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बीमा कारोबार में बैंकों का प्रवेश

बीमा कारोबार में बैंकों का प्रवेश

संदर्भ: बैंपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 27 /24.01.018/2003-2004

22 सितंबर 2003
31 भाद्र 1925 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों एवं स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)

प्रिय महोदय,

बीमा कारोबार में बैंकों का प्रवेश

कृपया आप 9 अगस्त 2000 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 16/ 24.01.018/ 2000-2001 देखें जिसके द्वारा, अन्य बातों के साथ-साथ बैंकों को इस बात की अनुमति दी गयी थी कि वे जोखिम में सहभागिता के आधार पर बीमा संयुक्त उद्यम स्थापित कर सकते हैं , और बीमा कंपनियों के एजेंट के रूप में, शुल्क के आधार पर बीमा का कारोबार कर सकते हैं जिसके अंतर्गत बैंकों और उनकी सहायक संस्थाओं को जोखिम में भागीदार न बनना पड़े । बैंकों को 29 अक्तूबर 2002 से, अपनी शाखाओं के नेटवर्क के माध्यम से परामर्श संबंधी कारोबार शुरू करने की भी अनुमति दी गयी है । तथापि, बीमा संबंधी कारोबार में प्रवेश करने से पहले बैंकों के लिए यह आवश्यक है कि वे बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण तथा भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति प्राप्त करें ।

2. इस मामले की हमने समीक्षा की है और अब यह निर्णय लिया गया है कि जोखिम में भागीदार बने बिना बीमा एजेंट के रूप में कारोबार आरंभ करने या परामर्शी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति लेने की आवश्यकता नहीं है, परंतु इस संबंध में निम्नलिखित शर्तें लागू होंगी :

  1. ‘समेकित कार्पोरेट एजेंट’ या बीमा कंपनियों के साथ, परामर्शी सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु बैंकों को बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के विनियमों का पालन करना होगा ।
  2. बैंक द्वारा वित्तपोषित आस्तियों के मामले में, बैंक को कोई ऐसी प्रतिबंधात्मक पद्धति नहीं अपनानी चाहिए जिसके द्वारा वे अपने ग्राहकों को किसी खास बीमा कंपनी के पास जाने के लिए मजबूर करें । ग्राहकों को इस मामले में अपनी पसंद के अनुसार निर्णय लेने की छूट होनी चाहिए।
  3. जो बैंक परामर्शी सेवाएं उपलब्ध कराने के इच्छुक हों उन्हें बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के विनियमों का अनुपालन करने के अलावा, संबंधित बीमा कंपनी के साथ एक ऐसा समझौता भी करना चाहिए जिसके द्वारा बैंक की वर्तमान मूलभूत सुविधाओं का तथा परिसर का उपयोग करने की अनुमति दी गयी हो । प्रारंभ में ऐसा समझौता अधिकतम तीन साल की अवधि के लिए किया जाना चाहिए और बैंक को इस बात का अधिकार होना चाहिए कि वह बीमा संबंधी सेवाओं से अपनी संतुष्टि के आधार पर ऐसे समझौते की शर्तों का पुन:निर्धारण कर सके या समझौते की मूलभूत अवधि समाप्त हो जाने के बाद वह पुराने करार की जगह दूसरा करार कर सके । इसके बाद, गैर सरकारी क्षेत्र के बैंक के मामले में, ऐसा बैंक अपने निदेशकमंडल के अनुमोदन से अपेक्षाकृत लंबी अवधि के समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए स्वतंत्र होगा तथा किसी सरकारी क्षेत्र के बैंक के मामले में भारत सरकार के अनुमोदन से ऐसा किया जा सकेगा ।
  4. चूंकि किसी बैंक के ग्राहक द्वारा बीमा संबंधी उत्पादों में सहभागिता पूर्णत: स्वैच्छिक आधार पर है इसलिए बैंक द्वारा वितरित की जाने वाली किसी भी प्रचार संबंधी सामग्री में इस बात का प्रमुखता के साथ उल्लेख किया जाना चाहिए । बैंक द्वारा अपने ग्राहकों को उपलब्ध करायी जाने वाली बैंकिंग सुविधाओं के प्रावधान और बीमा संबंधी उत्पादों के प्रयोग के बीच किसी भी प्रकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ‘सहसंबंध’ नहीं होना चाहिए ।
  5. बीमा एजेंसी /परामर्शी व्यवस्था के चलते यदि कोई जोखिम आ जाए तो ऐसा जोखिम बैंक के कारोबार में अंतरित नहीं होना चाहिए ।

3. तथापि, ऊपर निर्दिष्ट 9 अगस्त 2000 के हमारे परिपत्र बैंपविवि. सं. एफएससी. बीसी. 16/ 24.01.018/ 2000-2001 में निर्दिष्ट पात्रता संबंधी मानदंडों को पूरा करने वाले तथा जोखिम में सहभागिता के आधार पर इक्विटी में अपना अंशदान करके बीमा संयुक्त उद्यम स्थापित करने के या मूलभूत सुविधाएं और सेवा संबंधी सहायता प्रदान करने के लिए बीमा कंपनियों में निवेश करने के इच्छुक बैंकों को चाहिए कि वे भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति प्राप्त करते रहें ।

4. कृपया प्राप्ति-सूचना भेजें ।

भवदीय,

(बी. महापात्र)
मुख्य महाप्रबंधक

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