वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह केद्र (एफएलसीसी) - मॉडल योजना - आरबीआई - Reserve Bank of India
वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह केद्र (एफएलसीसी) - मॉडल योजना
भारिबैं / 2008-09/371 |
ग्राआऋवि.केका.एमएफएफआइ.बीसी.सं. 86/12.01.18/2008-09 |
4 फरवरी 2009 |
अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक / मुख्य कार्यपालक अधिकारी |
महोदय / महोदया, |
वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह केद्र (एफएलसीसी) - मॉडल योजना |
रिज़र्व बैंक द्वारा कृषि ऋण की क्रियाविधियों और प्रक्रियाओं की जांच करने के लिए गठित कार्यकारी दल (अध्यक्ष : श्री सी.पी.स्वर्णकार ) ने अपनी रिपोर्ट (अप्रैल 2007) में यह सिफारिश की थी कि बैंकों को ऋण और प्रौद्योगिकी सलाह के लिए स्वयं अथवा अन्य सभी संसाधनों को मिलाकर सलाह केद्र खोलने पर सक्रिय रूप से विचार करना चाहिए। इससे किसान अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों से ज्यादा वाकिफ होंगे। साथ ही, विपत्तिग्रस्त किसानों को सहायता देने के लिए उपाय सुझाने हेतु रिज़र्व बैंक द्वारा गठित पहले के कार्यकारी दल(अध्यक्ष: श्री एस.एस.जॉल) ने भी यह सुझाव दिया था कि ऋण की व्यवहार्यता बढ़ाने में वित्तीय और आर्थिक सलाह महत्वपूर्ण है। उपर्युक्त कार्यकारी दलों की सिफारिशों के आधार पर तथा वर्ष 2007-08 के वार्षिक नीति वक्तव्य में की गई घोषणा के अनुसार रिज़र्व बैंक ने 10 मई 2007 को राज्य स्तरीय बैंकर समिति के संयोजक बैंकों को सूचित किया था कि वे अपने कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आनेवाले राज्य / संघ शासित क्षेत्र के किसी भी एक जिले में प्रायोगिक आधार पर वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह केंद्र (एफएलसीसी) खोलें तथा प्राप्त अनुभव के आधार पर अग्रणी बैंक अन्य जिलों में सलाह केद्र स्थापित करें। |
2. वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा की घोषणा के फलस्वरुप एफएलसीसी पर एक अवधारणा पेपर रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर रखा गया तथा जनता और सलाह केद्र शुरू करने वाले बैंकों से भी अभिमत प्राप्त हुए। अभिमतों से यह पाया गया कि : |
1.कुछेक को छोड़कर, अधिकांश केद्र निर्धारित भूमिका नहीं निभा रहे थे तथा बैंक के उत्पाद को बढ़ावा देना, निवेश सलाह प्रदान करना आदि कार्य कर रहे थे। 2. अधिकांश केद्रों का नियंत्रण बैंक स्टाफ द्वारा ही किया जाता था जो अपनी सामान्य ड्यूटी के अलावा सलाहकार के रूप में कार्य करते थे जिससे हित का टकराव उत्पन्न होता था। 3.सलाहकारों को वित्तीय प्रबंधन में कोई औपचारिक जानकारी या व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान नहीं किया गया था। |
उपर्युक्त से यह आवश्यक हो गया है कि वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह केंद्रों की अवधारणा और अपेक्षाओं को स्पष्ट किया जाए। तदनुसार, "वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह केद्र" के लिए एक मॉडल योजना तैयार की गई है जो अनुबंध में संलग्न है। 3. वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह पहल को सफल बनाने हेतु यह आवश्यक है कि उसकी अवधारणा का व्यापक बोध कराया जाए और उससे महत्वपूर्ण है, बैंकों को ऐसी पहल के समग्र लाभों से अवगत कराया जाए। यह जरूरी है कि इस पहल में बैंकों के उच्च प्रबंधन को पूर्ण रूप से सम्मिलित किया जाए। 4. सलाह केद्र जो बैंकों द्वारा समर्थित / समर्थन के लिए प्रस्तावित हैं उन्हें संलग्न मॉडल योजना के अनुरूप होना चाहिए ताकि ऐसे केद्र स्थापित करने का उद्देश्य प्राप्त किया जा सके। 5. कृपया प्राप्ति - सूचना दें। |
