विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) विनियमावली, 2022 - आरबीआई - Reserve Bank of India
विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) विनियमावली, 2022
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं. फेमा. 400/2022-आरबी 22 अगस्त, 2022 विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) विनियमावली, 2022 विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 47 की उप-धारा (1) और उप-धारा (2) के खंड (ए) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक एतद्द्वारा निम्नलिखित विनियम बनाता है, यथा :- 1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ.– (1) इन विनियमों को विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) विनियमावली, 2022 कहा जाएगा। (2) यह विनियमावली सरकारी राजपत्र में उसके प्रकाशन की तारीख से लागू होगी। 2. परिभाषाएं.- (1) इस विनियमावली में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,- (ए) "अधिनियम" का अर्थ विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) है; (बी) "ऋण लिखत" का वही अर्थ होगा जो विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) नियमावली, 2022 में दिया गया है; (2) इस विनियमावली में प्रयुक्त किंतु परिभाषित न किये गए शब्दों और अभिव्यक्तियों का अर्थ क्रमशः वही होगा जो उन्हें अधिनियम में अथवा विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) नियमावली, 2022 में दिया गया है। 3. भारतीय संस्था द्वारा इक्विटी पूंजी से भिन्न माध्यमों से की गई वित्तीय प्रतिबद्धता.– (1) भारतीय संस्था निम्नलिखित शर्तों के अधीन और विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) नियमावली, 2022 में निर्धारित वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के भीतर किसी विदेशी संस्था को उधार दे सकती है अथवा विदेशी संस्था द्वारा जारी की गई किसी ऋण लिखत में निवेश कर सकती है अथवा विदेशी संस्था, जिसमें ऐसी भारतीय संस्था की पारदेशीय उप अनुषंगियाँ शामिल हैं, को या उसकी ओर से, गैर निधि आधारित प्रतिबद्धताएँ जारी कर सकती है:- (i) भारतीय संस्था पारदेशीय प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) करने के लिए पात्र हो; (ii) भारतीय संस्था ने विदेशी संस्था में ओडीआई किया हो; (iii) भारतीय संस्था ने ऐसी वित्तीय प्रतिबद्धता के समय उस विदेशी संस्था में नियंत्रणाधिकार प्राप्त कर लिया हो। (2) उप-विनियम (1) में निर्दिष्ट वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा हेतु विनियम 4, 5, 6 और 7 में उल्लिखित वित्तीय प्रतिबद्धताओं को शामिल किया जाएगा। 4. भारतीय संस्था द्वारा ऋण के रूप में वित्तीय प्रतिबद्धता.– भारतीय संस्था विदेशी संस्था द्वारा जारी की गई किन्हीं ऋण लिखतों में निवेश कर सकती है या उसे उधार दे सकती है, बशर्ते, ऐसे ऋण यथोचित रूप से ऋण समझौते द्वारा समर्थित हों, और जिसमें ब्याज दर का निर्धारण स्वतंत्र संव्यवहार के आधार पर किया गया हो। स्पष्टीकरण - इस विनियम के प्रयोजन से, "स्वतंत्र संव्यवहार" अभिव्यक्ति का अभिप्राय दो सम्बद्ध पक्षों के बीच किए जाने वाले ऐसे संव्यवहार से है जो इस प्रकार किया गया हो जैसे कि वे असम्बद्ध हों ताकि हितों का कोई टकराव न हो। 