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मौद्रिक नीति 2012-13 की पहली तिमाही समीक्षा

डॉ. डी. सुब्बाराव
गवर्नर

भूमिका

अप्रैल 2012 में जारी 2012-13 के मौद्रिक नीति वक्तव्य से अब तक समष्टि-आर्थिक परिस्थितियाँ बदतर हुई हैं। चूँकि अधिकांश देश मंदी की स्थिति में हैं, वर्ष की शुरुआत में वैश्विक अर्थव्यवस्था ने जो प्रगति दिखाई थी, उसे बनाया नहीं रखा जा सका । धीमी पड़ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के बावजूद, पण्य (कमोडिटी) कीमतों का परिदृश्य अनिश्चित है। यद्यपि चूक की तत्काल संभावना टल गई है, परंतु यूरो क्षेत्र में स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। विश्व भर में आर्थिक कार्य कलापों के कमज़ोर पड़ने से जहाँ उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) के निर्यातों पर बुरा असर पड़ा है, वहीं उनमें आने वाले पूँजी प्रवाहों में यूरो क्षेत्र के वित्तीय बाज़ार की तनावपूर्ण हालत के चलते काफी कमी आ गई है।

2. देश में, समष्टि-आर्थिक परिस्थितियां चिंता का कारण बनी हुई हैं। एक ओर जहाँ विकास धीमा पड़ गया है, वहीं मुद्रास्फीति रिज़र्व बैंक की स्वीकार्य सीमा से काफी अधिक बनी हुई है। दो बड़े घाटे, अर्थात् चालू खाता घाटा (सीएडी) और राजकोषीय (फिस्कल) घाटा, समष्टि-आर्थिक स्थिरता के लिए बड़ा जोखिम बने हुए हैं। बढ़ी हुई वैश्विक अनिश्चितता और घरेलू समष्टि-आर्थिक दबावों की पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति के सामने चुनौती यह है कि मुद्रास्फ़ीति को काबू में करने और मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं को कम करने की प्राथमिकता को बनाए रखा जाए। साथ ही, विकास व वित्तीय स्थिरता को जिन बातों से खतरा है, मौद्रिक नीति को उनके प्रति संवेदनशील भी होना है।

3. उपर्युक्त संदर्भ में, इस वक्तव्य को रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गयी समष्टि-आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों में दी गयी विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाए ।

4. यह वक्तव्य चार भागों में है। भाग I में वैश्विक और घरेलू समष्टि-आर्थिक घटनाचक्र पर एक नज़र डाली गई है; भाग II में आर्थिक विकास, मुद्रास्‍फीति और कुल मौद्रिक राशियों (मनीटरी एग्रिगेट्स) संबंधी परिदृश्य एवं पूर्वानुमान दिए गए हैं; भाग III में मौद्रिक नीति के रुख़ को समझाया गया है और भाग IV में मौद्रिक और चलनिधि उपायों का उल्लेख है।

I. अर्थव्‍यवस्‍था की स्थिति

वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था

5. वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ़) ने अपने वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) के ताजा अपडेट में 2012 में विश्व की वृद्धि के संबंध में अपने पूर्वानुमान को थोड़ा घटाकर 3.5 प्रतिशत किया है, परंतु इस बात पर ज़ोर दिया है कि विकास के और नीचे जाने के खतरे बने हुए हैं। अमेरिका में उत्पादन वृद्धि 2012 की पहली तिमाही के 2.0 प्रतिशत से घट कर 1.5 प्रतिशत [मौसमी रूप में समायोजित वार्षिकृत दर (एसएएआर)] पर आ गई। यूरो क्षेत्र में, पिछली तिमाही में 1.2 प्रतिशत की कमी के बाद वृद्धि सपाट रही । यूके में 2012 की दूसरी तिमाही में 2.8 प्रतिशत की कमी आई और पहली तिमाही में 1.3 प्रतिशत की कमी आई। जापान में पिछली तिमाही में 0.1 प्रतिशत की अल्प वृद्धि के बाद पहली तिमाही में उत्पादन 4.7 प्रतिशत बढ़ा जिसकी एक बड़ी वज़ह थी पुनर्निर्माण संबंधी माँग। वैश्विक विनिर्माता क्रय प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) 50.0 के निष्पक्ष स्तर (न्यूट्रल लेवल) से घटकर जून 2012 में 48.9 – 3 वर्षों में न्यूनतम – पर चला गया जो बताता है कि विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) कार्यकलाप में कमी आई है। जून 2012 में वैश्विक संमिश्र (विनिर्माण और सेवाएं) पीएमआई का 50.3 पर होना लगभग ठहराव की स्थिति दर्शाता है।