भवदीय |
( बी.पी.विजयेद्र ) |
मुख्य महाप्रबंधक |
अनु |
6 पृष्ठ |
अनुबंध
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वित्तीय साक्षरता और सलाह केद्र (एफएलसीसी) - मॉडल योजना |
1. उद्देश्य |
एफएलसीसी का व्यापक उद्देश्य मुप्त वित्तीय साक्षरता / शिक्षा और ऋण सलाह उपलब्ध कराना होगा । एफएलसीसी के प्रमुख उद्देश्य निम्नानुसार होंगे : |
2. औपचारिक वित्तीय क्षेत्र में उपलब्ध विभिन्न वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के बारे में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लोगों को शिक्षित करना; 3. लोगों को औपचारिक वित्तीय क्षेत्र के साथ जुड़ने के फायदों से अवगत कराना; 4. विपत्तिग्रस्त उधारकर्ताओं के लिए ऋण पुनर्गठन योजनाएं तैयार करना और को-ऑपरेटिव सहित औपचारिक वित्तीय संस्थानों के विचारार्थ उनकी सिफारिश करना। 5. ऐसे कार्य-कलाप करना जो वित्तीय साक्षरता, बैंकिंग सेवाओं के प्रति जागरुकता, वित्तीय आयोजना को बढ़ाते हें और किसी व्यक्ति की ऋण संबंधी विपत्ति को कम करते हों। |
तथापि, एफएलसीसी को किसी बैंक विशेष के निवेश सलाह केद्र / उत्पादों के विपणन केद्र के रूप में काम नहीं करना चाहिए। सलाहकार को मार्केटिंग से तथा जीवन बीमा, पालीसियों / प्रतिभूतियों में निवेश, प्रतिभूतियों के मूल्य, प्रतिभूतियों के क्रय/विक्रय आदि के बारे में सलाह देने या केवल बैंक के अपने उत्पादों में निवेश बढ़ाने आदि कार्यों से बचना चाहिए। |
2. संगठनात्मक / प्रशासनिक संरचना |
आरंभ में, एफएलसीसी चलाने के लिए बैंक अकेले या अन्य बैंकों के साथ संयुक्त रूप से ट्रस्ट/सोसाइटियां स्थापित कर सकते हैं। बैंक ऐसे ट्रस्ट/सोसाइटी के बोर्ड पर सम्मानित स्थानीय नागरिकों को शामिल कर सकते हैं। सर्विंग बैंकरों को बोर्ड में शामिल नहीं किया जाए। ट्रस्ट में वरिष्ठ नागरिकों का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए।शुरूआत के तौर पर एफएलसीसी को सारी निधि बैंक देंगे । |
सलाह केद्र मूल बैंक के साथ अपने संबंधों में थोड़ी दूरी बनाए रखेंगे तथा अधिमानत: बैंक परिसर में स्थित नहीं होंगे। ऐसा इस बात का संकेत देने से बचने के लिए होगा कि केद्र बैंक का ही एक भाग है। केद्रों को अपने मूल बैंक के उत्पादों का प्रचार नहीं करना चाहिए। प्रारंभ में, लागत को कम करने के लिए यदि बैंक परिसर का उपयोग किया जाता है तो एफएलसीसी की पहचान को उसके मूल बैंक से अलग रखने के लिए उसे अलग प्रवेश द्वार और बैंक शाखा से भिन्न रंग-रूप के साथ पूर्णत: अलग रखा जाए। बैंक ऐसे ट्रस्टों/सोसाइटियों का कारगर पर्यवेक्षण और निगरानी करने के लिए डमी कॉल करें या उनका बहुरूपिया वेश में दौरा करें।
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यह आवश्यक है कि इन केद्रों को संबंधित बैंक का वसूली या मार्केटिंग एजेन्ट न समझा जाए तथा आम जन/बैंक के ग्राहक इन केद्रों में स्वेच्छा से जाने में सहजता महसूस करें। सलाह केद्रों की स्वायत्तता सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि ग्राहकों को गैर पक्षपातपूर्ण और उद्देश्यपरक मार्गदर्शन प्रदान किया जा सके। |
3. व्याप्ति |
