RbiSearchHeader

Press escape key to go back

पिछली खोज

थीम
थीम
टेक्स्ट का साइज़
टेक्स्ट का साइज़
S3

Notification Marquee

आरबीआई की घोषणाएं
आरबीआई की घोषणाएं

RbiAnnouncementWeb

RBI Announcements
RBI Announcements

असेट प्रकाशक

79232540

भारतीय रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति 2009-10 की पहली तिमाही समीक्षा

भारतीय रिज़र्व बैंक
मौद्रिक नीति 2009-10 की पहली तिमाही समीक्षा

डॉ. डी. सुब्बाराव
गवर्नर

विश्व अर्थव्यवस्था में स्थिरता के प्रारंभिक लक्षण तो दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उसके पूर्वस्थिति में आने के नहीं। अनेक बड़ी उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों में आर्थिक गतिविधि में गिरावट की गति धीमी हो गई है, अवरुद्ध ऋण बाजारों में गति आ गई है और इक्विटी बाजारों में पहले जैसी रौनक आने लगी है। हाल के महीनों में चीन, कोरिया, ब्राजील और भारत जैसी कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में औद्योगिक गतिविधि गति पकड़ने लगी है। कुछ सकारात्मक लक्षणों के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्वस्थता के मार्ग और समय-सीमा के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है। खपत मांग में कमी बनी हुई है तथा बेरोजगारी के स्तर में वृद्धि हुई है। कारोबार और उपभोक्ता विश्वास में पुन: वापसी के निश्चित लक्षण अभी तक पैदा नहीं हो पाए हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार वर्ष 2009 में विश्व व्यापार के 12% से अधिक संकुचित हो जाने की संभावना है; निजी पूंजी प्रवाहों में भी कमी आने का अनुमान है। घरेलू क्षेत्र और कारोबार - दोनों क्षेत्रों द्वारा शुरू की गई तुलन- पत्र समायोजन की प्रक्रिया के चलते कई अर्थव्यवस्थाओं में पहले जैसी स्वस्थता की स्थिति नहीं आ सकी है। इन अनेक अनिश्चितताओं को अभिव्यक्त करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जुलाई 2009 के अपने नवीनतम विश्व आर्थिक संभावना सर्वेक्षण में वैश्विक वृद्धि के 2009 के पूर्वानुमान को संशोधित करके, अप्रैल 2009 के (-) 1.3 प्रतिशत के पूर्वानुमान को (-) 1.4 प्रतिशत कर दिया है।

2. जिस संकट ने वैश्विक वित्तीय प्रणाली को प्रभावित किया तथा विश्व के अधिकांश देशों को अपने आगोश में ले लिया, उसमें विश्व अर्थव्यवस्था को अत्यंत अस्तव्यस्त कर देने के वे सभी तत्व मौजूद थे जो महामंदी में थे। फिर भी प्रत्येक देश में उनकी सरकारों और केंद्रीय बैंकों द्वारा मिलकर उठाए गए साहसी, बड़े और निर्णायक कदमों द्वारा (जिनमें सभी देशों में और अधिक समन्वय स्थापित किया जाता रहा) ऐसे संकटों को कम किया जा सका। इसके परिणामस्वरूप एक ओर वित्तीय क्षेत्र में स्थिरता आती प्रतीत हो रही है लेकिन वास्तविक क्षेत्र में मंदी की स्थिति बनी हुई है।

3. भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2008-09 में पर्याप्त मंदी आयी जबकि उसके पहले के पांच वर्षों में अच्छी-खासी वृद्धि हुई थी, जिसका प्रमुख कारण वैश्विक आर्थिक संकट का दुष्प्रभाव था। सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव निर्यात क्षेत्र पर पड़ा जिसमें अक्तूबर 2008 से ही ऋणात्मक वृद्धि जारी है। इसका दुष्प्रभाव विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ा है। कारपोरेट क्षेत्र की लाभप्रदता में गिरावट तथा भावी संभावनाओं के बारें में बढ़ती अनिश्चितता के चलते निवेश मांग में भी कमी आयी, निजी खपत में भारी कमी आयी, सेवा क्षेत्र, जो एक दशक से अधिक समय से वृध्दि का प्रमुख प्रेरक रहा है, मंदी का शिकार हुआ लेकिन वैश्विक मंदी की प्रक्रिया के कारण पैदा हुए भारी दबाव के बावजूद, वित्तीय क्षेत्र अपेक्षाकृत अप्रभावित रहा, जिसके चलते वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही में पूंजी निर्गम को बढ़ावा मिला।

4. सरकार और रिज़र्व बैंक द्वारा मिलकर एक साथ तुरंत उठाए गए तात्कालिक उचित कदमों से, वैश्विक वित्तीय संकट का दुष्प्रभाव कम हो पाया है। सरकारी खपत के चलते घरेलू मांग में आयी भारी वृद्धि, विदेशी मुद्रा और रुपया चलनिधि की व्यवस्था, नीति दरों में तेजी से कटौती, सुदृढ़ बैंकिंग क्षेत्र और अच्छी तरह काम कर रहे वित्तीय बाजारों के चलते संकट के सर्वाधिक दुष्प्रभावों से अर्थव्यवस्था को उबारने में मदद मिली है। अब औद्योगिक उत्पादन में सुधार तथा ऋण की मांग में स्वस्थता की स्थिति के लौट आने के लक्षण दिखाई देने लगे हैं, यद्यपि देरी से आए मानसून के कारण कृषि उत्पादन में कमी का जोखिम बढ़ गया है।

5. इस प्रकार वर्ष 2009-10 की मौद्रिक नीति की यह पहली तिमाही समीक्षा, स्थिरता की ओर बढ़ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था तथा धीरे-धीरे स्वस्थ होती जा रही घरेलू अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में निर्धारित की गयी है। खंड I में समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों का आकलन दिया गया है; खंड II में मौद्रिक नीति के रुझान का विवरण दिया गया है; और खंड III में मौद्रिक उपाय दिए गए हैं। यह समीक्षा, कल जारी की गई विस्तृत समष्टिआर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की समीक्षा के साथ पढ़ी और समझी जानी चाहिए।

I. समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां

वैश्विक संभावना

6. सितंबर 2008 में शुरू हुई वैश्विक संभावना में गिरावट वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में जारी रही, यद्यपि स्थिरता के कुछ अस्थायी लक्षण उभरने लगे हैं। गिरावट जारी रहने की स्थिति को अभिव्यक्त करते हुए, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विश्व आर्थिक संभावना के जुलाई के अनुमान में कहा है कि विश्व अर्थव्यवस्था वर्ष 2009 में 1.4 प्रतिशत संकुचित हो जाएगी, जो अप्रैल 2009 के 1.3 प्रतिशत के संकुचन के पहले के अनुमान से कुछ अधिक है। लेकिन अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2010 में विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा तथा उसमें 2.5 प्रतिशत का विस्तार होगा (सारणी 1) । अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों (जैसे विश्व बैंक) द्वारा किए गए अनुमानों में भी अर्थव्यवस्था के वर्ष 2009 में पटरी पर लौटने की उम्मीद नहीं है।

सारणी 1 वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि (%)

देश/क्षेत्र

2009

2010

अमेरिका

(-) 2.6

0.8

इंग्लैंड

(-) 4.2

0.2

यूरो क्षेत्र

(-) 4.8

(-) 0.3

जापान

(-) 6.0

1.7

चीन

7.5

8.5

भारत

5.4

6.5

विश्व

(-)1.4

2.5

स्रोत: आई एम एफ वर्ल्ड एकोनॉमिक आउटलुक, जुलाई 8,2009 ।

7. अमेरिका में वर्ष 2009 की पहली तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 5.5 प्रतिशत की वार्षिक दर से कमी आयी, जिसका मुख्य कारण खपत और निर्यातों में कमी आना है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विश्व अर्थव्यवस्था की संभावना के जुलाई अंक में अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2009 में अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद में 2.6 प्रतिशत का संकुचन होगा तथा यह स्थिति अप्रैल 2009 में किए गए 2.8 प्रतिशत के संकुचन से थोड़ी बेहतर स्थिति का द्योतक है। जून 2009 में बेरोजगारी दर बढ़कर 9.5% हो जाने तथा वेतनवृद्धि, औद्योगिक उत्पादन, क्षमता उपयोग और उपभोक्ता उत्साह में गिरावट आने के कारण वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में प्रमुख समष्टि आर्थिक संकेतक प्रतिकूल बने रहे। खुदरा बिक्री और खपत में कमजोरी की स्थिति बनी रही क्योंकि घरेलू क्षेत्र, संपत्ति की कीमत में आयी गिरावट के कारण तुलनपत्र में आयी खराबी को सुधारने में ही लगा रहा। वृद्धि में कमी की प्रवृत्ति कुछ समय और बने रहने की संभावना है इसके परिणामस्वरूप अपर्याप्त क्षमता और बेरोजगारी बढ़ने की संभावना है।

8. यूरो क्षेत्र की संभावना अमेरिका से भी खराब है । यूरो क्षेत्र में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2009 की पहली तिमाही में 4.9 प्रतिशत की गिरावट आयी और मई 2009 में बेरोजगारी बढ़कर 9.5 प्रतिशत पर पहुंच गयी। यद्यपि उपभोक्ता और कारोबारी उत्साह संबंधी उपायों में थोड़ा सुधार आया है, फिर भी अमेरिका में सुधार के लक्षण कम दृष्टिगोचर हुए हैं। विश्व अर्थव्यवस्था की संभावना के जुलाई अनुमान में कहा गया है कि यूरो क्षेत्र के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2009 में 4.8 प्रतिशत और वर्ष 2010 में 0.3 प्रतिशत का संकुचन आएगा। जापान के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में मार्च 2009 में समाप्त तिमाही में 14.2 प्रतिशत का संकुचन आया। लेकिन बाद के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि उत्पादन में स्थिरता आ रही है और उपभोक्ता का विश्वास बढ़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जुलाई 2009 में जारी किए गए विश्व अर्थव्यवस्था की संभावना के अनुमान में कहा गया है कि जापान की अर्थव्यवस्था में वर्ष 2009 में 6.0 प्रतिशत का संकुचन आएगा लेकिन वर्ष 2010 में उसमें 1.7 प्रतिशत का सुधार होगा।

9. विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों ने आसान मौद्रिक नीति रुझान बनाए रखा। उन्नत देशों के केंद्रीय बैंकों में, यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने अपनी पॉलिसी दरें दो बार कम कीं तथा मार्च 2009 के 1.5 प्रतिशत से घटाकर मई 2009 में 1.0 प्रतिशत कर दिया और साथ ही बॉण्ड खरीदने के कार्यक्रम की भी घोषणा की। फेडरल रिज़र्व, बैंक ऑफ जापान, बैंक ऑफ इग्लैंड और स्विस नेशनल बैंक ने अपनी गैर-परंपरागत मौद्रिक नीतियों का अनुकरण करना जारी रखा तथा इन देशों में नीति दरें 0-0.75 प्रतिशत के रेंज में रहीं। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा उठाए गए काफी बड़े, समन्वयपूर्ण तथा समूहित मौद्रिक उपायों के परिणाम दिखाई देने लगे हैं। वैश्विक ऋण की कीमत-लागत अंतर कम होने लगी है तथा वह घटकर सितंबर 2008 में लेहमैन ब्रदर्स के फेल हो जाने से पहले के स्तर पर पहुंच चुकी है। अमेरिका में, घरेलू मुद्रा बाज़ार में कीमत-लागत अंतर घटकर, वित्तीय संकट आरंभ होने के समय से लेकर, लगभग सबसे निचले बिंदु पर पहुंच चूकी है। अमेरिका में 19 सबसे बड़े बैंकों के स्ट्रेस टेस्ट परिणामों और बैंकों द्वारा निधियों की उगाही करने के लिए बाद में उठाए गए कदमों का वित्तीय बाज़ारों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा, जैसा कि स्ट्रेस टेस्ट परिणामों की घोषणा के बाद क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप स्प्रेड में आयी कमी से स्पष्ट होता है। लेकिन सरकारी क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप का स्प्रेड आर्थिक संकट से पहले के स्तर पर बना हुआ है जो बढ़ते हुए लोक ऋण के स्तर से संबंधित चितांओं का द्योतक है।

