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79050219

मास्टर परिपत्र - गारंटियां और सह-स्वीकृतियां

आरबीआइ/2006-07/33
संदर्भ : बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी.17 /13.03.00/2005-06

1 जुलाई 2006
10 आषाढ़ 1928 (शक)

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

मास्टर परिपत्र - गारंटियां और सह-स्वीकृतियां

कृपया आप 5 सितंबर 2005 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि. सं. डीआइआर. बीसी. 32/13.03.00/ 2004-2005 देखें, जिसमें बैंकों द्वारा गारंटियां और सह-स्वीकृतियां जारी करने से संबंधित विषयों पर 30 जून 2005 तक बैंकों को जारी किये गये अनुदेश / दिशा-निर्देश समेकित किये गये हैं । अब उक्त मास्टर परिपत्र को 30 जून 2006 तक जारी किये गये अनुदेशों को शामिल करते हुए उपयुक्त रूप में अद्यतन कर दिया गया है और इसे रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (/en/web/rbi) पर भी उपलब्ध करवा दिया गया है ।

2. यह नोट किया जाये कि परिशिष्ट में दिये गये परिपत्रों में निहित सभी अनुदेश समेकित किये गये हैं ।

भवदीय

(पी.विजय भास्कर)

मुख्य महाप्रबंधक


 

 

 

क्रम सं.

 

विषय-सूची

 

अनुक्रमणिका

1.

सामान्य

2.

गारंटी कारोबार चलाने से संबंधित दिशा-निर्देश

3.

विदेशी मुद्रा प्रबंधन (गारंटी) विनियमावली के अंतर्गत जारी विनियमों द्वारा नियंत्रित गारंटियां

4.

अंतर-कंपनी जमाराशियों/ऋणों की गारंटियों पर प्रतिबंध

5.

लागू की गयी गारंटियों की अदायगी

6.

बिलों की सह-स्वीकृति

7.

साख पत्र के मामले में ली जानेवाली पूर्व सावधानी

अनुबंध I

अनुबंध II

परिशिष्ट



गारंटियों और सह-स्वीकृतियों पर मास्टर परिपत्र

1. सामान्य

किसी बैंकिंग संस्था की मजबूती का पता लगाने के लिए महत्वपूर्ण मानदंड न केवल उसके आस्ति संविभाग का आकार और स्वरूप है, बल्कि उसके आकस्मिक देयता वायदे जैसे गारंटियां, साखपत्र आदि भी हैं । कारोबार के भाग के रूप में, बैंक विभिन्न प्रयोजनों के लिए अपने ग्राहकों की ओर से गारंटियां जारी करते हैं । बैंकों द्वारा निष्पादित गारंटियों में कार्यनिष्पादन गारंटियां और वित्तीय गारंटियां दोनों शामिल होती हैं । ये गारंटियां करार की शर्तों, जैसे सुरक्षा, अवधिपूर्णता और प्रयोजन के अनुसार तैयार की जाती हैं । तुलनपत्र में शामिल और तुलनपत्र बाह्य ऋण आदि जोखिमों के लिए जोखिम भार लागू किये जाने से बैंक जोखिम के प्रति अधिक संवेदनशील हो गये हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे अपने कारोबार के ऋण आदि जोखिमों की अधिक विवेकपूर्ण ढंग से संरचना कर सके ।

2. गारंटी कारोबार चलाने से संबंधित दिशा-निर्देश

2.1 सामान्य दिशा-निर्देश

बैंकों को अपना गारंटी कारोबार चलाने के लिए निम्नलिखित सामान्य दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए :

जहां तक गारंटी के प्रयोजन का संबंध है, सामान्य नियम के अनुसार, बैंकों को अपने को वित्तीय गारंटियों के प्रावधान तक सीमित रखना चाहिए और कार्यनिष्पादन गारंटी कारोबार के संबंध में पर्याप्त सतर्कता बरतनी चाहिए ।

जहां तक अवधिपूर्णता का संबंध है, नियम के अनुसार बैंकों को अल्प अवधिपूर्णताओं को गारंटी देनी चाहिए और लंबी अवधिपूर्णताओं को अन्य संस्थाओं द्वारा गारंटी दिये जाने के लिए छोड़ देना चाहिए । कोई भी बैंक गारंटी सामान्य तौर पर 10 वर्ष से अधिक की अवधिपूर्णता की नहीं होनी चाहिए ।

2.2 गैर-जमानत प्राप्त अग्रिमों और गारंटियों के लिए मानदंड

17 जून 2004 तक बैंकों को गैर-जमानती गारंटियों के रूप में किये गये अपने वायदों को इस प्रकार सीमित रखना आवश्यक था कि बैंक की बकाया गैर-जमानती गारंटियों का 20 प्रतिशत तथा उसके बकाया गैर-जमानती अग्रिमों का जोड़ उसके कुल बकाया अग्रिमों के 15 प्रतिशत से अधिक न हो । बैंकों को उनकी ऋण नीतियों पर अधिक लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से बैंकों के गैर-जमानती ऋण की वर्तमान सीमा को निकाल दिया है और बैंकों का बोर्ड अपने गैर-जमानती ऋणों के संबंध में अपनी खुदकी नीतियां निर्धारित कर सकते हैं । ‘‘गैर जमानती ऋण’’ की परिभाषा बैंक है, ऐसा ऋण जहां अनुमोदित मूल्यांककों / भारतीय रिज़र्व बैंक के निरीक्षणकर्ता अधिकारियों द्वारा निर्धारित किया गया जमानत का नकदीकरण मूल्य प्रारंभ में बकाया निवेश के 10 प्रतिशत से अधिक न हो । ऋण में समस्त निधिक तथा गैर-निधिक ऋण (जिनमें हामीदारी तथा उसी प्रकार के वायदे शामिल हैं) शामिल होंगे । ‘जमानत’ का अर्थ होगा बैंक को उचित ढंग से प्रभारित मूर्त जमानत और उसमें गारंटियों, कम्फर्ट लेटर्स आदि जैसी अमूर्त जमानतें शामिल नहीं होंगी । बैंकों को गैर-जमानति ऋण पर होने वाले अपेक्षित हानि को कवर करने के लिए 10 प्रतिशत का अतिरिक्त प्रावधान अर्थात् निकृष्ट संवर्ग में बकाया अग्रिमों के 20 प्रतिशत का कुल प्रावधान करना होगा । संदिग्ध तथा हानि संवर्गों में गैर-जमानती ऋणों के लिए 100 प्रतिशत के स्तर पर प्रावधान करना पहले की तरह जारी रहेगा । गैर-जमानती अग्रिमों के अभिकलन के लिए दी गयी सभी छूट अब निकाल दी गयी है ।

2.3 गारंटियां जारी करने के लिए सावधानी

बैंकों को अपने ग्राहकों की ओर से गारंटियां जारी करते समय निम्नलिखित सावधानी बरतनी चाहिए ।

व. नियमत:, बैंकों को बड़ी राशियों में और मध्यावधि तथा दीर्घावधि के लिए गैर-जमानती गारंटियां देने से बचना चाहिए । उन्हें ग्राहकों के खास समूहों और / या व्यापार को ऐसी गैर जमानती गारंटी वायदों के अनुचित संकेंद्रण से बचना चाहिए ।

वव. किसी अलग-अलग घटक के कारण दी जानेवाली गैर-जमानती गारंटियों को बैंक की कुल गैर-जमानती गारंटियों के उचित अनुपात तक सीमित किया जाना चाहिए । अलग-अलग व्यक्तियों की ओर से दी जानेवाली गारंटियां भी इस घटक की इक्विटी के उचित अनुपात में होनी चाहिए ।

ववव. अपवादात्मक मामलों में, बैंक ऐसे प्रथम श्रेणी के ग्राहकों को सामान्य राशि के लिए गैर-जमानती आधार पर आस्थगित अदायगी गारंटियां दे सकते हैं जिन्होंने सरकार की नीति के अनुरूप आस्थगित अदायगी व्यवस्थाएं की हैं । परंतु ऐसी गैर-जमानती गारंटियों को ऊपर उल्लिखित सीमाओं के भीतर रखा जाना चाहिए ।

वख्. किसी अलग-अलग घटक या घटकों के समूह की ओर से निष्पादित गारंटियां निर्दिष्ट ऋण आदि जोखिम मानदंडों की शर्त पर होनी चाहिए ।

यह जानना अनिवार्य है कि गारंटियों में अंतर्निहित जोखिम होता है और आम तौर पर यह बैंक के हित में या जनता के हित में नहीं होता कि पार्टियों को अपने वायदों से आगे बढ़ने और गारंटी सुविधाओं की आसानी से उपलब्धता पर पूरी तरह निर्भर उद्यम प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये ।