5. गारंटी के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता.– (1) निम्नलिखित गारंटियां, विदेशी संस्था को या उसकी ओर से अथवा उसकी किसी उप अनुषंगी, जिनमें उस विदेशी संस्था के माध्यम से भारतीय संस्था ने नियंत्रण हासिल कर लिया है, की ओर से जारी की जा सकती हैं, यथा:- (i) उस भारतीय संस्था द्वारा जारी कॉरपोरेट या निष्पादन गारंटी; (ii) कॉरपोरेट अथवा निष्पादन गारंटी, जो ऐसी भारतीय संस्था की भारत में स्थित समूह कंपनी, जो कि होल्डिंग कंपनी (जो भारतीय संस्था में कम से कम 51 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती है) अथवा अनुषंगी कंपनी (जिसमें भारतीय संस्था कम से कम 51 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती है) अथवा प्रमोटर समूह की कंपनी जो एक कॉरपोरेट निकाय हो, द्वारा जारी की गई हो; (iii) ऐसी भारतीय संस्था के निवासी व्यष्टि प्रमोटर द्वारा दी गई व्यक्तिगत गारंटी; (iv) बैंक गारंटी, जो भारतीय संस्था या उसकी उपर्युक्त समूह कंपनी द्वारा प्रदत्त किसी प्रति-गारंटी या संपार्श्विक द्वारा समर्थित है, और भारत के किसी बैंक द्वारा जारी की गई है। (2) समूह कंपनी द्वारा दी गई गारंटी की गणना स्वतंत्र रूप से उसकी वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के उपयोग के लिए की जाएगी और किसी निवासी व्यष्टि प्रमोटर के मामले में, इसे भारतीय संस्था की वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के लिए गिना जाएगा: बशर्ते, जहां उप-विनियम (1) के तहत प्रतिबद्धता किसी समूह कंपनी द्वारा की गई हो तो भारतीय संस्था से या संस्था को निधि-आधारित एक्स्पोज़र, ऐसी समूह कंपनी की वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा की गणना के लिए उसकी निवल मालियत से घटाया जाएगा: बशर्ते, यह भी कि जहां उप-विनियम (1) के तहत गारंटी किसी प्रवर्तक द्वारा दी गई हो, जो कॉरपोरेट निकाय या व्यष्टि हो, ऐसे मामलों में भारतीय संस्था उस प्रवर्तक समूह का हिस्सा होगी। स्पष्टीकरण - इस उप-विनियम के प्रयोजन से, "प्रवर्तक समूह" अभिव्यक्ति का अर्थ वही होगा, जो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (पूंजी निर्गम और प्रकटीकरण अपेक्षाएं) विनियमावली, 2018 में दिया गया है। (3) कोई गारंटी असीमित अवधि वाली नहीं होगी। (4) उक्त गारंटी, आह्वान की गई राशि की सीमा तक, गैर-निधि आधारित प्रतिबद्धता का हिस्सा नहीं रहेगी, लेकिन वह ऋण के रूप में मानी जाएगी। (5) जहां गारंटी दो या दो से अधिक भारतीय संस्थाओं द्वारा संयुक्त और पृथक रूप से जारी की गई हो, वहाँ उक्त गारंटी की 100 प्रतिशत राशि की गणना ऐसी प्रत्येक भारतीय संस्था की अलग-अलग सीमाओं के लिए की जाएगी। (6) निष्पादन गारंटी के मामले में गारंटी की 50 प्रतिशत राशि की गणना वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के लिए की जाएगी। (7) आवर्ती गारंटी को उन मामलों में नई वित्तीय प्रतिबद्धता के रूप में नहीं माना जाएगा, जहां ऐसे आवर्तन के बाद की राशि मूल गारंटी की राशि से अधिक नहीं है। 