15 मिलियन अमेरिकन डालर के लिए 17 नवंबर 2000 का इंडो म्यान्मार ऋण करार - आरबीआई - Reserve Bank of India
15 मिलियन अमेरिकन डालर के लिए 17 नवंबर 2000 का इंडो म्यान्मार ऋण करार
भारतीय रिज़र्व बैंक ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं. 34 26 मई 2001 सेवा में प्रिय महोदय, 15 मिलियन अमेरिकन डालर के लिए 17 नवंबर 2000 भारतीय सरकार ने 17 नवंबर 2000 को दोनों सरकारों के बीच निष्पादित एक ऋण करारनामा के अधीन युनियन ऑफ म्यान्मार सरकार के लिए 15 मिलियन अमेरिकी डालर (पंदरह मिलियन अमेरिकी डालर मात्र) की ऋण सहायता प्रदान की है । युनियन ऑफ म्यान्मार सरकार के लिए ऋण भारत से अनुबंध में विनिर्दिष्ट के अनुसार भारतीय विनिर्माण के पूँजीगत मालों, परामर्शी सेवाओं और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं का आयात के लिए उपलब्ध होगी । अनुबंध की विषय-वस्तु का समय-समय पर संशोधन दोनों सरकारों के बीच पारस्पारिक सहमति के अनुसार जोड़, विलोपन अथवा प्रतिस्थापन के जरिए किया जायेगा । ऋण तिसरे देश आयातों को कवर नहीं करेगा । भारत से मालों का निर्यात और उनका म्यान्मार में आयात सामान्य बैंकिंग चैनलों के जरिए होनी चाहिए और दोनों के बीच प्रचातिन विधि और विनियमों के अधीन होगी । 2. ऋण की मुख्य मुख्य नियम और शर्ते इस प्रकार हैं आ) 15 मिलियन अमेरिकी डालर का ऋण जहाज तक न:शुल्क पर उपलब्ध होगा और भारत से निर्यात किये जानेवाले पात्र मालों की शत प्रतिशत मूल्य की रक्षा होगी ।पात्र संविदा की जहाजपर्यंत न:शुल्क/लागत और भाडा/लागत बीमा और भाडा संविदा मूल्य की 90 प्रतिशत तक की राशि वित्तपोषित के लिए उपलब्ध होनी चाहिए । " संविदा की पोतपर्यंत न:शुल्क मूल्य की शत प्रतिशत के लिए प्रतिपूर्ति भारतीय स्टेट बैंक, नई दिल्ली से म्यान्मार सरकार को भारत सरकार द्वारा दी गई 15 मिलियन अमेरिकी डालर से की जायेगी । साख पत्र भारतीय स्टेट बैंक द्वारा परिचालित के बारे में सूचना जारी करने के बाद ही परक्रामित है " 3. अनुबंध के पैरा 1 में निर्दिष्ट मदों के लिए ऋण करार के अधीन वित्तपोषित की जानेवाली संविदाएं हस्ताक्षरित होनी चाहिए और संबंधित साख पत्र 30 नवंबर 2001 तक स्थापित होनी चाहिए । ऋण के अधीन पूर्ण राशि की आहरण की अंतिम तिथि 30 नवंबर 2002 के रुप में निर्धारित की गई है । अनुबंध के पैरा 2 में उल्लिखित मदों के मामले में संविदाएं हस्ताक्षर करना, साख पत्र खोलना और पूरी राशि का आहरण करना 30 नवंबर 2001 के पहले होना चाहिए । यदि ऋण की पूरी राशि उक्त तिथियों के पहले आहरित नहीं की गई हो, तो शेष निरस्त हो जायेगी और युनियन ऑफ म्यान्मार सरकार द्वारा की जानेवाली चुकौती की अंतिम किश्त, अन्यथा भारत सरकार द्वारा होनेवाली सहमति को छोड़कर, तदनुसार घटायी जायेगी । 4. ऋण करार द्वारा कवर किये गये मालें के लदान को जीआर/एसडीएफ फार्मों में घोषित किया जाना चाहिए और उस पर मुख्यत: पढ़ने के लिए निम्नलिखित अंकित किया जाना होगा "भारत सरकार और युनियन ऑफ म्यान्मार सरकार के बीच 17 नवंबर 2000 के ऋण करार के अंतर्गत म्यान्मार को निर्यात"। परिपत्र की संख्या और तिथि भी जी आर/एसडीएफ फार्मों में उसके लिए उपलब्ध स्थान पर रिकार्ड करें । दर्शाये गये उक्त तरीके से बिलों के पूर्ण भुगतान की प्राप्ति पर प्राधिकृत व्यापारी संबंधित जीआर/एसडीएफ फार्मों के डयुप्लिकेट प्रतियों पर प्रमाणित करें और उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक से संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को निर्धारित पद्धति से भेजा जाये । 5. सामान्यत: ऋण सहायता के अंतर्गत वित्तपोषित निर्यातों के संबंध में कोई एजेन्सी कमीशन देय नहीं होगी । तथापि भारतीय रिज़र्व बैंक, उन मालों के संबंध में जिन्हें बिक्री के पश्चात सेवा की जरुरत है, के लिए पोतपर्यंत न:शुल्क मूल्य का 5 प्रतिशत की अधिकतम सीमा तक कमीशन की भुगतान के लिए अनुरोधों पर गुणवत्ता पर विचार करेगा । ऐसे मामलों में कमीशन को संबंधित लदान की बीजक मूल्य से घटाकर म्यान्मार में अदा किया जाना होगा और प्रतिपूर्तियोग्य राशि अदा कमीशन को घटाकर पोतपर्यंत न:शुल्क मूल्य की शत प्रतिशत होगी । कमीशन की भुगतान के लिए अनुमोदन संबंधित लदान के पहले प्राप्त किया जाना होगा । 6. प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषय-वस्तु से अपने संबंधित ग्राहकों को अवगत कराये । 7. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (1999 का 42) की धारा 10(4) और 11 (1) के अंतर्गत जारी किए गये है । इस निदेशों का किसी भी प्रकार से उल्लंघन किया जाना अथवा अनुपालन न किया जाना अधिनियम के अधीन निर्धारित जुर्माने से दंडनीय है । भवदीय (पी.के. बिस्वास) |