RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S2

Notification Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

79055543

संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों

भारिबैं/2006-07/204
गैबैंपवि.नीति प्रभा./कंपरिप. सं. 86/03.02.089/2006-07

12 दिसंबर 2006

सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ
(जमा स्वीकार करने वाली और न स्वीकार करने वाली)

प्रिय महोदय

संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों
का वित्तीय विनियमन तथा बैंकों से उनका संबंध

कृपया वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि समीक्षा का पैराग्राफ 141(पैराग्राफ की प्रति अनुबंध के रूप में संलग्न) देखें।

2. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) वित्तीय सेवाओं की पहुँच को विस्तृत करने तथा वित्तीय क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और विविधता बढ़ाने में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। बैंकिंग प्रणाली के पूरक के रूप में उनकी पहचान बढ़ रही है। ये कंपनियाँ वित्तीय संकट के समय आघात सहने और जोखिम बाँटने की क्षमता रखती हैं। बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की गतिविधियों में भिन्न-भिन्न स्तरों के विनियमन लागू होने तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की विभिन्न श्रेणियों के लिए भी अलग-अलग विनियमन होने से विनियमन की असमान व्याप्ति के कारण कुछ मुद्दे उठे हैं। अतएव, भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय क्षेत्र में समान अवसर, विनियामक समरूपता और विनियामक अंतरपणन (आरबिट्राज) जैसे मुद्दों की जाँच करने के लिए एक आंतरिक समूह गठित किया था। आंतरिक समूह की सिफारिशों के आधार पर तथा उस पर प्राप्त हुई प्रतिसूचना को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया गया कि संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से (सिस्टमिकली) महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के समग्र वित्तीय विनियमन तथा बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संबंध से जुड़े मुद्दों के लिए एक संशोधित ढाँचा स्थापित किया जाए। तदनुसार बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से प्रतिसूचना प्राप्त करने के लिए प्रस्तावित दिशानिर्देश का प्रारूप 3 नवंबर 2006 के पत्र बैंपविवि. सं. एफएसडी. 556/ 24.01.02/2006-07 द्वारा जारी किया गया। प्राप्त हुई प्रतिसूचना के आधार पर प्रारूप दिशानिर्देशों में उपयुक्त संशोधन किए गए तथा इस संबंध में और सुझावों के लिए दिनांक 30 नवंबर 2006 के पत्र बैंपविवि. सं. एफएसडी. 5046/ 24.01.028/2006-07 द्वारा द्वितीय प्रारूप दिशानिर्देश जारी किए गए । प्रतिसूचना प्राप्त होने के बाद अब अंतिम दिशानिर्देश कार्यान्वयन करने के लिए जारी किए जा रहे हैं।

वर्तमान स्थिति : विवेकपूर्ण मानदंड

3. रिज़र्व बैंक ने जनवरी 1998 में एक नया विनियामक ढाँचा प्रारंभ किया जिसमें जमा स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए विवेकपूर्ण मानदंड लागू किए गए ताकि ये गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां स्वस्थ और सुचारु रूप से कार्य करें। विनियामक और पर्यवेक्षीय दृष्टि ‘जमा स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (एनबीएफसी -डी) पर केंद्रित थी ताकि रिज़र्व बैंक जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी निभा सके। एनबीएफसी-डी पर आय निर्धारण, परिसंपत्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण, पूंजी पर्याप्तता, विवेकपूर्ण एक्सपोज़र सीमाएँ तथा लेखांकन /प्रकटीकरण अपेक्षाओं जैसे कतिपय पहलुओं के संबंध में लागू विवेकपूर्ण विनियमन बैंक की तरह ही हैं। परंतु ‘जमा स्वीकार न करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (एनबीएफसी-एनडी) पर बहुत कम विनियमन लागू हैं।

4. इस प्रकार विवेकपूर्ण दिशानिर्देश/सीमाएँ बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी क्षेत्रों पर तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी क्षेत्र के भीतर भी एक समान रूप से लागू नहीं की गई हैं। विवेकपूर्ण दिशानिर्देश/मानदंड लागू करने के संबंध में स्पष्ट भिन्नता है जिनकी चर्चा नीचे की गई है :

