ऋण धोखाधड़ी (Loan Frauds) से निपटने के लिए फ्रेमवर्क
भारिबैं/2014-15/590 07 मई 2015 सभी वाणिज्यिक बैंकों तथा चुनिंदा अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं महोदय/महोदया ऋण धोखाधड़ी (Loan Frauds) से निपटने के लिए फ्रेमवर्क वित्तीय क्षेत्र में ऋण से जुड़ी धोखाधडि़यों में बढ़ोतरी चिंता का विषय है। बैंकों द्वारा ऐसी धोखाधडि़यों का पता लगाने एवं उनकी रिपोर्टिंग करने में होनेवाली देरी भी उतनी ही चिंताजनक है। भारतीय रिज़र्व बैंक के एक आंतरिक कार्यदल ने धोखाधडि़यों को रोकने, उनका जल्दी पता लगाने एवं रिपोर्ट करने से जुड़े मुद्दों का अध्ययन किया और इस दौरान उन्होंने अलग-अलग बैंकों एवं अन्य हिताधिकारियों (Stakeholders) से व्यापक विचार विमर्श भी किया। इस आंतरिक कार्यदल की सिफारिशों के आधार पर बैंकों में धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन (Fraud Risk Management) के लिए एक विस्तृत फ्रेमवर्क इस परिपत्र के अनुबंध में दिया गया है। इन सिफारिशों को ‘धोखाधडि़यां-वर्गीकरण एवं रिपोर्टिंग’ पर दिनांक 01 जुलाई 2014 के मास्टर परिपत्र डीबीएस सीओ सीएफएमसी बीसी सं.01/23.04.001/2014-15 में दिए गए हमारे अनुदेशों के साथ पढ़ा जाए। अनुबंध में दिए गए दिशानिर्देश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। भवदीय (मनोज शर्मा) ऋण धोखाधड़ी (Loan Frauds) से निपटने के लिए फ्रेमवर्क 1.0 फ्रेमवर्क का उद्देश्य आम तौर पर धोखाधड़ी, विशेष रूप से ऋण संविभाग (Loan Portfolio) में धोखाधडि़यों की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर इस फ्रेमवर्क का मुख्य उद्देश्य है ऐसे मामलों की रोकथाम, जल्दी पहचान, रिज़र्व बैंक (प्रणाली स्तर पर समेकन, निगरानी एवं प्रसारण के लिए) एवं जांच एजेंसियों (धोखाधड़ी करनेवाले उधारकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई आरंभ करने के लिए) को तत्काल रिपोर्टिंग तथा स्टाफ की जवाबदेही तय करने के लिए समय पर कार्रवाई करने (लापरवाही अथवा मिलीभगत, यदि कोई हो, को तय करने के लिए) की ओर बैकों का ध्यान आकर्षित करना है। साथ ही उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि इससे बैंक के सामान्य कारोबार एवं उसकी जोखिम वहन करने की क्षमता पर कोई विपरीत असर न होने पाए और उस पर कोई नई एवं भारी जिम्मेदारी न आन पड़े। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए इस फ्रेमवर्क में बैंकों द्वारा की जानेवाली कार्रवाई के लिए समय-सीमा भी तय की गई है। ऋण की पूरी समयावधि के दौरान समयबद्ध/चरणबद्ध कार्रवाई करने से किसी भी धोखाधड़ी की पहचान करने में बैंक को लगनेवाले समय को कम किया जा सकेगा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों (Law Enforcement Agencies) द्वारा प्रभावी कार्रवाई करने में भी मदद मिलेगी। धोखाधड़ी के जारी रहने से होनेवाली हानि की मात्रा को कम करने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि उसकी जल्द से जल्द पहचान कर सुधार के लिए आवश्यक कार्रवाई की जाए। कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा समय पर एवं समन्वित कार्रवाई की जाए इसे ध्यान में रखते हुए सरकार इस मामले पर अलग से विचार कर रही है। 2.0 पूर्व चेतावनी संकेत (EWS) और रेड फ्लैग्ड खाते (RFA) 2.1 धोखाधड़ी जोखिम नियंत्रण के एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में इस फ्रेमवर्क में RFA की संकल्पना को जन्म दिया गया है। एक RFA वह है जिसमें एक या अधिक EWS की मौजूदगी से धोखाधड़ीपूर्ण गतिविधि का अंदेशा होने लगे। ऐसे संकेत बैंक को धोखादायक साबित होनेवाली किसी भी कमजोरी अथवा गलत गतिविधि के प्रति तत्काल सचेत कर देंगे। बैंकों को ऐसे किसी भी EWS को अनदेखा नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें चेतावनी के रूप में लेते हुए ऐसे RFA की विस्तृत जांच पड़ताल आरंभ कर देनी चाहिए। 