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व्यष्टि (माइक्रो) , छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराना

भारिबैं /2006-07/306
ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी.सं. 63 /06.02.31/2006-07

अप्रैल 4, 2007

अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक /
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक / स्थानीय क्षेत्र बैंक

महोदय,

व्यष्टि (माइक्रो) , छोटे और मध्यम उद्यम
क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराना

कृपया दिनांक 19 अगस्त 2005 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी.31/06.02.31/2005-06 का पैरा 2 देखें जिसमें छोटे और मध्यम उद्यम की परिभाषा नीचे निर्दिष्ट किए अनुसार दी गई है :

"वर्तमान में होज़यरी, हाथ के औज़ार, दवा और फार्मास्युटिकल्स, लेखन सामग्री और खेल-कूद के सामान के अंतर्गत कुछ विशेष वस्तुओं के संबंध में, जहाँ निवेश की सीमा 5 करोड़ रुपए तक बढ़ा दी गई है , को छोड़कर लघु उद्योग इकाई वह औद्योगिक उपक्रम है, जिसका संयंत्र और मशीनरी में निवेश 1 करोड़ रुपए से अधिक न हो । एक व्यापक विधिव्यवस्था संसद के विचाराधीन है, जिससे लघु उद्योगों का छोटे और मध्यम उद्यमों में आमूल-चूल परिवर्तन सुलभ हो सकेगा । उपर्युक्त विधिव्यवस्था का अधिनियम होने तक वर्तमान लघु उद्योगों / अत्यंत लघु उद्योगों की परिभाषा वही रहेगी । संयंत्र और मशीनरी में लघु उद्योग सीमा से अधिक तथा 10 करोड रुपए तक निवेश वाली इकाइयां मध्यम उद्यम मानी जाएंगी ।"

2. भारत सरकार ने 16 जून 2006 को माइक्रो छोटे और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियमक 2006 को अधिनियमित किया है जो 2 अक्तूबर 2006 को अधिसूचित हो गया है । माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम 2006 के अनुसरण में अधिसूचना में दी गई सेवाएँ देने अथवा उपलब्ध कराने में कार्यरत लघु उद्योग तथा माइक्रो और छोटे उद्यमों की परिभाषा को संशोधित किया है, जिसे सभी बैंकों को अन्य नीति उपायों के साथ तत्काल लागू करना अपेक्षित है ।

3. माइक्रोट, छोटे तथा मध्यम उद्यमों की परिभाषा

क) नीचे दिए गए अनुसार वस्तुओं के निर्माण अथवा उत्पादन प्रक्रिया अथवा परिरक्षण में लगे उद्यम

  1. माइक्रो उद्यम वह उद्यम है जहाँ संयंत्र और मशीनरी में निवेश (भूमि और भवन तथा लघु उद्योग मंत्रालय द्वारा अपनी दिनांक 5 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. एसओ. 1722 (इ) (प्रति संलग्न) में निर्दिष्ट मदों को छोड़कर मूल लागत) 25 लाख रूपए से अधिक न हो ;
  2. छोटा उद्यम वह उद्यम है जहाँ संयंत्र और मशीनरी में निवेश (भ्ंझमि और भवन तथा लघु उद्योग मंत्रालय द्वारा अपनी दिनांक 5 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. एसओ. 1722 (इ) में निर्दिष्ट मदों को छोड़कर मूल लागत) 25 लाख रूपए से अधिक लेकिन 5 करोड़ रूपए से अधिक न हो ; और
  3. मध्यम उद्यम वह उद्यम है जहाँ संयंत्र और मशीनरी में निवेश (भूमि और भवन तथा लघु उद्योग मंत्रालय द्वारा अपनी दिनांक 5 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. एसओ. 1722 (इ) में निर्दिष्ट मदों को छोड़कर मूल लागत) 5 करोड़ रुपए से अधिक लेकिन 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो ।