  1. बैंकों पर आय निर्धारण, परिसंपत्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण मानदंड, पूंजी पर्याप्तता मानदंड, एकल और समूह उधारकर्ता सीमाएँ, पूंजी बाजार एक्सपोज़र पर विवेकपूर्ण सीमाएँ, निवेश संविभाग के लिए वर्गीकरण और मूल्य निर्धारण मानदंड, सीआरआर/एसएलआर अपेक्षाएं, लेखांकन और प्रकटीकरण मानदंड तथा पर्यवेक्षीय रिपोर्ट करने की अपेक्षाएं लागू हैं।
  2. एनबीएफसी - डी पर सीआरआर अपेक्षाओं और पूंजी बाज़ार एक्सपोज़र पर विवेकपूर्ण सीमाओं को छोड़कर बैंकों से मिलते-जुलते मानदंड लागू हैं। फिर भी, जहाँ ये मानदंड लागू होते हैं वहाँ वे बैंकों की तुलना में कम कड़ाई से लागू होते हैं। एनबीएफसी -डी द्वारा भूमि और भवनों तथा कोट न किए गए शेयरों में निवेश पर कुछ प्रतिबंध लागू हैं।
  3. पूंजी पर्याप्तता मानदंड, सीआरआर/एसएलआर अपेक्षाएं, एकल और समूह उधारकर्ता सीमाएँ, पूंजी बाजार जोखिम पर विवेकपूर्ण मानदंड तथा भूमि और भवन तथा कोट न किए गए शेयरों में निवेश पर प्रतिबंध एनबीएफसी -एनडी पर लागू नहीं हैं।
  4. कंपनियों द्वारा लिए गए प्रतिभूतिरहित उधार कंपनी अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों से विनियमित होते हैं। यद्यपि, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ कंपनी अधिनियम के दायरे में आती हैं किन्तु उन्हें उपर्युक्त नियमों से छूट दी गयी है क्योंकि वे भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के अंतर्गत रिज़र्व बैंक के विनियमन के अंतर्गत आती हैं। जहां एनबीएफसी -डी की उधार लेने की क्षमता सीआरएआर मानदंडों से एक सीमा तक सीमित होती है, वहीं एनबीएफसी -एनडी के लिए कोई प्रतिबंध नहीं है, भले ही वे वित्तीय सेवा क्षेत्र में हैं।

वर्तमान स्थिति : बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच वित्तीय संबंध

5. बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां परिसंपत्ति के पक्ष में मिलते-जुलते कारोबार के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां लीजिंग और हायर परचेज़, कार्पोरेट ऋण, अपरिवर्तनीय डिबेंचरों में निवेश, आईपीओ निधीयन, मार्जिन निधीयन, स्माल टिकट ऋण, उद्यम(वेंचर) पूंजी आदि उत्पाद/सेवाएँ प्रदान करती हैं। परंतु, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां परिचालनगत खाता सुविधाएं जैसे बचत और चालू जमा, नकद ऋण, ओवर ड्राफ्ट आदि प्रदान नहीं करती हैं।

6. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां अपने परिचालनों के लिए बैंक वित्त प्राप्त करती हैं जो अग्रिम के रूप में अथवा उनके द्वारा जारी डिबेंचरों और वाणिज्य पत्रों में बैंकों के अभिदान के रूप में होता है।

7. चूंकि बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां दोनों ही अधिकाधिक मिलते-जुलते कारोबार के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं, विशेषकर परिसंपत्ति पक्ष में और चूँकि दोनों की विनियमन संबंधी और लागत - प्रोत्साहन संरचनाएँ एक जैसी नहीं हैं, यह आवश्यक है कि ऐसे नियंत्रण और संतुलन (चेक एंड बेलेंस) स्थापित किए जाएँ जिससे बैंकों के जमाकर्ताओं पर अप्रत्यक्ष रूप से लागत - प्रोत्साहन संरचनाओं से उत्पन्न जोखिम का खतरा न हो जाए। अत: गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निम्न गतिविधियों के बैंक वित्तपोषण पर प्रतिबंध लगाये गये हैं :-

(i) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा भुनाए/पुनर्भुनाए गए बिल । इनमें गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा भुनाए गए ऐसे बिलों की पुनर्भुनाई शामिल नहीं है, जो निम्नलिखित की बिक्री से उत्पन्न हुए हों -

