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ऋणदाताओं के लिए उचित प्रथा संहिता संबंधी दिशा-निर्देश

ऋणदाताओं के लिए उचित प्रथा संहिता संबंधी दिशा-निर्देश

संदर्भ : बैंपविवि.सं. बीसी. 104 /09.07.007/2002-03

05 मई 2003
15 वैशाख 1925(शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक /
अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर)

प्रिय महोदय,

ऋणदाताओं के लिए उचित प्रथा संहिता संबंधी दिशा-निर्देश

भारत सरकार द्वारा गठित ऋणदाता दायित्व विधि (Lenders Liability Laws) संबंधी कार्य-दल की सिफारिशों के आधार पर हमने ऋणदाताओं के लिए उचित प्रथा संहिता (Lenders' Fair Practice Code) लागू करने की संभावना की जांच भारत सरकार, चुने हुए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के परामर्श से की है । इस बीच दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप दे दिया गया है और सभी बैंकों /अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं को सूचित किया जाता है कि वे निम्नलिखित स्थूल दिशा-निर्देश अपनायें तथा अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से उचित प्रथा संहिता तैयार करें ।

2. दिशा-निर्देश

(i) ऋण के लिए आवेदन पत्र और उनकी जांच

(क) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को 2.00 लाख रुपये तक के अग्रिमों के संबंध में ऋण आवेदन के फार्म व्यापक होने चाहिए । इसमें शुल्क / प्रभार, यदि कोई हो, आवेदन पत्र स्वीकार न होने की स्थिति में ऐसे शुल्क की वापस की जा सकने वाली राशि, पूर्व भुगतान के विकल्प तथा ऋणकर्ता के हित को प्रभावित करने वाले किसी अन्य मामले के संबंध में जानकारी होनी चाहिए, ताकि अन्य बैंकों के साथ सार्थक तुलना की जा सवे और ऋणकर्ता सोच समझकर निर्णय ले सके ।

(ख) बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को चाहिए कि वे ऋण आवेदनपत्र की पावती देने की प्रणाली तैयार करें । इस तरह की पावती में यह भी जानकारी होनी चाहिए कि 2 लाख रुपये तक के आवेदनपत्रों का निपटान कब तक कर दिया जायेगा ।

(ग) बैंकों / वित्तीय संस्थाओं को ऋण आवेदनपत्रों का सत्यापन उचित समय में कर लेना चाहिए । यदि कोई अतिरिक्त ब्यौरे / दस्तावेज चाहिए हों तो उसकी जानकारी ऋणकर्ता को तुरंत दी जानी चाहिए ।

(घ) दो लाख रुपये तक का ऋण मांगने वाले छोटे ऋणकर्ताओं के मामले में ऋणदाता को चाहिए कि वह निर्धारित समय में लिखित रूप में बताये कि उचित विचार के बाद किन-किन मुख्य कारणों से बैंक की राय में ऋण आवेदनपत्र अस्वीकार किया गया है ।

(ii) ऋण मूल्यांकन और नियम / शतेर्ं

(क) ऋणदाता यह यह सुनिश्चित करे कि ऋणकर्ता के ऋण आवेदनपत्र का उचित मूल्यांकन किया गया हैे । उन्हें मार्जिन और जमानत की शर्त को ऋणकर्ता की ऋणपात्रता के बारे में उचित अध्यवसाय के प्रतिस्थापन के रूप में नहीं लेना चाहिए ।

(ख) ऋणदाता को चाहिए कि वह ऋण-सीमा की जानकारी नियमों और शर्तों के साथ ऋणकर्ता को दे और इन नियमों और शर्तों को ऋणकर्ता की पूर्ण जानकारी में रिकॉड़ में रखे ।

