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बैकों के आस्ति देयता प्रबंध ढाँचे के संबंध में दिशानिर्देश - ब्याज दर जोखिम

आरबीआइ/2010-11/263
बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 59/21.04.098/2010-11

4 नवंबर 2010
13 कार्तिक 1932 (शक)

अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक/मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(स्थानीय क्षेत्र बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

बैकों के आस्ति देयता प्रबंध ढाँचे के संबंध में दिशानिर्देश - ब्याज दर जोखिम

कृपया 27 अक्तूबर 2009 को घोषित मौद्रिक नीति 2009-10 की दूसरी तिमाही समीक्षा के पैरा 155 का अवलोकन करें जिसमें ब्याज दर जोखिम प्रबंध के लिए अवधि अंतराल विश्लेषण आरंभ करने की बात कही गयी है। तदनुसार, बैंकों का आस्ति देयता प्रबंध ढाँचा - ब्याज दर जोखिम के संबंध में दिशानिर्देश अनुबंध में दिये जा रहे हैं।

2. जैसा कि बैंकों को ज्ञात है, ब्याज दर जोखिम वह जोखिम है जहाँ बाजार की ब्याज दरों में परिवर्तन बैंक की वित्तीय स्थिति को प्रभावित करता है । ब्याज दरों में परिवर्तन बैंक की निवल ब्याज आय (एनआइआइ)को परिवर्तित करता है और इस माध्यम से वह बैंक की आय (अर्थात् सूचित किये गये लाभ) को प्रभावित करता है। ब्याज दरों में परिवर्तन ब्याज दर संवेदी आस्तियों, देयताओं और तुलन पत्रेतर पोजीशनों के आर्थिक मूल्य को परिवर्तित करते हुए बैंक की ईक्विटी के बाजार मूल्य (एमवीआई) को भी प्रभावित करता है (यदि अन्यथा निर्दिष्ट न हो तो इस परिपत्र में इसके बाद ईक्विटी का अर्थ ‘निवल मालियत’ होगा)। ब्याज दर जोखिम के ये दो दृष्टिकोण क्रमश: ‘आय दृष्टिकोण’ और ‘आर्थिक मूल्य दृष्टिकोण’ कहलाते हैं। बैंकों को भेजे गये पूर्ववर्ती दिशानिर्देश (10 फरवरी 1999 का बैंपविवि. बीपी. बीसी. 8/21.04.098/99) में पारम्परिक अंतराल विश्लेषण (टीजीए) का प्रयोग करते हुए ‘आय दृष्टिकोण’ से ब्याज दर जोखिम माप की विधि निर्दिष्ट की गयी थी। आरम्भ में टीजीए को ब्याज दर जोखिम मापने की एक उपयुक्त विधि के रूप में माना जाता था । रिज़र्व बैंक ने उस समय अपने इस इरादे का संकेत दिया था कि जब बैंक प्रबंध सूचना प्रणाली में सूचना प्राप्त करने और उसके प्रयोग में पर्याप्त विशेषज्ञता और परिष्कार प्राप्त कर लेंगे तो अवधि अंतराल विश्लेषण (डीजीए), सिमुलेशन तथा एक लम्बी अवधि तक जोखिमग्रस्त मूल्य जैसी विधियों से ब्याज दर जोखिम माप की आधुनिक तकनीकें अपनायी जाएँगी।

3. इस परिप्रेक्ष्य में यह स्पष्ट किया जाता है कि अवधि अंतराल विश्लेशण (डीजीए) का उद्देश्य बैंक के समक्ष ब्याज दर जोखिम का एक अनुमान प्रस्तुत करना है । तदनुसार, निर्धारित आघात लगाने के फलस्वरूप ईक्विटी के बाजार मूल्य में अनुमानित गिरावट, यदि आघात का परिदृश्य सचमुच मूर्त रूप ले ले, तो बैंक की ईक्विटी पर आर्थिक प्रभाव दर्शायेगी, लेकिन यह लेखांकन हानि नहीं होगी क्योंकि बैंकिंग बही का बाजार दर पर मूल्यांकन नहीं होता है।

