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मौद्रिक नीति 2011-12 की पहली तिमाही समीक्षा

डॉ. डी. सुब्बाराव
गवर्नर

भूमिका

भारतीय रिज़र्व बैंक के 3 मई 2011 के वार्षिक मौद्रिक नीति वक्तव्य ने विकास-मुद्रास्फ़ीति परिदृश्य से जुड़े जोखिम के कई कारकों पर प्रकाश डाला। इनमें से कई वास्तव में घटित हुए। वैश्विक स्तर पर, सरकारी ऋण की जो समस्याएं पिछले वर्ष यूरो क्षेत्र को ग्रसी हुई थीं, उनका ख़तरा अब इस क्षेत्र की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर मंडरा रहा है। अमेरिका में, वित्तीय बाज़ारों पर सरकारी ऋण के चुकौती संबंधी चिंताओं के बादल छाए हैं, जो कि वैश्विक पूँजी प्रवाह में उलट-फ़ेर ला सकता है। मंदी की गहरी प्रवृत्तियों के बीच जापान सुनामी के प्रभावों से उबरने की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

2. विकसित अर्थव्यवस्थाओं के ठीक विपरीत, उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं (ई एम ई ज़) सामान्यत: चढ़ती मुद्रास्फ़ीति  से दो-चार हो रही हैं जिसके पीछे बढ़ी हुई पण्य (कमोडिटी) कीमतों और मज़बूत घरेलू माँग का मिला-जुला हाथ है।  कुछ समय से जहाँ रिकवरी की दो अलग-अलग रफ़्तारों पर चर्चा होती आ रही है, वहीं विकसित और उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (ई एम ई ज़) पर इसका अलग-अलग असर अब साफ़ नज़र आ रहा है।

3.  भारत की समष्टि-आर्थिक नीति आवश्यकताओं की दृष्टि से, वैश्विक परिस्थियों का पण्य कीमतों पर पड़ने वाला प्रभाव एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पक्ष है। 3 मई के वक्तव्य के बाद से कच्‍चे तेल समेत कई पण्यों (कमोडिटीज़) की कीमतों में नरमी के लक्षण दिखाई पड़े हैं, जिसका अर्थ है कि विकसित अर्थव्‍यवस्‍थाओं में मांग कमजोर पड़ रही है । यदि यह प्रवृत्ति सुदृढ़ होती, तो इससे मुद्रास्‍फीतीय दबावों से राहत मिलती। एक तिमाही बीत जाने के बाद भी यह गिरावट अभी तक उतनी मज़बूत नहीं दिखती। पिछले वर्ष के मुकाबले कीमतें अभी भी ऊँची हैं। एक ओर जहाँ विकसित अर्थव्‍यवस्‍थाओं में मौद्रिक कसाव की तत्‍काल कोई संभावना नहीं दिखती, वहीं चलनिधि (लिक्विडिटि) की प्रचुरता से कमजोर माँग का असर निरस्त हो गया लगता है ।

4.   घरेलू मुद्दों पर, संशोधित और पुन:-आधारित औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक (आइ आइ पी) से पता चला कि 2010-11 की दूसरी छमाही में विकास में कमी के जो संकेत पहले मिले थे, वे अतिरंजित थे। तथ्यत:विकास की गति वर्ष भर मज़बूत रही। तथापि अप्रैल-मई 2011 के आँकड़ों पर नज़र डाली जाए, तो लगेगा मानों कुछ नरमी आ रही हो, जो अंशत: अक्टूबर 2009 से किए जा रहे कसाव का परिणाम हो सकती है।

5.  नरमी के संकेत जो भी रहे हों, मुद्रास्फ़ीतीय दबाव साफ़ तौर पर काफ़ी मज़बूत हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि, पिछले तीन महीनों से पण्यों की कीमतों में नरमी, शीर्ष (हेडलाइन) थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यू पी आइ) मुद्रास्फ़ीति या खाद्येतर विनिर्माण मुद्रास्फ़ीति (नॉन फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चरिंग इनफ्लेशन) में गिरावट में तब्दील नहीं हो रही है। यदि नरमी का रुख़ पलट जाए, तो वस्तुओं की कीमतों पर कुछ समय के लिए मुद्रास्फ़ीतीय दबाव पड़ने की संभावना है जिसके फलस्वरूप मुद्रास्फ़ीति को नीचे लाने के लिए माँग को कम करना अनिवार्य हो जाएगा।

6.  समग्र तौर पर, वैश्विक और घरेलू मुद्दों को तराजू पर रखें तो लगेगा कि मौद्रिक नीति को अपना दृढ़ मुद्रास्फ़ीति-रोधी रुख़ बनाए रखना है। इसके अलावा विकास के कुछ धीमे पड़ने से मुद्रास्फ़ीतीय दबावों के कम होने में जरूर मदद मिलेगी जिसमें वैश्विक पण्य मूल्यों में संभावित नरमी से और सहयोग मिल सकता है।

7.यह समीक्षा ऊपर बताए गए वैश्विक व घरेलू अनिश्चित आर्थिक माहौल में तैयार की गई है।  इसे समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों में दी गयी विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाए जो रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गयी है। यह चार भागों में है। भाग I में वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक घटनाचक्र का एक खाका दिया गया है; भाग II में आर्थिक विकास, मुद्रास्फीति, और मौद्रिक समुच्चयों (एग्रिगेट्स) से जुड़े परिदृश्य और पूर्वानुमान हैं, भाग III में मौद्रिक नीति के रुख़ को समझाया गया है और भाग IV में मौद्रिक नीति उपायों का उल्लेख है।

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वैश्विक  अर्थव्यवस्था

8.  वैश्विक विस्तार की गति 2011 की दूसरी तिमाही में कुछ कम हुई। इसमें कई चीजें काम कर रही थीं – तेल व अन्य वस्तुओं की ऊँची कीमत, आपूर्ति श्रृंखला में जापान से उलट-फेर, यूरो क्षेत्र में सरकारी ऋण समस्याएं, और अमरीकी आवास व श्रम बाज़ारों में जारी कमजोरी।