(ग) ऋण देने वाली संस्थाओं और ऋणकर्ता द्वारा बातचीत के बाद बैंकों / वित्तीय संस्थाओं द्वारा दी जानेवाली ऋण सुविधाओं को शासित करने वाले नियम और शर्तें तथा अन्य आपत्ति सूचनाएं लिखित रूप में रखी जानी चाहिए और प्राधिकृत अधिकारी द्वारा उन्हें विधिवत् प्रमाणित किया जाना चाहिए । ऋण करार और ऋण करार में उल्लिखित सभी अनुलग्नकों की एक-एक प्रति ऋणकर्ता को दी जानी चाहिए ।

(घ) जहां तक हो सके ऋण करार में ऐसी ऋण सुविधाओं को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया जाना चाहिए जो पूरी तरह ऋणदाताओं के विवेक पर हैं । इनमें सुविधाओं का अनुमोदन या अनुमति न देना शामिल हो सकता है, जैसे मंजूर की गयी सीमाओं से अधिक आहरण, ऋण मंजूरी में विशेष रूप से सहमत प्रयोजन से भिन्न प्रयोजन के लिए चेक का भुगतान तथा उसके अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकरण या मंजूरी की शर्तों का अनुपालन न किये जाने के कारण ऋण खाते से आहरण की अनुमति न देना । यह भी स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए कि कारोबार में वृद्धि के कारण ऋणकर्ताओं की और अपेक्षाओं को ऋण सीमाओं की उपयुक्त समीक्षा के बिना पूरा करने का ऋणदाता का कोई दायित्व नहीं है ।

(ङ) सहायता संघीय व्यवस्था के अंतर्गत ऋण दिये जाने के मामले में, सहभागी ऋणदाताओं को ऐसी क्रियाविधि शुरू करनी चाहिए, जिससे कि प्रस्तावों का मूल्यांकन यथासंभव समयबद्ध रूप में पूरा किया जा सके तथा वित्त देने या न देने के संबंध में अपने निर्णय की सूचना उचित समय में दे देनी चाहिए ।

(iii) शर्तों में परिवर्तन सहित ऋण का वितरण

ऋणदाताओं को ऐसी मंजूरी को नियंत्रित करने वाली शर्तों के अनुरूप मंजूर किये गये ऋण का समय पर वितरण सुनिश्चित करना चाहिए । ऋणदाताओं द्वारा ब्याज दरों, सेवा प्रभारों आदि सहित शर्तों में हाने वाले किसी परिवर्तन की सूचना दी जानी चाहिए । ऋणदाताओं को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ब्याज दरों और प्रभारों में परिवर्तन केवल प्रत्याशित रूप से किया जाता है ।

(iv) वितरण के बाद पर्यवेक्षण

क) ऋणदाता द्वारा वितरण के बाद पर्यवेक्षण, विशेष रूप से 2 लाख रुपये तक के ऋणों के संदर्भ में, रचनात्मक होना चाहिए ताकि ऋणकर्ता के सामने आनेवाली "ऋणदाता से संबंधित" किसी वास्तविक कठिनाई पर ध्यान दिया जा सके ।

ख) करार के अंतर्गत ऋण वापस मांगने / भुगतान जल्दी करने या कार्य-निष्पादन में तेजी लाने को कहने या अतिरिक्त जमानत मांगने का निर्णय लेने के पहले ऋणदाता द्वारा ऋण करार में निर्दिष्ट किये गये अनुसार ऋणकर्ता को नोटिस दिया जाना चाहिए या ऋण करार में ऐसी शर्त न होने पर उचित समय दिया जाना चाहिए ।

ग) ऋणदाता को ऋण का भुगतान प्राप्त होने या ऋण की वसूली होने पर ऋणकर्ताओं को खिलाफ ऋणदाताओं के किसी अन्य दावे के लिए उचित ग्रहणाधिकार (लियन) की शर्त पर सभी जमानतें लौटा देनी चाहिए । क्षतिपूर्ति के ऐसे अधिकार का प्रयोग करने पर ऋणकर्ता को उन शेष दावों और दस्तावेजों के बारे में पूरे ब्यौरे देते हुए नोटिस दिया जाये जिनके अंतर्गत ऋणदाता संबंधित दावे का निपटान / भुगतान होने तक जमानत रखने का हकदार है ।