6. 2 जुलाई 2012 को हुए यूरोपीयन कमीशन (ईसी) शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णयों से बाज़ार का विश्वास बढ़ा, पर केवल कुछ समय के लिए। विकास में कुछ समय तक कायम रहने वाली रिकवरी या सरकारी ऋण दबाव में कमी के बिना- जो कि एक दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं – यूरो क्षेत्र में राजकोषीय और वित्तीय स्थिरता, प्रणालीगत (सिस्टेमिक) वैश्विक खतरे के सबसे अहम स्त्रोत बने हुए हैं। हाल के हफ्तों में ग्रीस संबंधी चिंताओं के नये सिरे से उभरने व स्पेन व इटली को पहले से अधिक सामूहिक सहयोग की जरूरत ने इन खतरों को बढ़ा दिया है। फलत:, यूरो क्षेत्र के मूल देशों एवं शेष विश्व पर भी इसके नकारात्मक परिणाम पड़ने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।

7. यह महत्त्वपूर्ण है कि विश्व के विकास के प्रति जो खतरे विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कमजोरी के बने रहने से पैदा होते हैं, वे ईडीईज़ में विकास के मंद पड़ने से और बढ़ गए हैं। बीआरआईसीएस (ब्रिक्स) देशों में, चीन में विकास, 2012 की पहली तिमाही के 8.1 प्रतिशत से घटकर दूसरी तिमाही में 7.6 प्रतिशत पर आ गया। पहली तिमाही में ब्राजील व दक्षिण अफ्रिका में भी विकास उल्लेखनीय रूप से मंद पड़ा। आईएमएफ के अनुसार, कई प्रमुख ईडीई देशों में पहले के पूर्वानुमान की तुलना में विकास कम रहा।

8. विकास की कमज़ोर संभावनाओं और पण्य कीमतों में कमी के कारण विकसित व उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीतीय दबाव नरम पड़े। अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल (ब्रेंट) की कीमतें मार्च के प्रति बैरल लगभग 125 अमेरिकी डॉलर के औसत से गिरकर जून 2012 में प्रति बैरल लगभग 95 अमेरिकी डॉलर पर आ गईं। तथापि जुलाई में औसत मूल्य प्रति बैरल 100 अमेरिकी डॉलर के ऊपर चला गया। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में, मूल मुद्रास्फ़ीति को होने वाले जोखिम को उत्पाद (प्रॉडक्ट) व श्रम (लेबर) बाज़ार, दोनों में अतिरिक्त/अनुप्रयुक्त क्षमता (स्पेयर कैपेसिटी) ने सीमित कर दिया है। ब्रिक्स देशों में चीन व रूस में मुद्रास्फ़ीति महत्त्वपूर्ण रूप से घटी। ब्राज़िल व दक्षिण अफ्रिका में भी कमी आई। यद्यपि, भारत में भी विकास धीमा पड़ रहा है, लेकिन जहाँ तक मुद्रास्फीति का प्रश्न है, भारत स्पष्टत: अपवाद है ।

देशी अर्थव्यवस्था

9. 2010-11 की चौथी तिमाही के 9.2 प्रतिशत से 2011-12 की चौथी तिमाही के 5.3 प्रतिशत तक सकल देशी उत्पाद (जीडीपी) का विकास लगातार चार तिमाहियों में नीचे गया है। औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण मंदी एवं सेवा क्षेत्र में ह्रास ने 2011-12 के समग्र जीडीपी विकास को रिज़र्व बैंक के 7 प्रतिशत के आधारभूत पूर्वानुमान (बेसलाइन प्रोजेक्शन) से खींचकर 6.5 प्रतिशत पर ला दिया है।

10. व्यय की ओर से, निवेश के कार्यों का तेज़ी से कमजोर पड़ना, मंदी का प्रमुख कारण रहा। सकल स्थिर पूँजी निर्माण जो 2011-12 की पहली तिमाही में 14.7 प्रतिशत बढ़ा था, दूसरी तिमाही में घटकर 5.0 प्रतिशत पर आ गया, तीसरी तिमाही में इसमें 0.3 प्रतिशत की कमी आई और चौथी तिमाही में इसमें कुछ सुधार हुआ और यह 3.6 प्रतिशत पर आया । 2011-12 में निजी खपत में भी ह्रास हुआ, अलबत्ता विकास का प्रमुख चालक भी यही बना रहा। रुपए के मूल्यह्रास का निर्यात पर किसी प्रकार का सकारात्मक प्रभाव अब तक सामने नहीं आया है।

11. ओद्यौगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) का विकास भी 2010-11 के 8.2 प्रतिशत से घटकर 2011-12 में 2.9 प्रतिशत हो गया। पुन:, अप्रैल-मई 2012 में 0.8 प्रतिशत का आईआईपी विकास, गत वर्ष की तत्संबंधी अवधि में दर्ज 5.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी से काफी कम है। मई के 54.8 से मामूली रूप से बढ़कर पीएमआई जून 2012 में 55.0 तक पहुँचा। संमिश्र [विनिर्माण व सेवा (मैन्यूफैक्चरिंग एंड सर्विसेज़)] पीएमआई भी मई के 55.3 से बढ़कर जून में 55.7 तक पहुँचा।

