बाह्य वाणिज्यिक उधार- विदेशो में निधियां रखना - आरबीआई - Reserve Bank of India
बाह्य वाणिज्यिक उधार- विदेशो में निधियां रखना
भारतीय रिज़र्व बैंक ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.70 13 जनवरी, 2003 सेवा में महोदया/महोदय, बाह्य वाणिज्यिक उधार- विदेशो में निधियां रखना प्राधिकृत व्यापारियों को यह विदित है कि बाह्य वाणिज्यिक उधार-1999-2000 के लिए नीति और प्रक्रिया पर भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश के पैरा 15(ए) के अनुसार बाह्य वाणिज्यिक उधार जुटाने वाली कंपनियों द्वारा निधियों को भारत लाना अपेक्षित है। तथापि,ऐसी निधियां, आवेदन पर, भारतीय रिजर्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय की अनुमति से विदेश में बैंक खातों में रखने की अनुमति है । 2. अब यह निर्णय लिया गया है कि बाह्य वाणिज्यिक उधार जुटाने वाली कंपनियां अपनी भावी विदेशी मुद्रा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निम्नलिखित शर्तों पर विदेशों में निधियां रख सकती हैं:- क) खाते से राशि केवल उसी अनुमोदित प्रयोजन के लिए निकाली जाए जिसके लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार लिया गया है । ख) समुद्रपारीय आपूर्तिकार्ता , यदि कोई हो, को बिल ऑफ लैडिंग/ एयरवे बिल सहित सामान्य आयात कागजातों पर किया जायेगा। इसके अतिरिक्त, भारत को आयातों के सबूत के लिए सनदी लेखाकार द्वारा प्रमाणित फॉर्म ईसीबी 2 सहित दस्तावेजी साक्ष्य भारतीय रिजर्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय में पेश किये जाएं। ग) विदेश में रखी निधियों का इस्तेमाल भारत में निधि-आधारित अथवा गैर-निधि-आधारित सुविधाओं के लिए न किया जाए। घ) विदेशी मुद्रा की आवश्यकता पूरी हो जाने के तुरंत बाद, खाता बंद कर दिया जाए और खर्च न की गई बकाया राशि तत्काल भारत को प्रत्यावर्तित कर दी जाए। 3. खाता खोलने के 8 दिनों के भीतर प्राधिकृत व्यापारी के माध्यम से खाते से संबंधित निम्नलिखित जानकारी ( सॉफ्ट कॉपी के रूप में) भारतीय रिजर्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय में प्रस्तुत कर दी जाएं।
4. अब तक की तरह विदेश मे धारित शेष संबंधित ईसीबी2 विवरणी में रिपोर्ट किए जाएं। 5. उपर्युक्त छूट समीक्षा के अधीन 30 जून 2003 तक की अवधि के लिए लागू हैं। 6. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों को अवगत करा दें। 7. इस परिपत्र में समाहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अधीन जारी किए गए हैं। भवदीय (जी.पद्मनाभन) |