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विदेशी प्रत्यक्ष निवेश - विलयन और अभिग्रहण के लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी)

आर.बी.आइ/2004/72
एपी(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र सं. 75

23 फरवरी 2004

सेवा में

विदेशी मुद्रा के सभी प्राधिकृत व्यापारी

महोदया/महोदय

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश - विलयन और अभिग्रहण
के लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी)

प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान जनवरी 31, 2004 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र क्रं.60 द्वारा जारी संशोधित बाह्य वाणिज्यिक उधार मार्गदर्शी सिद्धांतों की ओर आकृष्ट किया जाता हैं।

2. भारतीय कॉर्पोरेट्स के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को सुविधाजनक बनाकर उन्हें विश्वव्यापी स्तर पर सक्रिय बनाने के उद्देश्य से बाह्य वाणिज्यिक उधार के लिए अनुमत अंतिम उपयोग को व्यापक बनाया गया है ताकि संयुक्त उद्यमों/पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक संस्थाओं में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को शामिल किया जा सके। इससे कॉर्पोरेट्स को नये निवेश अथवा वर्तमान संयुक्त उद्यमों/ पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक संस्थाओं के विस्तार में सुविधा होगी, इसमें विलयन और विदेशों में अभिग्रहण शामिल है जिसके लिए विश्वव्यापी स्पर्धात्क दरों पर संसाधनों को काम में लगाया जाएगा।

3. विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों के लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार जनवरी 31, 2004 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र क्रं.60 द्वारा जारी किए गए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश मार्गदर्शी सिद्धांतों और दिसम्बर 06, 2003 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र क्रं.41 और 42 एवं जनवरी 13, 2004 के क्रं.57 के साथ पठित विदेश में संयुक्त उद्यम/ पूर्णत: स्वाधिकृत सहायक संस्थाओं में भारतीय प्रत्यक्ष निवेश के संबंध में जुलाई 1, 2003 के मास्टर परिपत्र क्रं.2/2003-04 द्वारा जारी भारतीय प्रत्यक्ष निवेश के संबंध में वर्तमान मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुरूप होंगे।

4. यह नोट किया जाए कि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की आय को विदेश में निवेश के लिए इसके उपयोग किए जाने तक रखा जाए।

5.विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीनियों में उपर्युक्त संशोधन तुरंत प्रभाव से लागू होंगे।

6. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषयवस्तु की जानकारी अपने सभी ग्राहकों को दे दें।

7. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं।

भवदीय

ग्रेस कोशी
मुख्य महाप्रबंधक

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