भारत में बासल III पूजी विनियमावली का कार्यान्वयन – संशोधन - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारत में बासल III पूजी विनियमावली का कार्यान्वयन – संशोधन
आरबीआई/2014-15/201 1 सितंबर 2014 अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदया/महोदय भारत में बासल III पूजी विनियमावली का कार्यान्वयन – संशोधन कृपया 12 मई 2012 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. 98/21.06.201/2011-12 द्वारा जारी किए गए 'भारत में बासल III पूंजी विनियमावली के कार्यान्वयन पर दिशानिर्देश' देखें। इन दिशानिर्देशों को इसके बाद के संशोधनों के साथ 'बासल III पूंजी विनियमावली' पर 01 जुलाई 2014 के अद्यतन मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 6/21.06.201/2014-15 में शामिल किया गया है। बैंकों द्वारा बासल III संरचना के अंतर्गत गैर-इक्विटी विनियामक पूंजी लिखत जुटाने में सहायता देने की दृष्टि से मौजूदा दिशानिर्देशों की आगे और समीक्षा की गई। तदनुसार, ऐसे लिखतों के कतिपय विनिर्दिष्ट पात्रता मानदंडों में संशोधन किए गए हैं, जैसा कि आगे के पैराग्राफों में बताया गया है। इनका उद्देश्य निवेशकों को प्रोत्साहित करना और निवेशक आधार में वृद्धि करना भी है। 2. गैर-इक्विटी विनियामक पूंजी लिखत (अतिरिक्त टियर 1 और टियर 2) – हानि अवशोषण प्रणाली 2.1 बैंकों द्वारा जारी किए गए अतिरिक्त टियर 1 (एटी 1) पूंजी लिखतों के लिए मानदंडों में से एक यह है कि इन लिखतों में एक वस्तुनिष्ठ पूर्व-विनिर्दिष्ट ट्रिगर बिंदु पर (i) सामान्य शेयरों में परिवर्तन अथवा (ii) राइट डाउन तंत्र जो इन लिखतों में हानियों का बंटवारा करता है, द्वारा प्रमुख हानि-अवशोषण होना चाहिए। बैंकों को सूचित किया गया था कि वे या तो सामान्य शेयरों में संपरिवर्तन या स्थायी राइट-डाउन सुविधा के साथ एटी 1 लिखत जारी करने पर विचार करें। एटी 1 लिखतों के लिए वस्तुनिष्ठ पूर्वविनिर्दिष्ट ट्रिगर बिंदु पर प्रमुख हानि अवशोषण के मानदंड की नए सिरे से समीक्षा की गई। अब बैंक इन लिखतों को या तो (i) सामान्य शेयरों में संपरिवर्तन या (ii) राइट डाउन सुविधा (अस्थायी या स्थायी), जो लिखतों के बीच हानियों का बंटवारा करता है, के माध्यम से प्रमुख हानि अवशोषण के साथ जारी कर सकते हैं। 2.2 तथापि, यह दोहराया जाता है कि बैंकों द्वारा जारी किए गए सभी गैर-इक्विटी पूंजी लिखतों (अर्थात् अतिरिक्त टियर 1 और टियर 2 दोनों) की निबंधनों और शर्तों में यह प्रावधान अवश्य होना चाहिए कि अव्यवहार्यता बिंदू (PONV) पर ट्रिगर घटना होने पर भारतीय रिज़र्व बैंक के विकल्प पर ऐसे लिखतों को स्थायी रूप से राइट ऑफ किया जाए या सामान्य शेयरों में परिवर्तित किया जाए। 2.3 बैंक यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके द्वारा जारी किए गए गैर-सामान्य इक्विटी पूंजी लिखत विधिक, लेखांकन और परिचालनगत आदि जैसे सभी पात्रता मानदंड पूरे करते हैं, ताकि ऐसे लिखतों को विनियामक पूंजी लिखतों के रूप में मान्यता मिल सके। तदनुसार, 'अतिरिक्त टियर 1 लिखतों का पूर्व निर्दिष्ट ट्रिगर पर तथा सभी गैर-इक्विटी विनियामक पूंजी लिखतों का अव्यवहार्यता बिंदू पर हानि अवशोषण सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम अपेक्षाएं' पर मास्टर परिपत्र का संशोधित अनुबंध 16 संलग्न है। 