12. चालू मानसून के मौसम में, 25 जुलाई 2012 तक बरसात अपने दीर्घावधि औसत (एलपीए) से 22 प्रतिशत कम थी। रिज़र्व बैंक के उत्पादन भारित वृष्टिपात सूचकांक (पीडब्ल्यूआरआई) में तो और अधिक, 24 प्रतिशत, की कमी देखी गई। आगे, वृष्टि का वितरण बहुत ही असमान रहा जिसमें उत्तर-पश्चिम क्षेत्र ने सर्वाधिक कमी दर्ज की जो कि एलपीए का लगभग 39 प्रतिशत थी। वृष्टि की कमी अगर बनी रही, तो कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना है।

13. रिज़र्व बैंक के आदेश बही (ऑर्डर बुक), माल (इन्वेंटरी) और क्षमता उपयोग सर्वेक्षण (ओबीआईसीयूएस) में 2011-12 की चौथी तिमाही में क्षमता उपयोग (कैपेसिटि यूटिलाइजेशन) स्तर में पिछली तिमाही की तुलना में नियमित मौसमी बढ़ोतरी देखने को मिली। तथापि रिज़र्व बैंक के इंडस्ट्रियल आउटलुक सर्वे (आईओएस) से प्राप्त अग्रणी सूचना के अनुसार 2012-13 की पहली और दूसरी तिमाही में क्षमता उपयोग (कैपेसिटि यूटिलाइजेशन) में कमी आई है। इसके अलावा, दोनों तिमाहियों में समग्र कारोबारी मिज़ाज भी नरम पड़ा।

14. हेडलाइन थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) मुद्रास्फीति अप्रैल के 7.5 प्रतिशत से बढ़कर मई में 7.6 प्रतिशत हुई और जून में पुन: घटकर 7.3 पर आ गई। विकास के धीमे पड़ने के बावजूद, मुद्रास्फीति कम होने का नाम नहीं ले रही थी जिसका मुख्य कारण प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फीति का अधिक होना था जो कि सब्जियों की कीमतों में असामान्य वृद्धि और प्रोटीन आइटमों में मुद्रास्फ़ीति के लगातार ऊँचाई पर बने रहने के चलते 2012-13 की पहली तिमाही में दोहरे अंकों में थी।

15. ईंधन समूह मुद्रास्फीति अप्रैल 2012 के 12.1 प्रतिशत से घटकर मई में 11.5 प्रतिशत तथा जून में और अधिक 10.3 प्रतिशत पर आ गई क्योंकि अनियंत्रित ईंधन कीमतों में कटौती की गई जिसके पीछे की वजह यह थी कि वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें घट गई थीं । तथापि कच्चे तेल की कीमतों के में हाल के हफ्तों में हुई वृद्धि से मुद्रास्फीतीय दबाव बढ़ सकते हैं।

16. मई और जून 2012 में खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति (नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इनफ्लेशन) 4.8 प्रतिशत पर थी। तथापि, खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति (मौसमी तौर पर एडजस्ट किया गया 3-माह गतिशील औसत वार्षिकृत मुद्रास्फ़ीति) के गति संकेतक में ऊपर का रुख देखा गया। इसके अतिरिक्त, विनिमय दर की चाल (एक्सचेंज रेट मूवमेंट्स) व आपूर्ति पक्ष की बाधाओं, दोनों कारणों से, इनपुट कीमत के दबाव बने हुए हैं। आगे, नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इनफ्लेशन पर और अधिक दबाव पड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

17. 2012-13 की पहली तिमाही में खाद्य व खाद्येतर दोनों कीमतों के कारण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई न्यू सिरीज़) मुद्रास्फ़ीति दुहरे अंकों में रही। डब्ल्यूपीआई व सीपीआई मुद्रास्फ़ीति में अंतर दो कारणों से रहा। पहला, वस्तुओं की संरचना व भार, विशेषत: दो सूचकांकों के खाद्य वस्तुओं में, अंतर है। दूसरा, एक ही प्रकार के वस्तुओं में भी, डब्ल्यूपीआई की अपेक्षा सीपीआई में मुद्रास्फ़ीति अधिक थी जो बताता है कि सर्विस टैक्स अधिक है और इसके अलावा नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स के कीमतों में आई कमी अभी भी खुदरा (रिटेल) स्तर तक संचरित नहीं हो पाई है। सर्विसेज़ की कीमतें भी अधिक थीं जो सीपीआई में शामिल है पर डब्ल्यूपीआई में नहीं।

18. अन्य कारकों में, रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित अद्यतन सर्वेक्षण के अनुसार, शहरी हाउसहोल्ड्स की मुद्रास्फ़ीति प्रत्याशाएं, पिछली तिमाही में कम होने के बाद 2012-13 की पहली तिमाही में थोड़ी सी बढ़ीं। कुछ कमी के बावजूद, ग्रामीण व शहरी इलाकों में मजदूरी/ वेतन अपेक्षतया अधिक बना हुआ है।