2.2 बैंकों के मार्गदर्शन हेतु कुछ EWS की विस्तृत सूची इस परिपत्र के परिशिष्ट I में दी गई है। बैंक इस सूची में से अपने लिए उपयुक्त संकेतों को अपनाएं अथवा अपने अनुकूल बनाएं और साथ ही अपने अनुभव, ग्राहक प्रोफाइल एवं बिजनेस माडल के आधार पर अन्य अलर्ट/संकेतों को भी शामिल करें। बैंक द्वारा इस तरह से इकट्ठा किए गए किसी खाते को RFA के रूप में वर्गीकृत करने का आधार होंगे। 2.3 एक बैंक के स्तर पर RFA और EWS के लिए थ्रेशहोल्ड है 500 मिलियन रूपए या उससे अधिक का एक्सपोजर फिर चाहे उधार देने की व्यवस्था (सोलो बैंकिंग, मल्टीपल बैंकिंग अथवा कंसोर्शियम) कोई भी हो। RFA अथवा ‘धोखाधड़ी’ के रूप में पहचाने गए 500 मिलियन रूपए से अधिक के सभी खातों को CRILC डाटा प्लेटफार्म पर रिपोर्ट किया जाना चाहिए, साथ ही वह तारीख भी दर्शाई जानी चाहिए जिस दिन उस खाते की पहचान इस रूप में की गई थी। CRILC डाटा प्लेटफार्म का विस्तार किया जा रहा ताकि 01 जून 2015 तक इस सुविधा को प्रदान करने में उसे सक्षम बनाया जा सके। आज की तारीख में यह रिज़र्व बैंक द्वारा अपेक्षित रिपोर्टिंग के अलावा अतिरिक्त अपेक्षा है। 2.4 500 मिलियन रूपए के थ्रेशहोल्ड से कम की ऋण धोखाधड़ी की निगरानी का तरीका कैसा हो यह प्रत्येक बैंक तय कर सकता है। तथापि, बैंक मौजूदा कट-ऑफ के अनुसार पहचाने गए खातों की रिपोर्टिंग केंद्रीय धोखाधड़ी निगरानी कक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक को करना जारी रखेंगे। 2.5 ऋण खातों में EWS का पता लगाने के कार्य को एक अतिरिक्त कार्य के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि इसे बैंक की ऋण निगरानी प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाना चाहिए ताकि यह एक सतत प्रक्रिया बन सके तथा ऋण जोखिम एवं धोखाधड़ी जोखिम के परस्पर प्रभाव को देखते हुए यह उधार खातों में किसी संभावित क्रेडिट हानि के लिए चेतावनी का काम करे। बड़े खातों के संबंध में यह आवश्यक है कि बैंक वार्षिक रिपोर्ट का समग्र रूप से विस्तृत अध्ययन करें न कि केवल वित्तीय विवरणों का। वे विशेष रूप से बोर्ड रिपोर्ट और मैनेजमेंट चर्चा तथा एनालिसिस स्टेटमेंट के साथ ही ‘नोट्स टू अकाउंट’ में पार्टियों के आपसी लेन-देन का अध्ययन करें। खातों के ऑपरेशन का कार्य देखनेवाले अधिकारी, चाहे उन्हें किसी भी पदनाम से जाना जाता हो, को इसकी जानकारी दी जाए कि जैसे ही उन्हें पूर्व चेतावनी संकेतों का अंदेशा हो वे तत्काल उसकी जानकारी धोखाधड़ी निगरानी समूह (FMG) अथवा बैंक द्वारा इस प्रयोजन के लिए बनाए गए किसी अन्य समूह को दें। इस पूरी प्रक्रिया को सार्थक बनाने के लिए रिपोर्टिंग न किए जाने अथवा रिपोर्टिंग में देरी की स्थिति में ऐसे अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। 2.6 FMG हर माह पूर्व चेतावनी संकेतों वाले 500 मिलियन रूपए या उससे अधिक के उधार खातों का ब्योरा उन्हें रेड फ्लैग्ड खाते (RFA) माने जाने अथवा न माने जाने के निर्णय सहित सीएमडी/सीईओ को प्रस्तुत करे। 2.7 RFA पर एक रिपोर्ट धोखाधड़ी की मॉनिटरिंग एवं फॉलोअप के लिए गठित बोर्ड की विशेष समिति (SCBF) को प्रस्तुत की जाए। इस रिपोर्ट में अन्य बातों के साथ-साथ की गई सुधारात्मक कार्रवाई का संक्षिप्त ब्योरा दिया जाए और साथ ही उनकी मौजूदा स्थिति पर भी प्रकाश डाला जाए। 3.0 जल्द पता लगाना और रिपोर्टिंग 3.1 इस समय धोखाधड़ी की पहचान में बहुत अधिक समय लग जाता है। जब किसी खाते में वसूली की कोई संभावना नहीं रह जाती तब जाकर बैंक उसे धोखाधड़ी वाले खाते के रूप में रिपोर्ट करते हैं। इसके अलावा धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग में देरी से रिज़र्व बैंक द्वारा अन्य बैंकों को सतर्कता सूचनाओं के माध्यम से धोखाधड़ी के तौर-तरीकों के बारे में अलर्ट करने भी देरी होती है जिसका परिणाम यह होता है कि दूसरी जगहों पर उसी तरह की धोखाधड़ी की घटनाएं घटित हो जाती हैं। