भारतीय रिज़र्व बैंक विदेशी मुद्रा विभाग केंद्रीय कार्यालय मुंबई अधिसूचना संख्या फेमा.260/आरबी-2013 18 फरवरी 2013 विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न/डेरिवेटिव संविदा) (संशोधन) विनियम, 2013 विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (1999 के 42) के खंड 47 के उप-खंड (2) की शर्त (एच) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए, रिज़र्व बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न/डेरिवेटिव संविदा) विनियम, 2000 (अधिसूचना संख्या फेमा 25/आरबी-2000 दिनांकित 3 मई 2000) में निम्नलिखित संशोधन किये जा रहे हैं:- 1. संक्षिप्त नाम तथा प्रारम्भ
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इन विनियमों को विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न/डेरिवेटिव संविदा) (संशोधन) विनियम, 2013 के नाम से जाना जाएगा।
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इन्हें इन विनियमों @ में निर्दिष्ट दिनांकों से प्रभावी माना जाएगा।
2. विनियमों का संशोधन विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न/डेरिवेटिव संविदा) विनियम, 2000 (अधिसूचना संख्या फेमा 25/आरबी-2000-आरबी दिनांकित 3 मई 2000). अनुसूची ।। में, ए. विनियम 2 में, उप-विनियम (x) के बाद, निम्नलिखित उप-विनियम को जोड़ा जाएगा तथा यह माना जाएगा कि यह 16 जुलाई 2012 से प्रभावी हुआ है:- “(ix) ‘अहर्ताप्राप्त विदेशी निवेशक (क्यूएफ़आई)’ से अभिप्राय भारत से बाहर एक निवासी व्यक्ति से है जो कि फेमा 20/आरबी-2000 दिनांकित 3 मई 2000 के विनियम 2 में परिभाषित है” बी. विनियम 6 में,
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उप-विनियम (ii) में, ये शब्द “रिज़र्व बैंक द्वारा इस संबंध में विशेष रूप से प्राधिकृत” हटाएँ जाएँगे तथा यह माना जाएगा कि इन्हें 17 जनवरी 2012 से हटाया गया है।
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उप विनियम (ii) में, ये शब्द “बशर्ते कि इस संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा उनको जारी किए निर्देशों तथा दिशानिर्देशों के अधीन ऐसे प्राधिकृत डीलर बैंक इस तरह के अधिकार का प्रयोग करेंगे’’ हटाएँ जाएँ तथा यह माना जाएगा कि इन्हें 17 जनवरी 2012 से हटाया गया है।
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उप–विनियम (iii) हटाया जाए तथा यह माना जाएगा कि इसे 17 जनवरी, 2012 से हटाया गया है।
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उप-विनियम (iv) को पुन: (iii) के क्रम में रखा जाए तथा यह माना जाएगा कि इसे 17 जनवरी 2012 से पुन: क्रमवार किया गया है।
सी. विनियम 6 ए में, उप-विनियम (ii) में, ये शब्द “विनियम 6 के उप-नियम (ii) के अंतर्गत रिज़र्व बैंक द्वारा विशेष रूप से प्राधिकृत” को “रिज़र्व बैंक द्वारा इस संबंध में विशेष रूप से प्राधिकृत” द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा तथा यह माना जाएगा कि इसे 17 जनवरी 2012 से प्रतिस्थापित किया गया है: 3. विनियमों का संशोधन - विदेशी मुद्रा प्रबंधन (विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न/डेरिवेटिव संविदा) विनियम, 2000 (अधिसूचना संख्या फेमा 25/2000-आरबी दिनांकित 3 मई 2000) में. ए. अनुसूची 1 में