(ख) सेवाएं उपलब्ध कराने अथवा देने में लगे उद्यम एवं उपस्कर में उनका निवेश (भूमि और भवन तथा फर्नीचर, फिटिंग्स और ऐसी अन्य मदें जो दी गई सेवाओं से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं है अथवा एमएसएमईडी अधिनियम , 2006 में अधिसूचित की गई मदों को छोड़कर मूल लागत) नीचे निर्दिष्ट किया गया है । इनमें शामिल होंगे - छोटे सड़क और जल मार्ग परिवहन परिचालक (जिनके वाहन दस्ते में वाहनों की संख्या दस से अधिक नहीं है ), खुदरा व्यापार (जिनकी ऋण सीमा 10 लाख रूपए से अधिक नहीं है), छोटे कारबार (कारबार के प्रयोजन के लिए प्रयुक्त उपस्कर की मूल लागत मूल्य 20 लाख रूपए से अधिक नहीं है) और व्यावसायी एवं स्वनियोजित व्यक्ति (जिनकी उधार लेने की सीमा 10 लाख रूपए से अधिक नहे है तथा उसमें से 2 लाख रूपए से अनधिक राशि कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं के लिए होनी चाहिए — तथापि, ऐसे व्यावसायिक अर्हता प्राप्त चिकित्सक जो अर्ध शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अपना चिकित्सकीय व्यवसाय स्थापित करना चाहते हैं, उनके मामलों में कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं के लिए 3 लाख रूपए की उप सीमा सहित उधार लेने की सीमा 15 लाख रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए)

  1. माइक्रो उद्यम वह उद्यम है जिसका उपकरण में निवेश 10 लाख रूपए से अधिक न हो ;
  2. छोटा उद्यम वह उद्यम है जिसका उपकरण में निवेश 10 लाख रुपए से अधिक लेकिन 2 करोड़ रूपए से अधिक न हो ; और
  3. मध्यम उद्यम वह उद्यम है जिसका उपकरण में निवेश 2 करोड़ रूपए से अधिक लेकिन 5 करोड़ रूपए से अधिक न हो ।

मध्यम उद्यमों को दिए गए बैंक ऋण को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत शामिल करने के प्रयोजन के लिए हिसाब में नहीं लिया जाएगा ।

तदनुसार, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार पर जारी हमारे दिनांक 3 जुलाई 2006 के मास्टर परिपत्र ग्राआऋवि.सं. प्लान.बीसी. 4 /04.09.01/2006-07 के मौजूदा उपबंधों को अनुबंध में दिए गए अनुसार प्रतिस्थापित किया जाए ।

4. उद्यमों की प्रत्येक श्रेणी के लिए पृथक आँकड़ों का संकलन

उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर आपसे अनुरोध है कि आप 30 सितंबर 2007 को समाप्त तिमाही से निर्धारित फार्मेट में (प्रति संलग्न) उद्यमों की प्रत्येक श्रेणी के लिए अलग आँकड़े संकलित करें ताकि उन्हें आगे भारत सरकार को भेजा जा सके ।

5. माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यमों पर बैंक को प्रगामी दिशानिर्देश / अनुदेश

भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर बैंकों को दिशानिर्देश / अनुदेश यह सुनिश्चित करने के लिए जारी करता रहा है कि ऐसे उद्यमों को समय पर और सुचारु रुप में ऋण प्रदान किया जाता है, व्ययभार की रुग्णता को न्यूनतम किया जाता है और ऐसे उद्यमों की स्पर्धा को बढ़ाया जाता है । इन बातों को छोटे और मध्यम उद्यमों को उधार पर हमारे मास्टर परिपत्र में शामिल किया गया है ।

(दिनांक 1 जुलाई 2006 के परिपत्र ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी.सं. 2/06.02.31/2006-07)