9.  ग्रीस की बिगड़ती राजकोषीय स्थिति, पुर्तगाल के सरकारी ऋण के रेटिंग की डाउनग्रेडिंग और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रूप से इटली के सरकारी ऋण में दबाव के संकेतों के कारण यूरो क्षेत्र के सरकारी ऋण संबंधी चिंताएं फ़िर से सर उठाने लगीं। इस बात को लेकर चिंता बढ़ गई है कि परेशान करने वाली इस ऋण समस्या के आर्थिक रूप से व्यवहार्य, राजकोषीय रूप से निर्वाह-योग्य और राजनैतिक तौर पर संभाव्य किसी समाधान पर यूरो क्षेत्र सहमत हो पाएगा या नहीं। इस संबंध में यूरो क्षेत्र के नेताओं का 21 जुलाई 2011 की बैठक में सहमति पर पहुँचना एक सकारात्मक घटना है। देखना यह है कि इसका प्रभावी कार्यान्वयन कहाँ तक हो पाता है।

10.  मध्यावधि सरकारी ऋण निर्वाह के मुद्दों पर भी अमेरिका में बहस चल रही है, पर निकट भविष्य में अभी ध्यान वर्तमान ऋण सीमा के चलते पैदा हुए अवरोधों पर है। अमेरिका में बेरोजगारी की दर बढ़ी और अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी इस दिशा में कोई ख़ास सुधार नहीं दिखा। अमरीकी राष्ट्रीय आवास मूल्य सूचकांक में वर्ष 2011 की पहली तिमाही में और गिरावट आई।

11.  3 मई के नीति वक्तव्य के बाद के हफ़्तों में, तेल व दूसरी पण्यों की कीमतों में आर्थिक कार्य कलापों में मंदी के फ़लस्वरूप कुछ नरमी आई पर अभी भी कीमतें ऊँची बनी हुई हैं। आपूर्ति संबंधी बाधाओं के प्रभाव को दूर करने के लिए अपने महत्त्वपूर्ण भंडार (स्ट्रेटेजिक रिज़र्व्स) से 60 मिलियन बैरल जारी करने के अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइ ई ए) सदस्यों के निर्णय से कच्चे तेल (क्रूड) की जो कीमतें जून 2011 में कम हुई थीं, वे अब फ़िर से बढ़ गई हैं। जुलाई 2011 में अब तक ब्रेंट क्रूड  की कीमतें प्रति बैरल 110 अमरीकी डॉलर से ऊपर रही हैं। वर्ष-दर-वर्ष आधार पर, विश्व बैंक ऊर्जा मूल्य सूचकांक (वर्ल्ड बैंक्स इंडेक्स ऑफ़ इनर्जी प्राइसेज़) जून 2011 में 39 प्रतिशत बढ़ गया। साथ ही, खाद्य और कृषि संगठन (एफ़ ए ओ) का खाद्य मूल्य सूचकांक जून 2011 में जून 2010 की अपेक्षा 39 प्रतिशत ऊपर था।

12.  आर्थिक कार्यकलापों की मंथर चाल के बावजूद, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में पण्यों की कीमतों के अधिक होने के कारण मुद्रास्फ़ीतीय दबाव भी उभर कर सामने आए। अमेरिका और यूरो क्षेत्र में मूल मुद्रास्फ़ीति (कोर इन्फ्लेशन) में तेजी आई है। शीर्ष मुद्रास्फ़ीति (हेडलाइन इन्फ्लेशन) के लक्ष्य से अधिक होने को देखकर, यूरोपीयन सेंट्रल बैंक (ई सी बी) ने जुलाई 2011 में अपनी नीति दरें (पॉलिसी रेट्स) बढ़ाईं जो कि अप्रैल 2011 से अपने विस्तारी (एक्सपैन्सनरी) मौद्रिक नीति रुख़ से बाहर आने की शुरुआत के बाद से इसकी दूसरी दर वृद्धि है।

13. पण्यों की ऊँची कीमतों और माँग में मज़बूती के फ़लस्वरूप, उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (ई एम ई ज़) में 2011 की पहली छमाही में हेडलाइन और कोर इन्फ्लेशन दोंनों ही ऊँचे रहे। जून 2011 में चीन में मुद्रास्फ़ीति 6.4 प्रतिशत पर पहुँच गई जो तीन वर्ष की सर्वाधिक ऊँचाई है। कई उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (ई एम ई ज़) ने 2011 की दूसरी छमाही में मौद्रिक कसाव जारी रखा।

घरेलू अर्थव्‍यवस्‍था

14.  2010-11 के दौरान जी डी पी में 8.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। चूँकि नई आइ आइ पी श्रृंखला (आधार: 2004-05) से पता चलता है कि 2010-11 की दूसरी छमाही में औद्योगिक वृद्धि उतनी धीमी नहीं पड़ी जितना पहले सोचा गया था, इसलिए उपर्युक्‍त आकलन संशोधित होकर कुछ अधिक हो सकता है। अलबत्‍ता 2011-12 के ताज़ा आँकड़े बता रहे हैं कि आर्थिक कार्य-कलाप में कुछ नरमी आई है। अप्रैल-मई 2011 में आइ आइ पी में हुई 5.7 प्रतिशत की वृद्धि गत वर्ष की तत्‍संबंधी अवधि में 10.8 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में कम थी। तथापि, वाणिज्‍य वस्‍तुओं के व्‍यापार में मज़बूत वृद्धि दर्ज हुई और 2011-12 की पहली तिमाही में निर्यात 46 प्रतिशत बढ़ा।

15.  रिज़र्व बैंक के आदेश बही, स्‍टॉक सूची और क्षमता उपयोग (ओ बी आइ सी यू एस) सर्वेक्षण के अनुसार 2010-11 की चौथी तिमाही में क्षमता उपयोग में 77.4 की महत्‍वपूर्ण वृद्धि देखी गई। अलबत्‍ता, जून 2011 में किए गए भविष्‍योन्‍मुखी औद्योगिक परिदृश्‍य सर्वेक्षण (आइ ओ एस) में समग्र बिजनेस सेन्‍टीमेंट में कमी और अगली तिमाही में इसमें और गिरावट की संभावना देखी गई। जून 2011 के एचएसबीसी पर्चेजि़ग मैनेजर्स इंडेक्‍स (पी एम आइ) ने दर्शाया कि विनिर्माण (मैन्‍यूफैक्‍चरिंग) कार्य की वृद्धि में कमी आई है परंतु सेवाओं (सर्विसेज़) की पी एम आइ में मामूली बढ़ोतरी हुई है।

