मुख्य कार्यपालक अधिकारी/पूर्णकालिक निदेशकों के प्रतिफल के संबंध में दिशानिर्देश – बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 20 के अंतर्गत प्रतिबंध – निदेशकों को ऋण - आरबीआई - Reserve Bank of India
मुख्य कार्यपालक अधिकारी/पूर्णकालिक निदेशकों के प्रतिफल के संबंध में दिशानिर्देश – बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 20 के अंतर्गत प्रतिबंध – निदेशकों को ऋण
भा.रि.बैंक/2015-16/178 16 सितंबर 2015 सभी वाणिज्यिक बैंक महोदय/महोदया, मुख्य कार्यपालक अधिकारी/पूर्णकालिक निदेशकों के प्रतिफल बैंककारी विनियमन अधिनियम,1949 (बी आर एक्ट, 1949) की धारा 20 बैंकों को अपने किसी निदेशक को ऋण या अग्रिम देने से मना करती है। तथापि, बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 20 की उप-धारा (4) के अंतर्गत स्पष्टीकरण के उपखण्ड (ए) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए तथा उसमें व्यक्त विचारों को देखते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक ने विनिर्दिष्ट किया है कि उक्त धारा के प्रयोजनों के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी / पूर्णकालिक निदेशकों को प्रदान किए गए निम्नलिखित ऋणों / अग्रिमों को “ऋण और अग्रिम” नहीं माना जाएगा :
मौजूद नीतिगत दिशानिर्देशों के अनुसार बैंकों के लिए, ऋण के उन मामलों को छोड़कर जिसमें ऐसे किसी निदेशक को ऋण प्रदान किया गया हो जो निदेशक के रूप में अपनी नियुक्ति के ठीक पहले बैंक का कर्मचारी था, ऊपर उल्लिखित ऋणों और अग्रिमों पर बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा 20 लागू होने से छूट प्रदान करते हुए, निदेशकों को ऋण देते समय भारतीय रिजर्व बैंक का पूर्वानुमोदन प्राप्त करना आवश्यक था। 2. मौजूद प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और हर मामले में भारतीय रिजर्व बैंक से अनुमोदन लेने के आवश्यकता को समाप्त करने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि बैंक कारी 1949 की धारा 35 बी के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक के पास निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए, वाणिज्यिक बैंक निम्नलिखित शर्तों के अधीन, भारतीय रिजर्व बैंक की पूर्वानुमति के बगैर ही, मुख्य कार्यपालक अधिकारियों / पूर्णकालिक निदेशकों को ऋण तथा अग्रिम प्रदान कर सकते हैं : क) ऋणों और अग्रिमों को उस प्रतिफल / पारिश्रमिक नीति का भाग होगा जिसे निदेशक बोर्ड, या उस बोर्ड की समिति, जिसे शक्तियाँ प्रत्यायोजित की गई हैं या नियुक्ति समिति, जैसा भी मामला हो, द्वारा अनुमोदन दिया गया हो। ख) ऐसे ऋणों पर लगाए गए ब्याज पर आधार दर से संबंधित दिशानिर्देश लागू नहीं होंगे। तथापि, ऐसे ऋणों पर लगायी गयी ब्याज दर उस ब्याज दर से कम नहीं हो सकती है, जो बैंक के स्वयं के कर्मचारियों के ऋणों पर लगाई जाती है। 3. मुख्य कार्यपालक अधिकारी / पूर्णकालिक निदेशकों को प्रदान किए गए पहले के ऋणों जो अभी बकाया हों, की शर्तों की बैंक के विवेक पर उपर्युक्त दिशानिर्देशों के मद्देनजर समीक्षा की जा सकती है ताकि नई व्यवस्था अपनाने में आने वाली समस्याओं का समाधान किया जा सके। 4. बैंक नोट करें कि, बैंककारी विनियम अधिनियम 1949 कि धारा 20 के अंतर्गत प्रतिबंधों के मद्देनजर, इस परिपत्र के पैरा 1 में उल्लिखित ऋणों के प्रकार के अलावा, निदेशकों को कोई अन्य ऋण मंजूर नहीं किया जा सकता है। 5. उपर्युक्त के मद्देनजर 10 अगस्त 1972 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एलईजी.बीसी.71/सी.235-72, दिनांक 24 अक्तूबर 1974 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एलईजी.बीसी.108/सी.235 सी-74, 25 जुलाई 1978 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एलईजी.बीसी.96/सी.235.सी-78, 15 फरवरी 1999 के परिपत्र बैंपविवि.सं.बीसी.11/08.95.005/98-99, 1 अप्रैल 1999 के परिपत्र बैंपविवि.सं.बीसी .26/08.95.005/99 तथा 20 अप्रैल 2006 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एलईजी बीसी.81/09.11.013/2005-06 का अधिक्रमण किया गया । भवदीया, (लिलि वडेरा) |