लघु उद्योगों से नकद आधारित या बिल आधारित खरीद करने से संबंधित भुगतान बाध्यताओं को पूरा करने के लिए उप-सीमा निर्धारित करें।

(ii) ऐसी उप-सीमाओं के विस्तार का निर्णय किसी एक वर्ष के दौरान लघु उद्योग से कोर्पोरेट उधारकर्ताओं द्वारा अनुमानित खरीद के संबंध में उनकी कुल खरीद और अन्य संबंधित घटकों को ध्यान में रखते हुए किया जाए।

(iii) साथ ही, लघु उद्योग इकाइयों को भुगतान करने की बाध्यताओं को पूरा करने हेतु खाते में पर्याप्त शेष राशि की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु बैंकों को सूचित किया गया था कि वे यह सुनिश्चित करें कि उधारकर्ता के बिक्री आगम / अन्य प्राप्तियां समानुपातिक आधार पर इस खाते में जमा की गई हैं।

5. बैंकों को सूचित किया गया था कि वे उप-सीमा के परिचालनों की, विशेष रूप से एसएसआई इकाइयों को अपने कार्पोरेट उधारकर्ताओं की देय राशि के संदर्भ में, एसएसआई इकाइयों के आपूर्तिकर्ताओं को कार्पोरेट उधारकर्ताओं की देय राशि का आवधिक रूप से पता लगाकर तथा यह सुनिश्चित करके कि कार्पोरेट इस तरह से निर्मित उप सीमा में उपलब्ध शेष का उपयोग करते हुए नियत तारीख/सहमत तारीख को ऐसी देय राशि अदा कर देते हैं, बारीकी से निगरानी करें। अनुदेशों में यह व्यवस्था दी गई है कि किसी समय, यदि उप-सीमा समाप्त हो जाती है तो ऐसे भुगतान कार्यशील पूंजी की सीमा के किसी अन्य खंड से किए जाने पर कोई बंधन नहीं है। उसी तरह, यदि एसएसआई आपूर्तिकर्ताओं को कोई भुगतान देय न हो और उप-सीमा का उपयोग न किया गया हो / आंशिक रूप से किया गया हो तो बैंक अपने कार्पोरेट उधारकर्ताओं को उनके कार्यशील पूंजीगत अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए इस सीमा के उपयोग की अनुमति देने के लिए स्वतंत्र हैं।

6. हम सूचित करते हैं कि उक्त अनुदेश, आवश्यक परिवर्तन सहित, एमएसई को बडे कार्पोरेट उधारकर्ताओं की भुगतान संबंधी देयताओं को पूरा करने के लिए सभी एमएसई पर लागू होंगे। तदनुसार, नियत तारीख का अर्थ एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 की धारा 2(बी) में परिभााषितानुसार होगा। बैंक इन अनुदेशों का सावधानी से पालन करें।

7. एसएलबीसी के आयोजक बैंक ऐसे मामलों को जो ऋण से संबंधित न हों लेकिन जो एमएसई क्षेत्र को ऋण देने के सुगम प्रवाह में बाधक हों, संबंधित प्राधिकारियों के पास उठाएं। सभी बैंकों का प्रत्येक क्षेत्रीय कार्यालय / आंचलिक कार्यालय एमएसई को ऋण उपलब्ध कराने की बारीकी से निगरानी करे और प्रमुख केद्रों पर सहायता डेस्क भी स्थापित करें।

8. इस संबंध में प्रत्येक बैंक द्वारा आरंभ किए गए उपायों की एक रिपोर्ट हमें दिसबर 2008 के अंत तक भेजी जाए।

भवदीय

(जी.श्रीनिवासन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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