भारतीय रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति 2009-10 की पहली तिमाही समीक्षा - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति 2009-10 की पहली तिमाही समीक्षा
भारतीय रिज़र्व बैंक डॉ. डी. सुब्बाराव विश्व अर्थव्यवस्था में स्थिरता के प्रारंभिक लक्षण तो दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उसके पूर्वस्थिति में आने के नहीं। अनेक बड़ी उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों में आर्थिक गतिविधि में गिरावट की गति धीमी हो गई है, अवरुद्ध ऋण बाजारों में गति आ गई है और इक्विटी बाजारों में पहले जैसी रौनक आने लगी है। हाल के महीनों में चीन, कोरिया, ब्राजील और भारत जैसी कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में औद्योगिक गतिविधि गति पकड़ने लगी है। कुछ सकारात्मक लक्षणों के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्वस्थता के मार्ग और समय-सीमा के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है। खपत मांग में कमी बनी हुई है तथा बेरोजगारी के स्तर में वृद्धि हुई है। कारोबार और उपभोक्ता विश्वास में पुन: वापसी के निश्चित लक्षण अभी तक पैदा नहीं हो पाए हैं। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार वर्ष 2009 में विश्व व्यापार के 12% से अधिक संकुचित हो जाने की संभावना है; निजी पूंजी प्रवाहों में भी कमी आने का अनुमान है। घरेलू क्षेत्र और कारोबार - दोनों क्षेत्रों द्वारा शुरू की गई तुलन- पत्र समायोजन की प्रक्रिया के चलते कई अर्थव्यवस्थाओं में पहले जैसी स्वस्थता की स्थिति नहीं आ सकी है। इन अनेक अनिश्चितताओं को अभिव्यक्त करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने जुलाई 2009 के अपने नवीनतम विश्व आर्थिक संभावना सर्वेक्षण में वैश्विक वृद्धि के 2009 के पूर्वानुमान को संशोधित करके, अप्रैल 2009 के (-) 1.3 प्रतिशत के पूर्वानुमान को (-) 1.4 प्रतिशत कर दिया है। I. समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां वैश्विक संभावना 6. सितंबर 2008 में शुरू हुई वैश्विक संभावना में गिरावट वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में जारी रही, यद्यपि स्थिरता के कुछ अस्थायी लक्षण उभरने लगे हैं। गिरावट जारी रहने की स्थिति को अभिव्यक्त करते हुए, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विश्व आर्थिक संभावना के जुलाई के अनुमान में कहा है कि विश्व अर्थव्यवस्था वर्ष 2009 में 1.4 प्रतिशत संकुचित हो जाएगी, जो अप्रैल 2009 के 1.3 प्रतिशत के संकुचन के पहले के अनुमान से कुछ अधिक है। लेकिन अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2010 में विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा तथा उसमें 2.5 प्रतिशत का विस्तार होगा (सारणी 1) । अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों (जैसे विश्व बैंक) द्वारा किए गए अनुमानों में भी अर्थव्यवस्था के वर्ष 2009 में पटरी पर लौटने की उम्मीद नहीं है।
7. अमेरिका में वर्ष 2009 की पहली तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 5.5 प्रतिशत की वार्षिक दर से कमी आयी, जिसका मुख्य कारण खपत और निर्यातों में कमी आना है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विश्व अर्थव्यवस्था की संभावना के जुलाई अंक में अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2009 में अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद में 2.6 प्रतिशत का संकुचन होगा तथा यह स्थिति अप्रैल 2009 में किए गए 2.8 प्रतिशत के संकुचन से थोड़ी बेहतर स्थिति का द्योतक है। जून 2009 में बेरोजगारी दर बढ़कर 9.5% हो जाने तथा वेतनवृद्धि, औद्योगिक उत्पादन, क्षमता उपयोग और उपभोक्ता उत्साह में गिरावट आने के कारण वर्ष 2009 की दूसरी तिमाही में प्रमुख समष्टि आर्थिक संकेतक प्रतिकूल बने रहे। खुदरा बिक्री और खपत में कमजोरी की स्थिति बनी रही क्योंकि घरेलू क्षेत्र, संपत्ति की कीमत में आयी गिरावट के कारण तुलनपत्र में आयी खराबी को सुधारने में ही लगा रहा। वृद्धि में कमी की प्रवृत्ति कुछ समय और बने रहने की संभावना है इसके परिणामस्वरूप अपर्याप्त क्षमता और बेरोजगारी बढ़ने की संभावना है। 11. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विश्व आर्थिक संभावना के जुलाई के नवीनतम अनुमान में कहा है कि उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि घटकर, 2008 के 6.0 प्रतिशत से, 2009 में 1.5 प्रतिशत हो जाएगी परंतु 2010 में वह बढ़कर 4.7 प्रतिशत हो जाएगी। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चीन और भारत में उन्नत संभावनाओं का उदाहरण देते हुए विकासशील एशिया के लिए वृद्धि की संभावना को और सुधार दिया है। वर्ष 2009 में अब तक (जून 2009 तक), एशिया की अर्थव्यवस्थाओं में व्यापक रेंज में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई है। सबसे ध्यान देने योग्य बात, सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा नियत पूंजी निवेश में बहुत भारी वृद्धि और भारी ऋण वृद्धि के बाद चीन के औद्योगिक उत्पादन में आया भारी सुधार है। चीन कम-से-कम इस बात में सफल हुआ है कि वह घरेलू मांग में वृद्धि करके (विशेषत: सरकारी निवेश मांग में) निर्यात में आए संकुचन को आंशिक रूप से निक्रिय कर पाया है। कोरिया और ताइवान में भी औद्योगिक उत्पादन में पर्याप्त सुधार आया है। घरेलू संभावना 12. केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के संशोधित अनुमानों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2008-09 में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई - जो अधिकतर विश्लेषकों की उम्मीदों से बेहतर है लेकिन 2007-08 के दौरान हुई 9.0 प्रतिशत की वृद्धि से कम है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में आयी कमी मुख्यत: वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही के दौरान ज्यादा स्पष्टत: दृष्टिगोचर थी जिसका प्रमुख कारण वैश्विक आर्थिक संकट का प्रतिकूल प्रभाव था (सारणी 2)।
