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बैंकिंग सेवाओं के विस्तार द्वारा वित्तीय सेवाएं प्रदान करना - व्यावसायिक सुविधादाताओं/संपर्ककर्ताओं का उपयोग

भारिबैं/2005-06/288
बैंपविवि. सं. बीएल.बीसी.58/22.01.001/2005-06

25 जनवरी 2006
5 माघ 1927 (शक)

अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक)

महोदय,

बैंकिंग सेवाओं के विस्तार द्वारा वित्तीय सेवाएं प्रदान करना - व्यावसायिक सुविधादाताओं/संपर्ककर्ताओं का उपयोग

अधिकाधिक व्यक्तियों को वित्तीय सेवाओं के दायरे में लाने (फायनॉन्शियल इन्क्लूज़न) तथा बैंकिंग क्षेत्र का दायरा बढ़ाने के उद्देश्य से जनहित में यह निर्णय लिया गया है कि नीचे निर्दिष्ट किये अनुसार व्यावसायिक सुविधादाताओं/संपर्ककर्ताओं प्रतिमानों के उपयोग के माध्यम से वित्तीय और बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने में मध्यवर्ती संस्थाओं के रूप में गैर-सरकारी संगठनों/स्वयं सहायता समूहों (एनजीओ/ एसएचजी), व्यष्टि वित्त संस्थाओं (एमएफआई) और अन्य नागरिक समाज संगठनों (सीएसओ) की सेवाओं का उपयोग करने में बैंकों को समर्थ बनाया जाए ।

2. व्यावसायिक सुविधादाता प्रतिमान : पात्र संस्थाएं और गतिविधियों की व्याप्ति

2.1 "व्यावसायिक सुविधादाता" के प्रतिमान के अंतर्गत, बैंक सहायक सेवाएं प्रदान करने के लिए बैंक की सुविधा के स्तर के आधार पर गैर-सरकारी संगठनों/किसान क्लबों, सहकारी संस्थाओं, समुदाय आधारित संगठनों, कार्पोरेट संस्थाओं के आइटी सुविधा से युक्त ग्रामीण आउटलेटों, डाक घरों, बीमा एजेंटों, सुचारु रूप से कार्यरत पंचायतों, ग्रामीण ज्ञान केंद्रों, कृषि क्लिनिकों/कृषि व्यवसाय केंद्रों, कृषि विज्ञान केंद्रों तथा खादी और ग्रामोद्योग कमीशन /खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड की इकाइयों जैसी मध्यवर्ती संस्थाओं का उपयोग कर सकते हैं। ऐसी सेवाओं में (व) उधारकर्ताओं की पहचान और कार्यकलापों का निर्धारण; (वव) प्राथमिक जानकारी /आंकड़ों के सत्यापन सहित ऋण आवेदनपत्रों का संग्रहण और प्रारंभिक प्रसंस्करण; (ववव) बचत और अन्य उत्पादों तथा शिक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करना एवं धनप्रबंध पर सलाह तथा ऋण संबंधी परामर्श देना; (वख्) आवेदनपत्रों का प्रसंस्करण और बैंकों को प्रस्तुति; (ख्) स्वयं सहायता समूहों/संयुक्त दायित्व समूहों का संवर्धन और विकास; (ख्व) मंजूरी के बाद निगरानी; (ख्वव) स्वयं सहायता समूहों/संयुक्त दायित्व समूहों/ऋण समूहों/ अन्यों ंकी निगरानी और सहायता करना; तथा (ख्ववव) वसूली के लिए अनुवर्तन शामिल हो सकते हैं ।

2.2 चूंकि इन सेवाओं का उद्देश्य बैंकिंग व्यवसाय को संचालित करने में व्यावसायिक सुविधादाताओं को संबद्ध करना नहीं है, अत: ऊपर निर्दिष्ट सेवाओं में सहायता के लिए उपर्युक्त मध्यवर्ती संस्थाओं का उपयोग करने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमोदन प्राप्त करना अपेक्षित नहीं है।

