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बैंकों द्वारा दबावग्रस्त आस्तियों की बिक्री पर दिशानिर्देश

भा.रि.बैं./2016-17/56
बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.9/21.04.048/2016-17

1 सितंबर, 2016

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय,

बैंकों द्वारा दबावग्रस्त आस्तियों की बिक्री पर दिशानिर्देश

अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करने के ढांचे के भाग के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 26 फरवरी 2014 के परिपत्र के माध्यम से बैंकों द्वारा प्रतिभूतीकरण कंपनियों (एससी)/ पुनर्गठन कंपनियों (आरसी) (वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, 2002 के अधीन निर्मित) को अनर्जक आस्तियों (एनपीए) की बिक्री से संबंधित कतिपय दिशानिर्देशों में संशोधन किया है।

2. दबावग्रस्त आस्तियों से प्रभावपूर्ण ढंग से निपटने के लिए बैंकों की क्षमता को और अधिक सुदृढ़ करने के लिए, यह निर्णय लिया गया है कि प्रतिभूतीकरण कंपनियों (एससी)/ पुनर्गठन कंपनियों (आरसी)/ अन्य बैंकों/ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों/ वित्तीय संस्थाओं इत्यादि को बैंकों द्वारा ऐसी आस्तियों की बिक्री को अभिशासित करने वाला उन्नत ढांचा तैयार किया जाए। विस्तृत दिशानिर्देश अनुबंध में दिए गए हैं।

भवदीय,

(अजय कुमार चौधरी)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुबंध

बैंकों द्वारा दबावग्रस्त आस्तियों की बिक्री पर दिशानिर्देश

दबावग्रस्त आस्तियों की बिक्री पर नीति

रिज़र्व बैंक के मौजूदा अनुदेशों के अनुसार, बैंकों के बोर्ड प्रतिभूतीकरण कंपनियों (एससी)/ पुनर्गठन कंपनियों (आरसी) को उनकी दबावग्रस्त आस्तियों की बिक्री पर विस्तृत नीतियां और दिशानिर्देश बनाएंगे। उक्त नीति में, अन्य बातों के साथ-साथ, निम्नलिखित पहलुओं को शामिल किया जाएगा:

i. बिक्री हेतु उपलब्ध वित्तीय आस्तियां;

ii. ऐसी वित्तीय आस्तियों की बिक्री के लिए मानदंड और क्रियाविधि;

iii. यह सुनिश्चित करने के लिए अपनाई जाने वाली मूल्यांकन क्रियाविधि, कि वित्तीय आस्तियों के वसूली योग्य मूल्य का तर्कसंगत ढंग से आकलन किया जाता है;

iv. वित्तीय आस्तियों की बिक्री पर निर्णय लेने के लिए विभिन्न पदाधिकारियों की शक्तियों का प्रत्यायोजन; इत्यादि।

2. दबावग्रस्त आस्तियों की बिक्री की सम्पूर्ण प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए, निम्नानुसार निर्णय लिया गया है:

  • विनिर्दिष्ट मूल्य से ज्यादा दबावग्रस्त आस्तियों की पहचान, जैसा बैंक की नीति द्वारा निर्धारित किया गया हो, क्योंकि बिक्री ऊपर से नीचे की जाएगी, अर्थात् बैंक का मुख्यालय/ कारपोरेट कार्यालय बिक्री के लिए उपलब्ध कराए जाने के लिए विशेष उल्लेख खाते के रूप में वर्गीकृत की गई आस्तियों सहित, दबावग्रस्त आस्तियों की पहचान करने में सक्रिय रूप से शामिल होगा। शीघ्र पहचान करने से बैंकों के लिए निम्न स्तर (विंटेज) और बेहतर मूल्य उगाही में मदद मिलेगी;

  • बैंक अपने बोर्ड के अनुमोदन से वर्ष में कम-से-कम एक बार, बेहतर हो कि वर्ष के आरंभ में, एससी/आरसी सहित अन्य संस्थाओं को बिक्री के लिए चिन्ह्ति विशिष्ट वित्तीय आस्तियों की पहचान करेंगे और आंतरिक सूची तैयार करेंगे;

  • निर्धारित राशि की सीमा से अधिक ‘संदिग्घ आस्ति’ के रूप में वर्गीकृत सभी आस्तियों की कम से कम आवधिक आधार पर बोर्ड/ समिति द्वारा समीक्षा की जानी चाहिए और दस्तावेजी तर्क के साथ, निकासी अथवा अन्यथा के संबंध में निर्णय लिया जाना चाहिए। निकासी के लिए पहचानी गई आस्तियों को ऊपर बताए गए तरीके से बिक्री के प्रयोजन से सूचीबद्ध किया जाएगा;