(क) वाणिज्य वाहन (हल्के वाणिज्य वाहनों सहित) तथा

(ख) कुछ शर्तों के साथ दोपहिया और तिपहिया वाहन;

  1. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा किसी कंपनी/संस्था में शेयरों, डिबेंचरों आदि के रूप में चालू और दीर्घावधि स्वरूप के निवेश। इसमें कुछ छूट दी गयी है ।

(ii) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा किसी भी कंपनी को प्रतिभूति रहित ऋण /अंतर कार्पोरेट जमा।

(iii) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा अपनी सहायक कंपनियों, समूह कंपनियों/ संस्थाओं को सभी प्रकार के ऋण /अग्रिम —

(iv) प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्तावों (आइपीओ) में अभिदान करने हेतु व्यक्तियों को आगे ऋण देने के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का वित्तपोषण करना।

(v) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की सभी श्रेणियों अर्थात् उपकरण पट्टादायी तथा किराया खरीद वित्तीय कंपनियों, ऋण तथा निवेश कंपनियों, अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों को किसी भी प्रकार का पूरक(ब्रिज) ऋण या पूंजी/डिबेंचर निर्गम पर अंतरिम वित्त और /अथवा पूंजी, जमा आदि के जरिए बाजार से दीर्घावधि निधि जुटाने के पहले पूरक प्रकार के ऋण देना —

(vi) उपकरण पट्टादायी कारोबार में लगी अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के अलावा उपकरण पट्टादायी कंपनियों के साथ विभागीय रूप में पट्टा करार करना नहीं चाहिए।

वर्तमान स्थिति : बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच संरचनागत संबंध

8. इस देश में कार्यरत बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की स्थापना निजी क्षेत्र (देशी तथा विदेशी दोनों) और सरकारी क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा की गयी है और उनका स्वामित्व इन संस्थाओं के पास है। कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां बैंकों, जिसमें विदेशी बैंक शामिल हैं, की सहायक / सहयोगी/संयुक्त उद्यम हैं जिसकी इस देश में वास्तविक रूप में परिचालनात्मक उपस्थिति हो भी सकती है अथवा नहीं भी हो सकती है। अभी हाल में सामान्य रूप से तथा विशेष रूप में बैंकों द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की स्थापना करने के संबंध में रुचि बढ़ी है।

9. किसी वित्तीय सेवा कंपनी में किसी बैंक द्वारा निवेश उस बैंक की प्रदत्त शेयर पूंजी और प्रारक्षित निधि के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए और ऐसी सभी कंपनियों, वित्तीय संस्थाओं, शेयर बाजारों तथा अन्य बाजारों में कुल मिलाकर उस बैंक का कुल निवेश बैंक की प्रदत्त शेयर पूंजी तथा आरक्षित निधि के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। भारत में किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी की स्थापना करने के लिए पंजीयन प्रमाणपत्र प्रदान करने से पहले तथा किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी में महत्वपूर्ण निवेश करने के लिए बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित विनियामक विभाग की पूर्व-अनुमति लेना अनिवार्य है। तथापि, विदेशी संस्थाएं, जिनमें भारत में शाखाओं वाले विदेशी बैंकों के प्रधान कार्यालय शामिल हैं, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के स्वत: अनुमोदित मार्ग के अंतर्गत, रिज़र्व बैंक से पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त करने के बाद गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था का कारोबार शुरू कर सकती हैं।

विनियामक मुद्दे

10. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां उन कार्यकलापों को कर सकती हैं जो बैंकों को करने की अनुमति नहीं है अथवा जिन्हें सीमित रूप से करने की बैंकों को अनुमति है, उदाहरणार्थ, अर्जन तथा विलयन के संबंध में वित्तपोषण, पूंजी बाजार कार्यकलाप आदि। बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, जो कतिपय समान कार्यकलाप कर रहें हैं, के विनियमन के स्तर में भिन्नता के कारण विनियामक अंतरपणन की संभावना बढ़ जाती है। अत: गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के जरिए लेनदेन करना बैंकिंग विनियमन के महत्व को कम करने के समान है। उन गैर-बैंकिंग कंपनियों के मामले में जो किसी बैंकिंग समूह के अंग हैं, बैंकिंग समूहों पर लागू विवेकपूर्ण मानदंड के कारण इस स्थिति में आंशिक सुधार हुआ है।

11. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां-डी जनता की जमाराशियां, वाणिज्यिक पेपर, डिबेंचर, अंतर-कार्पोरेट जमाराशियां और बैंक वित्त के जरिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में सार्वजनिक निधि प्राप्त कर सकती हैं और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां-एनडी जनता की जमाराशियों को छोड़कर उक्त सभी तरीकों के जरिए सार्वजनिक निधि प्राप्त कर सकती हैं। बड़ी और संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां -एनडी जिनकी सार्वजनिक निधि तक भी पहुँच है पर सीमांत विनियमन लागू करना परस्पर प्रभाव के जरिए प्रणालीगत जोखिम का संभाव्य स्रोत हो सकती हैं - भले ही ये कंपनियाँ भुगतान तथा निपटान प्रणाली की सदस्य नहीं हैं।

12. वर्तमान में, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और उनकी मूल संस्थाओं के बीच समूह के भीतर लेनदेन और एक्सपोज़र पर कोई विवेकपूर्ण मानदंड अथवा दिशानिर्देश नहीं हैं। किसी बैंकिंग समूह/वित्तीय महासमूह (कांग्लोमरेट) के समेकित पर्यवेक्षण की दृष्टि से यह आवश्यक है कि आंतर-समूह लेनदेन तथा ऋण जोखिम (आइटीई) पर कुछ मानदंड /सीमाएं लगाई जाएं ताकि बैंकिंग समूह / वित्तीय महासमूहों के कार्यकलाप विवेकपूर्ण पद्धति से हों और वित्तीय स्थिरता को कोई खतरा न पहुंचे। अंतरराष्ट्रीय रूप में कुछ विनियामक बैंक अपनी संबद्ध संस्था के साथ किए जाने वाले लेनदेनों के स्तर पर उच्चतम सीमा निर्धारित करते हैं ।ये सीमाएं किसी एकल संस्था के स्तर पर अथवा समूह के स्तर पर लागू हो सकती हैं ।

13. बैंककारी विनियमन अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत किसी बैंक को सहायक बैंकिंग संस्था स्थापित करने की अनुमति नहीं है — इससे किसी एक समूह में जनता की जमाराशियों के लिए स्पर्धा करने वाली एक से अधिक संस्था की संभावना नहीं रहती। तथापि, वर्तमान ढांचे के अंतर्गत इस पहलू पर अच्छी तरह से ध्यान नहीं दिया गया है। भारत में कार्यरत कोई बैंक सहायक संस्था के रूप में कोई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-डी स्थापित कर सकता है अथवा ऐसी संस्था में पर्याप्त शेयर अर्थात् 10 प्रतिशत से अधिक शेयर रख सकता है।

14. न्यूनतम पूंजीकरण मानदंडों के अधीन 19 विनिर्दिष्ट कार्यकलापों में स्वत: अनुमोदित मार्ग के अंतर्गत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी गयी है। विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा) के अंतर्गत अपेंक्षित पूंजी के साथ कोई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी एक बार स्थापित करने के बाद वर्तमान कंपनी अथवा डाउनस्ट्रीम गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के जरिए अगला विशाखीकरण किसी और (दुबारा)प्राधिकरण के बिना किया जाता है। इससे ऐसे कार्यकलाप करने की संभावना बढ़ जाती है जिनके लिए स्वत: अनुमोदित मार्ग के अंतर्गत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति नहीं है।

परिशोधित ढांचे के लिए आधारभूत सिद्धांत

15. इस तरह बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी परिचालन क्षेत्र में विनियामक अंतरालों के कारण विनियामक अंतरपणन की संभावना बढ़ जाती है और असमान अवसर तथा संभाव्य संपूर्ण प्रणालीगत जोखिम बढ़ जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में संबंधित मामलों की जांच की गयी है और समूह की सिफारिश के अनुसार बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के कार्यकलापों के लिए विवेकपूर्ण विनियमों के वर्तमान ढांचे की समीक्षा की गयी। समीक्षा के अंतर्निहित व्यापक सिद्धांत निम्नानुसार हैं :

