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वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) के रूप में एक्सपोज़रों के वर्गीकरण से संबंधित दिशानिर्देश

आरबीआइ/2009-10/151
बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं 42/08.12.015/2009-10

9 सितंबर 2009
17 भाद्र 1931 (शक)

सभी वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) के रूप में
एक्सपोज़रों के वर्गीकरण से संबंधित दिशानिर्देश

कृपया उपर्युक्त विषय पर 29 जून 2005 का हमारा परिपत्र डीबीएस. सीओ. पीपी. बीसी. 21/11.01. 005/ 2004-05 देखें जिसके अंतर्गत अन्य बातों के साथ-साथ वाणिज्यिक स्थावर संपदा एक्सपोज़र को परिभाषित किया गया है।

2. बैंकों और अन्य क्षेत्रों से इस संबंध में अनेक प्रश्न प्राप्त हो रहे हैं कि कतिपय एक्सपोज़रों को वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) एक्सपोज़र माना जाए अथवा नहीं । इसे ध्यान में रखते हुए तथा यह देखते हुए कि बासल II ढाँचा अपनाया गया है और इस ढाँचे में ऐसे एक्सपोज़रों के संबंध में विनिर्दिष्ट प्रावधान हैं, यह निर्णय लिया गया था कि सीआरई एक्सपोज़र की परिभाषा की समीक्षा की जाए। हमारे 7 जनवरी 2009 के परिपत्र सं. बैंपविवि. बीपी. सं. 11021/08.12.015/2008-09 तथा 7 जुलाई 2009 के परिपत्र बैंपविवि. बीपी. सं. 502/08.12.015/2008-09 द्वारा इस संबंध में दिशानिर्देशों का प्रारूप बैंकों और जनसाधारण की टिप्पणी के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर दो बार प्रदर्शित किया गया था।

3.  प्राप्त टिप्पणियों और सुझावों पर अच्छी तरह विचार करने के बाद सीआरई एक्सपोज़र के वर्गीकरण पर अंतिम दिशानिर्देश अब अनुबंध में दिए जा रहे हैं । यह स्पष्ट किया जाता है कि ये दिशानिर्देश सिद्धांतों पर आधारित हैं तथा परिशिष्ट 2 में दिये गये उदाहरण निदर्शी हैं, परिपूर्ण नहीं । सिद्धांतों और उदाहरणों के आधार पर बैंक यह निर्धारित कर पाएंगे कि कोई एक्सपोज़र सीआरई है या नहीं तथा उन्हें वर्गीकरण के औचित्य के संबंध में तर्कसंगत नोट दर्ज करना चाहिए । इसके साथ ही, यह संभव है कि किसी एक्सपोज़र के अनेक वर्गीकरण हों, उदाहरण के लिए, सीआरई, संरचनात्मक उधार, पूंजी बाजार एक्सपोज़र आदि । ऐसे मामले में रिज़र्व बैंक को भेजी जानेवाली सभी विनियामक रिपोर्टों में एक्सपोज़र को सभी संबद्ध वर्गीकरण के अंतर्गत पादटिप्पणी सहित सूचित करना चाहिए ताकि दोहरी गणना से बचा जा सके। वर्गीकरण पर यदि कोई विनियामक रियायतें और सीमा लागू हों तो वे एक्सपोज़र पर भी लागू होंगी।

4. इस परिपत्र में निहित दिशानिर्देश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।

भवदीय

(बी. महापात्र)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुबंध

वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) एक्सपोज़र के संबंध में दिशानिर्देश

1. सीआरई एक्सपाज़र की परिभाषा

1.1 स्थावर संपदा को सामान्यत: अचल आस्ति - भूमि और उस पर स्थायी रूप से जुड़े निर्माण - के रूप में परिभाषित किया जाता है। आय-उत्पादक स्थावर संपदा (आइपीआरई) की परिभाषा बासल -II - ढाँचे के पैरा 226 में दी गयी है, जिसे नीचे उद्धृत किया जा रहा
है :

