वित्तीय समावेशन निधि (एफआईएफ) – संशोधित दिशानिर्देश - आरबीआई - Reserve Bank of India
वित्तीय समावेशन निधि (एफआईएफ) – संशोधित दिशानिर्देश
आरबीआइ/2015-16/206 15 अक्तूबर 2015 मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदया/महोदय, वित्तीय समावेशन निधि (एफआईएफ) – संशोधित दिशानिर्देश जैसाकि आप जानते हैं वित्तीय समावेशन निधि (एफआईएफ) और वित्तीय समावेशन तकनीकी निधि (एफआईटीएफ) का गठन वर्ष 2007-08 में पांच साल के लिए ₹ 500 करोड़ रुपये के कारपस के साथ किया गया था। इस निधि में भारत सरकार, रिज़र्व बैंक और नाबार्ड द्वारा 40:40:20 के अनुपात से अंभिदान किया जाता है। भारत सरकार ने इस निधि से संबंधित दिशानिर्दश को तैयार किया था। आरबीआई ने अप्रैल 2012 में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को कम उधार देने की वजह से आरआईडीएफ और एसटीसीआरसी जमा खातों में जमा हुए विभेदक ब्याज के अतिरिक्त 0.5% को एफआईएफ निधि में अंतरण करने का निर्णय लिया था। 2. इतने वर्षों में हुए विभिन्न प्रगतियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने एफआईएफ और एफआईटीएफ का विलयन करके वित्तीय समावेशन निधि का गठन किया है। रिज़र्व बैंक ने भारत सरकार के साथ परामर्श करके नई एफआईएफ के कार्यकलापों के नए कार्यक्षेत्र और उपयोगिता के दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया है। भारत सरकार द्वारा पुनगर्ठित इस नई एफआईएफ का नियंत्रण परामर्श बोर्ड द्वारा किया जाएगा तथा नाबार्ड द्वारा रखरखाव किया जाएगा। 3. नई वित्तीय समावेशन निधि के संशोधित दिशानिर्देश आपकी सूचना के लिए संलग्न किया गया है। भवदीया, (सुमा वर्मा) वित्तीय समावेशन निधि – दिशानिर्देश 1. निधि का गठन 1.1 प्रारंभिक पांच वर्ष के समापन के बाद अब यह निर्णय लिया गया है कि वित्तीय समावेशन निधि और वित्तीय समावेशन तकनीकी निधि को एकल निधि नामत: वित्तीय समावेशन निधि (एफआईएफ) में परिवर्तित किया जाए। 1.2 नई एफआईएफ की शुरूआत समग्र कार्पस ₹ 2000 करो़ड़ के कार्पस से होगा। एफआईएफ में नाबार्ड में रखे गए आरडीएफ और एसटीसीआरसी खाते में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र में कम उधार देने की वजह से हुए 0.5% के अतिरिक्त ब्याज विभेदक को अभिदान में रूप में दिया जाएगा। (आरबीआई द्वारा समय-समय पर अधिसूचित) 1.3 पूर्व एफआईटीएफ के सभी आस्तियां व देयताएं तथा मंज़ूर की गई परियोनाओं के लिए देय सभी राशि जो पूर्व निधि के दायरे में आती हैं, एफआईएफ निधि खाते में अंतरित /प्रतिपूर्ति की जाएगी। 1.4 इस निधि की परिचालन अवधि तीन वर्ष के लिए या ऐसी अवधि तक होगी जिसके संबंध में अन्य स्टेक होल्डरों के साथ परामर्श करके रिज़र्व बैंक और भारत सरकार द्वारा निर्णय लिया जाएगा। 2. एफआईएफ का उद्देश्य: एफआईएफ का उद्देश्य विकासात्मक और संवर्धनात्मक कार्यकलापों को समर्थन प्रदान करना, जिनमें देशभर में वित्तीय समावेशन (एफआई) का बुनियादी ढा़ंचा तैयार करना, स्टेक होल्डरों का क्षमता-वर्धन करना, मांग पक्ष के मुद्दों को समाधान करने के लिए जागरूकता पैदा करना, हरित सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) समाधान में निवेश की मात्रा बढा़ना, प्रौद्योगिकी का अनुसंधान व हस्तांतरण, वित्तीय समावेशन में बेहतरी लाने की दृष्टि से वित्तीय सेवा प्रदाताओं/प्रयोक्ताओं की प्रौद्योगिकीय ग्रहण क्षमता को बढ़ावा आदि शामिल है। इस निधि का उपयोग सामान्य कारोबार/बैंकिंग कार्यकलापों के लिए नहीं किया जाएगा। 