RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S1

Notification Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

79137937

मौद्रिक नीति 2013-14 की पहली तिमाही समीक्षा

डॉ. डी. सुब्बाराव
गवर्नर

भूमिका

मई के प्रारंभ से जब भातीय रिज़र्व बैंक ने 2013-14 की अपनी मौद्रिक नीति जारी की, वैश्विक विकास की राह असमान और शुरुआती उम्मीद की तुलना में धीमी रही। वैश्विक समुत्थान के प्रति जो अप्रत्याशित जोख़िम (टेल रिस्क्स) थे, वर्ष के प्रारंभ में उनमें काफी कमी आई थी, परंतु वित्तीय बाजारों की उथल-पुथल इस सुधरती हालत पर भारी पड़ी और कारण था अमेरिकी फेड द्वारा मात्रात्मक सुलभता (क्यूई) की संभावित क्रमिक कमी का ‘घोषणात्मक प्रभाव’। विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़), में गतिविधियां कमज़ोर पड़ी हैं। उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में शिथिलता आ रही है और अपने वित्तीय बाजारों में वे भारी बिकवालियों (सेल-ऑफ्स) से भी जूझ रही हैं जिसकी बड़ी वज़ह है पूँजी का सुरक्षित आश्रय की ओर पलायन। मात्रात्मक सुलभता (क्यूई) में क्रमिक कमी और इसके परिणामस्वरूप अमेरिका में वास्तविक ब्याज दरों में वृद्धि को लेकर बाज़ार की प्रत्याशाओं के कारण अमेरिकी डॉलर में मूल्यवृद्धि व इसके चलते ईडीई मुद्राओं का मूल्यह्रास हुआ। सामान्यत: पण्य कीमतों में कमी आई है, पर कच्चे तेल की कीमतें अब भी ऊँची हैं। यद्यपि विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) में मुद्रास्फीति का परिदृश्य अभी भी नरम है, कई उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में इसके बढ़ने का ख़तरा है।

2. घरेलू परिस्थितियों में, मई के अंत में विदेशी मुद्रा बाज़ार काफ़ी दबाव में आ गया और अस्थिरता पर काबू पाने के लिए रिज़र्व बैंक को चलनिधि सख़्तीकरण उपाय शुरू करने पड़े। जहाँ तक आर्थिक गतिविधियों का सवाल है, मानसून की देश में बढ़िया शुरुआत व विस्तार के बावजूद विकास के प्रति जोखिम बढ़ गए हैं। जैसा कि घटते ऑर्डर बुक्स के अग्रणी संकेतों से पता चलता है औद्योगिक उत्पादन नीचे चला गया है एवं रुपए के मूल्य ह्रास के कारण इनपुट मूल्य पर दबाव बन रहे हैं। इस बीच, वैश्विक परिस्थितियों के ठीक न होने के कारण निर्यात घटा है जबकि पूँजी प्रवाहों में अस्थिरता के बढ़ जाने के कारण बाहरी फंडिंग के जोखिम बढ़ गए हैं। थोक मूल्य मुद्रास्फीति दबाव घट रहे हैं, किंतु खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ी हुई है। आने वाले समय में मौद्रिक नीति, विकास को सहयोग देने, मुद्रास्फीति प्रत्याशाओं को सुस्थिर करने और बाह्य क्षेत्र की स्थिरता बनाए रखने  के सरोकारों से निर्धारित होगी। 

3.  उपर्युक्त संदर्भ में, इस वक्तव्य को रिज़र्व बैंक द्वारा कल जारी की गयी समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों में दी गयी विस्तृत समीक्षा के साथ पढ़ा और समझा जाए ।  

4. यह वक्तव्य चार भागों में है। भाग I में वैश्विक और घरेलू समष्टि-आर्थिक घटनाचक्र पर एक नज़र डाली गई है; भाग II में आर्थिक विकास, मुद्रास्‍फीति और कुल मौद्रिक राशियों (मनीटरी एग्रिगेट्स) संबंधी परिदृश्य एवं पूर्वानुमान दिए गए हैं; भाग III  में मौद्रिक नीति के रुख़ को समझाया गया है और भाग IV में मौद्रिक उपायों का उल्लेख है।  

I. अर्थव्यवस्था की स्थिति

वैश्विक अर्थव्यवस्था 

5.  वैश्विक आर्थिक गतिविधियाँ धीमी चल रही हैं और इनके कम होने के खतरे अभी भी बढ़े हुए हैं। आँकड़े बता रहे हैं कि अमेरिका में घरेलू मांग में सुधार धीमा है और निर्यात कमज़ोर बना हुआ है। उपभोक्ता व्यय के कारण यूके में समुत्थान धीरे-धीरे ज़ोर पकड़ रहा है। यूरो क्षेत्र में बेरोज़गारी बढ़ी हुई है और मंदी कायम है। औद्योगिक उत्पादन और खुदरा बिक्री बेहतर होने के कारण जापान की अर्थव्यवस्था धनात्मक विकास की ओर लौट रही है। 