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि इसकी वजह से कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कपटी उधारकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में भी देरी होती है जिसके फलस्वरूप वसूली का पहलू सर्वाधिक प्रभावित होता है और उस धोखाधड़ी से होनेवाली हानि बढ़ जाती है। 3.2 बैंकों के लिए किसी भी उधार खाते में धोखाधड़ी को रोकने का सबसे प्रभावी जरिया होगा उनके द्वारा उधार खाते की पूरी अवधि के दौरान एक मजबूत मूल्यांकन एवं प्रभावी ऋण निगरानी प्रणाली को बनाए रखना। यदि मूल्यांकन के दौरान कोई कमजोरी रह जाए तो ऋण वितरित किए जाने के बाद प्रभावी निगरानी प्रणाली के जरिए उसकी भरपाई की जा सकती है। निगरानी प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए बैंकों के मिले-जुले अनुभव के विश्लेषण के आधार पर उधार की पूरी अवधि के दौरान अलग-अलग अवस्था में निम्नलिखित चेक/जांच की जानी चाहिए: 3.2.1 मंजूरी-पूर्व: क्रेडिट प्रोसेस के दौरान मंजूरी-पूर्व की जानेवाली जांच में बैंक के जोखिम प्रबंधन समूह (RMG) अथवा किसी अन्य उचित ग्रुप को शामिल किया जाना चाहिए जो स्वतंत्र रूप से पब्लिक डोमेन से संभावित उधारकर्ता का ट्रैक रिकार्ड, कानूनी विवादों में शामिल होने, बिजनेस पर पड़े छापे, सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई प्रतिकूल टिप्पणियों, प्रस्तुत की गई जानकारी/डाटा की ROC जैसे अन्य स्रोतों से अधिप्रमाणन (Validation), रिज़र्व बैंक/अन्य सरकारी एजेंसियों की चूककर्ता सूची से सूचना प्राप्त करने इत्यादि का कार्य करेंगे जिसका मंजूरी देनेवाले प्राधिकारी इनपुट के रूप में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। बैंक मंजूरी-पूर्व की गई इन जांचों को मंजूरी दस्तावेज के रूप में रिकार्ड में रखें। 3.2.2 संवितरण (Disbursement): जोखिम प्रबंधन समूह द्वारा संवितरण के समय की जानेवाली जांच में मंजूरी के नियम एवं शर्तों के अनुपालन, इन नियमों एवं शर्तों में दी गई ढील के औचित्य, किस स्तर पर यह ढील दी गई इत्यादि पर ध्यान दिया जाना चाहिए। दी गई ढील बैंक के बोर्ड द्वारा इस बारे में तय किए गए फ्रेमवर्क के पूर्णत: अनुरूप होनी चाहिए। एक अच्छी परंपरा के रूप में मंजूरीकर्ता प्रधिकारी को चाहिए कि वह कुछ ऐसे नियम एवं शर्तें तय करे जिन्हें ‘महत्वपूर्ण’ (Core) माना जाए और उनमें कोई ढील न दी जाए। ऐसी ‘महत्वपूर्ण’ अपेक्षाओं का पालन न किए जाने पर जोखिम प्रबंधन समूह को चाहिए कि वह तत्काल उसे मंजूरीकर्ता प्राधिकारी के ध्यान में लाए। 3.2.3 वार्षिक समीक्षा: हालांकि पूर्व चेतावनी संकेतों की ट्रैकिंग द्वारा किसी खाते पर सतत निगरानी रखना महत्वपूर्ण है, लेकिन बैंकों को धोखाधड़ी के मद्देनजर खातों की वार्षिक समीक्षा के समय सतर्क रहना चाहिए। समीक्षा के समय अन्य बातों के अलावा खाते में से निधि के विपथन (Diversion), स्टॉक विवरण के अनुसार स्टॉक की उपलब्धता, ग्रुप खातों में दबाव (Stress) इत्यादि पर भी टिप्पणी की जानी चाहिए। इसके अलावा RMG में यह क्षमता होनी चाहिए कि वह बैंक के प्रमुख ग्राहकों के बारे में बाजार से जानकारी एकत्रित करे और ऋण अधिकारी को उससे अवगत कराए। इसके लिए उसे गोपनीय सूत्रों से जानकारी इकट्ठा करना, शेयर बाजार की हलचल पर नजर रखना, प्रेस क्लिपिंग सेवा का सहारा लेना, डाटाबेस की सतत आधार पर निगरानी करना होगा और केवल उधार लेनेवाली इकाई पर ही नहीं बल्कि उसके पूरे समूह के संबंध में यह कार्रवाई करनी होगी। 