"आय-उत्पादक स्थावर संपदा (आइपीआरई) का तात्पर्य स्थावर संपदा (उदाहरण के लिए, किराये पर देने के लिए कार्यालय भवन, खुदरा बिक्री के स्थान, बहुपारिवारिक आवासीय भवन, औद्योगिक या गोदाम की जगह और होटल) को निधि उपलब्ध कराने की विधि से है, जिसमें एक्सपोज़र की चुकौती और वसूली की संभावना मुख्यतया आस्ति से होने वाले नकदी प्रवाह पर निर्भर करती है। इन नकदी प्रवाहों का प्राथमिक स्रोत सामान्यत:आस्ति का पट्टा या किराये का भुगतान या बिक्री होती है। उधारकर्ता एक एसपीई (विशेष प्रयोजन हस्ती), स्थावर संपदा निर्माण या धारिताओं पर केंद्रित परिचालन कंपनी या स्थावर संपदा से इतर आय के स्रोत वाली परिचालन कंपनी हो सकता है, पर ऐसा होना अपेक्षित नहीं है। स्थावर संपदा की संपार्श्विक जमानत वाले अन्य कार्पोरेट एक्सपोज़र की तुलना में आइपीआरई को अलग करने वाली विशेषता यह है कि आइपीआरई में एक्सपोज़र की चुकौती की संभावना तथा चूक होने की स्थिति में वसूली की संभावना के बीच मजबूत सकारात्मक संबंध है, क्योंकि दोनों मुख्यतया संपत्ति से होने वाले नकदी प्रवाह पर निर्भर हैं।
 
1.2 आइपीआरई की उपर्युक्त परिभाषा से यह देखा जा सकता है कि आइपीआरई/सीआरई के रूप में किसी एक्सपोज़र को वर्गीकृत करने के लिए आवश्यक विशेषता यह होगी कि निधीयन से स्थावर संपदा  (यथा किराये पर देने के लिए कार्यालय भवन, खुदरा बिक्री के स्थान, बहुपारिवारिक आवासीय भवन, औद्योगिक या गोदाम की जगह और होटल) का सृजन /अधिग्रहण होगा, जिसमें चुकौती की संभावना मुख्यतया आस्ति से होनेवाले नकदी प्रवाह पर निर्भर करेगी। इसके अलावा, चूक होने पर वसूली की संभावना भी इस प्रकार की निधि प्रदत्त आस्ति से होनेवाले नकदी प्रवाह पर ही मुख्यतया निर्भर करेगी, क्योंकि सामान्यतया ऐसी आस्ति को ही जमानत के रूप में लिया जाता है। चुकौती के लिए नकदी प्रवाह और चूक की स्थिति में, यदि ऐसी आस्तियों को जमानत के रूप में लिया गया है तो वसूली के लिए भी प्राथमिक स्रोत (अर्थात् नकदी प्रवाह का 50% से अधिक अंश) सामान्यतया आस्तियों का पट्टा या किराया भुगतान या बिक्री होगा।

1.3 ये दिशानिर्देश उन मामलों पर भी लागू होंगे जहाँ एक्सपोज़र सीआरई के सृजन या अधिग्रहण से प्रत्यक्षत: संबद्ध न हो, लेकिन चुकौती सीआरई से उत्पन्न होने वाले नकदी प्रवाह से आएगी। उदाहरण के लिए, मौजूदा वाणिज्यिक स्थावर संपदा की जमानत पर लिए गए ऋण, जिनकी चुकौती मुख्यतया स्थावर संपदा के किराये/विक्रय राशि पर निर्भर करती है, सीआरई के रूप में वर्गीकृत किये जाने चाहिए। अन्य ऐसे मामले हैं : वाणिज्यिक स्थावर संपदा गतिविधियों में संलग्न कंपनियों की ओर से गारंटी देना, स्थावर संपदा कंपनियों के साथ किए गए डेरिवेटिव लेनदेनों के कारण एक्सपोज़र, स्थावर संपदा कंपनियों को दिए गए कार्पोरेट ऋण तथा स्थावर संपदा कंपनियों की ईक्विटी और ऋण लिखतों में निवेश।

2.भारतीय रिज़र्व बैंक का दृष्टिकोण

2.1 वाणिज्यिक स्थावर संपदा एक्सपोज़र की परिभाषा बासल II परिभाषा के अत्यंत समरूप है तथा उपर्युक्त पैरा 1.2 से 1.3 के अनुसार होगी। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि चुकौती प्राथमिक रूप से अन्य घटकों पर, उदाहरण के लिए कारोबार परिचालनों से होनेवाले परिचालन लाभ, माल और सेवाओं की गुणवत्ता, पर्यटकों के आगमन आदि पर निर्भर करे तो एक्सपोज़र को वाणिज्यिक स्थावर संपदा एक्सपोज़र नहीं माना जाएगा।

