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विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत के बाहर के निवासी व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति का अंतरण अथवा निर्गम) (संशोधन) विनियमावली, 2009

भारतीय रिज़र्व बैंक
(विदेशी मुद्रा विभाग)
केंद्रीय कार्यालय
मुंबई

अधिसूचना सं.फेमा 202/2009-आरबी

दिनांक: नवंबर 10, 2009

विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत के बाहर के निवासी व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति
का अंतरण अथवा निर्गम) (संशोधन) विनियमावली, 2009

विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम,1999 (1999 का 42) की धारा 6 की उप-धारा (3) के परंतुक (ख) और धारा 47 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक एतद्वारा विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत के बाहर के निवासी व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति का अंतरण अथवा निर्गम) विनियमावली, 2000 (3 मई, 2000 की अधिसूचना सं.फेमा.20/2000-आरबी) में निम्नलिखित संशोधन करता है, अर्थात्,

1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ

(i) ये विनियम, विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत के बाहर के निवासी व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति का अंतरण अथवा निर्गम) (संशोधन) विनियमावली, 2009 कहलाएंगे ।

(ii) जब तक कि इन विनियमों में अन्यथा अपेक्षित न हो, इन विनियमों के प्रावधान नीचे विनिर्दिष्ट तारीखों से लागू होंगे ।

2.संशोधन  

विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत के बाहर के निवासी व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति का अंतरण अथवा निर्गम)विनियमावली, 2000 (3 मई, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा.20/आरबी-2000) (इसके बाद से ‘मूल विनियमावली’ के नाम से निर्दिष्ट) में एक नया विनियम 12 अंत: सम्मिलित किया गया है और यह समझा जाएगा कि उसे 11 जुलाई 2008 से अंत: सम्मिलित किया गया हो, अर्थात्  :-

12.भारत में निगमित कंपनी के शेयर गिरवी रखना

‘‘(i) भारत में पजीकृत कंपनी (उधारकर्ता कंपनी) जिसने बाह्य वाणिज्यिक उधार लिया है , के प्रवर्तक होने के कारण कोई व्यक्ति भारत में पंजीकृत उधारकर्ता कंपनी द्वारा लिये गये बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) सुरक्षित करने के प्रयोजन से उक्त कंपनी अथवा उसकी सहयोगी निवासी कंपनियों के शेयर गिरवी रख सकता है,
        
बशर्ते कोई व्यक्ति इस प्रकार का कोई शेयर गिरवी नहीं रखेगा जब तक कि वह उस बैक से जो कि उधारकर्ता कंपनी का प्राधिकृत व्यापारी है, से ’आपत्ति नहीं प्रमाणपत्र’ प्राप्त नहीं कर लेता है ।

(ii) कोई बैंक, जो प्राधिकृत व्यापारी है, निम्नलिखित बातों से संतुष्ट होने पर परंतुक (i) के तहत शेयर गिरवी रखने के लिए ’आपत्ति नहीं प्रमाणपत्र’ प्रदान कर सकता है :

(क) अंतर्निहित बाह्य वाणिज्य उधार के लिए मौजूदा बाह्य वाणिज्य उधार दिशा-निर्देशों का अनुपालन किया गया है।

(ख) ऋण करार पर उधारदाता और उधारकर्ता दोनों ने हस्ताक्षर किये हैं,

(ग) ऋण करार में जमानत खंड रखा गया है जिससे उधारकर्ता को वित्तीय प्रतिभूतियों पर प्रभार निर्मित करना अपेक्षित है, और

(घ) उधारकर्ता नें रिज़र्व बैंक से ऋण पंजीकरण संख्या (एलआरएन) प्राप्त की है ।

बशर्ते कि बैंक, जो प्राधिकृत व्यापारी हो, द्वारा निम्नलिखित शर्तों पर ’आपत्ति नहीं प्रमाणपत्र’ प्रदान किया जाए, अर्थात्-