6. गिरवी या ऋणभार के रूप में वित्तीय प्रतिबद्धता.– भारतीय संस्था, जिसने विदेशी संस्था की इक्विटी पूंजी में निवेश के माध्यम से ओडीआई किया है, वह- (ए) उस विदेशी संस्था या भारत से बाहर स्थित उसकी उप अनुषंगी की इक्विटी पूंजी, जिसे उस भारतीय संस्था द्वारा उस विदेशी संस्था में प्रत्यक्ष रूप से और उसकी उप-अनुषंगियों में अप्रत्यक्ष रूप से धारित किया गया है, उसे अपने लिए या किसी विदेशी संस्था के लिए जिसमें उसने ओडीआई किया है अथवा भारत से बाहर उसकी उप-अनुषंगियों के लिए, निधि आधारित और गैर-निधि-आधारित सुविधाएँ जुटाने के उद्देश्य से भारत में स्थित किसी एडी बैंक या किसी सार्वजनिक वित्तीय संस्था अथवा किसी विदेशी ऋणदाता के पक्ष में गिरवी रख सकती है, अथवा स्वयं के लिए निधि आधारित सुविधाएँ प्राप्त करने हेतु भी वह सेबी में पंजीकृत किसी डिबेंचर ट्रस्टी के पक्ष में ऐसा कर सकती है। (बी) बंधक, गिरवी, दृष्टिबंधक या ऐसे ही किन्हीं अन्य तरीकों से निम्नलिखित पर ऋणभार सृजित कर सकती है– (i) किसी विदेशी संस्था हेतु, जिसमें उसने ओडीआई किया है, या भारत के बाहर स्थित उसकी उप अनुषंगी हेतु, निधि आधारित अथवा गैर-निधि आधारित या दोनों प्रकार की सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए भारत में स्थित किसी एडी बैंक अथवा किसी सार्वजनिक वित्तीय संस्था या किसी विदेशी ऋणदाता के पक्ष में जमानत के रूप में भारत में अपनी परिसंपत्तियाँ, जिनमें उसकी समूह कंपनी या सहयोगी कंपनी, प्रमोटर या निदेशक की संपत्ति शामिल है; अथवा (ii) स्वयं के लिए अथवा किसी विदेशी संस्था के लिए जिसमें उसने ओडीआई किया है, अथवा भारत के बाहर उसकी उप अनुषंगी के लिए, निधि आधारित अथवा गैर निधि आधारित या दोनों प्रकार की सुविधाओं का लाभ उठाने हेतु, भारत में स्थित किसी एडी बैंक अथवा भारत में स्थित किसी सार्वजनिक वित्तीय संस्था के पक्ष में अथवा स्वयं के लिए निधि आधारित सुविधाओं का लाभ उठाने हेतु सेबी में पंजीकृत किसी डिबेंचर ट्रस्ट के पक्ष में जमानत के रूप में उस विदेशी संस्था अथवा भारत के बाहर उसकी उप अनुषंगियों की परिसंपत्तियाँ: बशर्ते– (i) गिरवी या ऋणभार का मूल्य अथवा ली गई सुविधा की राशि, जो भी कम हो, को ऐसी गिरवी या ऋणभार सृजित करने के समय लागू वित्तीय प्रतिबद्धता की सीमा के अंतर्गत गिना जाएगा; बशर्ते, ऐसी किसी सुविधा की गणना संबंधित सीमा के लिए पहले न की गई हो; और उन मामलों को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा जहां भारतीय संस्था द्वारा स्वयं के लिए ऐसी सुविधा का उपयोग किया गया है; (ii) पारदेशीय ऋणदाता जिसके पक्ष में ऐसी गिरवी या ऋणभार है, वह किसी ऐसे देश या क्षेत्राधिकार का नहीं होना चाहिए जिसमें विदेशी मुद्रा प्रबंध (पारदेशीय निवेश) नियमावली, 2022 के तहत वित्तीय प्रतिबद्धता करने की अनुमति