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निजी क्षेत्र के बैंकों/विदेशी बैंकों में आंतरिक सतर्कता

आरबीआइ/2010-11/554
डीबीएस.सीओ.एफआरएमसी.बीसी.सं. 9/23.04.001/2010-11

26 मई 2011

अध्‍यक्ष/मुख्‍य कार्यपालक अधिकारीसभी निजी क्षेत्र के बैंक/विदेशी बैंक

प्रिय महोदय,

निजी क्षेत्र के बैंकों/विदेशी बैंकों में आंतरिक सतर्कता

जैसा कि आप जानते हैं, केंद्रीय सतर्कता आयोग ने सरकारी क्षेत्र के सभी बैंकों में मुख्‍य सतर्कता अधिकारी की नियुक्ति पर दिशानिर्देश जारी किये हैं। इसका उद्देश्‍य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों में समस्‍त आंतरिक सतर्कता कार्य पूर्वनिर्धारित व संरचित कार्यविधियों द्वारा हों ताकि व्‍यापक व्‍यवहार तथा पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।

2. भारिबैं ने बैंकों में धोखाधडि़यों व कदाचारों की रोकथाम के लिए विभिन्‍न परिपत्र भी जारी किये हैं। इस संबंध में बैंक में धोखाधडि़यों/कदाचारों से संबंधित विभिन्‍न पहलुओं की जांच करने हेतु गठित समिति की सिफारिशों पर दि. 25 अगस्‍त 1992 के परिपत्र डीबीओडी सं.बीसी. 20.17.04.001; बैंकों में अंतरिक नियंत्रण व निरीक्षण/लेखा-परीक्षा प्रणालियों पर कार्य दल की सिफारिशों को सूचित करते हुए 1 नवंबर 1996 को जारी परिपत्र डीओएस.सं.पीपी. बीसी.20/ 16.03.26/ 96-97; बैंकों व वित्‍तीय संस्‍थाओं में आंतरिक सतर्कता प्रणाली को मजबूत करने पर जारी 20 सितंबर 2004 के परिपत्र डीबीएस. एफआरएमसी. सं.7/23.04.001/2004-05 की ओर विशेष ध्‍यान आकर्षित किया जाता है।

3. निजी क्षेत्र के बैंकों तथा विदेशी बैंकों के सतर्कता कार्य को सरकारी क्षेत्र के बैंकों के सतर्कता कार्य के साथ सहयोजित करने के प्रयास में निजी क्षेत्र के कुछ बैंकों तथा कुछ विदेशी बैंकों के वर्तमान सतर्कता कार्यों को इस संबंध में जारी मौजूदा दिशानिर्देशों के परिप्रेक्ष्‍य में आंका गया और यह पाया गया कि बैंकों के बीच प्रचलित प्रथाओं में अत्‍यधिक

भिन्‍नता है। अत:, यह निर्णय लिया गया है कि निजी क्षेत्र के बैंकों तथा विदेशी बैंकों के लिए तत्‍समान विस्‍तृत दिशानिर्देश जारी किये जाएं ताकि निजी क्षेत्र के बैंकों व विदेशी बैंकों के कार्यों विशेषत: भ्रष्‍टाचार, कदाचार, धोखाधडि़यों आदि से संबंधित चूकों से उत्‍पन्‍न सभी मुद्दों का बैंकों द्वारा एकसमान रूप से समाधान किया जा सके तथा समय पर उपयुक्‍त कार्रवाई की जा सके।

4. अनुबंध में दिये गये विस्‍तृत दिशानिर्देशों का उद्देश्‍य आंतरिक सतर्कता के कार्य में एकरूपता लाना एवं उसे तर्कसंगता बनाना है। आपको सूचित किया जाता है कि आप उक्‍त दिशानिर्देशों के अनुसार इस परिपत्र की प्राप्ति की तारीख से तीन महीनों के भीतर अपने बोर्ड के अनुमोदन से आंतरिक सतर्कता की एक प्रणाली लागू करें। भारतीय रिज़र्व बैंक को इस संबंध में एक अनुपालन रिपोर्ट 31 अगस्‍त 2011 को यह उससे पहले प्रस्‍तुत की जाए।