19. 2,273 गैर-सरकारी, गैर-वित्तीय कंपनियों के एक कॉमन सैंपल पर आधारित 2011-12 में कंपनी प्रदर्शन (कॉरपोरेट प्रदर्शन) के एक विश्लेषण से पता चलता है कि मुद्रास्फ़ीति के लिए समायोजन (एडजस्ट) करने के बाद भी वर्ष में बिक्री वृद्धि धनात्मक (पॉज़िटिव) रही। तथापि खर्चे बढ़ने के कारण आय में कमी हो गई जो कि मूल्य निर्धारण शक्ति में कमी का संकेत है। 2012-13 की पहली तिमाही के शुरुआती परिणाम बता रहे हैं कि मूल्य निर्धारण शक्ति दबी रही।

20. मध्य-जुलाई में मुद्रा आपूर्ति (एम3) की 14.3 प्रतिशत की वृद्धि, 15 प्रतिशत के सांकेतिक पथ से जहाँ कुछ कम थी, वहीं 17.4 की खाद्येतर ऋण वृद्धि 17 प्रतिशत के सांकेतिक पथ से कुछ अधिक रही। यदि वाणिज्य पत्र (कमर्शियल पेपर) एवं अन्य उपकरणों (इंस्ट्रुमेंट्स) में बैंकों के निवेश को शामिल करें तो 17.7 प्रतिशत की गैर-खाद्य ऋण वृद्धि और अधिक थी।

21. बैंक व बैंक से इतर दोनों स्त्रोतों से वाणिज्य क्षेत्र को जाने वाले संसाधन 2012-13 अब (13 जुलाई 2012) तक 1.9 ट्रिलियन बढ़ गए हैं जबकि गत वर्ष तत्संबंधी अवधि में यह राशि 1.4 ट्रिलियन थी। बैंक से इतर स्त्रोंतों में वाणिज्य पत्र (कमर्शियल पेपर) के माध्यम से उगाहे गए संसाधनों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

22. अप्रैल में रिपो रेट में कमी के बाद कई वाणिज्य बैंकों ने अपनी उधारी की दरें घटाईं। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) का मोडल बेस रेट 25 आधार अंक घटकर अप्रैल-जून 2012 में 10.50 प्रतिशत पर आ गया। यह महत्त्वपूर्ण है कि, मुद्रास्फ़ीति के लिए एडजस्ट की गई वाणिज्य बैंकों की भारित औसत उधार दर (डब्ल्यूएएलआर) के आधार पर, अब वास्तविक दरें 2003-08 की उच्च विकास के पाँच वर्ष की अवधि की तुलना में कम हैं। तथापि, जमाराशियों की वृद्धि में सुस्ती के कारण बैंकों की ओर से जमाराशि दरों पर कोई खास कार्रवाई देखने को नहीं मिली।

23. अप्रैल पॉलिसी के समय से चलनिधि परिस्थितियां काफी सुगम हुई हैं। चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत औसत दैनिक निवल उधारियां, जो 2011-12 की चौथी तिमाही में औसत निवल माँग व मीयादी देयताओं का 2.2 प्रतिशत थी, तेजी से घटकर 2012-13 की पहली तिमाही में 1.3 प्रतिशत पर आ गईं और जुलाई 2012 (26 जुलाई 2012 तक) में और कम होकर 0.7 प्रतिशत तक आ गई। चलनिधि परिस्थितियों में यह बदलाव रिज़र्व बैंक के पास सरकारी कैश बैलेंस में कमी, प्रतिभूतियों (सिक्यूरिटीज़) के खुले बाजार (ओएमओ) क्रय द्वारा लगभग 860 बिलियन लिक्विडिटी डाले जाने तथा जून मध्य-तिमाही समीक्षा में निर्यात ऋण पुनर्वित्त सुविधा की सीमा बढ़ाए जाने के बाद से बैंकों द्वारा इसके अधिक उपयोग के कारण हुआ है। चलनिधि की स्थिति में सुधार के कारण भारित औसत माँग मुद्रा दर (कॉल मनी रेट), जो कि रिज़र्व बैंक का ऑपरेटिंग टारगेट है, पॉलिसी रिपो रेट के करीब रही।

24. चलनिधि में सुधार, मुद्रास्फीति में कमी और घरेलू व वैश्विक विकास के कमज़ोर होने की चिंताओं के कारण, 2012-13 की पहली तिमाही के दौरान, सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल (यील्ड्स) में नरमी आई। 10-वर्षीय बेंचमार्क प्रतिफल (यील्ड) 26 जुलाई 2012 को 8.11 प्रतिशत था जो महत्त्वपूर्ण रूप से कम है जबकि मार्च-अंत 2012 में यह 8.63 प्रतिशत था।

25. लेन-देन की मात्रा में कमी के बावजूद आवास कीमतें बढ़ती रहीं। रिज़र्व बैंक का तिमाही आवास सूचकांक बताता है कि 2011-12 की चौथी तिमाही में उन 9 शहरों में से अधिकांश में कीमतें बढ़ीं जिनसे संबंधित सूचकांक तैयार किया जाता है।