16. दक्षिण-पश्चिम मानसून अब तक (20 जुलाई 2011) सामान्य से एक प्रतिशत नीचे रहा है। तथापि, रिज़र्व बैंक का उत्पादन भारित वृष्टिपात सूचकांक 104 पर है जो कि अब तक की सामान्य गति से अधिक है। क्षेत्र-वार, देश के 88 प्रतिशत हिस्सों में अधिक/ सामान्य बारिश हुई। दालों, मोटे अनाज, तिलहन और कपास से संबंधित ख़रीफ़ की बुआई का इस बार (22 जुलाई 2011 तक) गत वर्ष की इसी अवधि से कम होना ग़ौर-तलब है।

17.  मुद्रास्फ़ीति प्रमुख समष्टि आर्थिक चिंता बनी हुई है। अप्रैल 2011 में समग्र थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फ़ीति दर (हेडलाइन डब्ल्यू पी आइ इन्फ्लेशन रेट) 9.7 प्रतिशत थी। मुद्रास्फ़ीति के अनंतिम आँकड़े मई 2011 में 9.1 प्रतिशत और जून में 9.4 प्रतिशत थे।  हाल के ढर्रे को देखा जाए तो इन आँकड़ों के संशोधित होकर अधिक होने की संभावना है।  इस प्रकार, 2011-12 की शीर्ष थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फ़ीति दर दोहरे अंकों के काफ़ी समीप अड़ी रही और मुद्रास्फ़ीतीय दबाव व्यापक बने रहे। डब्ल्यू पी आइ इन्फ्लेशन का स्तर और इसका अड़ियल ढंग से बने रहना, दोनों चिंता के विषय हैं।

18.  अप्रैल 2011 में खाद्येतर विनिर्माण उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इन्फ्लेशन) 7.0 प्रतिशत थी। अनंतिम आँकड़ों के मुताबिक, मई में बढ़कर यह 7.3 प्रतिशत हुई और जून में 7.2 की प्रतिशत की ऊँचाई पर बनी रही। इसे पिछले छह वर्षों की 4 प्रतिशत की औसत खाद्येतर विनिर्माण उत्पाद मुद्रास्फ़ीति की तुलना में देखा जाना चाहिए। खाद्येतर विनिर्माण उत्पाद मुद्रास्फ़ीति का ऊँचे स्तर पर अड़े रहना दर्शाता है कि क्षमता उपयोगिता के ऊँचे स्तर पर कार्य कर रहे उत्पादक (प्रोड्यूसर्स), वस्तुओं की इनपुट लागत और वेतन संबंधी खर्चों में हो रही बढ़ोतरी को, ग्राहकों को पास ऑन कर सकते हैं। 2011-12 की पहली तिमाही के प्रारंभिक कॉरपोरेट परिणाम, मार्जिन में हल्की नरमी बता रहे हैं। तथापि, अब तक यह नरमी हल्की ही रही है जिसका अर्थ यह हुआ कि मूल्य-निर्धारण क्षमता (प्राइसिंग पावर) बनी हुई है।

19.  जून 2011 में ईंधन समूह की मुद्रास्फ़ीति बढ़ी जिसका कुछ कारण 25 जून 2011 को की गई नियंत्रित मूल्य वृद्धि का प्रभाव था, हालांकि अनियंत्रित ईंधन कीमतों में गिरावट आई, विशेषत: हवाई टर्बाइन ईंधन की कीमत में।

20. प्रोटीन प्रधान पदार्थों जैसे अंडा, मछली और दूध संबंधी मुद्रास्फ़ीति ऊँची बनी हुई है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एन एस एस ओ) के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के 66वें दौर के अनुसार, 2004-05 और 2009-10 के बीच कुल उपभोक्ता व्यय में खाद्य पदार्थों का हिस्सा घटा है। तथापि, इसी अवधि में ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में कुल उपभोक्ता व्यय में प्रोटीन प्रधान पदार्थों का हिस्सा बढ़ा।

21.  उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी पी आइ) के जरिये मापी गई मुद्रास्फ़ीति घटती आ रही है पर अब भी ऊँचाई पर बनी हुई है। खाद्य मुद्रास्फ़ीति में आई कमी के कारण औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी पी आइ-आइ डब्ल्यू) अप्रैल के 9.4 प्रतिशत से घटकर मई 2011 में 8.7 प्रतिशत पर आई। नये अखिल भारतीय सीपीआइ की जून 2011 में (आधार: 2010=100) आई 108.8 की ताजा़ रीडिंग से यह लगता है कि मूल्यों का दबाव बना हुआ है।

22.  रिज़र्व बैंक द्वारा उठाए गए नीतिगत कदमों के रेस्पॉन्स में अनुसूचित वाणिज्य बैंक अपनी घरेलू जमा दरें बढ़ाते रहे हैं। 2010-11 के दौरान सभी वाणिज्य बैंकों का मोडल टर्म डिपॉज़िट रेट 165 आधार अंक बढ़ा। अप्रैल-जुलाई 2011 के दौरान यह 60 आधार अंक और बढ़ गया।

23.  अनुसूचित वाणिज्य बैंकों ने जब अपनी डिपॉज़िट रेट्स बढ़ाई तो जमाराशियों (डिपॉज़िट्स) की वृध्दि में तेजी हुई, अप्रैल की शुरुआत में 17.4 प्रतिशत वर्ष-दर-वर्ष से जुलाई की शुरुआत में 18.4 प्रतिशत। इसके  साथ ही, तत्संबंधी अवधि में मुद्रा वृध्दि 18.4 प्रतिशत से घटकर 15.0 प्रतिशत पर आ गई। जमाराशियों में अच्छी वृध्दि के परिणामस्वरुप वर्ष-दर-वर्ष व्यापक मुद्रा आपूर्ति (M3) रिज़र्व बैंक के 16 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान को पीछे छोड़ते हुए 17.1 प्रतिशत बढ़ी। हालांकि, सक्षम वित्तीय अंतर्मध्यस्थता (फाइनैंशियल इंटरमीडिएशन) के लिए मुद्रा-जमा अनुपात में कमी वांछनीय है, पर विरोधाभास यह है कि उच्चतर मुद्रा गुणक (मनी मल्टीप्लायर) के रुप में इसका प्रभाव बढ़े हुए मुद्रास्फीतीय दबाव का रुप ले सकता है।

