शहरी सहकारी बैंकों को वित्तीय रूप से पुनर्व्यवस्थित करना - आरबीआई - Reserve Bank of India
शहरी सहकारी बैंकों को वित्तीय रूप से पुनर्व्यवस्थित करना
आरबीआई /2009/358 |
मुख्य कार्यपालक अधिकारी |
महोदय /महोदया |
शहरी सहकारी बैंकों को वित्तीय रूप से पुनर्व्यवस्थित करना |
कृपया 02 फरवरी 2005 का हमारा परिपत्र शबैंवि (पीसीबी) परि. 36 /09.169.00 /2004-05 देखें जिसके साथ शहरी सहकारी बैंकों के विलय /समामेलन के संबंध में दिशानिर्देश अग्रेषित किए गए थे । मौज़ूदा दिशानिर्देशों के अनुसार अधिग्राही बैंक से अपेक्षा की जाती है कि वह अधिग्रहित बैंक का नेटवर्थ ऋणात्मक होने की स्थिति में भी उसके सभी जमाकर्ताओं की संपूर्ण जमाराशि की स्वयं या राज्य सरकार से वित्तीय सहायता लेकर सुरक्षा करे । मौजूदा दिशानिर्देशों के फलस्वरूप शहरी सहकारी बैंकों के क्षेत्र में स्वैच्छिक विलय की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है । पिछले चार वर्षों में अनेक कमजोर एवं अक्षम शहरी सहकारी बैंकों का मजबूत शहरी सहकारी बैंकों में विलय किया गया है जिससे अक्षम शहरी सहकारी बैंकों का निर्बाध रूप से निर्गम संभव हो सका है । |
3. वित्तीय रूप से पुनर्व्यवस्था |
तदनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक समस्याग्रस्त बैंकों का समाधान करने के लिए वित्तीय पुनर्व्यवस्था पर एक अतिरिक्त विकल्प के रूप में विचार करने के लिए तैयार है बशर्ते वे निम्नलिखित मानदंडों का पालन करते हों :
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i) छोटे जमाकर्ताओं के हितों की पूरी सुरक्षा होनी चाहिए । तदनुसार, छोटे जमाकर्ताओं अर्थात् एक लाख रुपये तक की जमाराशि वाले जमाकर्ता के मामले में इक्विटी में किसी संपरिवर्तन की अनुमति नहीं दी जाएगी । ii) एक लाख रूपये से अधिक के जमाकर्ताओं की जमाराशि का एक हिस्सा इक्विटी में संपरिवर्तित किया जाए । इसी प्रकार संस्थागत जमाकर्ताओं की जमाराशि का एक हिस्सा नवोन्मेषी सततऋण लिखत (आईडीपीआई) में संपरिवर्तित किया जाए जो टियर-I पूँजी के रूप में शामिल किए जाने का पात्र है । आईडीपीआईजारी करने संबंधी शर्तें अनुबंध में दी गई हैं । ii) जमाराशि का आईडीपीआई में संपरिवर्तन जमाकर्ताओं /उनके फोरम की सहमति के अधीन किया जाएगा । iii) पुनर्व्यवस्था के बाद, बैंक का सीआरएआर 9% होने तक किसी शेयर (इक्विटी) का मोचन (redemtion) नहीं किया जाएगा । iv) इक्विटी /आईडीपीआई में संपरिवर्तित जमाराशि का अनुपात इस प्रकार निर्धारित करना चाहिए कि बैंक का नेटवर्थ पुनर्व्यवस्था के बाद धनात्मक हो जाए । v) बैंक को पुनर्व्यवस्थित देयताओं पर सीआरआर /एसएलआर बनाए रखना होगा । vi) पुनर्व्यवस्था के बाद बैंक का प्रबंधन प्रशासक मण्डल के नियंत्रण में होगा जिसमें जमाकर्ताओं के प्रतिनिधि तथा व्यावसायिक बैंकर होंगे ताकि पुनर्व्यवस्था योजना सहित अनर्जक आस्तियों की वसूली का समुचित कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके । |
4. ऋणात्मक नेटवर्थ वाले शहरी सहकारी बैंक निदेशक मण्डल द्वारा अनुमोदित विश्टाष प्रस्तावों के साथ भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय से संपर्क करें । |
भवदीय |
(ए.के. खौंड) |
संलग्नक : यथोपरि |
टियर I पूँजी के रूप में शामिल करने के लिए नवोन्मेषी सतत |
बैंकों द्वारा बांड या डिबेंचर के रूप में जारी किए जा सकने वाले नवोन्मेषी सतत ऋण लिखतों (नवोन्मेषी लिखत) को पूँजी पर्याप्तता प्रयोजनों के लिए टियर I पूँजी के रूप में शामिल करने की पात्रता के लिए निम्नलिखित शर्तों का पालन करना चाहिए ।
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1. नवोन्मेषी लिखतों को जारी करने की शर्ते : |
(i) भारतीय रिज़र्व बैंक का अनुमोदन |
नवोन्मेषी लिखत जारी करने के लिए बैंकों को मामला-दर-मामला आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमोदन प्राप्त करना चाहिए । |
(ii) राशि |
नवोन्मेषी लिखतों की जुटाई जाने वाली राशि के बारे में निर्णय बैंक के निदेशक मंडल द्वारा लिया जाएगा । |
(iii) सीमाएं |
नवोन्मेषी लिखतों को कुल टियर I पूँजी के 15% से अधिक नहीं होना चाहिए । उपर्युक्त सीमा से अधिक नवोन्मेषी लिखत टियर II पूँजी के लिए निर्धारित सीमाओं के अधीन टियर II पूँजी के अंतर्गत शामिल किए जाने के पात्र होंगे । तथापि, निवेशकों के अधिकार एवं दायित्व पूर्ववत बने रहेंगे । |
(iv) परिवक्वता अवधि |
नवोन्मेषी लिखत सतत होंगे । |
(v) ब्याज दर |
निवेशकों को देय ब्याज निर्धारित दर या बाजार द्वारा निर्धारित रुपया ब्याज की बेंचमार्क दर के संदर्भ में न्यूनतम नियत दर से देय होगा। |
(vi) विकल्प |
नवोन्मेषी लिखत ’पुट ऑप्शन’ के साथ जारी नहीं किए जाएंगे । तथापि, बैंक कॉल ऑप्शन के साथ लिखत जारी कर सकते हैं बशर्ते निम्नलिखित शर्तों में से प्रत्येक शर्त का कड़ाई से अनुपालन किया जाता हो : |
(vii) स्टेप-अप ऑप्शन |
जारीकर्ता बैंक एक स्टेप-अप आप्शन रख सकता है जिसका प्रयोग लिखत के संपूर्ण कार्यकाल के दौरान केवल एक बार लिखत के जारी होने की तारीख से दस वर्ष पूरा होने के बाद कॉल आप्शन के साथ किया जा सकता है।
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(viii) निश्चित अवरूद्धता अवधि खण्ड (लॉक-इन-क्लाज) |
(क) नेवोन्मेषी लिखत लॉक-इन-क्लाज के अधीन होंगे जिसके अनुसार जारीकर्ता बैंक ब्याज अदा करने के पात्र नहीं होंगे बशर्ते, |
(ix) दावा की वरिष्ठता |
नवोन्मेषी लिखतों में निवेशकों के दावे |
(x) बट्टा |
नवोन्मेषी लिखत पूँजी पर्याप्तता के प्रयोजन से क्रमिक बट्टा के अधीन नहीं होंगे क्योंकि ये लिखत सतत हैं ।
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