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इलेक्‍ट्रानिक भुगतान उत्‍पाद- केवल खाता संख्‍या सूचना के आधार पर आवक लेनदेनों का संसाधन करना

 

RBI/2010-11/235
भुनिप्रवि(केंका.) ईपीपीडी सं./863/04.03.01/2010-11

14 अक्‍तूबर 2010

आरटीजीएस/एनईफटी/एनईसीएस/ईसीएस में भाग लेने वाले

सभी सदस्‍य बैंकों के अध्‍यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/मुख्‍यपालक अधिकारी

म‍होदय/ महोदया,

इलेक्‍ट्रानिक भुगतान उत्‍पाद- केवल खाता संख्‍या सूचना
के आधार पर आवक लेनदेनों का संसाधन करना

जैसा कि आप जानते हैं सुरक्षित और कुशलतापूर्वक इलेक्‍ट्रानिक निधि अंतरण की सुविधा प्रदान करने के लिए भारतीय रि‍ज़र्व बैंक ने विभिन्‍न इलेक्‍ट्रानिक भुगतान उत्‍पाद (आरटीजीएस, एनईफटी,एनईसीएस और ईसीएस के विविध प्रकार) प्रारंभ किये हैं। इन उत्‍पादों के जरिए होने वाले लेनदेनों की मात्रा में काफी वृद्धि देखी गई है जो बैंक शाखाओं द्वारा और उसी प्रकार ग्राहकों द्वारा इसकी स्‍वीकार्यता और प्रयोग की सरलता दर्शाती है।

2. इलेक्‍ट्रानिक भुगतान उत्‍पाद अनुदेशों की उत्‍पत्ति, संचलन, संसाधन और उनके अंतिम रूप से निपटान के लिए काफी हद तक प्रौद्योगिकी पर निर्भर करते हैं। आप सहमत होंगें कि किसी भी प्रकार के मानवीय हस्तक्षेप से अनुदेश पूरे होने में न केवल विलंब होता है, बल्कि उससे चूक और छलकपटपूर्ण कार्य के लिए गुंजाइश रहती है। बैंकों में कोर बैंकिंग समाधानों (सीबीएस) का लागू होना, सीबीएस प्‍लेटफार्म को भुगतान प्रणाली गेटवे से जोड़ने वाला सॉफ्टवेयर इंटरफेस और ग्राहकों को इंटरनेट द्वारा एक्‍सेस सीधे संसाधन का (एसटीपी) वातावरण बनाने में अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है और इस प्रकार इन उत्‍पादों को लोकप्रिय बना रहा है।

3. सीबीएस वातावरण में किसी बैंक के ग्राहकों को सभी शाखाओं के बीच उनकी खाता संख्‍या के द्वारा विशिष्‍ट रूप से पहचाना जाता है। आरटीजीएस/एनईफटी/एनईसीएस/ईसीएस क्रेडिट के लिए प्रचलित क्रियाविधिगत दिशानिर्देशों के अनुसार सामान्‍य रूप से बैंकों से यह अपेक्षित होता है कि वे खाते में क्रेडिट करने के पूर्व लाभार्थी के नाम और खाता संख्‍या सूचना का मिलान कर लें। भारतीय परिप्रेक्ष्‍य में, जहां किसी नाम को कई प्रकार से लिखा जा सकता है, इलेक्‍ट्रानिक अंतरण अनुदेश के नाम संबंधी फील्‍ड को गंतव्‍य बैंक की बहियों में मौजूद रिकार्ड से मिलान करना अत्‍यंत चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इससे मानवीय हस्‍तक्षेप करना पड़ता है जो सीधे संसाधन (एसटीपी) में व्‍यवधान उत्‍पन्‍न करता है और इससे क्रेडिट या अदेय क्रेडिट अनुदेशों की वापसी में विलंब होता है।