  • भावी खरीददारों को एससी/ आरसी तक ही सीमित रखने की आवश्यकता नहीं है। बैंक ऐसे अन्य बैंकों /एनबीएफसी/एफआई, आदि को भी आस्तियों का प्रस्ताव दे सकते हैं जिनके पास दबावग्रस्त आस्तियों का समाधान करने के लिए आवश्यक पूंजी और विशेषज्ञता हो। अधिक खरीददारों की सहभागिता के परिणामस्वरूप बेहतर मूल्य निर्धारण हो सकेगा;

  • विभिन्न प्रकार के खरीददारों को आकर्षित करने के लिए, अधिमानतः बोलियों के आमंत्रण का सार्वजनिक रूप से अनुरोध किया जाना चाहिए, ताकि अधिक-से-अधिक संभावित क्रेता भाग ले सकें। ऐसे मामलों में ई-नीलामी मंचों का प्रयोग करना वांछित होगा। खुली नीलामी प्रक्रिया में खरीददारों के एक बड़े समूह को आकर्षित करने के अलावा, बेहतर कीमत प्राप्त होने की आशा की जा सकती है। बैंक इस संबंध में बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति बनाएं;

  • बैंक संभावित क्रेताओं द्वारा उचित सावधानी के लिए पर्याप्त समय दें, जो दो सप्ताह की आधार सीमा के साथ, आस्तियों के आकार के अनुसार अलग-अलग हो सकता है;

  • बिक्री के लिए प्रस्तावित आस्तियों के मूल्यांकन के संबंध में बैंक स्पष्ट नीतियां तैयार करें। विशेष रूप से, इस बात को स्पष्ट रूप से विनिर्दिष्ट किया जाए कि किन मामलों में आंतरिक मूल्यांकन को स्वीकार किया जाएगा और कहाँ बाह्य मूल्यांकन की आवश्यकता होगी। तथापि, 50 करोड़ रुपये से अधिक के एक्सपोज़र के मामले में, बैंक दो बाह्य मूल्यांकन रिपोर्ट प्राप्त करेंगे;

  • मूल्यांकन कार्य की लागत का वहन बैंक द्वारा किया जाएगा, ताकि बैंक के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके;

  • नीति में मूल्यांकन कार्य में बैंकों द्वारा प्रयुक्त छूट दर का उल्लेख किया जाएगा। यह अनुबंधित ब्याज दर और अर्थदंड, यदि कोई हो, की आधार सीमा के अधीन या तो इक्विटी की लागत हो सकती है या नीधियों की औसत लागत या अवसर लागत या फिर कोई अन्य संबंधित दर हो सकती है।

3. बैंक दबावग्रस्त आस्तियों के मूल्यांकन को केंद्र में रखकर एनपीए की बिक्री पर अपनी मौजूदा नीतियों की प्रभावशीलता की समीक्षा करेंगे और उक्त सिद्धांतों को उचित रूप से अपनाते हुए अपनी नीतियों पर नए सिरे से कार्य करेंगे।

बैंकों द्वारा बेची गई आस्तियों द्वारा समर्थित प्रतिभूति रसीद में उनके द्वारा निवेश

4. यह सुनिश्चित करने के लिए कि बैंकों द्वारा दबावग्रस्त आस्तियों की बिक्री के परिणामस्वरूप वस्तुतः आस्तियों की ‘वास्तविक बिक्री’ होती है और एक व्यावसायिक दबावग्रस्त आस्ति बाज़ार का निर्माण करने की दृष्टि से, यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों की स्वयं की दबावग्रस्त आस्तियों द्वारा समर्थित प्रतिभूति रसीदों में बैंकों के निवेश को उत्तरोत्तर प्रतिबंधित किया जाए।