2.2 जहाँ तक भूमि अधिग्रहण के लिए बैंकों द्वारा वित्तपोषण का संबंध है, मौजूदा अनुदेश आवास वित्त पर 1 जुलाई 2009 के हमारे मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. डीआइआर (आवास) बीसी. 08/08.12.01/2009-10 में दिए गए हैं। इस परिपत्र के अनुसार बैंक निजी भवन निर्माताओं को तो नहीं, परंतु सरकारी एजेंसियों को भूमि के अधिग्रहण और विकास के लिए वित्तपोषण कर सकते हैं, बशर्ते ये ऐसी पूर्ण परियोजना के अंग हों, जिनमें जल प्रणाली, जल-निकासी, सड़क, बिजली आदि की व्यवस्था शामिल हो। उपर्युक्त परिपत्र के अनुसार जहाँ भूमि का अधिग्रहण और विकास राज्य आवास बोर्डों और अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा किया गया हो, वहाँ बैंक प्रत्येक निर्दिष्ट परियोजना के लिए निजी भवन निर्माताओं को वाणिज्यिक शर्तों पर ऋण दे सकते हैं। तथापि, बैंकों को किसी आवास परियोजना के अंग के रूप में भी भूमि अधिग्रहण के लिए निजी भवन निर्माताओं को निधि आधारित या गैर निधि आधारित सुविधा प्रदान करने की अनुमति नहीं दी गयी है।

भूखंड की खरीद के लिए व्यक्तियों को भी बैंक वित्त मंजूर किया जा सकता है, बशर्ते उधारकर्ता से यह घोषणा प्राप्त की गयी हो कि वह उक्त भूखंड पर उस अवधि के भीतर मकान बनाएगा जिसे स्वयं बैंक ने निर्धारित किया हो।

2.3 जिन सीआरई एक्सपोज़रों को ऋण जोखिम कम करनेवाले पात्र तत्वों द्वारा संपार्श्विकीकृत किया गया हो उन्हें पूंजी पर्याप्तता और बाज़ार अनुशासन - नये पूंजी पर्याप्तता ढाँचे के कार्यान्वयन पर 1 जुलाई 2009 के मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 21/21.06.001/2009-10 के पैरा 7.3.4 के प्रावधानों के अनुसार संपार्श्विक के जोखिम कम करनेवाले प्रभाव की सीमा तक घटाया जाएगा। सीआरई एक्सपोज़र जिस सीमा तक वाणिज्यिक स्थावर संपदा की जमानत से सुरक्षित है, उस सीमा तक 100 प्रतिशत का जोखिम भार लगेगा। ऐसे मामलों में जहाँ सीआरई एक्सपोज़र का कोई अंश वाणिज्यिक स्थावर संपदा की जमानत से सुरक्षित नहीं किया गया है, वहाँ उक्त अंश पर सीआरई एक्सपोज़र पर लगनेवाला जोखिम भार या उधारकर्ता के बाह्य श्रेणी निर्धारण (रेटिंग) के अनुसार जोखिम भार, इनमें जो भी उच्चतर हो लागू होगा।

3. सीआरई का अन्य विनियामक संवर्गों में साथ-साथ वर्गीकरण

यह संभव है कि कोई एक्सपोज़र एक साथ एक से अधिक संवर्गों में वर्गीकृत हो, क्योंकि विभिन्न वर्गीकरणों के विभिन्न कारण हैं। इन मामलों में उन सभी संवर्गों के लिए जिनमें एक्सपोज़र वर्गीकृत किया गया है, भारतीय रिज़र्व बैंक या स्वयं बैंक द्वारा निर्धारित विनियामक/विवेकपूर्ण एक्सपोज़र सीमा के लिए एक्सपोज़र को गणना में शामिल किया जाएगा। पूंजी पर्याप्तता के प्रयोजन से सभी संवर्गों में से जिस संवर्ग में सब से अधिक जोखिम  भार लागू है, वही एक्सपोज़र पर लागू होगा। इस दृष्टिकोण के पीछे तर्क यह है कि यद्यपि कभी-कभी कतिपय वर्गीकरण /संवर्गीकरण सामाजिक /आर्थिक कारणों से प्रेरित हो सकते हैं और उनका उद्देश्य कतिपय गतिविधियों की ओर ऋण प्रवाह को प्रोत्साहित करना हो सकता है, तथापि, इन एक्सपोज़रों पर समुचित जोखिम प्रबंधन/विवेकपूर्ण/पूंजी पर्याप्तता मानदंड लागू किया जाना चाहिए ताकि उनमें निहित जोखिम का ध्यान रखा जा सके। इसी प्रकार, यदि कोई एक्सपोज़र एक से अधिक जोखिम घटक के प्रति संवेदनशील है तो उसपर सभी प्रासंगिक जोखिम घटकों पर लागू जोखिम प्रबंधन ढाँचे को लागू किया जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए ऋण और अग्रिम - सांविधिक और अन्य प्रतिबंध पर 1 जुलाई 2009 के मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 13/13.03.00/2009-10 ढग़ख्र्ड्रख्र् 2.3.7.3(vi)लल के अनुसार विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) को दिए जाने वाले ऋण को ‘संरचनात्मक ऋण’ के रूप में वर्गीकरण के लिए पात्र संवर्ग के रूप में परिभाषित किया गया है। इस परिपत्र में निहित ‘संरचनात्मक ऋण’ की विस्तृत परिभाषा परिशिष्ट I में दी गयी है। चूंकि ऊपर वर्णित दृष्टिकोण के अनुसार एसईजेड के मामले में कुछ प्रकार के एक्सपोज़रों में (कृपया परिशिष्ट 2 के भाग क की मद सं. 4 देखें) सीआरई एक्सपाज़र की विशेषताएँ होंगी, ये एक्सपोज़र एक साथ सीआरई एक्सपोज़र और ‘संरचनात्मक ऋण’ के रूप में वर्गीकृत होंगे। ऐसे मामलों में सीआरई एक्सपोज़र के लिए लागू जोखिम भार लगेगा, न कि उधारकर्ता की रेटिंग से संबद्ध जोखिम भार । तथापि, भारतीय रिज़र्व बैंक के विद्यमान दिशानिर्देशों के अनुसार एक्सपाज़र ‘संरचनात्मक ऋण’ को उपलब्ध सभी विनियामक रियायतों का पात्र होगा।  

