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भारतीय संयुक्त उद्यमों (जे वी) /विदेश में पूर्णत: स्वामित्व वाली सहायक संस्थाओं (डब्ल्यू ओ एस) को ऋण / गैर-ऋण सुविधाएं प्रदान करना और बैंको ं द्वारा भारत में विदेशी पार्टियों को क्रेता को स

भारतीय संयुक्त उद्यमों (जे वी) /विदेश में पूर्णत: स्वामित्ववाली सहायक संस्थाओं (डब्ल्यू ओ एस) को ऋण / गैर-ऋण सुविधाएं प्रदान करना और बैंको ं द्वारा भारत मेंविदेशी पार्टियों को क्रेता को साख पर उधार और स्वीकृति वित्त प्रदान करना

संदर्भ : बैंपविवि.सं. आइबीएस. बीसी. 94 /23.37.001/2002-03

8 अप्रैल 2003
18 चैत्र 1924 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)

प्रिय महोदय,

भारतीय संयुक्त उद्यमों (जे वी) /विदेश में पूर्णत: स्वामित्व
वाली सहायक संस्थाओं (डब्ल्यू ओ एस) को ऋण /
गैर-ऋण सुविधाएं प्रदान करना और बैंको ं द्वारा भारत में
विदेशी पार्टियों को क्रेता को साख पर उधार और स्वीकृति वित्त प्रदान करना

कृपया 12 नवंबर 1998 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. सं. आइबीएस. बीसी. 104/ 23.37.001/ 98-99 और 21 जनवरी 1999 का परिपत्र बैंपविवि. सं. आइबीएस. 1707/ 23.37.001/98-99 देखें, जिनके अनुसार बैंकों को यह अनुमति दी गयी थी कि वे भारतीय संयुक्त उद्यमों /विदेश में पूर्णत: स्वामित्व वाली सहायक संस्थाओं को कतिपय शर्तों पर उनकी टियर - I की अक्षत पूंजी के 5 प्रतिशत की सीमा तक ऋण /गैर-ऋण सुविधाएं दे सकते हैं । उक्त सुविधाओं के लिए बैंकों को अनुमति इसलिए दी गयी थी कि उन्हें एफ सी एन आर बी, ई ई एफ सी, आर एफ सी आदि खातों में रखी निधियों को नियोजित करने के लिए अतिरिक्त विकल्प प्राप्त हो सके ।

2. विद्यमान विदेशी मुद्रा विनियमों के अंतर्गत 21 दिसंबर 2002 के ए. पी. (डी आइ आर सीरीज़) परिपत्र सं. 63 के अनुसार प्राधिकृत व्यापारी अपने बोड़ द्वारा स्वीकृत सीमा तक विदेशी बाज़ारों में निवेश कर सकते हैं ।

3. उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए अब यह निर्णय किया गया है कि बैंकों को भारतीय संयुक्त उद्यमों / विदेश में पूर्णत: स्वामित्व वाली सहायक संस्थाओं को ऋण /गैर-ऋण सुविधाएं प्रदान करने के लिए अधिकतम सीमा को संशोधित करते हुए उसे टियर - I की अक्षत पूंजी के 5 प्रतिशत से बढ़ाकर बैंकों की अक्षत पूंजीगत निधि (टियर I और टियर II की पूंजी) के 10 प्रतिशत तक कर दिया जाये । अलबत्ता, ऐसी सुविधाओं के लिए हमारे उपर्युक्त परिपत्रों में उल्लिखित निम्नलिखित शर्तें अपरिवर्तित रहेंगी :

  1. केवल उन्हीं संयुक्त उद्यमों को ऋण प्रदान किया जायेगा जहां भारतीय कंपनी के पास धारित राशि 51% से अधिक होगी ।
  2. इस प्रकार के सीमा पार को उधार से उत्पन्न ऋण और ब्याज दर जोखिम के प्रबंध के लिए समुचित प्रणालियां लागू हों ।
  3. बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 25 का अनुपालन किया जाता हो ।
  4. इस प्रकार के उधार के लिए संसाधन का आधार एफ सी एन आर (बी), ई ई एफ सी, आर एफ सी जैसे विदेशी मुद्रा खातों में धारित निधियां होनी चाहिए, जिनके बारे में बैंकों को विदेशी मुद्रा जोखिम का प्रबंध करना पड़ता हो ।
  5. इस प्रकार के लेनदेनों से उत्पन्न अधिकांश आस्तियों और देयताओं के असंतुलन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित समग्र अंतर सीमाओं के भीतर होते हों ।
  6. घरेलू ऋण /गैर-ऋण लेनदेनों पर लागू पूंजी पर्याप्तता, लेनदेन मानदंडों इत्यादि से संबंधित वर्तमान संरक्षणों /विवेकपूर्ण दिशा-निर्देशों का पालन किया जाता हो ।

उपर्युक्त सुविधा की समीक्षा एक वर्ष के बाद की जायेगी ।

4. इसके अतिरिक्त, जैसा कि हमारे उपर्युक्त परिपत्र में निर्धारित है, ऐसी ऋण / गैर-ऋण सुविधा के लिए ऋण नीति में अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित बातों को भी शामिल किया जाना चाहिए :

(क) इस प्रकार के ऋणों की स्वीकृति परियोजना को समर्थन देने वाले प्रवर्तकों की सिर्फ ख्याति पर ही नहीं, बल्कि परियोजना के समुचित मूल्यांकन और वाणिज्यिक अर्थक्षमता पर आधारित होती है । गैर-निधिक सुविधाओं की छानबीन उसी सख्ती से छानबीन की जानी चाहिए जैसी कि निधि पर आधारित सीमाओं के बारे में की जाती है ।

(ख) उन देशों में जहां संयुक्त उद्यम /पूर्णत: स्वामित्व वाली सहायक कंपनियां स्थित हों वहां विदेशी मुद्रा ऋण इत्यादि प्राप्त करने या प्रत्यावर्तन के लिए इन कंपनियों पर कोई प्रतिबंध लागू नहीं होना चाहिए और अनिवासी बैंकों को विदेशी प्रतिभूतियां /आस्तियों पर कानूनी प्रभार लेने की अनुमति और आवश्यकता पड़ने पर उनके निष्पादन का भी अधिकार दिया जाना चाहिए ।

5. कृपया प्राप्ति-सूचना दें ।

भवदीय

(बी. महापात्र )
मुख्य महा प्रबंधक

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