24.  वर्ष-दर-वर्ष खाद्येतर ऋण वृध्दि मार्च 2011 के 21.3 प्रतिशत से घटकर 1 जुलाई 2011 को 19.5 प्रतिशत रह गई, पर तब भी यह 3 मई के वक्तव्य के 19 प्रतिशत के सांकेतिक अनुमान से अधिक ही थी। खाद्येतर ऋण वृध्दि व्यापक रही जिसमें उद्योग, सेवा और निजी (इंडस्ट्री, सर्विसेज़ एवं पर्सनल) क्षेत्रों में उच्चतर वृध्दि दर्ज़ हुई। आँकड़ों को अलग-अलग देखने से पता चलता है कि औद्योगिक क्षेत्र में सबसे अधिक ऋण आधार-भूत क्षेत्र को गया।

25. रिज़र्व बैंक के आकलन के अनुसार 2011-12 की पहली तिमाही के दौरान बैंकों, घरेलू बैंक से इतर और बाह्य स्त्रोतों से वाणिज्य क्षेत्र को जाने वाला संसाधनों का कुल प्रवाह 2,40,000 करोड़ रहा जो कि पिछले वर्ष की तत्संबंधी अवधि के   2,63,000 करोड़ की तुलना में कम है।

26. 01 जुलाई 2010 से लागू आधार दर प्रणाली (बेस रेट सिस्टम) से उधारी की दरों में पारदर्शिता आई है और बैंकों द्वारा दिए जा रहे उधार की दरों पर मौद्रिक नीति कार्रवाइयों के प्रभाव के बेहतर आकलन में सहायता मिली है। जुलाई 2010 से, बैंकों का मोडल रेट 225 आधार अंक बढ़ गया है। बेस रेट सिस्टम के अनुसार ऋण के मूल्य निर्धारण और घाटे की चलनिधि परिस्थितियों से मौद्रिक संचरण प्रक्रिया की ताकत और पारदर्शिता बढ़ी है।

27.नीति के रुख़ के अनुसार, 2011-12 में अब तक चलनिधि परिस्थितियां सामान्यत: घाटे की स्थिति में रही हैं। इस अवधि में 22 जुलाई तक चलनिधि समायोजन सुविधा (एल ए एफ़) की ख़िड़की से लगभग   48,000 करोड़ डाले गए जो कि एनडीटीएल के एक प्रतिशत के भीतर हैं।

28. 10-वर्षीय सरकारी प्रतिभूति आय (गवर्नमेंट सिक्यूरिटि यील्ड) अप्रैल के अंत के 8.1 प्रतिशत से बढ़कर जुलाई 2011 में 8.3 प्रतिशत हो गई। तथापि, पॉलिसी रेट में वृद्धियों व अल्पावधि पत्र (शॉर्ट टर्म पेपर) के जारी किए जाने पर अल्पावधि आय (शॉर्ट-टर्म यील्ड्स) अधिक तेजी से बढ़ीं जिसके परिणामस्वरूप आय वक्र (यील्ड कर्व) सपाट (फ्लैट) हो गई। दीर्घावधि यील्ड्स के अपेक्षाकृत रूप से स्थिर होने की एक व्याख्या यह है कि मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाएं दीर्घवाधि में स्थिर (एन्कर्ड) रहीं ।

29. रियल इस्टेट मार्केट में मज़बूती बनी रही। रिज़र्व बैंक के तिमाही आवास मूल्य सूचकांक से जाहिर होता है कि 2010-11 की चौथी तिमाही में अधिकांश शहरों में घरों की कीमतें बढ़ीं। जिन सात शहरों के लिए सूचकांक बनाया जाता है, उनमें से अधिकांश शहरों में 2010-11 की चौथी तिमाही में आवास संबंधी लेन-देन की संख्या में भी तेजी आई ।

30.  अप्रैल-मई 2011 के दौरान, केंद्र सरकार का राजस्व व राजकोषीय घाटा पिछले वर्ष की तत्संबंधी अवधि के स्तर से अधिक रहा जिसका कारण था राजस्व उगाही में कमी और ख़र्च में अधिकता। 18 जुलाई 2011 तक केंद्र सरकार ने अपने निवल बाज़ार उधारी कार्यक्रम का 34 प्रतिशत पूरा कर लिया था, जबकि पिछले साल तत्संबंधी अवधि में यह प्रतिशत 37 था।

31. 2011-12 की पहली तिमाही में विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) 44.05-45.38  प्रति अमरीकी $ के मध्य दोनों दिशाओं में गया। औसतन, जहाँ 6-मुद्रा वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (रीर) 1.5 प्रतिशत बढ़ी, वहीं 30-मुद्रा वास्तविक प्रभावी विनिमय दर और 36-मुद्रा वास्तविक प्रभावी विनिमय दर  में लगभग 0.6 प्रतिशत की गिरावट आई।

32.  जहाँ तक बाह्य क्षेत्र का प्रश्न है, चालू खाता घाटा विगत वर्ष के जीडीपी के 2.8 प्रतिशत से घट कर 2010-11 में जीडीपी के 2.6 प्रतिशत पर आया। अदृश्य प्राप्तियों (इनविज़िबल रेसिप्ट्स) के लगातार  बने रहने के अलावा, इसमें 2010-11 की दूसरी तिमाही में निर्यात में हुई अच्छी वृद्धि का भी हाथ है। 2011-12 की पहली तिमाही में निर्यात वृद्धि मज़बूत रही जिसमें निर्यात गत वर्ष की तत्संबंधी तिमाही की तुलना में 46 प्रतिशत बढ़ा; आयात इस तिमाही में 31 प्रतिशत बढ़ा।

33. 2011-12 की पहली तिमाही में पूंजी आगम के प्रमुख अवयवों में वृद्धि देखी गई। ख़ास तौर पर, एफ़ डी आइ का आगम अप्रैल-मई 2011 में 7.8 बिलियन अमरीकी $ रहा जबकि पिछले वर्ष तत्संबंधी अवधि में यह 4.4 बिलियन अमरीकी $ था। बाह्य वाणिज्यिक उधार (ई सी बी), गत वर्ष की तत्संबंधी अवधि  के 5.3 बिलियन अमरीकी $ की तुलना में अप्रैल-जून 2011 में 8.1 बिलियन अमरीकी $ रहा। विदेशी मुद्रा भंडार, मार्च 2011 के अंत के 304.8 बिलियन अमरीकी $ की तुलना में 15 जुलाई 2011 को 314.5 बिलियन अमरीकी $ रहा जो कि मूल्यांकन तथा सामान्य/ नियमित तरीके से होने वाली वृद्धि का परिणाम है।