3.3 स्टाफ को अधिकार देना (Empowerment): कर्मचारियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि उन्हें यदि किसी खाते में कोई गतिविधि धोखाधड़ी वाली लग रही है तो वे ऐसा लगने के कारणों सहित उसके बारे में बैंक की मुखबिर नीति (Whistle Blower Policy) के तहत उचित प्राधिकारी को रिपोर्ट करें जो बैंक के FMG के माध्यम से उस खाते की छान-बीन करा सकता है। FMG जरूरी स्पष्टीकरण के लिए उस कर्मचारी से बातचीत कर सकता है। ऐसे कर्मचारी को बैंक की मुखबिर नीति के तहत संरक्षण मिलना चाहिए ताकि बेवजह फंसाए जाने (Victimisation) का डर उसे इस तरह के कदम उठाने से रोक न पाए। 3.4 लेखा परीक्षकों (Auditors) की भूमिका: लेखा परीक्षा के दौरान लेखा परीक्षकों के सामने ऐसे मामले आ सकते हैं जहां उन्हें लगे कि किसी खाते में लेन-देन या उससे जुड़े दस्तावेज धोखाधड़ी का संकेत कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें इसकी जानकारी तत्काल बैंक के शीर्ष प्रबंधन को देनी चाहिए और यदि जरूरी हो तो उपयुक्त कार्रवाई हेतु इसे बोर्ड की लेखा परीक्षा समिति (ACB) के ध्यान में भी लाया जाना चाहिए। 3.5 तत्पर रिपोर्टिंग के लिए प्रोत्साहन: बैंकों को ‘धोखाधड़ी’ के रूप में पहचाने गए खातों के लिए तत्काल पूर्ण प्रावधान (Provision) करना होगा, फिर चाहे उस उधार खाते के लिए दी गई जमानत का मूल्य कितना भी क्यों ना हो। लेकिन यदि बैंक एक ही बार में पूरा प्रावधान करने की स्थिति में न हो तो अब वह चार तिमाहियों के दौरान ऐसा प्रावधान कर सकता है बशर्ते उसकी रिपोर्टिंग में देरी न होने पाए (देखें दिनांक 01 अप्रैल 2015 का परिपत्र डीबीआर सं.बीपी.बीसी.83/21.04.048/2014-15)। देरी की स्थिति में मल्टीपल बैंकिंग अरेंजमेंट (MBA) के तहत अथवा सहायता संघ (Consortium) में शामिल सदस्य बैंकों को उक्त परिपत्र के अनुसार एक ही बार में पूरा प्रावधान करना होगा। इस परिपत्र के अनुसार देरी का मतलब होगा, (i) अधिकतम छह माह की समय-सीमा वाले RFA के माध्यम से धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत किए जाने अथवा (ii) बैंक द्वारा अब तक की प्रथा के अनुसार धोखाधड़ी की पहचान/घोषणा करने के एक सप्ताह के अंदर ऐसी धोखाधड़ी की सूचना केंद्रीय धोखाधड़ी निगरानी कक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक को नहीं दी गई अथवा उसे CRILC प्लेटफार्म, भारतीय रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट नहीं किया गया (देखें ‘धोखाधड़ी-वर्गीकरण एवं रिपोर्टिंग’ पर दिनांक 01 जुलाई 2014 का मास्टर परिपत्र डीबीएस सीओ. सीएफएमसी. बीसी.सं.1/23.04.001/2014-15)। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है RFA एवं धोखाधड़ी की श्रेणियों को स्वीकृत करने के लिए CRILC प्लेटफार्म को जल्द ही सक्षम बनाया जा रहा है। 4.0 बैंक अकेले उधार देनेवाले (Sole Lender) के रूप में 4.1 ऐसे मामलों में, जहां बैंक एकमात्र उधार देनेवाला हो, वहां FMG यह तय करेगा कि जिस खाते में पूर्व चेतावनी संकेत देखे गए हैं उन्हें RFA के रूप में वर्गीकृत किया जाए अथवा नहीं। इस पूरी प्रक्रिया को जल्द से जल्द लेकिन पूर्व चेतावनी संकेत देखे जाने के एक माह के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। यदि वह खाता RFA मान लिया जाता है तो धोखाधड़ी प्रबंधन समूह यह तय करेगा कि अगली जांच क्या और किस स्तर की होगी अथवा बैंक के हितों की रक्षा करने के लिए तय समय-सीमा, जो छह माह से अधिक नहीं होनी चाहिए, के अंदर कौन सी सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। 