2.4 धोखाधड़ियों से बचने के लिए एहतियात

ग्राहकों की ओर से गारंटियां जारी करते समय बैंकों द्वारा निम्नलिखित सुरक्षा उपाय अपनाये जाने
चाहिए :

i. वित्तीय गारंटियां जारी करते समय, बैंकों को इस बात से आश्वस्त होना चाहिए कि यदि बैंक को गारंटी के अंतर्गत अदायगी करनी पड़े तो ग्राहक बैंक को उसकी प्रतिपूर्ति करने की स्थिति में होगा ।

ii. कार्यनिष्पादन गारंटी के मामले में, बैंकों को पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए और ग्राहक के साथ अपने आपको इस बात से संतुष्ट करने का पर्याप्त अनुभव होना चाहिए कि संविदा के अंतर्गत दायित्वों को निभाने के लिए ग्राहक के पास आवश्यक अनुभव, क्षमता और साधन हैं तथा उसके द्वारा किसी प्रकार की चूक की संभावना नहीं है ।

iii. बैंकों को आम तौर पर ऐसे ग्राहकों की ओर से गारंटियां जारी करने से बचना चाहिए जिन्हें उनसे ऋण सुविधाएं प्राप्त नहीं हैं ।

2.5 घोष समिति की सिफारिशें

बैंकों को उच्चस्तरीय समिति (अध्यक्ष : श्री अमिताभ घोष, रिज़र्व बैंक के तत्कालीन उप गवर्नर) द्वारा की गयी निम्नलिखित सिफारिशों को कार्यान्वित करना चाहिए :

i बेहिसाबी गारंटियां जारी करने तथा जाली गारंटियों को रोकने के उद्देश्य से भारतीय बैंक संघ द्वारा सुझाये गये अनुसार बैंक गारंटियां क्रमवार संख्या वाले प्रतिभूति फार्म में जारी की जायें ।

ii बैंक द्वारा निश्चित किसी विशेष निर्दिष्ट सीमा के ऊपर गारंटियां दो हस्ताक्षरों के अधीन, तीन प्रतियों में, जारी की जानी चाहिए, जिनमें से एक-एक प्रति शाखा, लाभान्विती और नियंत्रक कार्यालय /प्रधान कार्यालय के लिए हो ।

iii लाभान्विती के लिए यह बाध्यकर होना चाहिए कि वह नियंत्रक कार्यालय /प्रधान कार्यालय की पुष्टि प्राप्त करे तथा इसके लिए गारंटी में ही विशिष्ट शर्त शामिल की जानी चाहिए ।

2.6 आंतरिक नियंत्रण प्रणालियां

10,000 रुपये और अधिक के लिए जारी की गयी बैंक गारंटियां दो अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से हस्ताक्षरित होनी चाहिए । बैंकों द्वारा जहां कहीं आवश्यक समझा जाये वहां शाखाओं के आकार और श्रेणी के अनुसार न्यून निर्दिष्ट सीमा निर्धारित की जाये । इस प्रकार की प्रणाली एकल हस्ताक्षरकर्ता के गलत प्रत्यक्ष ज्ञान / निर्णय या ईमानदारी / निष्ठा की कमी से होनेवाली कुप्रथाओं / हानियों की संभावना को कम करेगी । बैंकों को इन अनुदेशों की भावना को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त प्रणालियां और क्रियाविधियां बनानी चाहिए और केवल अपवादात्मक परिस्थितियों में ही दो हस्ताक्षरों के अनुशासन से हटने की अनुमति देनी चाहिए । ऐसे मामलों में अपने अधिकारियों द्वारा धोखाधड़ियों और कुप्रथाओं को रोकने के लिए प्रणालियों और क्रियाविधियों की पर्याप्तता और प्रभाव सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी बैंकों के सर्वोच्च प्रबंध तंत्र की होती है । यदि लिखतों पर केवल एक हस्ताक्षर करने की अपवादात्मक स्थिति हो, तो बैंकों को ऐसे लिखतों की शाखाओं के आंतरिक निरीक्षणों के समय लेखा-परीक्षकों या निरीक्षकों से विशेष जांच करानी चाहिए ।

2.7 बैंकों के निदेशकों की ओर से गारंटियां

बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 20 में बैंकों के अपने किसी निदेशक या ऐसी किसी फर्म या कंपनी को ऋण या अग्रिम देने पर प्रतिबंध है, जिसमें उनका कोई निदेशक भागीदार या गारंटीदाता है ।

तथापि, कतिपय ऐसी सुविधाओं को जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ गारंटियां जारी करना शामिल है, उसी अधिनियम की धारा 20 के अर्थ के भीतर ‘ऋण और अग्रिम’ के रूप में नहीं माना जाता है ।

इस संबंध में, अपने निदेशकों की ओर से गारंटियां देनेवाले बैंकों के विशेष संदर्भ में यह नोट करना प्रसंगानुकूल है कि अपनी देयता निभाने में मूल देनदार द्वारा चूक किये जाने और गारंटी के अधीन अपने दायित्व को पूरा करने के लिए बैंक को कहे जाने की स्थिति में बैंक और निदेशक का संबंध लेनदार और देनदार का बन सकता है । साथ ही, निदेशक बैंक द्वारा दी गयी गारंटी पर तीसरी पार्टी से उधार लेकर धारा 20 के उपबंधों की अपवंचना भी कर सकेगा । यदि बैंक यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम नहीं उठाते हैं कि धारा 20 के अंतर्गत उन पर देयताएं न आयें तो इस तरह के लेनदेनों से इस धारा को अधिनियमित किये जाने का उद्देश्य ही विफल हो सकता है ।

उपर्युक्त को देखते हुए, बैंकों को निदेशकों और ऐसी कंपनियों / फर्मों की ओर से जिनमें निदेशक का हित है, गैर-निधिक सुविधाएं जैसे गारंटियां आदि देते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि -

व. बैंक की संतुष्टि के अनुसार इस बात की पर्याप्त और कारगर व्यवस्थाएं की गयी हैं कि जिसकी ओर से गारंटी जारी की गयी है उस पार्टी द्वारा अपने संसाधनों से वायदे पूरे किये जायेंगे, और

वव. बैंक को गारंटी लागू करने के परिणामस्वरूप देयता पूरी करने के लिए कोई ऋण या अग्रिम प्रदान करने के लिए नहीं कहा जायेगा ।

यदि उपर्युक्त (वव) के अनुसार ऐसी आकस्मिकताएं आती हैं, तो बैंक को बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 20 के उपबंधों के उल्लंघन का एक पार्टी माना जायेगा ।

2.8 भारत सरकार की बैंक गारंटी योजना

संविदाकर्ताओं द्वारा जमानती जमाराशि आदि के बदले केन्द्रीय सरकारी विभागों के पक्ष में बैंक गारंटी जारी करने के लिए भारत सरकार द्वारा बनायी गयी बैंक गारंटी योजना में समय-समय पर संशोधन किया गया है । इस योजना के अधीन सरकारी विभागों को यह छूट है कि वे सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों से मुक्त रूप से गारंटियां आदि स्वीकार करें ।

बैंकों को अनुबंध घ् में दिया गया बैंक गारंटी बांड का मॉडल फार्म अपनाना चाहिए । भारत सरकार ने सभी सरकारी विभागों / सरकारी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों, आदि को यह सूचित किया है कि वे मॉडल बांड में बैंक गारंटियां स्वीकार करें तथा यह सुनिश्चित करें कि जब भी उसके खंडों में परिवर्तन / परिवर्धन करना जरूरी समझा जाये तब वह इकतरफा न हो तथा वे गारंटी देनेवाले बैंक के साथ सहमति से किये जायें ।बैंकों को गारंटी बांडों और विभिन्न राज्य सरकारों के साथ अपने पत्राचार में लाभान्वित होनेवाले विभाग के नाम तथा जिस प्रयोजन के लिए गारंटियां निष्पादित की जा रही हैं उसका उल्लेख करना चाहिए। संबंधित विभागों के साथ गारंटियों का तत्काल पता लगाने के लिए यह आवश्यक है । भारत के राष्ट्रपति के नाम सरकारी विभागों के पक्ष में बैंकों द्वारा दी गयी गारंटियों के संबंध में, उनके बारे में कोई भी पत्राचार संबंधित मंत्रालय / विभागों के साथ किया जाना चाहिए, न कि भारत के राष्ट्रपति के साथ। महा निदेशक, आपूर्ति और निपटान के पक्ष में जारी गारंटियों के संदर्भ में निम्नलिखित पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए :

  • बैंक गारंटी की वास्तविकता के सत्यापन की प्रक्रिया में तेजी लाने के उद्देश्य से बैंक गारंटियों पर हस्ताक्षर करनेवाले अधिकारियों के हस्ताक्षर / हस्ताक्षरों के नीचे गारंटियों पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी / अधिकारियों का नाम, पदनाम और कोड नंबर दिया जाना चाहिए ।

  • बैंक गारंटी के लाभान्विती को भी यह सूचित किया जाना चाहिए कि वह अनिवार्य रूप से सुरक्षा के उपाय के रूप में संबंधित बैंक द्वारा जारी गारंटी की वास्तविकता के बारे में उससे पुष्टि प्राप्त करे ।

