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रुग्ण लघु उद्योग इकाइयों के पुनर्वास हेतु मार्गदर्शी सिध्दांत

रुग्ण लघु उद्योग इकाइयों के पुनर्वास हेतु मार्गदर्शी सिध्दांत

ग्राआऋवि.सं.पीएलएनएफएस.बीसी.57/06.04.01/2001-02

16 जनवरी 2002
26 पौष 1923 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक

महोदय,

रुग्ण लघु उद्योग इकाइयों के पुनर्वास हेतु मार्गदर्शी सिध्दांत

लघु उद्योग इकाइयां (एसएसआइ) औद्योगिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण और नाजुक हिस्सा होती हैं । यह तथ्य भारत सरकार ने भी स्वीकारा है और उन्होंने लघु उद्योग इकाइयों को उच्च प्राथमिकता दी है । भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी लघु उद्योगों को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र का दर्जा देते हुए बैंकों द्वारा उधार देने के संबंध में समय-समय पर विभिन्न परिपत्र/मार्गदर्शी सिध्दांत जारी किये हैं ।

2. लघु उद्योग इकाइयों के कार्य निष्पादन पर बहुत से आंतरिक और बाह्य कारण पर्याप्त दबाव डालते हैं जिसकी वजह से कई इकाइयां रुग्ण हो जाती हैं । आज कल, लघु उद्योग क्षेत्र में रुग्णता के मामले बढ़ते जा रहे हैं और बड़ी संख्या में लघु उद्योग इकाइयां, जो रुग्ण के रुप में पहचानी गयी हैं, संभाव्य रुप से अर्थक्षम नहीं पायी गयी ।

3. इसके साथ-साथ और अन्य संबध्द मामलों पर लघु उद्योग मंत्रियों के समूह ने दिनांक 16 अगस्त 2000 को आयोजित उनकी बैठक में इच्छा व्यक्त की थी कि भारतीय रिज़र्व बैंक वर्तमान में रुग्ण और संभाव्य रुप से अर्थक्षम लघु उद्योग इकाइयों के पुनर्वास हेतु एक संशोधित,विस्तृत , पारदर्शी और गैर मनमानी मार्गदर्शी सिध्दांत तैयार करें । तदनुसार भारतीय बैंक संघ के अध्यक्ष श्री एस.एस.कोहली की अध्यक्षता में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रुग्ण लघु उद्योगों के पुनर्वास पर एक कार्यकारी दल का गठन नवंबर 2000 में किया । समूह ने अब अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है और लघु उद्योग क्षेत्र में रुग्ण इकाइयों की पहचान और वर्गीकरण हेतु दिये गये मानदंडों में बदलाव सहित की गयी सभी मुख्य सिफारिशें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा स्वीकृत की गयी हैं । संशोधित मार्गदर्शी सिध्दांतों का प्रारुप भारिबैं वेबसाइट पर भेजा गया और बैंकों,लघु उद्योग एसोसिएशन आदि से उनके अभिमत मंगाने के लिए परिचालित किया गया । कार्यकारी दल की सिफारिशों के आधार पर संशोधित मार्गदर्शी सिध्दांतों को अंतिम स्वरुप देते समय प्राप्त सुझावों पर विचार किया गया।