26. अप्रैल-मई 2012 में जब खाद्य सब्सिडी कम थी, उर्वरक सब्सिडी पिछले साल के स्तर के दुगुने से अधिक थी। स्पष्ट है कि यदि सब्सिडी पर व्यय को जीडीपी के 2 प्रतिशत के नीचे सीमित करने का लक्ष्य है, जैसा कि यूनियन बजट में कहा गया है, तो ईंधन व उर्वरक सब्सिडी पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

27. बाहरी माँग में कमी तथा पेट्रोलियम, तेल व लुब्रिकैन्टस (पीओएल) और सोने व चाँदी के भी अपेक्षाकृत लोचहीन आयातों के चलते हुए उच्चतर व्यापार घाटे के कारण चालू खाता घाटा (सीएडी) गत वर्ष के 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 2.7 प्रतिशत) से बढ़कर 2011-12 में 78 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 4.2 प्रतिशत) तक पहुँच गया। जब पूँजी प्रवाह सीएडी से कम पड़ा तो विदेशी मुद्रा भंडार से (बीओपी आधार पर) 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक का निवल आहरण (ड्रा डाउन) हुआ जबकि गत वर्ष के भंडार में कमोबेश लगभग इतनी राशि की वृद्धि हुई थी।

28. कमज़ोर वैश्विक स्थिति के कारण व्यापारिक वस्तुओं (मर्केंडाइज़) में भारत का निर्यात 2012-13 की पहली तिमाही में 1.7 प्रतिशत घटकर 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया। तथापि, आयात में कमी और अधिक आई जो 6.1 प्रतिशत घटकर 115 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रह गया जिसकी मुख्य वज़ह तेल से इतर व स्वर्ण से इतर वस्तुओं के आयात में आई कमी थी। परिणामत: 2012-13 की पहली तिमाही में व्यापार घाटा तुलनात्मक रूप से कम, 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जबकि गत वर्ष की तत्संबंधी अवधि में यह 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। प्राथमिक आँकड़ों के आधार पर पहली तिमाही में सेवा निर्यात (सर्विसेज़ एक्सपोर्ट) मामूली रूप से 3 प्रतिशत बढ़कर 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जबकि सर्विसेज़ का आयात 19 प्रतिशत बढ़कर 21बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचा। तदनुसार 2012-13 की पहली तिमाही में 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवल सेवा (नेट सर्विसेज़) निर्यात, 2011-12 की पहली तिमाही की तुलना में 12 प्रतिशत कम था।

29. 2012-13 में अब तक (20 जुलाई 2012 तक), 6-, 30- और 36 – मुद्रा व्यापार भारित वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर/रीर) 7-10 प्रतिशत की रेंज में घटी, जिसका प्राथमिक कारण अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपए का लगभग 9 प्रतिशत का सांकेतिक मूल्यह्रास (नॉमिनल डेप्रिशिएशन) था। आने वाली पूँजी के प्रवाह का शिथिल पड़ना, बड़ा चालू खाता घाटा, घरेलू आर्थिक अनिश्चितता और यूरो क्षेत्र की समस्या को लेकर बढ़ती चिंताएं इस मूल्यह्रास के मुख्य कारण थे ।

30. 2012-13 की पहली तिमाही में विनिमय दर मूल्यह्रास केवल भारत में ही होने वाली बात नहीं थी; अधिकांश ईडीई मुद्राओं का भी मूल्यह्रास हुआ। तथापि, जिन ईडीईज़ का चालू खाता बड़ा है, उनमें भारतीय रुपए का मूल्यह्रास तुलनात्मक रूप से अधिक रहा जो पूँजी आगम में आई कमी को दर्शाता है।

II. देशी परिदृश्य और पूर्वानुमान

विकास

31. अप्रैल पॉलिसी में, रिज़र्व बैंक ने 2012-13 में 7.3 प्रतिशत जीडीपी विकास का अनुमान लगाया था, जो सामान्य मानसून और औद्योगिक गतिविधि में सुधार पर आधारित था । ये दोनों ही अनुमान सही नहीं हो पाए । मानसून अब तक कमजोर और असमान रहा है। साथ ही अप्रैल-मई के औद्योगिक उत्पादन के आँकड़े यह दर्शाते हैं कि कुछ सुधार (रिकवरी) के बावजूद, औद्योगिक गतिविधि कमजोर रही । इसके आलावा घरेलू विकास को होने वाले खतरे बढ़ गए हैं । पहला, वैश्विक विकास और व्यापार की मात्रा पूर्वानुमान से कम होने की प्रत्याशा है । वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ते एकीकरण को देखते हुए, इसका विकास पर, विशेषत: उद्योग और सर्विस सेक्टर पर, प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है । हालांकि विनिमय दर के मुल्यह्रास के प्रभाव का अंतराल इसकी आंशिक रूप से भरपाई कर सकता है । अमेरिका में 2013 में “फिस्कल क्लिफ” के आने पर, जब अस्थायी टैक्स रियायत खत्म होगी और स्वत: खर्चे की कटौती प्रभावी होगी, विकास परिदृश्य में अतिरिक्त जोखिम भी जुड़ जाएगा । दूसरा, कमजोर औद्योगिक गतिविधि के प्रभाव के अंतराल और वैश्विक मंदी के चलते, सर्विस सेक्टर के विकास में भी मंदी की आशंका है । उपर्युक्त विचारों के आधार पर, 2012-13 में विकास के पूर्वानुमान को 7.3 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत किया गया है । (चार्ट 1).