इस संबंध में हम आपका ध्यान 19 अगस्त 2005 के अपने परिपत्र ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी.सं. 31/02.06.31/2005-06 की ओर आकृष्ट करते हैं जिसमें बैंकों के बोर्डों को यह सूचित किया गया है कि वे छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र को ऋण देने के संबंध में वर्तमान नीतियों की तुलना में विस्तृत तथा और उदार नितियाँ तैयार करें — बैंकों को यह भी सूचित किया गया है कि ऐसी नीति तैयार करने तक रिज़र्व बैंक के वर्तमान दिशानिर्देश छोटे और मध्यम उद्यम इकाइयों को बैंकों द्वारा दिए गए / दिए जाने वाले अग्रिमों पर लागू रहेंगे ।

6. माइक्रो और छोटे उद्यमों को विलम्बित भुगतान

लघु उद्योग और अनुषंगी औद्योगिक उपक्रमों द्वारा विलम्बित भुगतान पर ब्याज अधिनियम 1998 के वर्तमान उपबंधों को एमएसएमईडी अधिनियम के अन्तर्गत निम्नानुसार सुदृढ़ किया गया है ;

    i. नियत तारीख से पहले कोई करार न होने पर खरीदार को उनके और आपूर्तिकर्ता के बीच लिखित रुप से सहमत तारीख को अथवा उससे पहले भुगतान करना होगा ।

    ii. आपूर्तिकर्ता को खरीदार द्वारा भुगतान न करने पर वह नियत तारीख से राशि पर आपूर्तिकर्ता को मासिक अन्तरालपरन चक्रवृध्दि ब्याज का भुगतान करेगा अथवा सहमत तारीख से रिज़र्व बैंक द्वारा अधिसूचित बैंक दर का तीन गुना भुगतान करेगा ।

    iii. आपूर्ति की गई वस्तुओं अथवा आपूर्तिकर्ता द्वारा इा गई सेवाओं के लिए खरीदार ऊपर (ii) में सूचित किए अनुसार ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा।

    iv. किसी देय राशि के संबंध में विवाद होने पर संबंधित राज्य सरकार द्वारा गठित माइक्रो तथा छोटे उद्यम सरलीकरण संघ को संपर्क किया जाएगा।

7. चूंकि उक्त उपाय माइक्रो , छोटे और मध्यम उद्यम क्षेत्र के स्वस्थ और संतुलित विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं, इसलिए आवश्यक कार्रवाई आरंभ की जाए और आपकी शाखाओं / नियंत्रक कार्यालयों को शीघ्र आवश्यक अनुदेश जारी किए जाएँ।

8. कृपया पावती दें।

भवदीय

(जी.श्रीनिवासन)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुबंध

प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण के संबंध में मौजूदा दिशानिदेशों में उपबंध

एमएसएमई क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने के संबंध में जारी परिपत्र में उपबंध

पैरा 2.लघु उद्योग

    1. लघु उद्योग और सहायक इकाइयां

लघु उद्योग इकाइयां ऐसी इकाइयां होती हैं , जो सामान के विनिर्माण , प्रसंस्करण या परिरक्षण के काम में लगी होती हैं और जिनका संयंत्र और मशीनों में निवेश (मूल लागत) 1 करोड़ रु. से अधिक नहीं हेता है। इनमें अन्य इकाइयों के साथ-साथ, खनन या उत्खनन के कार्य में लगी , मशीनों की सर्विस और मरम्मत में लगी इकाइयां शामिल हैं । सहायक इकाइयों के मामले में संयंत्र और मशीनों में निवेश (मूल लागत) 1 करोड़ रु. से अधिक न होने पर उन्हें लघु उद्योग के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है । भारत सरकार द्वारा होज़ियरी, हस्त औज़ारों, दवाइयों और फार्मास्युटिकल, लेखन सामग्री वस्तुओं तथा खेल की वस्तुओं के अंतर्गत विशिष्ट वस्तुओं के संबंध में लघु उद्योग के रुप में वर्गीकरण हेतु 1 करोड़ रु. के निवेश की सीमा को 5 करोड़ रु. तक बढ़ा दिया गया है ।