II. परिदृश्य और पूर्वानुमान

वैश्विक परिदृश्य

वृद्धि

34.  2011 की दूसरी तिमाही के दौरान समुत्थान(रिकवरी) की गति में आई कमी को ध्यान में रखते हुए आइ एम एफ़ ने जून 2011 के अपने वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यू ई ओ) अपडेट में 2011 की वैश्विक वृद्धि के बारे में अप्रैल 2011 के अपने 4.4 प्रतिशत के आकलन को संशोधित करके 4.3 प्रतिशत किया। अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि, आइ एम एफ़ के अनुसार, प्रमुख विकसित देशों में कमजोर श्रम व आवास (लेबर एंड हाउसिंग) बाज़ार और लगातार बनी हुई सरकारी ऋण समस्याओं के चलते  जारी सुस्ती के कारण वैश्विक वृद्धि में कमी आने का ख़तरा बढ़ गया है।

मुद्रास्फ़ीति

35.  वैश्विक तौर पर जहाँ, वृद्धि में ह्रास आना तय दिख रहा है, वहीं उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (ई एम ई ज़) में माँग के मज़बूत होने और पण्य कीमतों (कमोडिटी प्राइस) के बढ़ने से मुद्रास्फ़ीति के बढ़ने की प्रत्याशा है। यद्यपि, कपास, रबर और धातुओं की कीमतें हाल की अवधि में नरम पड़ी हैं पर कच्चे तेल के मूल्य अस्थिर बने हुए हैं और इस दिशा में परिदृश्य अनिश्चितता का है। आइ एम एफ़ का पूर्वानुमान है कि उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फ़ीति, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में 2010 के 1.6 प्रतिशत से बढ़कर, 2011 में 2.6 प्रतिशत और उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 6.1 प्रतिशत से बढ़कर 6.9 प्रतिशत हो सकती है।

घरेलू परिदृश्य

वृद्धि

36. 3 मई के नीति वक्तव्य में 2011-12 के आधार वास्तविक (बेसलाइन रियल) जीडीपी का अनुमान लगभग 8.0 प्रतिशत के आस-पास रखा गया था। नीति-गत उद्देश्यों के लिए किया गया यह अनुमान सामान्य मॉनसून और कच्चे तेल की कीमतों के प्रति बैरल औसतन 110 अमरीकी $ के आस-पास होने पर आधारित था। बाद की जानकारी से पता चलता है कि यह अनुमान वैध है। आधारभूत परिदृश्य (बेसलाइन) में वृद्धि में नरमी की प्रत्याशा है जो कि आंशिक रूप से मौद्रिक रुख़ के कारण है, लेकिन मुद्रास्फ़ीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य के अनुरूप है। तथापि, यह नरमी ख़पत में समग्र उछाल के चलते सीमित रहेगी जिसका कुछ कारण वास्तविक वेतन में समग्र वृद्धि होना है। यदि निर्यात में बेहतर प्रदर्शन जारी रहा तो इससे वृद्धि में नरमी को रोकने में मदद मिलेगी। जहाँ तक मॉनसून का प्रश्न है, जुलाई 2011 के तीसरे सप्ताह तो यह लगभग सामान्य रहा जो कि समग्र रूप से उत्पादन के लिए अच्छा संकेत है। तथापि, इसके असमान वितरण से मोटे अनाजों, दालों, तिलहनों और कपास की पैदावार पर संभावित दबाव के संकेत मिलते हैं। कृषि के प्रदर्शन का और पुख़्ता आकलन सितंबर 2011 को जारी होनेवाली मध्य तिमाही समीक्षा में किया जाएगा।

37.  इस पृष्ठभूमि में, वास्तविक जीडीपी वृद्धि का आधारभूत अनुमान 8.0 प्रतिशत पर रखा गया है, जैसा कि 3 मई के नीति वक्तव्य में कहा गया है। (चार्ट 1).

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38.  यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि आपूर्ति पक्ष की,विशेषत: खाद्य और मुद्रास्फ़ीति में, समस्याओं को दूर करने के लिए समुचित कार्रवाई के अभाव में ये प्रश्न सामने आते हैं कि क्या अर्थव्यवस्था में यह क्षमता है कि उल्लेखनीय मुद्रास्फ़ीतीय दबावों के बिना वर्तमान वृद्धि बनाए रख पाए।  मुद्रास्फ़ीति पर असर डाले बिना अर्थव्यवस्था के किसी अवधि तक तेजी से बढ़ने की क्षमता इस बात पर निर्भर है कि नीतियों का कार्यान्वयन कैसा है, तत्संबंधी संसाधनों का वितरण कैसा है जिससे कि माँग के अनुरूप विभिन्न उत्पादों व सेवाओं (प्रॉडक्ट्स एंड सर्विसेज़) की आपूर्ति होती रहे।

मुद्रास्फ़ीति

39.  3 मई के अपने वक्तव्य में, रिज़र्व बैंक ने मार्च 2012 की थोकमूल्य सूचकांक मुद्रास्फ़ीति (डब्ल्यू पी आइ इन्फ्लेशन) का आधारभूत अनुमान (बेसलाइन प्रोजेक्शन) ऊर्ध्वमुखी रुझान के साथ 6.0 प्रतिशत पर रखा था। तब से कुछ ऊर्ध्वमुखी जोख़िम घटित हुए हैं और जिससे मुद्रास्फ़ीतीय दबाव बढ़े हैं।

40. पहला, पेट्रोल, डीज़ल, केरोसिन और एलपीजी जैसे पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें मई/जून 2011 में बढ़ाई गईं। पेट्रोलियम पदार्थों की नियंत्रित कीमतों में की गई वृद्धि से डब्ल्यू पी आइ मुद्रास्फ़ीति में 70 आधार अंकों का सीधा असर पड़ेगा। इसके अलावा अप्रत्यक्ष प्रभाव हैं जो कि वर्ष के दौरान क्रमश: सामने आएंगे। मु्द्रास्फ़ीति को और ऊपर ले जाने वाला दबाव एक अन्य एकबारगी किस्म के कारक से पड़ेगा। खनिज वर्ग के अंतर्गत डब्ल्यू पी आइ में 0.9 प्रतिशत की भार वाले घरेलू कच्चे तेल कीमतों में की गई वृद्धि के कारण अप्रैल 2011 में थोक मूल्य सूचकांक में लगभग 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी हुई। यदि कच्चे तेल की किमतें महत्त्वपूर्ण रूप से कम नहीं हुईं तो मार्च 2012 में भी ऐसा ही प्रभाव देखने को मिल सकता है।