  • महा निदेशक, आपूर्ति और निपटान संविदा प्रशासन में सुरक्षा के साधन के रूप में बैंकों द्वारा जारी बैंक गारंटी की प्रारंभिक अवधि मूल दाति (सुपुर्दगी) अवधि के बाद छ: महीने की अवधि के लिए होगी । बैंक गारंटी की वैधता अवधि को स्वत: 6 महीने बढ़ाने का प्रावधान करने के लिए अपनी बैंक गारंटी में उपयुक्त खंड शामिल कर सकते हैं तथा गारंटी करते समय ग्राहक से उपयुक्त वचन भी प्राप्त कर सकते हैं, ताकि बाद में किसी संभावित जटिलता से बचा जा सके ।

  • महा निदेशक, आपूर्ति और निपटान द्वारा महा निदेशक, आपूर्ति और निपटान के टेंडर फार्म 229 (निविदाकर्ताओं को अनुदेश) में इस आशय का एक खंड शामिल किया जाये कि जब भी कोई फर्म, उस स्थिति में जहां बैंक गारंटी दी गयी है, संविदा की दाति अवधि के भीतर माल की आपूर्ति नहीं कर पाये, तो दाति अवधि को बढ़ाये जाने के अनुरोध को स्वत: ही बैंक गारंटी बढ़ाये जाने के लिए करार के रूप में ले लिया जायेगा । बैंकों को गारंटी अवधि स्वत: बढ़ाने के लिए बैंक गारंटियों में इसी प्रकार के प्रावधान करने चाहिए ।
  • महा निदेशक, आपूर्ति और निपटान संविदा प्रशासन में सुरक्षा के साधन के रूप में बैंक गारंटी और उसकी अवधि बढ़ाने के पत्र गैर-न्यायिक स्टैम्प पेपर पर होंगे ।

2.9 शेयर और स्टॉक दलालों की ओर से गारंटियां

बैंक जमानती जमाराशियों के बदले स्टॉक एक्सचेंजों के पक्ष में शेयर और स्टॉक दलालों की ओर से उस सीमा तक गारंटियां जारी कर सकते हैं जिस सीमा तक वह स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा निर्धारित बैंक गारंटी के फार्म में स्वीकार्य हो । बैंक स्टॉक एक्सचेंजों के विनियमों के अनुसार मार्जिन आवश्यकताओं के बदले गारंटियां भी जारी कर सकते हैं । बैंकों को आगे यह भी सूचित किया गया है कि वे ऐसी गारंटियां जारी करते समय 50 प्रतिशत का न्यूनतम मार्जिन प्राप्त करें । बैंकों द्वारा जारी इस प्रकार की गारंटियों के संदर्भ में 25 प्रतिशत का न्यूनतम नकद मार्जिन (50 प्रतिशत के उपर्युक्त मार्जिन के भीतर) रखा जाना चाहिए। 50 प्रतिशत का उपर्युक्त मार्जिन सभी नयी गारंटियों पर लागू होगा । जारी की गयी वर्तमान गारंटियां पहले के मार्जिन पर तब तक जारी रह सकती है जब तक वे नवीकरण के लिए नहीं आतीं। बैंकों को प्रत्येक आवेदक ऋणकर्ता की जरूरत का मूल्यांकन करना चाहिए, ऋण आदि जोखिम संबंधी उच्चतम सीमाओं सहित सामान्य और आवश्यक सुरक्षा उपाय अपनाने चाहिए ।

2.10 ऋण लेनेवाले प्रतिष्ठानों के निदेशकों और अन्य प्रबंधकीय कार्मिकों की व्यक्तिगत गारंटियां प्राप्त करने के संबंध में दिशा-निर्देश

निदेशकों की व्यक्तिगत गारंटियां

जब किसी मामले की सावधानीपूर्वक जांच के बाद अत्यंत जरूरी हो केवल तभी सरकारी अथवा निजी क्षेत्र की कंपनियों को दी गयी ऋण सुविधाओं आदि के लिए बैंक निदेशकों की व्यक्तिगत गारंटियां ले सकते हैं, साधारण तौर पर नहीं। ऐसी परिस्थितियों का पता लगाने के लिए जिनमें गारंटी आवश्यक समझी जा सकती है या आवश्यक नहीं समझी जा सकती है, बैंक स्थूल रूप से निम्नलिखित बातों को अपना सकते हैं :

क. जहां गारंटियां आवश्यक नहीं समझी जातीं

सामान्यत:, सार्वजनिक सीमित कंपनियों के मामले में, जब ऋण देनेवाली संस्थाएं प्रबंधन, प्रतिष्ठान में उसके हिस्से, प्रस्ताव की आर्थिक व्यवहार्यता तथा वित्तीय स्थिति और नकदी निर्मित करने की क्षमता के बारे में संतुष्ट हों, तो व्यक्तिगत गारंटी पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए । दरअसल, व्यापक रूप से स्वाधिकृत ऐसी सार्वजनिक सीमित कंपनियों के मामले में जिन्हें प्रथम श्रेणी का दर्जा दिया गया है और जो उपर्युक्त शर्तें पूरी करती हैं, गारंटियों की जरूरत नहीं होगी, भले ही अग्रिम गैर-जमानती हों । साथ ही, ऐसी कंपनियों के मामले में, चाहे वे निजी या सार्वजनिक हों, और जो व्यावसायिक प्रबंधन के अधीन हैं, उन व्यक्तियों पर गारंटियों के लिए जोर नहीं दिया जाना चाहिए, जो केवल अपनी व्यावसायिक / तकनीकी योग्यता की हैसियत से, न कि संबंधित कंपनी में किसी महत्वपूर्ण शेयर-धारिता के फलस्वरूप, प्रबंधन से जुड़े हैं ।

जहां ऋण देनेवाली संस्थाएं ऊपर उल्लिखित ऋण प्रस्तावों के पहलुओं के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं, वहां उन्हें ऐसी गारंटियों के बिना प्रस्तावों को स्वीकार्य बनाने के लिए शर्तों को निर्दिष्ट करने की मांग करनी चाहिए । कुछ मामलों में, वित्तीय अनुशासन के अधिक कठोर स्वरूप जरूरी होंगे, जैसे लाभांश वितरित करने, आगे विस्तार करने, कुल उधारों, आस्तियों पर आगे प्रभार निर्मित करने पर प्रतिबंध तथा न्यूनतम शुद्ध कार्यकारी पूंजी बनाये रखने की शर्त । साथ ही, स्वाधिकृत निधियों और पूंजी निवेश के बीच समतुल्यता तथा समग्र ऋण-इक्विटी अनुपात को ध्यान में रखा जाना चाहिए ।

ख. जहां गारंटियां सहायक समझी जायेंगी

उस स्थिति में कंपनियों, चाहे निजी हो या सार्वजनिक, के संदर्भ में निदेशकों की व्यक्तिगत गारंटियां सहायक होंगी, जहां शेयर पूरी तरह किसी व्यक्ति या संबंधित व्यक्तियों या समूह (जो व्यावसायिक या सरकारी न हों) द्वारा धारित हों, भले ही अन्य तत्व जैसे वित्तीय स्थिति, उपलब्ध जमानत कुछ भी हो । अपवाद केवल उन कंपनियों के संदर्भ में है जहां, न्यायालय या सांविधिक आदेश द्वारा, कंपनी का प्रबंधन किसी ऐसे एक व्यक्ति या व्यक्तियों में निहित हो, चाहे उसे निदेशक या अन्य कोई नाम दिया गया हो, जिसे शेयरधारकों द्वारा चुने जाने की जरूरत नहीं है । जहां व्यक्तिगत गारंटी को आवश्यक समझा जाये, वहां गारंटी अधिमान्यत: निदेशक के रूप में या किसी प्रबंधकीय क्षमता में कार्यरत निदेशक / प्रबंधकीय अधिकारी के बजाय ऋण लेनेवाली कंपनी में शेयर धारित करने वाले समूह के प्रमुख सदस्यों की होनी चाहिए ।

भले ही कोई कंपनी कुछ ही व्यक्तियों द्वारा पूरी तरह धारित न हो, फिर भी प्रबंधन की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए निदेशकों की व्यक्तिगत गारंटी के लिए औचित्य हो सकता है । इस प्रकार, ऋण देनेवाली संस्था ऐसी कंपनी को ऋण दे सकती है जिसके प्रबंधन को अच्छा समझा जाता है । बाद में, कोई ऐसा दूसरा समूह कंपनी का नियंत्रण प्राप्त कर सकता है, जो ऋण देनेवाली संस्था को ऐसी स्थिति में पहुंचा दे जहां इस बात का सुस्पष्ट भय हो कि प्रबंधन का बदलाव उसे बुरी स्थिति में ले जायेगा और कंपनी की दी गयी निधियां जोखिम में पड़ जायेंगी । ऐसी परिस्थितियों में ऋण देनेवाली संस्थाएं जिस तरह से अपने को सुरक्षित कर सकती हैं उनमें एक प्रकार यह है कि निदेशकों की गारंटी प्राप्त की जाये और इस प्रकार प्रबंधन की निरंतरता को या प्रबंधन में होनेवाले परिवर्तन उनकी जानकारी से होते हैं यह सुनिश्चित किया जाये । उन मामलों में भी जहां व्यक्तिगत गारंटियों से छूट दी गयी है, ऋण लेनेवाली कंपनी से इस बात का वचन लेना जरूरी होगा कि ऋण देनेवाली संस्था की सहमति के बिना प्रबंधन में कोई परिवर्तन नहीं होगा । इसी प्रकार, कंपनी की निर्माणात्मक अवस्थाओं के दौरान, यह कंपनी तथा ऋण देनेवाली संस्था के हित में होगा कि गारंटियां प्राप्त की जायें, ताकि प्रबंधन की निरंतरता को सुनिश्चित किया जा सके ।