2.2 अत्यधिक छोटे उद्यम
‘अत्यधिक छोटे उद्यम’ का दर्जा उन सभी लघु उद्योग इकाइयों को दिया जा सकता है जिनका संयंत्र और मशीनरी में किया गया निवेश 25 लाख रु. तक हो , भले ही इकाई कहीं भी स्थित हो ।

पैरा 3 (क) माइक्रोट, छोटे तथा मध्यम उद्यम

नीचे दिए गए अनुसार वस्तुओं के निर्माण अथवा उत्पादन प्रक्रिया अथवा परिरक्षण में लगे उद्यम
i. माइक्रो उद्यम वह उद्यम है जहाँ संयंत्र और मशीनरी में निवेश (भूमि और भवन तथा लघु उद्योग मंत्रालय द्वारा अपनी दिनांक 5 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. एसओ. 1722 (इ) (प्रति संलग्न) में निर्दिष्ट मदों को छोड़कर मूल लागत) 25 लाख रूपए से अधिक न हो ;
ii. छोटा उद्यम वह उद्यम है जहाँ संयंत्र और मशीनरी में निवेश (भ्ंझमि और भवन तथा लघु उद्योग मंत्रालय द्वारा अपनी दिनांक 5 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. एसओ. 1722 (इ) में निर्दिष्ट मदों को छोड़कर मूल लागत) 25 लाख रूपए से अधिक लेकिन 5 करोड़ रूपए से अधिक न हो ; और
iii. मध्यम उद्यम वह उद्यम है जहाँ संयंत्र और मशीनरी में निवेश (भूमि और भवन तथा लघु उद्योग मंत्रालय द्वारा अपनी दिनांक 5 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. एसओ. 1722 (इ) में निर्दिष्ट मदों को छोड़कर मूल लागत) 5 करोड़ रुपए से अधिक लेकिन 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो ।

2.3 लघु सेवा और व्यवसाय उद्यम

2.3.1 उद्योग से जुड़ी सेवा तथा व्यवसाय उद्यम जिनका भूमि और भवन को छोड़कर अचल आस्तियों में निवेश 10 लाख रु. तक हो, उन्हें लघु उद्योग क्षेत्र के लाभ दिये जाएंगे । अचल आस्तियों की मूल्य गणना हेतु मूल स्वामी द्वारा चुकाई गई मूल कीमत को ध्यान में रखा जाएगा, न कि बाद में स्वामित्व पाने वालों द्वारा दी गई कीमत को ।

पैरा 3 (ख)

सेवाएं उपलब्ध कराने अथवा देने में लगे उद्यम एवं उपस्कर में उनका निवेश (भूमि और भवन तथा फर्नीचर, फिटिंग्स और ऐसी अन्य मदें जो दी गई सेवाओं से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं है अथवा एमएसएमईडी अधिनियम , 2006 में अधिसूचित की गई मदों को छोड़कर मूल लागत) नीचे निर्दिष्ट किया गया है । इनमें शामिल होंगे - छोटे सड़क और जल मार्ग परिवहन परिचालक (जिनके वाहन दस्ते में वाहनों की संख्या दस से अधिक नहीं है ), खुदरा व्यापार (जिनकी ऋण सीमा 10 लाख रूपए से अधिक नहीं है), छोटे कारबार (कारबार के प्रयोजन के लिए प्रयुक्त उपस्कर की मूल लागत मूल्य 20 लाख रूपए से अधिक नहीं है) और व्यावसायी एवं स्वनियोजित व्यक्ति (जिनकी उधार लेने की सीमा 10 लाख रूपए से अधिक नहे है तथा उसमें से 2 लाख रूपए से अनधिक राशि कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं के लिए होनी चाहिए । तथापि, ऐसे व्यावसायिक अर्हता प्राप्त चिकित्सक जो अर्ध शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अपना चिकित्सकीय व्यवसाय स्थापित करना चाहते हैं, उनके मामलों में कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं के लिए 3 लाख रूपए की उप सीमा सहित उधार लेने की सीमा 15 लाख रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए)
i. माइक्रो उद्यम वह उद्यम है जिसका उपकरण में निवेश 10 लाख रूपए से अधिक न हो ;
ii. छोटा उद्यम वह उद्यम है जिसका उपकरण में निवेश 10 लाख रुपए से अधिक लेकिन 2 करोड़ रूपए से अधिक न हो ; और
iii. मध्यम उद्यम वह उद्यम है जिसका उपकरण में निवेश 2 करोड़ रूपए से अधिक लेकिन 5 करोड़ रूपए से अधिक न हो ।
मध्यम उद्यमों को दिए गए बैंक ऋण को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत शामिल करने के प्रयोजन के लिए हिसाब में नहीं लिया जाएगा ।