10. हाल के सप्ताहों में कुछ संकेत मिले हैं कि अनेक देशों में ऋणात्मक वृद्धि की दरों में कमी आयी है । कुल मिलाकर, आर्थिक समन्वय और आर्थिक संगठन के सम्मिश्र प्रमुख संकेतकों से यह संकेत मिलता है कि कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में विशेषत: कनाड़ा, फ्रांस, इटली और इग्लैंड में गिरावट की गति में कुछ कमी आयी है। विश्व की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं - अमेरिका, जापान और जर्मनी - में सकारात्मक संकेत भी उभर रहे हैं। अमेरिका में विनिर्माण क्षेत्र के अधिकांश सर्वेक्षणों से यह पता चला कि जून और जुलाई में और सुधार हुआ है तथा शिकागो पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स में, नए आदेशों और उत्पादनों के चलते, बढ़त आयी है जो कारोबारी उत्साह में सुधार का सूचक है। अमेरिकन होलसेलर्स में मई महीने में इन्वेंटरी में लगातार नौवें महीने में गिरावट आयी तथा बिक्री में वृद्धि हुई है। जापान में, 2008 के अंतिम भाग तथा 2009 के प्रारंभिक भाग में गिरावट की प्रवृत्ति के बाद विनिर्माण क्षेत्र में पर्चेज़िग मैनेजर्स इंडेक्स में भारी सुधार हुआ है तथा निर्यात की मात्रा में भी सुधार आया है। कुछ विश्लेषक दावा करते हैं कि ये "ग्रीन शूट्स" सुधार के आरंभ के संकेतक हैं, लेकिन एक बड़े वर्ग का विचार यह भी है कि ये संकेतक इतने कमजोर या क्षणभंगुर है कि इनसे वर्ष 2009 के अंत से पहले अनवरत सुधार के कोई लक्षण अभिव्यक्त नहीं होते।

उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं

11. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विश्व आर्थिक संभावना के जुलाई के नवीनतम अनुमान में कहा है कि उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि घटकर, 2008 के 6.0 प्रतिशत से, 2009 में 1.5 प्रतिशत हो जाएगी परंतु 2010 में वह बढ़कर 4.7 प्रतिशत हो जाएगी। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चीन और भारत में उन्नत संभावनाओं का उदाहरण देते हुए विकासशील एशिया के लिए वृद्धि की संभावना को और सुधार दिया है। वर्ष 2009 में अब तक (जून 2009 तक), एशिया की अर्थव्यवस्थाओं में व्यापक रेंज में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई है। सबसे ध्यान देने योग्य बात, सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा नियत पूंजी निवेश में बहुत भारी वृद्धि और भारी ऋण वृद्धि के बाद चीन के औद्योगिक उत्पादन में आया भारी सुधार है। चीन कम-से-कम इस बात में सफल हुआ है कि वह घरेलू मांग में वृद्धि करके (विशेषत: सरकारी निवेश मांग में) निर्यात में आए संकुचन को आंशिक रूप से निक्रिय कर पाया है। कोरिया और ताइवान में भी औद्योगिक उत्पादन में पर्याप्त सुधार आया है।

घरेलू संभावना

12. केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के संशोधित अनुमानों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2008-09 में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई - जो अधिकतर विश्लेषकों की उम्मीदों से बेहतर है लेकिन 2007-08 के दौरान हुई 9.0 प्रतिशत की वृद्धि से कम है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में आयी कमी मुख्यत: वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही के दौरान ज्यादा स्पष्टत: दृष्टिगोचर थी जिसका प्रमुख कारण वैश्विक आर्थिक संकट का प्रतिकूल प्रभाव था (सारणी 2)।

सारणी 2 : वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि (%)

गतिविधि

वित्त वर्ष

तिमाही वृद्धि दरें (वर्षानुवर्ष): 2008-09

2007-08

2008-09

ति. 1
(
अप्रैल-जून)

ति. 2
(जुलाई-सितं.)

ति. 3
(अक्तूबर-दिसंबर)

ति. 4
(जनवरी- मार्च)

कृषि

4.9

1.6

3.0

2.7

(-) 0.8

2.7

उद्योग

7.4

2.6

5.1

4.8

1.6

(-) 0.5

सेवाएँ

10.8

9.4

10.0

9.8

9.5

8.4

समग्र स घ उ

9.0

6.7

7.8

7.7

5.8

5.8

स्रोत : केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन ।

कृषि

13. कृषि क्षेत्र ने 2003-2008 तक के दौरान 4.9 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धिदर प्राप्त की थी लेकिन 2008-09 के दौरान इसमें केवल 1.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2008-09 में खाद्यान्न उत्पादन 233.9 मिलियन टन था जो पिछले वर्ष के 230.8 मिलियन टन से अधिक था । यह अब तक का सबसे अधिक उत्पादन भी था। संबद्ध कार्यकलापों में (बागबानी, पुष्पोत्पादन, वानिकी, पशुधन और मत्स्यपालन), जिनका कृषि में भारी हिस्सा है, उछाल की प्रवृत्ति बनी रही लेकिन वाणिज्यिक फसलों (जैसे प्रमुख तिलहन, कॉटन, जूट और गन्ना) का उत्पादन अपेक्षाकृत कम था। वर्तमान वर्ष में आगे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए दक्षिण पश्चिम मानसून की प्रगति धीमी रही है तथा वह रुकरुक कर आता रहा है। 22 जुलाई 2009 तक मानसून की वर्षा पूरे देश में सामान्य से 19 प्रतिशन कम रही है। विश्लेषित स्तर पर विचार करने पर 36 मौसमी उप-प्रखंडों में से 19 में वर्षा कम रही है। जुलाई में खरीफ की बुवाई में तेजी आयी है लेकिन मानसून में विलंब के कारण कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है। यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और संबद्ध कार्यकलापों का हिस्सा वर्षानुवर्ष घटता रहा है और इस समय 17.5 प्रतिशत है, लेकिन अच्छा कृषि उत्पादन न केवल इसलिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि उसमें 55 प्रतिशत से अधिक श्रमबल नियोजित होता है बल्कि इसलिए भी कि ऐसा होने से खाद्यान्न की कीमतों को स्थिर रखना सुनिश्चित किया जा सकता है।

उद्योग

14. औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि, पिछले वर्ष के 8.5 प्रतिशत से काफी घटकर 2008 के दौरान 2.6 प्रतिशत पर आ गयी जिसका सबसे प्रमुख कारण दूसरी छमाही के चार महीनों के दौरान नगण्य / ऋणात्मक वृद्धि होना था। इसके चलते औद्योगिक उत्पादन सूचकांक वर्ष 2008-09 की पहली छमाही के 5.0 प्रतिशत से काफी घटकर दूसरी छमाही के दौरान 0.4 प्रतिशत हो गया लेकिन अप्रैल - मई 2009 के दौरान औद्योगिक वृद्धि धनात्मक हो गयी तथा औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आधारभूत मध्यवर्ती और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तु क्षेत्रों में वृद्धि दर्ज की गई जबकि पूंजीगत वस्तुओं और उपभोक्ता गैर टिकाऊ वस्तु क्षेत्र में वृद्धि ऋणात्मक रही। सर्वप्रमुख इफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र ने अप्रैल - जून 2009 के दौरान 4.8 प्रतिशत की अपेक्षाकृत उच्चतर वृद्धि दर्ज की। जो पिछले वर्ष की समरूप अवधि के दौरान 3.5 प्रतिशत थी। औद्योगिक उत्पादन के प्रमुख संकेतकों से (मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों) से यह संकेत मिलता है कि हाल की मंदी रुक गयी है, भले ही कुछ विलंब से, और तेजी ने अपनी राह पकड़ ली है।

सेवाएं

15. अप्रैल - मई 2009 के दौरान सेवा-क्षेत्र के कार्यनिष्पादन से मिला जुला किंतु अनुमानयोग्य चित्र उभरकर सामने आता है। व्यापार से संबंधित सेवाओं के मामले में (जैसे प्रमुख समुद्री बंदरगाहों और एयरपोर्टों पर हैंडिल किया गया कार्गो तथा अंतर्राष्ट्रीय टर्मिनलों पर हैंडिल किए गए यात्री) मंदी / ऋणात्मक वृध्दि दिखाई दे रही है। देशी कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं (जैसे संचार और निर्माण) के मामले में सुधार के लक्षण दिखाई दे रहे हैं।

सकल घरेलू उत्पाद के मांग-घटक

16. भारत का निर्यात पिछले आठ महीनों के दौरान हर महीने में (अक्तूबर 2008 से मई 2009) कम होता गया है लेकिन तेल के मूल्यों में कमी आने और तेल से भिन्न आयातों की मात्रा में कमी आने के कारण वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही में आयातों में निर्यात की तुलना में ज्यादा तेजी से कमी आयी । इसके परिणामस्वरूप निवल निर्यातों में वृद्धि में तेजी से कमी आयी। गैर-सरकारी अंतिम खपत व्यय और सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जिन दोनों को मिलाकर सकल घरेलू उत्पाद में जिनका भार लगभग 90 प्रतिशत है) में वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही के दौरान भारी कमी आयी लेकिन वर्ष की दूसरी छमाही में सरकारी खपत में हुई भारी वृद्धि (जो छठे वेतन आयोग के भुगतानों और राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों का परिणाम थी) के चलते सकल मांग में समग्र कमी और सुकर हो गयी (सारणी 3)।

सारणी 3: सकल घरेलू उत्पाद के माँग घटक: 2008-09

मद

तिमाही 1

तिमाही 2

तिमाही 3

तिमाही 4

पूर्ण वर्ष

वर्षानुवर्ष वृद्धि दर (%)

 

 

 

 

 

गैर सरककारी अंतिम खपत व्यय

4.5

2.1

2.3

2.7

2.9

सरकारी अंतिम खपत व्यय

(-) 0.2

2.2

56.6

21.5

20.2

सकल स्थिर पूँजी निर्माण

9.2

12.5

5.1

6.4

8.2

निवल निर्यात

(-) 75.9

(-) 62.1

(-) 75.4

(-) 30.8

(-) 41.2

सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा (%)

 

 

 

 

 

गैर सरककारी अंतिम खपत व्यय

58.0

55.5

57.4

51.4

55.5

सरकारी अंतिम खपत व्यय

9.6

8.3

12.5

13.4

11.1

सकल स्थिर पूँजी निर्माण

32.2

34.5

30.9

31.6

32.2

निवल निर्यात

(-)1.3

(-10.5)

(-) 8.5

(-) 2.9

(-) 5.8

स्रोत : केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन।

17. वस्तुत: सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में सरकारी अंतिम खपत व्यय का अंश 2007-08 के दौरान 8.0 प्रतिशत था लेकिन वह 2008-09 के दौरान चार गुना बढ़कर 32.5 प्रतिशत हो गया। लेकिन गैर-सरकारी अंतिम खपत व्यय उसी अवधि के दौरान 53.8 प्रतिशत से घटकर लगभग आधा अर्थात 27.0 प्रतिशत हो गया (सारणी 4)।

सारणी 4 : सकल घरेलू उत्पाद वृध्दि में मांग-घटकों का अंशदान

मद

स घ उ वृद्धि में हिस्सा (%)

2007-08

2008-09

गैर सरकारी अंतिम खपत व्यय

53.8

27.0

सरकारी अंतिम खपत व्यय

8.0

32.5

सकल स्थिर पूँजी निर्माण

43.6

42.5

निवल निर्यात

(-)14.0

(-) 29.5

कारपोरेट कार्यनिष्पादन

18. निजी गैर-वित्तीय कारपोरेट क्षेत्र का कार्यनिष्पादन वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही में नीचे गिरा जो मांग में कमी और कीमतों में गिरावट - दोनों का सूचक है (सारणी 5)। बिक्री में कमी, अधिक ब्याज भुगतान, गैर-बिक्री आय में भारी कमी और विदेशी मुद्रा से जुड़े लेन-देनों में हुए घाटों के कारण लाभ-मार्जिन में गिरावट आयी। वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही के प्रारंभिक कारपोरेट परिणामों से यह संकेत मिलता है कि वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही की तुलना में बिक्री में थोड़ी वृद्धि हुई तथा लाभ-मार्जिन में भी सुधार आया।

सारणी 5: गैर-सरकारी कारपोरेट क्षेत्र का कार्यनिष्पादन

मद

2007-08

2008-09

(पूर्ण वर्ष)

पूर्ण वर्ष

पहली छमाही

दूसरी छमाही

वृद्धि दर (%)

बिक्री

18.3

17.8

32.4

5.5

खर्च

18.4

20.2

37.5

5.7

कच्चे माल की लागत

16.8

19.6

43.7

(-) 0.8

स्टाफ पर लागत

19.4

16.3

17.4

15.2

सकल लाभ

22.8

(-) 3.9

11.3

(-)17.5

निवल ललाभ

26.8

(-)18.2

1.3

(-) 35.1

अनुपात (%)