4.2 बैंक, RFA के बारे में किसी भी अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले फोरेंसिक विशेषज्ञ (Forensic Experts) अथवा जांच के लिए बनाई गई आंतरिक टीम सहित बाहरी लेखा परीक्षकों की सहायता ले सकते हैं। इस समय-सीमा, जो छह माह से अधिक नहीं हो सकती, की समाप्ति पर बैंक या तो उस खाते को RFA के स्टेटस से बाहर कर देंगे या फिर उसे धोखाधड़ी वाले खाते की श्रेणी में डाल देंगे। 4.3 FMG की टिप्पणियों/निर्णयों सहित RFA पर एक रिपोर्ट SCBF को प्रस्तुत की जाए। इस रिपोर्ट में खाते में पाए गए पूर्व चेतावनी संकेत/अनियमितताओं को शामिल किया जाए तथा FMG द्वारा दिए गए जांच के आदेश/प्रस्तावित सुधारात्मक कार्रवाई के संक्षिप्त ब्योरे के साथ ही उनकी मौजूदा स्थिति पर भी प्रकाश डाला जाए। 5.0 सहायता संघ (Consortium) अथवा बहु बैंकिंग व्यवस्था (MBA) के तहत उधार देना 5.1 ‘धोखाधड़ी-वर्गीकरण एवं रिपोर्टिंग’ पर दिनांक 01 जुलाई 2014 के रिज़र्व बैंक के मास्टर परिपत्र डीबीएस सीओ.सीएफएमसी. बीसी.सं.1/23.04.001/2014-15 (पैरा 3.2.4) के अनुसार बहु बैंकिंग व्यवस्था के तहत एक उधारकर्ता को ऋण देनेवाले सभी बैंकों को चाहिए कि कानूनी/आपराधिक कार्रवाई के समय वे सभी आपसी सहमति से तय की गई रणनीति के अनुसार मिलकर कदम उठाएं। धोखाधड़ी की पहचान या घोषणा करनेवाले बैंक को चाहिए कि वह ‘धोखाधड़ी-वर्गीकरण एवं रिपोर्टिंग’ पर ऊपर उल्लिखित मास्टर परिपत्र में दी गई समय-सीमा के अंदर उस धोखाधड़ी की सूचना केंद्रीय धोखाधड़ी निगरानी कक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक को दे। 5.2 सहायता संघ व्यवस्था में शामिल प्रत्येक बैंक को चाहिए कि वह किसी भी तरह के क्रेडिट एक्सपोजर से पूर्व उसकी विधिवत जांच करे और खातों में फंड के उपयोग के मामले में सहायता संघ के लीडर पर पूरी तरह से निर्भर रहने के बजाए स्वतंत्र रूप से उस पर निगरानी रखे। तथापि, एस्क्रो खातों की निगरानी के मामले में पूरा ब्योरा सहायता संघ द्वारा तैयार किया जाना चाहिए एवं उसे विधिवत दर्ज किया जाना चाहिए ताकि आगे चलकर जवाबदेही तय करने में आसानी हो। इसके अलावा, अब तक की परंपरा के अनुसार वार्षिक समीक्षा अथवा पूर्व चेतावनी संकेतों को ट्रैक करते समय धोखाधड़ी के नजरिए से यदि कोई प्रमुख चिंताजनक बात नजर आए तो उसे तत्काल दूसरे सहायता संघ/बहु बैंकिंग व्यवस्था के तहत उधार देनेवालों के साथ शेयर किया जाना चाहिए। 5.3 किसी मानक अथवा एनपीए खाते को RFA अथवा धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने का आरंभिक निर्णय प्रत्येक बैंक के स्तर पर लिया जाएगा और उस बैंक की यह जिम्मेदारी होगी कि वह ऐसे खाते के RFA अथवा धोखाधड़ी स्टेटस के बारे में CRILC प्लैटफार्म पर रिपोर्ट करे ताकि अन्य बैंकों को अलर्ट किया जा सके। उसके बाद 15 दिन के भीतर जिस बैंक ने उस खाते को रेड फ्लैग किया था अथवा धोखाधड़ी का पता लगाया था वह उस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए सहायता संघ के लीडर अथवा बहु बैंकिंग व्यवस्था के तहत सबसे अधिक उधार देनेवाले बैंक से JLF की बैठक बुलाने के लिए कहेगा। ऐसा अनुरोध मिलने के 15 दिनों के भीतर JLF की बैठक अवश्य आयोजित की जानी चाहिए। यदि व्यापक सहमति बनती हो तो उस खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए अन्यथा कुल उधारी में कम से कम 60 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले बैंकों के बहुमत की सहमति के नियम के आधार पर उस खाते को सभी बैंकों द्वारा रेड फ्लैग कर दिया जाना चाहिए और सहायता संघ के लीडर अथवा बहु बैंकिंग व्यवस्था के तहत सबसे अधिक उधार देनेवाले बैंक द्वारा उसकी फोरेंसिक लेखा परीक्षा अधिकृत अथवा आरंभ करवानी चाहिए। सहायता संघ अथवा बहु बैंकिंग व्यवस्था में शामिल सभी बैंक इस संबंध में होनेवाले खर्च को आपस में बांट लेंगे और ऐसी जांच के लिए जरूरी सभी सहायता प्रदान करेंगे। 