बैंकिंग सेवाओं के विस्तार द्वारा वित्तीय समावेशन - व्यवसाय प्रतिनिधियों (बीसी) का उपयोग - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकिंग सेवाओं के विस्तार द्वारा वित्तीय समावेशन - व्यवसाय प्रतिनिधियों (बीसी) का उपयोग
आरबीआइ/2010-11/217 28 सितंबर 2010 सभी वाणिज्य बैंक महोदय बैंकिंग सेवाओं के विस्तार द्वारा वित्तीय समावेशन - वर्ष 2010-11 के वार्षिक नीति वक्तव्य में की गयी घोषणा के अनुसार लाभ अर्जक कंपनियों को बीसी के रूप में नियुक्त करने पर एक चर्चा पत्र 2 अगस्त 2010 को भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया गया था। इसके गुण-दोष तथा विभिन्न क्षेत्रों से मिली प्रतिक्रिया/सुझाव पर विचार करने के बाद यह निर्णय लिया गया है कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एन बी एफ सी) को छोड़कर बैंकों को पहले अनुमत व्यक्तियों/संस्थाओं के अलावा भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत कंपनियों को बीसी के रूप में नियुक्त करने की अनुमति दी जाए, बशर्ते इस संबंध में जारी दिशानिर्देशों का अनुपालन किया जाता है । 2. बीसी नियुक्त करने के संबंध में वर्तमान दिशानिर्देशों की समीक्षा की गयी है तथा संशोधित दिशानिर्देश अनुबंध में दिये गये हैं । भवदीय (ए. के. खौंड) अनुलग्नक : यथोक्त अनुबंध व्यवसाय प्रतिनिधियों (बीसी) को नियुक्त क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा स्थानीय क्षेत्र बैंक सहित अनुसूचित वाणिज्य बैंक निम्नलिखित दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए व्यवसाय प्रतिनिधियों की सेवा ले सकते हैं : 1. भूमिका बैंक अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से व्यवसाय प्रतिनिधि (बी सी) नियुक्त करने के संबंध में नीति निर्धारित कर सकते हैं। व्यवसाय प्रतिनिधियों की नियुक्ति से पहले संबंधित व्यक्तियों/ संस्थाओं के संबंध में समुचित सावधानी बरती जानी च्चाहिए । समुचित सावधानी बरतने की प्रक्रिया के अंतर्गत अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित पहलू शामिल होने च्चाहिए - (i) प्रतिष्ठा/बाज़ार में स्थान (ii) वित्तीय सुदृढता (iii) प्रबंधन और कार्पोरेट गवर्नेंस (iv) नकद संभालने की क्षमता और (v) वित्तीय सेवाएं देने में प्रौद्योगिकी समाधान कार्यान्वित करने की क्षमता । 2. पात्र व्यक्ति/संस्थाएं बैंक निम्नलिखित व्यक्तियों/संस्थाओं को व्यवसाय प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त कर सकते हैं : (i) व्यक्ति, जैसे, सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी, सेवानिवृत्त शिक्षक, सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी और भूतपूर्व सैनिक, ऐसे व्यक्ति ज्जो किराना/मेडिकल/ उचित मूल्य दुकानों के स्वामी हैं, ऐसे व्यक्ति जो पीसीओ ऑपरेटर हैं, भारत सरकार की लघु बचत योजनाओं/ बीमा कंपनियों के एजेंट, ऐसे व्यक्ति जो पेट्रोल पंप के स्वामी हैं, बैंकों से संबद्ध सुसंचालित स्वयं-सहायता समूहों के प्राधिकृत कार्यकर्ता, सामान्य सेवा केंद्र (सी एस सी) चलाने वाले व्यक्तियों सहित कोई अन्य