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ऋण जमा अनुपात - ऋण जमा अनुपात पर विशेषज्ञ दल की सिफारिशों का कार्यान्वयन - आरबीआई - Reserve Bank of India

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ऋण जमा अनुपात - ऋण जमा अनुपात पर विशेषज्ञ दल की सिफारिशों का कार्यान्वयन

भा.रि.बैं. /2005-06/202
संदर्भ ग्राआऋवि.एलबीएस.बीसी.सं. 47/02.13.03/2005-06.

9 नवबंर 2005

 

अध्यक्ष/प्रबंध निदेशक
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित)
महोदय

ऋण जमा अनुपात - ऋण जमा अनुपात पर विशेषज्ञ दल की सिफारिशों का कार्यान्वयन

भारत सरकार द्वारा श्री. वाइ. एस. पी. थोरात, प्रबंध निदेशक, नाबार्ड की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ दल का गठन राज्यों/क्षेत्रों में न्यून ऋण जमा अनुपात की समस्या के स्वरूप तथा परिमाण का अध्ययन करके इस समस्या से निपटने के संबंध मे उपाय सुझाने के लिए किया गया । विशेषज्ञ दल ने न्यून ऋण जमा अनुपात की समस्या और उसके कारणों की जाँच की और अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को प्रस्तुत की । दल की सिफारिशों की जाँच कर ली गई है तथा उन्हें भारत सरकार द्वारा कतिपय संशोधनों सहित स्वीकार कर लिया गया है ।

तदनुसार, यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों के ऋण जमा अनुपात की निगरानी निम्नलिखित मानदण्डों के आधार पर विभिन्न स्तरों पर की जानी चाहिए ।

संस्थान/स्तर

निर्देशक

प्रधान कार्यालय पर प्रत्येक बैंक

सीयू + आर आइ डी एफ

राज्य स्तरीय (राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति)

सीयू + आर आइ डी एफ

जिला स्तरीय

सी एस

नोट -

सीयू = उपयोग के स्थान पर ऋण

सीएस = स्वीकृति के स्थान पर ऋण

आरआइडीएफ = आरआइडीएफ के अन्तर्गत राज्यों को दिया जाने वाला कुल संसाधन समर्थन

दल ने यह भी सिफारिश की है कि -

  • 40 से कम ऋण जमा अनुपात वाले जिलों में ऋण जमा अनुपात की निगरानी हेतु जिला स्तरीय परामर्शदात्री समितियों की विशेष उप समितियाँ बनाई जाएं ।
  • 40 से 60 के बीच ऋण जमा अनुपात वाले जिलों की निगरानी जिला स्तरीय परार्मशदात्री समिति द्वारा वर्तमान प्रणाली के अन्तर्गत की जाएगी, तथा
  • 20 से कम ऋण जमा अनुपात वाले जिलों के लिए विशेष आधार पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है ।

2. उपर्युक्त सुझावों के मद्देनज़र यह निर्णय लिया गया है कि 40 से कम ऋण जमा अनुपात वाले जिलों में जिला स्तरीय परामर्शदात्री समिति की विशेष उप समिति की स्थापना की जाए ताकि ऋण जमा अनुपात की निगरानी की जा सके और ऋण जमा अनुपात बढ़ाने के लिए निगरानी योग्य कार्य योजना तैयार की जा सके । अग्रणी बैंक के अग्रण्ी जिला प्रबंधक को विशेष उप समिति का संयोजक नामित किया जाएगा, जिसमें उस क्षेत्र में कार्यरत बैंकों के जिला समन्वयकों के साथ-साथ जिला विकास प्रबंधक, नाबार्ड, अग्रणी जिला अधिकारी, भारतीय रिज़र्व बैंक, जिला योजना अधिकारी अथवा कलैक्टर के प्रतिनिधि होंगे जिन्हें जिला प्रशासन की ओर से निर्णय लेने का विधिवत अधिकार होगा ।

विशेष उप समिति के कार्य निम्नानुसार होंगें :