  1. वित्तीय सेवाएं प्रदान करने वाली संस्थाओं को सामान्यत: वित्तीय विनियमन की सीमा के भीतर रहना चाहिए। तथापि, वित्तीय क्षेत्र की उस समय की विकास स्थिति और विनियामक दृष्टि में प्राथमिकता निर्धारण के कारण सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को वित्तीय विनियमन के दायरे से बहुत हद तक बाहर रखा गया था। वित्तीय क्षेत्र की हाल की गतिविधियों और इस क्षेत्र की वृद्धि को देखते हुए, सबसे पहले संपूर्ण प्रणालीगत जोखिम को नियंत्रित करने के लिए वित्तीय सेवा प्रदान करने वाली संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से प्रासंगिक सभी संस्थाओं को किसी उचित विनियामक ढांचे के अंतर्गत लाया जाना चाहिए । संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से प्रासंगिक क्या है इसकी परिभाषा समय-समय पर निर्धारित की जाएगी।
  2. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रकाशन, "फाइनेंशियल सेक्टर असेसमेंट -ए हैंडबुक" में कहा गया है कि, "विनियामक अंतरपणन की संभावना को कम करने के लिए समान जोखिमों और कार्यों का समान रूप में पर्यवेक्षण किया जाना चाहिए" और "बैंक जैसी वित्तीय संस्थाओं का पर्यवेक्षण बैंकों के समान किया जाना चाहिए"। इसी तरह, "रिपोर्ट ऑफ ख़् कमीटी ऑन फुलर कैपिटल एकाउंट कन्वर्टिबिलिटी" में कहा गया है कि "बैंकिंग प्रणाली को अधिक सशक्त बनाने के लिए विनियमन में संशोधन करना होगा ताकि विनियामक अंतरपणन को हतोत्साहित या समाप्त किया जा सके। संस्था -केंद्रित विनियमन के बजाय कार्यकलाप-केंद्रित विनियमन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।" अत: यह सुनिश्चित करके कि विनियमन कार्यकलाप केंद्रित हैं, चाहे वे कार्यकलाप किसी भी माध्यम से किए जाएँ, विनियामक अंतरपणन की संभावना को कम करने या समाप्त करने पर जोर दिया जाएगा।
  3. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का स्वामित्व तुलनात्मक दृष्टि से कम कड़े विनियामक तथा विवेकपूर्ण ढांचे के अधीन आता है। उन्हें ऐसे निश्चित मानदंडों के अधीन लाया जाना चाहिए जिनसे नियंत्रण में सुधार हो और विनियामक अंतरपणन या बैंक विनियमों के उल्लंघन की संभावना उत्पन्न न हो । साथ ही, स्वामित्व का स्वरूप ऐसा होना चाहिए कि किसी समूह में एक से अधिक संस्थाएं जनता की जमाराशियों के लिए प्रतिस्पर्धा न करें। इसके अलावा, जब कोई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी किसी बैंक समूह का अंग होगी तो ‘होल्ंडिग आउट’ सिद्धांत लागू होगा। अत: किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के साथ बैंक किस हद तक संबंध रखेंगे, यह निर्णय करते समय, होल्ंडिग आउट सिद्धांत के अंतिम परिणाम को ध्यान में रखना होगा।
  4. 1990 के दशक के प्रारंभ में बैंकिंग क्षेत्र में घटित कुछ प्रतिकूल घटनाओं के कारण बैंकों को विवेकाधीन संविभाग प्रबंधन सेवा (पीएमएस) देने से मना किया गया है। इसके फलस्वरूप बैंकों द्वारा प्रायोजित गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (अर्थात् ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ जो बैंकों की सहायक कंपनी हैं या जिनमें बैंकों का प्रबंध नियंत्रण है) को भी विवेकाधीन पीएमएस सेवा देने की अनुमति नहीं है, जबकि अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ यह सेवा दे सकती हैं। अत:, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के स्वामित्व की संरचना के आधार पर यह निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी किस प्रकार का उत्पाद या सेवा दे सकेगी।
  5. विदेशी संस्थाएँ विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए स्वत: अनुमोदित मार्ग के अंतर्गत भारत में अनुमत कुछ कार्य कर सकती हैं। तथापि, यह उचित नहीं होगा कि किसी विदेशी संस्था को स्वत: अनुमोदित मार्ग के माध्यम से अपना अस्तित्व स्थापित करने की अनुमति देने के बाद वह कंपनी अपनी गतिविधियों को विस्तारित करते हुए अतिरिक्त प्राधिकरण प्रक्रिया से ंगुजरे बिना ऐसे कार्य शुरू करे जो स्वत: अनुमोदित मार्ग के अंतर्गत अनुमत नहीं हैं ।
  6. इस संबंध में व्यापक सिद्धांत यह है कि बेंक किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी का उपयोग विनियामक अंतरपणन का अवसर पाने के लिए अथवा बैंक विनियम (विनियमों) से बचने के एक साधन के रूप में न करें तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कार्य बैंकिंग विनियमों के विरुद्ध न हो । यदि यह पाया जाता है कि किसी बैंक ने इन दिशानिर्देशों के अभिप्राय का अनुपालन नहीं किया है तो ऐसे अननुपालन पर रिज़र्व बैंक कड़ी कार्रवाई कर सकता है ।