2.1 भारतीय रिज़र्व बैंक ने हमेशा वित्तीय समावेशन को कारोबार प्रस्ताव के रूप में देखा है। अत: भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों को प्रोत्साहित किया है कि वित्तीय समावेशन में शामिल होने वाली लागत को दीर्घावधि निवेश के रूप में समझा जाए जो भविष्य में बैंक के लिए अपने बैंकिंग कारोबार के विस्तार में सहायक सिद्ध होगा। आरबीआई ने यह भी माना है कि ईको-सिसटम के सृजन के लिए विनयामकीय और सरकार की ओर से हस्तक्षेप अपेक्षित है ताकि इस क्षेत्र में बैंकों द्वारा किए जाने वाले निवेश के अवसर को बढाया जा सके। वित्तीय समावेशन निधि का सृजन और इसे जारी रखना इसी मंतव्य को स्पष्ट करता है। 2.2 आरबीआई के नीतिगत घोषणा के आधार पर बैंकिंग सुविधा रहित क्षेत्रों में बैंकिंग की सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए बैंकों ने सूचना और संप्रेषण प्रौद्योगिकी – कारोबार प्रतिनिधि मॉडल को बडे पैमाने पर अपनाया। आईसीटी-बीसी मॉडल जोकि पारंपरिक ब्रिक एंड मोटार मॉडल की तुलना में एक निम्न लागत वाला कारोबार मॉडल होने के बावजूद भी बैंकों और अन्य वित्तय संस्थाओं द्वारा इसमें निवेश किए जाने के लिए काफी गुंजाइश है। 2.3 पिछले पांच वर्ष के दौरान बैंकों ने एक ऐसा बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया है, जिसके परिणामस्वरूप बैंकिंग सुविधा रहित क्षेत्रों में बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराने के लिए बडी संख्या में कारोबार प्रतिनिधियों (बीसी) की नियुक्ति हुई है और बैंक के नए ग्राहकों के लिए बडी संख्या में बुनियादी बैंक खाते खोले जा रहे हैं। किंतु इन खातों में काफी मात्रा में लेनदेन नहीं हुई और बैंकों को इस प्रकार के निवेश में लाभ नहीं हुआ। इससे कारोबार अवसर कम हो गए थे और आमदानी में कमी आ गई थी जिसकी वजह से बीसी प्रतिनिधियों में कमी आ गई थी। बीसी मॉडल को प्रभावित करने वाले मुद्दे थे – बुनियादी संरचना के मामले में जैसे उचित कनेक्टिविटी, बीसी प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण सुविधा की कमी, उचित कारोबार मॉडल आदि का न होना आदि। इस नई एफआईएफ का उद्देश्य इन प्रमुख वित्तीय समावेशन की समस्याओं का समाधान करना होगा जिससे वित्तीय समावेशन हेतु किए जाने वाले हमारे प्रयासों में वृद्धि होगी। 2.4. इन सभी के फलस्वरूप वित्तीय समावेशन निधि के माध्यम से वित्तीय समावेशन से संबंधित गतिविधियों के लिए वित्तपोषण करने की नई सोच उभरी। 