प्रथम श्रेणी का दर्जा प्राप्त कंपनियों के अलावा उन सार्वजनिक सीमित कंपनियों के संबंध में, जहां अग्रिम गैर-जमानती आधार पर है, निदेशकों की वैयक्तिक गारंटियां सहायक होंगी ।

ऐसी सार्वजनिक सीमित कंपनियां हो सकती हैं जिनकी वित्तीय स्थिति और / या नकदी निर्मित करने की क्षमता संतोषजनक न हो, भले ही संबंधित अग्रिम जमानत प्राप्त हों । ऐसे मामलों में वैयक्तिक गारंटियां उपयोगी होती हैं ।

उन मामलों में, जहां आस्तियों पर प्रभार निर्मित करने में काफी विलंब होने की संभावना है, वहां ऋण के संवितरण और आस्तियों पर प्रभार निर्मित करने के बीच अंतरिम अवधि को रक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यकतानुसार गारंटी ली जाये ।

ऐसी सहायक कंपनियों के मामले में, जिनकी स्वयं की वित्तीय स्थिति संतोषजनक नहीं है, मूल कंपनियों की गारंटी प्राप्त की जाये ।

व्यक्तिगत गारंटियां वहां उचित हैं जहां किसी कंपनी के तुलनपत्र या वित्तीय विवरण से यह पता चले कि निधियां कंपनी और समूह के स्वामित्व वाली या उसके प्रबंधन वाले अन्य प्रतिष्ठानों के बीच परस्पर फंसी हैं ।

ग. गारंटीकर्ताओं की माली हालत, गारंटी का भुगतान, कमीशन आदि

जहां निदेशकों की व्यक्तिगत गारंटियों की जरूरत हो, वहां वे उस व्यक्ति की अनुमानित माली हालत के उचित अनुपात में होनी चाहिए। गारंटियां प्राप्त करने की प्रणाली को निदेशकों और अन्य प्रबंधकीय कार्मिकों द्वारा कंपनी की आय के स्रोत के रूप में प्रयोग में नहीं लाया जाना चाहिए। बैंकों को ऋण लेनेवाली कंपनी से तथा गारंटीकर्ताओं से यह वचन प्राप्त करना चाहिए कि कमीशन, दलाली-शुल्क या किसी अन्य रूप में कोई प्रतिफल उक्त कंपनी द्वारा अदा नहीं किया जायेगा या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गारंटीकर्ता द्वारा प्राप्त किया जायेगा। इस अपेक्षा को ऋण सीमाएं स्वीकृत करने संबंधी बैंक की शर्तों में शामिल करना चाहिए। आवधिक निरीक्षणों के दौरान, बैंक के निरीक्षकों को यह सत्यापित करना चाहिए कि इस शर्त का अनुपालन किया गया है । तथापि, ऐसे अपवादात्मक मामले हो सकते हैं जहां पारिश्रमिक के भुगतान की अनुमति दी गयी हो, जैसे जहां सहायक प्रतिष्ठान ठीक तरह से काम नहीं कर रहे हैं और वर्तमान गारंटीकर्ता प्रबंधन के साथ सम्बद्ध नहीं हैं परंतु उनकी गारंटियों को जारी रखना इसलिए आवश्यक समझा गया है क्योंकि या तो नये प्रबंधन की गारंटी उपलब्ध नहीं है या पर्याप्त नहीं पायी गयी है और गारंटी कमीशन के रूप में गारंटीकर्ताओं को पारिश्रमिक के भुगतान की अनुमति दी गयी है ।

घ. बीमार इकाइयों के मामले में व्यक्तिगत गारंटियां

चूंकि प्रायोजकों / निदेशकों की व्यक्तिगत गारंटियों में सामान्यत: उन पर अधिक जवाबदेही और जिम्मेदारी होती है और प्रबंधनों को सहायताप्राप्त यूनिटों को सुदृढ़ और स्वस्थ आधार पर चलाने के लिए प्रेरित करती है, अत: वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए बैंक अपने विवेकानुसार निदेशकों (नामित निदेशकों को छोड़कर) और अन्य प्रबंधकीय कार्मिकों से उनकी व्यक्तिगत क्षमता में गारंटियां प्राप्त कर सकते हैं । यदि किसी कारण से अग्रिम स्वीकृत करते समय बैंक द्वारा गारंटी समयोचित न समझी जाये, तो अलग-अलग निदेशक से वचन प्राप्त करना चाहिए और ऋण करार में अनिवार्य रूप से एक प्रसंविदा समाविष्ट करनी चाहिए कि यदि ऋण लेनेवाली इकाई नकदी हानियां या प्रतिकूल चालू अनुपात या निधियों का अन्यत्र उपयोग दर्शाये, तो निदेशकों को, यदि बैंक द्वारा अपेक्षित हो तो, उनकी व्यक्तिगत क्षमता में गारंटियां निष्पादित करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा । बैंक मूल / धारित कंपनी से भी अपने विवेकानुसार उस स्थिति में गारंटियां प्राप्त कर सकते हैं, जब उसी समूह की ऋण लेनेवाली इकाइयों को ऋण सुविधाएं दी जायें ।

2.11 राज्य सरकार की गारंटियां

राज्य सरकार के उपक्रमों / परियोजनाओं के प्रस्ताव के संदर्भ में निदेशकों और अन्य प्रबंधकीय कार्मिकों की व्यक्तिगत गारंटियां लेने के लिए भी उपर्युक्त पैराग्राफ 2.10 में निर्दिष्ट दिशा-निर्देशों का अनुपालन किया जाना चाहिए और जब तक बिल्कुल जरूरी न हो तब तक गारंटी पर बल नहीं दिया जाना चाहिए । दूसरे शब्दों में, बैंक गुणवत्ता के आधार पर और केवल प्रत्येक मामले की परिस्थितियों की पूरी जांच करने के पश्चात् ही बिलकुल आवश्यक परिस्थितियों में, राज्य सरकारों की गारंटियां प्राप्त कर सकते हैं, न कि नियमित रूप में ।

3. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (गारंटी) विनियमावली के अंतर्गत जारी विनियमों द्वारा नियंत्रित गारंटियां

3.1 निर्यातों के लिए बोली बांड और कार्यनिष्पादन बांड अथवा गारंटी

3 मई 2000 की अधिसूचना सं. एफईएमए.8/2000-आरबी के अनुसार प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को इस बात की अनुमति है कि वे भारत से वास्तविक निर्यातों के लिए विदेशी खरीदारों के पक्ष में कार्यनिष्पादन बांड या गारंटी दें ।

सतर्कता सूची में शामिल किये गये निर्यातकों के संबंध में कार्यनिष्पादन बांड / गारंटी जारी करने के लिए प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमोदन प्राप्त करना चाहिए। ऐसी कोई गारंटी जारी करने के पूर्व उन्हें इन बातों से स्वयं को संतुष्ट कर लेना चाहिए - आवेदक की वास्तविकता, संविदा पूरी करने की उसकी क्षमता और यह कि संविदा /निविदा के मूल्य के प्रतिशत के रूप में बोली /गारंटी का मूल्य उचित है एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार की सामान्य पद्धति के अनुसार है तथा संविदा की शर्तें विदेशी मुद्रा प्रबंधन विनियमों के अनुसार हैं ।

जहाँ स्थानीय कानूनों /विनियमों के अनुसार विदेशी खरीदारों को सिर्फ स्थानीय बैंकों की गारंटियां स्वीकार्य हों उन मामलों में भारतीय निर्यातकों की ओर से अपनी विदेशी शाखाओं /प्रतिनिधियों द्वारा जारी की जाने वाली गारंटियों को कवर करने के लिए प्राधिकृत व्यापारी बैंक उक्त शर्तों पर उनके पक्ष में काउंटर-गारंटियां भी जारी कर सकते हैं ।

जब कभी बांड / गारंटी लागू की जाये, प्राधिकृत व्यापारी बैंक उसके तहत देय राशि की अदायगी अनिवासी लाभार्थियों को कर सकते हैं।