इसी प्रकार, किसी स्थावर संपदा कंपनी की ईक्विटी में निवेश या स्थावर संपदा कंपनियों की ईक्विटी में निवेश करने वाले म्यूचुअल पंड /जोखिम पूंजी निधि/ निजी ईक्विटी निधि में निवेश स्थावर संपदा की कीमतों में घट-बढ़ के प्रति संवेदनशील होगा और सामान्य ईक्विटी बाजार से सहसंबद्ध होगा। अत:, इन निवेशों को ’पूंजी बाजार एक्सपोज़र’ (भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित विनियामक सीमा के अनुपालन के प्रयोजन से) और भारतीय रिज़र्व बैंक के विद्यमान दिशानिर्देशों के अनुसार स्वयं बैंक द्वारा निर्धारित ’स्थावर संपदा एक्सपोज़र’ की आंतरिक सीमा के लिए गणना में शामिल किया जाएगा। वर्तमान में, ऐसे एक्सपोज़रों पर संबंधित मामले के अनुसार 125% (ईक्विटी एक्सपोज़र पर लागू) /150% (जोखिम पूंजी निधि पर लागू) का जोखिम भार लगेगा, क्योंकि ये जोखिम भार सीआरई पर लागू 100% के जोखिम भार से उच्चतर हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक को एक्सपोज़र की सूचना दोनों वर्गीकरणों के तहत भेजी जानी चाहिए तथा साथ में समुचित पाद टिप्पणी दी जानी चाहिए, ताकि दो बार गिनती न हो। बैंक इन सिद्धांतों के आधार पर सीआरई एक्सपोज़र से जुड़े दोहरे वर्गीकरण के अन्य मामलों में निर्णय ले सकते हैं।

4. कोई एक्सपोज़र सीआरई के रूप में वर्गीकृत किया जाए अथवा नहीं - यह निर्धारित करने में बैंकों को सहायता देने के लिए, ऊपर वर्णित सिद्धांतों के आधार पर कुछ उदाहरण परिशिष्ट 2 में दिये गये हैं। उपर्युक्त सिद्धांतों और परिशिष्ट 2 में दिए गए उदाहरणों के आधार पर बैंकों को निर्धारित करना चाहिए कि परिशिष्ट 2 में शामिल नहीं किया गया एक्सपोज़र सीआरई है अथवा नहीं तथा वर्गीकरण का औचित्य सिद्ध करते हुए एक तर्क संगत टिप्पणी दर्ज करनी चाहिए। यदि इस प्रकार का निर्धारण करने में बैंकों को कठिनाई हो तो पूरे ब्यौर के साथ बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग को सूचित करना चाहिए।

5. ये दिशानिर्देश एक्सपोज़रों के सीआरई एक्सपोज़र के रूप में वर्गीकरण से संबंधित भारतीय रिज़र्व बैंक के सभी पिछले परिपत्रों के दिशानिर्देशों का अधिक्रमण करते हैं। 29 जून 2005 के डीबीएस परिपत्र में निहित अन्य अनुदेशों सहित स्थावर संपदा एक्सपोज़र के अन्य पहलुओं पर लागू विनियामक अनुदेश अपरिवर्तित रहेंगे।


परिशिष्ट 1

‘संरचनात्मक ऋण’ की परिभाषा

ऋणदाताओं (अर्थात् बैंक, वित्तीय संस्थाओं या गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) द्वारा नीचे विनिर्दिष्ट किसी संरचनात्मक सुविधा के लिए किसी भी रूप में दी गयी ऋण सुविधा ‘संरचनात्मक ऋण’ की परिभाषा के अंतर्गत आएगी । दूसरे शब्दों में, निम्नलिखित कार्यों में लगी उधारकर्ता कंपनी को दी गयी ऋण सुविधा -