व्यक्ति; (ii) सोसाइटी/न्यास अधिनियमों के अंतर्गत स्थापित एनजीओ/लघु वित्त संस्थाएं और धारा 25 कंपनियां; (iii) परस्पर सहायता प्राप्त सहकारी सासाइटी अधिनियम/राज्यों के सहकारी सोसाइटी अधिनियम/बहु राज्यीय सहकारी सोसाइटी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत सहकारी सोसाइटी; (iv) डाक घर; और (v) गैर-बैंकिंग वित्तीय कपंनियों (एन बी एफ सी) को छोड़कर भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत ऐसी कंपनियां, जिनके खुदरा केंद्रों का व्यापक जाल हो । 3. बीसी मोडल कोई व्यवसाय प्रतिनिधि एक से अधिक बैंकों का व्यवसाय प्रतिनिधि हो सकता है, परंतु ग्राहक से संपर्क के स्थलों पर व्यवसाय प्रतिनिधि का खुदरा केंद्र या उप-एजेंट केवल एक बैंक का प्रतिनिधित्व करेगा और उसी की सेवाएं प्रदान करेगा । बैंक और व्यवसाय प्रतिनिधि के बीच की संविदा पर लागू शर्तें लिखित करार में स्पष्ट रूप से परिभाषित होनी च्चाहिए और उनकी कानूनी दृष्टि से पूरी ज्जांच होनी चाहिए । करार बनाते समय बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 3 नवंबर 2006 को ज्जारी बैंकों द्वारा वित्तीय सेवाओं की आउटसोर्सिंग में जोखिम नियंत्रण और आचार संहिता संबंधी दिशानिर्देश में निहित अनुदेशों का कड़ाई से अनुपालन करना च्चाहिए । बैंक व्यवसाय प्रतिनिधियों और उनके खुदरा केंद्रों/उप एजेंटों के कार्यों के लिए पूरी तरह जिम्मेवार होंगे । 4. गतिविधियों का दायरा गतिविधियों के दायरे में निम्नलिखित शामिल होंगे - (i) उधारकर्ताओं की पहचान, (ii) ऋण आवेदन पत्र एकत्र करना और उनकी प्राथमिक प्रोसेसिंग जिसमें प्राथमिक सूचना/आंकड़ों का सत्यापन शामिल है, (iii) बचत और अन्य उत्पादों के संबंध में ज्जन-ज्जागृति फैलाना तथा धन प्रबंधन के संबंध में शिक्षण और सलाह देना तथा ऋण संबंधी परामर्श देना; (iv) बैंकों को आवेदन पत्र प्रस्तुत करना और उनकी प्रोसेसिंग करना; (v) स्वयं-सहायता समूह/संयुक्त देयता समूह/ऋण समूह/अन्य समूहों को प्रवर्तित करना, प्रोत्साहित करना और उनकी निगरानी करना; (vi) ऋण मंजूरी के बाद निगरानी करना; (vii) ऋण की वसूली के लिए अनुवर्ती कार्रवाई करना; (viii) अल्प मूल्य वाले ऋणों का वितरण करना; (ix) मूल धन की वसूली/ब्याज एकत्र करना; (x) अल्प मूल्य वाली ज्जमाराशियों का संग्रह; (xi) माइक्रो बीमा/म्युचुअल फंड उत्पाद/पेंशन उत्पाद/अन्य थर्ड पार्टी उत्पादों की बिक्री और (xii) अल्प मूल्य वाले प्रेषणों/अन्य अदायगी लिखतों की प्राप्ति और वितरण । व्यवसाय प्रतिनिधि वही कारोबार करेंगे जो बैंकों के सामान्य बैंकिंग कारोबार हैं, लेकिन उन्हें बैंकिंग प्रतिनिधियों द्वारा ऐसी जगहों पर किया ज्जाता है जहां बैंक परिसर/एटीएम नहीं हैं । 5. अपने ग्राहक को जाने (केवाइसी) मानदंड 1 जुलाई 2010 के मास्टर परिपत्र बैंपविवि. एएमएल. बीसी. सं. 2/14.01.001/2010-11 में वर्णित ‘अपने ग्राहक को ज्जानें’ और ‘धनशोधन निवारण’ (एएमएल) सबंधी प्रक्रियाओं तथा इस विषय पर ज्जारी परवर्ती परिपत्रों का सभी मामलों में अनुपालन किया जाना च्चाहिए । यदि आवश्यक हो तो बैंक खाता खोलने की औपचारिकताओं से संबंधित आरंभिक कार्य के लिए बीसी की सेवाएं ले सकते हैं । तथापि, बीसी मोडेल के अंतर्गत केवाइसी और एएमएल मानदंडों का अनुपालन सुनिशिचित करने का दायित्व बैंकों का रहेगा । 