5.4 JLF की जिस बैठक में लेखा परीक्षा करने का निर्णय लिया जाएगा उसकी तारीख से अधिकतम 3 माह के भीतर फोरेंसिक लेखा परीक्षा पूरा कर ली जानी चाहिए। फोरेंसिक लेखा परीक्षा पूरा होने के 15 दिन के अंदर JLF दोबारा बैठक कर खाते के स्टेटस के बारे में आपसी सहमति अथवा ऊपर बताए गए अनुसार बहुमत के नियम के आधार पर निर्णय लेगा। यदि उस खाते को धोखाधड़ी वाले खाते के रूप में वर्गीकृत करने का निर्णय लिया जाता है तो सभी बैंकों में उसका RFA का स्टेटस बदलकर घोखाधड़ी हो जाएगा और ऐसा निर्णय लिए जाने के एक सप्ताह के अंदर उसकी सूचना रिज़र्व बैंक एवं CRILC प्लैटफार्म पर दी जाएगी। इसके अलावा, रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट किए जाने के 15 दिन के अंदर फोरेंसिक लेखा परीक्षा अधिकृत/आरंभ करनेवाला बैंक, सहायता संघ अथवा बहु बैंकिंग व्यवस्था के सभी बैंकों की ओर से सीबीआई के पास शिकायत दर्ज कराएगा। 5.5 यह ध्यान रखा जाए कि CRILC प्लैटफार्म पर जिस तारीख को सबसे पहले सदस्य बैंक ने खाते को RFA अथवा धोखाधड़ी के रूप में रिपोर्ट करवाया था उससे ठीक 6 माह के अंदर यह सारी प्रक्रिया पूरी कर ली जानी चाहिए। 6.0 स्टाफ जवाबदेही 6.1 एनपीए के रूप में पहचाने गए खातों की तरह ही बैंकों को चाहिए कि वे धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत किए जाने की तारीख से छह माह के अंदर स्टाफ की जवाबदेही तय कर लें। जहां जरूरी समझा जाए अथवा आवश्यकता हो वहां इस प्रक्रिया में मंजूरी अधिकारी की भूमिका की भी जांच की जाए। अब तक की परंपरा के अनुसार धोखाधड़ी के संबंध में स्टाफ की जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया के पूरा होने एवं की गई कार्रवाई की जानकारी SCBF को प्रस्तुत की जानी चाहिए और तिमाही आधार पर रिज़र्व बैंक को भी सूचित किया जाना चाहिए। 6.2 बैंक धोखाधड़ी के सभी मामलों को सतर्कता (Vigilance) या गैर-सतर्कता के रूप में अलग-अलग कर लें। केवल सतर्कता के मामलों को जांच करनेवाले प्राधिकारियों को भेजा जाए। गैर-सतर्कता वाले मामलों की जांच एवं निपटान बैंक के स्तर पर ही की जानी चाहिए और इसे छह माह के अंदर पूरा कर लिया जाना चाहिए। 6.3 जिन मामलों में बैंक के वरिष्ठ कार्यपालक (Senior Executives) शामिल हों, वहां स्टाफ जवाबदेही तय करने के लिए बोर्ड/ACB/SCBF द्वारा कार्रवाई की जानी चाहिए। 6.4 स्टाफ की जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया को इस आधार पर रोका नहीं जाना चाहिए कि उस मामले को कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सौंपा जा रहा है। आपराधिक जांच के साथ-साथ आंतरिक पूछताछ भी जारी रहनी चाहिए। 7.0 कानून प्रवर्तन एजेंसियों (Law Enforcement Agencies) के पास शिकायत दर्ज कराना 7.1 धोखाधड़ी का पता चलते ही बैंकों को कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास शिकायत दर्ज करानी चाहिए। बेहतर तो यह होगा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास शिकायत दर्ज कराने में कोई देरी न होने पाए क्योंकि हो सकता है कि ऐसी देरी से ‘विश्वासजन्य’ दस्तावेज खो जाएं, गवाह न मिल पाएं, उधारकर्ता गायब हो जाए और धोखेबाज उधारकर्ता द्वारा जमानत के रूप में रखी गई आस्तियों को गायब करने के साथ ही मनी ट्रेल (Money Trail) की संभावना भी धूमिल पड़ जाए। 7.2 यह देखा गया है कि बैंकों में सीबीआई/पुलिस के पास शिकायतें दर्ज कराने के लिए कोई केंद्र बिंदु (Focal Point) नहीं है। इसका परिणाम यह होता है कि बैंकों द्वारा अलग-अलग तरीके से शिकायतें दर्ज कराई जाती हैं और जांच एजेंसी को बैंकों में यहां-वहां बिखरे अधिकारियों से संपर्क करना पड़ता है। यही वह सबसे महत्वपूर्ण कारण है जिसकी वजह से शिकायतों को FIR का रूप देने में देरी होती है। इसलिए बैंकों को यह आदेश दिया जा रहा है कि वे बैंक की ओर से सीबीआई को दर्ज की जानेवाली सभी शिकायतों के लिए एक केंद्रीय स्थल (Nodal Point) बनाएं/ अधिकारी को नामित करें जो शिकायतों में पाई गई कमियों को दूर करने और समन्वय के एकल बिंदु के रूप में काम करे। सरकार भी बैंकों की शिकायतों/एफआईआर को प्राप्त करने के लिए सीबीआई में एक सेंट्रल पाइंट बनाने पर विचार रही है। 