6.  ब्रिक्स देशों में, चीन में यद्यपि खुदरा बिक्री ने हाल के महीनों की गति बनाए रखी है, जून में मैन्यूफैक्चरिंग पर्चेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आई है। ब्राजिल, रूस और दक्षिण अफ्रीका में विकास की चाल स्पष्टत: नरम पड़ गई है। 

7.  विकसित अर्थव्यवस्थाओं (एईज़) में मुद्रास्फीति कम बनी हुई है, लेकिन कई उभरती व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईडीईज़) में इसके ऊपर जाने के दबाव बने हुए हैं। चीन में मुद्रास्फीति जून में तेज हुई, परंतु मांग की कमज़ोर स्थितियों के कारण इसके नरम बने रहने की संभावना है। रूस में नरम पड़ती खाद्य कीमतों के कारण जून महीने में मुद्रास्फीति तेजी से नीचे गिरी।

8.  ईंधनेतर पण्य कीमतें कम हो रही हैं क्योंकि वैश्विक मांग में कमी है और आपूर्ति के स्तर अच्छे हैं। दूसरी तरफ अमेरिका में कच्चे तेल में कमी और मध्य पूर्व में भू-राजनैतिक तनावों के कारण ऊर्जा की कीमतों में मजबूती आई है।

देशी अर्थव्यवस्था  

9.  2013-14 की पहली तिमाही में देशी आर्थिक कार्य-कलापों में कमजोरी आई है। अग्रणी संकेतों से पता चलता है कि विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र के कार्यकलापों में रुकावटें आ रही हैं।  

10.  अप्रैल-मई में औद्योगिक उत्पादन 0.1 के निम्न स्तर पर रहा; मई में, बिजली उत्पादन को छोड़कर, सभी घटक उप-क्षेत्रों में 1.6 प्रतिशत की संपूर्ण गिरावट आई। यद्यपि जून में विनिर्माण (मैन्यूफैक्चरिंग) पीएमआई मामूली रूप से बेहतर हुआ, पर इसके विस्तार की गति में दम नहीं था। जून में सर्विसेज़ सेक्टर पीएमआई में गिरावट के बाद, सम्मिश्र पीएमआई भी नीचे चला गया जो बताता है कि आर्थिक कार्य-कलापों में शिथिलता व्यापक है।

11.  समय पर मानसून के आगमन और अब तक दीर्घावधि औसत से अधिक वृष्टि (26 जुलाई 2013 तक 17 प्रतिशत अधिक) का बल पाकर ख़रीफ़ की बुवाई एक वर्ष पहले के मुकाबले काफी अधिक रही तथा गत वर्ष 26 जुलाई तक दर्ज किए गए 63.5 मिलियन हेक्टेयर की बुवाई क्षेत्र की तुलना में उतने ही समय तक इस वर्ष बुवाई का क्षेत्र 74.8 मिलियन हेक्टेयर रहा। अभी तक, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को छोड़कर, सभी क्षेत्रों में सामान्य/अतिरिक्त वर्षा हुई है।

12.  रिज़र्व बैंक के आदेश बही (ऑर्डर बुक), माल (इन्वेंटरी) और क्षमता उपयोग (कैपेसिटी यूटिलाईजेशन) सर्वेक्षण (ओबीआईसीयूएस/ओबीकस) में, नये आर्डरों की वृद्धि में रिपोर्ट की गई कमी बता रही है कि पहली तिमाही में कार्य-कलाप में कमी आई होगी। इसकी पुष्टि रिज़र्व बैंक के औद्योगिक परिदृश्य (इंडस्ट्रियल आउटलुक आउटलुक) सर्वेक्षण (आईओएस) से भी होती है जो बताता है कि पहली तिमाही (क्यू 1) में समग्र तौर पर कारोबारी मिजाज में नरमी रही और दूसरी तिमाही (क्यू2) में इसमें मामूली सुधार ही हो सकता है। पहली तिमाही (क्यू 1) में कंपनी प्रदर्शन के शुरुआती नतीजे बता रहे हैं कि बिक्री वृद्धि और लाभ मार्जिन सुस्त पड़े हैं।