6. ग्राहकों की गोपनीयता बैंकों को बीसी के पास उपलब्ध ग्राहक सूचना की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करनी च्चाहिए । 7. सूचना प्रौद्योगिकी स्तर बैंकों को यह सुनिश्चित करना च्चाहिए कि बीसी द्वारा प्रयुक्त उपकरण और प्रौद्योगिकी उच्च स्तर के हैं । 8. दूरी संबंधी मानदंड बैंकों द्वारा बीसी के खुदरा केंद्र/उप-एजेंट के परिचालनों और गतिविधियों पर पर्याप्त पर्यवेक्षण सुनिश्चित करने के लिए बीसी के प्रत्येक खुदरा केंद्र/उप-एजेंट को एक विशेष बैंक शाखा, जिसे आधार शाखा कहा जाएगा, से संबद्ध करना चाहिए तथा उसे उक्त आधार शाखा के पर्यवेक्षण के अधीन रखना चाहिए । बीसी के खुदरा केंद्र/उप-एजेंट और आधार शाखा के बीच की दूरी सामान्यत: ग्रामीण, अर्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों में 30 कि. मी. और महानगरीय केंद्रों में 5 कि. मी. से अधिक नहीं होनी च्चाहिए । यदि दूरी संबंधी मानदंड में छूट देने की आवश्यकता हो तो जिला परामर्शी समिति (डीसीसी)/राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) अपर्याप्त बैंक सुविधा वाले क्षेत्रों आदि में मामले के गुण-दोष के आधार पर छूट देने पर विचार कर सकती है । 9. कमीशन/शुल्क की अदायगी बैंक बीसी को तर्कसंगत कमीशन/शुल्क दे सकते हैं, जिनकी दर और मात्रा की आवधिक रूप से समीक्षा की ज्जानी चाहिए । बीसी के साथ किये गये करार में इसका स्पष्ट उल्लेख रहना च्चाहिए कि बैंक की ओर से उनके द्वारा दी गयी सेवा के लिए वे ग्राहकों से सीधा कोई शुल्क नहीं लेंगे । कमीशन या प्रोत्साहन की प्रणाली इस प्रकार बनायी जानी चाहिए ताकि केवल ग्राहकों की संख्या या लेनदेन के परिमाण में वृद्धि के कारण कमीशन न बढे । पारिश्रमिक में नियत और परिवर्तनशील अंश होना चाहिए ज्जो अन्य बातों के साथ-साथ ग्राहक संतुष्टि की माप या सूचना पर निर्भर होना च्चाहिए । सेवा में कमी होने की स्थिति में, परिवर्तनशील पारिश्रमिक का कुछ अंश आस्थगित किया जा सकता है या वापस लिया जा सकता है । बैंकों को (बीसी को नहीं) यह अनुमति दी जाती है कि वे पारदर्शी तरीके से ग्राहकों से तर्कसंगत सेवा प्रभार वसूल सकते हैं । 10. बीसी के माध्यम से लेनदेन करना चूंकि व्यवसाय प्रदाता/प्रतिनिधियों ज्जैसे मध्यस्थकों की नियुक्ति में महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा संबंधी, कानूनी और परिचालन ज्जोखिम हैं, अत: बैंकों को इन जोखिमों पर समुचित विचार करना च्चाहिए । बैंकों को किफायती तरीके से अपनी पहुंच बढ़ाने के अलावा ज्जोखिम प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकी आधारित समाधान अपनाना च्चाहिए । सामान्यतया लेनदेन बैंक के कोर बैंकिंग समाधान (सी बी एस) से अविच्छिन्न रूप से जुड़े आइसीटी उपकरणों (हैंडहेल्ड डिवाइस/मोबाइल फोन) के माध्यम से किया जाना च्चाहिए । लेनदेनों का हिसाब तात्कालिक आधार पर होना चाहिए और ग्राहकों को