4. लघु उद्योग क्षेत्र में रुग्ण इकाइयों के पुनर्वास के संबंध में, रुग्ण लघु उद्योग इकाइयों की परिभाषा, उनकी निगरानी,अर्थक्षमता के मानदंड, प्रारंभिक रुग्णता और संभाव्य रुप से अर्थक्षम इकाइयों के संबंध में बैंकों/वित्तीय संस्थाओं से सहायता और राहत के विशिष्ट संदर्भ में, संशोधित मार्गदर्शी सिध्दांतों का पूरा सेट संलग्न है । हालांकि, बड़ी,मध्यम और छोटी औद्योगिक इकाइयों की रुग्णता बहुत से आम लक्षण दर्शाती हैं परंतु लघु उद्योग क्षेत्र की रुग्णता का कोई भी प्रस्ताव, आंतरिक और साथ ही साथ बाहरी दबावों का मुकाबला न कर पाने में उन इकाइयों की संबंधित कमजोरी दर्शाता है । लघु उद्योग और अत्यंत लघु क्षेत्र इकाइयों के बीच के भेद तथा अत्यंत लघु जो क्षेत्र और विकेंद्रीकृत क्षेत्र इकाइयां, जिसमें कारीगर,ग्राम और कुटीर उद्योग इकाइयां भी शामिल हैं, के बीच के भेद पर भी विचार किया गया है । अत: लघु उद्योग इकाइयों के मामले में पुनर्वास के प्रयासों के लिए प्रारंभिक रुग्णता के लक्षणों की शीघ्र पहचान, पर्याप्त और तीव्र राहत उपाय और इकाइयों के पुनर्वास हेतु ज्यादा समय देने के बजाय तत्परता पूर्वक उनके उपयोग पर जोर दिया गया है । तदनुसार, अनुबंध - I में दिये गये अनुसार लघु उद्योग क्षेत्र में रुग्ण इकाइयों के पुनर्वास हेतु संशोधित मार्गदर्शी सिध्दांत जारी किये गये हैं । हमारे पहले के सभी परिपत्र और i) दिनांक 6 फरवरी 1987 का ग्राआऋवि. सं. पीएलएनएफएस. बीसी.48/ एसआइयू.20-87 ii) दिनांक 8 जून 1989 का ग्राआऋवि.सं. पीएलएनएफएस.बीसी.122/ एसआइयू-20/88-98 iii) दिनांक 8 जनवरी 1991 का ग्राआऋवि.सं.पीएलएनएफएस. बीसी.69/एसआइयू. 20/90-91 iv) दिनांक 1 जुलाई 1992 का ग्राआऋवि.सं. पीएलएनएफएस.बीसी.1/ एसआईयू.20/92-93 और v) दिनांक 13 फरवरी 1996 का ग्राआऋवि.सं. पीएलएनएफएस.बीसी.90/ 06.04.01/ 95-96 में दिये गये मार्गदर्शी सिध्दांतों के स्थान पर इन मार्गदर्शी सिध्दांतों व ो प्रभावी समझा जाए ।

5. कार्यकारी दल की सिफारिशों पर आधारित मार्गदर्शी सिध्दांतों में किये गये महत्वपूर्ण परिवर्तनों के साथ ही साथ रुग्ण लघु उद्योग इकाइयों के पुनर्वास पर वर्तमान मार्गदर्शी सिध्दांत तत्काल संदर्भ हेतु अनुबंध II में प्रस्तुत हैं ।

6. हम इस बात पर जोर देना आवश्यक समझते हैं कि संभाव्य रुप से अर्थक्षम लघु उद्योग इकाइयों , जो पहले ही रुग्ण हो गयी हैं या रुग्ण होने वाली इकाइयों की समय पर और पर्याप्त सहायता, सिर्फ वित्तपोषण करनेवाले बैंकों की दृष्टि से ही परम आवश्यक नहीं हैं, बल्कि समग्र औद्योगिक उत्पादन,निर्यात और रोजगार निर्माण के प्रति इस क्षेत्र के अंशदान को देखते हुए राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए भी आवश्यक है । अत: बैंकों को लघु उद्योग क्षेत्र इकाइयों के पुनर्वास के लिए, सहानुभूतिपूर्वक रुख और प्रयास करने चाहिए, विशेषकर जहां रुग्णता उद्यमी के नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों की वजह से हुई हो । तथापि, बैंकों को शीघ्र ही उन इकाइयों के मामले में, जो पुनरुज्जीवन के लिए सक्षम नहीं हैं, समझौता करने के लिए प्रयास करने चाहिए और/या अन्य वसूली उपायों की सहायता लेनी चाहिए ।

7. कृपया प्राप्ति स्वीकृति भेजें और उपर्युक्त मार्गदर्शी सिध्दांतों के कार्यान्वयन में अपने बैंक द्वारा की कार्रवाई से हमें अवगत करायें ।

भवदीया

( वाणी जे.शर्मा )

मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्नक: उपर्युक्तानुसार

उक्त दिनांक का परांकन सं.पीएलएनएफएस. 973ए /06.04.01/2001-02

प्रतिलिपि निम्नलिखित को प्रेषित :

( डाक सूची के अनुसार )

( वी.एम.मैथ्यू )

उप महाप्रबंधक


अनुबंध - I

 

रुग्ण लघु उद्योग इकाइयों के पुनर्वास हेतु

सामान्य दिशा-निर्देश

प्रारंभिक रुग्णता

1. यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि रुग्णता की प्रारंभिक चरण पर ही पहचान सुनिश्चित करने हेतु उपाय किए जाएं । शाखा अधिकारियों को खातों के परिचालन पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए तथा इस उेश्यि को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त उपाय किए जाने चाहिए । वित्तपोषित इकाइयों के प्रबंध तंत्र को यह सूचित किया जाना चाहिए कि बैंकों के समक्ष आने वाली ऐसी समस्याओं जिनसे रुग्णता हो सकती हो तथा इकाई को सामान्य स्थिति में लाने के संबंध में सूचित करना उन का प्राथमिक दायित्व है । रुग्णता को पहले ही पहचानने तथा तत्काल निवारण के लिए कार्रवाई करने हेतु शाखा स्तर पर भी संगठनात्मक अवस्था पूर्णत: तैयार रखनी चाहिए । बैंकों/वित्तीय संस्थाओं को प्रभावी निगरानी द्वारा रुग्णता के लक्षण दर्शाने वाली इकाइयों को पहचानना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो अतिरिक्त वित्त उपलब्ध कराना चाहिए ताकि इन इकाइयों को पुन: अच्छी स्थिति में लाया जा सके । उधार खातों तथा अन्य संबंधित अभिलेखों जैसे आवधिक वित्तीय ब्योरा, स्टॉक विवरण, फेक्टरी परिसर और गोदामों के निरीक्षण की रिपोर्ट आदि की छान-बीन के दौरान प्रकट प्रारंभिक रुग्णता के चेतावनी संकेत की निदर्शी सूची अनुबंध - I में प्रस्तुत है जो परिचालन करने वाले अधिकारी के लिए उपयोगी मार्गदर्शन होंगे । साथही, बैंकों में शुरु की गई आस्ति वर्गीकरण की प्रणाली उन अग्रिमों को सही समय पर पहचानने में उपयोगी सिध्द होगी जिनकी गुणवत्ता गिरावट हो रही हो । जब एक अग्रिम मानदंडों के अनुसार अवमानक श्रेण्ी में चला जाता है तो शाखा को इकाई की वित्तीय स्थिति, उसके परिचालन आदि की पूरी पूछ-ताछ करनी चाहिए तथा सुधारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए । उन शाखा आधिकारियों, जिन्हें उधार खातों के दैनंदिन परिचालन की जानकारी हो, का दायित्व है कि वे प्रारंभिक चेतावनी के संकेतों को पहचानें और तत्काल सुधारात्मक कदम उठायें । ऐसे उपायों में सिध्द की गई आवश्यकता के आधार पर उनके प्रत्योजित अधिकारों के बाहर हो तो नियत्रंक कार्यालय समय पर वित्तीय सहायता, शाखा प्रबंधक के अधिकार में होने पर उपलब्ध कराना तथा जहां अपेक्षित छूट उनके प्रत्यायोजित अधिकारों के बाहर हो तो नियत्रंक कार्यालय को पूर्व सूचना देना सम्मिलित है । शाखा प्रबंधक इकाई को गैर-वित्तीय स्वरुप वाली समस्याओं को सुलझाने में मदद कर सकता है जिनमें बाहरी एजेसिंयों जैसे, सरकारी विभागों/उपक्रमों, विद्युत बोर्डों आदि से सहायता की आवश्यकता हो । वह इकाई से संबंधित मीयादी ऋणदाता संस्थाओं को इकाई की स्थिति के बारे में बता सकता है ।