13.  थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के रूप में मापी गई हेडलाइन मुद्रास्फीति पाँच महीने घटने के बाद जून 2013 में मामूली रूप से बढ़कर 4.9 प्रतिशत हो गई। इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि रही - विशेषत: सब्जियों और अनाजों में। मार्च 2013 में कोयले की कीमतों में कमी के कारण ईंधन मुद्रास्फीति में कमी आई और इसमें बिजली की कीमतों के मामले में आधार परिणामों (बेस इफेक्ट्स) का भी हाथ रहा। खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति (नॉन-फूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स इनफ्लेशन) जून में घटकर 2.0 प्रतिशत पर आ गई जो कि दिसंबर 2009 से अब तक का न्यूनतम  है तथा इसका मुख्य कारण रसायनों की मुद्रास्फीति में कमी एवं धातु कीमतों में जारी अवस्फीति रही।

14.  उपभोक्ता मूल्य सूचकांक [(सीपीआई) नई श्रृंखला] से मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल-मई के दौरान कुछ घटी थी, परंतु प्रधानत: खाद्य कीमतों में तीव्र वृद्धि इसे जून में दुहरे अंकों में खींच लाई।  

15.  अन्य संकेतकों में, रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षण के नवीनतम दौर के अनुसार शहरी हाउसहोल्ड्स की मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाएं दूसरी तिमाही (क्यू2) में ऊँचाई पर रहीं। ग्रामीण मजदूरी जो 28 महीनों से 20 प्रतिशत के वार्षिक औसत से बढ़ रही थी, जनवरी 2013 से नरम पड़ी। रिज़र्व बैंक के तिमाही आवास मूल्य सूचकांक के अनुसार 2012-13 की चौथी तिमाही में आवास मूल्यों की वृद्धि में कमी आई।

16.  जुलाई 12 में मुद्रा आपूर्ति (एम3) की 12.8 प्रतिशत की वृद्धि, 13.0 प्रतिशत के सांकेतिक पथ के समीप रही। वहीं 14.3 प्रतिशत की खाद्येतर ऋण वृद्धि (नॉन-फूड क्रेडिट ग्रोथ) 15.0 प्रतिशत के सांकेतिक पथ से कम रही तथा इसमें सभी प्रमुख क्षेत्रों में मंदी देखी गई। ऋण स्थितियों का रिज़र्व बैंक का सर्वेक्षण बताता है कि दूसरी तिमाही (क्यू2) में मोटे तौर पर ऋण स्थितियों में कोई बदलाव नहीं होगा, अलबत्ता निर्माण, बुनियादी ढाँचा, वाणिज्यिक रीयल इस्टेट व वित्तीय क्षेत्रों में कुछ तंग हालात की संभावना है।

17.  2013-14 में अब तक (जुलाई 12 तक) बैंकों और गैर-बैंकों दोनों स्त्रोतों से वाणिज्यिक क्षेत्र को 2.6 ट्रिलियन वित्तीय संसाधनों का कुल प्रवाह एक वर्ष पहले से अधिक रहा। एक ओर घरेलू बैंकेतर स्त्रोंतों का योगदान जहाँ घटा वहीं घरेलू बैंकों व विदेश से उगाहे गए संसाधनों में वृद्धि हुई विशेषत: बाह्य वाणिज्यिक उधारियों (ईसीबी) और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के जरिये।

18.  मई की नीति के जारी होने के बाद से चलनिधि स्थितियां काफी सुलभ हुई हैं। दैनिक चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत औसत दैनिक निवल चलनिधि 2012-13 की चौथी तिमाही के  1,708 बिलियन से घटकर पहली तिमाही में  828 बिलियन पर आ गई। जून 28 से सरकारी बैलेंस घाटे में रहा है जिससे चलनिधि (लिक्विडिटी) को संबल मिला है और एलएएफ के तहत फंड्स की मांग में कमी आई है। जुलाई के प्रथम सप्ताह में एलएफ से ली गई रकम में काफ़ी कमी आई। 26 जुलाई को यह 558 बिलियन  था [जिसमें सीमांत स्थायी सुविधा (एसमएसएफ़) से लिए गए  229 बिलियन भी शामिल हैं]।   

19. मई में रिपो रेट में कटौती और चलनिधि स्थितियों के आसान होने के बाद, पहली तिमाही (क्यू1) में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबीज़) की मोडल जमा ब्याज दर 5 आधार अंक (बीपीएस) घट गई। यद्यपि तिमाही के दौरान मोडल बेस रेट अपरिवर्तित रहा, अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के बकाया रुपया ऋणों पर उधार देने की भारित औसत दर (डबल्यूएएलआर) पहली तिमाही में 6 आधार अंक घट गई। नये ऋणों, विशेषत: आवास और वाणिज्यिक वाहनों के क्षेत्र में उधार देने की भारित औसत दर इस अवधि के दौरान काफी घट गई।    