बिक्री की तुलना में ब्याज

2.2

3.1

2.9

3.4

बिक्री की तुलना में सकल लाभ

16.3

13.4

14.2

12.5

बिक् की तुलना में निवल लाभ

11.8

8.1

9.1

7.1

कारोबार विश्वास

19. अप्रैल-मई 2009 के दौरान रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण से यह संकेत मिलता है कि कारोबारी उत्साह में सुधार आया है। वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही के आकलन से संकेत मिलता है कि पूर्ववर्ती तीन तिमाहियों में कारोबारी विश्वास में आयी कमी, उत्पादन, आदेश बही की स्थिति, क्षमता उपयोग, वित्तीय स्थिति और वित्त की उपलब्धता जैसे प्रमुख संकेतकों के आधार पर, रुक गयी है।

20. जुलाई-सितंबर 2009 तिमाही से आगे का कारोबारी प्रत्याशा सूचकांक मध्यम 100 - अंक पार कर चुका है और मांग की परिस्थितियों में सुधार आने की धारणा के आधार पर वृद्धि-क्षेत्र में पहुंच चुका है। सर्वेक्षण से यह संकेत मिलता है कि 2009-10 की दूसरी तिमाही के दौरान कारोबारी संस्थानों को यह उम्मीद है कि क्षमता के उपयोग में सुधार होगा और इनपुट तथा आऊटपुट कीमतों - दोनों में वृद्धि होगी जिनसे उन्हें कीमतें निश्चित करने में कुछ अधिक शक्ति हासिल हो सकेगी। वर्ष 2008-09 की तुलना में वर्ष 2009-10 में निवेश के इरादों में कमी आयी है लेकिन बड़ी कंपनियों द्वारा खाद्य, रबर, पेपर और सीमेंट समूहों में पूंजी निवेश की संभावना बनी है। अन्य एजेंसियों (जैसे डन एण्ड ब्रैडस्ट्रीट, और फिक्की) द्वारा किए गए कारोबारी विश्वास सर्वेक्षणों से भी रिज़र्व बैंक के औद्योगिक संभावना सर्वेक्षण के समग्र निष्कर्षों की पुष्टि हुई है।

मुद्रास्फीति

21. थोक मूल्य सूचकांक में हुए वर्षानुवर्ष परिवर्तनों की माप के आधार पर हेड लाइन मुद्रास्फीति 2 अगस्त 2008 के 12.91 प्रतिशत के अधिकतम स्तर से घटकर मार्च 2009 के अंत में 0.84 प्रतिशत हो गयी और जून 2009 में ऋणात्मक हो गयी। थोक मूल्य मुद्रा सूचकांक स्फीति में आए उतार - चढ़ाव को वैश्विक पण्य मूल्यों के उतार चढ़ाव के संदर्भ में देखे जाने की जरूरत है। तेल और धातुओं की कीमतों में भारी वृद्धि को अभिव्यक्त करते हुए थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति जून 2008 में बढ़कर दो अंकों में पहुंच गयी थी और वैश्विक पण्य कीमतों में वृद्धि के रास्ते पर चलते हुए अक्तूबर 2008 तक ऊँचे स्तर पर बनी रही। वैश्विक पण्य कीमतों में, उनके ऊंचे स्तर से जैसे - जैसे गिरावट आती गयी, घरेलू कीमतों में भी उसी अनुसार समायोजन होता रहा जिससे थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में प्रतिकूलता की स्थिति पैदा हुई। थोक मूल्य सूचकांक में उतार - चढ़ाव का प्रमुख कारण अंतर्राष्ट्रीय पण्य कीमतें थीं जो खनिज तेलों और धातुओं को अलग कर देने के बाद ज्ञात होनेवाले थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति से स्पष्ट है (खनिज तेलों और धातुओं का भार: थोक मूल्य सूचकांक में 15.3 प्रतिशत है) तथा यह भी ध्यान देने योग्य है कि खनिज तेलों और धातुओं से संबंधित मुद्रास्फीति में, समग्र थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति की तुलना में कम उतार-चढ़ाव आया।

22. 11 जुलाई 2009 को समाप्त हुए सप्ताह के लिए थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति (-) 1.17 प्रतिशत थी। ऋणात्मक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति कुछ और महीनों तक तब तक बनी रहने की उम्मीद है जब तक कि आधारभूत प्रभाव धीरे-धीरे समाप्त न हो जाएँ। अभी तक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का रुख वही रहा है जैसा कि अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में अनुमान किया गया था। इस समय देखी जा रही ऋणात्मक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति व्यापक तौर पर पिछले वर्ष के उच्च आधार वाले सांख्यिकीय प्रभावों को अभिव्यक्त कर रही है तथा इसे मांग में कमी आने के कारण पैदा हुई संरचनात्मक अपस्फीति नहीं समझा जाना चाहिए।

23. अलग-अलग स्तर पर, खाने-पीने की वस्तुओं से संबंधित थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति ऊँचे स्तर पर बनी हुई है तथा आवश्यक वस्तुओं से संबंधित थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति भी (थोक मूल्य सूचकांक में भार : 17.8 प्रतिशत) दो अंकों में चल रही है। वित्तीय वर्ष के आधार पर थोक मूल्य सूचकांक वर्ष 2009-10 में (11 जुलाई तक) पहले ही 3.5 प्रतिशत बढ़ चुका है जबकि पिछले वर्ष की समरूप अवधि में वह 5.6 प्रतिशत बढ़ा था। विभिन्न उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भी ऊंचे स्तर पर बने हुए हैं । इन सभी से यह संकेत मिलता है कि ऋणात्मक वर्षानुवर्ष थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का कारण मांग में संरचनात्मक कमी होना नही कहा जा सकता (सारणी 6)।

सारणी 6 : वार्षिक मुद्रास्फीति दर (%)

थोक मूल्य सूचकांक

जुलाई 12,2008 (वर्षानुवर्ष)

जुलाई 11,2009 (वर्षानुवर्ष)

थौ मू सू. : सभी वस्तुएँ

12.13

(-)1.17

थौ मू सू. - प्राथमिक वस्तुएँ

10.37

4.96

थौ मू सू. - खाद्य वस्तुएँ

5.72

8.25

थौ मू सू. - इंधन समूह

16.90

(-)10.05

थौ मू सू. - विनिर्माण उत्पाद

10.99

(-) 0.05

थौ मू सू. - विनिर्मित खाद्य उत्पाद

14.09

9.80

थौ मू सू. - आवश्यक वस्तुएँ *

6.31

10.60

थौ मू सू. - इंधन को छोड़कर

10.82

1.39

थौ मू सू. - खाद्य वस्तुओं और इंधन को छोड़कर

12.14

(-) 0.28

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

जून 2008
(
वर्षानुवर्ष)

जून 2009
(
वर्षानुवर्ष)

उ मू सू - औद्योगिक कामगार #

7.75

8.63

उ मू सू - शहरी श्रमेतर कर्मचारी #

6.76

9.68

उ मू सू - कृषि श्रमिक

8.77

11.52

उ मू सू - ग्रामीण श्रमिक

8.75

11.26

* आवश्यक वस्तुओं में (थोक मूल्य सूचकांक में भार : 17.8 प्रतिशत) चावल, गेहू, ज्वार, बाजरा, दालें, आलू, प्याज, दूध, देशी मछली, मटन, सूखी मिर्च, चाय, कोकिंग कोल, किरासन, आटा, शक्कर, गुड, नमक, हाइड्रोजिनेटेड वनस्पति, रेपसीड़ और सरसों के तेल, नारियल का तेल, मूंगफ्ली का तेल, लाँगक्लॉथ / शीटिग, धोती, साड़ी और वॉयल, घरेलू लाँड्री सोप और दियासलाई शामिल है। # मई से संबंधित है।

24. थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के ऋणात्मक हो जाने, और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के 8.6 - 11.5 प्रतिशत के रेंज में बने रहने के कारण, थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से संबंधित मुद्रास्फीतियों का अंतर हाल के समय में और अधिक मुखर हो गया है। यह उस ऐतिहासिक प्रवृत्ति के बिल्कुल विपरीत है जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का अनुकरण करती थी, भले ही थोड़े अंतराल के साथ क्योंकि थोक मूल्यों में परिवर्तन होने के बाद ही खुदरा मूल्यों में परिवर्तन होते हैं। हाल के महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण ऊंचे स्तर पर बनी हुई है क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बास्केट में थोक मूल्य सूचकांक बास्केट की तुलना में खाद्य वस्तुओं का भार अधिक है। जैसी कि आशा की जाएगी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के आवश्यक वस्तु घटक का, बहुत पास-पास से, अनुगमन करती है। जाहिर तौर पर, विभिन्न मूल्य सूचकांकों में अंतर होने से मुद्रास्फीति के आकलन की जटिलता और बढ़ जाती है। इसलिए नीति के प्रयोजनों हेतु मुद्रास्फीति की संभावना के समग्र आकलन के लिए रिज़र्व बैंक हमेशा की तरह मूल्य सूचकांकों की पूरी सूची पर निगरानी रखता है।

राजकोषीय परिदृश्य

25. केंद्र सरकार का सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में कर प्राप्तियों का अनुपात वर्ष 2007-08 के 12.6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2008-09 में 11.8 प्रतिशत हो गया तथा बजट में यह अनुमान किया गया है कि वर्ष 2009-10 में, आर्थिक मंदी तथा वृध्दि को समर्थन देने के लिए करों की कटौती के रुप में दिए गए राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों के मिले-जुले प्रभावों के कारण, यह और घटकर 10.9 प्रतिशत हो जाएगा (सारणी 7)। दूसरी ओर, मुख्यत: छठे वेतन आयोग के निर्णयों को लागू करने, किसानों की ऋण माफी योजना, ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम और इफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च के चलते सकल व्यय में वृध्दि हुई है।

सारणी 7 : केंद्र सरकार की राजकोषीय स्थिति (स.घ.उ. का %)

मद

2007-08
(वास्तविक)

2008-09
(सं. अ.)

2009-10
(ब अ)

1.सकल कर राजस्व

12.6

11.8

10.9

2. कुल खर्च

15.1

16.9

17.4

राजस्व व्यय

12.6

15.1

15.3

पूँजीगत व्यय

1.8@

1.8

2.1

3. राजकोषीय घाटा

2.7

6.2*

6.8

4. राजस्व घाटा

1.1

4.6*

4.8

5. प्राथमिक घाटा

(-) 0.9

2.6

3.0

* महालेखानियंत्रक द्वारा जारी किए गए अनंतिम लेखाओं के अनुसार।
@ भारतीय स्टेट बैंक में भारतीय रिज़र्व बैंक के शेयर की प्राप्ति लागत को अलग करके।

26. राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों तथा कर-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में कमी के परिणामस्वरुप सभी घाटा संकेतकों में तेजी से गिरावट आयी और वे राजकोषीय जबावदेही और बजट प्रबंध नियमों के अंतर्गत निर्धारित लक्ष्यों से काफी भिन्न स्तरों पर बने रहे। राजकोषीय घाटा वर्ष 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद के 2.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2008-09 में 6.2 प्रतिशत (वास्तविक से पूर्व) हो गया। प्रोत्साहन उपायों के कारण राजकोषीय घाटे में हुई वृध्दि (सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 प्रतिशत) में से एक बड़ा भाग (3.3 प्रतिशतता अंक) व्यय में वृध्दि के कारण था। राजस्व घाटा भी वर्ष 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद का 1.1 प्रतिशत था लेकिन 2008-09 में वह बढ़कर 4.6 प्रतिशत हो गया। 2007-08 में जो प्राथमिक अधिशेष की स्थिति थी वह 2008-09 में घाटे में तबदील हो गयी।

27. वर्ष 2008-09 के लिए राज्यों का समेकित राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद के 3.0 प्रतिशत तक पहुंच जाने की संभावना है जिससे केंद्र और राज्यों का अनुमानित समेकित घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 9.1 प्रतिशत हो जाएगा जो पिछली बार वर्ष 2002-03 में देखा गया था। तेल विपणन और उवर्रक कंपनियों को बॉण्डों के निर्गम को शामिल करके समष्टि आर्थिक प्रयोजनों के लिए समेकित घाटा वर्ष 2008-09 में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10.9 प्रतिशत हो जाएगा।

28. राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेजों तथा व्यय की बजटोत्तर अतिरिक्त मदों के कारण वर्ष 2008-09 के दौरान केंद्र तथा राज्य सरकारों के समेकित निवल बाजार उधार, वर्ष 2007-08 के निवल उधारों से लगभग ढाई गुना रहे। बजट अनुमानों के अनुसार वर्ष 2009-10 के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की समेकित निवल उधार आवश्यकताएं वर्ष 2008-09 के वास्तविक उधारों से 34 प्रतिशत अधिक रहने का अनुमान है (सारणी 8)।

सारणी 8 : केंद्र और राज्य सरकारों के उधार : 2009-10

मद

2007-08 वास्तविक

2008-09
वास्तविक

2009-10

अंतरिम
बजट अनुमान

बजट
अनुमान

2008-09 से बजट अनुमान में % वृद्धि

केंद्र सरकार

         

