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भारत में बासल III पूंजी विनियमावली का कार्यान्वयन – पूंजी आयोजना

आरबीआई/2013-14/538
बैंपविवि. सं.बीपी. बीसी. 102/21.06.201/2013-14

27 मार्च 2014

अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्थानीय क्षेत्र के बैंकों को छोड़कर)

महोदया/महोदय

भारत में बासल III पूंजी विनियमावली का कार्यान्वयन – पूंजी आयोजना

कृपया बासल III पूंजी विनियमावली पर 01 जुलाई 2013 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 2/21.06.201/2013-14 देखें।

2. बासल III पूंजी विनियमावली के कार्यान्वयन को ध्यान में रखते हुए बैंकों को अपनी पूंजी आयोजना प्रक्रियाओं में सुधार और मजबूती लाने की आवश्यकता है। पूंजी आयोजना का अभ्यास करते समय बैंक बदलती हुई समष्टि-आर्थिक परिस्थितियों के संभावित प्रभाव तथा विनियामक पूंजी की संरचना और पर्याप्तता संबंधी आवधिक दबाव परीक्षणों के परिणामों पर विचार कर सकते हैं। एक भविष्य-मुखी पूंजी आयोजना प्रक्रिया बैंकों को मध्यावधि में अपनी व्यावसायिक कार्यनीति की सहायता के लिए आवश्यक पूंजी के स्तर का उचित मूल्यांकन करने में सक्षम बनाएगी।

3. बासल III दिशानिर्देशों के पूर्ण कार्यान्वयन के बाद के वर्षों की तुलना में प्रारंभिक वर्षों के दौरान पूंजी अपेक्षाएं काफी हद तक कम होंगी। तदनुसार, अपनी पूंजी आयोजना का अभ्यास करते समय बैंकों को इस पहलू को ध्यान में रखना चाहिए। बैंकों के बोर्डों को पूंजी आयोजना प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए तथा उसके कार्यान्वयन पर निगरानी रखनी चाहिए।

4. हाल ही में आस्ति की गुणवत्ता पर संभावित दबाव तथा इसके परिणामस्वरूप बैंकों के कार्यनिष्पादन/लाभप्रदता पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में उद्योग-व्यापी चिंता व्यक्त की गई है। इससे बासल III पूंजी विनियमावली के पूर्ण कार्यान्वयन के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सहमत समय-सीमा के भीतर पूंजी जुटाने के लिए बैंकों को कुछ समय देना आवश्यक हो सकता है। तदनुसार, भारत में बासल III पूंजी विनियमावली के पूर्ण कार्यान्वयन के लिए संक्रमण अवधि को 31 मार्च 2018 के बजाए 31 मार्च 2019 तक बढ़ाया गया है। यह भारत में बासल III के पूर्ण कार्यान्वयन को अंतर्राष्ट्रीय रूप से सहमत तारीख 01 जनवरी 2019 के करीब रखेगा।

5. उपर्युक्त के अतिरिक्त, दिशानिर्देशों के कुछ अन्य पहलू, विशेष रूप से गैर-इक्विटी पूंजी लिखतों की हानि अवशोषण विशेषताओं से संबंधित पहलुओं की इस संबंध में मांगे गए स्पष्टीकरणों के परिप्रेक्ष्य में समीक्षा की गई है।

6. संशोधित संक्रमणकालीन व्यवस्थाएं तथा अन्य परिवर्तन इस परिपत्र के अनुबंध में दिए गए हैं। ये दिशानिर्देश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। इसके अलावा, बासल III पूंजी विनियमावली पर जारी होने वाले अगले मास्टर परिपत्र में इन अनुदेशों को शामिल किया जाएगा।

भवदीय,

(चंदन सिन्हा)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्नकः यथोक्त


अनुबंध

भारत में बासल III पूंजी विनियमावली – संशोधन (देखें: भारत में बासल III
पूंजी विनियमावली का कार्यान्वयन – पूंजी आयोजना पर 27 मार्च 2014 का
परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 102/21.06.201/2013-14
)

1. बासल III संक्रमणकालीन व्यवस्थाएं

1.1 भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी की गई बासल III पूंजी विनियमावली के अनुसार पूंजी संरक्षण बफर (सीसीबी) को 31 मार्च 2015 से चरणबद्ध रूप से तथा 31 मार्च 2018 तक पूर्णतः लागू करना है। यह निर्णय लिया गया है कि सीसीबी का कार्यान्वयन अब 31 मार्च 2016 से शुरू किया जाए। इसके परिणामस्वरूप बासल III पूंजी विनियमावली का पूर्ण कार्यान्वयन 31 मार्च 2019 तक किया जाएगा। अतएव, मास्टर परिपत्र के पैरा 4.5 में उल्लिखित संक्रमणकालीन व्यवस्थाओं में निम्नानुसार संशोधन किया जाता हैः