20.  अप्रैल-मई के दौरान केंद्र सरकार के प्रमुख घाटा संकेतक बजट आकलनों के अनुपात में एक वर्ष पूर्व की तुलना में अधिक थे जिसका मुख्य कारण था योजना व पूँजी व्ययों का अधिक होना और कर राजस्व में 7.9 प्रतिशत जितनी बड़ी कमी । केंद्र सरकार की निवल बाजार उधारियों का 40.8 प्रतिशत 25 जुलाई तक पूरा हो चुका था। 

21.  व्यापार घाटे में कमी के कारण 2012-13 की चौथी तिमाही (क्यू4) में चालू खाता घाटा (सीएडी) तीसरी तिमाही (क्यू3) के 6.5 प्रतिशत से घटकर जीडीपी का 3.6 प्रतिशत हो गया। तथापि समग्र तौर पर 2012-13 में चालू खाता घाटा जीडीपी का 4.8 प्रतिशत रहा जो कि रिज़र्व बैंक द्वारा आकलित 2.5 प्रतिशत के वहनीय स्तर से काफी अधिक है। 

22.  चालू वर्ष में व्यापार घाटा पहली तिमाही (क्यू1) में अपने एक वर्ष पहले स्तर से अधिक रहा जिसका प्रधान कारण निर्यात का कमज़ोर होना रहा। वित्तपोषण उच्चतर एफडीआई, निवल ईसीबी और अनिवासी जमाराशियों के जरिये, कुछ रिज़र्व राशियों के उपयोग के साथ, आया

23.  मई के अंत में, अमेरिकी फेड द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों के बाद मात्रात्मक सुलभता (क्यूई) में संभावित क्रमिक कमी के भय के चलते पोर्टफोलियो निवेश बाहर जाने लगा, विशेषत: ऋण के क्षेत्र से। इसके चलते एक्सचेंज मार्केट में पैदा हुई अस्थिरता को रोकने और एक ही दिशा में जा रही प्रत्याशाओं को वापस लौटाने के लिए कई उपाय किए गए। पहला, आयात की मांग को रोकने के लिए 4 जून को परेषण आधार (कन्साइन्मेंट बेसिस) पर स्वर्ण आयात पर रोक लगा दी गई और 5 जून को कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी गई। दूसरा, इसके बाद 8 जुलाई को कुछ और उपाय किए गए जैसे बैंकों को करेंसी फ्यूचर्स/ऑपसन्स मार्केट्स में केवल अपने क्लाएंट की ओर से ही ट्रेडिंग की अनुमति, एक्सपोज़र मानकों में सख़्ती, और सट्टेबाजी पर लगाम लगाने के लिए करेंसी डेरिवेटिव्स पर मार्जिन में बढ़ोतरी ।

24.  विदेशी मुद्रा बाजार में विश्वसनीयता लाने के लिए रिज़र्व बैंक ने 15 जुलाई को कुछ और उपाय लागू किए। इनके तहत एमएसएफ रेट को 200 आधार अंक बढ़ाकर 10.25 प्रतिशत कर दिया गया; एलएएफ के तहत रिपो द्वारा प्राप्त की जा सकने वाली राशि को  750 बिलियन तक सीमित किया गया और 18 जुलाई 2013 को 25 बिलियन की सरकारी प्रतिभूतियों (सिक्यूरिटीज़) की खुला बाजार बिक्री की गई। आक्समिक स्थिति के उपाय और और म्यूचुअल फंडों में भुनाई (रिडेम्पशन) के अनुमान से, रिज़र्व बैंक ने  250 बिलियन की अधिसूचित राशि के साथ एक समर्पित विशेष रिपो खिड़की खोली जिससे म्यूचुअल फंडों को चलिनिधि की सहायता (लिक्विडिटी सपोर्ट)मिले।

25.  22 जुलाई को रिज़र्व बैंक ने स्वर्ण आयात को औचित्यपूर्ण बनाने की दिशा में सभी नामित बैंकों/इकाइयों के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक कर दिया कि आयातित स्वर्ण का कम से कम 1/5 वां हिस्सा केवल निर्यात के लिए उपलब्ध कराया जाए। किसी भी योजना के तहत स्वर्ण के किसी भी आयात के लिए 20/80 के इस फॉर्मूले पर चलना होगा। इसके बाद, परेषण आधार (कन्साइन्मेंट बेसिस) पर स्वर्ण आयात पर रोक लगाने संबंधी पिछले अनुदेशों को हटा लिया गया।