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पैराग्राफ ‘ए’ में, उप-पैराग्राफ 1 (एच) में, ये शब्द “चालू खाता लेन-देन की हेजिंग करने हेतु निवासियों द्वारा बुक की गई ऐसी संविदाएँ, भले उनकी अवधि कुछ भी हो, जो कि बिना दस्तावेजों के पिछले प्रदर्शन के आधार पर बुक की गई न हो या जो विदेशी मुद्रा मूल्य वर्ग में की गई किन्तु भारतीय रुपए में निपटान की गई लेन- देनों का बचाव करने के लिए बुक की गई हो, को निरस्त किया जाएगा तथा वर्तमान दरों पर मुक्त रूप पुन: बुक किया जाएगा। निर्यात लेन–देनों वाली संविदाओं को भी बिना किसी रोक के वर्तमान दरों पर निरस्त किया जाएगा, पुन: बुक तथा रॉल-ओवर किया जाएगा’’ हटा दिये जाएँगे तथा यह माना जाएगा कि इसे 15 दिसंबर 2011 से हटा दिया गया है।
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पैराग्राफ ‘बी’ में, उप-पैराग्राफ 3(4) में, ये शब्द “कारोबार लेन–देन या बाह्य वाणिज्यिक उधार” के बाद, शब्दों “या एफ़सीएनआर (बी) जमा पर देशीय रूप से प्राप्त किए गए विदेशी मुद्रा ऋणों’’ को जोड़ा जाएगा तथा यह माना जाएगा कि इन शब्दों को 12 सितंबर 2012 से जोड़ा गया है।
बी. अनुसूची ॥ में,
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पैराग्राफ 1 में, इन शब्दों “विदेशी संस्थागत निवेशक (एफ़आईआई)” के बाद, शब्द “अहर्ताप्राप्त विदेशी निवेशक (क्यूएफ़आई)” को जोड़ा जाएगा तथा यह माना जाएगा कि यह शब्द 16 जुलाई 2012 से जोड़ा गया है।
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पैराग्राफ 1 ए में, शब्दों “एफ़आईआई” के बाद, “/ क्यू एफ़ आई” शब्द को जोड़ा जाएगा तथा यह माना जाएगा कि इस शब्द को 16 जुलाई 2012 से जोड़ा गया है।
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पैराग्राफ ‘5’ के बाद, निम्नलिखित नया पैराग्राफ शामिल किया जाएगा तथा यह माना जाएगा कि यह 29 दिसंबर 2011 से प्रभावी हुआ है।
‘’6. रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर यथानिर्धारित निबंधनों तथा शर्तों के अधीन एक अनिवासी भारतीय रुपयों के मूल्यवर्ग में बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) के संबंध में मुद्रा जोखिम के एक्सपोज़र से बचाव करने के लिए एक प्राधिकृत डीलर के साथ रुपए के रूप में एक मुद्रा में वायदा संविदा या विदेशी मुद्रा – रुपए ऑप्शन संविदा या विदेशी मुद्रा -भारतीय रुपए स्वैप करार कर सकते हैं’’। रुद्र नारायण कार प्रभारी–मुख् महाप्रबंधक
फुटनोट:- 1. @ यह स्पष्ट किया जाता है कि इन विनियमों को पूर्व व्यापी प्रभाव दिये जाने के कारण किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। 2. प्रमुख विनियमों को जी.एस.आर संख्या 411 (ई) दिनांकित 08 मई 2000 के माध्यम से भाग ॥ खंड 3, उपखंड (i) में सरकारी राजपत्र में प्रकाशित किया गया था तथा बाद में निम्न के माध्यम से संशोधित किया गया था – जी.एस.आर. संख्या 756 (ई) दिनांकित 28.09.2000 जी.एस.आर. संख्या 264 (ई) दिनांकित 09.04.2002 जी.एस.आर. संख्या 579 (ई) दिनांकित 19.08.2002 जी.एस.आर. संख्या 222 (ई) दिनांकित 18.03.2003 जी.एस.आर. संख्या 532 (ई) दिनांकित 09.07.2003 जी.एस.आर. संख्या 880 (ई) दिनांकित 11.11.2003 जी.एस.आर. संख्या 881 (ई) दिनांकित 11.11.2003 जी.एस.आर. संख्या 750 (ई) दिनांकित 28.12.2005 जी.एस.आर. संख्या 222 (ई) दिनांकित 19.04.2006 जी.एस.आर. संख्या 223 (ई) दिनांकित 19.04.2006 जी.एस.आर. संख्या 760 (ई) दिनांकित 07.12.2007 जी.एस.आर. संख्या 577 (ई) दिनांकित 05.08.2008 जी.एस.आर. संख्या 440 (ई) दिनांकित 23.06.2009 जी.एस.आर. संख्या 895 (ई) दिनांकित 14.12.2009 जी.एस.आर. संख्या 635 (ई) दिनांकित 27.07.2010, जी.एस.आर. संख्या 608 (ई) दिनांकित 03.08.2012, तथा जी.एस.आर. संख्या 799 (ई) दिनांकित 30.10.2012
भारत सरकार के सरकारी गज़ट – असाधारण - भाग-।।, खंड 3, उप खंड (i) दिनांकित 23.05.2013 जीएसआर संख्या 330 (ई) में प्रकाशित |
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