विनियामक ढांचे में संशोधन

16. बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कार्यों के विभिन्न पहलुओं के लिए भिन्न-भिन्न विनियामक अपेक्षाओं से उठने वाले प्रश्नों के परिप्रेक्ष्य में तथा प्रस्तावित संशोधन के लिए व्यापक सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के विनियामक ढांचे में निम्नलिखित संशोधन किए जा रहे हैं:-

ए. संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों
(एनबीएफसी)-एनडी-एसआई के लिए विनियामक ढांचा

    1. एनबीएफसी-एनडी-एसआई का निर्धारण
    2. सभी एनबीएफसी-एनडी जिनकी परिसंपत्तियाँ अंतिम लेखापरीक्षित तुलनपत्र के अनुसार 100 करोड़ रुपए या अधिक हैं, उन्हें संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एनबीएफसी-एनडी माना जाएगा।

    3. एनबीएफसी-एनडी-एसआई के लिए पूंजी पर्याप्तता अनुपात
    4. एनबीएफसी-एनडी-एसआई जोखिम भारित परिसंपत्तियों की तुलना में न्यूनतम पूंजी र्(ण्ींींीं) का 10% अनुपात बनाए रखेंगी। एनबीएफसी-डी के लिए जोखिम भारित परिसंपत्तियों की तुलना में पूंजी का मौजूदा निर्दिष्ट 12% से 15% का अनुपात, जो भी लागू हो, बना रहेगा।

    5. एनबीएफसी-एनडी-एसआई के लिए एकल/ग्रुप जोखिम
    6. उपर्युक्तानुसार परिभाषित कोई भी एनबीएफसी-एनडी-एसआई निम्नलिखित को

        a. उधार

(i) किसी एक उधारकर्ता को अपनी स्वाधिकृत निधियों के 15% से अधिक उधार नहीं देगी; और

(ii) उधारकर्ताओटं के किसी एक ग्रुप को अपनी स्वाधिकृत निधियों के 25% से अधिक उधार नहीं देगी;

      b.निवेश

(i) अपनी स्वाधिकृत निधियों के 15% से अधिक किसी अन्य कंपनी के शेयरों में निवेश नहीं करेगी; और

(ii) कंपनियों के एक ग्रुप के शेयरों में अपनी स्वाधिकृत निधियों के 25% से अधिक निवेश नहीं करेगी;

      c. निम्नलिखित से अधिक उधार(ऋण) नहीं देगी और

निवेश(ऋण / निवेश मिलाकर)नहीं करेगी

(i) किसी एक पार्टी को अपनी स्वाधिकृत निधियों के 25% से अधिक;

(ii) पार्टियों के एक ग्रुप को अपनी स्वाधिकृत निधियों के 40% से अधिक।

      - किसी अन्य कंपनी के शेयरों में किये गये निवेश के संबंध में उल्लिखित सीमा किसी एनबीएफसी पर वहाँ तक लागू नहीं होगी जहाँ तक रिज़र्व बैंक ने विशेष रूप से किसी बीमा कंपनी की ईक्विटी पूंजी में निवेश करने के लिए, लिखित रूप में, अनुमति दी होगी।

      - 31 जनवरी 1998 की अधिसूचना सं.डीएफसी. 119/डीजी(एसपीटी)-98 में अंतर्विष्ट गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ विवेकपूर्ण मानदण्ड (रिज़र्व बैंक़) निदेश, 1998 में स्पष्ट किए गए परिवर्तक तत्वों को लागू करके उल्लिखित सीमा के निर्धारण के लिए तुलनपत्र से इतर जोखिम को क्रेडिट जोखिम के रूप में आकलित किया जाए।