3.2 विदेशी एयरलाइन्स/आइएटीए के पक्ष में बैंक गारंटी जारी करना

3 मई 2000 की अधिसूचना संख्या एफईएमए.8/2000-आरबी द्वारा अधिसूचित विदेशी मुद्रा प्रबंधन (गारंटियां) विनियमावली, 2000 के विनियम 4 के अनुसार प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को उसमें उल्लेख किये गये अनुसार कुछ मामलों में गारंटियां देने की अनुमति है । विदेशी एयरलाइन कंपनियों के ऐसे भारतीय एजेंट को जो इंटरनेशनल एयर ट्रांस्पोर्ट एसोसिएशन (आइएटीए) के सदस्य हैं, अपने टिकेटिंग कारोबार के संबंध में विदेशी एयरलाइन कंपनियों/आइएटीए के पक्ष में बैंक गारंटियां देना अपेक्षित है । चूंकि इस कारोबार में यह एक मानक अपेक्षा है, अत: प्राधिकृत व्यापारी अपने कारोबार के सामान्य कामकाज में 16 अक्तूबर 2004 से विदेशी एयरलाइन्स कंपनियों के ऐसे भारतीय एजेंट की ओर से जो इंटरनेशनल एयर ट्रांस्पोर्ट एसोसिएशन (आइएटीए) के सदस्य हैं, अपनी टिकेटिंग कारोबार के संबंध में विदेशी एयरलाइन्स कंपनियों/आइएटीए के पक्ष में गारंटियां जारी कर सकते हैं । गारंटी मांगने के मामले में, प्राधिकृत व्यापारी बैंक को चाहिए कि वह गारंटी मांगने की परिस्थितियों को स्पष्ट करते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट मुख्य महाप्रबंधक, विदेशी मुद्रा विभाग, बाह्य भुगतान प्रभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय, मुंबई - 400 001 को भेजे ।

3.3 अन्य शर्तें

निर्यात बढ़ाने की दृष्टि से, निर्यात के प्रयोजनों के लिए बोली बांड और कार्यनिष्पादन गारंटियां जारी करते समय बैंकों को कवर प्राप्त करने और आस्तियां / ऋण सीमाएं निश्चित करने, आहरण-अधिकार के मामले में लचीला दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। तथापि, जहाँ-कहीं आवश्यक समझा जाये बैंकों को ई सी जी सी से कार्यनिष्पादन गांरटी प्राप्त कर अपने हितों की रक्षा करनी चाहिए।

निर्यात ऋण और गारंटी निगम बोली बांड के लिए 90 प्रतिशत कवर प्रदान करेंगे, बशर्ते बैंक नकदी मार्जिनों पर आग्रह न करने के लिए वचन दें ।

अत: बैंक ई सी जी सी द्वारा काउंटर-गारंटी प्राप्त बोली बांडों और गारंटियों के संबंध में किसी नकदी मार्जिन की मांग नहीं करेंगे ।

अन्य मामलों में, जहाँ ई सी जी सी की काउंटर-गारंटी किसी भी कारण से उपलब्ध न हो, बैंक उचित नकदी मार्जिन का निर्धारण सिर्फ उन मामलों में करें जहाँ वह अत्यंत आवश्यक हो, क्योंकि वे सामान्यत: ऐसी बोली बांड / गारंटियां जारी करते समय निर्यातक की क्षमता और वित्तीय स्थिति के बारे में स्वयं को संतुष्ट कर लेते हैं ।

बैंक बोली बांड जारी करने के लिए अलग सीमाएं स्वीकृत करने पर विचार कर सकते हैं । इस प्रकार स्वीकृत सीमाओं के भीतर, अलग-अलग संविदाओं के प्रति बोली बांड सामान्य प्रतिफलों की शर्त पर जारी किये जायें ।

भारतीय विदेशी मुद्रा व्यापारी संघ के नियमानुसार बैंक निविदा की अस्वीकृति के कारण रद्द होनेवाले बोली बांडों पर उनके द्वारा प्राप्त कमीशन का 50 प्रतिशत वापस कर सकता है ।

3.4 भारतीय निर्यातकों की ओर से विदेशी नियोक्ताओं /आयातकों के पक्ष में
बिना शर्त गारंटी

भारतीय निर्यातकों की ओर से विदेशी नियोक्ताओं / आयातकों के पक्ष में बिना शर्त गारंटी देने के लिए सहमति देते हुए बैंकों को निर्यातक से उस आशय का वचन प्राप्त करना चाहिए कि जब कभी गारंटी लागू की जाये बैंक निर्यातक और आयातक के बीच किसी विवाद के होते हुए भी अदायगी करने का हकदार होगा। यद्यपि, ऐसे वचन के कारण निर्यातक को निषेधाज्ञा के लिए न्यायालय के पास जाने से रोका नहीं जा सकता तथापि इसके आधार पर न्यायालय यह राय बना सकता है कि क्या निषेधाज्ञा जारी की जानी चाहिए ।

बैंक भविष्य में गारंटियां जारी करते समय उक्त बातें ध्यान में रखें और अपने विधि परामर्शदाताओं के

परामर्श से करार में उपयुक्त खण्ड समाविष्ट करें। यह वांछनीय है, क्योंकि गारंटी लागू किये जाने पर

उसे नकारने से विदेशी बैंक भारतीय बैंकों की गारंटियां स्वीकार करना बंद कर सकते हैं, जिससे देश के

निर्यात संवर्धन संबंधी प्रयासों में रुकावट आयेगी।

3.5 परियोजना निर्यातों के मामले में कुछ सावधानियां

बैंक यह जानते हैं कि अधिक मूल्य के विदेशी परियोजना निर्यातों के लिए बोली से पूर्व / बोली के बाद की अवस्थाओं में सिद्धांत रूप में पैकेज अनुमोदन देने के प्रयोजन के लिए कार्यकारी दल की प्रक्रिया विकसित की गयी है । कार्यकारी दल की भूमिका मुख्यत: विनियामक स्वरूप की है, परन्तु परियोजना के मूल्यांकन और परियोजना पर निगरानी रखने का उत्तरदायित्व अकेले प्रायोजक बैंक पर है ।

चूंकि कार्यकारी दल के अनुमोदन प्रायोजक बैंकों की सिफारिशों पर आधारित हैं अत: प्रायोजक बैंकों को संविदाकर्ता / उप संविदाकर्ताओं की क्षमता, संविदाओं के संरक्षी खण्डों, प्रतिभूति की पर्याप्तता, यदि कोई समुद्रपारिक उप संविदाकर्ता हो तो उनकी की क्रेडिट रेटिंग, के संबंध में परियोजना प्रस्तावों की पूरी जांच करनी चाहिए ।

अत: संविदाकर्ताओं (उप संविदाकर्ताओं सहित) तथा विदेशी नियोक्ताओं की क्षमता की तुलना में प्रस्तावों में शामिल वित्तीय और तकनीकी मांगों का सावधानी से आकलन करने की आवश्यकता को किसी देशी परियोजना के वित्तपोषण के प्रति शायद ही कम कर आंका जा सके । वस्तुत:, निर्यात परियोजनाओं के उच्च मूल्य तथा चूक के मामले में विदेशी मुद्रा हानियों की संभावनाओं तथा साथ ही भारतीय उद्यमियों की छवि की क्षति को देखते हुए उन पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए

जहां बोली बांड और कार्यनिष्पादन गारंटियों को टाला नहीं जा सकता, वहीं इस मामले पर विचार किया जाना है कि क्या विदेशी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए विदेशी उधार राशियों के सभी मामलों में बैंकों द्वारा गारंटियां दी जानी चाहिए। ऐसी गारंटियां सिर्फ निर्यात-आयात बैंक की सहभागिता तथा ई सी जी सी काउंटर-गारंटी की उपलब्धता के कारण सामान्य रूप से निष्पादित नहीं की जानी चाहिए। गारंटी प्रदान करने के बाद अनुवर्ती कार्रवाई के लिए तथा संविदाओं पर निगरानी रखने के लिए उपयुक्त व्यवस्थाएं भी की जानी चाहिए ।

-3.6 बैंक प्रक्रियाओं की समीक्षा

बैंक शक्तियों के प्रत्यायोजन और उनकी प्रक्रियाओं की स्थिति की समीक्षा करें तथा निर्यात प्रस्तावों पर त्वरित निर्णय लेने की दृष्टि से यथावश्यक कार्रवाई करें। वे प्रत्येक महत्वपूर्ण केन्द्र में पर्याप्त रूप से योग्य और प्रशिक्षित स्टाफ से युक्त विशिष्ट शाखा बनाने पर भी विचार कर सकते हैं, ताकि निर्यात ऋण संबंधी सभी प्रस्तावों का निपटान त्वरित रूप से उसी केन्द्र में हो सके ।

