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म्युच्युअल फंडों की तरल (लि‍क्वि‍ड)/अल्पावधि‍क ऋण योजनाओं में बैंकों के नि‍वेश

आरबीआइ/2011-12/106
बैंपवि‍वि.  बीपी. बीसी. सं. 23/21.04.141/2011-12

 5 जुलाई  2011
14 आषाढ़ 1933 (शक)

अध्यक्ष एवं प्रबंध नि‍देशक/
मुख्य कार्यपालक अधि‍कारी
सभी अनुसूचि‍त वाणि‍ज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

म्युच्युअल फंडों की तरल (लि‍क्वि‍ड)/अल्पावधि‍क ऋण योजनाओं में बैंकों के नि‍वेश

कृपया मौद्रि‍क नीति वक्तव्य 2011-12 के पैरा 112 (उद्धरण संलग्न) का अवलोकन करें, जि‍समें यह कहा गया है कि म्युच्युअल फंडों की तरल (लि‍क्वि‍ड) योजनाओं में बैंकों के नि‍वेश में कई गुना वृद्धि हुई है । लि‍क्वि‍ड योजनाएं वाणि‍ज्य बैंक जैसे संस्थागत नि‍वेशकों पर अत्यधि‍क नि‍र्भर हैं, जि‍नकी मोचन अपेक्षाएं बड़ी और एक साथ होने की संभावना रहती हैं । दूसरी ओर म्युच्युअल फंड संपार्श्‍वीकृत उधार और ऋण बाध्यता (सीबीएलओ) तथा मार्केट रि‍पो जैसे एक दि‍वसीय बाजार में बड़े ऋणदाता हैं, जहां बैंक बड़े उधारकर्ता हैं । म्युच्युअल फंडों की वि‍भि‍न्न योजनाएं बैंकों के जमा प्रमाण पत्रों में भी भारी नि‍वेश करती हैं । बैंकों और म्युच्युअल फंडों के बीच नि‍धि के इस चक्रीय प्रवाह से चलनि‍धि संकट/दबाव के दि‍नों में प्रणालीगत जोखि‍म उत्पन्न हो सकता है । इस प्रकार बैंकों के समक्ष वि‍शाल चलनि‍धि जोखि‍म की संभावना रहती है । अत:, म्युच्युअल फंडों की लि‍क्वि‍ड/ अल्पावधि‍क ऋण योजनाओं पर कति‍पय सीमा नि‍र्धारि‍त करना वि‍वेक सम्मत होगा ।

2. तदनुसार, यह नि‍र्णय लि‍या गया है कि 1 वर्ष तक की भारि‍त औसत परि‍पक्वता के पोर्टफोलि‍यो वाली म्युच्युअल फंडों की तरल/अल्पावधि‍क योजनाओं में बैंकों का कुल नि‍वेश पि‍छले वर्ष के 31 मार्च की स्थि‍ति के अनुसार उनकी नि‍वल मालि‍यत के 10 प्रति‍शत की वि‍वेकपूर्ण अधि‍कतम सीमा के अधीन होगा । भारि‍त औसत परि‍पक्वता की गणना प्रति‍भूति‍यों की परि‍पक्वता की बची अवधि के औसत को नि‍वि‍ष्ट राशि से भारांकि‍त करके की जाएगी ।

3. सहज संक्रमण सुनि‍श्चि‍त करने के लि‍ए यह नि‍र्णय लि‍या गया है कि जि‍न बैंकों का म्युच्युअल फंडों की इन योजनाओं में नि‍वेश पहले से ही 10 प्रति‍शत की सीमा से अधि‍क है, वे यथाशीघ्र परंतु इस परि‍पत्र की तारीख से छ: महीने के भीतर उक्त अपेक्षा का अनुपालन करें ।

भवदीय

(ए. के. खौंड)
मुख्य महाप्रबंधक

अनुलग्नक : यथोक्त


112.  यह देखा गया है कि उधारोन्‍मुख म्‍युच्‍युअल फंडों की अर्थसुलभ (लिक्विड) योजनाओं में बैंकों के निवेश में कई गुना वृद्धि हुई है। अर्थसुलभ (लिक्विड) योजनाएं बड़े पैमाने पर संस्‍थागत निवेशकों, जैसे वाणिज्यिक बैंकों, जिनकी मोचन अपेक्षाएं काफी अधिक और एक साथ होती हैं, पर टिकी हुई हैं। दूसरी ओर, उधारोन्‍मुख म्‍युच्‍युअल फंड संपार्श्‍वीकृत उधार और सीबीएलओ तथा बाज़ार रिपो जैसे एक दिवसीय बाज़ार में बड़े ऋणदाता होते हैं, जहां बैंक बड़े उधारकर्ता होते हैं। उधारोन्‍मुख म्‍युच्‍युअल फंड बैंकों के जमा प्रमाणपत्रों में भारी निवेश करते हैं। बैंकों और उधारोन्‍मुख म्‍युच्‍युअल फंडों के बीच निधियों का ऐसा प्रवाह तनाव/चलनिधि संकट के समय प्रणालीगत जोखिम पैदा कर सकता है। इस प्रकार, बैंकों को संभवत: बड़े चलनिधि जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। अत: बैंकों के उधारोन्‍मुख म्‍युच्‍युअल फंड में निवेश करने पर कतिपय प्रतिबंध लगाना उचित समझा गया है। तदनुसार प्रस्ताव है कि

  • बैंकों द्वारा उधारोन्‍मुख म्यूचुअल फंडों की तरल योजनाओं में निवेश पिछले वर्ष के 31 मार्च की स्थिति के अनुसार उनकी निवल मालियत के 10 प्रतिशत की विवेकपूर्ण अधिकतम सीमा के अधीन होगा। हालांकि, सहज संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए, जिन बैंकों की ऋण उन्‍मुख म्यूचुअल फंडों में पहले से ही निवेश 10 प्रतिशत की सीमा से अधिक है, उन्‍हें छह महीने के भीतर इस अपेक्षा को पूरा करने की अनुमति होगी।

 

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