i) 1 अप्रैल 2017 से जहाँ आस्ति प्रतिभूतिकरण के अधीन बैंकों द्वारा बेची गई दबावग्रस्त आस्तियों द्वारा समर्थित प्रतिभूति रसीदों में उनके द्वारा किया गया निवेश, बेची गई आस्तियों द्वारा समर्थित और उस प्रतिभूतिकरण के अधीन निर्गमित प्रतिभूति रसीद के 50 प्रतिशत से अधिक हो तो इन प्रतिभूति रसीदों के संबंध में धारित प्रावधान किसी आधार सीमा के अधीन होंगे; इस आधार सीमा में मौजूदा आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण मानदंड़ों के अनुसार प्रगतिशील प्रावधानीकरण होगा, जिसमें बैंक की बहियों में इन प्रतिभूति रसीदों के बही मूल्य को कल्पित रूप से समनुरूप दबावग्रस्त ऋण माना जाएगा, यह मानते हुए कि ये ऋण मूलधन की वसूली के बिना ही बैंक की बहियों में बने रहते। इसके फलस्वरूप, प्रतिभूति रसीदों पर प्रावधानीकरण अपेक्षा निम्नलिखित से अधिक होगी:

क. प्रतिभूतिकरण कंपनियों/ पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा घोषित निवल आस्ति मूल्य के अनुसार अपेक्षित प्रावधानीकरण दर; और

ख. यह मानते हुए कि ये ऋण काल्पनिक रूप से बैंक की बहियों में बने रहेंगे, अंतर्निहित ऋणों के संबंध में यथा लागू प्रावधानीकरण दर;

ii) 1 अप्रैल 2018 से, 50 प्रतिशत की उपर्युक्त सीमा घटकर 10 प्रतिशत हो जाएगी।

प्रतिभूति रसीदों में निवेश का प्रकटीकरण

5. विद्यमान प्रकटीकरण अपेक्षाओं के अतिरिक्त, बैंक प्रतिभूति रसीदों में उनके निवेश से संबंधित निम्नलिखित प्रकटीकरण करेंगे:

विवरण पिछले पाँच वर्षों में जारी एसआर पाँच वर्ष से अधिक समय पहले किन्तु पिछले आठ वर्षों के भीतर जारी एसआर आठ वर्ष से अधिक समय पहले जारी एसआर
(i) बैंकों द्वारा अंतर्निहित के रूप में बेचे गए एनपीए द्वारा समर्थित प्रतिभूति रसीदों का बही मूल्य      
  (i) के विरूद्ध धारित प्रावधान      
(ii) अन्य बैंकों/वित्तीय संस्थाओं/ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा अंतर्निहित के रूप में बेचे गए एनपीए द्वारा समर्थित प्रतिभूति रसीदों का बही मूल्य      
  (ii) के विरूद्ध धारित प्रावधान      
कुल (i) + (ii)      

ऋण का संकलन – नामंजूरी का प्रथम अधिकार

6. ऋणों को शीघ्रता से संकलित करने में प्रतिभूतिकरण कंपनियों/ पुनर्निर्माण कंपनियों की क्षमता बढ़ाने के लिए दबावग्रस्त आस्तियों की बिक्री का प्रस्ताव देने वाला बैंक उस एससी/आरसी को नामंजूर करने का प्रथम अधिकार देगा, जिसने सबसे बड़ी बोली के साथ मिलान करते हुए आस्ति को प्राप्त करने के लिए पहले ही आस्ति का उच्चतम और साथ ही साथ महत्वपूर्ण शेयर (~25-30%) प्राप्त कर लिया हो। जैसा कि अन्यत्र उल्लेख किया गया है, इसके लिए सर्वप्रथम नीलामी के माध्यम से मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया को पूरा किया जाना जरूरी है।

स्विस चैलेंज पद्धति – निम्न स्तर (विंटेज) और ऋण के संकलन को समर्थ बनाना

7. बैंकों द्वारा बेचे गए एनपीए के स्तर (विंटेज) को कम करने के लिए और एससी/आरसी द्वारा ऋण संकलन में तेजी लाने के लिए बैंक एससी/आरसी/अन्य बैंकों/एनबीएफसी/एफआई, इत्यादि को अपने दबावग्रस्त आस्तियों की बिक्री के लिए स्विस चैलेंज पद्धति अपनाने पर बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति तैयार करेंगे। इस प्रयोजन से, इस परिपत्र के पैरा 2 में बताए गए अनुसार, बोर्ड/बोर्ड की समिति अपने दबावग्रस्त आस्ति संविभाग की आवधिक समीक्षा (वर्ष में कम-से-कम एक बार) करेगी, ताकि अपनी ऋण वसूली नीति के अनुसार पोर्टफोलियो के समाधान करने की प्रस्तावित कार्रवाई के संबंध में निर्णय लिया जा सके। ऐसी समीक्षा के दौरान, बैंक ऐसी आस्तियों की पहचान करेंगे, जिनकी बिक्री का प्रस्ताव संभावित क्रेताओं के बीच रखा जाएगा और बैंक द्वारा ऐसी आस्तियों की प्रमाणीकृत सूची मेंटेन की जाएगी। उक्त सूची बैंक के विवेकानुसार गोपनीय समझौता करने के बाद संभावित बोलीकर्ता के समक्ष प्रकट की जा सकती है। स्विस चैलेंज पद्धति की व्यापक रूपरेखा निम्नानुसार है:

I. किसी विशिष्ट दबावग्रस्त आस्ति को क्रय करने का इच्छुक संभावित ग्राहक बैंक के समक्ष बोली लगा सकता है;

II. यदि उक्त आस्ति बैंक के द्वारा रखी गई बिक्री के उपलब्ध लिए आस्तियों की सूची में मौजूद हो, और यदि उक्त बोलीकर्ता बैंक की नीति में विनिर्दिष्ट न्यूनतम प्रतिशतता (जैसे, बकाया ऋण का 30 प्रतिशत) से अधिक की नकद बोली लगाता है, तो बैंक से अपेक्षित होगा कि वह तुलनात्मक उद्देश्य से अन्य संभावित क्रेताओं से सार्वजनिक रूप से काउंटर बोली मंगाए;

III. जब एक बार बोलियाँ प्राप्त हो जाती हैं तो बैंक सर्वोच्च बोली से मिलान करने के लिए सर्वप्रथम एससी/आरसी, यदि कोई हो, को आमंत्रित करेगा, जिसने पहले ही उच्चतम महत्वपूर्ण हिस्सेदारी (जैसा कि उपर्युक्त पैरा 6 में बताया गया है) प्राप्त कर ली हो। बाकी सब एक सा होने पर, आस्ति की बिक्री के लिए अधिमानता का क्रम निम्नानुसार होगा: i) एससी/आरसी जिसने पहले ही उच्चतम महत्वपूर्ण हिस्सेदारी प्राप्त कर ली है; ii) मूल बोलीकर्ता और iii) काउंटर बोली लगाने की प्रक्रिया के दौरान उच्चतम बोली लगाने वाला।

IV. बैक के पास निम्नलिखित दो विकल्प होंगे:

i. ऊपर निर्धारित किए गए अनुसार, विजेता बोली लगाने वाले को आस्ति बेच दी जाए;

ii. यदि बैंक विजेता बोली लगाने वाले को आस्ति न बेचने का निर्णय लेता है तो बैंक से अपेक्षित होगा कि खाते में तुरन्त निम्नलिखित से अधिक सीमा तक प्रावधान करे:

अ. सर्वोच्च बोली लगानेवाले के द्वारा उद्धरित बही मूल्य पर बट्टा; और

ब. मौजूदा आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण मानदंडों के अनुसार अपेक्षित प्रावधानीकरण।

वित्तीय आस्तियों की पुनर्खरीद

8. रिज़र्व बैंक के मौजूदा दिशानिर्देशों में एससी/आरसी से मानक खातों का अधिग्रहण करने से बैंकों को प्रतिबंधित नहीं किया गया है। तदनुसार, ऐसे मामलों में जहाँ एससी/आरसी ने उनके द्वारा अधिग्रहित की गई दबावग्रस्त आस्तियों के लिए पुनर्रचना योजना को सफलतापूर्वक लागू किया है, बैंक अपने विवेकानुसार उचित सावधानी के साथ ‘विनिर्दिष्ट अवधि’ (पुनर्रचना पर मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार यथापरिभाषित) के पश्चात् ऐसी आस्तियों का अधिग्रहण कर सकते हैं, बशर्ते कि ‘विनिर्दिष्ट अवधि’ के दौरान संबंधित खाते का निष्पादन संतोषजनक रहा हो। बैंक बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति बनाएं जिसमें ऐसे अधिग्रहण को अभिशासित करने वाले विभिन्न पहलू शामिल हों जैसे, अधिग्रहण की जाने वाली आस्तियों का प्रकार, समुचित सावधानी संबंधी अपेक्षाएं, अर्थक्षमता मानदंड, आस्ति की निष्पादन अपेक्षा, इत्यादि। तथापि, कोई बैंक किसी भी समय एससी/आरसी से ऐसी आस्तियों का अधिग्रहण नहीं कर सकता जिन्हें उसने पहले स्वयं ही बेचा हो।

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