26.  23 जुलाई को रिज़र्व बैंक ने रिपो के रास्ते एलएएफ उपयोग का प्रत्येक बैंक स्तर पर नियमन करते हुए एवं बैंक के अपने एनडीटीएल के 0.5 प्रतिशत तक इसे सीमित करते हुए चलनिधि कसाव उपायों में कुछ संशोधन किया। ये उपाय 24 जुलाई 2013 से लागू हुए। आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर), जिसे बैंकों को 70 प्रतिशत की दैनिक न्यूनतम अपेक्षा के तहत पाक्षिक औसत आधार पर मेंटेन करना होता है, उसे 99 प्रतिशत की दैनिक न्यूनतम अपेक्षा में बदल दिया गया। 

II. देशी परिदृश्य और पूर्वानुमान

विकास

27.  मई के नीति वक्तव्य में रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमान था कि 2013-14 में जीडीपी विकास 5.7 प्रतिशत हो सकता है बशर्ते सामान्य मानसून से कृषि विकास अपने सामान्य स्तर (ट्रेंड लेवल) पर लौट आए । औद्योगिक कार्यकलाप के मामले में परिदृश्य सुस्त रहने की उम्मीद थी और वैश्विक विकास में बढ़िया सुधार न होते देख सेवाओं व निर्यात (सर्विसेज़ एंड एक्सपोर्ट्स) की चाल के भी मंथर रहने का अनुमान व्यक्त किया गया था। 

28. देशी और वैश्विक दोनों क्षेत्रों में, गतिविधियां इन प्रत्याशाओं के मुताबिक ही रही हैं। मानसून की शुरुआत और इसका विस्तार तो अच्छा रहा है, परंतु औद्योगिक गतिविधि में लगातार बनी हुई कमज़ोरी से विकास के प्रति जोखिम बढ़ गया है। इसके अलावा, वैश्विक विकास मंद रहा है जिसमें यूरो क्षेत्र में संकुचन लगातार जारी है और अमेरिका व ईडीईज़ में गति गड़बड़ाने के कुछ संकेत हैं। इसका असर विश्व व्यापार पर पड़ा है और परिणामत: भारत के निर्यात, मैन्यूफ़ैक्चरिंग व सर्विसेज़ पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।  विगत एक वर्ष में, निवेश के माहौल को सुधारने के लिए सरकार ने कई नीतिगत उपाय किए हैं। ये उपाय जब व्यवस्था में लागू होंगे तथा उन्हें और पुख़्ता किया जाएगा तो वर्तमान मंदी की राह मोड़ी जा सकती है और अर्थव्यवस्था को उच्चतर विकास के पथ पर लौटाया जा सकेगा। उपर्युक्त विचारों के आधार पर, 2013-14 में विकास के पूर्वानुमान को 5.7 प्रतिशत से घटाकर 5.5 प्रतिशत किया गया है (चार्ट 1).।  

D:\d rive\एमपीडी राजभाषा MPD RAJBHASHA\अनुवाद MPD Translations\नीति वक्तव्य और समीक्षाएं- Monetary Policy & reviews\2013-14 POLICY & REVIEWS\Chart 1 - Hindi.jpg

मुद्रास्फीति  

29.  मई के नीति वक्तव्य में, रिज़र्व बैंक ने संकेत दिया था कि थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति लगभग 5.5 प्रतिशत के दायरे में सीमित रहेगी तथा इसमें पहली छमाही में कुछ कमी व दूसरी छमाही में, मुख्यत: आधार परिणामों (बेस इफेक्टस) पर, इसमें कुछ वृद्धि होगी। 2013-14 की पहली तिमाही (क्यू1) में मुद्रास्फीति मोटे तौर पर इन प्रत्याशाओं के अनुकूल चली है, यद्यपि जून में मुद्रास्फीति की राह में कुछ जोखिम सामने आए। प्रत्याशा से अधिक मजबूत मानसून का असर अभी भी खाद्य कीमतों में उतनी नरमी के रूप में सामने नहीं आया है जितना आना चाहिए था। विशेषत: सब्जियों की कीमतें, मौसमी उलट-फेर से प्रभावित आपूर्ति का शिकार रही हैं। वैश्विक तेल से इतर पण्य कीमतों का परिदृश्य जहाँ नरम है, वहीं  अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में मजबूती आ रही है। इसका नतीजा डीज़ल कीमतों में तयशुदा बदलावों के अलावा पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी में देखने को मिल रहा है।  मध्य-मई के बाद से रुपये में तीव्र मूल्य ह्रास का असर आगामी महीनों में देशी ईंधन मुद्रास्फीति व खाद्येतर विनिर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति (नॉन-फूड मैन्यूफैक्चर्ड प्रॉडक्टस इनफ़्लेशन) पर आयात के माध्यम से पड़ेगा। शेष नियंत्रित मूल्यों के संशोधन की टाइमिंग और उनका आकार मुद्रास्फीति के परिदृश्य के लिए अनिश्चितता की वज़ह है।