दृश्य माध्यमों (क्रीन आधारित) या अन्य माध्यमों (नामे या ज्जमा पर्ची) से अपनी लेनदेन का तुरंत सत्यापन मिलना चाहिए । योजनाएँ बनाते समय बैंकों को खान समूह की रिपोर्ट के अध्याय III में की गयी सिफारिशों तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 3 नवंबर 2006 को जारी आउटसोर्सिंग दिशानिर्देशों (भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) से मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए । बीसी के साथ की गयी व्यवस्था में निम्नलिखित निर्दिष्ट किया ज्जाएगा : i) मध्यस्थकों द्वारा नकदी रखने की उपयुक्त सीमा तथा वैयक्तिक ग्राहक के भुगतान और जमा की सीमा; ii) ग्राहक से प्राप्त नकदी की प्राप्ति सूचना बैंक की ओर से एक रसीद जारी कर के, दी जानी च्चाहिए । iii) सभी ऑफ-लाइन लेनदेनों का लेखांकन होना चााहिए तथा दिवस की समाप्ति तक बैंक की बहियों में उनकी प्रविष्टि होनी चाहिए; और iv) ग्राहक के साथ किए गए सभी करारों /संविदाओं में स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए कि बैंक बीसी के सभी कार्यों और त्रुटियों के लिए ग्राहक के प्रति जिम्मेवार होगा । 11. आंतरिक नियंत्रण और निगरानी बैंकों को अपने व्यवसाय प्रतिनिधियों के कार्य-निष्पादन की विस्तृत समीक्षा वर्ष में कम-से-कम एक बार करनी चाहिए और अपने नियंत्रक कार्यालयों के माध्यम से तथा अग्रणी बैंक योजना के अंतर्गत विभिन्न मंचों अर्थात् एसएलबीसी, डीएलसीसी, बीएलबीसी के माध्यम से भी बीसी की गतिविधियों की निगरानी करनी चाहिए । बैंकों की आंतरिक नियंत्रण प्रणाली में आवधिक अंतराल पर व्यवसाय प्रतिनिधियों के यहाँ दौरा और ग्राहकों से आमने-सामने बातचीत शामिल होनी चाहिए । 12. उपभोक्ता सुरक्षा के उपाय बैंकों को ग्राहकों के हित की रक्षा करने के लिए हर प्रकार का उपाय करना चाहिए । सुरक्षा के ऐसे कुछ उपाय नीचे दिये जा रहे हैं : i. एक ज्जन-सभा में गाँव के बुजुर्गों और सरकारी पदाधिकारियों की उपस्थिति में बैंक के पदाधिकारियों को बीसी के खुदरा केंद्र /उप एजेंट का ज्जनता से व्यक्तिगत परिचय कराना चाहिए ताकि कोई मिथ्या निरूपण / प्रतिरूपण न हो । ii. उत्पाद और प्रक्रियाएँ बैंकों द्वारा अनुमोदित होनी च्चाहिए तथा कंपनी को संबंधित बैंक के अनुमोदन के बिना कोई उत्पाद/प्रक्रिया आरंभ नहीं करनी च्चाहिए । iii. प्रत्येक खुदरा केंद्र/उप एजेंट से यह अपेक्षा की जा सकती है कि उन्हें एक साइनेज प्रदर्शित करना चाहिए, जिसमें बैंक के सेवाप्रदाता के रूप में उनकी स्थिति दी जानी च्चाहिए तथा बीसी का नाम, बैंक की आधार शाखा/नियंत्रक कार्यालय और बैंकिंग लोकपाल के टेलीफोन नम्बर तथा उस केंद्र में उपलब्ध सभी सेवाओं के लिए शुल्क की सूचना दी जानी चाहिए । iv. बीसी के खुदरा केंद्रों /उप एजेंटों द्वारा दी गयी वित्तीय सेवाओं को ऐसी कंपनी के किसी उत्पाद की बिक्री से नहीं ज्जोड़ा ज्जाना च्चाहिए । v. विभिन्न सेवाओं के लिए लिये जाने वाले प्रभार एक ब्रोशर में दर्शाये जाने च्चाहिए और उन्हें खुदरा केंद्रों /उप एजेंटों के पास उपलब्ध कराया जाना च्चाहिए । vi बैंकों को स्थानीय भाषाओं में उपयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम /सामग्री तैयार करनी चाहिए ताकि बीसी/उप एजेंटों में समुचित मनोवृत्ति और क्षमता विकसित की जा सके । vii. सामाजिक ऑडिट के एक उपाय के रूप में आवधिक रूप से प्रखंड स्तर पर बैठकें हो सकती हैं जिनमें उस क्षेत्र की ज्जनता, उस क्षेत्र में कार्यरत बीसी और उनसे संबद्ध शाखा प्रबंधकों को बुलाया जाए ताकि वे अपनी कठिनाइयां बता सकें तथा उनसे फीडबैक प्राप्त किया जा सके । अग्रणी बैंक के अग्रणी जिला प्रबंधक (एलडीएम) जिले में ऐसी बैठकों में शामिल हो सकते हैं तथा प्रत्यक्ष फीडबैक प्राप्त कर सकते हैं और नियंत्रक कार्यालयों को ऐसा फीडबैक प्रदान कर सकते हैं । viii. बैंक के पास आवश्यक कारोबार निरंतरता योजना (बीसीपी) होनी चाहिए ताकि कंपनियों/उप एजेंटों के साथ एजेंसी व्यवस्था समाप्त करने की स्थिति में बाधारहित सेवा सुनिश्चित की जा सके । ix. यदि कोई कंपनी एक से अधिक बैंकों का बीसी हो तो यह सुनिश्चित किया जाना च्चाहिए कि ग्राहकों के आँकड़े और खातों के ब्यौरे अलग-अलग रखे जाते हैं और आँकड़े आपस में मिश्रति नहीं होते हैं । 13. शिकायत निवारण बैंकों को बीसी द्वारा दी गयी सेवाओं के संबंध में शिकायत निवारण के लिए बैंक के भीतर एक शिकायत निवारण प्रणाली गठित करनी चाहिए और इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट माध्यमों से उसका व्यापक प्रचार करना चाहिए । बैंक के निर्दिष्ट शिकायत निवारण अधिकारी का नाम और संपर्क टेलीफोन नम्बर प्रदर्शित किया जाना चाहिए और उसका व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए । निर्दिष्ट अधिकारी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ग्राहकों की प्रामाणिक शिकायतें शीघ्र दूर की जाती हैं । बैंक की शिकायत निवारण प्रक्रिया और शिकायतों के उत्तर भेजने के लिए नियत समय सीमा बैंक की वेबसाइट पर प्रदर्शित होनी चाहिए । यदि कोई शिकायतकर्ता शिकायत प्रेषित करने की तारीख से 60 दिनों के भीतर बैंक से कोई संतोषज्जनक उत्तर नहीं प्राप्त करता है तो उसे यह विकल्प रहेगा कि वह अपनी शिकायतों के निपटान के लिए संबंधित बैंकिंग लोकपाल कार्यालय से संपर्क करे । 14. ग्राहक शिक्षण वित्तीय साक्षरता और ग्राहक शिक्षण कारोबारी रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना च्चाहिए तथा बीसी मोडल अपनाने वाले बैंकों की प्रतिबद्धता का अंग होना चाहिए । बैंकों को अपने ग्राहकों को बैंकिंग आदत के लाभ के संबंध में जन-भाषा में शिक्षित करने के लिए किये जाने वाले प्रयास में महत्वपूर्ण वृद्धि करनी चाहिए । बैंकों द्वारा नियुक्त व्यवसाय प्रतिनिधियों के संबंध में सूचना संबंधित बैंकों की वेबसाइटों पर प्रदर्शित की जानी चाहिए । बैंकों की वार्षिक रिपार्ट में बीसी मोडल के माध्यम से बैंकिंग सेवाएँ देने में हुई प्रगति तथा इस संबंध में बैंकों द्वारा की गयी पहल की रिपोर्ट होनी च्चाहिए । बैंक अपने बीसी मोडल के कार्यान्वयन का व्यापक प्रचार करने के लिए प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (जन-भाषा में भी ) का भी प्रयोग कर सकते है । |