सकल बाजार उधार

1,88,215

3,18,550

3,98,552

4,91,044

54.2

निवल बाजार उधार

1,08,998

2,98,536

3,08,647

3,97,957

33.3

राज्य सरकारें

   

 

 

 

निवल बाजार उधार

56,224

1,03,766

1,26,000*

1,40,000*

34.9

कुल निवल बाजार उधार

1,65,222

4,02,302

4,34,647

5,37,957

33.7

# दिनांकित प्रतिभूतियों और 364 दिवसीय खज़ाना बिलों से संबंधित।
* अनुमानित । राज्य सरकारों को अनुमति दी गयी है कि वे वर्ष 2008-09 में राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज के अंग के रुप में सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 0.5 प्रतिशत अतिरिक्त उधार ले सकें और संघीय बजट में सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 0.5 प्रतिशत के बराबर और उधार लेने की अनुमति दी गई है। जिससे बजट में शामिल उनके कुल उधार वर्ष 2009-10 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 4 प्रतिशत हो जाएंगें।

29. अंतरिम बजट में जैसा कि अनुमान व्यक्त किया गया था, सरकार द्वारा भारी बाज़ार उधारों के लिए रिज़र्व बैंक की ओर से सक्रिय चलनिधि प्रबंध की व्यवस्था अपेक्षित थी। तदनुसार रिज़र्व बैंक ने खुला बाज़ार परिचालनों के अंतर्गत वर्ष 2009-10 की पहली छमाही के दौरान 80,000 हजार करोड़ रुपए की राशि की सरकारी प्रतिभूतियां खरीदने का इरादा जाहिर किया। वर्ष 2009-10 के संघीय बजट में निर्दिष्ट और अधिक उधार कार्यक्रम पर विचार करते हुए वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही (जुलाई - सितंबर) का संशोधित उधार कार्यक्रम 16 जुलाई 2009 को जारी किया गया। इस संशोधित कार्यक्रम के अनुसार पहली छमाही के दौरान दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से केंद्र सरकार का निवल बाज़ार उधार 2,65,911 करोड़ रुपए होगा (जो अंतरिम बजट से 58,000 करोड़ रुपए अधिक होगा)।

30. यह ध्यान देने योग्य है कि वर्ष की पहली छमाही के लिए उधार कार्यक्रम का लगभग 63 प्रतिशत (रुपए 1,67,911 करोड़) 27 जुलाई 2009 तक पूरा हो चुका है। बाज़ार स्थिरीकरण योजना के शेषों को एकीकृत करके 28,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि की उगाही की जा चुकी है । अब तक किए गए खुला बाज़ार परिचालन 33,439 करोड़ रुपए के रहे हैं जो 80,000 करोड़ रुपए की अधिसूचित राशि का 42 प्रतिशत है इसलिए शेष उधारों का सुगमतापूर्वक प्रबंध करने के लिए रिज़र्व बैंक के पास पर्याप्त गुजांइश है (सारणी 9)।

सारणी 9 : केंद्र सरकार के उधार : राजकोषीय वर्ष की पहली छमाही
(दिनांकित प्रतिभूतियाँ)

मद

पहली छमाही (अप्रैल - सितंबर) के उधार

2008-09

2009-10

पहले
प्रस्तावित

संशोधित

अब तक वास्तविक (27 जुलाई तक)

शेष
 

सकल बाजार उधार

1,06,000

2,41,000

2,99,000*

2,01,000*

98,000

घटाएँ : चुकौती

44,028

33,089

33,089

33,089

0

निवल बाजार उधार

61,972

2,07,911

2,65,911

1,67,911

98,000

घटाएँ :खु बा प क्रय @

0

80,000

80,000

33,439

46,561

जोड़ें :बा. स्थि. यो. (निवल)*

5,263

(-) 42,000

(-) 42,000

(-) 38,500

(-) 3,500

नई प्रतिभूतियों की निवल आपूर्ति

67,235

85,911

1,43,911

95,972

47,939

@ खुला बाज़ार परिचालन क्रय की राशि संकेतित है और रिज़र्व बैंक इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह चलनिधि की परिस्थितियों के आकलन के आधार पर उसमें परिवर्तन कर सकें।
* बाज़ार स्थिरीकरण योजना एकीकरण के जरिए 28,000 करोड़ रुपए की 2 मई 2009 को उगाही गई राशि को छोड़कर।

31. केंद्र सरकार के उधार कार्यक्रम के अंतर्गत निर्गत दिनांकित प्रतिभूतियों की भारित औसत आय, जो वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के 8.42 प्रतिशत से बढ़कर दूसरी तिमाही में 9.24 प्रतिशत हो गयी थी, 2008-09 की चौथी तिमाही में कम होकर 6.68 प्रतिशत हो गयी। लेकिन जून 2009 में समाप्त तिमाही के लिए भारित औसत आय अपेक्षाकृत अधिक 6.93 प्रतिशत रही। वर्ष 2009-10 के दौरान अब तक निर्गत प्रतिभूतियों की भारित औसत परिपक्वता अवधि 11.5 वर्ष रही है जो तुलना करने पर पिछले वर्ष के 15.2 वर्षों की औसत परिपक्वता अवधि की अपेक्षा कम है।

32. वर्ष 2009-10 के दौरान (27 जुलाई 2009 तक) केंद्र और राज्य सरकारों के पूरे हो चुके निवल उधार, पिछले वर्ष की समरूप अवधि की तुलना में अधिक थे (सारणी 10)।

सारणी 10 : केंद्र और राज्य सरकारों के निवल बाज़ार उधार -
अब तक प्रगति

        मद

27 जुलाई तक

2008-09

2009-10

. केद्र सरकार

73,472

1,65,513

i. दिनांकित प्रतिभूतियाँ

47,982

1,67,911

ii.अतिरिक्त 364-दिवसीय खजाना बिल

(-) 819

(-) 3,549

iii.अतिरिक्त 182-दिवसीय खजाना बिल

6,503

200

iv.अतिरिक्त 91-दिवसीय खजाना बिल

19,806

951

.राज्य सरकारें

3,583

23,744

योग ( + )

77,055

1,89,257

ज्ञापन:

 

 

निवला)*

2,763

(-) 38,500

* 2 मई 2009 को बाज़ार स्थिरीकरण योजना के एकीकरण के जरिए उगाही गई 28,000 करोड़ रुपए की राशि को छोड़कर ।

मौद्रिक परिस्थितियां

33. मध्य सितंबर 2008 से आरंभ करके मौद्रिक समुच्चयों में हुए उतार-चढ़ाव, वैश्विक तथा घरेलू समष्टि आर्थिक परिस्थितियों के मामले में उठाए गए मौद्रिक नीति कदमों के चलते चलनिधि की परिस्थितियों में आए परिवर्तनों द्वारा चालित होते रहे हैं। आरक्षित मुद्रा में हुए परिवर्तन व्यापक तौर पर मुद्रा की लेनदेन संबंधी मांग में आए परिवर्तनों और बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात में आयी कमी को अभिव्यक्त करते हैं। अक्तूबर 2008 से आरंभ करके मुख्यरूप से आरक्षित नकदी निधि अनुपात में कई चरणों में तेजी से की गयी कमी के कारण आरक्षित मुद्रा में वृद्धि पिछले वर्ष की तुलना में 3 जुलाई 2009 की स्थिति के अनुसार (वर्षानुवर्ष) काफी कम हो गयी। आरक्षित नकदी निधि अनुपात में हुए परिवर्तनों के प्रथम चरण के समायोजन के बाद आरक्षित मुद्रा की वृद्धि में कमी कम मुखर थी (सारणी 11)।

सारणी 11 : जुलाई की स्थिति के अनुसार मौद्रिक समुच्चयों में
उतार-चढ़ाव (%)

मद

2008-09
(जुलाई 4, 2008)

2009-10
(जुलाई 3, 2009)

आरक्षित मुद्रा

23.9

1.3

आरक्षित मुद्रा (सीआरआर परिवतर्नों के लिए समोयोजित)

17.5

16.8

परिचालन में मुद्रा

20.5

14.3

मुद्रा आपूर्ति (एम3)

21.1

20.0

एम3 (नीति अनुमान)

16.5-17.0*

17.0**

मुद्रा गुणक

4.5

5.4

मुद्रा की तुलना में भा रि बै. की निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों का औसत

213.3

177.4

* वार्षिक नीति वक्तव्य 2008-09 (अप्रैल 2008) में अनुमानित।
**वार्षिक नीति वक्तव्य 2009-10 (अप्रैल 2009) में अनुमानित।

34. 3 जुलाई 2009 की स्थिति के अनुसार वर्षानुवर्ष आधार पर 20.0 प्रतिशत की मुद्रा आपूर्ति वृद्धि अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में अनुमानित 17.0 प्रतिशत की सीमा से काफी अधिक है। मौद्रिक विस्तार का प्रमुख चालक सरकार को दिया गया बैंक ऋण है जिसमें 48.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

35. सितंबर 2008 के मध्य से मौद्रिक प्रबंधन वैश्विक वित्तीय संकट के प्रभाव को कम करने के लिए निरन्तर चलनिधि उपलब्ध कराने की मांग और मध्यावधि में वृद्धि की संभावनाओं को बेहतर बनाने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है। रिज़र्व बैंक ने घरेलू और विदेशी मुद्रा चलनिधि की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखा है और सरकार के विशाल बाजार उधारी कार्यक्रम को, बिना अधिक उथल-पुथल के, पूरा करने के प्रयास किए हैं। तदुनसार उसने विशेष रूप से दो चिंताजनक महीनों (सितंबर-अक्तूबर 2008) के दौरान विदेशी मुद्रा बाजार की अस्थिरता को नियंत्रित करने के उद्देश्य से विदेशी मुद्रा चलनिधि उपलब्ध कराई। इसके परिणामस्वरूप रिज़र्व बैंक की निवल विदेशी मुद्रा आस्तियों में गिरावट आई लेकिन निवल देशी आस्तियों का विस्तार कर उसकी भरपाई कर ली गई। रिज़र्व बैंक के इस हस्तक्षेप से विदेशी मुद्रा बाजार को सुव्यवस्थित रखने और पूरी वित्तीय प्रणाली में चलनिधि की पर्याप्त उपलब्धता को सुनिश्चित करने में मदद मिली। विदेशी आस्तियों को देशी आस्तियों से प्रतिस्थापित करने की जो प्रक्रिया वर्ष 2008-09 के उत्तरार्ध में आरंभ हुई थी वह मौजूदा वर्ष के पहले दो महीनों के दौरान भी जारी रही। नवंबर 2008 के मध्य से चलनिधि की स्थिति सुविधाजनक बनी हुई है और इस तरह मौद्रिक नीति के रुझान से तारतम्य रखते हुए मांग मुद्रा दर, चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) की दरों के दायरे के निचले स्तर के नजदीक अथवा उससे भी निम्न स्तर पर बनी रही। वर्ष 2009-10 के दौरान (24 जुलाई 2009 तक) एलएएफ विंडो के अधीन रिज़र्व बैंक द्वारा औसतन रोजाना 1,20,368 करोड़ रुपए की राशि अवशोषित की गई जो बैंकिंग प्रणाली में बड़े पैमाने पर अधिशेष राशि की उपलब्धता का परिचायक है। उक्त अधिशेष राशि निवल मांग और मीयादी देयताओं के 3 प्रतिशत के बराबर है।

ऋण की स्थितियां

36. 3 जुलाई 2009 की स्थिति के अनुसार खाद्येतर ऋण में वर्ष-दर-वर्ष विस्तार 16.3 प्रतिशत था जो एक वर्ष पूर्व के 25.5 प्रतिशत की वृद्धि से कम था। समग्र ऋण प्रवाह में आई मंदी का मुख्य कारण समग्र मांग में नरमी और तेल विपणन कंपनियों की ऋण अपेक्षाओं में कमी था। यद्यपि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के ऋणों में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि वार्षिक नीति वक्तव्य 2009-10 में दर्शायी गयी 20 प्रतिशत की अनुमानित सीमा से अधिक थी लेकिन निजी बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों का विस्तार काफी निचले स्तर पर और विदेशी बैंकों का ऋण विस्तार नकारात्मक रहा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जमाराशियों में आई तेजी के मुकाबले निजी और विदेशी बैंक समूहों की जमाराशियों में मंदी दिखाई दी (सारणी 12)।

सारणी 12: जुलाई की स्थिति के अनुसार बैंक समूह - वार जमाराशियों और ऋण में वार्षिक वृद्धि ( वर्ष - दर - वर्ष ) ( प्रतिशत )

बैंक समूह

2008-09
(4 जुलाई 2008)

2009-10
(3 जुलाई 2009)

 