2. रूग्ण औद्योगिक इकाइयों के संबंध में कार्रवाई करने हेतु प्रधान कार्यालय के साथ-साथ सभी क्षेत्रीय केन्द्रों में सेल खोलने तथा ऐसे सेलों में तकनीकी कर्मचारी सहित विशेषज्ञता प्राप्त स्टाफ भी उपलब्ध कराने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सभी बैंकों को जारी अनुदेशों को दोहराया जाता है ।

3. रुग्ण लघु उद्योग इकाई की परिभाषा -

एक लघु उद्योग इकाई को तभी ’रुग्ण’ माना जाएगा यदि

(क) इकाई का कोई उधार खाता छ: माह से अधिक अवधि के लिए अवमानक रहता हो अर्थात उधार खाते से संबंधित मूलधन अथवा ब्याज एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए अतिदेय रहता हो । अवमानक के रूप में खाते के वर्गीकरण हेतु वर्तमान अवधि को यथासमय घटाये जाने के बावजूद एक वर्ष अधिक की अतिदेय अवधि की अपेक्षित अवधि में कोई परिवर्तन नहीं होगा

अथवा

(ख) पूर्व लेखा वर्ष के दौरान उनके निवल मूल्य के 50% तक संचित नकद हानि के कारण निवल मूल्य में हृास हुआ हो;

तथा

(ग) कम से कम दो वर्ष के लिए इकाई वाणिज्य उत्पादन से जुड़ी हो ।

इससे बैंक इकाइयों के पुनरुत्थान के लिए प्रारंभिक चरण पर कार्रवाई कर सकेंगे । उपर्युक्त परिभाषा को 31 मार्च 2002 को समाप्त छमाही के ब्योरे की रिपोर्टिंग हेतु अपनाया जा सकता है , जबकि पोषण कार्यक्रम तैयार करने हेतु बैंक को तत्काल प्रभाव से उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार कार्रवाई करनी चाहिए ।

4. रुग्ण लघु उद्योग इकाइयों की सक्षमता

इकाई को संभाव्य रुप से अर्थक्षम कहा जाएगा यदि वह बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, सरकार (केन्द्रीय/राज्य) तथा अन्य संबंधित एजेंसियों जैसा आवश्यक हो, के पैकेज की शुरुआत से 5 वर्ष से कम अवधि के लिए राहत पैकेज कार्यान्वित करने के बाद, पूर्व सहमत हुए अनुसार अपनी चुकौती बाध्यताएँ जारी रखने की स्थिति में हो, इसमें पूर्वकथित अवधि के बाद रियायतों की सहायता बिना पैकेज का भाग बननेवाली चुकौती बाध्यताएँ भी शामिल हैं । पुन:स्थापित (पूर्व) कर्जों के लिए चुकौती अवधि, पैकेज कार्यान्वित होने की तारीख से सात वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए । अत्यंत लघु/विकेन्द्रित क्षेत्र इकाइयों के मामले में पुन:स्थापित कर्ज की राहत/छूट अवधि तथा चुकौती अवधि जो अब तक क्रमश: दो और तीन वर्ष है को संशोधित किया गया है ताकि यह क्रमश: पांच और सात वर्ष से अधिक न हो जैसाकि अन्य लघु उद्योग इकाइयों से है । उपर्युक्त निर्धारित मानदंडों के आधार पर यह बैंक/वित्तीय संस्थान यह निर्णय लेगा कि क्या एक रुग्ण लघुउद्योग इकाई संभाव्य रुप से अर्थक्षम है या नहीं । रुग्ण के रुप में पहचानी गई इकाई की संभव्यता पर तत्काल निर्णय लेना चाहिए तथा इसे जल्द से जल्द इकाई को तथा अन्य संबंधित को बताया जाना चाहिए । इकाई को ’संभांव्य रुप से अर्थक्षम’/’अर्थक्षम’ घोषित करने की तारीख से छ: माह के भीतर पुनर्वास पैकेज को पूर्णत: कार्यान्वित किया जाना चाहिए । पुनर्वास पैकेज को पहचानने और कार्यान्वित करते हुए बैंकों/वित्तीय संस्थाओं को छ: माह की अवधि के लिए ’धारण परिचालन’ करने के लिए सूचित किया जाता है । इससे रुग्ण इकाई ऐसे ’धारण परिचालन’ की अवधि के दौरान कम से कम बिक्री आय की जमाराशि तक नकदी ऋण खाते से निधियाँ आहरित कर सकेंगी ।