नहीं है; (iii) इस तरह के गिरवी या ऋणभार का सृजन या प्रवर्तन अधिनियम के प्रावधानों या उसके तहत बनाए गए नियमों या विनियमों या जारी किए गए निदेशों के अनुसार होगा। स्पष्टीकरण– इस विनियम के प्रयोजन से- (i) अभिव्यक्ति "सार्वजनिक वित्तीय संस्था" का अर्थ वही होगा जो कंपनी अधिनियम, 2013 (2013 का 18) की धारा 2 के खंड (72) के तहत दिया गया है; (ii) किसी भारतीय संस्था द्वारा सृजित "ऋणात्मक गिरवी" या "ऋणात्मक प्रभार" या किसी विदेशी संस्था के अधिग्रहण के लिए बोली लगाने या निविदा प्रक्रिया में भाग लेने के लिए इन विनियमों के अनुसार ली गई बिड बॉण्ड गारंटी की गणना विनियम 3 के उप-विनियम (1) में निर्दिष्ट वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा हेतु नहीं की जाएगी। 7. आस्थगित भुगतान के माध्यम से अधिग्रहण या अंतरण.- (1) जहां भारत में निवासी व्यक्ति भारत के बाहर के निवासी किसी व्यक्ति से निर्गम में अभिदान या खरीद के माध्यम से इक्विटी पूंजी अर्जित करता है अथवा जहां भारत के बाहर का निवासी कोई व्यक्ति भारत में निवासी किसी व्यक्ति से खरीद के माध्यम से इक्विटी पूंजी अर्जित करता है, और जहां ऐसी इक्विटी पूंजी को ओडीआई माना जाता है, उन मामलों में अर्जित की जाने वाली इक्विटी पूंजी के लिए प्रतिफल राशि के भुगतान को करार की तारीख से ऐसी निश्चित अवधि के लिए आस्थगित किया जा सकता है, जैसा कि संबंधित करार में प्रावधान किया गया हो और जो निम्नलिखित नियम और शर्तों के अधीन हो, यथा:- (i) विक्रेता द्वारा खरीददार को कुल प्रतिफल की राशि के समतुल्य मूल्य की विदेशी प्रतिभूतियां अग्रिम रूप में अंतरित या निर्गमित, जैसा भी मामला हो, की जाएंगी; (ii) अंतिम रूप से भुगतान किया गया पूरा प्रतिफल यथालागू मूल्य निर्धारण दिशानिर्देशों के अनुरूप होगा: बशर्ते, भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा किसी विदेशी संस्था की इक्विटी पूंजी के अधिग्रहण के मामले में प्रतिफल का आस्थगित हिस्सा गैर निधि आधारित प्रतिबद्धता के रूप में माना जाएगा। (2) खरीददार द्वारा विक्रेता को पारस्परिक सहमति से तय राशि और करार में उल्लिखित नियमों और शर्तों के अधीन क्षतिपूरित किया जा सकता है। बशर्ते, ऐसे समझौते में अधिनियम के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों और विनियमों का अनुपालन किया गया हो। 8. भुगतान का तरीका.- भारत में निवासी व्यक्ति पारदेशीय निवेश करने के लिए निम्न प्रकार से भुगतान कर सकता है - (i) बैंकिंग चैनलों के माध्यम से किए गए विप्रेषण द्वारा; (ii) अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत खोले गए खाते में धारित निधियों से; (iii) प्रतिभूतियों की अदला-बदली द्वारा; (iv) अमेरिकी डिपॉजिटरी रसीदों या ग्लोबल डिपॉजिटरी रसीदों से हुए आगम अथवा ऐसी रसीदों के स्टॉक-स्वैप या अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों और विनियमों के प्रावधानों के अनुसार जुटाए गए बाह्य वाणिज्यिक उधार की राशि का उपयोग करके भारतीय संस्था द्वारा ओडीआई अथवा कर्ज़ के माध्यम से वित्तीय प्रतिबद्धता करने के लिए; 9. भारत में निवासी व्यक्ति के दायित्व.