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विदेशी मुद्रा प्रबंध (परिसंपत्तियों का प्रेषण) (द्वितीय संशोधन) विनियमावली, 2007

भारतीय रिज़र्व बैंक
विदेशी मुद्रा विभाग
केंद्रीय कार्यालय

मुंबई 400 001.

अधिसूचना सं.फेमा 161 / 2007-आरबी

दिनांक 18 सितंबर, 2007

विदेशी मुद्रा प्रबंध (परिसंपत्तियों का प्रेषण) (द्वितीय संशोधन)
विनियमावली, 2007

विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 47) की धारा 47 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक, इसके द्वारा विदेशी मुद्रा प्रबंध (परिसंपत्तियों का प्रेषण) विनियमावली 2000 ( मई 3, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 13/2000-आरबी) में निम्नलिखित संशोधन करता है, अर्थात्,

1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ :-

(i) ये विनियम विदेशी मुद्रा प्रबंध (परिसंपत्तियों का प्रेषण) (द्वितीय संशोधन) विनियमावली 2007 कहलाएंगे।
(ii) ये मई 31,2007 से लागू समझे जाएंगे।@

2. विनियमावली में संशोधन :
विदेशी मुद्रा प्रबंध (परिसंपत्तियों का प्रेषण) विनियमावली, 2000 (मई 3, 2000 की अधिसूचना सं.फेमा 13/2000-आरबी) में विनियम 4 मे उप विनियम (4) को निम्नलिखित उप-विनियम से प्रतिस्थपित किया जाएगा अर्थात्:-

"(4) भारत में प्राधिकृत व्यापारी उप-विनियम(2) अथवा उप-विनियम (3) ,जैसा मामला हो, के तहत पात्र व्यक्तियों की परिसंपत्तियों का प्रेषण रिज़र्व बैक से अनुमोदन प्राप्त किए बगैर कर सकते हैं तथा निम्नलिखित शर्तों के अधीन कंपनी अधिनियम 1956 के प्रावधानों के तहत परिसमापन के तहत भारतीय कंपनियों की परिसंपत्तियों में से प्रेषण की अनुमति भी दे सकते है:

(i) प्राधिकृत व्यापारी सुनिश्चित करेगा कि प्रेषण भारत में कोर्ट द्वारा जारी आदेश/ स्वैच्छिक समापन के मामले में आधिकारिक परिसमापक अथवा परिसमापक द्वारा जारी आदेश के अनुपालन में है; और

(ii) जब एक आवेदक निम्नलिखित दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं करता है उसे प्रेषण की अनुमति नहीं दी जाएगी :-
(क) प्रेषण के लिए आयकर प्राधिकारी से प्राप्त आपत्ति नहीं अथवा कर बेबाकी प्रमाण पत्र।
(ख) लेखा परीक्षक का यह पुष्टि करते हुए प्रमाणपत्र कि भारत में सभी देयताओं का पूरी तरह भुगतान किया गया है अथवा उनके लिए प्रावधान किया गया है।
(ग) लेखा परीक्षक से प्राप्त इस आशय का प्रमाणपत्र कि कंपनी अधिनियम,1956 के प्रावधानों के अनुसार समापन किया गया है।
(घ) कोर्ट से इतर द्वारा समापन के मामले में, लेखा परीक्षक से प्राप्त इस आशय का प्रमाणपत्र कि आवेदक अथवा परिसमापनाधीन कंपनी के विरुद्ध भारत में किसी कोर्ट में कोई कानूनी कार्रवाई लंबित नहीं है तथा प्रेषण की अनुमति देने में कोई कानूनी बाधा नहीं है।"

(सलीम गंगाधरन)
मुख्य महाप्रबंधक


पाद टिप्पणी : (i) @ यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसे विनियमों के पूर्व प्रभावी होने से किसी भी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
(ii)मूल विनियम सरकारी राजपत्र में दिनांक मई 5, 2000 के जी.एस.आर.सं.396(E) में भाग II,खंड 3, उप खंड (i) में प्रकाशित किए गए हैं और तत्पश्चात् निम्नलिखित द्वारा संशोधित किए गए हैं :-
(क )दिनांक अगस्त 19, 2002 का जीएसआर सं.576(E);
(ख)दिनांक अगस्त 4, 2003 का जीएसआर सं.630(E);
(ग )दिनांक सितंबर 1, 2003 का जीएसआर सं.699(E);
(घ)दिनांक अगस्त 4, 2004 का जीएसआर सं. 493(E);और
(ड़)दिनांक मई 30, 2007 का जीएसआर सं.400(E)

जी.एस.आर.सं. 90(E) / फरवरी 15, 2008

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