यद्यपि, ग्रामीण, अर्धशहरी और महानगरीय क्षेत्रों में ऋण सलाह संबंधी सेवाएं दी जा सकती हैं, तथापि, बैंक मोटे तौर पर सामान्यीकृत उधारकर्ताओं के बजाय विभिन्न श्रेणियों के उधारकर्ताओं के लिए घटकवार विशिष्ट दृष्टिकोण अपनाएं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में स्थित केद्र किसान समुदायों और कृषि सहबद्ध कार्यकलापों में लगे लोगों के लिए वित्तीय साक्षरता और सलाह पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। महानगरों / शहरों में स्थित केद्र उन लोगों पर ध्यान केद्रित करें जो क्रेडिट कार्डों, वैयक्तिक ऋणों, आवास ऋणों के अतिदेयों में फंस गए हैं। प्रारंभिक चरण में, अपने नेटवर्क और अपनी पहुंच पर विचार करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जबकि निजी और विदेशी बैंक शहरी क्षेत्रों में सलाह केद्र स्थापित करने पर विचार कर सकते हैं।
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व्यापक कवरेज के लिए, सभी स्तरों पर अर्थात् खंड, जिला, नगर और शहर के स्तर पर एफएलसीसी स्थापित करना जरूरी है। एसएलबीसी, सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र के बैंकों के साथ चर्चा करके उनके साथ तालमेल बिठाकर चरणबद्ध तरीके से विभिन्न स्तरों पर एफएलसीसी स्थापित करने की योजना बनाएं। तथापि, शुरूआत के तौर पर, अग्रणी बैंक जिला मुख्यालयों में एफएलसीसी स्थापित करने के बारे में आवश्यक कदम उठाएं। एसएलबीसी, एफसलसीसी की गतिविधियों की निगरानी कर सकती है तथा जहां आवश्यक हो, सहायता और मार्गदर्शन कर सकती है। एफएलसीसी जानबूझकर चूक करनेवाले मामले न स्वीकारें। |
4. ग्राहकों को सलाह और ऋण प्रबंधन की सेवाएं निशुल्क प्रदान की जाएं ताकि गाहकों पर उसका और अधिक भार न पड़े। |
5. बुनियादी सुविधाएं |
पर्याप्त रूप से संचार माध्यमों और नेटवर्क जैसी बुनियादी सुविधाएं बैंक प्रदान करेंगे। ग्राहकों के साथ हुई चर्चा के संबंध में प्राइवेसी / गोपनीयता बनाए रखने के लिए अलग कक्ष बनाए जा सकते हैं।
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6. ऋण संबंधी सलाह के प्रकार |
ऋण संबंधी सलाह बचावात्मक और सुधारात्मक दोनों प्रकार की हो सकती है। बचावात्मक सलाह के मामले में, केद्र ऋण की लागत, बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेजेस की उपलब्धता आदि की जानकारी दे सकते हैं। ग्राहक को उसकी चुकौती क्षमता के आधार पर ऋण लेने को प्रोत्साहित किया जा सकता है। बचावात्मक सलाह मीडिया, कार्यशालाओं और सेमिनारों के माध्यम से दी जा सकती है। |
एफएलसीसी स्थानीय भाषा में सामान्य वित्तीय शिक्षा मॉड्युल आरंभ करने पर विचार कर सकते है। मोटे तौर पर मॉड्युल की विषय-वस्तु में बचत की आवश्यकता, बजेटिंग, औपचारिक वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त होने वाले बैंकिंग लाभ, जोखिम और अलंकरण की अवधारणा, पैसे का सामयिक मूल्य, बैंकों / बीमा कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले विभिन्न उत्पाद, आदि को शामिल किया जा सकता है। मॉड्युल में जमाराशियों और अन्य वित्तीय उत्पादों, बचत बैंक खातों, सावधि जमाराशियों पर ब्याज की गणना की पद्धति और कंपाउंडिंग पद्धति से संबधित पहलुओं को शामिल किया जा सकता है। मॉड्युल में पैसे का सामयिक मूल्य पर जोर दिया जा सकता है। |
चूंकि जागरुकता प्रदान करना इसका प्राथमिक उद्देश्य है, इसलिए एफएलसीसी को चाहिए कि वे उचित संव्यवहार संहिता, नामांकन सुविधाओं के लाभ, खातों का परिचालन आदि के अंतर्गत ग्राहकों के अधिकारों पर उचित जोर दें। |
सुधारात्मक सलाह के मामले में, ग्राहक अपने नियंत्रित ऋण संविभाग की सुव्यवस्था के लिए वैयक्तिक ऋण प्रबंध योजना तैयार करने हेतु सलाह केद्र से संपर्क कर सकते हैं। इसलिए, केद्र कारगर ऋण पुनर्गठन योजना तैयार कर सकते हैं जिसमें, यदि आवश्यक हो तो, शाखा प्रबंधक के परामर्श से अनौपचारिक स्रोतों को ऋण की चुकौती को शामिल किया जा सकता है। |
वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह केद्र आय स्तर और उसकी ऋण की मात्रा के आधार पर प्रत्येक उधारकर्ता के लिए बचावात्मक सलाह अधिदेशात्मक कर देना चाहिए। इस प्रकार की अधिदेशात्मक ऋण-सलाह, बैंक के ऋण संव्यवहार का एक भाग हो सकती है। |
जबकि एफएलसीसी केद्र वित्तीय साक्षरता और ऋण सलाह प्रदान करेंगे विपत्ति ग्रस्त उधारकर्ता परिवारों की आय / ऋण चुकौती की क्षमता को बढ़ाने के लिए ग्रामीण विकास और रोजगार प्रशिक्षण संस्थाओं (रूडिसेटी) के कार्यकलाप एफएलसीसी द्वारा किए गए उपायों के तालमेल के साथ कौशल उन्नयन / क्षमता निर्माण के प्रति होंगे। |
7. ऋण परामर्श और ऋण निपटान तंत्र |
बैंक अपने विपत्तिग्रस्त ग्राहकों और किसी भी बैंक के ग्राहकों को उनके द्वारा स्थापित एफएलसीसी से संपर्क करने के लिए प्रोत्साहित करें । बैंक, जहां उन्हें पूर्व चेतावनी के संकेत मिले हों, वसूली के उपाय आरंभ करने से पहले, मामलों को सलाह केद्रों को संदर्भित करने के उत्प्रेरक बिन्दु बनाएं। समय पर हस्तक्षेप से, उधारकर्ता की वित्तीय स्थिति को और बिगड़ने से रोकने में सहायता मिलेगी। |
सलाहकार को अधिदेशित किया जाए कि वह मामले बैंक को संदर्भित करे तथा विपत्तिग्रस्त किसानों के लिए ऋण प्रबंध योजना तैयार करे ताकि ऋण के पुनर्गठन/अवधि पुनर्निर्धारण में सुविधा हो। |
ग्रुप सलाह के लिए एफएलसीसी अपने केद्र में या विभिन्न स्थानों पर ओपन हाउस सेमिनार आयोजित करें। जिले में कार्यरत बैंक मुख्य रूप से उनके द्वारा कवर किए गए क्षेत्रों में पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से ऐसे सेमिनार प्रायोजित करें। |
एकल ऋणदाता ऋणों के मामले में, एफएलसीसी संबंधित बैंक के साथ बातचित (निगोशिएट) करने में उधारकर्ता की मदद कर सकते हैं। व्यक्तियों द्वारा लिए गए कई ऋणों के मामले में, एफएलसीसी बैंक / बैंकों के साथ जिन्हें ऋणों के पुनर्गठन की व्यापक जानकारी है, निगोशिएट कर सकते हैं और वसूलियों को समानुपातिक आधार पर वहन कर सकते हैं। इस प्रयोजन के लिए, और यदि आवश्यक समझा जाए तो, अपनी चिंताएं / ऋण के पुनर्गठन के प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए एफएलसीसी संबंधित बैंक / बैंकों के साथ एक संयुक्त बैठक आयोजित कर सकते हैं। एफएलसीसी द्वारा दिए गए सुझावों / प्रस्तावों की समीक्षा करके बैंक प्रस्ताव को उसके मूल रूप में या ऐसे संशोधित रूप में जिसे वे उचित समझें, स्वीकार करने के अपने स्वतंत्र और सुविचारित निर्णय लें। |
एफएलसीसी द्वारा सुझाए गए ऋण पुनर्गठन संबंधी प्रस्ताव को अंतत: स्वीकार करने या अस्वीकार करने का विकल्प संबंधित बैंक पर छोड़ दिया जाए। तथापि, एफएलसीसी द्वारा दिए गए पुनर्गठन संबंधी प्रस्तावों को यदि अस्वीकृत / नकारा जाता है तो वे पारदर्शिता के हित में, एफएलसीसी को उसके लिखित रूप में कारण बताएं।
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एफएलसीसी ऋण की वसूली और राशि के वितरण में अपने आपको शामिल नहीं करेंगे। यह कार्य संबंधित बैंक पर या उस बैंक पर छोड़ दिया जाए जिसे बैंकों की ओर से कार्य करने की व्यापक जानकारी है।
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8. सलाहकार की शैक्षिक अर्हता और प्रशिक्षण |
चूंकि विपत्तिग्रस्त वैयक्तिक उधारकर्ताओं की सहायता करने में एफएलसीसी को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है, इसलिए यह आवश्यक हैं कि केद्रों पर पूर्णकालिक सुशिक्षित / प्रशिक्षित सलाहकारों को नियुक्त किया जाए। कृषि और सहबद्ध कार्यकलापों से संबंधित परामर्श देने के लिए एफएलसीसी कृषि क्षेत्र का प्रमुख रूप से ज्ञान रखनेवाले व्यक्तियों को नियुक्त करने पर विचार करें। |