जमाराशियां

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक

23.1

26.4

निजी क्षेत्र के बैंक

17.4

6.7

विदेशी बैंक

20.9

16.4

अनुसूचित वाणिज्य बैंक *

21.5

21.9

 

ऋण

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक

26.3

21.9

निजी क्षेत्र के बैंक

22.3

4.2

विदेशी बैंक

33.3

(-)7.1

अनुसूचित वाणिज्य बैंक *

25.5

16.3

* क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित।

37. मौजूदा वित्तीय वर्ष (03 जुलाई 2009 तक) के दौरान खाद्येतर ऋण में पिछले वर्ष के 1.6 प्रतिशत की तुलना में 0.4 प्रतिशत विस्तार हुआ। मौसमी कारकों के कारण वर्ष के पूर्वार्ध में खाद्येतर बैंक ऋण विस्तार का मंद पड़ जाना कोई असामान्य बात नहीं है। तथापि अप्रैल-मई 2009 के दौरान पेट्रोलियम और उर्वरक कंपनियों को दिए गए ऋणों में हुई तीव्र गिरावट (पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान 6,530 करोड़ रुपए की वृद्धि के विपरीत 18,796 करोड़ रुपए की गिरावट) के कारण खाद्येतर ऋण वृद्धि नकारात्मक रही। 5 जून, 19 जून और 3 जुलाई  2009 के हाल के तीन पखवाड़ों के दौरान खाद्येतर ऋण विस्तार 62,104 करोड़ रुपए के उच्चस्तर पर रहा जबकि वर्ष 2008 में इसी अवधि के दौरान यह वृद्धि 48,014 करोड़ रुपए रही थी।

38. भारी जमाराशि विस्तार तथा ऋण की मांग में नरमी के फलस्वरूप अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश (चलनिधि समायोजन सुविधा के अधीन प्राप्त की गयी प्रतिभूतियों सहित) एक वर्ष पहले के 27.7 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 3 जुलाई 2009 को उनके एनडीटीएल के 30.5 प्रतिशत हो गया। एलएएफ के लिए समायोजित किए जाने पर उनके एसएलआर निवेश 3 जुलाई 2009 को एनडीटीएल का 26.9 प्रतिशत थे। 3 जुलाई 2009 को एनडीटीएल के 24 प्रतिशत के निर्धारित एसएलआर से ऊपर उनके अधिशेष एसएलआर निवेश की मात्रा, 2,83,086 करोड़ रुपए (1,26,431 करोड़ रुपए एलएएफ के लिए समायोजित) थी।

39. 49 बैंकों के क्षेत्रवार विस्तृत आंकड़ों के अनुसार, जो कुल बैंक ऋण का 95 प्रतिशत थे, मई 2009 तक उद्योग को दिए जानेवाले बैंक ऋण में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि पिछले वर्ष के मुकाबले न्यूनतर थी। जहां कृषि, उद्योग, भू-संपदा (रियल इस्टेट) और एनबीएफसी के लिए ऋण का प्रवाह बना रहा, वहीं आवास ऋण की वृद्धि दर उल्लेखनीय रूप से कम रही (सारणी 13)।

सारणी 13: ऋण का वार्षिक क्षेत्रगत प्रवाह

क्षेत्र

23 मई, 2008 को (वर्ष-दर-वर्ष)

22 मई, 2009 को (वर्ष-दर-वर्ष)

 

राशि (करोड़ रुपए)

कुल में प्रतिशत अंश

घट-बढ़ %

राशि (करोड़ रुपए)

कुल में प्रतिशत अंश

घट-बढ़ %

कृषि

42,745

10.1

19.3

64,970

16.9

24.5

उद्योग

1,82,857

43.2

27.1

1,81,848

47.4

21.2

भूसंपदा

17,018

4.0

37.7

32,321

8.4

52.0

आवास

31,735

7.5

13.8

13,028

3.4

5.0

एनबीएफसी

27,549

6.5

62.0

22,694

5.9

31.5

समग्र ऋण

4,23,189

100.0

24.2

3,83,483

100.0

17.6

टिप्पणी: आंकड़े अनंतिम हैं और ऐसे चुनिंदा बैंकों से संबंधित हैं जिनमे समस्त अनुसूचित वाणिज्य बैंकों द्वारा दिए गए कुल खाद्येतर ऋण का 95 प्रतिशत शामिल है।

वाणिज्यिक क्षेत्र के लिए वित्तीय संसाधनों का कुल प्रवाह

40. वर्ष 2008-09 के दौरान वाणिज्यिक क्षेत्र के लिए दिए जानेवाले कुल वित्तीय संसाधनों में पिछले वर्ष के मुकाबले गिरावट आयी, जो बैंक ऋण तथा अन्य स्रोतों से ली जानेवाली निधियों मे आयी कमी को प्रतिबिंबित करता है। जहां ऋण परिस्थितियां थोड़ी उदार बनीं, वहीं वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में गिरावट की प्रवृत्ति बनी रहीं जो कम मात्रा की ऋण मांग स्थिति का द्योतक है (सारणी 14)।

सारणी 14: वाणिज्यिक क्षेत्र को वित्तीय संसाधनों का कुल प्रवाह

(करोड़ रुपए)

मद

पूर्ण वर्ष

वित्तीय वर्ष अब तक

2007-08

2008-09

2008-09

2009-10

बैंकों से

4,44,807

4,21,091

30,631

5,697

अन्य स्रोतों से *

5,87,659

4,66,895

1,28,490

84,969

कुल संसाधन

10,32,466

8,87,986

1,59,121

90,666

* इसमें वित्तीय संस्थाओं (भारतीय जीवन बीमा निगम सहित) और एनबीएफसी से लिए गए उधार तथा पूंजी बाजार से ईसीबी, एफसीसीबी, एडीआर/जीडीआर, एफडीआई के रूप में से जुटाए गए संसाधन तथा दोहरी गणना के लिए समायोजित उपलब्ध अद्यतन आंकड़ों के अनुसार अल्पावधि ऋण शामिल हैं।

ब्याज दरें

41. सितंबर 2009 के मध्य से रिज़र्व बैंक ने नीतिगत दरों में भारी कटौती की रिपो दर 425 आधार अंकों से तथा रिवर्स रिपो दर 275 आधार अंकों से घटाई गई। सीआरआर में भी बैंकों के एनडीटीएल के 400 आधार अंकों तक कटौती की गई (सारणी 15)।

सारणी 15: अक्तूबर 2008 से रिज़र्व बैंक द्वारा लाई गई मौद्रिक नरमी (%)

लिखत

निम्न अवधि में

कटौती की मात्रा
(
आधार अंक)

अक्तूबर 2008 के प्रारंभ

जुलाई 2009

रिपो दर

9.00

4.75

425

रिवर्स रिपो दर

6.00

3.25

275

आरक्षित नकदी निधि अनुपात

9.00

5.00

400

42. रिज़र्व बैंक की नीतिगत दरों में कटौती तथा चलनिधि की अच्छी स्थितियों से संकेत लेते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के समस्त बैंकों, अधिकांश निजी क्षेत्र तथा विदेशी बैंकों ने अपनी जमा तथा ऋण दरों में कटौती की है। अक्तूबर 2008 और 20 जुलाई 2009 के दौरान मीयादी जमाराशि संबंधी दरों में कटौती की मात्रा निम्नप्रकार थी -सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा 125-325 आधार अंकों के बीच, निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा 100-375 आधार अंकों के बीच और पांच प्रमुख विदेशी बैंकों द्वारा 125-300 आधार अंकों के बीच। बीपीएलआर रेंज में कटौती की मात्रा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा 125-175 अंक, निजी बैंकों द्वारा 100-125 आधार अंक और पांच प्रमुख विदेशी बैंकों द्वारा 125 आधार अंक रही (सारणी 16)।

सारणी 16: जमा और उधार दरों में कटौती
( अक्तूबर 2008-20 जुलाई 2009)

(आधार अंक)

बैंक समूह

जमा दरें

उधार दरें (बीपीएलआर)

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक

125-135

125-275

निजी क्षेत्र के बैंक

100-375

100-125

पांच प्रमुख विदेशी बैंक

125-300

125

43. बैंकों द्वारा बीपीएलआर में कटौती की आवृत्ति यह दर्शाती है कि सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश बैंकों ने अपने बीपीएलआर में 200 आधार अंकों तक, निजी क्षेत्र के अधिकांश बैंकों ने 100 आधार अंकों तक और अधिकांश विदेशी बैंकों ने 50 आधार अंकों तक कटौती की (सारणी 17)।

सारणी 17: बैंकों द्वारा बीपीएलआर में कटौती -आवृत्तियां
(अक्तूबर 2008 की तुलना में 20 जुलाई 2009 को)

बीपीएलआर (आधार अंक) बैंक समूह

25 आधार अंक

50 आधार अंक

75 आधार अंक

100 आधार अंक

125 आधार अंक

150 आधार अंक

175 आधार अंक

200 आधार अंक

225 आधार अंक

300 आधार अंक

325 आधार अंक

बैंकों की कुल संख्या

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक

-

-

-

-

1

2

7

13

3

1

-

27(27)

निजी क्षेत्र के बैंक

2

2

3

6

1

2

2

1

1

-

-

20(22)

विदेशी बैंक

-

4

3

2

-

1

-

2

-

1

1

14(28)

टिप्पणी: कोष्ठकों में दिए गए आंकड़े भारत में कार्यरत बैंकों की कुल संख्या दर्शाते हैं।

44. बीपीएलआर में होनेवाली घट-बढ़ प्रभावी उधार दरों में होनेवाले परिवर्तनों को पूर्णत: तथा सटीकता से प्रतिबिंबित नहीं करती, क्योंकि बैंकों के करीब दो-तिहाई उधार बीपीएलआर से कम दरों पर संपन्न होते हैं। रिज़र्व बैंक की बैंकों के साथ हुई चर्चा से यह पता चलता है कि बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि की प्रचुरता तथा बैंक ऋण की घटी हुई मांग के कारण बैंकों पर बीपीएलआर से कम दरों पर उधार देने के लिए अधिकाधिक प्रतिस्पर्धात्मक दबाव पड़ा। अनंतिम अनुमान दर्शाते हैं कि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए प्रभावी औसत उधार दर मार्च 2008 के 12.3 प्रतिशत से घटकर मार्च 2009 में 11.1 प्रतिशत हो गई है। वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में प्रभावी उधार दर में और भी गिरावट आने का अनुमान है। वस्तुत:, अधिकांश मामलों में बैंकों के बीपीएलआर अधिकतम उधार दर के रूप में उभरे हैं जिससे इन दरों का सूचना घटक बाधित हुआ है। संप्रति, एक कार्यकारी दल (अध्यक्ष: दीपक मोहन्ती) बीपीएलआर प्रणाली की जांच कर रहा है।

वित्तीय बाज़ार

45. अक्तूबर 2008 से मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों में ब्याज दरों की मीयादी संरचना में गिरावट आई है। मांग मुद्रा दरें नवंबर 2008 से एलएएफ कॉरिडोर (दायरे) के न्यूनतर स्तर के आसपास या उससे कम स्तर पर रही हैं। खजाना बिलों पर प्राथमिक आय भी कम हुई है (सारणी 18)।

सारणी 18 : ब्याज दरें - मासिक औसत (%)

लिखत/खंड

अक्तूबर 2008

जनवरी 2009

मार्च
2009

अप्रैल 2009

मई
2009

जून
2009

जुलाई * 2009

मांग मुद्रा

9.90

4.18

4.17

3.28

3.17

3.21

3.15

सीबीएलओ

7.73

3.77

3.60

2.17

2.19

2.62

3.03

बाजार रिपो

8.40

4.27

3.90

2.16

2.33

2.63

3.08

जमा प्रमाण पत्र (सीडी)

10.00

7.33

7.53

6.48

6.20

4.90

3.40

वाणिज्यिक पत्र (सीपी)

14.17

9.48

9.79

6.29

5.75

5.11

4.69

91 दिवसीय खजाना बिल

7.44

4.69

4.77

3.81

3.26

3.35

3.22

10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूति

7.80

5.82

6.57

6.46

6.41

6.82

7.00

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का मॉडल बीपीएलआर

14.00

12.50

12.50

12.00

12.00

12.00

12.00

* 24,जुलाई 2009 तक।

46. सरकार के भारी मात्रा के बाजार उधार कार्यक्रमों की पृष्ठभूमि में 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूति पर गौण बाजार आय जनवरी 2009 के 5.82 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर मार्च 2009 में 6.57 प्रतिशत तथा जुलाई 2009 में और बढ़कर 7.00 प्रतिशत हो गई। खजाना बिलों पर न्यूनतर आय तथा दीर्घ अवधिवाली सरकारी प्रतिभूतियों पर उच्चतर आय के कारण आय वक्र में तीव्र चढ़ाव पाया गया ।