-3.7 विदेशी मुद्रा प्रबंधन नियमावली द्वारा विनियमित अन्य गारंटियां

विदेशी मुद्रा प्रबंधन विनियमावली द्वारा निम्न प्रकार की गारंटियों के निर्गम का प्रबंधन होता है :

i. छोटी गारंटियां

ii. बैंक गारंटियां - विदेशी ऋणों / उधारों (क्रेडिट) के अंतर्गत आयात

iii. अनिवासियों के लिए गारंटियां

परिचालनात्मक अनुदेशों के लिए उक्त 3 मई 2000 के एफईएमए. 8/2000 के अंतर्गत जारी अधिसूचना तथा आयातों तथा निर्यातों के संबंध में विदेशी मुद्रा विभाग द्वारा 1 जुलाई 2004 के अपने मास्टर परिपत्र क्रमश: सं. 7/2004-05तथा सं. 8/2004-05 में जारी किये गये दिशा-नर्देशों का संदर्भ लें । तथापि, सुलभ संदर्भ के लिए, इन गारंटियों के निर्गम के संदर्भ में अनुदेश /दिशा-निर्देश नीचे दिये जा रहे हैं :

3.7.1 छोटी गारंटियां

प्राधिकृत व्यापारी बैंक अपने ग्राहकों और विदेशी शाखाओं और प्रतिनिधियों की ओर से खो गये या त्रुटिपूर्ण दस्तावेजों, हस्ताक्षरों की अधिप्रमाणिकता और उसी प्रकार के अन्य प्रयोजनों के संबंध में सामान्य कारोबार के दौरान गारंटियां मुक्त रूप से दे सकते हैं ।

3.7.2 बैंक गारंटियां - विदेशी ऋणों / साख (क्रेडिट) के अंतर्गत आयात

i) विदेशी ऋणदाताओं या आपूर्तिकर्ताओं (आपूर्तिकर्ताओं द्वारा दी गयी साख के मामले में) के पक्ष में गारंटियां जारी करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक का अनुमोदन अपेक्षित है। विदेशी मुद्रा ऋण / साख लेने के लिए अनुमोदन प्रदान करते समय भारतीय रिज़र्व बैंक संबंधित प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को अपेक्षित अनुमति प्रदान करेगा। गारंटी लागू करने की स्थिति में संबंधित प्राधिकृत व्यापारी बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक को लिखे बिना आवश्यक प्रेषण कर सकता है। तथापि, गारंटी प्रस्तुत करने के लिए अनुमोदन का संदर्भ देते हुए पूरे ब्यौरे देकर भारतीय रिज़र्व बैंक को एक रिपोर्ट भेजी जानी चाहिए। विदेशी पक्षकार से प्राप्त दावे की प्रति ऐसी रिपोर्ट के साथ संलग्न की जानी चाहिए ।

ii) बैंकों को बाह्य वाणिज्यिक उधारों (ईसीबी) के संबंध में विदेशी ऋणदातोंओं के पक्ष में गारंटियां /उद्यत साख-पत्र अथवा लेटर्स ऑफ कम्फर्ट जारी करने की अनुमति नहीं है । एसएमईएस के मामले में ईसीबी से संबंधित गारंटियां /उद्यत साख-पत्र अथवा लेटर्स ऑफ कम्फर्ट प्रदान करने के लिए बैंकों से प्राप्त आवेदनों पर गुणवत्ता के आधार पर विवेकपूर्ण मानदंडों के अधीन अनुमोदन रुट के अंतर्गत रिज़र्व बैंक विचार करेगा ।

वस्त्र कंपनियों द्वारा मल्टी फाइबर अॅग्रीमेंट को क्रमबध्द रूप देने के बाद, वस्त्र यूनिटों के आधुनिकीकरण अथवा विस्तार हेतु ईसीबी से संबंधित गारंटियां उद्यत साख -पत्र, वचन पत्र अथवा लेटर्स ऑफ कंफर्ट जारी करने के लिए बैंकों से प्राप्त आवेदनों पर विवेकपूर्ण मानदंडों के अधीन , अनुमोदन रूट के अंतर्गत रिज़र्व बैंक विचार करेगा।

3.7.3 भारत में आयातों के लिए व्यापारिक साख -गारंटियां

जारी करना - शक्तियों का प्रत्यायोजन

विदेश स्थित आपूर्तिकर्ता, बैंक और वित्तीय संस्था द्वारा तीन वर्ष से कम की मूल समाप्ति अवधि के लिए सीधे आयातों के लिए दिये गये उधार का इसके बाद आयातों के लिए ‘व्यापारिक उधार’ के रूप में उल्लेख किया गया है। वित्त के स्रोत के आधार पर इस प्रकार के व्यापारिक उधार में आपूर्तिकर्ताओं के उधार या खरीददारों के उधार शामिल होंगे। यह नोट किया जाए कि तीन वर्ष और उससे अधिक के खरीददारों के उधार और आपूर्तिकर्ताओं के उधार बाह्य वाणिज्यिक उधारों (ईसीबी) की श्रेणी के अंतर्गत आते हैं जो समय-समय पर संशोधित 31 जनवरी 2004 के (ए.पी. डीआइआर सीरीज़) परिपत्र सं. 60 द्वारा जारी ईसीबी दिशा-निर्देशों द्वारा नियंत्रित है ।

प्राधिकृत व्यापारी बैंक एक वर्ष तक (पोतलदान की तारीख से) की समाप्ति अवधि वाली सभी मदों (निर्यात-आयात नीति के अंतर्गत अनुमत) के आयात के लिए 20 मिलियन अमेरिकी डालर प्रति आयात लेनदेन तक भारत में आयातों के लिए व्यापारिक उधार का अनुमोदन कर सकते हैं। पूंजीगत वस्तुओं के आयात के लिए, प्राधिकृत व्यापारी बैंक एक वर्ष से अधिक और तीन वर्ष से कम की समाप्ति अवधि वाले 20 मिलियन अमेरिकी डालर प्रति आयात लेनदेन तक व्यापारिक उधार का अनुमोदन कर सकते हैं । प्राधिकृत व्यापारी बैंक द्वारा अनुमत अवधि से अधिक अवधि बढ़ाने की अनुमति नहीं दी जायेगी ।

प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को यह सामान्य अनुमति दी गयी है कि वे विदेश स्थित आपूर्तिकर्ता, बैंक और वित्तीय संस्था के पक्ष में विदेश व्यापार नीति (स्वर्ण को छोड़कर) के अधीन अनुमत सभी गैर पूंजीगत वस्तुओं के आयात के लिए एक वर्ष तक की अवधि हेतु तथा पूंजीगत वस्तुओं के आयात हेतु 3 वर्ष तक के लिए प्रति आयात 20 मिलियन अमेरिकी डालर तक गारंटियां/वचन पत्र/चुकौती आश्वासन पत्र (लेटर ऑफ कंफर्ट) जारी करें , परंतु ये समय-समय पर रिज़र्व बैंक द्वारा जारी विवेकपूर्ण दिशा-निर्देशों के अधीन होंगे । इस प्रकार की गारंटियों/वचन पत्रों/चुकौती आश्वासन पत्रों की अवधि पोतलदान की तारीख से गिने गये ऋण की अवधि के साथ समाप्त होनी चाहिए ।

जहां तक सूचना देने की व्यवस्था का संबंध है, प्राधिकृत व्यापारी बैंकों से यह अपेक्षित है कि वे अपनी सभी शाखाओं द्वारा गारंटियां/वचन पत्र/चुकौती आश्वासन पत्र जारी करने के संबंध में आंकड़े, समेकित विवरण के रूप में, तिमाही अंतरालों पर (फार्मेट अनुबंध घ्घ् में दिया गया है) मुख्य महाप्रबंधक, विदेशी मुद्रा विभाग, ईसीबी प्रभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, केंद्रीय कार्यालय भवन, 11 वीं मंज़िल, फोर्ट, मुंबई - 400 001 (और एमएस-एक्सेल फाइल में mailto:fedcoecdd@rbi.org.in को ई-मेल से) को दिसंबर 2004 से इस प्रकार प्रेषित करें कि वह अगले महीने की 10 तारीख तक उक्त विभाग में पहुंच जाए ।

3.7.4 भारत में प्रदान की गयी प्रतिभूतियों की जमानत पर विदेश में ऋण

दिनांक 3 मई 2000 की अधिसूचना सं फेमा 8 / 2000 - आर बी के विनियम 4(2) के अनुसार कोई प्राधिकृत व्यापारी भारत से बाहर रहनेवाले व्यक्ति के किसी ऋण , दायित्व या अन्य देयता के संबंध में गारंटी दे सकता है जिसमें वास्तविक व्यापारिक लेनदेन के संबंध में ऐसे ऋण , दायित्व अथवा देयता शामिल है जिस पर भारत में रहनेवाले व्यक्ति का स्वामित्व है , बशर्ते यह गारंटी विदेश में स्थित अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा वाले बैंक की प्रति-गारंटी द्वारा रक्षित हो ।

3.7.5 अनिवासियों के लिए गारंटियां

रिज़र्व बैंक ने 3 मई 2000 की अपनी अधिसूचना सं. एफईएमए /8/2000 द्वारा प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी अनुदेशों की शर्त पर भारत से बाहर रहने वाले व्यक्ति के किसी ऋण या अन्य दायित्व या देयता के संबंध में भारत में रहने वाले व्यक्ति के पक्ष में गारंटी जारी करने की सामान्य अनुमति दी है ।