रूचि के टकराव से बचने के लिए यह सुनिश्चित किया जाए कि एफएलसीसी चलाने वाले व्यक्ति बैंक के स्टाफ न हों।
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सेवानिवृत्त बैंक अधिकारियों, भूतपूर्व सैनिकों, आदि को अन्यों के साथ-साथ ऋण सलाहकारों के रूप में नियुक्त किए जाने की अनुमति दी जाए। ऋण सलाहकारों को बैंकिंग, विधि, अपेक्षित संप्रेषण और टीम निर्माण कौशल की प्रचुर जानकारी होनी चाहिए।
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इस समय, ज्ञान और कौशल का उन्नयन मुख्यत: प्रत्येक सलाहकार की पहल पर निर्भर करता है। भर्ती के समय बैंकों द्वारा कुछ प्रशिक्षण दिया जाता है लेकिन उसका केद्र बिन्दु वित्तीय प्रबंध का पूर्ण पाठ्यक्रम न होकर प्रदान की जा रही सेवाएं होता है। सलाहकारों के लिए उचित प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन बहुत अनिवार्य होता है ताकि वे बैंकिंग उद्योग की ताजा गतिविधियों से स्वयं को अवगत रख सकें। सलाहकारों को निरंतर आधार पर प्रशिक्षण देना आवश्यक है ताकि वे अपने कौशल को अपडेट रख सकें।
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रिज़र्व बैंक का कृषि बैंकिंग महाव्लाय, पुणे, बैंकर्स ग्रामीण विकास संस्थान, लखनऊ या बैंकों के प्रशिक्षण महाविद्यालय सलाहकारों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयाजित करने पर विचार करें।
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9. इंटरफेस के प्रकार |
सलाह केद्र व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर किए गए या फोन, ई मेल, डाक आदि से प्राप्त अनुरोधों को निपटाने में सक्षम होना चाहिए। उससे आसानी से संपर्क किए जाने के लिए उसके पास टोल फ्री लाइन, ई-मेल और फैक्स सुविधाएं होनी चाहिए। सलाह केद्रों की पहुंच को दूर तक बढ़ाने के लिए जिलों के सभी खंडों में सेवाएं प्रदान करने हेतु मोबाइल युनिटें स्थापित की जानी चाहिए।
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10. निगरानी |
प्रत्येक राज्य में एलएफसीसी की कार्यपद्धति की निगरानी रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक की अध्यक्षता वाली समिति करेगी और उसकी प्रतिसूचना बैंकों को नियमित आधार पर सूचित की जाएगी। समिति में एसएलबीसी का आयोजक बैंक, अन्य बैंक, नाबार्ड, आइबीए, उपभोक्ता संगठन, उस क्षेत्र में कार्यरत एनजीओ, आदि होंगे। |
11. पारदर्शिता / जानकारी का प्रकटन |
सुविचारित निर्णय लेने में ग्राहकों की सहायता के लिए सभी बैंक रिज़र्व बैंक के दिनांक 3 नवंबर 2008 के परिपत्र डीबीओडी.सं. एलइजी.बीसी. 75/07.07.005/2008-09 में यथा निर्धारित शुल्कों, प्रभारों आदि के संबंध में आवश्यक जानकारी अपनी वेबसाइटों पर प्रदर्शित करें। बैंकों द्वारा खोले गए एफएलसीसी द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं के ब्योरे भी संबंधित बैंक की वेबसाइट पर रखे जाएं। |
12. प्रचार |
सभी संस्थाओं द्वारा जनता को विभिन्न योजनाओं / सुविधाओं की जानकारी देने पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए। सभी प्रचार माध्यमों जैसे कि प्रेस सम्मेलनों, कार्यशालाओं , प्रकाशनों, वेबसाइटों, रोड शोज़, मोबाइल यनिटो, गांव के मेलें आदि का सक्रिय रूप से उपयोग किया जाए। इस प्रयोजन के लिए सभी बैंकों द्वारा उचित बजट प्रदान किया जाना चाहिए। प्रचार के एक निरंतर उपाय के रूप में बैंक यह सुनिश्चित करें कि परामर्श केद्रों की सूची का उचित रूप से प्रचार किया जाता है।
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