इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा ( ईसीएस ) – इनपुट डाटा की सत्यता और ईसीएस मेंडेट/ फाइलों में खाता संख्या सूचना की पूर्णता - आरबीआई - Reserve Bank of India
इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा ( ईसीएस ) – इनपुट डाटा की सत्यता और ईसीएस मेंडेट/ फाइलों में खाता संख्या सूचना की पूर्णता
RBI/2009-10/109 जुलाई 29, 2009 अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/मुख्य कार्यकारी अधिकारी महोदय/महोदया, इलेक्ट्रॉनिक समाशोधन सेवा ( ईसीएस ) – इनपुट डाटा की सत्यता और ईसीएस मेंडेट/ फाइलों में खाता संख्या सूचना की पूर्णता ईसीएस की शुरूआत नब्बे के दशक में थोक और बार-बार लेनदेनों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से दक्षता पूर्वक करने के लिए हुई थी। ईसीएस (क्रेडिट) में ब्याज, लाभांश भुगतान और बड़े परिमाण वाली प्राप्तियां जैसे उपयोगिता बिल, बीमा प्रीमियम का भुगतान ईसीएस (डेबिट) से होता है। देश में, वर्तमान में 76 स्थानों पर ईसीएस का परिचालन होता है जिसमें 15 केन्द्र भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा चलाए जाते हैं। प्रत्येक माह लगभग 20 मिलियन संव्यवहार प्रसंस्कृत होते हैं जो इसकी बढ़ रही दक्षता को दर्शाता है क्योंकि इस प्रकार के संव्यवहारों के लिए पेपर लिखतों को जारी करना और सभालना अब अनावश्यक हो गया है। ईसीएस के परिचालनगत होने से अर्थव्यवस्था में समग्र रूप होने वाला लाभ महत्वपूर्ण हैं। 3. आवक लिखितों के केंद्रीकृत प्रसंस्करण और थोक संव्यवहारों को सभालने के लिए बैंको में कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस) बढ़ाने हेतु मुंबई में राष्ट्रीय ईसीएस का कार्यान्वयन किया गया। बैंको को हमारे 25 जून 2009 के परिपत्र क्र. के DPSS (CO) EPPD No. 2283 / 04.01.04 / 2008-2009 माध्यम से एन- ईसीएस के अनुकूल प्रयोग और विस्तार के लिए उठाए जाने वाले कदमों के बारे में सूचित किया गया । विकेन्द्रीकृत स्थानीय- ईसीएस में टी+1 चक्र पर बने रहने अथवा केन्द्रीकृत एन- ईसीएस में सहभागिता के लिए बैंक अपने आवक डाटा को सीबीएस प्रणाली से समुचित इंटरफेस के साथ स्टेट थ्रू तरीके से रखे। बैंको ने सीबीएस में अंतरण के बाद ग्राहक खाता संख्या पद्धति को बदल दिया है पर ईसीएस डाटा में 3-4 अंको के पुरानी खाता संख्या से प्रसंस्करण में विलंब होता है और अधिक वापिसी होती है। हिताधिकारी के खाते में समय से क्रेडिट और डेबिट के लिए यह जरूरी है कि ईसीएस इनपुट फाइलों में केवल नई खाता संख्या हो अन्यथा प्रसंस्करण में देरी हो सकती है अथवा संव्यवहार वापस हो सकता है जिससे प्रणाली पर अनावश्यक भार होगा और उसकी दक्षता में कमी आयेगी। 4. उपरोक्त के मद्देनजर विभिन्न पणधारकों के लिए कुछ कार्रवाई के बिंदु है जिन पर तत्काल ध्यान दिया जाना आवश्यक है: (i) प्रयोक्ता संस्था के रूप में
(ii) प्रायोजक बैंक के रूप में
(iii) गंतव्य बैंक के रूप में
(iv) हिताधिकारी/ग्राहक के रूप में
5. बैंकें कृपया उपरोक्त पहलों को 31 दिसंबर 2009 तक पूरा कर लें। ईसीएस केन्द्र उन ईसीएस फाइलों को प्रसंस्कृत किये बगैर ही वापस करने के लिए सक्रिय कदम उठाएं जिनमें आधे से अधिक अनुदेश अस्वीकृत या वापस किये हुए हों, जब तक कि वे आश्वश्त नहीं होते कि संबंधित जानकारी को अद्यतन करने या छांटने में पर्याप्त सावधानी बरती गई है। जनवरी 1, 2010 से ईसीएस/एन- ईसीएस प्रक्रिया प्रवाह में आवश्यक वैधीकरण भी सन्निहित होगा जिससे पुरानी खाता संख्या वाले अनुदेशों को ईसीएस केन्द्र के स्तर पर ही अस्वीकृत किया जाना सुनिश्चित हो सके। 6. कृपया उपरोक्त पर आवश्यक कार्रवाई करें और उठाए गये कदमों से हमें अवगत कराएं।
( जी. पद्मनाभन ) |