 

2.4 लघु उद्योग क्षेत्र को प्रत्यक्ष उधार दर्शाने वाली प्रतिभूतियुक्त आस्तियों में बैंकों द्वारा किया गया निवेश प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत लघु उद्योग क्षेत्र को प्रत्यक्ष उधार माना जाएगा बशर्ते कि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हो :

i ) वे सामूहिक आस्तियाँ लघु उद्योग क्षेत्र को प्रत्यक्ष ऋण मानी जाती हैं जिनकी गणना प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत की जाती है;
ii) प्रतिभूतिकृत ऋण बैंकों / वित्तीय संस्थानों द्वारा दिए जाते हैं ।

 

मौजूदा अनुदेश बने रहेंगे । केवल ’लघु उद्योग और अत्यंत लघु (टाइनी) उद्योग / उद्यम’ शब्दों के स्थान पर छोटे और माइक्रो उद्यम पढ़ा जाए ।

2.5 लघु उद्योग क्षेत्र में परोक्ष वित्तपोषण के अंतर्गत निम्नलिखित को दिये गये ऋण शामिल होंगे :

2.5.1 ऐसी एजेंसियां , जो कारीगरों, ग्राम एवं कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति तथा उनके उत्पादनों के विपणन के कार्य में विकेंद्रित क्षेत्र की सहायता कर रही हों ।

2.5.2 सरकार द्वारा प्रायोजित निगम /संगठन, जो प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र में कमज़ोर वर्गों के लिए निधियां प्रदान करते हों ।

2.5.3 हथकरधा सहकारी समितियों i ाट अग्रिम ।

2.5.4 राज्य औद्योगिक विकास निगमों /राज्य वित्तीय निगमों को लघु उद्योगों का वित्तपोषण करने के लिए उपलब्ध कराई गई ऋण सहायता के रूप में मीयादी वित्त /ऋण । इस तरह प्रदत्त मीयादी वित्त/ऋण में से जो अंश लघु उद्योगों को/के लिए दिया गया हो उसे निम्नलिखित शर्तों की पूर्ति के अधीन प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को प्रदत्त उधारों के रुप में माना जाएगा :
i. लघु उद्योग इकाइयों को किये गए ताज़ा संवितरणों तथा उनसे बकाया राशि के बारे में राज्य वित्त निगम/राज्य औद्योगिक निगम द्वारा अलग-अलग और स्पष्ट खाते रखे जाएं ।
ii. स्थिति की निगरानी हेतु राज्य वित्त निगम/राज्य औद्योगिक विकास निगम से सावधि विवरणपत्रक मंगवाए जाएं ।
iii. राज्य वित्त निगम/राज्य औद्योगिक विकास निगम के सांविधिक लेखा परीक्षकों द्वारा वार्षिक आधार पर इस आशय का प्रमाणपत्र जारी किया जाए कि बैंकें के बकाया उधार उन गैर-अतिदेय ऋणों से पूरी तरह कवर होते हैं जो लघु उद्योग इकाइयों को किये गए ताज्ाा संवितरणों से सम्बन्धित हैं तथा जो बैंकों को प्रदत्त मीयादी वित्त/ऋण प्रणाली में से दिये गए थे ।
iv. ऐसे मीयादी वित्तपोषण/ऋणों/ऋण प्रणालियों पर बैंकों द्वारा लगाई जाने वाली ब्याज दर तत्सम्बन्धी उन निदेशों के अनुरुप होगी जो समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं ।