  • परिचालन और रख-रखाव करना अथवा
  • विकसित, परिचालन और रख-रखाव करना
  • ऐसी संरचनात्मक सुविधा जो निम्नलिखित क्षेत्रों में से किसी क्षेत्र में परियोजना के रूप में हो या इसी प्रकार की कोई अन्य संरचनात्मक सुविधा को विकसित करना अथवा

i. टॉल सड़क सहित सड़क, पुल या रेल व्यवस्था;
ii. राजमार्ग परियोजना जिसमें राजमार्ग परियोजना के अभिन्न अंग के रूप में अन्य गतिविधियां शामिल हैं;
iii. बंदरगाह, हवाई अड्डा, अंतर्देशीय जलपथ अथवा अंतर्देशीय बंदरगाह;
iv. जल आपूर्ति परियोजना, सिंचाई परियोजना, जल शोधन प्रणाली, स्वच्छता और मल निकासी प्रणाली अथवा मल प्रबंध प्रणाली;
v. दूर संचार सेवाएं चाहे वे बुनियादी हों या सेलुलर हों, जिनमें रेडियो पेजिंग, देशी उपग्रह सेवा (अर्थात् दूरसंचार सेवा देने के लिए भारतीय कंपनी द्वारा स्वाधिकृत और परिचालित उपग्रह), ट्रंकिंग नेटवर्क, ब्राडबैंड नेटवर्क और इंटरनेट सेवाएं शामिल हैं ;
vi. औद्योगिक पार्क या विशेष आर्थिक क्षेत्र;
vii. बिजली उत्पादन या उत्पादन और वितरण;
viii. नयी संचरण या वितरण लाइनों का नेटवर्क स्थापित कर बिजली का संचरण या वितरण;
ix. कृषि-प्रसंस्करण और कृषि की निविष्टि की आपूर्ति से संबंधित परियोजनाओं से जुड़े निर्माण कार्य;
x. प्रसंस्कृत कृषि उत्पाद, शीघ्र नष्ट होने योग्य माल यथा फल, सब्जी और फूलों के संरक्षण और भंडारण तथा उनकी गुणवत्ता की परीक्षण सुविधाओं से जुड़े निर्माण कार्य;
xi. शैक्षिक संस्थाओं और अस्पतालों का निर्माण;
xii. गैस, कच्चा तेल और पेट्रोलियम पाइप-लाइन लगाना और उनका रख-रखाव;
xiii. इसी प्रकार की अन्य संरचनात्मक सुविधा।


परिशिष्ट 2

उदाहरण

क. एक्सपोज़र, जिन्हें सीआरई के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए

1. भवन निर्माताओं को किसी ऐसी संपत्ति के निर्माण के लिए दिया गया ऋण जिसे बेचा जाएगा या पट्टे पर दिया जाएगा (अर्थात् आवासीय मकानों, होटलों, रेस्तराँ, जिमनाजियम, अस्पताल, कोंडोमिनियम, शॉपिंग माल, ऑफिस ब्लॉक, नाट्यगृह, मनोरंजन पार्क, कोल्ड स्टोरेज, गोदाम, शिक्षा संस्थान, औद्योगिक पार्क)।

ऐसे मामलों में सामान्यतया चुकौती का स्रोत संपत्ति की बिक्री/पट्टा किराया से होनेवाला नकदी प्रवाह होगा। ऋण में चूक की स्थिति में यदि एक्सपोजर उन आस्तियों की जमानत द्वारा सुरक्षित किया गया है, जैसा कि सामान्यत: होगा, तो वसूली उक्त संपत्ति की बिक्री द्वारा भी की जाएगी।

2. किराये पर दिये जानेवाले बहुल मकानों के लिए ऋण

ऐसे आवासीय ऋण, जिनमें आवास किराये पर दिये जाते हैं, पर अलग कार्रवाई की आवश्यकता है। बासल II ढांचे के अनुसार ऐसे ऋण जिनकी जमानत एकल या कम संख्या वाले कोंडोमिनियम या एकल मकान या कंप्लेक्स में आनेवाली सहकारी आवासीय इकाइयों द्वारा दी गयी हो, आवासीय बंधक संवर्ग की व्याप्ति के भीतर आएंगे तथा राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को प्रति एक्सपोज़र आवासीय इकाइयों की अधिकतम संख्या के संबंध में सीमा निर्धारित करनी चाहिए। अत: यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे ऋणों को सीआरई एक्सपोज़र के रूप में ही वर्गीकृत किया जाए । तथापि, यदि ऐसी इकाइयों की संख्या दो से अधिक हो तो तीसरी इकाई से एक्सपोज़र को सीआरई एक्सपोज़र माना जाना चाहिए, क्योंकि उधारकर्ता इन आवासीय इकाइयों को किराये पर दे सकता है तथा किराया आय ही चुकौती का प्राथमिक स्रोत होगी।