41.  दूसरा, कुछ कृषि पण्यों, विशेषत: चावल और दालों, के न्यूनतम समर्थन मूल्यों (एमएसपीज़) में काफ़ी बढ़ोतरी की गई। फ़सल अच्छी हो तब भी, इसके चलते खाद्य मुद्रा स्फ़ीति पर ऊपर की ओर दबाव पड़ने की संभावना है।

42.  तीसरा, खाद्येतर विनिर्माण मुद्रास्फ़ीति ऊँचाई पर कायम है जो कि मांग के दबावों को दर्शा रहे हैं। 2011-11 के शुरुआती कॉरपोरेट परिणामों में एक तरफ़ जहाँ मूल्य निर्धारण क्षमता (प्राइसिंग पावर) में आई कमी, लाभ में नरमी  के रूप में दिखाई दे रही हैं, वहीं बढ़ी हुई पण्य कीमतों का अधिक सामान्य मुद्रास्फ़ीति पर पड़ने वाला प्रभाव उल्लेखनीय बना हुआ है।

43.  आगे, मुद्रास्फ़ीति का परिदृश्य निम्नलिखित कारकों से आकार लेगा। पहला, दक्षिण पश्चिम  मॉनसून कुल मिलाकर कैसा रहता है। कुल मिलाकर कोई बड़ी कमी न होने पर भी पूरे मौसम में विभिन्न स्थानों और समय पर बारिश की समुचित मात्रा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ऐसे समय में जबकि, प्रोटीन-प्रधान खाद्य पदार्थों में कीमतों का दबाव बना हुआ है, वृष्टिपात में कोई कमी या इसके पैटर्न में गड़बड़ी से खाद्य मुद्रास्फ़ीति के लिए अहम जोखि़म खड़ा हो सकता है।

44.  दूसरा, निकट भविष्य में कच्चे तेल मूल्यों (क्रूड प्राइसेज़) का परिदृश्य अनिश्चित है। अप्रैल में प्रति बैरल 118 अमरीकी $ से घटकर मई में प्रति बैरल 110 अमरीकी $ होने के बाद भारतीय कच्चे तेल समूह (क्रुड बास्केट) की कीमत 21 जुलाई 2011 को प्रति बैरल 114 अमरीकी $ तक चढ़ गई थी। वैश्विक रिकवरी, चलनिधि परिस्थितियों और खास तौर पर तेल सप्लाई की कुल स्थिति के हिसाब से हाल के ट्रेंड के अनुसार तेल की कीमतें अस्थिर बनी रह सकती हैं।

45. तीसरा, अर्थव्यवस्था में अभी भी, दबी हुई मुद्रास्फ़ीति का एक तत्त्व है। नियंत्रित ईंधन कीमतों में हाल की वृद्धि के बावज़ूद, सब्सिडि प्राप्त ईंधन के चलते राजस्व प्राप्तियों में 1,00,00 करोड़ से अधिक (जीडीपी का 0.1 प्रतिशत) की कमी होने का आकलन है जिसका एक बड़ा हिस्सा सरकार को ढोना पड़ सकता है। समस्या का हल चाहे जिस तरह निकाला जाए, मुद्रास्फ़ीति पर उसका असर होगा। यदि सरकार नियंत्रित मूल्य बढ़ाती है तो इसके मुद्रास्फ़ीतीय परिणाम स्पष्ट हैं।  यदि सरकार का राजकोषीय खाता इसे सोखता है, तो इसके विस्तारकारी/स्फ़ीतिकारी (एक्सपैन्सनरी) परिणामों से, मुद्रास्फ़ीतीय दबाव बढ़ेंगे। मुद्रास्फ़ीतीय परिणाम के बावजूद, यदि निकट भविष्य में कच्चे तेल की कीमतें कम नहीं हुईं तो ऊर्जा का संरक्षण करने और माँग पर लगाम कसने, दोनों दृष्टियों से कीमतों में वृद्दि को पास ऑन करना वांछनीय होगा।

46.  चार, थोक मूल्य सूचकांक समूह (डब्ल्यू पी आइ बास्केट) में नियंत्रित मूल्य वाली कुछ चीजें हैं जिनकी कीमतें आने वाले महीनों में बढ़ाई जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, फ़रवरी 2011 में कोयले की कीमतों में काफ़ी वृद्धि की गई थी। चूँकि बिजली के उत्पादन में कोयले का उपयोग होता है, सो बिजली कीमतें भी बढ़ सकती हैं। लेकिन नियंत्रित मूल्यों में किए जाने वाले परिवर्तन का समय अनिश्चित है, जिसका प्रभाव मुद्रास्फ़ीति के मार्ग पर पड़ेगा।

47. घरेलू मांग-आपूर्ति संतुलन, पण्य कीमतों में वैश्विक ट्रेंड और मांग के संभावित परिदृश्य को देखते हुए मार्च 2012 के थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का आधार अनुमान 6% से, जैसा कि 3 मई के नीति वक्तव्य में कहा गया था, बढ़ाते हुए 7% कर दिया गया है (चार्ट II)। जैसा कि 3 मई के नीति वक्तव्य में कहा गया था, आनेवाले कुछ और महीनों तक मुद्रास्फीति के उँचाई पर बने रहने की प्रत्याशा है और वर्ष के बाद के हिस्से में इसमें कुछ कमी आ सकती है।

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48. वर्तमान मुद्रास्फीति परिदृश्य चाहे जैसा हो, यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि पिछले दशक में थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक दोनों प्रकार से मापी गई मुद्रास्फीति दर औसतन 5.5 प्रतिशत रही है। जैसा कि 3 मई के नीति वक्तव्य में कहा गया है, रिज़र्व बैंक यह दृढ़ता से मानता है कि मध्यावधि में विकास को बनाए रखने और संभावित विकास दर को बढ़ाने, दोनों बातों के लिए मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना जरुरी है। अनुकूल निवेश माहौल के लिए यह अत्यंत जरुरी है जिस पर अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि निर्भर करती है। माँग को खपत से निवेश की दिशा में मोड़कर विकास की निरंतरता को बनाए रखने में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण अपना योगदान दे सकता है।