3. व्यावसायिक संपर्ककर्ता का प्रतिमान : पात्र संस्थाएं और गतिविधियों की व्याप्ति

3.1 "व्यावसायिक संपर्ककर्ता" के प्रतिमान के अंतर्गत, सोसाइटी/न्यास अधिनियमों के अंतर्गत स्थापित गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ)/व्यष्टि वित्त संस्थाएं ((एमएफआई), राज्यों के पारस्परिक आधार पर सहायता-प्राप्त सहकारी समितियां अधिनियमों अथवा सहकारी समितियां अधिनियमों के अंतर्गत पंजीकृत समितियां, धारा 25 कंपनियां, जनता से जमा स्वीकार न करनेवाली पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां और डाक घर व्यावसायिक प्रतिनिधियों के रूप में कार्य कर सकते हैं। ग्रामीण ऋण और व्यष्टि-वित्त से संबंधित मुद्दों की जाँच करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नियुक्त आंतरिक दल (जुलाई -2005) की रिपोर्ट (भारिबैं. की वेबसाइट : www.rbi.org.in. पर उपलबध) के संलग्नक 3.2 में दिए गए निर्देशक मानदंडों को ध्यान में रखते हुए बैंक ऐसी संस्थाओं के संबंध में अच्छी तरह से उचित सावधानी बरतें। ऐसी मध्यवर्ती संस्थाओं को व्यावसायिक संपर्ककर्ताओं के रूप में लगाने से पहले बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे सुस्थापित हैं, उनकी अच्छी प्रतिष्ठा है तथा स्थानीय जनता का उनमें विश्वास है। बैंक व्यावसायिक संपर्ककर्ताओं के रूप में अपने द्वारा लगायी गयी मध्यवर्ती संस्था के बारे में उस क्षेत्र में व्यापक प्रचार करें तथा अपने को गलत रूप प्रस्तुत किए जाने से बचने के लिए उपाय करें।

3.2 व्यावसायिक सुविधादाता प्रतिमान के अंतर्गत सूचीबद्ध गतिविधियों के अतिरिक्त, व्यावसायिक संपर्ककर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कार्यकलापों में सम्मिलित होंगे (व) छोटे मूल्य के ऋण का संवितरण, (वव) मूलधन की वसूली/ब्याज का संग्रहण (ववव) छोटे मूल्य की जमाराशियों का संग्रहण (वख्) व्यष्टि बीमा/पारस्परिक निधि उत्पादों /पेंशन उत्पादों /अन्य तीसरे लक्ष के उत्पादों की बिक्री तथा (ख्) छोटे मूल्य के विप्रेषणों/अन्य भुगतान लिखतों की प्राप्ति और वितरण।

3.3 व्यावसायिक संपर्ककर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कार्यकलाप बैंक के बैंकिंग व्यवसाय की सामान्य प्रक्रिया के भीतर होंगे, परंतु ऊपर निर्दिष्ट संस्थाओं द्वारा उक्त कार्यकलाप बैंक परिसर से भिन्न स्थानों पर संचालित होंगे। तदनुसार जनहित में व्यष्टि-वित्त के लिए बैंकों की पहुंच का दायरा बढ़ाने के उद्देश्य को और कारगर बनाने के लिए, रिज़र्व बैंक इसके द्वारा बैंकों को व्यावसायिक संपर्ककर्ताओं के रूप में ऊपर पैरा 3.1 में निर्दिष्ट संस्थाओं का उपयोग करने हेतु एक योजना बनाने की अनुमति देता है।

बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तैयार कर लागू की गई योजना में इस परिपत्र में निहित उद्देश्यों तथा मापदंडों का कड़ाई से अनुपालन किया गया है।

4. व्यावसायिक सुविधादाताओं और संपर्ककर्ताओं की सेवाएँ प्राप्त करने के लिए कमीशन/शुल्क का भुगतान

व्यावसायिक सुविधादाताओं/संपर्ककर्ताओं को बैंक यथोचित कमीशन/शुल्क का भुगतान कर सकते हैं, इसकी दर और मात्रा की समय-समय पर समीक्षा की जाए। रिज़र्व बैंक के 1 जुलाई 2005 के मास्टर परिपत्र बैंपविवि . डीआईआर. 5/13.07.00/2005-06 को उस सीमा तक संशेाधित माना जाए। व्यावसायिक सुविधादाताओं /संपर्ककर्ताओं के साथ दिए गए करार में उन्हें बैंक की ओर से सेवाएँ प्रदान करने के लिए ग्राहकों से कोई शुल्क आदि लेने से स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

5. व्यावसायिक सुविधादाताओं तथा संपर्ककर्ताओं की सेवाएं प्राप्त करने के लिए अन्य शर्तें