4. संशोधित दिशानिर्देश अनुबंध में दिये गये हैं, जो 1 अप्रैल 2011 से लागू होंगे । तथापि, बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे 1 जनवरी 2011 से इन दिशानिर्देशों पर प्रायोगिक रूप से पूरी तरह अमल करना आरंभ कर दें ताकि संशोधित ढांचे के परिचालन में उन्हें अधिक अनुभव प्राप्त हो सके ।

5. अनुबंध में दिये गये दिशानिर्देशों की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं :

i) बैंक वर्तमान में ब्याज दर जोखिम प्रबंध के लिए टीजीए अपनाते हैं । वे इसके अलावा डीजीए भी अपनाएंगे ।

ii) दोनों, डीजीए और टीजीए विधियां बैंक की ब्याज दर संवेदी आस्तियों, देयताओं और तुलनपत्रेतर मदों की जागतिक स्थिति पर लागू की जानी चाहिए । बैंकों को ऐसी प्रत्येक मुद्रा में ब्याज दर संवेदी आस्तियों/देयताओं/तुलनपत्रेतर मदों पर डीजीए और टीजीए लागू कर उनकी ब्याज दर जोखिम स्थिति की गणना करनी चाहिए, जिसमें आस्तियां या देयताएं बैंक की कुल जागतिक आस्तियों या जागतिक देयताओं के 5 प्रतिशत या उससे अधिक हो । अन्य सभी मुद्राओं में ब्याज दर जोखिम की गणना अलग से संयुक्त रूप में की जानी चाहिए ।

iii) बैंकों में कंप्यूटरीकरण और वर्तमान प्रबंध सूचना प्रणाली के स्तर को ध्यान में रखते हुए सभी बैंकों के लिए एक समान एएलएम प्रणाली अपनाना संभव नहीं भी हो सकता है । प्रस्तावित दिशानिर्देश इस प्रकार बनाये गये हैं ताकि वे बैंकों के लिए एक बेंचमार्क बन सकें । जिन बैंकों ने अधिक आधुनिक प्रणाली पहले से ही अपना ली है, वे अपनी वर्तमान प्रणाली जारी रख सकते हैं, लेकिन उन्हें पर्यवेक्षीय रिपोर्टिंग/प्रकटीकरण ढांचे के रूप में डीजीए और टीजीए भी अपनाना चाहिए ।

iv) बैंकों को आर्थिक मूल्य दृष्टिकोण से अपने तुलन पत्र में ब्याज दर जोखिम की माप करने के लिए डीजीए लागू करते समय संशोधित अवधि अंतराल विधि का प्रयोग करना चाहिए । बैंकों में कंप्यूटरीकरण और प्रबंध सूचना प्रणाली की विकसनशील स्थिति को देखते हुए, एक सरल ढांचे का सुझाव दिया गया है, जिससे बैंक

क) ब्याज दर संवेदी आस्तियों, देयताओं और तुलनपत्रेतर मदों को परिशिष्ट I मे निर्दिष्ट व्यापक संवर्गों में विभिन्न समय समूहों के अंतर्गत वर्गीकृत कर सकते हैं; और