3. पात्र कार्यकलाप/ उद्देश्य 3.1 वित्तीय समावेशन और वित्तीय साक्षारता केंद्रों को स्थापित करने हेतु निधि सहायता और उसे चलाने के लिए परिचालन खर्च हेतु सहायता। इस प्रकार के केंद्रों की स्थापना भारत सरकार द्वारा पीएमजेडीवाई के अधीन ब्लॉक स्तर तक वित्तीय साक्षरता केंद्रों को स्थापित करने के उद्देश्य से मिलता-जुलता है। वित्तीय समावेशन और साक्षरता केंद्रों को चलाने के लिए बैंकों द्वारा नियोजित तकनीकी मानवशक्ति की लागत को (बैंकों के पास मानवशक्ति की कमी होने की वजह से) इस निधि से निधिबद्ध किया जाएगा। इन केंद्रों के द्वारा किए जाने वाले कार्य के विषय क्षेत्र निम्न प्रकार है। (ए) क्षेत्र के सभी व्यक्तियों/ परिवारों को वित्तीय साक्षरता का प्रशिक्षण दिया जाना। (बी) बैंक खाता खोलने और खाते के परिचालन करने तथा अन्य वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के संदर्भ में परामर्श सेवा दिया जाना। (सी) विभिन्न बैंकिंग एवं अन्य वित्तीय उत्पादों एवं सेवाओं के संदर्भ में बीसी को प्रशिक्षण दिया जाना और ग्राहकों को सुचारू रूप से सेवाओं की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी उपकरण के प्रयोग हेतु प्रशिक्षण दिया जाना। (डी) ग्राहकों की शिकायतों पर ध्यान देते हुए ग्राहक शिकायत का निवारण, यदि आवश्यक है तो मामले को बैंक तथा अन्य संस्थाओं के ध्यान में लाया जाना। 3.2 ग्राम पंचायत में स्टैंडर्ड संवादात्मक वित्तीय साक्षारता किओस्क की स्थापना और अब तक शामिल न हुए क्षेत्रों में बैंकों द्वारा किसी अन्य प्रकार से वित्तीय साक्षारता फैलाने का प्रयास। 3.3 आरएसईटीआई समेत (राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध न कराने की स्थिति में) व्यापार एवं क्षमता विकास केंद्रों को चलाने के लिए नाबार्ड तथा बैंकों को सहायता प्रदान किया जाना ताकि आय सृजित करने वाले कार्यकलाप के लिए आवश्यक क्षमता प्रदान कर सकें और विपणन कार्यकलाप के लिए फोर्वेड लिंकेज उपलब्ध करा सकें। यह अनुदान एक प्रकार से तीन साल की अवधि के लिए एकमुश्त पूंजी लागत और तीन साल की अधिकतम अवधि के लिए क्षमता विकास कार्यकलाप हेतु कार्यशील पूंजी है। इस प्रकार के केंद्रों को चलाने में लगे हुए कार्पोरेट, एनजीओ जैसे संस्थाओं में भागीदारी करने का निर्णय नाबार्ड तथा बैंक ले सकते हैं, फिर भी एफ़आईएफ़ से निधि सहायता का प्रस्ताव बैंक तथा नाबार्ड की ओर से आने पर ही उस पर विचार किया जाएगा। 3.4 वित्तीय समावेशन के लिए नवीन उत्पादों, प्रोसेसस, प्रोटोटाईप आदि के विकास के लिए प्रारंभिक परियोजना हेतु सहायता। इस प्रकार के उत्पाद और प्रोटोटाईप हेतु प्रस्ताव को कार्यान्वित करने वाले किसी बैंक के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना है। 3.5 वित्तीय समावेशन की प्रगति के मूल्यांकन के लिए सर्वेक्षण आयोजित करने हेतु प्राधिकृत एजंसियों को वित्तीय सहायता। 3.6 अब तक शामिल न हुए क्षेत्रों में लास्ट माईल फाईबार ओप्टिक नेटवर्क डालना, नेटवर्क कनेक्टिविटी के सृजन या सुधार के लिए लगे हुए मूलभूत सुविधा में या प्रौद्योगिकी संबंधी परियोजनाओं के लिए निधि प्रदान करते हुए सरकारी परियोजनाओं के लागत को शेयर करना। 4. पात्र संस्थाएं 4.1 वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी बैंक और नाबार्ड जैसे वित्तीय संस्थाएं। 4.2 एफ़आईएफ़ से सहायता की मांग करने के लिए बैंक जिन पात्र संस्थाओं के साथ कार्य कर सकते हैं
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