3. अतिरिक्त टियर 1 पूंजी लिखत – क्रय (कॉल) विकल्प का प्रयोग मास्टर परिपत्र के अनुबंध 3 तथा अनुबंध 4 के पैरा 1.6 (क) के अनुसार क्रमशः शाश्वत गैर-संचयी अधिमान शेयरों (पीएनसीपीएस) तथा शाश्वत ऋण लिखतों पर कॉल ऑप्शन लिखत के कम से कम दस वर्ष चलने के बाद अनुमत है। यह निर्णय लिया गया है कि जारीकर्ता की पहल पर अतिरिक्त टियर 1 लिखतों (पीएनसीपीएस और पीडीआई) के कम से कम 5 वर्ष तक चलने के बाद कॉल ऑप्शन की अनुमति होगी। इन अनुबंधों के पैरा 1.6 – 'वैकल्पिकता' के संबंध में अन्य सभी मानदंड यथावत् रहेंगे। 4. टियर 2 पूंजी लिखत – परिपक्वता अवधि मास्टर परिपत्र के अनुबंध 5 के पैराग्राफ 1.3 के अनुसार टियर 2 ऋण लिखतों की न्यूनतम परिपक्वता अवधि 10 वर्ष होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, मास्टर परिपत्र के अनुबंध 6 के पैरा 1.3 के अनुसार टियर 2 पूंजी के भाग के रूप में जारी किए गए प्रतिदेय संचयी अधिमान शेयर (आरएनसीपीएस) तथा प्रतिदेय संचयी अधिमान शेयर (आरसीपीएस) की न्यूनतम परिपक्वता अवधि दस वर्ष होनी चाहिए। समीक्षा के उपरांत यह निर्णय लिया गया कि बैंक कम से कम पांच वर्ष की न्यूनतम मूल परिपक्वता के साथ ऐसे टियर 2 पूंजी लिखत जारी कर सकते हैं। टियर 2 लिखतों की परिपक्वता अवधि से संबंधित अन्य सभी मानदंड अपरिवर्तित रहेंगे। 5. सीआरएआर के लिए गैर-इक्विटी विनियामक पूंजी लिखत (अतिरिक्त टियर 1 और टियर 2) की मान्यता पर सीमाएं 5.1 टियर 1 पूंजी और सीआरएआर की गणना और रिपोर्टिंग के प्रयोजन से अतिरिक्त टियर 1 पूंजी और टियर 2 पूंजी की स्वीकार्यता पर सीमाएं, जैसा कि मास्टर परिपत्र के पैराग्राफ 4.22 (vii) और (viii) में बताया गया है, को वापिस लिया जा रहा है। तदनुसार, जैसा कि पैराग्राफ 4.5 – 'संक्रमणकालीन व्यवस्थाएं', के साथ पठित पैराग्राफ 4.22 (i) से (iv) में उल्लिखित है, न्यूनतम पूंजी अपेक्षाओं की पूर्ति करने वाला बैंक टियर 1 और सीआरएआर की गणना और रिपोर्टिंग के लिए अतिरिक्त टियर 1 पूंजी और टियर 2 पूंजी को स्वीकार कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप मास्टर परिपत्र के अनुबंध 14 के भाग क को भी वापिस लिया जाता है। 5.2 मास्टर परिपत्र के पैरा 4.2.2 (ix) में दी गई 'पूंजीगत निधियों' की परिभाषा में भी संशोधन किया जाता है। तदनुसार, सभी विवेकपूर्ण एक्सपोजर सीमाओं के प्रयोजन से पूंजीगत निधियों1 की परिभाषा सभी पात्र सामान्य इक्विटी टियर 1 पूंजी, अतिरिक्त टियर 1 पूंजी और टियर 2 पूंजी का योग के रूप में होगी, जिसमेंविनियामक समायोजनों और कटौतियों को घटाया जाएगा। 5.3 उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए बेशी अतिरिक्त टियर 1 पूंजी और टियर 2 पूंजी की स्वीकार्यता पर सीमाएं पिलर 3 प्रकटीकरण अपेक्षाओं के प्रयोजन से भी लागू नहीं होंगी (मास्टर परिपत्र के अनुबंध 18 की सारणी डीएफ-11)। 6. गैर-इक्विटी विनियामक पूंजी लिखत (अतिरिक्त टियर 1 और टियर 2) – खुदरा निवेशकों को जारी करना 6.1 मास्टर परिपत्र के अनुबंध 5 के पैरा 1.17 के अनुसार बैंकों को खुदरा निवेशकों को टियर 2 ऋण पूंजी लिखत जारी करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि वे उसमें बताए गए निवेशकों की शिक्षा और जागरुकता के संबंध में कतिपय विनिर्दिष्ट शर्तों का पालन करें। यह सूचित किया जाता है कि बैंक टियर 2 पूंजी लिखतों के अन्य रूप भी खुदरा निवेशकों को जारी कर सकते हैं (अर्थात् शाश्वत संचयी अधिमान शेयर/प्रतिदेय गैर-संचयी अधिमान शेयर/प्रतिदेय संचयी अधिमान शेयर), जैसा कि मास्टर परिपत्र के अनुबंध 6 के अंतर्गत अनुमत है। तथापि, इस प्रकार जारी करना उनके बोर्ड के अनुमोदन के अधीन होगा तथा मास्टर परिपत्र के अनुबंध 5 के पैराग्राफ 1.17 की अपेक्षाओं की पूर्ति करने के अधीन होगा। 