आरबीआइ/2008-09/183 बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 46 /08.12.001/2008-09 19 सितंबर 2008 28 भाद्र 1930 (शक) अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक /मुख्य कार्यपालक अधिकारी सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और स्थानीय क्षेत्र बैंकों को छोड़कर) महोदय सहायता संघीय व्यवस्था/बहु बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत ऋण देना जैसा कि आपको ज्ञात है भारतीय रिज़र्व बैंक ने अक्तूबर 1996 में सहायता संघ/बहु बैंकिंग/समूहन व्यवस्था के परिचालन के संबंध में विभिन्न विनियामक व्यवस्थाएं वापस ले ली थीं, ताकि ऋण वितरण प्रणाली में लचीलापन आये और ऋण प्रवाह आसान बने । परंतु, सहायता संघीय/बहु बैंकिंग व्यवस्था से संबंधित हाल में घटित धोखाधड़ी के मामलों को देखते हुए केंद्रीय सतर्कता आयोग, भारत सरकार ने बैंकिंग प्रणाली में सहायता संघीय उधार और बहु बैंकिंग व्यवस्था के कामकाज पर चिंता व्यक्त की है । आयोग ने धोखाधड़ी की घटनाओं का मुख्य कारण विभिन्न बैंकों के बीच उधारकर्ताओं के खाते के परिचालन और ऋण इतिहास के संबंध में जानकारी का परस्पर प्रभावी आदान-प्रदान न होना बताया है । 2. हमने भारतीय बैंक संघ के साथ परामर्श करके इस मामले की जांच की है । भारतीय बैंक संघ की राय है कि एक से अधिक बैंकों से ऋण सुविधा प्राप्त करनेवाले उधारकर्ताओं की स्थिति के संबंध में बैंकों के बीच जानकारी के आदान-प्रदान/सूचना के प्रसार में सुधार लाने की आवश्यकता है । अत: बैंकों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे एक से अधिक बैंकों से ऋण सुविधा पानेवाले उधारकर्ताओं के संबंध में अपने सूचना आधार को निम्नानुसार सुदृढ़ करें : (i) | नयी ऋण सुविधा मंजूर करते समय बैंक उधारकर्ताओं से अनुबंध 1 में अन्य बैंकों से पहले से ही मिल रही ऋण सुविधाओं के संबंध में घोषणा प्राप्त करें । विद्यमान उधारकर्ताओं के मामले में, सभी बैंकों को अपने ऐसे उधारकर्ताओं से घोषणा प्राप्त करनी चाहिए जो 5.00 करोड़ रुपये और उससे अधिक की स्वीकृत सीमा का उपभोग कर रहे हैं या बैंकों को यह पता है कि उनके उधारकर्ता अन्य बैंकों से ऋण सुविधा प्राप्त कर रहे हैं । जैसा कि ऊपर निर्दिष्ट किया गया है, बैंकों को अन्य बैंकों के साथ सूचना के आदान-प्रदान की प्रणाली आरंभ करनी चाहिए। | (ii) | बाद में बैंकों को अनुबंध II में दिये गये फार्मेट में अन्य बैंकों के साथ उधारकर्ताओं के खातों के परिचालन के संबंध में कम-से-कम तिमाही अंतराल पर सूचना का आदान-प्रदान करना चाहिए । | (iii) | अनुबंध III में दिये गये नमूने के अनुसार किसी प्रोफेशनल से, अधिमानत: किसी कंपनी सेक्रेटरी से प्रचलित विभिन्न सांविधिक अपेक्षाओं के अनुपालन के संबंध में नियमित प्रमाणन प्राप्त करें । | (iv) | सिबिल (सीआइबीआइएल) से प्राप्त क्रेडिट रिपोर्टों का अधिक उपयोग करें । | (v) | बैंकों को चाहिए कि वे भविष्य में (वर्तमान सुविधाओं के मामले में अगले नवीकरण के समय) ऋण करारों में ऋण सूचना के आदान-प्रदान के संबंध में उपयुक्त खंड शामिल करें ताकि गोपनीयता संबंधी मुद्दों का समाधान हो सके । |
भवदीय (प्रशांत सरन) प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