47. वर्ष 2009-10 के दौरान (24 जुलाई 2009 तक) विदेशी मुद्रा बाजार की स्थिति ठीक रही और रुपए में प्रमुख मुद्राओं के संदर्भ में उतार-चढ़ाव देखा गया। समग्रत: रुपए में अमरीकी डॉलर के मुकाबले 5.3 प्रतिशत और जापानी येन के मुकाबले 1.6 प्रतिशत की मूल्यवृद्धि हुई जबकि पौंड स्टलिर्गं के मुकाबले 8.9 प्रतिशत और यूरो के मुकाबले 1.7 प्रतिशत का मूल्यांस पाया गया (चार्ट 4)। वास्तविक विनिमय दर के संकेतकों में घट-बढ़ के रूप में, छ:- करेंसी ट्रेड - आधारित वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) (1993-94 =100) मार्च 2009 के अंत के 96.25 से बढ़कर 24 जुलाई 2009 को 100.18 हो गई और प्रतिस्पर्धात्मक बनी हुई है।

48. वर्ष 2009-10 के दौरान अब तक देशी इक्विटी बाजारों में बढ़ोतरी हो रही है जो वैश्विक प्रवृत्ति और भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति अधिक आशावादी दृष्टिकोण दर्शाती है। वर्ष 2009-10 में (22 जुलाई 2009 तक) विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 7.8 बिलियन अमरीकी डालर के निवेश किए जबकि 2008-09 की तदनुरूपी अवधि के दौरान कुल 4.0 बिलियन अमरीकी डालर का निवल विनिवेश हुआ था। बीएसई संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) मार्च 2009 के अंत के 9,709 से बढ़कर 24 जुलाई 2009 को 15,379 हो गया।

मौद्रिक संचरण

49. मौद्रिक संचरण प्रक्रिया की कारगरता भिन्न-भिन्न बाजारों में ब्याज दरों की मीयादी संरचना पर केंद्रीय बैंक की नीतिगत दर में होनेवाले परिवर्तनों का जिस मात्रा तक और गति से प्रभाव पड़ता है उस पर निर्भर होती है। जहां रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए नीतिगत परिवर्तनों का पड़नेवाला प्रभाव मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों में तेज़ रहा है वहीं यह बैंकों की उधार दरों पर धीमा रहा है। यह चिन्ता का विषय है। जैसा कि वार्षिक नीति वक्तव्य में कहा गया है, बैंकों की उधार दरों पर नीतिगत दरों के प्रभाव में बाधा पहुंचानेवाले कुछ प्रमुख घटक हैं: (i) अल्प बचतों संबंधी नियंत्रित ब्याज दर संरचना, जिससे जमा दरों को घटाने में बाधा आती है;(ii) बैंक जमाराशियों का एक बड़ा भाग नियत ब्याज दरों पर जुटाया जाता है, जिससे बैंक नीतिगत दरों के अनुरूप अपनी उधार दरों में कटौती करने के लिए हतोत्साहित हो जाते हैं; (iii) कुछ सेक्टरों के लिए रियायती उधार दरें बीपीएलआर से संबद्ध होती हैं, जिससे समग्र उधार दरों का लचीलापन घटता है, और (iv) सरकार के निरंतर चलनेवाले भारी बाजार उधार कार्यक्रम, जिनके कारण ब्याज दर प्रत्याशाएं कठोर हो जाती हैं। चूंकि चलनिधि प्रचुर बनी हुई है, अत: उधार दरों पर प्रतिस्पर्धात्मक दबाव बढ़ गया है। परिणामत:, अप्रैल 2009 में जारी वार्षिक नीति वक्तव्य के बाद से बैंक उधार दरों पर नीतिगत दर के परिवर्तनों का बेहतर प्रभाव अब देखा जा सकता है। पूर्व में उच्च दरवाली अल्पावधि जमाराशियों में समाप्ति अवधि को अग्रसर होने के साथ बैंकों के लिए अपनी उधार दरों में और कटौती करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

बाह्य क्षेत्र

50. वर्ष 2008-09 के दौरान भारत का चालू खाता घाटा बढ़कर सकल देशी उत्पाद का 2.6 प्रतिशत हो गया, जो कि 2007-08 में 1.5 प्रतिशत था, इससे व्यापार शेष में गिरावट प्रकट होती है। निवल पूंजी अंतर्वाह जो वर्ष 2007-08 में जीडीपी का 9.2 प्रतिशत था उसमें तीव्र गिरावट हुई और वह वर्ष 2008-09 में 0.8 प्रतिशत हो गया, आरक्षित निधियों में मूल्यांकन बदलावों की निवल राशि में 20.1 बिलियन अमरीकी डालर की गिरावट रही, और मूल्यांकन बदलावों की निवल राशि को शामिल करें तो 58.0 बिलियन अमरीकी डालर की गिरावट हुई (सारणी-19)। वर्ष 2008-09 की तीसरी तिमाही में यह दबाव सर्वाधिक था, क्योंकि चालू खाते के शेष में गिरावट के साथ-साथ निवल पूंजी बहिर्वाह भी जुड़ गया था, जिससे आरक्षित निधियों में अच्छी-खासी मात्रा में गिरावट हुई। वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही में चालू खाते की स्थिति में बदलाव आया जो कि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेजी से आई नरमी और प्रतिधारित अदृश्य अधिशेष राशियों को प्रकट करता है। यद्यपि वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही में भी पूंजी का बहिर्वाह बना हुआ था, लेकिन वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में इसकी प्रवृत्ति बदल गई।

सारणी 19: भारत का भुगतान संतुलन

(बिलियन अमरीकी डालर)

मद

पूर्ण वर्ष

त्रैमासिक :2008-09

 

2007-08

2008-09

ति.1

ति.2

ति.3

ति.4

निर्यात

166.2

175.2

49.1

49.0

37.3

39.8

आयात

257.8

294.6

80.5

87.7

72.0

54.4

व्यापार शेष

(-)91.6

(-)119.4

(-)31.4

(-)38.7

(-)34.7

(-)14.6

निवल अगोचर आस्तियां

74.6

89.6

22.4

26.2

21.7

19.3

चालू खाता शेष

(-)17.0

(-)29.8

(-)9.0

(-)12.5

(-)13.0

4.7

पूंजी खाता *

109.2

9.7

11.3

7.8

(-)4.8

(-)4.4

आरक्षित निधियों में परिवर्तन #

(-)92.2

20.1

(-)2.2

4.7

17.9

(-)0.3

ज्ञापन:
जीडीपी के प्रतिशत के रूप में

व्यापार शेष

(-)7.8

(-)10.3

       

चालू खाता शेष

(-)1.5

(-)2.6

       

निवल पूंजी अंतर्वाह

9.2

0.8

       

* भूल चूक सहित।
# भुगतान संतुलन के आधार पर (अर्थात् मूल्यन को छोड़कर): (-) से आशय है वृद्धि; (+) से आशय है गिरावट।

51. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों का प्रबंधन करने के समग्र दृष्टिकोण में भुगतान शेष की राशियों के बदलते हुए घटकों और विभिन्न प्रकार के प्रवाहों के साथ जुड़े हुए ‘चलनिधि जोखिमों’ और अन्य अपेक्षाओं को प्रकट करने के प्रयासों को ध्यान में रखा गया है। वर्ष 2009-10 में अब तक विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों में 14.2 बिलियन अमरीकी डालर की बढ़ोतरी हुई और ये मार्च 2009 के अंत के 252.0 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर 17 जुलाई 2009 तक 266.2 बिलियन अमरीकी डालर हो गर्इं। यह बढ़ोतरी अधिकांशतया मूल्यांकन बदलावों के कारण हुई।

II. मौद्रिक नीति का रुझान

52. सितंबर 2008 के मध्य से रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू किए गए विभिन्न नीतिगत उपायों का जोर इस बात पर रहा कि प्रचुर रुपया चलनिधि प्रदान की जाए, डालर में चलनिधि की सहजता सुनिश्चित की जाए और बाजार में ऐसा परिवेश बरकरार रखा जाए जो उत्पादक क्षेत्रों को ऋण का सतत प्रवाह सुनिश्चित करे। इस दौरान शुरू किए गए महत्वपूर्ण उपायों में रेपो और रिवर्स रेपो दरों में कटौती, सीआरआर और एसएलआर में कटौती, क्षेत्र-विशेष के लिए चलनिधि की विभिन्न सुविधाओं की शुरुआत, फोरेक्स स्वैप सुविधा की स्थापना और बाह्य वाणिज्यिक उधारों (ईसीबी) के लिए दिशानिदेशों में रियायत शामिल थे। उत्पादक प्रयोजनों के लिए ऋण के प्रवाह को बढ़ाने के उद्देश्य से रिज़र्व बैंक ने बैंकों को दबावग्रस्त आस्तियों की पुनर्रचना की अनुमति भी दी।

53. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में रिवर्स रेपो और रेपो दोनों ही की दरों में 25 आधार अंकों की कमी की गई थी। वर्तमान में रिवर्स रेपो दर 3.25 प्रतिशत और रेपो दर 4.75 प्रतिशत है। ये दोनों ऐतिहासिक न्यूनतम स्तरों पर हैं।

चलनिधि प्रभाव

54. रिज़र्व बैंक द्वारा सितंबर 2008 के मध्य से की गई कार्रवाई के परिणामस्वरूप 5,61,700 करोड़ रुपये की वास्तविक/संभावित चलनिधि बढ़ोतरी हुई (सारणी-20)। इसके अलावा, एसएसलआर में एनडीटीएल के एक प्रतिशत की स्थायी कटौती से ऋण विस्तार के लिए 40,000 करोड़ रुपये की चलनिधि उपलब्ध हुई है। विश्लेषणात्मक रूप से देखें तो सितंबर 2008 के मध्य से रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए विभिन्न नीतिगत क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप देशी आस्तियों में बढ़ोतरी हुई है। इसके लिए अन्य उपायों के अलावा खुले बाजार के परिचालनों (ओएमओ) और बाजार स्थिरीकरण योजनाओं (एमएसएस) के तहत बान्डों को वापस खरीदने के उपाय किए गए ताकि अपेक्षित मौद्रिक विस्तार को समर्थन देने के लिए आधारभूत धन का सृजन हो सके। ऋण की गुणवत्ता को बनाए रखने के साथ व्यावहारिक दरों पर ऋण विस्तार के लिए अपेक्षित नीतिगत व्यवस्था सुनिश्चित करने में रिज़र्व बैंक की यह सतत प्रतिबद्धता रही है कि चलनिधि का विस्तार किया जाए।

सारणी 20 : प्राथमिक चलनिधि का वास्तविक/संभावित निर्गम -
सितंबर 2008 के मध्य से

उपाय/सुविधा

राशि
(करोड़ रुपये)

1. सीआरआर कटौती

1,60,000

2. एमएसएस प्रतिभूतियों की बिक्री/वापसी खरीद/एकीकरण का समापन

1,55,544

3. खुले बाजार के परिचालन (खरीद)*

80,080

4. सावधि रेपो सुविधा

60,000

5. निर्यात ऋण पुनर्वित्त में बढ़ोतरी

26,576

6. एससीबी (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से इतर) के लिए विशेष पुनर्वित्त सुविधा

38,500

7. सिडबी/एनएचबी/एक्ज़िम बैंक के लिए पुनर्वित्त सुविधा

16,000

8. एसपीवी के माध्यम से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को चलनिधि सुविधा**
25,000
जोड़ (1 से 8)
5,61,700
ज्ञापन :
सांविधिक चलनिधि अनुपात में कटौती
40,000

* वर्ष 2009-10 में अब तक (27 जुलाई तक) ओएमओ में 33,439 करोड़ रुपये की खरीद शामिल है, जबकि 2009-10 की पहली छमाही में प्रस्तावित ओएमओ खरीद 80,000 करोड़ रुपये रखी गई थी।
** 5000 करोड़ रुपये के ऑप्शन भी शामिल है।

55. चलनिधि की स्थिति सहज बनी रही जैसा कि इस तथ्य से स्पष्ट है कि एलएएफ विन्डो की स्थिति नवंबर 2008 के मध्य से ही ग्रहणकर्ता के रूप में रही। वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान एलएएफ विन्डो के तहत रिज़र्व बैंक दैनिक आधार पर औसत 1,20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा ही ग्रहण कर रहा है। मांग मुद्रा बाजार की दरें सामान्यतया एलएएफ कॉरिडोर के निम्नतर स्तरों के समीप या इससे नीचे रही हैं। मांग मुद्रा बाजार की अन्य दरें अर्थात् सीबीएलओ और मार्केट रेपो, तथा सीडी और सीपी की डिस्काउंट दरें भी मांग मुद्रा बाजार की दरों के अनुरूप काफी नीचे गिरीं। अधिकांश वाणिज्य बैंकों ने अपनी जमा दरें और बेंचमार्क प्राइम लैंडिंग दरों में कटौती की है। चूंकि समग्र चलनिधि स्थितियां सहज रही, इसलिए रिज़र्व बैंक द्वारा उपलब्ध कराई गई विशेष पुनर्वित्त/चलनिधि सुविधाओं के तहत समग्र उपभोग भी कम ही रहा। हालांकि, बैंकरों ने यह संकेत दिया है कि इन सुविधाओं की विद्यमानता ने - भले ही इनका पूरा उपयोग नहीं हुआ - उन्हें अति आवश्यक सहजता प्रदान की क्योंकि संभावित सहारे के रूप में वे इनका उपयोग कर सकते हैं।