संक्रमणकालीन व्यवस्थाएं - अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(स्थानीय क्षेत्र के बैंक तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

(जोखिम भारित आस्तियों का प्रतिशत)

न्यूनतम पूंजी अनुपात

1 अप्रैल 2013

31 मार्च 2014

31 मार्च 2015

31 मार्च 2016

31 मार्च 2017

31 मार्च 2018

31 मार्च 2019

न्यूनतम सामान्य इक्विटी टियर 1 (सीईटी 1)

4.5

5

5.5

5.5

5.5

5.5

5.5

पूंजी संरक्षण बफर (सीसीबी)

-

-

-

0.625

1.25

1.875

2.5

न्यूनतम सीईटी 1 + सीसीबी

4.5

5

5.5

6.125

6.75

7.375

8

न्यूनतम टियर 1 पूंजी

6

6.5

7

7

7

7

7

न्यूनतम कुल पूंजी*

9

9

9

9

9

9

9

न्यूनतम कुल पूंजी + सीसीबी

9

9

9

9.625

10.25

10.875

11.5

सीईटी 1 में सभी कटौतियों को क्रमशः लागू करना (% में) #

20

40

60

80

100

100

100

* 9% की न्यूनतम कुल पूंजी अपेक्षा तथा टियर 1 अपेक्षा के बीच के अंतर को पूंजी के टियर 2 और उच्चतर रूपों से पूरा किया जा सकता है।
# अतिरिक्त टियर 1 और टियर 2 पूंजी में से कटौतियों के लिए इसी प्रकार की संक्रमण प्रणाली लागू होगी।

1.2 इसके अतिरिक्त, मास्टर परिपत्र के पैरा 15.2 की सारणी 25 निम्नानुसार संशोधित की जाती हैः

सारणी 25: प्रत्येक बैंक के लिए न्यूमनतम पूंजी संरक्षण मानक

वर्तमान अवधि के प्रतिधारित अर्जनों को शामिल करने के बाद सामान्य ईक्विटी टियर 1 अनुपात

न्यूनतम पूंजी संरक्षण अनुपात (अर्जनों के % के रूप में व्यक्त)

31 मार्च 2016 को

31 मार्च 2017 को

31 मार्च 2018 को

5.5% - 5.65625%

5.5% - 5.8125%

5.5% - 5.96875%

100%

>5.65625% -5.8125%

>5.8125%-6.125%

>5.96875%-6.4375%

80%

>5.8125%- 5.96875%

>6.125%- 6.4375%

>6.4375%- 6.90625%

60%

>5.96875%-6.125%

>6.4375%-6.75%

>6.90625%-7.375%

40%

>6.125%

>6.75%

>7.375%

0%

2. गैर-इक्विटी पूंजी लिखतों की हानि-अवशोषण विशेषताएं

2.1 अतिरिक्त टियर 1 (एटी 1) पूंजी लिखतों के मानदंडों में अन्य बातों के साथ ही यह अपेक्षित है कि इन लिखतों में या तो (ii) सामान्य शेयरों में संपरिवर्तन द्वारा अथवा (i) एक अवलेखन (राइट-डाउन) प्रणाली, जिसमें एक वस्तुनिष्ठ पूर्व-विनिर्दिष्ट सतर्कता (ट्रिगर) बिंदु पर हानियों का विभाजन किया जाता है, के द्वारा प्रमुख हानि अवशोषण होना चाहिए। यह पूर्व-विनिर्दिष्ट ट्रिगर सामान्य इक्विटी टियर 1 (सीईटी1) की जोखिम भारित आस्तियों (आरडब्ल्यूए) के 6.125% पर निर्धारित किया गया है। अब यह निर्णय लिया गया है कि 31 मार्च 2019, अर्थात् बासल III के पूर्ण कार्यान्वयन से पूर्व जारी किए गए सभी बासल III अनुपालक एटी 1 लिखतों में दो पूर्व-विनिर्दिष्ट ट्रिगर होंगे। सीईटी 1 पर निम्नतर पूर्व-विनिर्दिष्ट ट्रिगर आरडब्ल्यूए के 5.5% पर लागू होगा तथा 31 मार्च 2019 से पहले प्रभावी होगा, उसके बाद ऐसे सभी लिखतों के लिए इस ट्रिगर को सीईटी1 पर आरडब्ल्यूए के 6.125% तक बढ़ा दिया जाएगा। तथापि, 31 मार्च 2019 के बाद जारी किए गए एटी1 लिखतों में पूर्व-विनिर्दिष्ट ट्रिगर सीईटी1 पर आरडब्ल्यूए के 6.125% ही होगा।