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मुद्रास्फ़ीति

32. अप्रैल की पॉलिसी में रिज़र्व बैंक ने मार्च 2013 के लिए 6.5 प्रतिशत डब्लयूपीआई मुद्रास्फीति का आधारभूत पूर्वानुमान किया था । यह अनुमान अंशत: सामान्य मानसून पर आधारित था । अब तक के कम और असमान मानसून के कारण खाद्य मुद्रास्फीति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा । कुछ कमी के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें ऊँचाई पर बनी हुई है। इसके साथ, आयात मूल्यों में रुपए के मूल्यह्रास के प्रभाव के संचरित होने के कारण ईंधन कीमतों की मुद्रास्फीति पर ऊर्ध्वमुखी दबाव बना हुआ है। इसके अतिरिक्त, चूँकि अंतर्राष्ट्रीय दामों में बदलावों के साथ पेट्रोलियम पदार्थों के देशी मूल्यों का एडजस्टमेंट अभी भी अधूरा है, दबी हुई मुद्रास्फ़ीति के खतरे भी भारत में ईंधन की कीमतों को आगे ले जा सकते हैं । खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फ़ीति (नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इनफ्लेशन) में नरमी विकास में कमी के अनुरूप नहीं रही है। विनिमय दर की चाल (एक्सचेंज रेट मूवमेंट्स) और कोयला, खनिज व बिजली में बुनियादी ढांचे की बाधाओं के चलते इनपुट कीमतों पर पड़ने वाले प्रभाव से, हो सकता है, नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इनफ्लेशन और बढ़े।

33. खाद्य मुद्रास्फीति के हाल की प्रवृत्तियों , वैश्विक पण्य मूल्यों में प्रवृत्तियों और संभावित मांग परिदृश्य को देखते हुए ,मार्च 2013 के लिए डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति के आधारभूत पूर्वानुमान को अप्रैल पॉलिसी में उल्लिखित 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.0 प्रतिशत किया गया है (चार्ट 2)।

2

34. यद्यपि पिछले दो वर्षों में मुद्रास्फीति लगातार अधिक रही, 2000 के दशक के दौरान डब्ल्यूपीआई और सीपीआई दोनो मामलों में औसतन लगभग 5.5 पर रही, जो अपने पहले के ट्रेंड रेट 7.5 प्रतिशत से कम है। इस रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति का संचालन मुद्रास्फ़ीति की अवधारणा को 4.0-4.5 प्रतिशत के दायरे रेंज में बनाए रखने व नियंत्रित करने का होगा। यह विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ भारत के व्यापक एककीकरण के अनुरूप 3.0 प्रतिशत मुद्रास्फ़ीति के मध्यावधि लक्ष्य के अनुसार होगा।

कुल मौद्रि‍क राशि‍यां (मॉनिटरी एग्रिगेट्स)

35. यह देखते हुए कि कुल मौद्रिक राशियों में सांकेतिक वृद्धि (नॉमिनल ग्रोथ) लगभग उसी स्तर पर है जो कि अप्रैल पॉलिसी में बताया गया था, उम्मीद है कि कुल मौद्रि‍क राशि‍यां (मॉनिटरी एग्रिगेट्स) मौद्रिक नीति वक्तव्य 2012-13 में अनुमानित पथ पर चलेंगी। तदनुसार 2012-13 के लिए एम3 वृद्धि के पूर्वानुमान को 15 प्रतिशत पर और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) की खाद्येतर ऋण वृद्धि को 17 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है । हमेशा की तरह ये आंकड़े सांकेतिक पूर्वानुमान हैं, न कि लक्ष्य ।

जोखिम के कारक

36. वर्ष 2012-13 के वि‍कास और मुद्रास्फीति‍ से संबंधि‍त अनुमान कई तरह के जोखि‍मों पर नि‍र्भर हैं जि‍न्हें नीचे बताया जा रहा है:

  1. भारतीय अर्थव्यवस्था के परिदृश्य पर बाह्य क्षेत्र से जुड़े जोखिम गहरा रहे हैं। यूरो क्षेत्र में सरकारी खजाने व वित्तीय बाज़ार तनाव के बीच प्रतिकूल फीडबैक के चक्र से जोखिम (रिस्क) से कतराने की प्रवृत्ति में वृद्धि, वित्तीय बाज़ार अस्थिरता और पूँजी प्रवाहों में बदनीयती जैसे परिणाम आ रहे हैं। यूरो क्षेत्र में बिगड़ती समष्टि आर्थिक स्थिति तथा अमेरिका व ईडीई में गड़बड़ाती विकास की गति के मिलने से बड़े नकारात्मक परिणामों की संभावनाएं बढ़ गई हैं। भारत में भी विकास की संभावनाओं को इससे चोट पहुँचेगी।

