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विदेश में अध्ययनरत भारतीय विद्यार्थी - निवासीय प्रस्थिति में संशोधन

भारतीय रिज़र्व बैंक
विदेशी मुद्रा विभाग
केद्रीय कार्यालय
मुंबइ

 

ए.पी(डिआई आर सीरिज) परिपत्र सं.45

दिसंबर 8, 2003

सेवा में

विदेशी मुद्रा के सभी प्राधिकृत व्यापारी

महोदया/महोदय

विदेश में अध्ययनरत भारतीय विद्यार्थी - निवासीय प्रस्थिति में संशोधन

विदेश में अध्ययनरत भारतीय विद्यार्थीयों से, उनकी निवासीय प्रस्थिति की विभिन्न कठिनाइयों के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक में अभ्यावेदन मिलते रह हैं । विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा) की धारा 2(v) (i) के अनुसार दी गई आवासीय प्रस्थिति की परिभाषा को ध्यान में रखते हुए मामले की पुन: जांच की गई । फेमा की धारा 2(V)(i) के अंतर्गत "भारत में निवासी व्यक्ति" से तातर्प्य (i) कोई व्यक्ति जो भारत में 182 दनि से अधिक समय से पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान रह रहा हो परंतु जिसमें निम्नलिखित शामिल नहीं हैं :

(अ) कोई व्यक्ति जो निम्नलिखित में से किसी कार्य के लिए भारत से बाहर गया हो अथवा जो भारत से बाहर रहता हो -

क. भारत से बाहर रोज़गार के लिए अथवा रोजगार शुरू करने के लिए ; अथवा
ख. भारत से बाहर कोई करारेबार करने के लिए अथवा भारत से बाहर किसी व्यवसाय के लिए ; अथवा
ग. किसी अन्य प्रयोजन से, ऐसी परिस्थितियों में जिससे मे भारत से बाहर अनिश्चित अवधि तक रहने की उनकी मंशा प्रकट होती हो । "
      
2. अभ्यावेदन से ऐसा देखने में आया है कि विद्यार्थी जब किसी विनिर्दिष्ट अवधि का पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए भारत से जाता है तो विभिन्न कारणें से औपचारिक रूप से वांडित अवधि के बाद भारत से बाहर रह जाता है । अध्ययन करते समय अथवा आगे के प्रगत पाठ्यक्रम के लिए विद्यार्थी को विदेश में अपनी वित्तीय ज़रूरतों के लिए अपनी आय की प्रतिपूर्ति के लिए कोई कार्य अथवा छात्र वृत्ति प्राप्त करना पड़ता है । चूंकि उन्हें अर्जन पढ़सई करनी पड़ती है इसलिए शैक्षिक प्रयोजन के लिए उन्हें भारत छोड़ते समय की वांडित अवधि के बाद तक रहना पड़ जाता है ।

3. इसके अतिरिक्त उनके तर्क का आशय यह है कि यद्यनि वे विद्याार्थी हैं परंतु वास्तव में अपने अधिकतर खर्चों के लिए भारत में अपने घरेलू प्रेषणों के ऊपर निर्भर नहीं हैं । अकसर उन्हें काम करने की अनुमति है और दन्हें कुछ ांबंधित वित्तीय लेनदेन भी करना होता है । इसलिए उनका आग्रह है कि परिभाषा को संशेधित करने की ज़रूरत है ।

4. उर्पयुक्त परिस्थितियों कोध्यान में रखते हंए यह स्पष्ट है कि दोनों मामलों में, नामत:, पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में 182 दिन से अधिक अवधि तक विदेश में उनका रहना और भारत से बाहर अनिश्चित अवधि तक रहने की उनकी मंशा के कारण, जब वे अध्ययन के लिए विदेश जाते हैं, उन्हें अनिवासी भारतीय (एनआरआई) माना जा सकता है ।

5. अनिवासी भारतीय के रूप में वे भारत से अग्रलिखित प्रेषण प्राप्त करने के पात्र होंगे :-

(i) भरण पोषण के लिए अपने नजदीकी रिश्तेदार से स्वयं की घोषणा के आधार 1,00,000 अमेरिकी डॉलर तक, उनके अपने खर्चों के लिए , उसमें अध्ययन से संबंधित उनके प्रेषण भी शामिल हो सकते हैं, भारत से प्रेषण प्राप्त करना ;

(ii) भारत में किसी प्राधिकृत व्यापारी के पास रखे गए खाते में जमा विक्री आय/जमा शेष मे से 1 मिलियन अमरिकी डॉलर तक प्रेषण

(iii) फेमा के अंतर्गत अनिवासी भारतीय को उपलब्ध सभी अन्य संविधाएं,

(iv) भारत में अनिवासी के रूप में विद्यार्थी द्वारा लिया गया शैक्षिक और अन्य ऋण जो मई 3, 2000 की अधिसूचना सं.4/2000-आरबी के प्रावधानों के अनुसार अनुमोदित है ।

6. वह स्पष्ट किया जाता है कि इन अनुदेशों से शैक्षिक कार्यों के संबंध में विदेशी मुद्रा के प्रेषण की मौजूदा सुविधाओटं के उपयोग में कोई कमी नहीं होगी ।

7. विदेशी मुद्रा प्रबंध विनियमावली, 2000 में आवश्यक संशोधन अलग से जारी किए जा रहे हैं ।

8. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषय वस्तु की जानकारी अपने सभी संबंधित ग्राहकों को दे दें ।

9. इस परिपत्र में निहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए है ।

भवदीय

ग्रेस कोशी
मुख्य महा प्रबंधक

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