बहु बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत वित्त के लिए प्रस्ताव करते समय उधारकर्ता संस्था द्वारा बैंकों को घोषित की जानेवाली न्यूनतम जानकारी क. अन्य बैंकों से उधार की व्यवस्था का ब्योरा (संस्था-वार) I. बैंक/संस्था का नाम और पता | | II. किस प्रयोजन के लिए उधार लिया | | III. स्वीकृत सीमा (संपूर्ण ब्योरा दिया जाए, उदाहरणार्थ कार्यशील पूंजी/मांग ऋण/मीयादी ऋण/अल्पावधि ऋण/ विदेशी मुद्रा ऋण, कार्पोरेट ऋण/ऋण सहायता / चैनल वित्तपोषण, अनुषंगी सुविधाएं - जैसे एलसी, बीजी, डीपीजी (आइ और एफ) आदि। साख पत्र बिलों की भुनाई/ परियोजना-वार लिये गये वित्त के बारे में भी ब्योरा दें । | | IV. स्वीकृति की तारीख | | V. वर्तमान बकाया | | VI. अतिदेय संबंधी स्थिति, यदि कुछ हो | | VII. चुकौती की शर्तें (मांग ऋण, मीयादी ऋण, कार्पोरेट ऋण, परियोजना-वार वित्त के लिए) | | VIII. दी गई जमानत (प्राथमिक और संपाश्दिवक जमानत का संपूर्ण ब्योरा जिसमें परियोजना-वार वित्त/ जुटाये गये ऋण से होने वाले विनिर्दिष्ट नकदी प्रवाह तथा प्रस्तुत की जानेवाली व्यक्तिगत/कार्पोरेट गारंटी शामिल है) | | IX. सुविधाओं के लिए आवेदन जो प्रक्रियाधीन है | | [वाणिज्य बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से घरेलू तथा विदेशी उधार हेतु दी जानेवाली जानकारी] ख. विविध ब्योरे i. वर्ष के दौरान जुटाये गये वाणिज्यिक पेपर (सीपी) तथा वर्तमान बकाया | | ii. बैंकिंग प्रणाली के बाहर से प्राप्त वित्तपोषण, उदाहरणार्थ साख-पत्रों की भुनाई | | iii. मुख्य तथा संबद्ध कार्यकलाप तथा उनके स्थान | | iv. बिक्री का क्षेत्र तथा बाज़ार शेयर | | v. वित्तीय पहलू के ब्योरे जिसमें अन्य ऋणदाताओं के साथ सहमत/स्वीकृत महत्वपूर्ण वित्तीय समझौता यदि कोई हो तथा बैंक की आवश्यकता के अनुसार जहां कहीं लागू डीएससीआर अनुमान शामिल हैं । | | vi. वित्तपोषण करनेवाले बैंकों के भीतर/बाहर परिचालित किये जा रहे सीआइडी खाते, यदि कोई हो | | vii. सांविधिक प्राधिकारियों द्वारा मांग/उनकी वर्तमान स्थिति | | viii. अनिर्णीत मुकदमे | | ix. वित्तपोषण करने वाले अन्य बैंकों के साथ सूचना का आदान-प्रदान करने के लिए बैंक को प्राधिकृत करने वाली घोषणा । | |
बहु बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत संशोधित फार्मेट ऋण सूचना का आदान- प्रदान I. उधारकर्ता पक्ष का नाम और पता | | II. गठन | | III. निदेशकों/भागीदारों के नाम | | IV. कारोबारी गतिविधि मुख्यसंबद्ध | | V. वित्तपोषण करने वाले अन्य बैंकों के नाम | | VI. निदेशकों/भागीदारों की निवल मालियत | | VII. समूह संबंध, यदि कोई हो | | VIII. सहयोगी संस्थाओं के ब्योरे, यदि वे एक ही बैंक के साथ लेन-देन कर रही हों | | IX. पूर्ववर्ती रिपोर्ट की तुलना में शेयरधारिता तथा प्रबंधन में परिवर्तन, यदि कोई हो | | I. आइआरएसी वर्गीकरण | | II. वर्णन के साथ आंतरिक क्रेडिट रेटिंग | | III. बाह्य क्रेडिट रेटिंग, यदि कोई हो | | IV. उधारकर्ता की अद्यतन उपलब्ध वार्षिक रिपोर्ट | दिनांक ---------- की स्थिति के अनुसार | भाग III (एक्सपोज़र ब्योरे) |