कृषि
17. वस्तुत: सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में सरकारी अंतिम खपत व्यय का अंश 2007-08 के दौरान 8.0 प्रतिशत था लेकिन वह 2008-09 के दौरान चार गुना बढ़कर 32.5 प्रतिशत हो गया। लेकिन गैर-सरकारी अंतिम खपत व्यय उसी अवधि के दौरान 53.8 प्रतिशत से घटकर लगभग आधा अर्थात 27.0 प्रतिशत हो गया (सारणी 4)।
कारपोरेट कार्यनिष्पादन
कारोबार विश्वास
24. थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के ऋणात्मक हो जाने, और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के 8.6 - 11.5 प्रतिशत के रेंज में बने रहने के कारण, थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से संबंधित मुद्रास्फीतियों का अंतर हाल के समय में और अधिक मुखर हो गया है। यह उस ऐतिहासिक प्रवृत्ति के बिल्कुल विपरीत है जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का अनुकरण करती थी, भले ही थोड़े अंतराल के साथ क्योंकि थोक मूल्यों में परिवर्तन होने के बाद ही खुदरा मूल्यों में परिवर्तन होते हैं। हाल के महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण ऊंचे स्तर पर बनी हुई है क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बास्केट में थोक मूल्य सूचकांक बास्केट की तुलना में खाद्य वस्तुओं का भार अधिक है। जैसी कि आशा की जाएगी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के आवश्यक वस्तु घटक का, बहुत पास-पास से, अनुगमन करती है। जाहिर तौर पर, विभिन्न मूल्य सूचकांकों में अंतर होने से मुद्रास्फीति के आकलन की जटिलता और बढ़ जाती है। इसलिए नीति के प्रयोजनों हेतु मुद्रास्फीति की संभावना के समग्र आकलन के लिए रिज़र्व बैंक हमेशा की तरह मूल्य सूचकांकों की पूरी सूची पर निगरानी रखता है। राजकोषीय परिदृश्य 25. केंद्र सरकार का सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में कर प्राप्तियों का अनुपात वर्ष 2007-08 के 12.6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2008-09 में 11.8 प्रतिशत हो गया तथा बजट में यह अनुमान किया गया है कि वर्ष 2009-10 में, आर्थिक मंदी तथा वृध्दि को समर्थन देने के लिए करों की कटौती के रुप में दिए गए राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों के मिले-जुले प्रभावों के कारण, यह और घटकर 10.9 प्रतिशत हो जाएगा (सारणी 7)। दूसरी ओर, मुख्यत: छठे वेतन आयोग के निर्णयों को लागू करने, किसानों की ऋण माफी योजना, ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम और इफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च के चलते सकल व्यय में वृध्दि हुई है।
26. राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों तथा कर-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में कमी के परिणामस्वरुप सभी घाटा संकेतकों में तेजी से गिरावट आयी और वे राजकोषीय जबावदेही और बजट प्रबंध नियमों के अंतर्गत निर्धारित लक्ष्यों से काफी भिन्न स्तरों पर बने रहे। राजकोषीय घाटा वर्ष 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद के 2.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2008-09 में 6.2 प्रतिशत (वास्तविक से पूर्व) हो गया। प्रोत्साहन उपायों के कारण राजकोषीय घाटे में हुई वृध्दि (सकल घरेलू उत्पाद का 3.5 प्रतिशत) में से एक बड़ा भाग (3.3 प्रतिशतता अंक) व्यय में वृध्दि के कारण था। राजस्व घाटा भी वर्ष 2007-08 में सकल घरेलू उत्पाद का 1.1 प्रतिशत था लेकिन 2008-09 में वह बढ़कर 4.6 प्रतिशत हो गया। 2007-08 में जो प्राथमिक अधिशेष की स्थिति थी वह 2008-09 में घाटे में तबदील हो गयी।
29. अंतरिम बजट में जैसा कि अनुमान व्यक्त किया गया था, सरकार द्वारा भारी बाज़ार उधारों के लिए रिज़र्व बैंक की ओर से सक्रिय चलनिधि प्रबंध की व्यवस्था अपेक्षित थी। तदनुसार रिज़र्व बैंक ने खुला बाज़ार परिचालनों के अंतर्गत वर्ष 2009-10 की पहली छमाही के दौरान 80,000 हजार करोड़ रुपए की राशि की सरकारी प्रतिभूतियां खरीदने का इरादा जाहिर किया। वर्ष 2009-10 के संघीय बजट में निर्दिष्ट और अधिक उधार कार्यक्रम पर विचार करते हुए वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही (जुलाई - सितंबर) का संशोधित उधार कार्यक्रम 16 जुलाई 2009 को जारी किया गया। इस संशोधित कार्यक्रम के अनुसार पहली छमाही के दौरान दिनांकित प्रतिभूतियों के माध्यम से केंद्र सरकार का निवल बाज़ार उधार 2,65,911 करोड़ रुपए होगा (जो अंतरिम बजट से 58,000 करोड़ रुपए अधिक होगा)। 30. यह ध्यान देने योग्य है कि वर्ष की पहली छमाही के लिए उधार कार्यक्रम का लगभग 63 प्रतिशत (रुपए 1,67,911 करोड़) 27 जुलाई 2009 तक पूरा हो चुका है। बाज़ार स्थिरीकरण योजना के शेषों को एकीकृत करके 28,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि की उगाही की जा चुकी है । अब तक किए गए खुला बाज़ार परिचालन 33,439 करोड़ रुपए के रहे हैं जो 80,000 करोड़ रुपए की अधिसूचित राशि का 42 प्रतिशत है इसलिए शेष उधारों का सुगमतापूर्वक प्रबंध करने के लिए रिज़र्व बैंक के पास पर्याप्त गुजांइश है (सारणी 9)। 