49. इस प्रकार, मौद्रिक नीति, मुद्रास्फ़ीति की अवधारणा को 4.0-4.5 प्रतिशत की रेंज में बनाए रखेगी, जिसमें विशेष ध्यान खाद्येतर विनिर्माण घटक (नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चरिंग कंपोनेंट) की गतिविधि पर होगा। वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था के साथ भारत के अधिकाधिक एकीकरण के अनुरूप यह 3.0 प्रतिशत मुद्रा स्‍फीति के मध्‍यावधि लक्ष्य के अनुकूल रहेगा। इस उद्देश्‍य की प्राप्ति में आपूर्ति पक्ष की, विशेषत: खाद्य तथा बुनियादी सुविधा संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए की गई समन्वित नीतिगत कार्रवाई तथा संसाधनों के आबंटन से सहायता मिलेगी।

कुल मौद्रिक राशियां

50.  मुद्रा आपूर्ति [एम3(M3)] और ऋण विकास के वर्तमान ट्रेंड रिज़र्व बैंक के सांकेतिक अनुमान पथ से अधिक हैं। विकास-मुद्रास्फ़ीति प्रति-संतुलन के उभरते परिदृश्य को देखते हुए 2011-12 में 3 मई के नीति वक्तव्य मे बताए गए एम3 की वृद्धि को 16.0 प्रतिशत से घटाकर 15.5 प्रतिशत किया जाता है। खाद्येतर बैंक ऋण वृद्धि के अनुमान को भी 19.0 से घटाकर 18.0 प्रतिशत किया जाता है।

जोख़िम के कारक

51. 2011-12 के विकास और मुद्रास्फीति संबंधी सांकेतिक अनुमान कई जोखिमों पर निर्भर हैं जो यहाँ बताए जा रहे हैं।

i) कुछ नरमी के बावजूद वैश्विक पण्य (कमोडिटी) कीमतें, खास तौर पर तेल की कीमतें घरेलू विकास व मुद्रास्फीति पर अपना दबाब बनाए हुए हैं। कच्चे तेल के कीमतों के भविष्य की राह अनिश्चित है। यदि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में रिकवरी तेज हुई तो कीमतों पर ऊपर की तरफ दबाब बन सकता है। दूसरी तरफ, यदि रिकवरी थमती है तो चलनिधि की सुलभ परिस्थितियां बनी रहेंगी जिससे सट्टा/अटकल की स्थितियां कायम रहेंगी और कीमतों को कम नही होने देंगी।

ii) अनिश्चित वैश्विक समष्टि आर्थिक माहौल, घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए चालू खाता घाटा के वित्तपोषण की दृष्टि से चुनौती भरा है। इस संदर्भ में पूंजी प्रवाह के घटक चिंता के विषय हैं। हाल के महीने में पूंजी प्रवाह के घटकों का रुख़ विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ डी आइ) की ओर मुड़ता पाया गया है। वर्तमान चालू खाता घाटे के वित्तपोषण की गुणवत्ता (क्वॉलिटी) को बेहतर बनाने के लिए इस ट्रेंड को नीतिगत कार्रवाईयों के माध्यम से सहयोग दिया जाना चाहिए।

iii)  खाद्य मुद्रास्फीति परिदृश्य में जोखिम के तत्त्व है। पहला, वैसे तो अब तक मानसून सामान्य रहा है, पर अगस्त में बारिश में यदि कमी होती है तो कम वृष्टि के साथ समर्थन मूल्य की अधिकता अनाजों व दालों की मुद्रास्फीति  को ऊपर ले जा सकती है। दूसरा, यदि आपूर्ति पक्ष की ओर से रेस्पांस ठीक न रहा तो इससे प्रोटीन-प्रधान पदार्थो जैसे अंडा, मांस, मछली, दूध और दालों की मूल्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।

iv)  वर्ष 2011-12 के लिए केंद्र सरकार ने जीडीपी का 4.6 प्रतिशत का राजकोषीय घाटा बजटित किया और बाद के घटना क्रम से इस लक्ष्य को पाना एक चुनौती बन गई है। खर्च की ओर जाएं तो, पेट्रोलियम पदार्थ के मूल्यों में हाल में किए गए बदलाव के बावजूद 2011-12 में सब्सिडी का बोझ बजटित राशि से अधिक होने की पूरी संभावना है। राजस्व की तरफ़, पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में वृध्दि से प्राथमिक रुप से तेल मार्केटिंग कंपनियों की कम उगाही की मात्रा कम करने में मदद मिलेगी, परंतु जून 2011 में घोषित टैक्स की कटौतियों से केंद्र सरकार को होनेवाली राजस्व की हानि (जीडीपी के 0.3 प्रतिशत) का असर राजकोषीय और राजस्व घाटे, दोनों पर पड़ेगा। इस प्रकार मुद्रास्फीति को मैनेज करने में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण अत्यंत महत्वपूर्ण है। मात्रात्मक लक्ष्य को पूरा करते समय सरकार को व्यय की गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा ताकि राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया चलती रहे जिससे समग्र माँग को कम करने और संभावित उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिले।

III. नीति का रुख़

52.  अक्तूबर 2009 से, वित्तीय संकट के समय उठाए गए उदार मौद्रिक नीति के अपने रुख़ से वापसी के संकेत देने के बाद रिज़र्व बैंक ने प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को 100 आधार अंक बढ़ाया है। रिज़र्व बैंक ने नीति दर (रिपो रेट) दस बार बढ़ाकर कुल 275 आधार अंकों की वृध्दि की। सिस्टम में चलनिधि आधिक्य (सरप्लस) से घाटे की ओर चली गई है और इस प्रकार नीतिगत दरों में प्रभावी कसाव कुल 425 आधार अंकों तक का हुआ।

53.  वर्ष की दूसरी छमाही में मंदी की धारणा और वैश्विक अनिश्चितताओं के व्यापक सदर्भ में 2010-11 में मौद्रिक नीति का रेस्पॉन्स भारत विशेष में वृध्दि-मुद्रास्फीति संतुलन के आधार पर नपे-तुले ढ़ंग से तय किया गया। तथापि, रिज़र्व बैंक की स्वीकार्य सीमा के बाहर मुद्रास्फीति के लगातार बने रहने को देखते हुए और इस दृष्टि से कि मुद्रास्फीति का अधिक होना दीर्घावधि में विकास के लिए हानिकारक है, रिज़र्व बैंक ने, 2011-12 में अपना मुद्रास्फ़ीति-रोधी रुख़ कायम रखा है।