- (1) भारत में निवासी व्यक्ति यदि किसी विदेशी संस्था में इक्विटी पूंजी अर्जित करता है, जिसे ओडीआई माना गया हो, वह निवेश के साक्ष्य के रूप में एडी बैंक को शेयर प्रमाणपत्र अथवा मेजबान देश या मेजबान क्षेत्राधिकार, जैसा भी मामला हो, में लागू क़ानूनों के अनुसार कोई अन्य संबंधित दस्तावेज विप्रेषण की तारीख या जिस तारीख को उस व्यक्ति का बकाया पूंजीकृत किया गया हो अथवा उस तारीख को जब देय राशि के पूंजीकरण की अनुमति दी गई हो, जैसा भी मामला हो, से छह महीने के भीतर प्रस्तुत करेगा। (2) भारत में निवासी व्यक्ति, जावक विप्रेषण भेजने या विदेशी संस्था में इक्विटी पूंजी अर्जित करने, जो भी पहले हो, से पूर्व अपने नामित एडी बैंक के माध्यम से उस विदेशी संस्था के लिए जिसमें वह ओडीआई करना चाहता है, रिज़र्व बैंक से एक विशिष्ट पहचान संख्या या "यूआईएन" प्राप्त करेगा। (3) भारत में निवासी व्यक्ति जो ओडीआई कर रहा है, वह प्राधिकृत एडी बैंक नामित करेगा और उस विशिष्ट यूआईएन से संबंधित सभी लेनदेन उस नामित एडी के माध्यम से ही करेगा: बशर्ते, जब भारत में निवासी एक से अधिक व्यक्ति एक ही विदेशी संस्था में वित्तीय प्रतिबद्धता करते हैं, ऐसे सभी व्यक्ति उस यूआईएन से संबंधित सभी लेनदेन उस यूआईएन के लिए नामित एडी बैंक के माध्यम से ही करेंगे। (4) भारत में निवासी व्यक्ति, जिसने विदेशी संस्था में ओडीआई किया है वह विदेशी संस्था में निवेश के संबंध में उस विदेशी संस्था से प्राप्य सभी राशि, ओडीआई के अंतरण या विनिवेश के कारण प्राप्त होने वाली प्रतिफल राशि अथवा मेजबान देश या मेजबान क्षेत्राधिकार, जैसा भी मामला हो, के कानूनों के अनुसार विदेशी संस्था के परिसमापन के पश्चात आस्तियों का शुद्ध वसूली योग्य मूल्य, उस तारीख से जब ऐसी प्राप्य राशि देय हो या ऐसे अंतरण या विनिवेश की तारीख या सरकारी परिसमापक द्वारा किए गए संपत्ति के वास्तविक वितरण की तारीख, यथालागू, के नब्बे दिनों के भीतर प्राप्त करके भारत को संप्रत्यावर्तित करेगा। (5) भारत में निवासी व्यक्ति जो ओडीआई करने के लिए पात्र है, वह विदेशी संस्था के अधिग्रहण के लिए लगाई जाने वाली बोली या निविदा प्रक्रिया में भाग लेने के लिए बयाना राशि जमा करने हेतु विप्रेषण कर सकता है अथवा एडी बैंक से बिड बॉण्ड गारंटी प्राप्त कर सकता है: बशर्ते, असीमित अवधि वाली बिड बॉण्ड गारंटी के मामले में, संविदा प्राप्त करने की तारीख से तीन महीने के भीतर उसे एक सीमित अवधि गारंटी में परिवर्तित किया जाएगा। 10. पारदेशीय निवेश के लिए रिपोर्टिंग अपेक्षाएँ.