6.2 इसके अतिरिक्त जैसा कि मास्टर परिपत्र के पैरा 4.2.4 1ख (ii) में बताया गया है, खुदरा निवेशकों को अतिरिक्त टियर 1 पूंजी लिखत जारी करने से बैंकों को प्रतिबंधित किया गया है। यह सूचित किया जाता है कि अब बैंक अपने बोर्ड के अनुमोदन की शर्त पर खुदरा निवेशकों को अतिरिक्त टियर 1 पूंजी लिखत जारी कर सकते हैं। तथापि, अतिरिक्त टियर 1 लिखतों की जोखिम विशेषताओं के बारे में निवेशकों की शिक्षा और जागरुकता बढ़ाने की दृष्टि से बैंकों को मास्टर परिपत्र के अनुबंध 5 के पैरा 1.17 खुदरा निवेशकों को टियर 2 ऋण पूंजी लिखत जारी करना के अनुरूप निवेशक संरक्षण अपेक्षाओं का भी पालन करना चाहिए। विशेषतः लिखत की हानि अवशोषण विशेषताओं को स्पष्ट रूप से समझाना चाहिए तथा निवेशक को ये विशेषताएं और लिखत के अन्य निबंधन और शर्तें समझ में आई हैं, इसके लिए निवेशक के हस्ताक्षर प्राप्त करने चाहिए। 7. अतिरिक्त टियर 1 ऋण पूंजी लिखतों पर कूपन विवेकाधिकार 7.1 मास्टर परिपत्र के अनुबंध 4 के पैरा 1.8(ड.) के अनुसार यदि चालू वर्ष में शाश्वत ऋण लिखतों (पीडीआई) पर कूपन के भुगतान के परिणामस्वरूप हानि होने की संभावना हो, तो उस सीमा तक उनकी घोषणा प्रतिबंधित करनी चाहिए। अब पैरा 1.8(ड.) को निम्नानुसार संशोधित किया गया हैः "पैराग्राफ 1.8(ड.) : कूपन का भुगतान वितरणीय मदों में से किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में, कूपन चालू वर्ष के लाभों में से अदा किए जाने चाहिए। तथापि, यदि चालू वर्ष के लाभ पर्याप्त न हों, अर्थात् यदि कूपन के भुगतान के परिणामस्वरूप चालू वर्ष में हानि होने की संभावना हो, तो कूपन की शेष राशि का भुगतान राजस्व आरक्षित निधि (अर्थात् ऐसी राजस्व आरक्षित निधि, जिसका निर्माण बैंक द्वारा किन्हीं विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए नहीं किया गया है) तथा/अथवा लाभ और हानि खाता में जमा शेष, यदि कोई हो, में से किया जा सकता है। तथापि, राजस्व आरक्षित निधियों में से पीडीआई पर कूपन का भुगतान इस शर्त पर है कि जारीकर्ता बैंक हर समय सीईटी 1, टियर 1 और कुल पूंजी अनुपातों के लिए न्यूनतम विनियामक अपेक्षाओं की पूर्ति करता है तथा पूंजी बफर संरचनाओं (अर्थात् पूंजी संरक्षण बफर, प्रतिचक्रीय पूंजी बफर और देशी प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंक) की अपेक्षाओं के अधीन होगा।" 7.2 जैसा कि मास्टर परिपत्र के अनुबंध 4 के पैरा 1.8(क) में बताया गया है, बैंकों को प्रस्ताव प्रलेख में ही यह सुनिश्चित करना और बताना चाहिए कि शाश्वत ऋण लिखतों के लिए पात्रता मानदंड पूर्ण करने की दृष्टि से उनके पास हर समय वितरण/भुगतान रद्द करने का पूर्ण विवेकाधिकार है। 8. ये दिशानिर्देश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। इन अनुदेशों को बासल III पूंजी विनियमावली पर इसके बाद के मास्टर परिपत्र में शामिल किया जाएगा। भवदीय, (सुदर्शन सेन) संलग्नकः यथोक्त 1 विवेकपूर्ण एक्सपोजरों के प्रयोजन से पूंजी निधियों की परिभाषा केवल एक अंतरिम उपाय है। बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समिति द्वारा प्रकाशित वृहत एक्सपोजर संरचना के आधार पर भारिबैंक द्वारा इस परिभाषा की प्रयोजनीयता की समीक्षा की जाएगी। |