I. ऋण सुविधाओं का प्रकार, उदाहरणार्थ कार्यशील पूंजी ऋण/मांग ऋण/मीयादी ऋण/अल्पावधि ऋण/ विदेशी मुद्रा ऋण, कार्पोरेट ऋण/ऋण सहायता/ चैनेल वित्तपोषण, अनुषंगी सुविधाएं जैसे एलसी, बीजी तथा डीपीजी (आई और एफ) आदि । साख पत्र बिलों की भुनाई/ परियोजना-वार लिये गये वित्त के बारे में भी ब्योरे दें । | | II. ऋण का प्रयोजन | | III. ऋण सुविधाओं की तारीख (अस्थायी सुविधाएं शामिल करते हुए) | | IV. स्वीकृत राशि (सुविधा-वार) | | V. शेष बकाया (सुविधा-वार) | | VI. चुकौती की शर्तें | | VII. दी गयी जमानत प्राथमिकसंपाश्दिवकव्यक्तिगत/कार्पोरेट गारंटियांनकदी प्रवाह पर नियंत्रण की सीमा | | VIII. मीयादी प्रतिबद्धताओं/पट्टा किराया/अन्य में चूक | | IX. कोई अन्य विशेष जानकारी जैसे कि कोर्ट केस, सांविधिक देयराशियाँ, बड़ी चूक, आंतरिक/बाह्य लेखा परीक्षा की टिप्पणियां | | I. निधि सुविधाओं का परिचालन(नकद प्रबंधन/अधिक आहरण की प्रवृत्ति पर आधारित) | | II. अनुषंगी सुविधाओं का परिचालन(भुगतान के पूर्ववृत्त पर आधारित) | | III. वित्तीय समझौतों का अनुपालन | | IV. कंपनी की आंतरिक प्रणाली तथा कार्यपद्धति | | V. प्रबंधन की गुणवत्ता | | VI. समग्र मूल्यांकन | | (उपर्युक्त को अच्छा, संतोषजनक अथवा औसत से कम के रूप में ही निर्धारित किया जाए) (*) इस शीर्ष के अंतर्गत टिप्पणियां शामिल करने के लिए व्यापक दिशानिर्देश अगले पृष्ठ पर दिये गये हैं भाग IV के अंतर्गत टिप्पणियाँ शामिल करने हेतु व्यापक दिशानिर्देश ऋण सूचना रिपोर्ट का (अनुभव) | | अच्छा | संतोषजनक | औसत से नीचे | I. | निधिक सुविधाओं का परिचालन | | | | | - जमा से अधिक राशि का आहरण (कितनी बार)
| 4 बार तक | 5 से 6 बार | 6 से अधिक बार | | | 1 महीने के भीतर | 2 महीने के भीतर | 2 महीने से अधिक | | - जमा से अधिक राशि के आहरण की सीमा
(ऋण सीमा का प्रतिशत) | 10 प्रतिशत तक | 10 से 20 प्रतिशत | 20 प्रतिशत से अधिक | II. | अनुषंगी सुविधाओं का परिचालन | | | | | | 2 बार तक | 3 से 4 बाद | 4 बार से अधिक | | | 1 सप्ताह के भीतर | 2 सप्ताह के भीतर | 2 सप्ताह से अधिक | III. | वित्तीय समझौतों का अनुपालन | | | | | - स्टाक विवरण / वित्तीय आंकड़े
| समय पर | 15 दिन तक विलंब | 15 दिन से अधिक विलंब | | | तुंत | 2 महीने तक विलंब | 2 महीने से अधिक विलंब | IV. | कंपनी की आंतरिक प्रणाली और कार्य प्रणाली | | | | | | पर्याप्त प्रणालियां हैं | पर्याप्त प्रणालियां हैं परंतु अनुपालन नहीं किया जाता है | पर्याप्त प्रणालियां नहीं हैं | | - प्राप्य राशियों का प्रबंधन
| -वही- | -वही- | वही | | | -वही- | वही | -वही- | | | -वही- | वही | -वही- | V. | प्रबंधन की गुणवत्ता | | | | | | विश्वसनीय | प्रतिकूल कुछ नहीं | पिछले स्तंभों में श्रेणीबद्ध नहीं किया जा सकता | | - विशेषज्ञता क्षमता/वचनबद्धता
| व्यावसायिक तथा भविष्योन्मुखी | आवश्यक अनुभव है | - वही - | | - पिछला कार्यनिष्पादन रिकार्ड
| समय पर | कार्यनिष्पादन | - वही- |
भाग : 1 सावधानी रिपोर्ट प्रबंधक --------------- (बैंक का नाम) --------------------- को समाप्त छमाही की स्थिति के अनुसार मैंने/हमने ------------------------------- लिमिटेड (कंपनी) के रजिस्टरों, अभिलेखों, बहियों और कागजातों की जांच की है, जिन्हें कंपनी अधिनियम 1956 (अधिनियम) तथा उसके अंतर्गत बनाये गये नियमों, विभिन्न कानूनों के यथाप्रयोज्य प्रावधानों, कंपनी के बहिर्नियम और अंतर्नियम में उल्लिखित प्रावधानों तथा मान्यताप्राप्त शेयर बाजारों के साथ कंपनी ने यदि कोई सूचीबद्धता करार किया हो तो उसमें उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार रखा जाता है । मेरे/हमारे