30.  देशी मांग-आपूर्ति संतुलन एवं वैश्विक पण्य कीमतों के परिदृश्य को देखते हुए, और इस प्रत्याशा पर कि आने वाले समय में विभिन्न स्थानों और समय पर मानसून सामान्य रहेगा, रिज़र्व बैंक का प्रयास रहेगा कि अपने पास उपलब्ध सभी साधनों का उपयोग करके मार्च 2014 तक मुद्रास्फीति के विकास को 5.0 प्रतिशत के स्तर पर बनाए रखा जाए (चार्ट 2). । 

C:\Users\akchaturvedi\AppData\Local\Microsoft\Windows\Temporary Internet Files\Content.Outlook\DO5QOOYU\Chart 2 - Hindi (2).jpg

31. यह जरूर है कि 2012-13 में मुद्रास्फीति ऊँची और लगातार बनी रही। यह रेखांकित करना जरूरी है कि इसके बावजूद समग्र तौर पर 2000 के दशक में मुद्रास्फीति का औसत डबल्यूपीआई के हिसाब से 5.4 प्रतिशत और सीपीआई के मुताबिक  5.8 प्रतिशत रहा जो कि पिछले ट्रेंड रेट अर्थात लगभग 7.5 प्रतिशत डबल्यूपीआई और लगभग 9.0 प्रतिशत सीपीआई से कम रहा।  इस रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि और टिकाऊ विकास हेतु सहायक मुद्रास्फीति की सीमा (थ्रेसहोल्ड लेवल) के बारे में यथार्थपरक साक्ष्य को देखते हुए लक्ष्य है कि डबल्यूपीआई मुद्रास्फीति को अल्पावधि में लगभग 5.0 प्रतिशत और मध्यावधि में 3.0 प्रतिशत पर नियंत्रित किया जाए  जो विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ भारत के व्यापक एकीकरण के अनुरूप है।

कुल मौद्रि‍क राशि‍यां (मॉनिटरी एग्रिगेट्स)  

32.  यह देखते हुए कि कुल मौद्रिक राशियों में सांकेतिक वृद्धि (नॉमिनल ग्रोथ) का स्तर लगभग वही है जो कि मई पॉलिसी में बताया गया था, उम्मीद है कि कुल मौद्रि‍क राशि‍यां (मॉनिटरी एग्रिगेट्स) अनुमानित पथ पर चलेंगी। तदनुसार 2013-14 के लिए एम3 वृद्धि के पूर्वानुमान को 13.0 प्रतिशत पर और समग्र जमाराशि वृद्धि पूर्वानुमान को 14.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों (एससीबी) की खाद्येतर ऋण वृद्धि (नॉन-फूड क्रेडिट) में 15.0 प्रतिशत की वृद्धि का पूर्वानुमान है। हमेशा की तरह ये आंकड़े सांकेतिक पूर्वानुमान हैं, न कि लक्ष्य । 

जोखिम के कारक

33.  2013-14 का समष्टि-आर्थिक परिदृश्य कई तरह के जोखि‍मों पर नि‍र्भर हैं जि‍न्हें नीचे बताया जा रहा है।

i. बेशक, समष्टि-आर्थिक परिदृश्य के लिए सबसे बड़ा जोख़िम बाह्य क्षेत्र से है। यूएस फेड द्वारा मात्रात्मक सुलभता (क्यूई) में प्रत्याशा से पहले होने वाली क्रमिक कमी की अवधारणा पर दुनिया भर के वित्तीय बाज़ारों में अचानक उथल-पुथल मच गई। अमेरिकी मौद्रिक नीति रुख़ में संभावित परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया के तौर पर घटित पूँजी प्रवाहों के आकस्मिक रुकने और उल्टे पांव चल देने से 22 मई ( प्रथम ‘घोषणात्मक प्रभाव’ के दिन) और 26 जुलाई के बीच, रुपए में 5.8 प्रतिशत का सांकेतिक (इन नॉमिनल टर्म्स) मूल्यह्रास हुआ।यह स्पष्ट नहीं है कि वित्तीय बाजारों ने मात्रात्मक सुलभता (क्यूई) में संभावित क्रमिक कमी का आकलन पूरी तरह किया है अथवा क्रमिक कमी की भविष्य में होने वाली प्रत्येक घोषणा पर प्रतिक्रिया होगी। अपने बड़े चालू खाता घाटे (सीएडी) तथा इसके वित्तपोषण के लिए बाह्य प्रवाहों पर निर्भरता के कारण, वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में व्याप्त विश्वास व मिज़ाज से प्रभावित होने का ख़तरा भारत के लिए बना रहेगा। 