3. समन्वित टाउनशिप योजनाओं के लिए ऋण

जहां सीआरई किसी ऐसी बड़ी परियोजना का अंग हो, जिसमें छोटा गैर-सीआरई घटक हो, तो ऐसे एक्सपोज़र को सीआरई एक्सपोज़र के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा, क्योंकि ऐसे एक्सपोज़रों की चुकौती का प्रमुख स्रोत बिक्री के प्रयोजन से बने मकानों की विक्रय राशि होगा।

4. एसईजेड के विकास के लिए एक्सपोज़र

जैसा कि इस परिपत्र के पैरा 2.2 में कहा गया है मौजूदा अनुदेशों के अनुसार एसईजेड की स्थापना के लिए निजी विकासकर्ताओं को भूमि अधिग्रहण के लिए बैंक वित्तपोषण की अनुमति नहीं है। बैंक भूमि विकास के लिए वित्तपोषण कर सकते हैं, जो सीआरई के रूप में वर्गीकृत होगा, क्योंकि चुकौती विकसित भूखंड /शेड के पट्टा किराये से की जाएगी।

तथापि निम्नलिखित को ध्यान में रखा जाए :

  • जिन मामलों में ऐसे पट्टा करारों के माध्यम से, जिनकी अवधि ऋण की अवधि से कम न हो, पट्टा किराया को स्थावर संपदा कीमतों की अस्थिरता से असंबद्ध किया गया हो तथा करार में ऐसी कोई शर्त न हो जो पट्टा किराया को घटाने की अनुमति देती हो, तो ऐसी शर्तों को पूरा करने के समय से ऐसे मामलों को सीआरई नहीं माना जाना चाहिए।
  • बैंकों को लेनदेन के मूल अर्थ पर ध्यान देना चाहिए न कि उसके बाह्य स्वरूप पर । उदाहरण के लिए, यह संभव है कि कोई एक कंपनी पूर्णतया या मुख्यतया अपने उपयोग के लिए एसईजेड विकसित करे । ऐसे मामलों में चुकौती एसईजेड स्थित इकाइयों की आर्थिक गतिविधियों और कंपनी के सामान्य नकदी प्रवाह पर निर्भर करेगी, न कि स्थावर संपदा की कीमतों के स्तर पर । इस स्थिति में एक्सपोज़र को सीआरई के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए ।
  • इसी प्रकार किसी एसईज़ेड में सह-विकासकर्ता हो सकते हैं जो मल-निकासी, बिजली की लाइनें आदि के प्रावधान जैसे निर्दिष्ट कार्य कर रहे हों । यदि उनकी चुकौती सीआरई आस्ति से होनेवाले नकदी प्रवाह पर निर्भर न हो तो उस प्रकार के एक्सपोज़र को सीआरई एक्सपोज़र नहीं माना जा सकता। ऐसी स्थिति तब होगी जब सह-विकासकर्ता को मुख्य विकासकर्ता से कार्य में प्रगति के आधार पर भुगतान मिलता हो ।

5. स्थावर संपदा कंपनियों के प्रति एक्सपोज़र

कुछ मामलों में स्थावर संपदा कंपनियों के प्रति एक्सपोज़र प्रत्यक्षत: सीआरई के सृजन या अधिग्रहण से जुड़े नहीं हैं, लेकिन चुकौती वाणिज्यिक स्थावर संपदा से होनेवाले नकदी प्रवाह से होगी। ऐसे एक्सपोज़रों के उदाहरण निम्नलिखित हो सकते हैं :

  • इन कंपनियों को दिये गये कार्पोरेट ऋण
  • इन कंपनियों की ईक्विटी/यूनिट/ऋण लिखतों में किया गया निवेश
  • इन कंपनियों की ओर से गारंटी देना
  • इन कंपनियों के साथ डेरिवेटिव लेनदेन करना

6. मुख्यतया स्थावर संपदा कंपनियों में निवेश करनेवाले म्यूचुअल फंडों/
जोखिम पूंजी निधियों/निजी ईक्विटी निधियों में एक्सपोज़र

मुख्यतया स्थावर संपदा कंपनियों में निवेश करनेवाले म्यूचुअल फंडों/जोखिम पूंजी निधियों/निजी ईक्विटी निधियों में एक्सपोज़र सीआरई एक्सपोज़र के रूप में वर्गीकृत किये जाएंगे क्योंकि चुकौती वाणिज्यिक स्थावर संपदा से होनेवाले नकदी प्रवाह से होगी, हालांकि ये एक्सपोज़र सीआरई के सृजन या अधिग्रहण से प्रत्यक्षत: नहीं जुड़े हैं ।