5. संभाव्य रुप से अर्थक्षम इकाइयों के पुनर्वास हेतु राहत और रियायतें

इस बात पर जॉेर दिया जाता है कि पुनर्वास के लिए केवल उन इकाइयों को लिया जाए जिन्हें संभाव्य रुप से अर्थक्षम माना जाता है । निर्धारित राहत और रियायतें नेमी प्रकार से नहीं दी जानी चाहिए तथा इस पर निर्णय प्रत्येक मामले के वाणिज्य विवेक और गुणों के आधार पर संबंधित बैंक/वित्तीय संस्था द्वारा लिया जाना चाहिए । बैंक पात्र मामलों में मानदंडों से परे राहत और रियायतें भी प्रदान करने हेतु स्वतंत्र हैं । केवल अपवादात्मक मामलों में मानदंडों से परे रियायत/राहत देने पर विचाार किया जाना चाहिए । वस्तुत: संभाव्यता अध्ययन में निहित जोखिम से संबंधित संवेदनशीलता विश्लेषण शामिल होना चाहिए जिससे सुधारात्मक कार्रवाई आधार निश्चित किया जा सके । बैंकों/वित्तीय संस्थाओं द्वारा संभाव्य रुप से अर्थक्षम रुग्ण लघु उद्योग इकाइयों के पुनर्वास हेतु प्रदान की गई राहत और रियायतें अनुबंध - घ्घ् में प्रस्तुत है ।

6. जानबूझकर कुप्रबंध, जानबूझकर चूक, अनधिवफ्त रुप से निधियों का विपथन, भागीदारों/ प्रवर्तकों के बीच विवाद आदि के कारण हुई रुग्ण इकाइयों पर पुनर्वास के लिए विचार नहीं किया जाना चाहिए तथा बैंक की अतिदेय राशि की वसूली के लिए उपाय किए जाने चाहिए । भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दि. 20 फरवरी 1999 के उनके परिपत्र बैेपविवि सं. बीसी.डीएल(डब्लयू)12/20.016.02(1) 98-99 में दी गई जानबूझकर चूककर्ता की परिभाषा में मोटे तौर पर निम्नलिखित शामिल हैं :-

(क) पर्याप्त नकदी उपलब्धता और लाभार्थक शुध्द मूल्य के बावजूद देय राशि का जानबूझकर भुगतान न करना ।

(ख) चूककर्ता इकाई से निधियों को निकालना जिससे इकाई का अहित हो ।

(ग) वित्तपोषित आस्तियां जिन्हें या तो खरीदा नहीं गया या उसे बेच दिया गया हो तथा उसकी आय का दुरुपयोग किया गया हो ।

(घ) अभिलेखों की गलत बयानी/मिथ्याकरण

(ङ) बैंक की जानकारी के बिना प्रतिभूतियों का निपटान/निष्कासन

(च) उधारकर्ता द्वारा कपटपूर्ण लेन-देन

निधियों/चूकों के जानबूझकर कुप्रबंधन के संबंध में उधार देनेवाली वित्तीय संस्थाओं/बैंकों के विचारों को अंतिम माना जाएगा ।

7. अधिकारों को प्रत्यावर्तन

स्वीवफ्त पुनर्वास पैकेजों के कार्यान्वयन में विलंब को कम किया जाना चाहिए । ऐसे विलंब का एक कारण है राहत और रियायत हेतु नियंत्रक कार्यालय से मंजूरी प्राप्त करने के लिए लिया गया समय । चूंकि मंजूरी की प्रक्रिया को त्वरित करना महत्वपूर्ण है, बैंक और वित्तीय संस्थाओं, विभिन्न स्तरों जैसे जिला, मंडल, क्षेत्रीय , अंचल तथा प्रधान कार्यालय में भी, वरिष्ठ अधिकारियों को पर्याप्त अधिकार प्रत्यावर्तित करें ताकि पुनर्वास पैकेज में उनकी प्रतिबध्दता निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुरुप तैयार की जा सके ।

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