56. सितंबर 2008 में संकट के गहराने के साथ ही अर्थव्यवस्था को इनके सर्वाधिक बुरे प्रभाव से बचाने के लिए रिज़र्व बैंक आवश्यक कार्रवाई करता रहा है। इस प्रयोजन के लिए रिज़र्व बैंक ने विविध प्रकार के लिखतों का प्रयोग किया जैसे रेपो और रिवर्स रेपो की दरें, आरक्षित नकदी निधि अनुपात, सांविधिक चलनिधि अनुपात, चलनिधि समायोजन सुविधा सहित खुले बाजार के परिचालन, बाजार स्थिरीकरण योजना, विशेष बाजार परिचालन और क्षेत्र-विशेष के लिए चलनिधि सुविधाएं। वित्तीय स्थिरता के प्रयोजन से संबंधित कतिपय क्षेत्रों को ऋण का प्रवाह सुचारु रूप से बनाए रखने के लिए रिज़र्व बैंक ने विवेकपूर्ण उपायों का भी प्रयोग किया। वैश्विक और स्वदेशी स्तर पर उदीयमान समष्टि आर्थिक स्थितियों के अनुरूप चलनिधि और ब्याज दर स्थितियों में संपरिवर्तन करने के लिए रिज़र्व बैंक इन बहुविध उपायों पर निर्भरता बनाए रखेगा।

संवृद्धि के पूर्वानुमान

57. वर्ष 2008-09 में वास्तविक जीडीपी में 6.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जो कि अप्रैल 2009 के रिज़र्व बैंक के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में किए गए पूर्वानुमानों के अनुरूप है। हालांकि संवृद्धि की गति असमान रही, क्योंकि वर्ष की पहली छमाही के 7.7 प्रतिशत से घटकर यह दूसरी छमाही में 5.8 प्रतिशत पर आ गई। इसका मुख्य कारण वैश्विक वित्तीय संकट था जिसने बाह्य मांग, घरेलू निजी उपभोग और निवेश मांग को प्रभावित किया। समग्र समष्टि आर्थिक परिदृश्य लगातार अनिश्चित बना रहा, यद्यपि यह संभावना है कि राजकोषीय और मौद्रिक उत्प्रेरक उपायों से वर्ष 2009-10 में घरेलू मांग बढ़ेगी।

58. घरेलू और बाह्य वित्तीय स्थितियां भी अब वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही की तुलना में अधिक अनुकूल हैं। कारोबारी दृष्टिकोण ने औद्योगिक क्रियाकलापों की पुन: शुरुआत के सकारात्मक संकेत दिए हैं। दूसरी ओर वर्ष 2009 के दौरान विश्व व्यापार में तीव्र संकुचन के पूर्वानुमान को देखते हुए निर्यात मांग कमजोर बनी रहेगी। इसी प्रकार वर्ष 2009-10 के पूर्ववर्ती भाग में सेवा क्षेत्र को बाह्य मांग में गिरावट और कमजोर औद्योगिक संवृद्धि के प्रतिकूल प्रभाव का अहसास हो सकता है। इसके अलावा, दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत देर से हुई है, और यह सामान्य से कम स्तर पर है तो खेती की पैदावार में गिरावट का जोखिम बढ़ेगा। समग्र रूप से देखें तो वर्ष 2009-10 के मध्य से पहले संवृद्धि की गति में बढ़ोतरी संभावित नहीं है। वर्तमान आकलन के अनुसार वर्ष 2009-10 के दौरान सकल देशी उत्पाद के लिए 6.0 प्रतिशत की संवृद्धि दर का अनुमान निर्धारित किया गया है जो देखा जाए तो कुछ सुधार दर्शाता है। इस प्रकार वर्ष 2009-10 के लिए यह नवीनतम संवृद्धि-पूर्व निर्धारण वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में बताए गए लगभग 6.0 प्रतिशत के संवृद्धि अनुमान से थोड़ा-सा अधिक है।

मुद्रास्फीति पूर्वानुमान

59. प्रधान थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति दर जून 2009 में नकारात्मक रही, जैसा कि अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में अनुमान लगाया गया था। हालांकि भारत में नकारात्मक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का कारण सांख्यिकीय आधार के प्रभाव से है और जैसा कि अप्रैल के वक्तव्य में बताया गया था, इसका आशय मांग में संकुचन के रूप में नहीं लिया जाए। यह अस्थायीनकारात्मक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति कुछ महीनों से अधिक नहीं रहेगी। हालांकि, खाद्य सामग्री की कीमतों में बढ़ोतरी बनी रहेगी। यह स्थिति उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के उच्च स्तर पर भी दिखलाई देती है जो कि प्रयासों के बावजूद कम नहीं हो रहा है। मानसून की अनिश्चित स्थिति खाद्य सामग्री की कीमतों को और भी बढ़ा सकती है। इसके अलावा, थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में तेज गिरावट के समनुरूप ही मुद्रास्फीति अनुमानों में गिरावट नहीं हुई है।

60. वैश्विक मांग में गिरावट के कारण वैश्विक स्तर पर पण्यों की कीमतों का प्रभाव अगस्त 2008 से ही काफी स्पष्ट रूप से तेज रहा, वह भी 2009 के प्रारंभ से कम होता प्रतीत हो रहा है। वस्तुत: वैश्विक स्तर पर सुधार से पहले ही पण्यों की कीमतों में प्रभाव दिखाई देने लगे। रिज़र्व बैंक के मुद्रास्फीति अनुमानों के सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि यद्यपि स्फीति-अनुमान सुस्थिर बने हुए हैं, तथापि अधिकांश उत्तरदाताओं ने अंदाजा लगाया है कि अगले तीन माह से एक वर्ष तक मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी होगी।

61. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में मार्च 2010 के अंत में थोक मूल्य सूचकांक की मुद्रास्फीति 4.0 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान लगाया गया था। वित्तीय वर्ष को आधार मानें तो थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में 11 जुलाई 2009 तक 3.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है। आधार-प्रभाव, जिससे थोक मूल्य सूचकांक में नकारात्मक स्फीति हो रही है, अक्तूबर 2009 तक पूरी तरह से समाप्त हो जाने का अनुमान है। इसके बाद आपूर्ति में किसी प्रमुख आघात के बिना भी वर्ष-दर-वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति ऊपर बढ़ेगी। पण्य कीमतों में वैश्विक प्रवृत्ति और देशी मांग आपूर्ति संतुलन को देखते हुए मार्च 2010 के अंत में थोक मूल्य सूचकांक की मुद्रास्फीति 5.0 प्रतिशत के आसपास रहने का पूर्वानुमान लगाया गया है। यह अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में किए गए 4.0 प्रतिशत के पूर्वानुमान से अधिक है।

62. हमेशा की तरह, रिज़र्व बैंक प्रयास करता रहेगा कि कीमतों में स्थिरता सुनिश्चित की जाए और मुद्रास्फीति के अनुमानों को स्थिर किया जाए। इस प्रयोजन से रिज़र्व बैंक सभी कीमत सूचकांकों और उनके घटकों के व्यवहार पर ध्यान देता रहेगा। मौद्रिक नीति का संचालन इस प्रकार रहेगा कि मुद्रास्फीति के अनुमान को 4.0-4.5 प्रतिशत के दायरे में नियंत्रित और सन्निहित रखा जाए। यह स्थिति मुद्रास्फीति में 3.0 प्रतिशत के मध्यावधि उद्देश्य के अनुसार होगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारत के व्यापक एकीकरण से सम्बद्ध रहेगी।

मौद्रिक पूर्वानुमान

63. वर्ष 2008-09 के दौरान मुद्रा आपूर्ति (एम3) में 18.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। वर्तमान वित्तीय वर्ष की पूरी अवधि में अब तक एम3 में वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि 20.0 प्रतिशत से अधिक बनी रही, जो चलनिधि की सहज स्थिति को प्रकट करता है। सरकार को बैंक ऋण में हुई बढ़ोतरी एम3 में विस्तार का प्रमुख स्रोत रही, जिसमें रिज़र्व बैंक द्वारा ओएमओ भी शामिल है, जबकि वाणिज्य क्षेत्र को ऋण प्रवाह में गिरावट रही। सभी उत्पादक क्रियाकलापों के लिए निरंतर आधार पर प्रचुर चलनिधि प्रदान करने के लिए रिज़र्व बैंक प्रतिबद्ध है। इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि सरकार द्वारा बाजार से उधार लेने के बढ़े हुए कार्यक्रम के कारण निजी क्षेत्र के लिए ऋण प्रवाह में कमी नहीं आने पाये। इस प्रकार, अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में की गई परिकल्पना से ज्यादा मुद्रा आपूर्ति रखनी होगी। तदनुसार, नीतिगत प्रयोजनों के लिए वर्ष 2009-10 के दौरान मुद्रा आपूर्ति (एम3) को 18.0 प्रतिशत पर रखा गया है, जबकि वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में 17.0 प्रतिशत का पूर्वानुमान किया गया था। इसी के अनुरूप यह पूर्वानुमान भी है कि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की सकल जमाराशियों में 19.0 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों और निजी कंपनी क्षेत्र के बांडों/ऋण पत्रों/शेयरों और सीडी में निवेश सहित समायोजित खाद्येतर ऋण को वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में दिए गए अनुसार 20.0 प्रतिशत पर ही रखा गया है। हमेशा की तरह ये संख्याएं सांकेतिक पूर्वानुमान के रूप में हैं, ये लक्ष्य नहीं हैं।

समग्र आकलन

64. वैश्विक स्तर पर, ऐसा लगता है कि वित्तीय क्षेत्र में स्थिरता आ रही है, लेकिन वास्तविक क्षेत्र में अभी भी मंदी जारी है। हाल ही के महीनों में, उपभोक्ता व्यय, ऋण अंतरों और वित्तीयन स्थितियों में कुछ सकारात्मक संकेत देखने में आए हैं। लेकिन, यह संकेत इतने अनंतिम और कमजोर हैं कि यह कहना कठिन है कि स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। घरेलू और कंपनी क्षेत्र अभी भी अपने तुलनपत्रों को फिर से बनाने की प्रक्रिया में जुटे हैं जिसे संकट के कारण हानि पहुंची थी। इस प्रकार पहले की तुलना में, कुछ जल्द ही सुधार हो जाने की आशा होने के बावजूद, 2010 से पहले वैश्विक स्तर पर मजबूत सुधार होने की संभावना कम है। इस अनिश्चित स्थिति के कारण ही अंतरर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अप्रैल 2009 में (-)1.3 प्रतिशत के स्थान पर जुलाई 2009 में वैश्विक वृद्धि (-)1.4 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया है।

65. अप्रैल 2009 में नीतिगत वक्तव्य जारी होने के बाद से, भारत में सुधार होने के क्रमिक संकेत देखने में आए हैं; खाद्य भंडार में वृद्धि हुई है; औद्योगिक उत्पादन सकारात्मक हो गया है; कंपनियों के निष्पादन में सुधार आया है; कारोबारी विश्वास संबंधी सर्वेक्षण आशावान हैं; अग्रणी संकेतक वृद्धि दिखलाते हैं; ब्याज दरों में कमी आयी है; मई 2009 के बाद ऋण के उपयोग में वृद्धि हुई है; शेयर मूल्यों में उछाल आया है; प्राथमिक पूंजी बाजार में भी कुछ गतिविधि देखने में आयी हैं; तथा बाह्य वित्तीयन परिस्थितियों में सुधार हुआ है। दूसरी ओर, कुछ नकारात्मक संकेत भी हैं: मानसून विलम्ब से और कम हुआ है; खाद्य पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि हुई है; विश्व के पण्य मूल्यों में उछाल आया है; बाह्य मांग लगातार कमजोर बनी हुई है; तथा राजकोषीय घाटा उच्च स्तर पर है।