5. कृपया प्राप्ति-सूचना दें।

भवदीय

(ए. माडसामी)
मुख्‍य महाप्रबंधक


अनुबंध

निजी क्षेत्र के बैंकों एवं विदेशी बैंकों में आंतरिक सतर्कता संरचना पर दिशानिर्देश

प्रस्‍तावना सतर्कता प्रबंधन का एक अविभाज्‍य अंग है। यह साफ-सुधरे कारोबारी परिचालनों, व्‍यावसायिकता, उत्‍पादकता, मुस्‍तैदी और पारदर्शी प्रथाओं को प्रोन्‍नत करती है तथा भ्रष्‍टाचार के अवसरों को रोकने हेतु प्रणालियों और क्रिया-विधियों को लागू करना सुनिश्चित करती है जिसके फलस्‍वरूप कार्मिकों एवं संगठन की दक्षता तथा प्रभावशीलता में सुधार आता है। इन कारकों की वजह से बैंकिंग उद्योग में एक स‍मर्पित सतर्कता संरचना का होना अनिवार्य हो जाता है। निम्‍नलिखित दिशानिर्देशों का उद्देश्‍य सभी संबंधित हित-धारकों के समान्‍य हित में कार्यक्षम एवं प्रभावी सतर्कता प्रणाली को तैयार करना है।

1. निजी क्षेत्र के बैंकों एवं विदेशी बैंकों में भ्रष्‍टाचार-रोधी एजेंसियां

परिचय बैंकों के भ्रष्‍टाचार-रोधी उपायों का उत्‍तरदायित्‍व बैंक में पहचाने गये अनुशासनात्‍मक प्राधिकारी का है और उसे अपने नियंत्रण में आने वाले कर्मचारियों के खिलाफ आरोपित अथवा कर्मचारियों द्वारा किये गये कदाचार के कृत्‍यों की जांच करने तथा उपयुक्‍त दंडात्‍मक कार्रवाई करने का उत्‍तरदायित्‍व है। उससे यह भी अपेक्षित है कि वह रोकथाम के ऐसे उपयुक्‍त उपाय करें जिनसे कि उसके नियंत्रण और क्षेत्राधिकार में कर्माचारियों के दुराचरण/कदाचार की रोकथाम की जा सके। पदनामित अधिकारी(सरकारी क्षेत्रों के मामले में सीवीओ के समतुल्‍य) इन कार्यों का निर्वाह करने के लिए संबंधित बैंक के सीईओं के विशेष सहायक/परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है। वह बैंक तथा पुलिस/एसएफआईओ/अन्‍य कानूनी प्रवर्तन प्राधिकारियों के बीच के संपर्क अधिकारी के रूप में भी कार्य करता है।

आंतरिक सतर्कता का मुख्‍य

उपयुक्‍त वरीयता वाले एक अधिकारी को आंतरिक सतर्कता के मुख्‍य (सीआईवी) के रूप में पदनामित करना अपेक्षित है जो संबंधित बैंक के आंतरिक सतर्कता प्रभाग के अध्‍यक्ष के रूप में कार्य करेंगे। सीआईवी द्वारा किये जाने वाले कार्य काफी व्‍यापक होंगे जिनमें संगठन के कर्मचारियों द्वारा किये गये अथवा संभावित भ्रष्‍टाचार के कृत्‍यों के संबंध में आसूचना एकत्र करना, उन्‍हें सूचित किये गये जांच करने-योग्‍य आरोपों की जांच अथवा जांच करने हेतु आवश्‍यक कार्रवाई करना, जांच रिपोर्टों को संबंधित अनुशासनात्‍मक प्राधिकारी द्वारा आगे विचारार्थ प्रसंसाधित करना, जहां आवश्‍यक हो, सलाह के लिए बैंक के सीईओ को मामलों को प्रस्‍तुत करना, अनुचित प्रथाओं/दुराचरणों को रोकने के लिए उपाय करना आदि शामिल हैं। इस प्रकार, सीआईवी के कार्यों को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है, यथा- (i) निवारक सतर्कता, (ii) दंडात्‍मक सतर्कता और (iii) निगरानी और संसूचन

सतर्कता दृष्टिकोण क्‍या है?