विचार में तथा मेरी/हमारी सर्वोत्तम जानकारी के अनुसार तथा मेरे/हमारे द्वारा की गयी जांच तथा कंपनी, उसके अधिकारियों और एजेंटों द्वारा मुझे/हमें दिये गये स्पष्टीकरण के अनुसार मैं/ंहम उपर्युक्त अवधि के संबंध में रिपोर्ट करते हैं कि 1. | कंपनी का प्रबंधन निदेशक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें निम्नलिखित व्यक्ति हैं : समीक्षाधीन अवधि के दौरान निम्नलिखित परिवर्तन हुए : | 2. | कंपनी की शेयरधारिता का स्वरूप इस प्रकार है : समीक्षाधीन अवधि के दौरान निम्नलिखित परिवर्तन हुए : | 3. | कंपनी ने (i) समीक्षाधीन अवधि के दौरान संस्था के बहिर्नियम के निम्नलिखित प्रावधानों को बदला है तथा अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन किया है | | (ii) समीक्षाधीन अवधि के दौरान संस्था के निम्नलिखित अंतर्नियमों को बदला है तथा अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन किया है । | 4. | समीक्षाधीन अवधि के दौरान कंपनी ने उन व्यावसायिक संस्थाओं के साथ निम्नलिखित लेनदेन किया, जिनमें निदेशकों का हित निहित था । | 5. | कंपनी ने समीक्षाधीन अवधि के दौरान अपने निदेशकों को और/अथवा ऐसे व्यक्तियों या फर्मों या कंपनियों को, जिनमें निदेशकों का हित निहित था, --------------- रुपये का ऋण दिया, गारंटी दी और जमानत दी । | 6. | कंपनी ने समीक्षाधीन अवधि के दौरान निम्नानुसार अन्य व्यावसायिक संस्थाओं को ऋण और निवेश दिया या गारंटी दी या जमानत दी : | 7. | कंपनी द्वारा निदेशकों, सदस्यों, जनता, वित्तीय संस्थाओं, बैंकों और अन्य से लिये गये उधार की राशि कंपनी की उधार सीमा के भीतर है । कंपनी के उधार का ब्यौरा निम्नानुसार है : | 8. | समीक्षाधीन अवधि के दौरान कंपनी ने जनता की जमाराशि या गैर-जमानती ऋणों की चुकौती में कोई चूक नहीं की है तथा कंपनी अथवा उसके निदेशक भारतीय रिज़र्व बैंक की चूककर्ता सूची या ईसीजीसी की विनिर्दिष्ट अनुमोदन सूची में शामिल नहीं हैं । | 9. | कंपनी ने समीक्षाधीन अवधि के दौरान कंपनी की आस्तियों पर निम्नानुसार भार सर्जित किया, संशोधित किया अथवा उनके संबंध में संतुष्टि की : | 10. | कंपनी का विदेशी मुद्रा एक्सपोज़र और विदेशी उधार इस प्रकार हैं : | 11. | कंपनी ने पात्र व्यक्तियों को सभी प्रतिभूतियां जारी की हैं, ऑफर की हैं और आबंटित की हैं तथा संबंधित व्यक्तियों को इससे संबंधित पत्र, कूपन, वारंट और प्रमाणपत्र जारी किये हैं तथा अपने अधिमान शेयर/डिबेंचर छुड़ाये हैं और (जहां लागू हो) निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए निर्धारित समय के भीतर अपने शेयर वापस खरीदे हैं । | 12. | कंपनी ने अपनी सभी रक्षित आस्तियों का बीमा कराया है । | 13. | कंपनी ने ऋण सुविधा लेने के समय तथा ऋण चालू रहने के दौरान ऋण देनेवाली संस्था द्वारा निर्धारित निबंधन और शर्तों का अनुपालन किया है तथा निधि का उपयोग उन्हीं प्रयोजनों के लिए किया है जिनके लिए उक्त उधार लिया गया था । | 14. | कंपनी ने कंपनी अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के अनुसार लाभांश की घोषणा की है और अपने शेयरधारकों को उनका भुगतान किया है । | 15. | कंपनी ने अपनी सभी आस्तियों का पूरा बीमा कराया है । | 16. | कंपनी/निदेशक भारतीय रिज़र्व बैंक की चूककर्ता सूची में नहीं हैं । | 17. | कंपनी/निदेशक