तदनुसार प्राधिकृत व्यापारी बैंक अनिवासी व्यक्तियों के ऋण, देयता या दायित्व वाले वास्तविक लेनदेनों के संबंध में अपनी विदेशी शाखाओं / प्रतिनिधियों या अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा वाले बैंक की ओर से भारत के निवासियों के पक्ष में गारंटियां / कार्यनिष्पादन बांड दे सकते हैं, बशर्ते वह बांड / गारंटी विदेशी प्रधान कार्यालय / शाखा / प्रतिनिधि या अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा वाले बैंक की प्रति-गारंटी द्वारा रक्षित हो ।

प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि काउंटर-गारंटियों का उचित मूल्यांकन किया जाता है तथा ऐसी गारंटियों के प्रति उनकी अपनी गारंटियां नेमी तौर पर जारी न की जायें। विदेश स्थित प्रधान कार्यालय / शाखा / प्रतिनिधि / अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के बैंक की प्रति-गारंटी के लिए गारंटी जारी करने के पूर्व प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को स्वयं को इस बात से संतुष्ट कर लेना चाहिए कि लागू किये जाने पर प्रति-गारंटी के अंतर्गत दायित्व को विदेशी बैंक द्वारा तत्परतापूर्वक सकारा जायेगा। यदि प्राधिकृत व्यापारी बैंक इस शर्त पर गारंटी जारी करना चाहे कि प्रति-गारंटी जारी करने वाले विदेशी बैंक से प्रतिपूर्ति प्राप्त होने पर अदायगी की जायेगी तो इस तथ्य की स्पष्ट जानकारी लाभार्थी को गारंटी दस्तावेज़ में ही दे दी जानी चाहिए ।

प्राधिकृत व्यापारी बैंक गारंटी लागू किये जाने पर तत्काल निवासी लाभार्थियों को रुपये में अदायगी कर सकते हैं तथा साथ-साथ प्रति-गारंटी जारी करने वाले संबंधित विदेशी बैंक से प्रतिपूर्ति प्राप्त करने की व्यवस्था कर सकते हैं ।

जब विदेशी बैंकों की गारंटियां लागू की जा रही हों, तब उन मामलों में जहाँ प्राधिकृत व्यापारी बैंकों को अदायगी प्राप्त न हो रही हो, भारतीय रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट प्रेषित की जानी चाहिए, जिसमें यह दर्शाया जाना चाहिए कि गारंटी के तहत देय राशि की वसूली के लिए बैंक द्वारा क्या कदम उठाये जा रहे हैं ।

प्राधिकृत व्यापारी बैँक विदेशी संगठनों द्वारा अथवा उनके ग्राहकों की ओर से, जो रिज़र्व बैंक से वैध लाइसेंस रखने वाले स्वयंपूर्ण मुद्रा-परिवर्तक हों, बिक्री के लिए रखे गये ब्लैंक यात्री चेकों के संबंध में यात्री चेक जारी करने वाले विदेशी संगठनों के पक्ष में गारंटियां जारी कर सकते हैं, बशर्ते विदेशी संगठनों से उपयुक्त प्रति-गारंटी प्राप्त की जाये । गारंटी लागू किये जाने की स्थिति में प्राधिकृत व्यापारी बैंक राशि प्रेषित कर सकते हैं, परन्तु, उन्हें उस पर पृथक् रिपोर्ट पूरे ब्यौरे देते हुए मुख्य महा प्रबंधक, विदेशी मुद्रा विभाग (विदेशी मुद्रा बाज़ार प्रभाग), भारतीय रिज़र्व बैंक, केन्द्रीय कार्यालय, मुंबई - 400001 को प्रस्तुत करनी चाहिए ।

3.7.6 विदेशी निवेश - विदेश स्थित पूर्ण स्वामित्ववाली सहायक संस्थाएं (डब्ल्यूओएस)/संयुक्त उपक्रम की ओर से गारंटी

वर्तमान में केवल प्रवर्तक कंपनियों को आटोमॅटिक रूट के अंतर्गत अपने पूर्ण स्वामित्ववाली सहायक संस्थाओं / संयुक्त उपक्रमों की ओर से गारंटी देने की अनुमति दी गयी है और व्यक्तिगत, संपार्श्विक तथा अन्य व्यक्ति की गारंटी जारी करने के लिए रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति आवश्यक होती है और रिज़र्व बैंक ऐसे प्रत्येक मामले पर अलग से विचार करेगा।

आटोमॅटिक रूट के अंतर्गत आनेवाली गारंटी का दायरा बढ़ाया गया है। भारतीय कंपनिया को अब किसी भी प्रकार की गारंटी देने की अनुमति दी गयी है जैसे - कंपनी अथवा व्यक्तिगत /प्राथमिक अथवा संपार्श्विक / प्रवर्तक कंपनी से गारंटी / भारत में स्थित समूह कंपनी , सहयोगी संस्था अथवा सहयोगी कंपनी से गारंटी , बशर्ते : - -

क) सभी प्रकार की गारंटियों को शामिल करते हुए सभी "वित्तीय वायदें" भारतीय पार्टी के विदेशी निवेश के लिए समग्र निर्धारित अधिकतम सीमा के भीतर है अर्थात वर्तमान में निवेश करनेवाली कंपनी (भारतीय पार्टी) के निवल मूल्य (नेट वर्थ) के 200 प्रतिशत के भीतर।

ख) कोई भी गारंटी निरंतर स्वरूप की नहीं है अर्थात गारंटी की राशि विनिर्दिष्ट रूप में वैध होनी चाहिए, और

ग) जैसा कि कंपनी गारंटी के मामले में है, सभी गारंटिंयों के संबंध में ओडीआर फार्म में भारतीय रिज़र्व बैंक को रिपोर्ट करना अनिवार्य है ।

भारत के बाहर वाली पूर्ण स्वामित्ववाली सहायक संस्थाओं / संयुक्त उपक्रमों के पक्ष में बैंकों द्वारा जारी गारंटी इस अधिकतम सीमा के बाहर है और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय समय पर जारी विवेकपूर्ण मानदंडों के अधीन होगी।

4. अंतर-कंपनी जमाराशियों / ऋणों की गारंटियों पर प्रतिबंध

बैंकों को अन्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों / फर्मों से गैर बैंविंग वित्तीय कंपनियों / फर्मों द्वारा स्वीकृत जमाराशियों / ऋणों की वापसी की गारंटी देते हुए अंतर-कंपनी जमाराशियों / ऋणों को कवर करते हुए गारंटियां निष्पादित नहीं करनी चाहिए ।

4.1 गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास निधियां रखने के लिए गारंटियों पर प्रतिबंध

इन अनुदेशों में सभी प्रकार की जमाराशियां / ऋण, न्यासों और अन्य संस्थाओं से गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्राप्त जमाराशियों / ऋणों सहित, शामिल होंगे, चाहे उनका स्रोत कुछ भी हो। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास जमाराशियां रखने में परोक्ष रूप से समर्थ बनाने के लिए गारंटियां जारी नहीं की जानी चाहिए ।

4.2 अंतर-संस्थागत गारंटियों पर प्रतिबंध

4.2.1 बैंकों को अंतर-कंपनी जमाराशियों / ऋणों को कवर करते हुए गारंटियां निष्पादित नहीं करनी चाहिए। गैर बैंकिंग संस्थाओं के पास परोक्ष रूप से जमाराशियां रखने में समर्थ बनाने के प्रयोजन से भी गारंटियां जारी नहीं की जानी चाहिए । यह शर्त सभी प्रकार की जमाराशियों / ऋणों पर, अर्थात् न्यासों और अन्य संस्थाओं से गैर बैंकिंग कंपनियों द्वारा प्राप्त जमाराशियों / ऋणों पर, लागू होगी चाहे उनका स्रोत कुछ भी हो ।

4.2.2 निम्नलिखित प्रकार के लेनदेन एक गैर-बैंकिंग कंपनी द्वारा दूसरी गैर बैंकिंग कंपनी को उपलब्ध करायी गयी निधियों के संबंध में बैंकों द्वारा निष्पादित गांरटियों के स्वरूप के हैं, अत: बैंकों को ऐसी प्रथाओं से बचना चाहिए :-

एक विक्रेता ने क्रेता पर बिल, सामान्यत: 120 से 180 दिन मुद्दती, आहरित किया, जिसे क्रेता ने स्वीकार किया तथा उसके बैंकर द्वारा सह-स्वीकृति दी गयी। बिलों को विक्रेता ने निभावकर्ता कंपनी से भुनाया, जिसने नियत तारीख तक उन बिलों को रखा। सह-स्वीकृति देने वाले बैंक ने अपने ग्राहक, खरीदार के नकदी ऋण खाते में रखे स्टॉकों के संबंध में आहरणाधिकार के प्रति बिलों के अंतर्गत देयता के लिए हमेशा निधियां निश्चित कीं, अथवा