31. केंद्र सरकार के उधार कार्यक्रम के अंतर्गत निर्गत दिनांकित प्रतिभूतियों की भारित औसत आय, जो वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही के 8.42 प्रतिशत से बढ़कर दूसरी तिमाही में 9.24 प्रतिशत हो गयी थी, 2008-09 की चौथी तिमाही में कम होकर 6.68 प्रतिशत हो गयी। लेकिन जून 2009 में समाप्त तिमाही के लिए भारित औसत आय अपेक्षाकृत अधिक 6.93 प्रतिशत रही। वर्ष 2009-10 के दौरान अब तक निर्गत प्रतिभूतियों की भारित औसत परिपक्वता अवधि 11.5 वर्ष रही है जो तुलना करने पर पिछले वर्ष के 15.2 वर्षों की औसत परिपक्वता अवधि की अपेक्षा कम है। मौद्रिक परिस्थितियां 33. मध्य सितंबर 2008 से आरंभ करके मौद्रिक समुच्चयों में हुए उतार-चढ़ाव, वैश्विक तथा घरेलू समष्टि आर्थिक परिस्थितियों के मामले में उठाए गए मौद्रिक नीति कदमों के चलते चलनिधि की परिस्थितियों में आए परिवर्तनों द्वारा चालित होते रहे हैं। आरक्षित मुद्रा में हुए परिवर्तन व्यापक तौर पर मुद्रा की लेनदेन संबंधी मांग में आए परिवर्तनों और बैंकों के आरक्षित नकदी निधि अनुपात में आयी कमी को अभिव्यक्त करते हैं। अक्तूबर 2008 से आरंभ करके मुख्यरूप से आरक्षित नकदी निधि अनुपात में कई चरणों में तेजी से की गयी कमी के कारण आरक्षित मुद्रा में वृद्धि पिछले वर्ष की तुलना में 3 जुलाई 2009 की स्थिति के अनुसार (वर्षानुवर्ष) काफी कम हो गयी। आरक्षित नकदी निधि अनुपात में हुए परिवर्तनों के प्रथम चरण के समायोजन के बाद आरक्षित मुद्रा की वृद्धि में कमी कम मुखर थी (सारणी 11)। 34. 3 जुलाई 2009 की स्थिति के अनुसार वर्षानुवर्ष आधार पर 20.0 प्रतिशत की मुद्रा आपूर्ति वृद्धि अप्रैल 2009 के वार्षिक नीति वक्तव्य में अनुमानित 17.0 प्रतिशत की सीमा से काफी अधिक है। मौद्रिक विस्तार का प्रमुख चालक सरकार को दिया गया बैंक ऋण है जिसमें 48.0 प्रतिशत की वृद्धि हुई। ऋण की स्थितियां 36. 3 जुलाई 2009 की स्थिति के अनुसार खाद्येतर ऋण में वर्ष-दर-वर्ष विस्तार 16.3 प्रतिशत था जो एक वर्ष पूर्व के 25.5 प्रतिशत की वृद्धि से कम था। समग्र ऋण प्रवाह में आई मंदी का मुख्य कारण समग्र मांग में नरमी और तेल विपणन कंपनियों की ऋण अपेक्षाओं में कमी था। यद्यपि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के ऋणों में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि वार्षिक नीति वक्तव्य 2009-10 में दर्शायी गयी 20 प्रतिशत की अनुमानित सीमा से अधिक थी लेकिन निजी बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों का विस्तार काफी निचले स्तर पर और विदेशी बैंकों का ऋण विस्तार नकारात्मक रहा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जमाराशियों में आई तेजी के मुकाबले निजी और विदेशी बैंक समूहों की जमाराशियों में मंदी दिखाई दी (सारणी 12)।
37. मौजूदा वित्तीय वर्ष (03 जुलाई 2009 तक) के दौरान खाद्येतर ऋण में पिछले वर्ष के 1.6 प्रतिशत की तुलना में 0.4 प्रतिशत विस्तार हुआ। मौसमी कारकों के कारण वर्ष के पूर्वार्ध में खाद्येतर बैंक ऋण विस्तार का मंद पड़ जाना कोई असामान्य बात नहीं है। तथापि अप्रैल-मई 2009 के दौरान पेट्रोलियम और उर्वरक कंपनियों को दिए गए ऋणों में हुई तीव्र गिरावट (पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान 6,530 करोड़ रुपए की वृद्धि के विपरीत 18,796 करोड़ रुपए की गिरावट) के कारण खाद्येतर ऋण वृद्धि नकारात्मक रही। 5 जून, 19 जून और 3 जुलाई 2009 के हाल के तीन पखवाड़ों के दौरान खाद्येतर ऋण विस्तार 62,104 करोड़ रुपए के उच्चस्तर पर रहा जबकि वर्ष 2008 में इसी अवधि के दौरान यह वृद्धि 48,014 करोड़ रुपए रही थी। 38. भारी जमाराशि विस्तार तथा ऋण की मांग में नरमी के फलस्वरूप अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश (चलनिधि समायोजन सुविधा के अधीन प्राप्त की गयी प्रतिभूतियों सहित) एक वर्ष पहले के 27.7 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 3 जुलाई 2009 को उनके एनडीटीएल के 30.5 प्रतिशत हो गया। एलएएफ के लिए समायोजित किए जाने पर उनके एसएलआर निवेश 3 जुलाई 2009 को एनडीटीएल का 26.9 प्रतिशत थे। 3 जुलाई 2009 को एनडीटीएल के 24 प्रतिशत के निर्धारित एसएलआर से ऊपर उनके अधिशेष एसएलआर निवेश की मात्रा, 2,83,086 करोड़ रुपए (1,26,431 करोड़ रुपए एलएएफ के लिए समायोजित) थी। 39. 49 बैंकों के क्षेत्रवार विस्तृत आंकड़ों के अनुसार, जो कुल बैंक ऋण का 95 प्रतिशत थे, मई 2009 तक उद्योग को दिए जानेवाले बैंक ऋण में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि पिछले वर्ष के मुकाबले न्यूनतर थी। जहां कृषि, उद्योग, भू-संपदा (रियल इस्टेट) और एनबीएफसी के लिए ऋण का प्रवाह बना रहा, वहीं आवास ऋण की वृद्धि दर उल्लेखनीय रूप से कम रही (सारणी 13)।
वाणिज्यिक क्षेत्र के लिए वित्तीय संसाधनों का कुल प्रवाह 40. वर्ष 2008-09 के दौरान वाणिज्यिक क्षेत्र के लिए दिए जानेवाले कुल वित्तीय संसाधनों में पिछले वर्ष के मुकाबले गिरावट आयी, जो बैंक ऋण तथा अन्य स्रोतों से ली जानेवाली निधियों मे आयी कमी को प्रतिबिंबित करता है। जहां ऋण परिस्थितियां थोड़ी उदार बनीं, वहीं वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में गिरावट की प्रवृत्ति बनी रहीं जो कम मात्रा की ऋण मांग स्थिति का द्योतक है (सारणी 14)। ब्याज दरें 41. सितंबर 2009 के मध्य से रिज़र्व बैंक ने नीतिगत दरों में भारी कटौती की रिपो दर 425 आधार अंकों से तथा रिवर्स रिपो दर 275 आधार अंकों से घटाई गई। सीआरआर में भी बैंकों के एनडीटीएल के 400 आधार अंकों तक कटौती की गई (सारणी 15)। 42. रिज़र्व बैंक की नीतिगत दरों में कटौती तथा चलनिधि की अच्छी स्थितियों से संकेत लेते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के समस्त बैंकों, अधिकांश निजी क्षेत्र तथा विदेशी बैंकों ने अपनी जमा तथा ऋण दरों में कटौती की है। अक्तूबर 2008 और 20 जुलाई 2009 के दौरान मीयादी जमाराशि संबंधी दरों में कटौती की मात्रा निम्नप्रकार थी -सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा 125-325 आधार अंकों के बीच, निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा 100-375 आधार अंकों के बीच और पांच प्रमुख विदेशी बैंकों द्वारा 125-300 आधार अंकों के बीच। बीपीएलआर रेंज में कटौती की मात्रा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा 125-175 अंक, निजी बैंकों द्वारा 100-125 आधार अंक और पांच प्रमुख विदेशी बैंकों द्वारा 125 आधार अंक रही (सारणी 16)। 