  2. वैश्विक रिकवरी के पिछड़ने तथा विश्व के कई हिस्सों में बुरे मौसम की मार पड़ने के कारण खाद्य व पण्य वस्तुओं, विशेषत: कच्चे तेल, की कीमतों का परिदृश्य अनिश्चित हो गया है। घरेलू विकास व मुद्रास्फीति पर इन घटनाओं का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।

  3. माँग और आपूर्ति (डिमांड एंड सप्लाइ) संबंधी संरचनागत असंतुलन के कारण जहाँ एक ओर प्रोटीन प्रधान वस्तुओं में मुद्रास्फ़ीति बढ़ी हुई है, वहीं मानसून के कम व असमान होने के कारण खाद्य मुद्रास्फ़ीति के लिए अतिरिक्त खतरे उत्पन्न हुए हैं। इन कारणों से मुद्रास्फ़ीति एवं मुद्रास्फ़ीति प्रत्याशाओं को बढ़ने की संभावना है।

  4. चालू खाता घाटे (सीएडी) और राजकोषीय घाटे के वर्तमान स्तर ने भारतीय अर्थव्यवस्था को “दुहरे घाटे” के खतरे सामने ला खड़ा किया है। घरेलू बचत के द्वारा राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण (फाइनैंसिंग) निजी निवेश को बाहर धकेल देता है और इस प्रकार विकास की संभावनाएं घट जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप पूँजी का आगमन बाधित होता है और चालू खाता घाटे (सीएडी) का वित्तपोषण और मुश्किल हो जाता है। दुहरे घाटे को समुचित नीतिगत कार्रवाई के जरिये कम करने की असफलता समष्टि आर्थिक स्थिरता और विकास की निरंतरता, दोनों के लिए खतरा है।

III. नीतिगत रुख़

37. विकास में मंदी को देखते हुए, अप्रैल में 50 आधार अंकों की कटौती के साथ रिज़र्व बैंक ने नीति दरों को कम करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया। बाद के घटनाक्रम ने दर्शाया कि विकास के नरम पड़ने के बावजूद मुद्रास्फ़ीति अड़ियल बनी रही। विकास के मंद पड़ने के बावजूद, मुद्रास्फ़ीति के प्रति बढ़ते खतरों के मद्देनज़र जून 2012 की मध्य-तिमाही समीक्षा (एमक्यूआर) में रिज़र्व बैंक ने ठहरने (पॉज़) का फ़ैसला किया।

38. वैश्विक व घरेलू समष्टि आर्थिक स्थितियों, संभावनाओं व जोखिमों की पृष्ठभूमि में इस समीक्षा में नीति का रुख़ तीन प्रमुख सरोकारों से तय हुआ है।

39. पहला, दिसंबर-जनवरी के दौरान अल्प अवधि के लिए कम होने के बाद, हेडलाइन डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फ़ीति फरवरी 2012 में फिर से बढ़ गई तथा 7 प्रतिशत के ऊपर अड़ी रही जिसके प्रमुख कारण थे खाद्य कीमतों का बढ़ना, इनपुट लागत का बढ़ना, और कुछ नियंत्रित वस्तुओं, जैसे कोयले, की कीमतों का बढ़ना। माँग के नरम पड़ने और कंपनियों की मूल्य निर्धारण क्षमता के कमज़ोर होने पर भी हेडलाइन मुद्रास्फ़ीति बनी हुई है। खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति (नॉन-फ़ूड मैन्यूफ़ैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स इनफ्लेशन) भी उस हद तक नहीं कम हुई है जितनी विकास में कमी को देखते हुए होनी चाहिए थी। यह बताता है कि आपूर्ति (सप्लाइ) संबंधी बाधाएं गंभीर हैं और मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं गहरे बैठी हैं।

40. दूसरा, 2011-12 में विकास महत्त्वपूर्ण रूप से घटकर 6.5 प्रतिशत पर आ गया। हालांकि हाल के आँकड़े कुछ उठान का संकेत दे रहे हैं, परंतु समग्र तौर पर आर्थिक कार्य-कलाप सुस्त पड़ा है। महत्त्वपूर्ण यह है कि विकास के चालू प्रदर्शन को विकास के ट्रेंड रेट के संदर्भ में देखने पर इसके मुद्रास्फीतीय निहितार्थों का पता चलेगा। इस संदर्भ में, निवेश गतिविधि विगत दो वर्षों से ठंडी पड़ी है। वैश्विक विकास में मंदी के कारण बाह्य माँग भी कमज़ोर रही है। फलत:, विकास का संकटोत्तर ट्रेंड रेट, जिसके बारे में पहले 8.0 प्रतिशत का आकलन किया गया था, अब 7.5 प्रतिशत पर आ गिरा है। वर्तमान विकास दर जहाँ ट्रेंड से स्पष्टत: कम है, वहीं उत्पादन अंतराल (आउटपुट गैप) तुलनात्मक रूप से कम रहेगा । इन परिस्थितियों में, मुद्रास्फीति पर माँग संबंधी दबाव बड़ी तेजी से फिर से उभर सकते हैं और इससे वर्तमान आपूर्तिगत दबाव उग्र हो सकते हैं।