इसीजीसी की विनिर्दिष्ट अनुमोदन सूची में नहीं हैं । | 18. | कंपनी ने अपनी सभी सांविधिक देय राशियों का भुगतान किया है तथा इस संबंध में कोई बकाया राशि नहीं है । | 19. | कंपनी ने कंपनी अधिनियम की धारा 372 क में अंतर-कंपनी ऋण और निवेश से संबंधित निर्धारित प्रावधानों का अनुपालन किया है । | 20. | कंपनी ने भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी लागू अनिवार्य लेखा मानकों का अनुपालन किया है । | 21. | कंपनी ने निवेशक शिक्षा और सुरक्षा निधि में सभी अदत्त लाभांशों तथा ऐसी अन्य राशियों को जमा किया है, जिनके संबंध में ऐसी अपेक्षा की गयी है । | 22. | अधिनियम के अंतर्गत आरोपित अपराधों के लिए कंपनी के विरुद्ध आरंभ किये गये अभियोग या कंपनी को प्राप्त कारण बताओ नोटिसों तथा ऐसे मामलों में कंपनी पर लगाये जुर्माने और अर्थदंड या कोई अन्य दंड की एक सूची संलग्न है । | 23. | कंपनी ने यथाप्रयोज्य सूचीबद्धता करार के विभिन्न खंडों का अनुपालन किया है । | 24. | कंपनी ने निर्धारित प्राधिकारियों के पास भविष्य निधि में कर्मचारियों और नियोक्ता दोनों के अंशदान जमा किये हैं । |
टिप्पणी : यदि कोई परिवर्तन सूचक, आपत्ति सूचक या प्रतिकूल टिप्पणी हो तो उसका यथास्थान उल्लेख किया जाए । स्थान : | | तारीख : | | | हस्ताक्षर : | | कंपनी सेक्रेटरी का नाम : | | सी. पी. सं. |
| भाग II सनदी लेखाकारों /कंपनी सेक्रेटरी द्वारा उधार लेनेवाली कंपनियों का प्रमाणन i. | बैंकों द्वारा स्टॉक की लेखा परीक्षा की विचारार्थ मदें स्पष्ट रूप में बतायी जानी चाहिए, ताकि सनदी लेखाकार ऐसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकें। | ii. | यदि सांविधिक लेखा परीक्षक उधार दी गयी राशि के अंतिम उपयोग का सत्यापन करते हैं तो यह बैंकों के लिए अच्छा आश्वासन होगा। | iii. | चूँकि बैंक अक्सर गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के साथ कारोबार करते हैं, अत: एक विनिर्दिष्ट सीमा से अधिक टर्नओवर वाली कंपनियों के संबंध में प्रकटीकरण अपेक्षाएँ सूचीबद्ध कंपनियों पर लागू अपेक्षाओं के समान की जा सकती हैं। उदाहरण के लिए समेकित तुलनपत्र, खंड रिपोर्टिंग आदि। बड़ी शेयरधारिता के संबंध में सूचना भी उपयोगी होगी। | iv. | इसके अलावा, सनदी लेखाकार या कंपनी सेक्रेटरी से निम्नलिखित अतिरिक्त प्रमाणन पर भी विचार किया जा सकता है : | | (क) चूककर्ता सूची (भा.रि.बैं/इसीजीसी) /इरादतन चूककर्ता सूची आदि में कंपनी निदेशकों का नाम शामिल न होना। | | (ख) एक विनिर्दिष्ट उच्चतम सीमा से अधिक राशि वाले मुकदमों के ब्योरे | | (ग) कंपनी अधिनियम की धारा 372(क)के अनुपालन के संबंध में एक विनिर्दिष्ट प्रमाणपत्र, संभवत: कंपनी सेक्रेटरी से। | | (घ) कंपनी की आस्तियों के संबंध में ऋण भार के सृजन /परिवर्तन/संतुष्टि से संबंधित ब्यौरे, बीमा से संबंधित स्थिति, प्राप्त कारण बताओ नोटिस, लगाये गये जुर्माने और अर्थदंड के ब्यौरे। | v. | परिचालन की सुविधा की दृष्टि से यह सुझाव दिया जाता है कि लेखा परीक्षकों को प्रत्येक 3 वर्ष के बजाय प्रत्येक 5 वर्ष में बदला जाए। | vi. | यदि समूह का टर्न ओवर 100 करोड़ रुपये से अधिक हो तो संकेंद्रण से बचने के लिए समूह कंपनियाँ अलग-अलग सांविधिक/आंतरिक लेखा परीक्षक रख सकती हैं। |
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