- (1) जब तक इन विनियमों में अन्यथा उपबंधित न किया गया हो, भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा सभी प्रकार की रिपोर्टिंग, जैसा कि विनिर्दिष्ट हो, उसके नामित एडी बैंक के माध्यम से इस विनियम में प्रदान किए गए तरीके से और रिज़र्व बैंक द्वारा दिये गए प्रारूप में की जाएगी। (2) भारत में निवासी व्यक्ति, जिसने विदेशी संस्था में ओडीआई किया है या वित्तीय प्रतिबद्धता या विनिवेश कर रहा है, वह निम्नलिखित की रिपोर्टिंग करेगा, यथा:- (ए) वित्तीय प्रतिबद्धता, चाहे उसे वित्तीय प्रतिबद्धता सीमा के लिए गिना जाता हो या नहीं, जावक विप्रेषण या वित्तीय प्रतिबद्धता के समय, जो भी पहले हो; (बी) विनिवेश, विनिवेश आगम प्राप्त होने के तीस दिनों के भीतर; (सी) पुनर्गठन रिपोर्ट, पुनर्गठन की तारीख से तीस दिनों के भीतर । (3) भारत में निवासी व्यक्ति, व्यष्टि से भिन्न, जिसने पारदेशीय पोर्टफोलियो निवेश (ओपीआई) किया हो या बिक्री के माध्यम से ऐसे ओपीआई का अंतरण किया हो, वह ऐसे निवेश या उसके अंतरण की रिपोर्ट उस छमाही, जिसमें इस तरह का निवेश या अंतरण किया गया है, की समाप्ति से साठ दिनों के भीतर, सितंबर और मार्च अंत की स्थिति के अनुसार, प्रस्तुत करेगा: बशर्ते, यदि ओपीआई कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना या कर्मचारी लाभ योजना के तहत शेयरों या हित के अर्जन के माध्यम से किया गया हो, तो रिपोर्टिंग उस कंपनी के भारत में स्थित कार्यालय या पारदेशीय संस्था की शाखा या पारदेशीय कंपनी की भारत में स्थित अनुषंगी कंपनी या भारतीय संस्था जिसमें पारदेशीय संस्था की प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष इक्विटी होल्डिंग है, जहां निवासी व्यष्टि कर्मचारी या निदेशक हो, द्वारा की जाएगी। (4) भारत में निवासी व्यक्ति यदि विदेशी संस्था में ऐसी इक्विटी पूंजी अर्जित करता है, जिसे ओडीआई के रूप में माना जाता है, वह प्रत्येक वर्ष 31 दिसंबर तक प्रत्येक विदेशी संस्था से संबंधित एक वार्षिक निष्पादन रिपोर्ट (एपीआर) प्रस्तुत करेगा और जहां ऐसी विदेशी संस्था का लेखा वर्ष 31 दिसंबर को समाप्त होता है, वहाँ एपीआर को अगले वर्ष के 31 दिसंबर तक प्रस्तुत किया जाएगा: बशर्ते, ऐसी किसी रिपोर्टिंग की आवश्यकता नहीं होगी, यदि - (i) भारत में निवासी व्यक्ति के पास विदेशी संस्था में नियंत्रण अधिकार के बिना इक्विटी पूंजी की 10 प्रतिशत से कम की हिस्सेदारी है और इक्विटी पूंजी के अलावा उसकी अन्य कोई वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं है; अथवा (ii) विदेशी संस्था परिसमापन के अधीन है। स्पष्टीकरण – इस उप-विनियम के प्रयोजन से – (ए) एपीआर विदेशी संस्था के लेखा परीक्षित वित्तीय विवरणों पर आधारित होगी: बशर्ते, जहां भारत में निवासी व्यक्ति का उस विदेशी संस्था में नियंत्रण नहीं है और मेजबान देश या मेजबान क्षेत्राधिकार, जैसा भी मामला हो, के कानून के अनुसार यदि लेखाबहियों की अनिवार्य लेखापरीक्षा का प्रावधान नहीं है, वहाँ उक्त संस्था के अ-लेखापरीक्षित वित्तीय विवरणों के आधार पर तैयार की गई एपीआर जिसे उसी रूप में भारतीय संस्था के सांविधिक लेखापरीक्षक द्वारा प्रमाणित किया गया हो, को प्रस्तुत किया जाए और जहां सांविधिक लेखापरीक्षा लागू नहीं है उन मामलों में उसे सनदी लेखाकार द्वारा प्रमाणित करवा कर प्रस्तुत किया जाए। (बी) यदि भारत में निवासी एक से अधिक व्यक्तियों ने एक ही विदेशी संस्था में ओडीआई किया है, तो विदेशी संस्था में अधिकतम