4. आवश्‍यक रूप से क्रेडिट-पुश प्रकृति का होने के कारण, सटीक इनपुट और सफल क्रेडिट का उत्‍तरदायित्‍व रुपए भेजने वाले ग्राहक और मूल बैंक का होता है। गंतव्‍य बैंकों की भूमिका प्रेषक/मूल बैंक द्वारा मुहैया कराए गए ब्‍यौरों के आधार पर लाभार्थी के खाते को क्रेडिट करने तक सीमित होती है। सीमित समयावधि में बढ़ती हुई मात्रा की देख-रेख के लिए कुछ बैंक नाम मिलान करने वाले सॉफ्टवेयर का प्रयोग करते हैं, जबकि कुछ अन्‍य बैंक अंतरण की प्रकृति और मूल्‍य के आधार पर जोखिम आधारित प्रक्रिया का इस्‍तेमाल हैं।

5.    आरटीजीएस/एनईफटी/एनईसीएस/ईसीएस क्रेडिट उत्‍पादों में प्रचलित क्रियाविधियों को ध्‍यान में रखते हुए निम्‍नानुसार निर्णय लिया गया है-

I. भुगतान अनुदेशों में सही इनपुट, विशेष रूप से लाभार्थी की खाता संख्‍या संबंधी सूचना, देने का उत्‍तरदायित्‍व रुपए प्रेषक/आरंभकर्ता का होगा। यद्यपि, अनुदेश संबंधी अनुरोध में लाभार्थी के नाम का अनिवार्य रूप से उल्‍लेख किया जाएगा और उसे निधि अंतरण संदेश के भाग के रूप में आगे भेजा जाएगा, तथापि, क्रेडिट करने के प्रयोजन के लिए केवल खाता संख्‍या पर भरोसा किया जाएगा। शाखाओं से प्रारंभ होने वाले अंतरण अनुदेशों और ऑनलाइन/ इंटरनेट डिलीवरी चैनल के जरिए आरंभ होने वाले दोनों प्रकार के अनुदेशों के लिए य‍ह लागू होगा। तथापि, संदेश प्रपत्र में नाम संबंधी फील्‍ड का उपयोग गंतव्‍य बैंक द्वारा एक मानक के रूप में जोखिम संभावना और /या क्रेडिट-पश्‍चात जांच या अन्‍य प्रकार से किया जाएगा।

II. आरंभकर्ता बैंक एक समुचित मेकर-चेकर प्रणाली का उपयोग कर सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके ग्राहकों द्वारा उपलब्‍ध कराई गई खाता संख्‍या सूचना सही है और त्रुटियों से मुक्‍त है। इसमें ऑनलाइन/ इंटरनेट बैंकिंग सुविधा का लाभ उठाने वाले ग्राहकों को खाता संख्‍या सूचना एक से अधिक बार इनपुट करने (पहली बार की फीड को मास्‍क करना जैसा कि पासवर्ड परिवर्तन करने के मामले में अपेक्षित होता है) या इसी प्रकार की किसी अन्‍य विधि का उपयोग करने का सुझाव देना शामिल हो सकता है। निधि अंतरण संबंधी अनुरोध शाखाओं में प्रस्‍तुत करने वाले ग्राहकों से यह अपेक्षित होगा कि वे आवेदन पत्र में खाता संख्‍या सूचना को दो बार लिखें।

III. शाखाओं में अनुरोध किए गए लेनदेनों के लिए आरंभकर्ता बैंक मेकर-चेकर क्रियाविधि अपनाएंगें जिसमें यह अपेक्षित होगा कि ए‍क कर्मचारी लेनदेन का इनपुट करे और अन्‍य कर्मचारी उस इनपुट की जांच करे।

IV. बैंकों को ऑनलाइन/ इंटरनेट बैंकिंग प्‍लेटफार्म में निधि अंतरण पटलों पर और निधि अंतरण अनुरोध फार्मों में समुचित डिस्क्लैमर (अस्‍वीकरण) देना चाहिए जिसमें ग्राहकों को यह सूचित किया जाए कि निधि अंतरण केवल लाभार्थी की खाता संख्‍या सूचना के आधार पर किया जाएगा और लाभार्थी के नाम संबंधी विवरण का इसके लिए उपयोग नहीं किया जाएगा।