41. तीसरा, मौद्रिक नीति संकेतों के संचरण में चलनिधि परिस्थितियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यद्यपि, हाल मे स्थिति महत्त्वपूर्ण रूप से सुलभ हुई है, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि चलनिधि (लिक्विडिटी) के दबावों के चलते अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को जाने वाले ऋण का बहाव बाधित न हो।

42. इस पृष्‍ठभूमि में रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति का रुख़ इस प्रकार होगा :

  • मुद्रास्‍फीति को रोकना और मुद्रास्फ़ीति प्रत्याशाओं को सुस्थिर करना ;
  • मध्यावधि में विकास की निरंतरता को बनाए रखने में मदद करना ; और
  • उत्पादक क्षेत्रों को ऋण की उपलब्धता में सहायता करने के लिए चलनिधि (लिक्विडिटी) बनाए रखना।

IV. मौद्रिक और चलनिधि उपाय

43. वर्तमान मूल्‍यांकन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीतिगत रुझान के अनुसार रिज़र्व बैंक निम्‍नलिखित नीतिगत उपायों की घोषणा करता है:

रिपो रेट

44. यह निर्णय लिया गया है कि चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत रिपो रेट को 8.0 प्रतिशत पर बनाए रखा जाए ।

रिवर्स रेपो रेट

45. एलएएफ़ के तहत रिवर्स रिपो रेट, जिसमें रिपो रेट से 100 आधार अंकों से कम का अंतर होता है, 7.0 प्रतिशत पर है ।

सीमांत (मार्जि‍नल) स्थायी सुवि‍धा दर (एमएसएफ रेट)

46. रेपो दर से 100 आधार अंको के अधिक के अंतर पर निर्धारित की जाने वाली मार्जिनल स्थायी सुविधा दर (एमएसएफ़ रेट) 9.0 प्रतिशत पर निर्धारित हो गई है।

बैंक दर

47. बैंक दर 9.0 प्रतिशत पर है।

आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर)

48. अनुसूचित बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को उनके निवल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 4.75 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है।

सांविधिक चलनिधि अनुपात

49. यह निर्णय लिया गया है कि:

  • अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) को उनके निवल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 24.0 प्रतिशत से घटाकर 23.0 प्रतिशत कर दिया जाए । यह 11 अगस्त, 2012 से प्रारंभ होने वाले पखवाड़े से प्रभावी होगा।

मार्गदर्शन

50. मौद्रिक नीति का प्राथमिक केंद्रबिंदु मुद्रास्फीति है ताकि मध्यावधि में कायम रखी जा सकने वाली विकास की राह सुनिश्चित की जा सके। हो सकता है विगत दो वर्षों की मौद्रिक नीति कार्रवाइयों का विकास के धीमे पड़ने - एक अवश्यंभावी परिणाम - में कुछ योगदान रहा हो, इसमें कई अन्य कारकों ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वतर्मान परिस्थितियों में, नीतिगत दरों को कम करने से केवल मुद्रास्फ़ीतीय आवेग भड़केंगे जबकि जरूरी नहीं कि इससे विकास को बढ़ावा मिले ही। विकास की राह में आने वाली विभिन्न बाधाओं को दूर करने के कदम उठाए जाएंगे, रिज़र्व बैंक समुचित कार्रवाई के लिए तैयार रहेगा।

51. इस बीच स्वीकार्य सीमा में चलनिधि (लिक्विडिटी) को मैनेज करना उद्देश्य है और चलनिधि दबावों के प्रति रिज़र्व बैंक जो कार्रवाई करेगा उसमें ओएमओ भी है।

52. उथल-पुथल भरे वैश्विक परिवेश में, बाहरी झटकों के खतरे बढ़ गए हैं और ऐसे किसी भी झटके के प्रति कार्रवाई करने के लिए उपलब्ध सभी साधनों के साथ रिज़र्व बैंक तैयार है।

प्रत्याशित परिणाम

53. ऐसी प्रत्याशा है कि इन मौद्रिक नीति कार्रवाइयों से :

  • मुद्रास्फीति नियंत्रण की मौद्रिक नीति की प्रतिबद्धता के आधार पर मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को सुस्थिर किया जा सकेगा; और

  • चलनिधि (लिक्विडिटी) बनाए रखा जा सकेगा ताकि उत्पादक क्षेत्रों को ऋण का सुगम प्रवाह हो।

मौद्रिक नीति 2012-13 की मध्य-तिमाही समीक्षा

54. मौद्रिक नीति 2012-13 की आगामी मध्य-तिमाही समीक्षा सोमवार, 17 सितंबर 2012 को प्रेस रिलीज़ के माध्यम से की जाएगी।

मौद्रिक नीति वक्तव्य 2012-13 की दूसरी तिमाही समीक्षा

55. मौद्रिक नीति वक्तव्य 2012-13 की दूसरी तिमाही समीक्षा मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012 को की जानी है।

मुंबई
31 जुलाई 2012

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