54. ऐसी वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक परिस्थितियों, परिदृश्‍य और जोखिमों की पृष्‍ठभूमि में 2011-12 का हमारा नीति संबंधी रुख़ निम्‍नलिखित तीन प्रमुख सरोकारों से तय हुआ है।

55. पहला, मांग के दबाव मज़बूत बने हुए हैं। जैसा कि 3 मई के नीति वक्‍तव्‍य में बताया गया था, 2011-12 की पहली छमाही में मुद्रास्‍फीति के ऊँचाई पर रहने की प्रत्‍याशा है। अब  तक वास्‍तविक मुद्रास्‍फीति प्रत्‍याशित से अधिक रही है। फरवरी-अप्रैल 2011 के दौरान खाद्येतर विनिर्मित उत्‍पाद मुद्रास्‍फीति (नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इनफ्लेशन) में बडे़ बदलाव से मज़बूत मांग दबाव के आकलन की पुष्टि होती है।  कच्‍चे तेल की कीमतों में अस्थिरता है और यह एक बड़ा खतरा है। घरेलू नियंत्रित ईंधन कीमतों और कुछ खाद्य पदार्थो की न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य में हाल में हुई वृद्धि से मुद्रास्‍फीति पर दबाव पडे़गा।

56. दूसरा, ऐसे संकेत हैं कि विकास की गति धीमी होनी शुरु हुई है, खास तौर पर उन क्षेत्रों में जो ब्‍याज के प्रति संवेदनशील है। वैसे, अभी तक तीव्र या व्‍यापक मंदी के सबूत नहीं हैं। कई संकेतों से पता चल रहा है कि डिमांड में कुछ नरमी आ रही है परंतु धीरे-धीरे जैसे कि निर्यात व आयात, अप्रत्‍यक्ष कर उगाहियां, कॉरपोरेट बिक्री व आय और बैंक ऋण की मांग।  वैसे अभी भी मांग पक्ष के मुद्रास्‍फीतीय दबाव हावी हैं।  यद्यपि पहले की गई मौद्रिक नीति कार्रवाईयों का असर अभी भी संचरित हो रहा है, पर समग्र विकास व मुद्रास्‍फीति परिदृश्‍य को देखते हुए मुद्रास्‍फीति-रोधी रुख़ पर डटे रहने की जरूरत है ।

57. इस पृष्‍ठभूमि में रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति का रुख़ इस प्रकार होगा :

  • ब्‍याज दर का ऐसा परिवेश बनाए रखना जिससे मुद्रास्‍फीति में कमी हो और मुद्रास्फ़ीति प्रत्याशाओं को सुस्थिर किया जा सके।

  • विकास के ट्रेंड के महत्त्वपूर्ण रूप से नीचे जाने के खतरे को मैनेज करना।

  • चलनिधि (लिक्विडिटी) का प्रबंधन इस प्रकार करना कि वित्तीय प्रणाली पर अनुचित दबाव भी न पड़े और मौद्रिक संचरण प्रभावी हो।

IV. मौद्रिक उपाय

58.  वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीतिगत रुख़ के अनुसार रिज़र्व बैंक निम्नलिखित नीतिगत उपायों की घोषणा करता है:

रेपो रेट

59.  यह निर्णय लिया गया है कि:

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एल ए एफ़) के अंतर्गत नीति (पॉलिसी) रेपो रेट में तत्काल प्रभाव से 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी कर उसे 7.5 प्रतिशत से 8.0 प्रतिशत कर दिया जाए।

रिवर्स रेपो दर

60. एल ए एफ़ के तहत रिवर्स रेपो रेट जिसमें रेपो रेट से 100 आधार अंकों से कम का अंतर होता है, अपने आप तत्काल प्रभाव से 7.0 प्रतिशत  पर एडजस्ट हो गया है ।

मार्जिनल स्थायी सुविधा (एम एस एफ़) दर

61.  रेपो दर से 100 आधार अंको के अधिक के अंतर पर निर्धारित की गई मार्जिनल स्थायी सुविधा दर (एम एस एफ़ रेट) तत्काल प्रभाव से 9.0 प्रतिशत पर निर्धारित हो गई है।

बैंक दर

62.  बैंक दर को 6.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है।

प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात

63.   अनुसूचित बैंकों के प्रारक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को उनके निवल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 6.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है।

प्रत्याशित परिणाम

64.  ऐसी प्रत्याशा है कि ये मौद्रिक नीति कार्रवाइयां :

  • मांग पर पिछली नीति कार्रवाइयों के कुल प्रभाव को सुदृढ़ करेंगी:

  • मुद्रास्फीति‍ को नियंत्रित  करने की मौद्रिक नीति की प्रतिबद्धता की विश्वसनीयता बनाए रखेंगी और इस प्रकार मध्यावधि मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को सुस्थिर रखेंगी; और

  • इस दृष्टिकोण को रेखांकित करेंगी कि मांग और आपूर्ति  दोनों पक्षों पर एक दूसरे के पूरक नीति-गत रेस्पॉन्सों के अभाव में, और अधिक सख्त मौद्रिक नीति कार्रवाइयों की जरूरत है ।

मार्गदर्शन

65. आगे, मौद्रिक नीति  का रूख़ मुद्रास्फीति‍ के उतार-चढ़ाव पर निर्भर होगा, जो घरेलू विकास और वैश्विक पण्य मूल्यों (कमोडिटी प्राइसेज़) की प्रवृत्तियों द्वारा निर्धारित होगा। मुद्रास्फीति‍ में ढलान के बने रहने के संकेत ही रुख़ में बदलाव का आधार बनेंगे ।

मौद्रिक नीति की  मध्य तिमाही समीक्षा

66. वर्ष 2011-12 की मौद्रिक नीति की अगली मध्य तिमाही समीक्षा की घोषणा शुक्रवार, 16 सितंबर, 2011 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से की जाएगी।

मौद्रिक नीति  2011-12 की दूसरी तिमाही समीक्षा

67.  विकासात्मक और विनियामक नीतियों सहित, मौद्रिक नीति 2011-12 की दूसरी तिमाही समीक्षा मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011 को की जाएगी ।

मुंबई
26  जुलाई  2011

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