7.3 बैंक द्वारा कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास दर्ज की जानेवाली किसी भी शिकायत को अच्छी तरह से ड्राफ्ट किया जाना चाहिए और उसकी जांच अनिवार्यत: विधि अधिकारी से करवानी चाहिए। यह भी देखा गया है कि कई बार बैंक उधारकर्ताओं द्वारा की गई चीटिंग, फंड के दुरूपयोग, फंड के अन्यत्र उपयोग इत्यादि के आधार पर सीबीआई/पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हैं जबकि उन्होंने न तो ऐसे खातों की पहचान धोखाधड़ी के रूप में की होती है और न ही उसकी रिपोर्टिंग रिज़र्व बैंक को की होती है। चूंकि ऐसे कारण किसी भी खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने का आधार होते हैं अत: बैंकों को चाहिए कि वे ऐसे खातों की पहचान अनिवार्यत: धोखाधड़ी के रूप में करें और उसकी जानकारी रिज़र्व बैंक को दें। 7.4 सीबीआई एवं पुलिस में शिकायतों को दर्ज कराने का मौजूदा ढांचा परिशिष्ट II में दिया गया है। 8.0 कपटी उधारकर्ताओं के लिए दंडात्मक उपाय 8.1 आम तौर पर जो दंडात्मक उपाय जानबूझकर चूक करनेवाले उधारकर्ताओं पर लागू हैं वही कपटी उधारकर्ताओं पर भी लागू होंगे। कंपनियों द्वारा बैंकिंग प्रणाली से अथवा पूंजी बाजार से फंड इकट्ठा किए जाने की स्थिति में यह उपाय ऐसी कंपनी के प्रमोटर निदेशकों और अन्य पूर्णकालिक निदेशकों पर भी उसी तरह लागू होंगे। विशेष रूप से, जिन उधारकर्ताओं ने चूक की है और खाते में धोखाधड़ी भी की है, उन पर धोखाधड़ी की रकम को पूरी तरह से लौटाने की तारीख से पांच साल की अवधि तक अनुसूचित वाणिज्य बैंकों, डेवलपमेंट फाइनांशियल इंस्टिट्यूशंस, सरकारी गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं, निवेश संस्थाओं इत्यादि से बैंक वित्त लेने पर रोक लगा दी जाएगी। इस अवधि के बाद यह प्रत्येक संस्था पर निर्भर करेगा कि वह ऐसे उधारकर्ता को ऋण दे अथवा नहीं। गैर-पूर्णकालिक निदेशकों (जैसे कि नामिती निदेशकों और स्वतंत्र निदेशकों) के मामले में उनकी मिलीभगत के निर्णायक सबूत होने पर ही दंडात्मक प्रावधान उन पर लागू होंगे। 8.2 RFA अथवा धोखाधड़ी वाले खातों के मामले में किसी भी तरह के नवीनीकरण (Restructuring) अथवा अतिरिक्त सुविधाएं नहीं दी जानी चाहिए। 8.3 आपराधिक शिकायत के बने रहते कपटी उधारकर्ता के साथ किसी भी तरह का सुलहकारी समझौता करने की अनुमति नहीं है। 9.0 केंद्रीय धोखाधड़ी लेखागार (Central Fraud Registry) 9.1 इस समय ऐसा कोई एक डाटाबेस नहीं है जिसकी सहायता से उधार देनेवाली कोई इकाई बैंकों द्वारा पहले रिपोर्ट की गई धोखाधड़ी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी को हासिल कर सके। रिज़र्व बैंक में इस तरह के डाटाबेस को तैयार करने से बैंकों को नए बैंकिंग संबंध बनाने, ऋण सुविधाएं प्रदान करने अथवा किसी खाते के आपरेशन के दौरान किसी भी समय अतिरिक्त जानकारी उपलब्ध हो सकेगी। रिज़र्व बैंक एक केंद्रीय धोखाधड़ी लेखागार तैयार करने में जुटा है जो केंद्रीकृत सर्चेबल डाटाबेस होगा और बैंकों द्वारा उसका उपयोग किया जा सकेगा। सीबीआई तथा केंद्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो (CEIB) ने भी अपने डाटाबेस को बैंकों के साथ शेयर करने की इच्छा दर्शाई है। जैसे ही संबंधित ढांचे को अंतिम रूप दे दिया जाएगा, इस बारे में और अधिक जानकारी प्रदान की जाएगी। कुछ पूर्व चेतावनी संकेत जो बैंक अधिकारियों को ऋण खातों में