सतर्कता दृष्टिकाण निम्‍नलिखित कार्यों में स्‍पष्‍टत: विद्यमान है:(i) किसी कार्यालयीन कार्य के लिए अथवा कार्यालय के किसी अन्‍य अधिकारी को प्रभावित करने के लिए कानूनी पारिश्रमिक से इतर अन्‍य पारितोषिक की मांग और/अथवा उसे स्‍वीकार करना।(ii) किसी ऐसे व्‍यक्ति से बिना प्रतिफल के अथवा अपर्याप्‍त प्रतिफल के कीमती चीज़ प्राप्‍त करना जिसके साथ कर्मचारी का कार्यालयीन संबंध है या संबंध होने की संभावना है अथवा उसके अधीनस्‍थ कर्मचारियों का कार्यालयीन संबंध है जहां वह अपना प्रभाव डाल सकता है।(iii) एक कर्मचारी के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करते हुए भ्रष्‍ट अथवा अवैध तरीके से अपने लिए अथवा किसी अन्‍य व्‍यक्ति के लिए कोई कीमती चीज़ अथवा आर्थिक लाभ प्राप्‍त करना।(iv) अपने आय-स्रोत से अधिक संपत्ति रखना।(v) दुर्विनियोजन, जालसाजी अथवा धोखेबाजी अथवा अन्‍य समतुल्‍य अपराधों के मामले।

पूर्णत: जानबूझकर लापरवाही; निर्णय लेने में लापरवाही; प्रणालियों एवं क्रियाविधियों का घोर उल्‍लंघन; आवश्‍यकता से अधिक विवेकाधिकार का प्रयोग जहां स्‍पष्‍ट रूप से कोई संगठनात्‍मक हित दृष्‍टव्‍य नहीं है; नियंत्रण अधिकारी/वरिष्‍ठ अधिकारियों को समय पर सूचित करने में चूक जैसी अनियमितताओं के मामले में अनुशासनात्‍मक प्राधिकारी को चाहिए कि वे सीआईवी की मदद से मामले का सावधानीपूर्वक अध्‍ययन करें और इस निष्‍कर्ष पर पहुंचने के लिए परिस्थितियों का मनन करें कि क्‍या संबंधित अधिकारी की सत्‍यनिष्‍ठा पर शक करने के लिए कोई युक्तियुक्‍त आधार है।

2. निवारक सतर्कता

निवारक सतर्कता के लिए सीआईवी निम्‍नलिखित उपाय करे:

(i) अपने संगठन में प्रचलित कार्य-विधि और प्रथाओं का अध्‍ययन करना ताकि ऐसी कार्य-विधियों और प्रथाओं को परिवर्तित किया जा सके जिनसे भ्रष्‍टाचार की गुंजाइश होती है और विलंब के कारणों तथा स्‍थानों का पता लगाया जा सके और विभिन्‍न स्‍तरों पर विलंब के मामलों को न्‍यूनतम किया जा सके।,

(ii) यह देखने के लिए विनियामक कार्यों की समीक्षा करना कि क्‍या वे सभी सचमुच आवश्‍यक हैं और इन कार्यों को संभालने के तरीकों और नियंत्रण की शक्तियों के उपयोग में सुधार लाया जा सकता है,

(iii) विवेकाधिकार के प्रयोग पर नियंत्रण की पर्याप्‍त विधियों को विकसित करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विवेकाधिकार का प्रयोग मनमाने ढंग से नहीं किया गया है बल्कि पारदर्शी व उचित रूप से किया गया है, और

(iv) अपने संगठन में ऐसे क्षेत्रों की पहचान करना जहां भ्रष्‍टाचार हो सकता है और यह सुनिश्चित करना कि उन क्षेत्रों में केवल प्रमाणित सत्‍यनिष्‍ठ अधिकारी ही तैनात किये जाते हैं।

3. आंतरिक सतर्कता के मुख्‍य की नियुक्ति, भूमिका और कार्य

निजी क्षेत्र के बैंकों/विदेशी बैंकों में सीआईवी की नियुक्ति सीआईवी की नियुक्ति का आधार अनुभव, ट्रेक रिकार्ड, प्रमाणित सत्‍यनिष्‍ठता और संगठन में कर्मियों के बीच आत्‍मविश्‍वास जगाने की क्षमता रखना होना चाहिए।