हिस्सेदारी रखने वाले व्यक्ति को एपीआर प्रस्तुत करनी होगी और जहां होल्डिंग समान हो, ऐसे मामलों में उन व्यक्तियों द्वारा संयुक्त रूप से एपीआर प्रस्तुत की जाए। (सी) भारत में निवासी व्यक्ति एपीआर में, रिपोर्टिंग वर्ष के दौरान उप अनुषंगी के अधिग्रहण या स्थापना या समापन या अंतरण अथवा विदेशी संस्था में शेयरधारिता के पैटर्न में हुए किसी बदलाव का ब्योरा रिपोर्ट करेगा। (5) कोई भारतीय संस्था जिसने ओडीआई किया है, वह अपनी विदेशी देनदारियों और आस्तियों पर एक वार्षिक विवरणी तैयार करेगी और उसे रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित की गई अवधि के भीतर सांख्यिकी और सूचना प्रबंध विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करेगी। 11. रिपोर्टिंग में विलंब.- भारत में निवासी व्यक्ति जिसने इस विनियमावली के विनियम 9 के उप-विनियम (1) के तहत विनिर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर निवेश का साक्ष्य प्रस्तुत न किया हो या विनियम 10 के तहत विनिर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर फाइलिंग नहीं की हो, वह ऐसी अवधि, जो सूचित की जा सकती है, के भीतर और रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्देशित दरों पर और निर्दिष्ट तरीके से विलंब शुल्क के साथ ऐसी प्रस्तुति या फाइलिंग, जैसा भी मामला हो, कर सकता है: बशर्ते, ऐसी सुविधा का लाभ ऐसी प्रस्तुति या फाइलिंग, जैसा भी मामला हो, की नियत तारीख से अधिकतम तीन वर्षों की अवधि में उठाया जा सकता है। (2) सरकारी राजपत्र में इस विनियमावली के प्रकाशन की तारीख से पूर्व, अधिनियम अथवा उसके तहत बनायी गयी विनियमावली के अनुसार पारदेशीय निवेश से संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत करने या किसी फाइलिंग के लिए उत्तरदायी भारत में निवासी व्यक्ति जिसने ऐसी प्रस्तुति या फाइलिंग उन विनियमावली में विनिर्दिष्ट अवधि में नहीं की है या नहीं करता है, वह ऐसी अवधि, जो सूचित की जा सकती है, के भीतर और रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्देशित दरों पर और निर्दिष्ट तरीके से विलंब शुल्क के साथ ऐसी प्रस्तुति या फाइलिंग अथवा विलंब शुल्क का भुगतान जब ऐसी प्रस्तुति या फाइलिंग की जा चुकी हो, जैसा भी मामला हो, कर सकता है: बशर्ते, ऐसी सुविधा का लाभ सरकारी राजपत्र में इस विनियमावली के प्रकाशन की तारीख से अधिकतम तीन वर्षों की अवधि में उठाया जा सकता है। 12. अतिरिक्त वित्तीय प्रतिबद्धता अथवा अंतरण पर प्रतिबंध.- भारत में निवासी कोई व्यक्ति जिसने अधिनियम के प्रावधानों या उसके तहत बनाए गए नियमों या विनियमों के अनुसार किसी विदेशी संस्था में वित्तीय प्रतिबद्धता की है, वह तब तक संबंधित विदेशी संस्था में आगे कोई निधि आधारित या गैर निधि आधारित, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से, वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं करेगा या अपने निवेश को अंतरित नहीं करेगा जब तक रिपोर्टिंग में हुए किसी विलंब को नियमित नहीं कर लिया जाता। (अजय कुमार मिश्र) |