होने वाले उलटफेर, जो 1. बैंकों / विविध देनदारों और अन्य सांविधिक संस्थाओं आदि के भुगतान में चूक होना, अधिक मूल्य वाले चेकों का बाउंस होना 2. आय कर / बिक्री कर / सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी अधिकारियों द्वारा छापा 3. उधारकर्ता के प्रोजेक्ट के दायरे में बार-बार बदलाव 4. इन्वेटरी का कम बीमा लेना अथवा ज्यादा बीमा लेना 5. टीएएन (TAN) और अन्य ब्योरा रहित इन्वायस 6. Collateral Security के स्वामित्व पर विवाद 7. प्रोजेक्ट की लागत जो प्रोजेक्ट को स्थापित करने की मानक लागत से काफी अलग हो 8. बकाया ऋण राशि की अदायगी के लिए अन्य बैंकों से फंड लेना 9. विदेशी बिलों का अधिक समय तक बकाया रहना तथा बिलों के अतिदेय होने की प्रवृत्ति 10. बैंक गारंटी / साख पत्र / Standby LC को जारी करने के जटिल (Onerous) नियम 11. मर्चेंटिंग कारोबार में, बैंक को ‘Import Leg’ के बारे में नहीं बताना 12. उधारकर्ता द्वारा छोटे-मोटे कारण बताकर गोदाम के निरीक्षण को टालने का अनुरोध 13. बकाया राशियों के भुगतान में देरी 14. शाखा से अधिक दूरी पर स्थित यूनिट का वित्तपोषण 15. ‘Claims not acknowledged as debt high 16. बार-बार बैंक गारंटी का उपयोग करना तथा LC को devolve करना 17. ब्याज के भुगतान के लिए अतिरिक्त सुविधाओं की मंजूरी 18. एक ही Collateral को एक से अधिक उधार देनेवालों को प्रभारित (Charge) करना 19. मास्टर एग्रीमेंट, बीमा कवर आदि जैसे कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेजों को छिपाना 20. उधार ली गई राशि का निवेश कर front/ सहयोगी कंपनी खोलना 21. प्रमोटर / निदेशक के शेयर में कमी 22. प्रमुख अधिकारियों का पद त्याग तथा प्रबंधन में बार-बार परिवर्तन 23. वर्ष-दर-वर्ष बिल रहित राजस्व में पर्याप्त वृद्धि 24. आपस में जुड़ी कंपनियों के साथ बड़ी संख्या में लेन-देन तथा ऐसी कंपनियों के पास बहुत अधिक बकाया का होना 25. Inventory में उल्लेखनीय बदलाव जो कुल बिक्री में हुई वृद्धि की तुलना में गैर-आनुपातिक रूप से अधिक हो 26. प्राप्य राशियों में उल्लेखनीय बदलाव जो कुल बिक्री में हुई वृद्धि की तुलना में गैर-आनुपातिक रूप से अधिक हो और/अथवा प्राप्य राशियों की परिपक्वता में वृद्धि 27. अन्य चालू आस्तियों में गैर-आनुपातिक वृद्धि 28. कुल बिक्री के प्रतिशत के रूप में कार्यशील पूंजी उधार में उल्लेखनीय वृद्धि 29. स्टॉक लेखा-परीक्षा रिपोर्ट में उजागर विवेचनात्मक मुद्दे 30. कुल बिक्री में वृद्धि के बिना स्थिर संपत्तियों में वृद्धि (जब प्रोजेक्ट को कार्यान्वित किया गया) 31. उधारकर्ता के तुलन पत्र में भारी नकद राशि और उसके समकक्ष राशियों के बावजूद, उधार में वृद्धि 32. ROC सर्च रिपोर्ट में पाई गई देयताओं को उधारकर्ता द्वारा वार्षिक रिपोर्ट में न दर्शाना 33. आपस में जुड़ी पार्टियों में अत्यधिक लेन-देन 34. वार्षिक रिपोर्ट में वस्तुगत (Material) असंगतियाँ 35. वार्षिक रिपोर्ट के अंदर महत्वपूर्ण भिन्नताएँ (विभिन्न खंडों के बीच) 36. वस्तुगत प्रतिकूल सूचनाओं का खराब प्रकटीकरण और सांविधिक लेखा परीक्षकों द्वारा उल्लेख न करना 37. लेखा अवधि और/अथवा लेखा नीतियों में बार-बार परिवर्तन 38. सामान्य प्रयोजनों के लिए बार-बार ऋण का अनुरोध 39. खाते को एक बैंक से दूसरे बैंक में ले जाना 40. बारंबार तदर्थ मंजूरियाँ (Ad hoc sanctions) 41. बिक्री से मिलनेवाली राशि को बैंक के माध्यम से न भेजना 42. स्थानीय व्यापार/आपस में जुड़ी पार्टिंयों के बीच लेन-देन हेतु जारी LC 43. असंबंधित पार्टिंयों को बड़ी राशि वाले RTGS भुगतान 44. उधार खातों में बड़े नकद आहरण 45. मूल बिलों को प्रस्तुत न करना पुलिस / सीबीआई में शिकायत दर्ज कराने का मौजूदा ढांचा
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