ii. बड़ा चालू खाता घाटा (सीएडी), जो लगातार तीन वर्षों से जीडीपी के 2.5 प्रतिशत के वहनीय स्तर से काफी अधिक है, एक भीषण संरचनात्मक जोखिम कारक है। इसने बाह्य भुगतान स्थितियों को और अधिक दबाव में ला दिया है जो इससे जुड़ी हुई बढ़ती बाह्य ऋण-ग्रस्तता और बाह्य देयताओं की चुकौती के बोझ को दर्शाता है। बाह्य क्षेत्र की कमजोरी दर्शाने वाले अधिकांश संकेतक पहले से बदतर हुए हैं जिससे आघातों के प्रति अर्थव्यवस्था की प्रत्यास्थता (रेज़िलिएंस) का क्षय हुआ है। विदेशी मुद्रा बाज़ार में स्थिरता बहाल करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा हाल में किए गए उपायों को ऐसे अवसर के रूप में लिया जाए जिससे चालू खाता घाटे (सीएडी) को वहनीय स्तरों तक लाने वाली नीतियां लागू की जा सकें।  इसके अलावा, बाह्य क्षेत्र की बढ़ती नाजुक स्थिति से भी ऐसे विश्वसनीय राजकोषीय समेकन का महत्त्व उजागर होता है जिसमें समायोजन (एडजस्टमेंट) की मात्रा और गुणवत्ता दोनों पर बल दिया जाए। 

iii. निवेश का परिवेश कमज़ोर है और जोख़िम से कतराने की प्रवृत्ति के चलते निवेश योजनाएं ठंडे बस्ते में जा रही हैं। निवेश के परिदृश्य में लागत एवं अवधि में वृद्धि, ऊँचे लिवरेज, घटते नकदी प्रवाहों, एसेट क्वालिटी में गिरावट और ऋण विश्वास में कमी की बाधाए आ रही हैं। 

iv.  मध्यावधि में विकास को बनाए रखने के लिए कम व स्थिर मुद्रास्फीति और सुस्थिर मुद्रास्फ़ीतीय प्रत्याशाओं का परिवेश आवश्यक है। विकास-मुद्रास्फीति के इस हितैषी परिवेश के सृजन के लिए आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था से आपूर्ति पक्ष के अवरोध, विशेषत: खाद्य व बुनियादी संरचना के क्षेत्रों में, कम किए जाएं। उत्पादकता व स्पर्धात्मकता में क्षरण को दूर करने के लिए नीतिगत उपायों के न करने से, मजदूरी/वेतन में वृद्धि और नियंत्रित मूल्यों में वृद्धिपरक संशोधन से विकास और कमजोर पड़ेगा तथा मुद्रास्फ़ीतीय दबाव और अधिक उग्र हो जाएंगे। 

III. नीतिगत रुख़ 

34.  विकास संबधी जोख़िम को कम करने के लिए 2012-13 में रिज़र्व बैंक लगातार प्रयासरत रहा और रिपो रेट में 100 आधार अंकों की कटौती की तथा इसके साथ सीआरआर में 75 आधार अंक, एसएलआर में 100 आधार अंक की कटौती एवं 1.5 ट्रिलियन के आकार के खुला बाज़ार परिचालन (ओएमओ) ख़रीद से चलनिधि (लिक्विडिटी) स्थितियां सुलभ करने वाली नीतियां भी कार्यान्वित की। 

35.  हेडलाइन मुद्रास्फीति में क्रमश: कमी होते देख, इस वर्ष मई में रिज़र्व बैंक ने पॉलिसी रिपो रेट में 25 आधार अंकों की और कटौती की। चूँकि निकट भविष्य में मुद्रास्फीति के ऊपर जाने के ख़तरा अभी भी अधिक था, रिज़र्व बैंक ने कहा कि नीतिगत दरों में और अधिक कमी की गुंजाइश कम ही नज़र आ रही है और आगाह किया कि सीएडी के ख़तरों को देखते हुए नीतिगत रुख़ को जल्द ही बदलना पड़ सकता है। जून की अपनी मध्य-तिमाही समीक्षा में रिज़र्व बैंक ने नीतिगत दरों में कमी की प्रक्रिया को विराम दिया। इस निर्णय की वज़ह यह देखने की जरूरत थी कि मुद्रास्फीति में आने वाली कमी कितने देर टिकती है और इसके साथ ही वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों  में बढ़ती अनिश्चतता के प्रभाव के लिए तैयार होने की आवश्यकता भी थी।    