      - डिबेंचरों में किए गए निवेश को निवेश न मानकर दिया गया उधार माना जाएगा ।

      - क्रेडिट /निवेश के संबंध में उल्लिखित सीमाएं गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के खुद के ग्रुप के साथ-साथ उधारकर्ताओं के अन्य ग्रुप / निविष्टी कंपनियों पर लागू होंगी।

      - गेर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ किसी एक पार्टी के लिए 5% एवं पार्टियों के एक ग्रुप के लिए 10% तक क्रेडि/निवेश के संकेंद्रन की उल्लिखित सीमा को पार कर सकती हैं बशर्ते अतिरिक्त जोखिम संरचनागत ढांचे के लिए दिया गया ऋण या किया गया निवेश हो।

इसके अलावा एनबीएफसी-एनडी-एसआई को सूचित किया जाता है कि किसी कंपनी/ग्रुप के प्रति जोखिम के संबंध में वे एक नीति बनाकर रखें। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में सार्वजनिक जमाराशियों को न लेने वाली एनबीएफसी-एनडी-एसआई जोखिम सीमाओं की भावना के अनुरूप उचित छूट के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को आवेदन करें।

बी. परिसंपत्ति वित्त कंपनियों के लिए अतिरिक्त एकल जोखिम मानदण्ड

6 दिसंबर 2006 के परिपत्र सं. गैबैंपवि. नीति प्रभा. कंपरिप. सं. 85/03.02.089/2006-07 के अनुसार उत्पादक/आर्थिक गतिविधियों के लिए स्थावर/भौतिक परिसंपत्तियों के वित्तपोषण में लगी कंपनियों को उत्त परिपत्र में निर्दिष्ट मानदण्डों के अनुसार परिसंपत्ति वित्त कंपनी माना जाएगा।

(iv) एनबीएफसी-डी तथा एनबीएफसी-एनडी-एसआई के लिए किसी एक पार्टी तथा पार्टियों के एक ग्रुप के लिए निर्दिष्ट जोखिम मानदण्डों में दी गई सीमा को परिसंपत्ति वित्त कंपनियां अपवादात्मक परिस्थतियों में अपनी स्वाधिकृत निधियों के और 5% तक किसी एक पार्टी तथा पार्टियों के एक ग्रुप के लिए अपने निदेशक बोर्ड की अनुमति से पार कर सकती हैं।

सी. गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की गतिविधियों
का स्वत: अनुमोदित मार्ग से विस्तार

v) स्वत: अनुमोदित मार्ग के अंतर्गत स्थापित गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को केवल उन्हीं 19 गतिविधियों को करने की अनुमति होगी जो स्वत: अनुमोदित मार्ग के अंतर्गत अनुमत हैं। उनसे भिन्न किसी अन्य गतिविधि को करने से पहले विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड का अनुमोदन लेने की जरूरत होगी। इसी प्रकार यदि किसी कंपनी को विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीति के अंतर्गत (जैसे साफ्टवेयर) किसी क्षेत्र विशेष में प्रवेश की अनुमति मिली है और बाद में वह गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी क्षेत्र में काम करना चाहती है तो उसे लागू न्यूनतम पूंजीकरण मानदण्डों और अन्य विनियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करना होगा।

प्रभावी तारीख और संक्रांति

17. इस बात को ध्यान में रखते हुए कि हो सकता है कि कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ नए संशोधित विनियामक ढांचे के कतिपय तत्वों का अनुपालन करने में संप्रति समर्थ न हों, यह निर्णय लिया गया है कि इनके अनुपालन के लिए मार्च 2007 तक की अवधि संक्रांति काल के रूप में दी जाए। तदनुसार गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ संशोधित ढांचे के सभी तत्वों /बातों का अनुपालन 1 अप्रैल 2007 से सुनिश्चित करें। यदि किसी एनबीएफसी-एनडी-एसआई को अनुपालन के लिए मुहलत(अधिक समय) की जरूरत हो तो वह 31 जनवरी 2007 को कार्यालय कारोबार की समाप्ति से पूर्व गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग को उत्त अवधि में अनुपालन न कर पाने के कारणों का उल्लेख करते हुए और जिस अवधि में सभी बातों का अनुपालन कर सकेगी का ब्योरा देते हुए आवेदन करे । इससे रिज़र्व बैंक उनके अनुरोध पर मार्च 2007 से पूर्व रुख निश्चित कर सकेगा।