43. बैंकों द्वारा बीपीएलआर में कटौती की आवृत्ति यह दर्शाती है कि सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश बैंकों ने अपने बीपीएलआर में 200 आधार अंकों तक, निजी क्षेत्र के अधिकांश बैंकों ने 100 आधार अंकों तक और अधिकांश विदेशी बैंकों ने 50 आधार अंकों तक कटौती की (सारणी 17)। 44. बीपीएलआर में होनेवाली घट-बढ़ प्रभावी उधार दरों में होनेवाले परिवर्तनों को पूर्णत: तथा सटीकता से प्रतिबिंबित नहीं करती, क्योंकि बैंकों के करीब दो-तिहाई उधार बीपीएलआर से कम दरों पर संपन्न होते हैं। रिज़र्व बैंक की बैंकों के साथ हुई चर्चा से यह पता चलता है कि बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि की प्रचुरता तथा बैंक ऋण की घटी हुई मांग के कारण बैंकों पर बीपीएलआर से कम दरों पर उधार देने के लिए अधिकाधिक प्रतिस्पर्धात्मक दबाव पड़ा। अनंतिम अनुमान दर्शाते हैं कि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए प्रभावी औसत उधार दर मार्च 2008 के 12.3 प्रतिशत से घटकर मार्च 2009 में 11.1 प्रतिशत हो गई है। वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में प्रभावी उधार दर में और भी गिरावट आने का अनुमान है। वस्तुत:, अधिकांश मामलों में बैंकों के बीपीएलआर अधिकतम उधार दर के रूप में उभरे हैं जिससे इन दरों का सूचना घटक बाधित हुआ है। संप्रति, एक कार्यकारी दल (अध्यक्ष: दीपक मोहन्ती) बीपीएलआर प्रणाली की जांच कर रहा है। वित्तीय बाज़ार 45. अक्तूबर 2008 से मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों में ब्याज दरों की मीयादी संरचना में गिरावट आई है। मांग मुद्रा दरें नवंबर 2008 से एलएएफ कॉरिडोर (दायरे) के न्यूनतर स्तर के आसपास या उससे कम स्तर पर रही हैं। खजाना बिलों पर प्राथमिक आय भी कम हुई है (सारणी 18)।
46. सरकार के भारी मात्रा के बाजार उधार कार्यक्रमों की पृष्ठभूमि में 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूति पर गौण बाजार आय जनवरी 2009 के 5.82 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर मार्च 2009 में 6.57 प्रतिशत तथा जुलाई 2009 में और बढ़कर 7.00 प्रतिशत हो गई। खजाना बिलों पर न्यूनतर आय तथा दीर्घ अवधिवाली सरकारी प्रतिभूतियों पर उच्चतर आय के कारण आय वक्र में तीव्र चढ़ाव पाया गया । 47. वर्ष 2009-10 के दौरान (24 जुलाई 2009 तक) विदेशी मुद्रा बाजार की स्थिति ठीक रही और रुपए में प्रमुख मुद्राओं के संदर्भ में उतार-चढ़ाव देखा गया। समग्रत: रुपए में अमरीकी डॉलर के मुकाबले 5.3 प्रतिशत और जापानी येन के मुकाबले 1.6 प्रतिशत की मूल्यवृद्धि हुई जबकि पौंड स्टलिर्गं के मुकाबले 8.9 प्रतिशत और यूरो के मुकाबले 1.7 प्रतिशत का मूल्यांस पाया गया (चार्ट 4)। वास्तविक विनिमय दर के संकेतकों में घट-बढ़ के रूप में, छ:- करेंसी ट्रेड - आधारित वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) (1993-94 =100) मार्च 2009 के अंत के 96.25 से बढ़कर 24 जुलाई 2009 को 100.18 हो गई और प्रतिस्पर्धात्मक बनी हुई है। 48. वर्ष 2009-10 के दौरान अब तक देशी इक्विटी बाजारों में बढ़ोतरी हो रही है जो वैश्विक प्रवृत्ति और भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति अधिक आशावादी दृष्टिकोण दर्शाती है। वर्ष 2009-10 में (22 जुलाई 2009 तक) विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 7.8 बिलियन अमरीकी डालर के निवेश किए जबकि 2008-09 की तदनुरूपी अवधि के दौरान कुल 4.0 बिलियन अमरीकी डालर का निवल विनिवेश हुआ था। बीएसई संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) मार्च 2009 के अंत के 9,709 से बढ़कर 24 जुलाई 2009 को 15,379 हो गया। मौद्रिक संचरण 49. मौद्रिक संचरण प्रक्रिया की कारगरता भिन्न-भिन्न बाजारों में ब्याज दरों की मीयादी संरचना पर केंद्रीय बैंक की नीतिगत दर में होनेवाले परिवर्तनों का जिस मात्रा तक और गति से प्रभाव पड़ता है उस पर निर्भर होती है। जहां रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए नीतिगत परिवर्तनों का पड़नेवाला प्रभाव मुद्रा और सरकारी प्रतिभूति बाजारों में तेज़ रहा है वहीं यह बैंकों की उधार दरों पर धीमा रहा है। यह चिन्ता का विषय है। जैसा कि वार्षिक नीति वक्तव्य में कहा गया है, बैंकों की उधार दरों पर नीतिगत दरों के प्रभाव में बाधा पहुंचानेवाले कुछ प्रमुख घटक हैं: (i) अल्प बचतों संबंधी नियंत्रित ब्याज दर संरचना, जिससे जमा दरों को घटाने में बाधा आती है;(ii) बैंक जमाराशियों का एक बड़ा भाग नियत ब्याज दरों पर जुटाया जाता है, जिससे बैंक नीतिगत दरों के अनुरूप अपनी उधार दरों में कटौती करने के लिए हतोत्साहित हो जाते हैं; (iii) कुछ सेक्टरों के लिए रियायती उधार दरें बीपीएलआर से संबद्ध होती हैं, जिससे समग्र उधार दरों का लचीलापन घटता है, और (iv) सरकार के निरंतर चलनेवाले भारी बाजार उधार कार्यक्रम, जिनके कारण ब्याज दर प्रत्याशाएं कठोर हो जाती हैं। चूंकि चलनिधि प्रचुर बनी हुई है, अत: उधार दरों पर प्रतिस्पर्धात्मक दबाव बढ़ गया है। परिणामत:, अप्रैल 2009 में जारी वार्षिक नीति वक्तव्य के बाद से बैंक उधार दरों पर नीतिगत दर के परिवर्तनों का बेहतर प्रभाव अब देखा जा सकता है। पूर्व में उच्च दरवाली अल्पावधि जमाराशियों में समाप्ति अवधि को अग्रसर होने के साथ बैंकों के लिए अपनी उधार दरों में और कटौती करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। बाह्य क्षेत्र 50. वर्ष 2008-09 के दौरान भारत का चालू खाता घाटा बढ़कर सकल देशी उत्पाद का 2.6 प्रतिशत हो गया, जो कि 2007-08 में 1.5 प्रतिशत था, इससे व्यापार शेष में गिरावट प्रकट होती है। निवल पूंजी अंतर्वाह जो वर्ष 2007-08 में जीडीपी का 9.2 प्रतिशत था उसमें तीव्र गिरावट हुई और वह वर्ष 2008-09 में 0.8 प्रतिशत हो गया, आरक्षित निधियों में मूल्यांकन बदलावों की निवल राशि में 20.1 बिलियन अमरीकी डालर की गिरावट रही, और मूल्यांकन बदलावों की निवल राशि को शामिल करें तो 58.0 बिलियन अमरीकी डालर की गिरावट हुई (सारणी-19)। वर्ष 2008-09 की तीसरी तिमाही में यह दबाव सर्वाधिक था, क्योंकि चालू खाते के शेष में गिरावट के साथ-साथ निवल पूंजी बहिर्वाह भी जुड़ गया था, जिससे आरक्षित निधियों में अच्छी-खासी मात्रा में गिरावट हुई। वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही में चालू खाते की स्थिति में बदलाव आया जो कि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेजी से आई नरमी और प्रतिधारित अदृश्य अधिशेष राशियों को प्रकट करता है। यद्यपि वर्ष 2008-09 की चौथी तिमाही में भी पूंजी का बहिर्वाह बना हुआ था, लेकिन वर्ष 2009-10 की पहली तिमाही में इसकी प्रवृत्ति बदल गई।
51. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों का प्रबंधन करने के समग्र दृष्टिकोण में भुगतान शेष की राशियों के बदलते हुए घटकों और विभिन्न प्रकार के प्रवाहों के साथ जुड़े हुए ‘चलनिधि जोखिमों’ और अन्य अपेक्षाओं को प्रकट करने के प्रयासों को ध्यान में रखा गया है। वर्ष 2009-10 में अब तक विदेशी मुद्रा आरक्षित निधियों में 14.2 बिलियन अमरीकी डालर की बढ़ोतरी हुई और ये मार्च 2009 के अंत के 252.0 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर 17 जुलाई 2009 तक 266.2 बिलियन अमरीकी डालर हो गर्इं। यह बढ़ोतरी अधिकांशतया मूल्यांकन बदलावों के कारण हुई। II. मौद्रिक नीति का रुझान 52. सितंबर 2008 के मध्य से रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू किए गए विभिन्न नीतिगत उपायों का जोर इस बात पर रहा कि प्रचुर रुपया चलनिधि प्रदान की जाए, डालर में चलनिधि की सहजता सुनिश्चित की जाए और बाजार में ऐसा परिवेश बरकरार रखा जाए जो उत्पादक क्षेत्रों को ऋण का सतत प्रवाह सुनिश्चित करे। इस दौरान शुरू किए गए महत्वपूर्ण उपायों में रेपो और रिवर्स रेपो दरों में कटौती, सीआरआर और एसएलआर में कटौती, क्षेत्र-विशेष के लिए चलनिधि की विभिन्न सुविधाओं की शुरुआत, फोरेक्स स्वैप सुविधा की स्थापना और बाह्य वाणिज्यिक उधारों (ईसीबी) के लिए दिशानिदेशों में रियायत शामिल थे। उत्पादक प्रयोजनों के लिए ऋण के प्रवाह को बढ़ाने के उद्देश्य से रिज़र्व बैंक ने बैंकों को दबावग्रस्त आस्तियों की पुनर्रचना की अनुमति भी दी। 53. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में रिवर्स रेपो और रेपो दोनों ही की दरों में 25 आधार अंकों की कमी की गई थी। वर्तमान में रिवर्स रेपो दर 3.25 प्रतिशत और रेपो दर 4.75 प्रतिशत है। ये दोनों ऐतिहासिक न्यूनतम स्तरों पर हैं। चलनिधि प्रभाव 54. रिज़र्व बैंक द्वारा सितंबर 2008 के मध्य से की गई कार्रवाई के परिणामस्वरूप 5,61,700 करोड़ रुपये की वास्तविक/संभावित चलनिधि बढ़ोतरी हुई (सारणी-20)। इसके अलावा, एसएसलआर में एनडीटीएल के एक प्रतिशत की स्थायी कटौती से ऋण विस्तार के लिए 40,000 करोड़ रुपये की चलनिधि उपलब्ध हुई है। विश्लेषणात्मक रूप से देखें तो सितंबर 2008 के मध्य से रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए विभिन्न नीतिगत क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप देशी आस्तियों में बढ़ोतरी हुई है। इसके लिए अन्य उपायों के अलावा खुले बाजार के परिचालनों (ओएमओ) और बाजार स्थिरीकरण योजनाओं (एमएसएस) के तहत बान्डों को वापस खरीदने के उपाय किए गए ताकि अपेक्षित मौद्रिक विस्तार को समर्थन देने के लिए आधारभूत धन का सृजन हो सके। ऋण की गुणवत्ता को बनाए रखने के साथ व्यावहारिक दरों पर ऋण विस्तार के लिए अपेक्षित नीतिगत व्यवस्था सुनिश्चित करने में रिज़र्व बैंक की यह सतत प्रतिबद्धता रही है कि चलनिधि का विस्तार किया जाए। 55. चलनिधि की स्थिति सहज बनी रही जैसा कि इस तथ्य से स्पष्ट है कि एलएएफ विन्डो की स्थिति नवंबर 2008 के मध्य से ही ग्रहणकर्ता के रूप में रही। वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान एलएएफ विन्डो के तहत रिज़र्व बैंक दैनिक आधार पर औसत 1,20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा ही ग्रहण कर रहा है। मांग मुद्रा बाजार की दरें सामान्यतया एलएएफ कॉरिडोर के निम्नतर स्तरों के समीप या इससे नीचे रही हैं। मांग मुद्रा बाजार की अन्य दरें अर्थात् सीबीएलओ और मार्केट रेपो, तथा सीडी और सीपी की डिस्काउंट दरें भी मांग मुद्रा बाजार की दरों के अनुरूप काफी नीचे गिरीं। अधिकांश वाणिज्य बैंकों ने अपनी जमा दरें और बेंचमार्क प्राइम लैंडिंग दरों में कटौती की है। चूंकि समग्र चलनिधि स्थितियां सहज रही, इसलिए रिज़र्व बैंक द्वारा उपलब्ध कराई गई विशेष पुनर्वित्त/चलनिधि सुविधाओं के तहत समग्र उपभोग भी कम ही रहा। हालांकि, बैंकरों ने यह संकेत दिया है कि इन सुविधाओं की विद्यमानता ने - भले ही इनका पूरा उपयोग नहीं हुआ - उन्हें अति आवश्यक सहजता प्रदान की क्योंकि संभावित सहारे के रूप में वे इनका उपयोग कर सकते हैं। 56. सितंबर 2008 में संकट के गहराने के साथ ही अर्थव्यवस्था को इनके सर्वाधिक बुरे प्रभाव से बचाने के लिए रिज़र्व बैंक आवश्यक कार्रवाई करता रहा है। इस प्रयोजन के लिए रिज़र्व बैंक ने विविध प्रकार के लिखतों का प्रयोग किया जैसे रेपो और रिवर्स रेपो की दरें, आरक्षित नकदी निधि अनुपात, सांविधिक चलनिधि अनुपात, चलनिधि समायोजन सुविधा सहित खुले बाजार के परिचालन, बाजार स्थिरीकरण योजना, विशेष बाजार परिचालन और क्षेत्र-विशेष के लिए चलनिधि सुविधाएं। वित्तीय स्थिरता के प्रयोजन से संबंधित कतिपय क्षेत्रों को ऋण का प्रवाह सुचारु रूप से बनाए रखने के लिए रिज़र्व बैंक ने विवेकपूर्ण उपायों का भी प्रयोग किया। वैश्विक और स्वदेशी स्तर पर उदीयमान समष्टि आर्थिक स्थितियों के अनुरूप चलनिधि और ब्याज दर स्थितियों में संपरिवर्तन करने के लिए रिज़र्व बैंक इन बहुविध उपायों पर निर्भरता बनाए रखेगा। संवृद्धि के पूर्वानुमान 57. वर्ष 2008-09 में वास्तविक जीडीपी में 6.