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भारतीय कंपनियों की विदेश में उप-अनुषंगी संस्थाओं को ऋण सुविधाएं प्रदान करना

आरबीआई/2015-16/279
डीबीआर.आईबीडी.बीसी.सं.68/23.37.001/2015-16

दिसंबर 31, 2015

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)

महोदय/ महोदया,

भारतीय कंपनियों की विदेश में उप-अनुषंगी
संस्थाओं को ऋण सुविधाएं प्रदान करना

कृपया 10 मई 2007 का हमारा परिपत्र बैंपविवि.आईबीडी.बीसी.सं.96/23.37.001/2006-07 देखें, जिसके द्वारा बैंकों को भारतीय कंपनियों की विदेश में अनुषंगी कंपनियों की उप-अनुषंगी कंपनियों, जो पूर्ण स्वामित्व वाली नहीं हों, को कतिपय शर्तों के अधीन निधिक तथा/या गैर निधिक ऋण सुविधाएं प्रदान करने की अनुमति दी गई थी।

2. उक्त दिशानिर्देशों की समीक्षा की गई तथा उन्हें निम्नानुसार संशोधित किया गया है:

(i) बैंक विदेश में प्रारंभ की गई परियोजनाओं के निधीयन के लिए भारतीय कंपनियों की उन कंपनियों सहित, जो प्रथम स्तर से परे हैं, उप-अनुषंगी कंपनियों को निधिक तथा / अथवा गैर-निधिक ऋण सुविधाएं प्रदान कर सकते हैं।

(ii) भारतीय कंपनी की विदेश में निकटतम अनुषंगी कंपनी को भारतीय लेखांकन मानकों के अधीन मान्यता प्राप्त नियंत्रण प्रणालियों में से किसी भी एक प्रणाली के माध्यम से भारतीय मूल कंपनी के द्वारा सीधे नियंत्रित किया जाना चाहिए।1 इसके अतिरिक्त, भारतीय मूल कंपनी द्वारा उसकी शेयरधारिता के न्यूनतम 51% शेयर सीधे धारण किए जाने चाहिए।

(iii) मध्यवर्ती अनुषंगियों सहित सभी उप-अनुषंगी कंपनियाँ निकटतम मूल कंपनी की अनुषंगी कंपनी के पूर्ण स्वामित्व में होनी चाहिए अथवा उसके समस्त शेयर निकटतम मूल कंपनी तथा भारतीय मूल कंपनी तथा / अथवा उसकी पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी द्वारा संयुक्त रूप से धारण किए जाएंगे। निकटतम मूल कंपनी का उप-अनुषंगी पर पूर्ण अथवा भारतीय मूल कंपनी तथा / अथवा उसकी पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगी कंपनी के साथ संयुक्त रूप से नियंत्रण होगा।

(iv) बैंक उप-अनुषंगी कंपनियों के सभी एक्सपोजरों का प्रतिनिधित्व करने वाली सभी मानक आस्तियों के लिए 2% का अतिरिक्त प्रावधान करें (सभी समुद्रपारीय एक्सपोजरों पर लागू देशी जोखिम प्रावधानों के अतिरिक्त), ताकि भारतीय कंपनी और अंतत: बैंक के लिए विभिन्न मध्यस्थ इकाइयों के विभिन्न क्षेत्राधिकारों में स्थित होने और उनकी जटिल संरचना के कारण उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त जोखिम को कवर किया जा सके क्योंकि इनसे राजनैतिक और विनियामक जोखिम और भी बढ़ सकता है।

3. उक्त संशोधन इस परिपत्र की तारीख के बाद मंजूर की जाने वाली ऋण सुविधाओं, तथा इसके बाद नवीकृत की जाने वाली मौजूदा सुविधाओं पर लागू होंगे।

4. हमारे उपर्युक्त परिपत्र में उल्लिखित, समय-समय पर यथासंशोधित अन्य सभी निबंधन और शर्तें लागू रहेंगी।

भवदीय,

(राजिन्दर कुमार)
मुख्य महाप्रबंधक


1भारतीय लेखांकन मानकों के अनुसार नियंत्रण को (क) स्वामित्व, प्रत्यक्ष या अनुषंगी(गियों) के माध्यम से परोक्ष, किसी उद्यम के मताधिकारों के आधे से ज्यादा का स्वामित्व; या (ख) कंपनी के मामले में निदेशक मंडल के संयोजन अथवा किसी अन्य उद्यम के मामले में तदनुरूपी शासी निकाय का नियंत्रण, के रूप में परिभाषित किया गया है, ताकि इसके क्रियाकलापों से आर्थिक लाभ प्राप्त किए जा सकें।

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