7. सामान्य प्रयोजन ऋण जहां चुकौती स्थावर संपदा कीमतों पर निर्भर हो

ऐसे एक्सपोज़र जिनकी चुकौती उधारकर्ता के मौजूदा वाणिज्यिक स्थावर संपदा से होनेवाले किराये/विक्रय राशि से की जाएगी, जहां वित्तपोषण सामान्य प्रयोजन के लिए किया गया हो ।

ख. ऐसे एक्सपोज़र जिन्हें सीआरई एक्सपोज़र के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाए

1. कारोबारी गतिविधियों के प्रयोजन से स्थावर संपदा का अधिग्रहण करने के लिए उद्यमियों को दिये गये ऋण, जिनकी चुकौती उनकी कारोबारी गतिविधियों से होनेवाले नकदी प्रवाह से की जाएगी । ऐसे एक्सपोज़र की जमानत सामान्यत: उस स्थावर संपदा से दी जा सकती है, जहां कारोबारी गतिविधि की जा रही हो अथवा ऐसे एक्सपोज़र गैर-जमानती भी हो सकते हैं।

क)  सिनेमा थियेटर के निर्माण, मनोरंजन पार्क की स्थापना, होटल और अस्पताल, कोल्ड स्टोरेज, शैक्षिक संस्थाएं, हेयर कटिंग सैलून और ब्यूटी पार्लर चलाने, जिमनासियम आदि के लिए ऐसे उद्यमियों को दिए गए ऋण, जो इन उद्यमों को स्वयं चलाएंगे, इस संवर्ग के अंतर्गत आएंगे । ऐसे ऋणों को सामान्यत: इन संपत्तियों की जमानत मिली होगी।

उदाहरण के लिए, होटल और अस्पताल के मामले में सामान्यतया चुकौती का स्रोत होटल और अस्पताल द्वारा दी गयी सेवाओं से होनेवाला नकदी प्रवाह होगा । होटल के मामले में नकदी प्रवाह मुख्यतया पर्यटकों के आगमन को प्रभावित करनेवाले घटकों के प्रति संवेदनशील होगा, न कि स्थावर संपदा की कीमतों में घट-बढ़ से प्रत्यक्षत: जुड़ा होगा। अस्पताल के मामले में नकदी प्रवाह सामान्यतया अस्पताल के चिकित्सकों और अन्य निदानात्मक सेवाओं की गुणवत्ता के प्रति संवेदनशील होगा। इन मामलों में चुकौती का स्रोत कुछ हद तक स्थावर संपदा की कीमतों पर भी निर्भर होगा, जहां तक कीमतों की घट-बढ़ कमरे के किराये को प्रभावित करती है, परंतु समग्र नकदी प्रवाह निर्धारित करने में यह एक छोटा घटक होगा । तथापि, इन मामलों में चूक की स्थिति में यदि एक्सपोज़र के लिए वाणिज्यिक स्थावर संपदा की जमानत ली गयी है तो वसूली होटल/अस्पताल के विक्रय मूल्य और उपकरण व उपस्कर के रख-रखाव और गुणवत्ता पर निर्भर करेगी।

उपर्युक्त सिद्धांत उन मामलों पर भी लागू होगा जहां स्थावर संपदा आस्तियों (होटल, अस्पताल, गोदाम आदि ) के मालिकों /विकासकर्ताओं ने आय विभाजन या लाभ विभाजन के आधार पर आस्तियों को पट्टे पर दिया हो तथा एक्सपोज़र की चुकौती नियत पट्टा किराया के बजाय दी गयी सेवाओं से उत्पन्न नकदी प्रवाह पर निर्भर करती हो।

ख) औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए उद्यमियों को दिये गये ऋण भी इसी संवर्ग के अंतर्गत आएंगे । इन मामलों में चुकौती औद्योगिक इकाई द्वारा उत्पादित सामग्री की बिक्री से होनेवाले नकदी प्रवाह से होगी, जो मुख्यतया मांग और आपूर्ति के घटकों से प्रभावित होगी । चूक की स्थिति में वसूली अंशत: भूमि और भवन की बिक्री पर निर्भर करेगी, बशर्ते इन आस्तियों की जमानत मिली हो । अत: इन मामलों में देखा जा सकता है कि स्थावर संपदा की कीमतें चुकौती को प्रभावित नहीं करतीं, हालांकि ऋण की वसूली अंशत: स्थावर संपदा की बिक्री से हो सकती है ।