ख) सुझाये गये सामान्य अवधि, कूपन और आय मानदंडों का प्रयोग करते हुए आस्तियों/देयताओं और तुलनपत्रेतर मदों के इन संवर्गों की संशोधित अवधि (एमडी) की गणना कर सकते हैं।

v) उपर्युक्त विधि से ब्याज दर जोखिम की माप एक प्रकार से एक मोटा अनुमान है। अत:, जिन बैंकों के पास ब्याज दर संवेदी आस्ति (आरएसए)/ब्याज दर संवेदी देयता (आरएसएल) की प्रत्येक मद की संशोधित अवधि (एमडी) के आधार पर अपनी आस्तियों और देयताओं की भारित औसत एमडी की गणना करने की क्षमता हो वे ऐसा कर सकते हैं।

vi) प्रत्येक बैंक को अपने बोर्ड/बोर्ड की जोखिम प्रबंध समिति के पूर्व अनुमोदन से अपनी जोखिम वहन व जोखिम प्रबंध क्षमता के आधार पर ब्याज दर जोखिम की उपयुक्त आंतरिक सीमा निर्धारित करनी चाहिए।

vii) बैंकों को विभिन्न ब्याज दर परिदृश्यों के अंतर्गत आय में संभावित कमी और ईक्विटी के बाजार मूल्य में गिरावट की गणना करनी चाहिए ।

viii) पारंपरिक अंतराल विश्लेषण (टीजीए) के अनुसार ब्याज दर संवेदनशीलता की पर्यवेक्षीय रिपोर्टिंग की वर्तमान बारंबारता के अलावा, बैंक 30 जून 2011 से तिमाही आधार पर 31 मार्च 2012 तक तथा 30 अप्रैल 2012 से मासिक आधार पर निर्धारित फार्मेट में डीजीए के अनुसार ब्याज दर संवेदनशीलता पर रिपोर्ट भेजेंगे।

6.यह स्पष्ट किया जाता है कि इस परिपत्र में दी गयी विधि का उद्देश्य पूरे बैंक में अर्थात् बैंकिंग और ट्रेडिंग बही दोनों में ब्याज दर संवेदी पोजीशनों के मूल्य में परिवर्तन से बैंक की ईक्विटी के बाजार मूल्य पर पड़ने वाले प्रभाव का निर्धारण करना है । यह अपेक्षा ट्रेडिंग बही और बैंकिंग बही में (स्तंभ II के अंतर्गत) अलग-अलग ब्याज दर संवेदी पोजीशनों के लिए पूंजी पर्याप्तता अपेक्षा के आकलन के वर्तमान दिशानिर्देश के अलावा है । पूंजी पर्याप्तता के प्रयोजन से ट्रेडिंग और बैंकिंग बही पर अलग-अलग कार्रवाई की जाती है, क्योंकि सामान्यतया भिन्न-भिन्न लेखांकन/मूल्यांकन मानदंडों के कारण बैंकिंग बही और ट्रेडिंग बही के बीच पोजीशनों की ऑफ सेटिंग नहीं होती है।

7. इस परिपत्र में दी गयी विधि में महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त कर लेने के बाद बैंक स्तंभ II के अंतर्गत बैंकिंग बही में ब्याज दर जोखिम के प्रबंध के लिए इस विधि को अपनाने पर विचार कर सकते हैं।

8. स्तंभ II के अंतर्गत बैंकिंग बही में ब्याज दर जोखिम के प्रबंध से संबंधित वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार जिन बैंकों में 200 आधार अंक के मानकीकृत ब्याज दर आघात के कारण बैंकिंग बही के आर्थिक मूल्य में ईक्विटी के बाजार मूल्य के 20% से अधिक की गिरावट आती है, उन बैंकों को पर्यवेक्षीय दृष्टिकोण से भिन्न (आउटलायर) माना जाता है । तथापि, इस परिपत्र में निहित बैंकों के आस्ति देयता प्रबंध से संबंधित दिशानिर्देशों के अंतर्गत 200 आधार अंकों के मानकीकृत ब्याज दर आघात के पूरे तुलन पत्र पर पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर ईक्विटी के बाजार मूल्य में गिरावट के लिए संप्रति इस प्रकार के किसी पैमाने की परिकल्पना नहीं की गयी है।

9. कृपया प्राप्ति सूचना भेजें।

भवदीय

(बि.महापात्र)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्नक : यथोक्त

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