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जो कि अप्रैल 2009 के रिज़र्व बैंक के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में किए गए पूर्वानुमानों के अनुरूप है। हालांकि संवृद्धि की गति असमान रही, क्योंकि वर्ष की पहली छमाही के 7.7 प्रतिशत से घटकर यह दूसरी छमाही में 5.8 प्रतिशत पर आ गई। इसका मुख्य कारण वैश्विक वित्तीय संकट था जिसने बाह्य मांग, घरेलू निजी उपभोग और निवेश मांग को प्रभावित किया। समग्र समष्टि आर्थिक परिदृश्य लगातार अनिश्चित बना रहा, यद्यपि यह संभावना है कि राजकोषीय और मौद्रिक उत्प्रेरक उपायों से वर्ष 2009-10 में घरेलू मांग बढ़ेगी। 58. घरेलू और बाह्य वित्तीय स्थितियां भी अब वर्ष 2008-09 की दूसरी छमाही की तुलना में अधिक अनुकूल हैं। कारोबारी दृष्टिकोण ने औद्योगिक क्रियाकलापों की पुन: शुरुआत के सकारात्मक संकेत दिए हैं। दूसरी ओर वर्ष 2009 के दौरान विश्व व्यापार में तीव्र संकुचन के पूर्वानुमान को देखते हुए निर्यात मांग कमजोर बनी रहेगी। इसी प्रकार वर्ष 2009-10 के पूर्ववर्ती भाग में सेवा क्षेत्र को बाह्य मांग में गिरावट और कमजोर औद्योगिक संवृद्धि के प्रतिकूल प्रभाव का अहसास हो सकता है। इसके अलावा, दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत देर से हुई है, और यह सामान्य से कम स्तर पर है तो खेती की पैदावार में गिरावट का जोखिम बढ़ेगा। समग्र रूप से देखें तो वर्ष 2009-10 के मध्य से पहले संवृद्धि की गति में बढ़ोतरी संभावित नहीं है। वर्तमान आकलन के अनुसार वर्ष 2009-10 के दौरान सकल देशी उत्पाद के लिए 6.0 प्रतिशत की संवृद्धि दर का अनुमान निर्धारित किया गया है जो देखा जाए तो कुछ सुधार दर्शाता है। इस प्रकार वर्ष 2009-10 के लिए यह नवीनतम संवृद्धि-पूर्व निर्धारण वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में बताए गए लगभग 6.0 प्रतिशत के संवृद्धि अनुमान से थोड़ा-सा अधिक है। मुद्रास्फीति पूर्वानुमान 59. प्रधान थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति दर जून 2009 में नकारात्मक रही, जैसा कि अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में अनुमान लगाया गया था। हालांकि भारत में नकारात्मक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का कारण सांख्यिकीय आधार के प्रभाव से है और जैसा कि अप्रैल के वक्तव्य में बताया गया था, इसका आशय मांग में संकुचन के रूप में नहीं लिया जाए। यह अस्थायीनकारात्मक थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति कुछ महीनों से अधिक नहीं रहेगी। हालांकि, खाद्य सामग्री की कीमतों में बढ़ोतरी बनी रहेगी। यह स्थिति उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के उच्च स्तर पर भी दिखलाई देती है जो कि प्रयासों के बावजूद कम नहीं हो रहा है। मानसून की अनिश्चित स्थिति खाद्य सामग्री की कीमतों को और भी बढ़ा सकती है। इसके अलावा, थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में तेज गिरावट के समनुरूप ही मुद्रास्फीति अनुमानों में गिरावट नहीं हुई है। 60. वैश्विक मांग में गिरावट के कारण वैश्विक स्तर पर पण्यों की कीमतों का प्रभाव अगस्त 2008 से ही काफी स्पष्ट रूप से तेज रहा, वह भी 2009 के प्रारंभ से कम होता प्रतीत हो रहा है। वस्तुत: वैश्विक स्तर पर सुधार से पहले ही पण्यों की कीमतों में प्रभाव दिखाई देने लगे। रिज़र्व बैंक के मुद्रास्फीति अनुमानों के सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि यद्यपि स्फीति-अनुमान सुस्थिर बने हुए हैं, तथापि अधिकांश उत्तरदाताओं ने अंदाजा लगाया है कि अगले तीन माह से एक वर्ष तक मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी होगी। 61. अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में मार्च 2010 के अंत में थोक मूल्य सूचकांक की मुद्रास्फीति 4.0 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान लगाया गया था। वित्तीय वर्ष को आधार मानें तो थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में 11 जुलाई 2009 तक 3.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है। आधार-प्रभाव, जिससे थोक मूल्य सूचकांक में नकारात्मक स्फीति हो रही है, अक्तूबर 2009 तक पूरी तरह से समाप्त हो जाने का अनुमान है। इसके बाद आपूर्ति में किसी प्रमुख आघात के बिना भी वर्ष-दर-वर्ष आधार पर थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति ऊपर बढ़ेगी। पण्य कीमतों में वैश्विक प्रवृत्ति और देशी मांग आपूर्ति संतुलन को देखते हुए मार्च 2010 के अंत में थोक मूल्य सूचकांक की मुद्रास्फीति 5.0 प्रतिशत के आसपास रहने का पूर्वानुमान लगाया गया है। यह अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में किए गए 4.0 प्रतिशत के पूर्वानुमान से अधिक है। 62. हमेशा की तरह, रिज़र्व बैंक प्रयास करता रहेगा कि कीमतों में स्थिरता सुनिश्चित की जाए और मुद्रास्फीति के अनुमानों को स्थिर किया जाए। इस प्रयोजन से रिज़र्व बैंक सभी कीमत सूचकांकों और उनके घटकों के व्यवहार पर ध्यान देता रहेगा। मौद्रिक नीति का संचालन इस प्रकार रहेगा कि मुद्रास्फीति के अनुमान को 4.0-4.5 प्रतिशत के दायरे में नियंत्रित और सन्निहित रखा जाए। यह स्थिति मुद्रास्फीति में 3.0 प्रतिशत के मध्यावधि उद्देश्य के अनुसार होगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारत के व्यापक एकीकरण से सम्बद्ध रहेगी। मौद्रिक पूर्वानुमान 63. वर्ष 2008-09 के दौरान मुद्रा आपूर्ति (एम3) में 18.