2.2 वर्तमान में एटी1 पूंजी लिखतों के लिए संपरिवर्तन विशेषता के अतिरिक्त पूर्व-विनिर्दिष्ट ट्रिगर बिंदु पर अस्थायी और स्थायी, दोनों अवलेखन विशेषताओं की अनुमति है। समीक्षा के उपरांत यह निर्णय लिया गया है कि बैंक केवल संपरिवर्तन/स्थायी अवलेखन विशेषता के साथ एटी1 पूंजी लिखत जारी कर सकते हैं। इसी प्रकार, जहां तक अव्यवहार्यता बिंदु (पीओएनवी) ट्रिगर पर राइट-ऑफ विशेषता का संबंध है, सभी गैर-इक्विटी पूंजी लिखतों में केवल स्थायी राईट-ऑफ विशेषता होगी, ऐसे मामलों में भी, जहां सरकारी क्षेत्र से निधियों का अंतःक्षेपण नहीं किया गया है। इसके अलावा, यह स्पष्ट किया जाता है कि इस परिपत्र की तारीख तक जारी किए गए बासल III पूंजी अनुपालक लिखतों को पात्र विनियामक पूंजी लिखतों के रूप में मान्य करना जारी रहेगा।

2.3 तदनुसार, बासल III मास्टर परिपत्र के अनुबंध 16 को परिशिष्ट में दर्शाए अनुसार संशोधित किया गया है।

3. पूंजी लिखतों पर लाभांश/कूपन विवेकाधिकार

3.1 'वितरण-योग्य' मदों के संबंध में यह स्पष्ट किया जाता है किः

  • सामान्य शेयरों तथा बेमीयादी असंचयी अधिमान शेयरों (पीएनसीपीएस) पर लाभांश केवल चालू वर्ष के लाभ में से ही अदा किया जाएगा।

  • यदि बेमीयादी ऋण लिखतों (पीडीआई) पर कूपन की अदायगी के कारण चालू वर्ष में हानि होने की संभावना हो, तो उसकी घोषणा उस सीमा तक रोक दी जाए। इसके अलावा, बेमीयादी ऋण लिखतों पर कूपन की अदायगी प्रतिधारित आय/आरक्षित निधियों में से नहीं की जानी चाहिए। दूसरे शब्दों में, कूपन की अदायगी के प्रभाव से प्रतिधारित आय/आरक्षितनिधियांघटनीनहींचाहिए।

4. बैंकों द्वारा लाभांश का भुगतान

4.1 वर्तमान में बैंकों द्वारा लाभांश का भुगतान 'बैंकों द्वारा लाभांश की घोषणा' पर 04 मई 2005 के परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 88/21.02.067/2004-05 के प्रावधानों द्वारा शासित है। इसके अलावा, बासल III संरचना में भी वितरणों (जैसे, किसी भी रूप में लाभांश या बोनसों का भुगतान आदि) पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं, यदि बैंकों का पूंजी स्तर पूंजी बफर संरचना (अर्थात् पूंजी संरक्षण और प्रतिचक्रीय बफर आदि) के द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर रहता है। यह स्पष्ट किया जाता है कि पूंजी बफर संरचना के लागू होने के बाद बैंकों द्वारा लाभांश का भुगतान इन दोनों दिशानिर्देशों के पारस्परिक प्रभावों द्वारा शासित होगा।

4.2 प्रसंगवश, उक्त परिपत्र के 'बोर्ड द्वारा निगरानी' संबंधी पैरा 5 (घ) के अंतर्गत बासल II पूंजी अपेक्षाओं का जो संदर्भ दिया गया है, उसे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा कार्यान्वित तथा भारत में परिचालन करनेवाले अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर लागू प्रचलित पूंजी पर्याप्तता संरचना के रूप में पढ़ा जाए।

5. पूंजी लिखतों की वैकल्पिकता

बासल III अनुपालक पूंजी लिखतों की वैकल्पिकता के संबंध में अनिवार्य मानदंडों में से एक यह है कि बैंकों को ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए, जिससे यह आशा उत्पन्न हो कि 'कॉल' का प्रयोग किया जाएगा। उदाहरणार्थ, लिखत को 'कॉल' करने की आशा निर्मित न होने देने के लिए लाभांश/कूपन की पुनर्निर्धारित तारीख और कॉल तिथि एक ही न हो। बैंक अपने विवेक के अनुसार लाभांश/कूपन पुनर्निर्धारित तारीख तथा 'कॉल' तारीख के बीच उचित अंतर रखने पर विचार कर सकते हैं।

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