कतिपय वर्गों के लिए लागू होना

18. इस परिपत्र में अंतर्विष्ट मार्गदर्शी सिद्धांत संबंधित पैराग्राफों में किए गए विनिर्देशानुसार गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर लागू होंगे, केवल निम्नलिखित वर्गों को छोड़कर-

  1. अवशिष्ट गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (आरएनबीसी)तथा प्राथमिक व्यापारी भिन्न विनियमन के अंतर्गत आते हैं। रिज़र्व बैंक इस परिपत्र में अंतर्विष्ट मार्गदर्शी सिद्धांतों के मद्देनजर इन संस्थाओं पर लागू मौजूदा मार्गदर्शी सिद्धांतों की समीक्षा के लिए एक अंत:समूह का गठन करेगा और अनुपूरक मार्गदर्शी सिद्धांतों की आवश्यकता की जांच करेगा जिन्हें अलग से जारी किया जाएगा। तब तक ये संस्थाएं मौजूदा विनियमों से नियंत्रित होती रहेंगी।
  2. कंपनी अधिनियम की धारा 17 में परिभाषित सरकार के स्वामित्ववाली कंपनियाँ जो भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत हैं , गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ विवेकपूर्ण मानदण्ड(रिज़र्व बैंक) निदेश, 1998 के कतिपय उपबंधों से संप्रति छूट प्राप्त हैं। यह प्रस्ताव किया जा है कि सभी जमा स्वीकार करनेवाली एवं प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण सरकारी स्वामित्व वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपिनयों को उत्त निदेश के अंतर्गत लाया जाए जो मौजूदा मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुरूप होगा जिसमें इस परिपत्र में शामिल मार्गदर्शी सिद्धांत शामिल हैं। हालांकि किस तारीख से वे इस विनियामक ढांचे का पूरी तरह अनुपालन करेंगी, इसका निर्णय बाद में होगा। इन कंपनियों से अपेक्षित है कि वे सरकार से परामर्श करके गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए अमल में आने वाले मार्गदर्शी सिद्धांतों के विभिन्न तत्वों/मानकों के अनुपालन के लिए योजना बनाएं और उसे रिज़र्व बैंक के गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग को 31 मार्च 2007 तक प्रस्तुत करें।

19. भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग द्वारा इस संबंध में बैंकों को अलग से परिपत्र जारी किया गया है।

20. कृपया इसकी पावती भारतीय रिज़र्व बैंक, गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग के उस क्षेत्रीय कार्यालय को भेजें जिसके अधिकारक्षेत्र में आपकी कंपनी का पंजीकृत कार्यालय आता हो।

भवदीय

(पी. कृष्णमूर्ति)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

सं. यथोत्त


अनुबंध

वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य की मध्यावधि
समीक्षा के पैराग्राफ 141 का उद्धरण.

(च) संपूर्ण प्रणाली की दृष्टि से महत्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों
(एनबीएफसी) के प्रति बैंकों को एक्सपोज़र

141. रिज़र्व बैंक ने विनियमन अभिमुखता, विनियामक अंतरपणन संबधी विषयों का अध्ययन करने तथा वित्तीय क्षेत्र में सभी समान अवसर देने वाले क्षेत्र के लिए एक नीतिगत ढांचे की सिफारिश करने के लिए एक आंतरिक दल गठित किया था । दल की रिपोर्ट व्यापक प्रसारण एवं अभिमत के लिए रिज़र्व बैंक की वेब साइट पर डाली गयी थी। दल की सिफारिशों तथा प्राप्त प्रतिसूचना के परिप्रेक्ष्य में और वित्तीय क्षेत्र के इस घटक की महत्ता के मद्देनजर 3 नवंबर 2006 तक और प्रतिसूचना आमंत्रित करने के लिए एक प्रारूप पब्लिक डोमेन में रखा जायेगा। अभिमतों के लिए दो सप्ताहों की अवधि देने के बाद 30 नवंबर 2006 से पहले अंतिम परिपत्र जारी किया जायेगा ।

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?