(v) सामान्य

(क) ऋणदाताओं को, ऋण मंजूरी के दस्तावेजों की शर्तों में किये गये प्रावधान को छोड़कर (जब तक ऋणकर्ता द्वारा पहले प्रकट न की गयी नयी सूचना ऋणदाता की जानकारी में न आयी हो) ऋणकर्ताओं के कार्यकलाप में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए ।

(ख) ऋणदाताओं द्वारा ऋण प्रदान करने के मामले में लिंग, जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए । तथापि, इससे समाज के कमजोर वर्गों के लिए बनायी गयी ऋण संबद्ध योजनाओं में ऋणदाताओं के भाग लेने की रोक नहीं है ।

(ग) ऋणों की वसूली के मामले में ऋणदाताओं द्वारा अनुचित रूप से परेशान किये जाने का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए अर्थात् ऋणदाताओं को बेवक्त लगातार बल का प्रयोग आदि नहीं करना चाहिए ।

(घ) यदि ऋणकर्ता या किसी बैंक / वित्तीय संस्था से, जो उसके खाते को लेनेवाली है, ऋण खाते के अंतरण के लिए अनुरोध प्राप्त हो तो सहमति या असहमति, अर्थात् यदि ऋणदाता को कोई आपत्ति हो तो, अनुरोध प्राप्त होने की तारीख से 21 दिन के भीतर सूचित की जानी चाहिए ।

3. ऊपर पैरा 2 में दिये गये दिशा-निर्देशें के आधार पर उचित प्रथा संहिता दिये जाने वाले सभी संभावित ऋणों के संदर्भ में 01 अगस्त 2003 तक तैयार कर ली जानी चाहिए । बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को यह स्वतंत्रता होगी कि वे दिशा-निर्देशों की व्याप्ति बढ़ाते हुए उचित प्रथा संहिता का प्रारूप तैयार करें परंतु किसी भी हालत में उपर्युक्त दिशा-निर्देंशों के पीछे निहित भावना का उल्लंघन न हो । इस प्रयोजन के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के बोर्डों को स्पष्ट नीति निर्धारित करनी चाहिए ।

4. निदेशक बोड़ द्वारा इस संबंध में उठने वाले विवादों को निपटाने के लिए संगठन के भीतर शिकायत निवारण का उचित तंत्र भी स्थापित करना चाहिए । इस तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऋण देने वाली संस्थाओं के कार्यालयों के निर्णयों के फलस्वरूप उठने वाले सभी विवादों को अगले उच्चतर स्तर पर सुना जाता है और उनको निपटाया जाता है । निदेशक बोर्डों को उचित प्रथा संहिता के अनुपालन तथा नियंत्रक कार्यालयों के विभिन्न स्तरों पर शिकायत निवारण तंत्र की कार्य-प्रणाली की आवधिक समीक्षा की व्यवस्था भी करनी चाहिए । ऐसी समीक्षाओं की समेकित रिपोर्ट बोड़ को, उसके द्वारा निर्दिष्ट नियमित अंतराल पर प्रस्तुत की जाये ।

5. उक्त संहिता अपनाने, आवश्यक ऋण आवेदन फार्मों की प्रिंटिंग तथा शाखाओं और नियंत्रक कार्यालयों में उनका परिचालन भी जून 2003 के अंत तक पूरा कर लिया जाना चाहिए । बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा अपनायी जाने वाली उचित प्रथा संहिता को अपनी वेबसाइट पर रखा जाना चाहिए और उसका व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए । एक प्रति भारतीय रिज़र्व बैंक को भी भेजी जानी चाहिए ।

6. कृपया प्राप्ति-सूचना दें ।

भवदीय

( एम. आर. श्रीनिवासन )
प्रभारी मुख्य महा प्रबंधक

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