2.5.5 खादी और ग्रामोद्योग आयोग को बैंकों के सहायता संघ द्वारा ऋण प्रदान करने की योजना के अंतर्गत बैंकों द्वारा केवीआईसी को दिया गया ऋण जिसे व्यवहार्य खादी और ग्रामोद्योग इकाइयों को उधार दिया जा सके ।

2.5.6 वाणिज्य बैंकों द्वारा सिडबी /एसएफसी को लघु उद्योगों के उन बिलों की पुनर्भुनाई हेतु प्रदान की गई राशि प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत लघु उद्योग को अप्रत्यक्ष वित्त की पात्र होगी जिसकी भुनाई मूल रुप से वाणिज्य बैंक ने की और पुनर्भुनाई सिडबी / एसएफसी द्वारा की गई हो ।

2.5.7 केवल गैर कृषि क्षेत्र के वित्तपोषण के उद्देटश्य से नाबार्ड द्वारा जारी किये गये बांडों में अभिदान । तथापि नाबार्ड द्वारा जारी ऐसे बॉण्डों में बैंकों द्वारा किए गए निवेश 1 अप्रैल 2007 से प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत वर्गीकरण हेतु पात्र नहीं हेंगे ।

2.5.8 i) अत्यधिक लघु क्षेत्र को आगे उधार दिये जाने के प्रयोजन से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों अथवा अन्य मध्यस्थ कंपनियों का वित्त पोषण ।
ii) दिनांक 11 नवंबर 2003 से बैंकों द्वारा गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों तथा अन्य मध्यस्थ कम्पनियों को आगे लघु उद्योग क्षेत्र को उधार देने के लिए प्रदान किए गए ऋण ।

2.5.9 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र हेतु निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की स्थिति में विदेशी बैंकों द्वारा क्षतिपूर्ति स्वरुप सिडबी के पास जमा की गई धन राशियां ।

2.5.10 टाइनी सेक्टर के अंतर्गत कारीगरों, हथकरघा बुनकरों आदि को आगे उधार देने के लिए स्वीकृत अधिकतम ऋण सीमा के रूप में बैंकों द्वारा हुडको को दिया गया वित्त लघु उद्योग (टाइनी) क्षेत्र को दिया गया प्रत्यक्ष ऋण माना जाएगा ।

 

 

मौजूदा अनुदेश बने रहेंगे । केवल ’लघु उद्योग और अत्यंत लघु (टाइनी) उद्योग / उद्यम’ शब्दों के स्थान पर छोटे और माइक्रो उद्यम पढ़ा जाए ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

-वही -

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

-वही-

पैरा 2.7 खादी ग्रामोद्योग क्षेत्र परिचालनों के आकार , अवस्थिति तथा संयंत्र और मशीनरी में निवेश पर ध्यान दिये बगैर खादी-ग्रामोद्योग क्षेटत्र को दिये गए सभी अग्रिम प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत शामिल रहेंगे तथा इसी क्षेत्र के अंतर्गत लघु उद्योग हेतु नियत उप-लक्ष्य (60 प्रतिशत) के अधीन भी उन पर विचार किया जा सकेगा ।

 

 

मौजूदा अनुदेश बने रहेंगे । केवल ’लघु उद्योग ’शब्दों के स्थान पर छोटे उद्यम पढ़ा जाए ।

पैरा 3. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र में अन्य गतिविधियां/उधार
पैरा 3.1 छोटे सड़क और जलमार्ग परिवहन परिचालन
पैरा 3.2 खुदरा व्यापार
पैरा 3.3 छोटे व्यवसाय
पैरा 3.4 व्यावसायिक और स्वनियोजित व्यक्ति

मौजूदा अनुदेश बने रहेंगे ।

 

उक्त दिनांक का परांकन ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस. 9332/06.02.31/2006-07

डाक सूची के अनुसार ।

(जी.पी.बोरा)
उप महाप्रबंधक

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