  • विशेष उप समिति अपने जिलों में स्वनिर्धारित आरोही आधार पर ऋण जमा अनुपात में सुधार लाने के लिए निगरानी योग्य कार्य योजनाएँ तैयार करेगी ।
  • इस प्रयोजन हेतु विशेष उप समिति अपने गठन के तुरन्त बाद विशेष बैठक का आयोजन करेगी तथा विभिन्न आधारस्तरीय मानदण्डों के आधार पर शुरु में चालू वर्ष अर्थात मार्च 2006 तक के लिए ऋण जमा अनुपात बढ़ाने के लिए स्वयं ही लक्ष्य निर्धारित करेगी । वार्षिक वृद्वि करते हुए यह समिति 60 से अधिक ऋण जमा अनुपात के लिए निश्चित समयावधि उसी बैठक में निर्धारित करेगी ।
  • इस प्रक्रिया के पूरा होने के फलस्वरूप विशेष उप समिति द्वारा स्वयं निर्धारित किया गया लक्ष्य और समयावधि जिला स्तरीय परामर्शदात्री समिति के समक्ष अनुमोदन के लिए रखे जाएंगे ।
  • योजनाओं को कार्यान्वयन के लिए शुरू करना तथा तत्परता से दो माह में एक बार उनकी निगरानी करना ।
  • प्रगति के बारे में जिला स्तरीय परामर्शदात्री समिति को तिमाही आधार पर तथा उनके माध्यम से राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति के संयोजक को सूचित करना ।
  • निगरानीयोग्य कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन में प्रगति के संबंध में जिला स्तरीय परामर्शदात्री समिति से प्राप्त प्रतिसाद के आधार पर समेकित रिपोर्ट तैयार की जाएगी तथा उसे राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की सभी बैठकों में चर्चा/जानकारी हेतु रखा जाएगा ।

3. जहाँ तक 20 से कम ऋण जमा अनुपात वाले जिलों का प्रश्न है, वे सामान्यतया पहाड़ी, रेगिस्तान, दुर्गम भूखण्डों तथा/अथवा पूर्णतया प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र पर निर्भर तथा/अथवा कानून और व्यवस्था प्रबंधन भंग होने के कारण विशिष्ट हैं । ऐसे क्षेत्रों में पारंपरिक तरीके तब तक कार्य नहीं करते जब तक बैंकिंग प्रणाली और राज्य विशेष रूप से अर्थपूर्ण ढंग से इकठ्ठे हो कर नहीं आते ।

हालांकि, इन जिलों में ऋण जमा अनुपात बढ़ाने के लिए कार्यान्वयन का ढाँचा वही होगा जो 40 से कम ऋण जमा अनुपात वाले जिलों के संबंध में होगा (अर्थात विशेष उप समिति की स्थापना इत्यादि), लेकिन ध्यान का केन्द्र और प्रयासों का स्तर और अधिक मात्रा में होनी चाहिए । इस प्रयोजन हेतु दल ने सिफारिश की है कि :

  • सर्वप्रथम ऐसे सभी जिलों को विशेष श्रेणी में रखा जाना चाहिए ।
  • दूसरे, उनका ऋण जमा अनुपात बढ़ाने का दायित्त बैंकों और राज्य सरकारों को लेना चाहिए तथा इन जिलों को जिला प्रशासन और अग्रणी बैंक द्वारा संयुक्त रूप से "अंगीकृत" किया जाना चाहिए
  • तीसरे, ऋण संवितरण के लिए बैंक उत्तरदायी होंगे, साथ ही राज्य सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह बैंकों के लिए, उधार देने और अतिदेयों की वसूली करने के लिए समर्थकारी माहौल तैयार करने में सहयोग देने के साथ-साथ पहचाना गया ग्रामीण मूलभूत ढाँचा तैयार करने के लिए अपने दायित्वों के संबंध में सक्रिय प्रतिबद्वता दर्शाएँ । दल का विचार है कि उपर निर्दिष्ट किए अनुसार सहयोगपूर्ण ढाँचा तैयार किए जाने पर ऋण जमा अनुपात में अर्थपूर्ण वृध्दि संभव है ।
  • विशेष श्रेणी वाले जिलों की प्रगति की निगरानी जिला स्तर पर की जाएगी तथा संबंधित बैंकों के कार्पोरेट कार्यालयों को सूचित की जाएगी ।
  • बैंकों के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक ऐसे जिलों में ऋण जमा अनुपात की ओर विशेष ध्यान देंगे ।

4. अत: बैंकों से अनुरोध है कि वे 40 से कम ऋण जमा अनुपात वाले जिलों में जिला स्तरीय परामर्शदात्री समितियों की विशेष उप समितियों के गठन के लिए कार्रवाई आरंभ करें तथा इस परिपत्र में निर्दिष्ट उपाय करें । 40 और 60 के बीच ऋण जमा अनुपात वाले जिलों की निगरानी जिला स्तरीय परामर्शदात्री समिति द्वारा वर्तमान प्रणाली के अन्तर्गत की जाएगी ।

कृपया पावती दें ।

भवदिय

 

(जी. श्रीनिवासन)

मुख्य महाप्रबंधक

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