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। वर्तमान वित्तीय वर्ष की पूरी अवधि में अब तक एम3 में वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि 20.0 प्रतिशत से अधिक बनी रही, जो चलनिधि की सहज स्थिति को प्रकट करता है। सरकार को बैंक ऋण में हुई बढ़ोतरी एम3 में विस्तार का प्रमुख स्रोत रही, जिसमें रिज़र्व बैंक द्वारा ओएमओ भी शामिल है, जबकि वाणिज्य क्षेत्र को ऋण प्रवाह में गिरावट रही। सभी उत्पादक क्रियाकलापों के लिए निरंतर आधार पर प्रचुर चलनिधि प्रदान करने के लिए रिज़र्व बैंक प्रतिबद्ध है। इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि सरकार द्वारा बाजार से उधार लेने के बढ़े हुए कार्यक्रम के कारण निजी क्षेत्र के लिए ऋण प्रवाह में कमी नहीं आने पाये। इस प्रकार, अप्रैल 2009 के वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में की गई परिकल्पना से ज्यादा मुद्रा आपूर्ति रखनी होगी। तदनुसार, नीतिगत प्रयोजनों के लिए वर्ष 2009-10 के दौरान मुद्रा आपूर्ति (एम3) को 18.0 प्रतिशत पर रखा गया है, जबकि वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में 17.0 प्रतिशत का पूर्वानुमान किया गया था। इसी के अनुरूप यह पूर्वानुमान भी है कि अनुसूचित वाणिज्य बैंकों की सकल जमाराशियों में 19.0 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों और निजी कंपनी क्षेत्र के बांडों/ऋण पत्रों/शेयरों और सीडी में निवेश सहित समायोजित खाद्येतर ऋण को वार्षिक नीतिगत वक्तव्य में दिए गए अनुसार 20.0 प्रतिशत पर ही रखा गया है। हमेशा की तरह ये संख्याएं सांकेतिक पूर्वानुमान के रूप में हैं, ये लक्ष्य नहीं हैं। समग्र आकलन 65. अप्रैल 2009 में नीतिगत वक्तव्य जारी होने के बाद से, भारत में सुधार होने के क्रमिक संकेत देखने में आए हैं; खाद्य भंडार में वृद्धि हुई है; औद्योगिक उत्पादन सकारात्मक हो गया है; कंपनियों के निष्पादन में सुधार आया है; कारोबारी विश्वास संबंधी सर्वेक्षण आशावान हैं; अग्रणी संकेतक वृद्धि दिखलाते हैं; ब्याज दरों में कमी आयी है; मई 2009 के बाद ऋण के उपयोग में वृद्धि हुई है; शेयर मूल्यों में उछाल आया है; प्राथमिक पूंजी बाजार में भी कुछ गतिविधि देखने में आयी हैं; तथा बाह्य वित्तीयन परिस्थितियों में सुधार हुआ है। दूसरी ओर, कुछ नकारात्मक संकेत भी हैं: मानसून विलम्ब से और कम हुआ है; खाद्य पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि हुई है; विश्व के पण्य मूल्यों में उछाल आया है; बाह्य मांग लगातार कमजोर बनी हुई है; तथा राजकोषीय घाटा उच्च स्तर पर है। 66. कुल मिलाकर देखा जाए तो वर्ष 2009-10 के लिए वास्तविक सकल देशी उत्पाद वृद्धि और मुद्रास्फीति संबंधी मौजूदा आकलनों का जोखिम बढा हुआ रहेगा। खाद्य पदार्थों के पर्याप्त भंडार की स्थिति को देखते हुए यदि आपूर्ति की दृष्टि से मूल्यों पर दबाव पड़ता है तो भी जोखिमों पर नियंत्रण रखा जा सकता है। रिज़र्व बैंक चलनिधि के स्तर पर भी निकट से निगरानी रखेगा ताकि आपूर्ति के दबाओं के कारण मूल्य संबंधी आकांक्षाओं पर नियंत्रण रखा जा सके। 67. वर्ष 2008-09 में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि अधिकांश विश्लेषकों की आशा से कहीं अधिक थी और अधिकांश अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में तो निश्चित रूप से बेहतर थी। अनुमान को कुछ अधिक रखते हुए, वर्तमान वर्ष में 6.0 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान यह दिखलाता है कि विश्व की अर्थव्यवस्था में कुछ निश्चित सुधार नहीं होगा। हमारे सामने चुनौती यह है कि अर्थव्यवस्था फिर से 9 प्रतिशत की उच्च वृद्धि दर पर आ जाए जो कि वर्ष 2005-08 की अवधि में देखने में आयी थी। संकट की अवधि के अस्थायी प्रभावों के बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था में मांग के कारण समस्या नहीं है बल्कि समस्या कम आपूर्ति की है। शीघ्र वृद्धि प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है - निवेश के स्तर में वृद्धि करना, विशेषकर बुनियादी सुविधाओं में। 68. सितंबर 2008 के मध्य से संकट प्रारंभ होने के समय से ही, रिज़र्व बैंक की नीति भरसक सहायता करने की रही। रिज़र्व बैंक का उद्देश्य होगा कि नीति का रुझान इस प्रकार रहे कि अर्थव्यवस्था फिर से उच्च वृद्धि के मार्ग पर आ जाए। लेकिन, कुछ ऐसे कारण भी है जो मुद्रास्फीति बढ़ा सकते हैं जैसे कि - खाद्य पदार्थों के मूल्यों का लगातार ऊँचे स्तर पर बने रहना, विश्व के बाजारों में पण्यों के मूल्यों में पुन: उछाल, विस्तारात्मक मौद्रिक और राजकोषीय नीतियां। इसलिये, वर्तमान स्थिति में अर्थव्यवस्था को फिर से उच्च वृद्धि के मार्ग पर लाने में बहुत सारी महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं जिनके बारे में नीचे चर्चा की गयी है। 69. रिज़र्व बैंक के लिए सबसे पहली चुनौती पर्याप्त चलनिधि उपलब्ध कराना और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाए रखना है। जैसा कि पहले बताया गया है, थोक मूल्य सूचकांक के मुद्रास्फीति संबंधी नकारात्मक आंकड़े महज सांख्यिकीय लक्षण हैं और वे संरचनात्मक रूप से महत्वपूर्ण नहीं हैं। थोक मूल्य सूचकांक की मुद्रास्फीति में प्राथमिक वस्तुओं, विशेषकर खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति काफी उच्च स्तर पर है। हालांकि विनिर्मित वस्तुओं की मुद्रास्फीति नकारात्मक है, लेकिन विनिर्मित खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति दो अंकों में है। यही नहीं, पिछले कुछ महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक उच्च बने रहे हैं और वस्तुत: उनमें कुछ सख्ती भी आई है। रिज़र्व बैंक का काम है कि मांग संबंधी परिस्थितियों में सुधार आने और ऋण प्रवाह स्थिर होने तक एक उदार मौद्रिक रुझान बनाये रखा जाए लेकिन एक ऐसी भावी योजना के साथ तैयार भी रहना होगा कि इसके बाद विस्तारपरक रुख को शीघ्र प्रभावी ढंग से वापस ले लिया जाए। 