(क) इस प्रकार की गिरवी की अवधि तथा अंतर्निहित बाह्य वाणिज्य उधार की परिपक्वता अवधि एक ही हो ;

(ख) गिरवी लागू करने की स्थिति में, अंतरण वर्तमान विदेशी निवेश व्यापार नीति और रिज़र्व बैंक द्वारा जारी निदेशों के अनुसार होना  चाहिए;

(ग) सांविधिक लेखा-परीक्षक द्वारा यह प्रमाणित किया गया हो कि उधारकर्ता कंपनी बाह्य वाणिज्य उधार की आगम राशि का उपयोग अनुमत प्रयाजन / प्रयोजनों के लिए ही करेगी / किया है ।’’

3. सारणी 5 में संशोधन - मूल विनियमावली की अनुसूची 5 के पैराग्राफ 1 में, मौजूदा परंतुक (i) और (ii) हटा दिये जाएंगे और परंतुक (iii) और (iv) को पुन: क्रमश: (i) और (ii) नंबर दिया जाएगा और यह समझा जाएगा कि ये नंबर 17 अक्तूबर 2008 से दिये गये हैं ।

(सलीम गंगाधरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


पाद टिप्पणी :

(i) मूल विनियमावली, सरकारी राजपत्र के भाग ।। ं, खण्ड 3, उप खण्ड (i) में 8 मई, 2000 की सं.सा.का.नि.406 (अ)में प्रकाशित हुई है और तत्पश्चात् निम्नलिखित द्वारा संशोधित की गई है :

02 मार्च 2001 की

सं.सा.का.नि.158 (अ)

13 मार्च 2001 की

सं.सा.का.नि. 175 (अ)

14 मार्च 2001 की

सं.सा.का.नि. 182 (अ)

02 जनवरी 2002 की

सं.सा.का.नि. 4 (अ)

19 अगस्त 2002 की

सं.सा.का.नि. 574 (अ)

18 मार्च 2003 की

सं.सा.का.नि. 223 (अ)

18 मार्च 2003 की

सं.सा.का.नि. 225 (अ)

22 जुलाई 2003 की

सं.सा.का.नि. 558 (अ)

23 अक्तूबर 2003की

सं.सा.का.नि. 835 (अ)

22 नवंबर 2003 की

सं.सा.का.नि. 899 (अ)

07 जनवरी 2004 की

सं.सा.का.नि.12 (अ)

23 अप्रैल 2004 की

सं.सा.का.नि. 278 (अ)

16 जुलाई 2004 की

सं.सा.का.नि. 454 (अ)

21 सितंबर 2004 की

सं.सा.का.नि. 625 (अ)

08 दिसंबर 2004 की

सं.सा.का.नि. 799 (अ)

01 अप्रैल 2005 की

सं.सा.का.नि. 201 (अ)

01 अप्रैल 2005 की

सं.सा.का.नि. 202 (अ)

25 जुलाई 2005 की

सं.सा.का.नि.504 (अ)

25 जुलाई 2005 की

सं.सा.का.नि.505 (अ)

29 जुलाई 2005 की

सं.सा.का.नि.513(अ)

22 दिसंबर 2005 की

सं.सा.का.नि. 738 (अ)

19 जनवरी 2006 की

सं.सा.का.नि. 29(अ)

11 जुलाई 2006 की

सं.सा.का.नि. 413 (अ)

14 नवंबर 2007 की

सं.सा.का.नि. 712 (अ)

14 नवंबर 2007 की

सं.सा.का.नि. 713 (अ)

29 नवंबर 2007 की

सं.सा.का.नि. 737 (अ)

05 अगस्त 2008 की

सं.सा.का.नि. 575 (अ)

30 दिसंबर 2008 की

सं.सा.का.नि. 896 (अ)

(ii) यह स्पष्ट किया जाता है कि किसी भी व्यक्ति पर इन विनियमों के पूर्वव्यापी प्रभाव से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

जी. एस. आर. सं. 851 (अ) / दिसंबर 1, 2009

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