5.1 व्यावसायिक सुविधादाताओं तथा संपर्ककर्ताओं के रूप में मध्यस्थों की सेवाएं प्राप्त करने में महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा विधिक तथा परिचालनगत जोखिम शामिल हैं, अत: बैंकों को इन जोखिमों को पूरी तरह ध्यान में रखना चाहिए। किफॅायती रूप से इसे सुलभ कराने के अलावा जोखिम प्रबंधन के लिए बैंकों को टेकनोलॉजी आधारित समाधान को अपनाने का प्रयास करना चाहिए। अपनी योजनाओं को तैयार करते समय बैंकों को खान ग्रुप रिपेार्ट में की गई सिफारिशों रखना चाहिए और 6 दिसंबर 2005 को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी की गई आउट सोर्सिंग दिशा-निर्देश के प्रारूप को भी ध्यान में रखना चाहिए। ये रिज़र्व बैंक की वेबसाइट : www.rbi.org.in पर उपलब्ध है।

5.2 व्यावसायिक संपर्ककर्ताओं के साथ व्यवस्थाओं में निम्नलिखित स्पष्ट होना चाहिए :

(क) मध्यस्थों द्वारा नकदी धारिता पर उचित सीमा तथा व्यैक्तिक ग्राहक भ्ुागतान और प्राप्तियों पर भी सीमाएं ,

(ख) बैंक की बहियों में दिन की समाप्ति पर या अगले कार्य दिवस को लेनदेनों को लेखाबद्ध करने तथा दर्शाने की आवश्यकता, तथा

(ग) ग्राहकों के साथ किए जाने वाले सभी करारों /संविदाओं में यह स्पष्ट दर्शाया जाएगा कि व्यावसायिक सुविधादाता/संपर्ककर्ता की भूल-चूक वे लिए बैंक जिम्मेदार होगा।

6. व्यावसायिक सुविधादाताओं/संपर्ककर्ताओं द्वारा दी गयी सेवा के संबंध में शिकायतों का निवारण

(क) व्यावसायिक सुविधादाताओं/संपर्ककर्ताओं द्वारा प्रदान की गयी सेवाओं के संबंध में शिकायतों के निवारण हेतु बैंकों को बैंक में शिकायत निवारण प्रणाली का गठन करना चाहिए और इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के जरिए इसका व्यापक प्रचार करना चाहिए। बैंक के पद नामित शिकायत निवारण अधिकारी के नाम तथा संपर्क नंबर की जानकारी दी जानी चाहिए और बड़े पैमाने पर उसका प्रचार किया जाना चाहिए। पद नामित अधिकारी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ग्राहकों की प्रामाणिक शिकायतों का निवारण तुरंत किया जाता है ।

(ख) बैंक की शिकायत निवारण क्रियाविधि और शिकायतों को उत्तर देने हेतु निश्चित की गयी समय सीमा बैंक के वेबसाइट पर दी जानी चाहिए।

(ग) किसी शिकायतकर्ता को शिकायत दर्ज करने की तारीख से 60 दिनों के भीतर बैंक से यदि संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता है तो अपनी शिकायतों के निवारण हेतु संबंधित बैकिंग लोकपाल कार्यालय जाने का उसके पास विकल्प होगा ।

7. अपने ग्राहक के जानिए (केवाइसी) के मानदंडों का अनुपालन

अपने ग्राहक को जानिए के मानदंडों का अनुपालन करने की जिम्मेदारी बैंकों पर जारी रहेगी। चूंकि अल्पसुविधाप्राप्त और बैंक सुविधा रहित क्षेत्र की जनता के बचत तथा ऋण सुविधा प्रदान करना उद्देश्य है, इसलिए बैंक अपने ग्राहक को जानिए के संबंध में समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों के मापदंडों के भीतर लचीला दृष्टिकोण अपनाएं। दिनांक 29 नवंबर 2004 और 23 अगस्त 2005 के हमारे परिपत्रों के जरिए जारी किए गए अपने ग्राहक को जानिए संबंधी दिशा-निर्देशों में बैंकों के लिए पर्याप्त रूप में लचीलेपन का प्रावधान किया गया है। ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसके संबंध में अपने ग्राहक को जानिए कार्रवाई की गयी हो से परिचय के अलावा बैंक मध्यवर्ती व्यक्ति से जारी पहचान प्रमाणपत्र पर भी निर्भर हो सकते हैं जैसे किे बैंकिंग संपर्ककर्ता, खंड विकास अधिकारी (बीडीओ), ग्राम पंचायत के प्रमुख संबंधित डाक घर का पोस्ट मास्टर या बैंक को ज्ञात कोई अन्य सार्वजनिक संस्था ।

भवदीय

(पी. विजय भास्कर)

मुख्य महाप्रबंधक

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