70. रिज़र्व बैंक के सामने दूसरी चुनौती वर्ष 2009-10 के लिए सरकार के उधार कार्यक्रम का प्रबंध करने की है। जैसा कि पहले बताया गया है, वर्ष 2008-09 में सरकार का उधार बहुत तेजी से बढ़ा। वर्तमान वर्ष में, पिछले वर्ष पहले से बढ़े हुए उधार की तुलना में केंद्र सरकार का उधार 33 प्रतिशत अधिक है। रिज़र्व बैंक द्वारा सक्रिय रूप से चलनिधि का प्रबंधन करने के बावजूद, सरकारी प्रतिभूतियों पर आय जनवरी 2009 में 5.8 प्रतिशत के निम्न स्तर से बढ़कर जुलाई 2009 में लगभग 7.0 प्रतिशत हो गयी। आय में वृद्धि स्पष्टतया निम्न ब्याज दरों की उस व्यवस्था के विपरीत जाती है जिसकी कि वर्तमान स्थिति में अर्थव्यवस्था को आवश्यकता है। अभी तक तो निजी ऋण मांग कम बनी हुई है, लेकिन, इसमें वृद्धि होने की संभावना है। वर्तमान या संभावित निजी ऋण मांग पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, सरकार के उधार कार्यक्रम का प्रबंधन करने के लिए रिज़र्व बैंक अपनी सक्रिय चलनिधि प्रबंध नीति को जारी रखेगा। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009-10 की पहली छमाही में, खुला बाजार क्रयों और बाजार स्थिरीकरण योजना के प्रभाव के कारण प्राथमिक चलनिधि में 1,50,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसका मौद्रिक प्रभाव सीआरआर में 3.5 प्रतिशत से अधिक कमी करने के समान है। 71. तीसरी चुनौती है - संकट के कारण निजी निवेश मांग में आयी कमी में वृद्धि करना। वास्तविक सकल देशी उत्पाद में लगभग 32 प्रतिशत के भार सहित सकल नियत पूंजी निर्माण की वृद्धि वर्ष 2007-08 के 12.9 प्रतिशत के स्तर से गिरकर वर्ष 2008-09 में 8.2 प्रतिशत रह गयी। मध्यावधि में वृद्धि को बरकरार रखने के लिए इस अनुपात को संकट से पूर्व के स्तर पर फिर से लाने और वस्तुत: उसमें वृद्धि करने की बहुत आवश्यकता है। बुनियादी सुविधाओं में निवेश वृद्धि करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। रिज़र्व बैंक ने पिछले 9 महीनों में एक उदार मौद्रिक नीति बनाये रखी है ताकि न्यून ब्याज दरों की व्यवस्था जारी रह सके। बैंकों ने भी जमाराशि और ब्याज दरों में कमी करके मौद्रिक रुझान को सहयोग दिया है, हालांकि उनके द्वारा इनमें और कमी करने की गुंजाइश बनी हुई है। रिज़र्व बैंक निजी ऋण मांग में फिर से वृद्धि लाने के लिए नीतिगत दरों और चलनिधि के माध्यम से निजी ऋण मांग में वृद्धि करने की चुनौती का सामना करेगा। 72. अल्पावधि और मध्यावधि में, चौथी चुनौती है - वित्तीय समेकन। निजी उपभोग और निवेश मांग में आई कमी को पूरा करने के लिए, सरकार के लिए प्रति-चक्रीय सार्वजनिक व्यय का सहारा लेना आवश्यक हो गया था। इससे अर्थव्यवस्था को संकट के सबसे खराब प्रभाव से बचा लिया गया। लेकिन सरकारी उधार में बहुत बड़ी और अप्रत्याशित वृद्धि के कारण सरकारी प्रतिभूतियों पर आय में वृद्धि हो गयी है जिससे मौद्रिक संचारण में बाधा आई है। यहीं नहीं, यदि स्थिति में सुधार आने के बाद भी बड़े राजकोषीय घाटे जारी रहे तो उनसे निजी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। इसलिये, सरकार को राजकोषीय समेकन के मार्ग पर फिर से लौटना होगा। इसके दो पहलू हैं। पहला है - राजकोषीय समेकन का मार्ग निर्धारित करना। इसका अभिप्राय है -संशोधित एफआरबीएम लक्ष्य बताने तक ही सीमित न रहकर, उस समायोजन का विवरण देना जो कि राजस्व और व्यय क्षेत्र में किया जायेगा। उससे राजकोषीय रुझान को विश्वसनीयता मिलेगी और आर्थिक एजेंटों को पूर्वानुमान हो सकेगा। दूसरा पहलू है - मात्रात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए भी राजकोषीय समायोजन की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना। 73. अंतत:, मध्यावधि में एक बहुत बड़ी चुनौती है - निवेश परिवेश में सुधार लाना और अर्थव्यवस्था की अवशोषण करने की क्षमता में विस्तार करना। विकास के सभी अनुभव स्पष्ट रूप से यह दिखलाते हैं कि निवेश में लगातार वृद्धि और उत्पादकता में सुधार लाए बिना कोई भी देश लगातार उच्च वृद्धि को बरकरार नहीं रख सकता। इसके लिए दो काम करने होंगे। पहला काम है - वित्तीय क्षेत्र के सुधारों को आगे बढ़ाना ताकि वित्तीय समावेशन में वृद्धि हो, वित्तीय बाजारों में और अधिक व्यापकता और सघनता आए तथा वित्तीय संस्थाएं और मजबूत हों। ऐसा करते समय, हमें वैश्विक आर्थिक संकट से मिले सबक को ध्यान में रखना ही होगा। दूसरा काम है - अभिशासन सुधारों को बड़े पैमाने पर लागू करना ताकि संभावित निवेशक आश्वस्त हो सकें। नीति का रुझान 74. उपर्युक्त समग्र आकलन के आधार पर, वर्ष 2009-10 की शेष अवधि के लिए मौद्रिक नीति का रुझान निम्नानुसार होगा:
75. यह उल्लेख करना आवश्यक है कि जब तक स्थिति में सुधार के निश्चित और मजबूत संकेत दिखाई नहीं देते, तब तक रिज़र्व बैंक एक उदार मौद्रिक नीति बनाए रखेगा। लेकिन यह मौद्रिक रुझान स्थिर नहीं होगा। आगे बढ़ते हुए, रिज़र्व बैंक को विस्तारात्मक उपाय उलटने होंगे ताकि वृद्धि की गति को बनाए रखते हुए मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखा जा सके। लेकिन स्थूल आर्थिक गतिविधियों के अनुरूप, दिशा को उलटने का समय निर्धारित किया जायेगा। III. मौद्रिक उपाय बैंक दर रेपो दर रिवर्स रेपो दर 79. परिस्थितियों को देखते हुए, रिज़र्व बैंक नियत दरों पर या परिवर्तनीय दरों पर, रेपो/रिवर्स रेपो नीलामियां करेगा। 80. बाजार की परिस्थितियों और अन्य संगत बातों को ध्यान में रखते हुए, रिज़र्व बैंक एलएएफ के अधीन रातभर या अधिक अवधि के लिए रेपो/रिवर्स रेपो करेगा। रिज़र्व बैंक को एलएएफ के अधीन पूर्णतया या अंशतया बोली (बोलियों) को स्वीकार करने या अस्वीकार करने की स्वतंत्रता होगी ताकि दैनिक चलनिधि प्रबंधन में एलएएफ का उपयोग कुशलता से किया जा सके। आरक्षित नकदी निधि अनुपात 81. अनुसूचित बैंकों के लिए निवल मांग और देयताओं (एनडीटीएल) के 5.0 प्रतिशत के वर्तमान आरक्षित नकदी निधि अनुपात में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। दूसरी तिमाही समीक्षा 82. वर्ष 2009-10 के लिए मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा 27 अक्तूबर, 2009 को की जाएगी। मुंबई |