V. गंतव्‍य बैंक, प्रेषक/आरंभकर्ता बैंक द्वारा संदेश/डाटा फाइल में उपलब्‍ध कराई गई खाता संख्‍या के आधार पर लाभार्थी के खाते को क्रेडिट कर सकते हैं। लाभार्थी के नाम संबंधी ब्‍यौरों को जोखिम संभावना, अंतरण की मात्रा, लेन देन का स्‍वरूप, क्रेडिट-पश्‍चात जांच आदि के लिए सत्‍यापन हेतु उपयोग में लाया जाएगा।

VI. सदस्‍य बैंक आरटीजीएस/एनईफटी/एनईसीएस/ईसीएस क्रेडिट के जरिए भुगतान करते समय खाता संख्‍या संबंधी सही सूचना देने की आवश्‍यकता के संबंध में अपने ग्राहकों में जागरुकता लाने के लिए आवश्‍यक कार्रवाई करें।

VII. ग्राहकों को उनके खाते में जमा/निकासी के लिए मोबाइल/ई-मेल एलर्ट उपलब्‍ध कराना एक और अन्य विधि हो सकती है जिससे जमा/ निकासी की असलियत तथा लेनदेन संबंधित ग्राहक द्वारा ही किये जाने/उन्‍हें अपेक्षित होने के बारे में पता लगाया जा सके। सभी प्रकार के निधि अंतरणों के लिए उसकी मात्रा को ध्‍यान में न लेते हुए सभी ग्राहकों को अधिमानत: यह सुविधा देनी चाहिए।

VIII. उपर्युक्‍त के बावजूद, यदि किसी मामले में यह पाया जाता है कि किसी गलत खाते को क्रेडिट कर दिया गया है तो बैंकों के लिए यह आवश्‍यक है कि वे एक सुदृढ़, पारदर्शी और त्‍वरित शिकायत निवारण तंत्र स्‍थापित करें ताकि इस प्रकार के क्रेडिट को पलटा जा सके और गलती को ठीक किया जा सके और/या लेनदेन को आरंभकर्ता बैंक को वापस किया जा सके। इसे विशेष रूप से सुचारु और पूर्ण सक्रि‍यता के साथ कार्य करना चाहिए जब तक कि ग्राहक नए प्रबंधों से आश्‍वस्‍त न हो जाएं।

6.      ये संशोधन उन ईसीएस डेबिट लेनदेनों पर भी समान रूप से लागू हैं जिन्‍हें गंतव्‍य बैंक उपयोगकर्ता संस्‍थानों/ प्रायोजित बैंकों द्वारा प्रस्‍तुत ब्‍यौरों के आधार पर अपने ग्राहकों के खातों को क्रेडिट करने के लिए उपयोग में लाएंगे।

7.      एतद् द्वारा बैंकों को सलाह दी जाती है कि वे समुचित प्रणालियों और क्रियाविधियों को आरंभ करें ताकि उपर्युक्‍त निर्धारणों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके। ये दिशानिर्देश भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 की धारा 10(2) के तहत भारतीय रि‍ज़र्व बैंक को अंतरित शक्तियों के तहत जारी किए गए हैं जो 1 जनवरी 2011 से प्रभावी होगें। परिचालनगत अनुभवों और सामान्‍य फीडबैक के आधार पर इन अनुदेशों की समीक्षा की जाएगी और यदि आवश्‍यक हो तो अनुदेशों में समुचित परिवर्तन किया जाएगा।

8.      कृपया इस परिपत्र की प्राप्ति की पुष्टि करें।

भवदीय,

हस्‍ता/.
(जी.पद्मनाभन)
मुख्‍य महाप्रबंधक

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