66. कुल मिलाकर देखा जाए तो वर्ष 2009-10 के लिए वास्तविक सकल देशी उत्पाद वृद्धि और मुद्रास्फीति संबंधी मौजूदा आकलनों का जोखिम बढा हुआ रहेगा। खाद्य पदार्थों के पर्याप्त भंडार की स्थिति को देखते हुए यदि आपूर्ति की दृष्टि से मूल्यों पर दबाव पड़ता है तो भी जोखिमों पर नियंत्रण रखा जा सकता है। रिज़र्व बैंक चलनिधि के स्तर पर भी निकट से निगरानी रखेगा ताकि आपूर्ति के दबाओं के कारण मूल्य संबंधी आकांक्षाओं पर नियंत्रण रखा जा सके।

67. वर्ष 2008-09 में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि अधिकांश विश्लेषकों की आशा से कहीं अधिक थी और अधिकांश अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में तो निश्चित रूप से बेहतर थी। अनुमान को कुछ अधिक रखते हुए, वर्तमान वर्ष में 6.0 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान यह दिखलाता है कि विश्व की अर्थव्यवस्था में कुछ निश्चित सुधार नहीं होगा। हमारे सामने चुनौती यह है कि अर्थव्यवस्था फिर से 9 प्रतिशत की उच्च वृद्धि दर पर आ जाए जो कि वर्ष 2005-08 की अवधि में देखने में आयी थी। संकट की अवधि के अस्थायी प्रभावों के बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था में मांग के कारण समस्या नहीं है बल्कि समस्या कम आपूर्ति की है। शीघ्र वृद्धि प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है - निवेश के स्तर में वृद्धि करना, विशेषकर बुनियादी सुविधाओं में।

68. सितंबर 2008 के मध्य से संकट प्रारंभ होने के समय से ही, रिज़र्व बैंक की नीति भरसक सहायता करने की रही। रिज़र्व बैंक का उद्देश्य होगा कि नीति का रुझान इस प्रकार रहे कि अर्थव्यवस्था फिर से उच्च वृद्धि के मार्ग पर आ जाए। लेकिन, कुछ ऐसे कारण भी है जो मुद्रास्फीति बढ़ा सकते हैं जैसे कि - खाद्य पदार्थों के मूल्यों का लगातार ऊँचे स्तर पर बने रहना, विश्व के बाजारों में पण्यों के मूल्यों में पुन: उछाल, विस्तारात्मक मौद्रिक और राजकोषीय नीतियां। इसलिये, वर्तमान स्थिति में अर्थव्यवस्था को फिर से उच्च वृद्धि के मार्ग पर लाने में बहुत सारी महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं जिनके बारे में नीचे चर्चा की गयी है।

69. रिज़र्व बैंक के लिए सबसे पहली चुनौती पर्याप्त चलनिधि उपलब्ध कराना और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाए रखना है। जैसा कि पहले बताया गया है, थोक मूल्य सूचकांक के मुद्रास्फीति संबंधी नकारात्मक आंकड़े महज सांख्यिकीय लक्षण हैं और वे संरचनात्मक रूप से महत्वपूर्ण नहीं हैं। थोक मूल्य सूचकांक की मुद्रास्फीति में प्राथमिक वस्तुओं, विशेषकर खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति काफी उच्च स्तर पर है। हालांकि विनिर्मित वस्तुओं की मुद्रास्फीति नकारात्मक है, लेकिन विनिर्मित खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति दो अंकों में है। यही नहीं, पिछले कुछ महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक उच्च बने रहे हैं और वस्तुत: उनमें कुछ सख्ती भी आई है। रिज़र्व बैंक का काम है कि मांग संबंधी परिस्थितियों में सुधार आने और ऋण प्रवाह स्थिर होने तक एक उदार मौद्रिक रुझान बनाये रखा जाए लेकिन एक ऐसी भावी योजना के साथ तैयार भी रहना होगा कि इसके बाद विस्तारपरक रुख को शीघ्र प्रभावी ढंग से वापस ले लिया जाए।

70. रिज़र्व बैंक के सामने दूसरी चुनौती वर्ष 2009-10 के लिए सरकार के उधार कार्यक्रम का प्रबंध करने की है। जैसा कि पहले बताया गया है, वर्ष 2008-09 में सरकार का उधार बहुत तेजी से बढ़ा। वर्तमान वर्ष में, पिछले वर्ष पहले से बढ़े हुए उधार की तुलना में केंद्र सरकार का उधार 33 प्रतिशत अधिक है। रिज़र्व बैंक द्वारा सक्रिय रूप से चलनिधि का प्रबंधन करने के बावजूद, सरकारी प्रतिभूतियों पर आय जनवरी 2009 में 5.8 प्रतिशत के निम्न स्तर से बढ़कर जुलाई 2009 में लगभग 7.0 प्रतिशत हो गयी। आय में वृद्धि स्पष्टतया निम्न ब्याज दरों की उस व्यवस्था के विपरीत जाती है जिसकी कि वर्तमान स्थिति में अर्थव्यवस्था को आवश्यकता है। अभी तक तो निजी ऋण मांग कम बनी हुई है, लेकिन, इसमें वृद्धि होने की संभावना है। वर्तमान या संभावित निजी ऋण मांग पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, सरकार के उधार कार्यक्रम का प्रबंधन करने के लिए रिज़र्व बैंक अपनी सक्रिय चलनिधि प्रबंध नीति को जारी रखेगा। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009-10 की पहली छमाही में, खुला बाजार क्रयों और बाजार स्थिरीकरण योजना के प्रभाव के कारण प्राथमिक चलनिधि में 1,50,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसका मौद्रिक प्रभाव सीआरआर में 3.5 प्रतिशत से अधिक कमी करने के समान है।

71. तीसरी चुनौती है - संकट के कारण निजी निवेश मांग में आयी कमी में वृद्धि करना। वास्तविक सकल देशी उत्पाद में लगभग 32 प्रतिशत के भार सहित सकल नियत पूंजी निर्माण की वृद्धि वर्ष 2007-08 के 12.9 प्रतिशत के स्तर से गिरकर वर्ष 2008-09 में 8.2 प्रतिशत रह गयी। मध्यावधि में वृद्धि को बरकरार रखने के लिए इस अनुपात को संकट से पूर्व के स्तर पर फिर से लाने और वस्तुत: उसमें वृद्धि करने की बहुत आवश्यकता है। बुनियादी सुविधाओं में निवेश वृद्धि करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। रिज़र्व बैंक ने पिछले 9 महीनों में एक उदार मौद्रिक नीति बनाये रखी है ताकि न्यून ब्याज दरों की व्यवस्था जारी रह सके। बैंकों ने भी जमाराशि और ब्याज दरों में कमी करके मौद्रिक रुझान को सहयोग दिया है, हालांकि उनके द्वारा इनमें और कमी करने की गुंजाइश बनी हुई है। रिज़र्व बैंक निजी ऋण मांग में फिर से वृद्धि लाने के लिए नीतिगत दरों और चलनिधि के माध्यम से निजी ऋण मांग में वृद्धि करने की चुनौती का सामना करेगा।

72. अल्पावधि और मध्यावधि में, चौथी चुनौती है - वित्तीय समेकन। निजी उपभोग और निवेश मांग में आई कमी को पूरा करने के लिए, सरकार के लिए प्रति-चक्रीय सार्वजनिक व्यय का सहारा लेना आवश्यक हो गया था। इससे अर्थव्यवस्था को संकट के सबसे खराब प्रभाव से बचा लिया गया। लेकिन सरकारी उधार में बहुत बड़ी और अप्रत्याशित वृद्धि के कारण सरकारी प्रतिभूतियों पर आय में वृद्धि हो गयी है जिससे मौद्रिक संचारण में बाधा आई है। यहीं नहीं, यदि स्थिति में सुधार आने के बाद भी बड़े राजकोषीय घाटे जारी रहे तो उनसे निजी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। इसलिये, सरकार को राजकोषीय समेकन के मार्ग पर फिर से लौटना होगा। इसके दो पहलू हैं। पहला है - राजकोषीय समेकन का मार्ग निर्धारित करना। इसका अभिप्राय है -संशोधित एफआरबीएम लक्ष्य बताने तक ही सीमित न रहकर, उस समायोजन का विवरण देना जो कि राजस्व और व्यय क्षेत्र में किया जायेगा। उससे राजकोषीय रुझान को विश्वसनीयता मिलेगी और आर्थिक एजेंटों को पूर्वानुमान हो सकेगा। दूसरा पहलू है - मात्रात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए भी राजकोषीय समायोजन की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना।

73. अंतत:, मध्यावधि में एक बहुत बड़ी चुनौती है - निवेश परिवेश में सुधार लाना और अर्थव्यवस्था की अवशोषण करने की क्षमता में विस्तार करना। विकास के सभी अनुभव स्पष्ट रूप से यह दिखलाते हैं कि निवेश में लगातार वृद्धि और उत्पादकता में सुधार लाए बिना कोई भी देश लगातार उच्च वृद्धि को बरकरार नहीं रख सकता। इसके लिए दो काम करने होंगे। पहला काम है - वित्तीय क्षेत्र के सुधारों को आगे बढ़ाना ताकि वित्तीय समावेशन में वृद्धि हो, वित्तीय बाजारों में और अधिक व्यापकता और सघनता आए तथा वित्तीय संस्थाएं और मजबूत हों। ऐसा करते समय, हमें वैश्विक आर्थिक संकट से मिले सबक को ध्यान में रखना ही होगा। दूसरा काम है - अभिशासन सुधारों को बड़े पैमाने पर लागू करना ताकि संभावित निवेशक आश्वस्त हो सकें। 

नीति का रुझान

74. उपर्युक्त समग्र आकलन के आधार पर, वर्ष 2009-10 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का रुझान निम्नानुसार होगा:

  • चलनिधि का सक्रिय प्रबंधन इस प्रकार से करना कि अर्थक्षम दरों पर निजी क्षेत्र को ऋण का प्रवाह बनाए रखते हुए भी सरकार की ऋण मांग को पूरा किया जा सके।
  • मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियों और संकेतकों पर ध्यान बनाए रखना, और नीति के माध्यम से शीघ्र और प्रभावी कार्रवाई करना।
  • मूल्य स्थिरता और वित्तीय स्थिरता के अनुरूप ही मौद्रिक और ब्याज दर नीति बनाए रखना जिससे अर्थव्यवस्था फिर से उच्च वृद्धि के मार्ग पर आ सके।

75. यह उल्लेख करना आवश्यक है कि जब तक स्थिति में सुधार के निश्चित और मजबूत संकेत दिखाई नहीं देते, तब तक रिज़र्व बैंक एक उदार मौद्रिक नीति बनाए रखेगा। लेकिन यह मौद्रिक रुझान स्थिर नहीं होगा। आगे बढ़ते हुए, रिज़र्व बैंक को विस्तारात्मक उपाय उलटने होंगे ताकि वृद्धि की गति को बनाए रखते हुए मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखा जा सके। लेकिन स्थूल आर्थिक गतिविधियों के अनुरूप, दिशा को उलटने का समय निर्धारित किया जायेगा।

III. मौद्रिक उपाय

बैंक दर

76. बैंक दर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। यह 6.0 प्रतिशत बनी रहेगी।

रेपो दर

77. चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अधीन 4.75 प्रतिशत पर रेपो दर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

रिवर्स रेपो दर

78. एलएएफ के अधीन 3.25 प्रतिशत पर रिवर्स रेपो दर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

79. परिस्थितियों को देखते हुए, रिज़र्व बैंक नियत दरों पर या परिवर्तनीय दरों पर, रेपो/रिवर्स रेपो नीलामियां करेगा।

80. बाजार की परिस्थितियों और अन्य संगत बातों को ध्यान में रखते हुए, रिज़र्व बैंक एलएएफ के अधीन रातभर या अधिक अवधि के लिए रेपो/रिवर्स रेपो करेगा। रिज़र्व बैंक को एलएएफ के अधीन पूर्णतया या अंशतया बोली (बोलियों) को स्वीकार करने या अस्वीकार करने की स्वतंत्रता होगी ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंधन में एलएएफ का उपयोग कुशलता से किया जा सके। 

आरक्षित नकदी निधि अनुपात

81. अनुसूचित बैंकों के लिए निवल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 5.0 प्रतिशत के वर्तमान आरक्षित नकदी निधि अनुपात में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

दूसरी तिमाही समीक्षा

82. वर्ष 2009-10 के लिए मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा 27 अक्तूबर, 2009 को की जाएगी।

मुंबई
28 जुलाई, 2009

RbiTtsCommonUtility

प्ले हो रहा है
सुनें

संबंधित एसेट

आरबीआई-इंस्टॉल-आरबीआई-सामग्री-वैश्विक

RbiSocialMediaUtility

आरबीआई मोबाइल एप्लीकेशन इंस्टॉल करें और लेटेस्ट न्यूज़ का तुरंत एक्सेस पाएं!

Scan Your QR code to Install our app

RbiWasItHelpfulUtility

क्या यह पेज उपयोगी था?