2. स्थावर संपदा गतिविधि से असंबद्ध किसी निर्दिष्ट प्रयोजन के लिए ऐसी कंपनी को ऋण देना जो स्थावर संपदा गतिविधि सहित मिश्रित गतिविधियों में लगी हो

किसी कंपनी के दो प्रभाग हैं । एक प्रभाग स्थावर संपदा गतिविधि में लगा है तो दूसरा ऊर्जा उत्पादन में । ऐसी कंपनी को पावर संयंत्र स्थापित करने के लिए दिया गया संरचनात्मक ऋण, जिसकी चुकौती बिजली की बिक्री से की जाएगी, सीआरई के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा । इस एक्सपोज़र को संयंत्र और मशीनरी की जमानत मिल भी सकती है और नहीं भी मिल सकती है ।

3. भावी प्राप्य किराये की जमानत पर ऋण

कुछ बैंकों ने ऐसी योजनाएं बनायी हैं जिनमें शॉपिंग माल, कार्यालय परिसर जैसे विद्यमान स्थावर संपदा के स्वामियों को वित्तपोषित किया गया है, जिनकी चुकौती इन संपत्तियों द्वारा अर्जित किये जानेवाले किराये से होगी । यद्यपि ऐसे एक्सपोज़र से वाणिज्यिक स्थावर संपदा का निधीयन/अधिग्रहण नहीं हो रहा है, तथापि चुकौती स्थावर संपदा के किराये में गिरावट से प्रभावित हो सकती है और इसलिए सामान्यतया ऐसे एक्सपोज़रों को सीआरई के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। तथापि, यदि कोई सुरक्षा प्रदान करने वाली ऐसी शर्त हो जिससे चुकौती स्थावर संपदा कीमतों की अस्थिरता से असंबद्ध हो जाए - उदाहरण के लिए, पट्टाकर्ता और पट्टेदार के बीच हुए पट्टा किराया करार में एक लॉक-इन अवधि हो जो ऋण की अवधि से कम न हो तथा ऋण की अवधि के दौरान किराये को घटाने की अनुमति देने वाली कोई शर्त न हो तो बैंक ऐसे एक्सपोज़रों को गैर-सीआरई एक्सपोज़र के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं।

4. ठेकेदारों के रूप में काम करनेवाली निर्माण कंपनियों को दी गयी ऋण सुविधा

भवन निर्माता के रूप में नहीं, अपितु ठेकेदारों के रूप में कार्यरत निर्माण कंपनियों को दी गयी कार्यशील पूंजी सुविधा सीआरई एक्सपोज़र नहीं मानी जाएगी, क्योंकि चुकौती कार्य पूरा करने में हुई प्रगति के अनुसार प्राप्त संविदात्मक भुगतानों पर निर्भर करेगी ।

5. स्वाधिकृत कार्यालय/ कंपनी परिसरों के अधिग्रहण/नवीकरण का वित्तपोषण

ऐसे एक्सपोज़रों को सीआरई एक्सपोज़र नहीं माना जाएगा क्योंकि चुकौती कंपनी आय से आयेगी ।

6. एसईजेड की इकाइयों/औद्योगिक इकाइयों के अधिग्रहण के लिए एक्सपोज़र

(क) हमारे 20 सितंबर 2006 के परिपत्र सं. बैंपविवि. बीपी. बीसी. 30/ 21.01.002/ 2006-07 में ऐसे ऋणों को सीआरई की परिभाषा में विशेष रूप से शामिल किया गया था ताकि इन इकाइयों के संबंध में सट्टेबाजी कारोबार को रोका जाए । तथापि, चूंकि ऐसी इकाइयों के अंतरण पर प्रतिबंध है तथा सरकारी अनुमति आवश्यक है अत: इन इकाइयों की बिक्री और पुन: बिक्री में सट्टेबाजी होने की संभावना कम है । अत: ये मामले औद्योगिक इकाइयों या परियोजनाओं के वित्तपोषण जैसे ही होने चाहिए और यदि ऐसी स्थिति है तो इन्हें सीआरई एक्सपोज़र नहीं माना जाना चाहिए ।

(ख)  संयंत्र और मशीनरी की खरीद तथा कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं के लिए औद्योगिक इकाइयों के प्रति एक्सपोज़र को सीआरई एक्सपोज़र न माना जाए ।

7. आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) को अग्रिम

ऐसी आवास वित्त कंपनियों को दिए गए बैंक ऋण को सीआरई एक्सपोज़र नहीं माना जाएगा, जो मुख्यतया राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार आवासीय भवनों के निर्माण के लिए व्यक्तियों को ऋण देती हैं तथा एनएचबी से पुनर्वित्त पाने के लिए पात्रता मानदंडों को पूरा करती हैं।

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