36.  वैश्विक और देशी समष्टि-आर्थिक स्थितियों, परिदृश्य और जोख़िमों को ध्यान में रख़ते हुए, लगातार सतर्क रहने और बाहरी घटनाक्रम, विशेषत: वैश्विक वित्तीय बाजारों से होने वाली घटनाओं, के प्रति अग्रसक्रियता से निपटने की तैयारी तथा साथ ही विकास के नीचे जाने के बढ़े हुए जोख़िमों और लगातार जारी मुद्रास्फीति व मुद्रास्फीतिकारी प्रत्याशाओं के बीच संतुलन साधने की जरूरत से इस समीक्षा में नीतिगत रुख़ निर्धारित हुआ है। 

37.  इस पृष्ठभूमि में, मौद्रिक नीति का रुख़ है कि:  

  • समष्टि-आर्थिक स्थिरता के प्रति बाह्य क्षेत्र से आने वाले जोख़िम दूर किए जाएं; 

  • विकास के प्रति बढ़े हुए जोख़िमों को दूर करने की कार्रवाई जारी रखी जाए;

  •  मुद्रास्फ़ीतीय दबावों के फिर से उभरने से बचा जाए; और

  • अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को ऋण का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए चलनिधि (लिक्विडिटी) स्थितियों को मैनेज किया जाए।

IV. मौद्रिक उपाय

38. वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर और भाग III में बताए गए नीतिगत रुख़ के अनुसार रिज़र्व बैंक निम्नलिखित नीतिगत उपायों की घोषणा करता है:

रिपो रेट

39. यह निर्णय लिया गया है कि चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ़) के अंतर्गत रेपो रेट में परिवर्तन न करते हुए 7.25 प्रतिशत पर रखा जाए।

रिवर्स रिपो रेट

40. एलएएफ के अंतर्गत रि‍वर्स रिपो रेट जि‍सका नि‍र्धारण रिपो रेट से 100 आधार अंक नीचे होता है, 6.25 प्रति‍शत पर है।

मार्जिनल स्थायी सुविधा दर (एमएसएफ़ रेट)

41. मार्जिनल स्थायी सुविधा (एमएसएफ़) दर, रिपो रेट से 300 आधार अंक अधिक, 10.25 प्रतिशत पर अपरिवर्तित बनी हुई है।

बैंक रेट

42. बैंक रेट 10.25 प्रतिशत पर है।

आरक्षित नकदी निधि अनुपात

43. अनुसूचित बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को उनकी निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 4.0 प्रतिशत पर बनाए रखा गया है।

मार्गदर्शन  

44.  विगत दो वर्षों में मौद्रिक नीति का रुख़ प्रधानत: विकास-मुद्रास्फीति के गत्यात्मक प्रति-संतुलन से तय हुआ है जबकि पिछले एक वर्ष में नीति निर्धारण में बाह्य क्षेत्र की चिंताओं का प्रभाव बढ़ा है। मौजूदा हालात- घटती थोकमूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति, अच्छे मॉनसून के बाद खाद्य कीमतों में नरमी के आसार और घटता विकास – से रुख़ में नरमी का पर्याप्त आधार बनते दिख रहे थे। तथापि, वर्तमान में भारत क्लासिक ‘असंभव त्रयी’ के त्रिकोण में फँसा है और इसलिए हमें बाह्य क्षेत्र की चिंताओं से निबटने के लिए मौद्रिक नीतिगत विवेक को थोड़ा-बहुत अनदेखा करना पड़ रहा है। रिज़र्व बैंक द्वारा हाल में किए गए चलनिधि कसाव के उपायों का उद्देश्य विदेशी मुद्रा बाज़ार (फॉरेन एक्सचेंज मार्केट) में अनुचित अस्थिरता को रोकना है तथा विदेशी मुद्रा बाज़ार में स्थिरता लौट आने पर, इसे क्रमश: वापस ले लिया जाएगा ताकि मुद्रास्फीति पर निगरानी बनाए रखते हुए, विकास को सहायता पहुँचाने की भूमिका पर मौद्रिक नीति वापस लौट सके। इस बात पर ज़ोर देना जरूरी है कि अभी हाथ में जो समय है, उसे बड़ी तत्परता से संरचनात्मक उपायों को लागू करने में लगाना होगा ताकि चालू खाता घाटा (सीएडी) को वहनीय स्तर पर लाया जा सके। किसी भी प्रतिकूल स्थिति से अग्रसक्रियता एवं तेजी से निबटने के लिए रिज़र्व बैंक अपने पास उपलब्ध सभी उपकरणों व उपायों का प्रयोग करने को तैयार है।  

मौद्रिक नीति 2013-14 की मध्य तिमाही समीक्षा

45.  वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की अगली मध्य-तिमाही समीक्षा की घोषणा बुधवार, 18 सितंबर 2013 को प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से की जाएगी।

मौद्रिक नीति 2013-14 की दूसरी तिमाही समीक्षा

46. वर्ष 2013-14 की मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013 को की जाएगी।

मुंबई
30 जुलाई 2013

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?