सीआईवी का कार्यकाल सीआईवी का समान्‍य कार्यकाल 3 वर्ष हो जिसे दो वर्षों की अतिरिक्‍त अवधि तक बढ़ाया जा सके। यदि सीआईवी को एक बैंक से अनुमोदित कार्यकाल समाप्‍त होने से पहले दूसरे बैंक में शिफ्ट करना हो तो छह वर्षों के समग्र कार्यकाल का सिद्धांत लागू होगा।

सीआईवी द्वारा संवेदनशील मामलों से जुड़ा रहना सतर्कता कार्यकर्ताओं को कार्यालयीन प्रक्रिया और निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहिए और उन्‍हें ऐसे अन्‍य प्रशासनिक लेनदेनों में शामिल नहीं होना चाहिए जो स्प्‍ष्‍टत: सतर्कता संवेदनशील बन सकते हैं। जबकि इस आवश्‍यकता का अनुपालन करना पूर्णकालिक सतर्कता कर्मियों के लिए कठिन नहीं होगा, पर अंशकालिक सतर्कता कर्मियों के संबंध में इन अनुदेशों का अनुपालन उनके सतर्कता से भिन्‍न कार्यों को यथासंभव ऐसी मदों तक सीमित करते हुए किया जा सकता है जो या तो सतर्कता के दृष्टिकोण से अलग हैं या जो अधिमानत: निरीक्षण, लेखा-परीक्षा आदि सतर्कता संबंधी कार्यों के लिए निविष्टि बन सकें।

रिपोर्टों और विवरणियों को प्रस्‍तुत करना – समीक्षा सीआईवी को चाहिए कि वे प्रत्‍येक माह के प्रथम सप्‍ताह में सभी लंबित मामलों जैसे, जांच रिपोर्टों, अनुशासनात्‍मक मामलों और अन्‍य सतर्कता संबंधी शिकायतों/मामलों की अनिवार्य रूप से समीक्षा करें। सीआईवी संगठन द्वारा किये गये सतर्कता कार्य की समीक्षा के लिए मुख्‍य कार्यपालक द्वारा बैठकों के आयोजन की व्‍यवस्‍था करेंगे। सीआईवी से यह भी अपेक्षा की जाएगी कि वे बैंक में सतर्कता संबंधी गतिविधियों पर एक रिपोर्ट नियमित आधार पर बोर्ड/स्‍थानीय शासी काउंसिल को प्रस्‍तुत करें।

3. स्‍टाफ रोटेशन और अनिवार्य छुट्टी

बैंकों को संवेदनशील पदों की पहचान करनी चाहिए और स्‍टाफ के सामान्‍य रूप से रोटेशन विशेषकर संवेदनशील डेस्‍कों से संबंधित स्‍टाफ के रोटेशन जैसो स्‍टाफ मामलों पर बोर्ड द्वारा विशिष्‍टतया अनुमादित आंतरिक नीति बनानी चाहिए। ऐसी नीति बनाते समय बैंक स्‍टाफ रोटेशन के लिए न्‍यूनतम अवधि और अनिवार्य छुट्टी शामिल करे जो स्‍टाफ के सभी स्‍तरों पर लागू होगी। सीईओ सहित प्रत्‍येक स्‍टाफ संवंर्ग में अनिवार्य छुट्टी की न्‍यूनतम अवधि भी उल्लिखित की जानी चाहिए।

4. शिकायतें

कर्मचारियों द्वारा भ्रष्‍टाचार, कदाचार अथवा दुर्व्‍यवहार के संबंध में प्राप्‍त सूचना को, चाहे वह किसी भी स्रोत से प्राप्‍त हो, शिकायत के रूप में माना जाएगा। कर्मचारियों द्वारा भ्रष्‍टाचार, कदाचार अथवा दुर्व्‍यवहार के संबंध में सूचना निम्‍नलिखित स्रोतों से प्रशासनिक प्राधिकारी/पुलिस/एसएफआईओ/भारिबैं को प्राप्‍त हो सकती है:

क. संगठन के कर्मचारियों अथवा आम जनता से प्राप्‍त शिकायतें;

ख. विभागीय निरीक्षण रिपोर्टें तथा स्‍टॉक सत्‍यापन सर्वेक्षण;

ग. छानबीन और वार्षिक संपत्ति विवरणियां;

घ. आचरण नियमों के अंतर्गत सूचित लेनदेनों की छानबीन

ङ. खातों की नेमी लेखा परीक्षा के दौरान पता लगाई गई अनियमितताओं की रिपोर्टें उदा. अभिलेखों के मे हेर-फेर करना, आवश्‍यकता से अधिक भुगतान, धन अथवा वस्‍तुओं का दुर्विनियोजन आदि ;

च. बैंक के खातों की लेखा-परीक्षा रिपोर्टें;

छ. प्रेस आदि में आनेवाली शिकायतें और आरोप

ज. यदि पहचानने याग्‍य किसी स्रोत से मौखिक रूप से कोई सूचना प्राप्‍त होती है तो उसे लिखित रूप में रखा जाए; और

झ. सीबीआई, सथानीय निकाय आदि जैसी एजेंसियों से प्राप्‍त आसूचना।

इनके अतिरिक्‍त, संबंधित सीआईवी कर्मचारियों के कदाचार एवं दुर्व्यवहार के संबंध में सूचना प्राप्‍त करने के लिए उपयुक्‍त विधि विकसित व अपना सकते हैं। सीआईवी द्वारा प्राप्‍त गुमनाम/छद्मनाम शिकायतों पर गुण-दोष के आधार पर कार्रवाई की जाए।

5. जांच करने हेतु जांच एजेंसी

यदि किसी शिकायत में निहित आरोपों की जांच करने हेतु निर्णय लिया जाता है तो यह निर्णय लेना आवश्‍यक होगा कि क्‍या आरोपों की जांच विभागीय तौर पर की जाए अथवा पुलिस द्वारा जांच आवश्‍यक है। किस एजेंसी को शिकायत प्रस्‍तुत की जानी है इसके संबंध में अनुदेश 'धोखाधडि़यां-रिपोर्टिंग का वर्गीकरण' पर दिनांक 1 जुलाई 2010 के मास्‍टर परिपत्र डीबीएस.एफआरएमसी.बीसी.सं.1/23.04.001/2010-11 में दिये गये हैं।

6. पुलिस/एसएफआईओं को सौंपे गये मामलों की समीक्षा

सामान्‍यत: प्रशासन प्राधिकारी को पुलिस द्वारा दर्ज मामले की समीक्षा नही करनी चाहिए। तथापि, यदि चर्चा/समीक्षा के लिए कोई विशेष कारण हैं तो पुलिस को इसके साथ अनिवार्य रूप से सहयोजित किया जाना चाहिए।

7. झूठी शिकायतें प्रस्‍तुत करने वाले व्‍यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई

यदि किसी कर्मचारी के विरुद्ध दी गई शिकायत दुर्भावपूर्ण, कष्‍टप्रद और निराधार पाई गई तो इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए कि क्‍या ऐसी झूठी शिकायत देने के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

8. नियम प्रवर्तन प्राधिकारियों और प्रशासनिक प्राधिकारियों के बीच निकट संबंध

किसी मामले के बारे में पूछताछ व जांच और अलग-अलग मामलों का निपटान करते समय बैंक के सीआईवी और पुलिस प्राधिकारियों/एसएफआईओं के बीच निकटता से संपर्क व सहयोग का होना जरूरी है क्‍योंकि पुलिस प्राधिकारियों/एसएफआईओ तथा सीआईवी दोनों को संबंधित अधिकारी के कार्यकलापों के बारे में अलग-अलग स्रोतों से सूचना प्राप्‍त होती है। दोनों पक्ष एक दूसरे की सूचना की जांच उचित स्‍तर एवं अंतराल पर कर सकते हैं तथा सीआईवी तथा पुलिस अधि‍कारियों/एसएफआईओ के बीच सावधिक बैठकें आयोजित कर दोनों पक्ष इस संबंध में अद्यतन गतिविधियों से भली-भांति अवगत हो सकते हैं।

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