निभावकर्ता कंपनी ने बैंक द्वारा निष्पादित गारंटी के तहत बैंक के ऋणकता के पास विनिर्दिष्ट अवधि के लिए जमाराशियां रखीं। ऐसे मामले में भी बैंक ने नकद ऋण खाते में उपलब्ध आहरणाधिकार के प्रति राशि निश्चित की ।

4.2.3 (क) अब से, बैंकों को अन्य बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा ऋण देने वाली अन्य एजेंसियों द्वारा दिए गए ऋणों के लिए उनके पक्ष में गारंटी निर्गत करने की अनुमति दी जाए परंतु इस संबंध में उन्हें निम्नलिखित शर्तों का कड़ाई से पालन करना पड़ेगा ।

i. निदेशक-मंडल को बैंक की जोखिम प्रबंध प्रणाली की सुस्वस्थता /सुदृढ़ता को समझ लेना चाहिए और तदनुसार इस संबंध में एक सुव्यवस्थित नीति तैयार करनी चाहिए ।

निदेशक-मंडल द्वारा अनुमोदित नीति में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए :

क. बैंक की टीयर घ् पूंजी से संबद्ध किस विवेकपूर्ण सीमा तक अन्य बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा ऋण देने वाली अन्य एजेंसियों के पक्ष में गारंटी निर्गत की जा सकती है ।

ख. प्रतिभूति और मार्जिनों का स्वरूप तथा सीमा

ग. अधिकारों का प्रत्यायोजन

घ. रिपोर्टिंग प्रणाली

ङ. आवधिक समीक्षाएं

ii. गारंटी केवल उधारकर्ता-घटकों के संबंध में तथा उन्हें अन्य बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा ऋण देने वाली अन्य एजेंसियों से अतिरिक्त ऋण प्राप्त करने के लिए उपलब्ध करायी जाएगी ।

iii. गारंटी देने वाला बैंक गारंटीकृत ऋण सीमा के कम से कम 10 प्रतिशत के बराबर निधिक ऋण सीमा की जिम्मेवारी लेगा ।

iv. बैंकों को विदेशी ऋणदाताओं के पक्ष में तथा विदेशी ऋणदाताओं को समनुद्देश्य गारंटी अथवा लेटर ऑफ कंफर्ट प्रदान नहीं करने चाहिए । तथापि, प्राधिकृत व्यापारी बैंकं दिनांक 3 मई 2000 व ी अधिसूचना सं.फेमा 8/2000-आर बी में निहित प्रावधानों से भी मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं ।

v. बैंक द्वारा निर्गत की गई गारंटी ऋण लेने वाली उस संस्था पर ऋण सीमा माना जाएगा जिसकी ओर से गारंटी निर्गत की गई है तथा उनके लिए प्रचलित दिशानिर्देशों के अनुसार समुचित जोखिम-भार लागू होगा ।

vi. बैंकों को घोष समिति की सिफारिशों तथा गारंटी निर्गत करने से संबंधित अन्य अपेक्षाओं का पालन करना चाहिए ताकि इस संबंध में धोखाधड़ी की संभावनाओं से बचा जा सके ।

(ख) ऋण देने वाले बैंक

अन्य बैंकों /वित्तीय संस्थाओं द्वारा निर्गत की गई गारंटियों के आधार पर ऋण-सुविधा उपलब्ध कराने वाले बैंकों को निम्नलिखित शर्तों का कड़ाई से पालन करना चाहिए :

i. अन्य बैंक /वित्तीय संस्था की गारंटी के आधार पर कोई बैंक जिस ऋण की जिम्मेवारी लेगा उसे गारंटी देने वाले बैंक /वित्तीय संस्था का ऋण माना जाएगा तथा उसके लिए प्रचलित दिशानिर्देशों के अनुसार समुचित जोखिम-भार भी लागू होगा ।

ii. अन्य बैंकों द्वारा निर्गत गारंटी के आधार पर ऋण सुविधा के रूप में कोई बैंक जिस ऋण की जिम्मेवारी लेगा उसकी गणना निदेशक मंडल द्वारा निर्धारित की गई अंतर-बैंक ऋण सीमा के अंतर्गत की जाएगी। चूंकि अन्य बैंक /वित्तीय संस्था की गारंटी के आधार पर कोई बैंक जिस ऋण की जिम्मेवारी लेगा उसकी अवधि मुद्रा बाज़ार, विदेशी मुद्रा बाजार और प्रतिभूति बाजार में किए जाने वाले अंतर-बैंक लेनदेनों की जिम्मेवारियों की अवधि से लंबी होगी, इसलिए निदेशक मंडल को दीर्घावधिक ऋणों के मामले में एक उपयुक्त उपसीमा निश्चित कर देनी चाहिए क्योंकि ऐसे ऋणों के मामले में जोखिम अपेक्षाकृत ज्यादा होता है ।

iii. बैंकों को चाहिए कि गारंटी देने वाले बैंक /वित्तीय संस्था पर जिस ऋण की जिम्मेवारी पड़ती है, उस पर वे अनवरत नजर रखें और यह सुनिश्चित करें कि बैंकों के लिए निदेशक-मंडल द्वारा निश्चित की गई विवेकपूर्ण सीमाओं /उप सीमाओं का तथा वित्तीय संस्थाओं के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निश्चित की गई प्रति उधारकर्ता विवेकपूर्ण सीमाओं का कड़ाई से पालन किया जा रहा है ।

iv. बैंकों को घोष समिति की सिफारिशों तथा गारंटी स्वीकार करने से संबंधित अन्य अपेक्षाओं का पालन करना चाहिए ताकि इस संबंध में धोखाधड़ी की संभावनाओं से बचा जा सके ।

4.2.4 अपवाद

बीमार / कमजोर औद्योगिक इकाइयों के पुनर्वास के संबंध में, आपवादिक मामलों में, जहाँ चलनिधि संबंधी अस्थायी अवरोधों के कारण बैंक पुनर्वास पैकेजों में भाग लेने में असमर्थ हों, संबंधित बैंक उन बैंकों के पक्ष में गारंटियां प्रदान कर सकते हैं जो उनका अतिरिक्त हिस्सा ले रहे हों। ऐसी गारंटियां उस समय तक लागू रहेंगी जब तक गारंटियों के प्रति अतिरिक्त वित्त प्रदान करने वाले बैंकों की पुन: क्षतिपूर्ति न कर दी जाये ।

मूलभूत संरचना संबंधी परियोजनाओं के संबंध में, बैंक अन्य ऋणदाता संस्थाओं के पक्ष में गारंटी दे सकता है बशर्ते कि गारंटी देने वाला बैंक परियोजना की लागत के न्यूनतम 5 प्रतिशत के बराबर परियोजना का निधिक शेयर लेता है और परियोजना के संबंध में सामान्य ऋण मूल्यांकन, निगरानी और तत्संबंधी अनुवर्ती कार्य करता है ।

बैंक कतिपय परिस्थितियों में जहाँ आइ डी बी आइ को कोई गोचर जमानत उपलब्ध न हो, आइ डी बी आइ की तकनीकी विकास योजना के अंतर्गत ड्राइंग और डिजाइन द्वारा तकनीकी जानकारी के आयात के मामले में भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (आइ डी बी आइ) के पक्ष में गारंटियां जारी कर सकते हैं ।

मशीनरी की बिक्री के लिए इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक 1 ऑफ इंडिया लि. तथा , सिडबी, पी एफ सी आदि जैसी अन्य अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा परिचालित ‘सेलर्स लाइन ऑफ क्रेडिट स्कीम’ (एस एल सी एस) के मामले में विक्रेता के बैंक द्वारा विक्रेता को क्रेता पर आहरित बिलों के माध्यम से प्राथमिक ऋण प्रदान किया जाता है तथा विक्रेता के बैंक की कोई पहुंच लेनदेन द्वारा समाविष्ट उस प्रतिभूति तक नहीं होती जो क्रेता के पास रहती है । अत: क्रेता के बैंकों को इस बात की अनुमति होती है कि वे विक्रेता की ऋण व्यवस्था के तहत आहरित बिलों के लिए गारंटी / सहस्वीकृति की सुविधा प्रदान करें ।

इसी प्रकार संपत्ति का स्पष्ट और विक्रेय हक देने में असमर्थ निजी ऋणकर्ताओं को हुडको /राज्य आवास बोर्डों और उसी प्रकार के निकायों / संगठनों द्वारा स्वीकृत ऋणों के लिए उनके पक्ष में गारंटी जारी कर सकते हैं, बशर्ते बैंक ऐसे ऋणों की पर्याप्त चुकौती के संबंध में ऋणकर्ताओं की क्षमता के बारे में अन्यथा संतुष्ट हों ।

बैंक सुलभ ऋणों और / या अन्य प्रकार की विकास सहायता प्राप्त करने के लिए अपने ग्राहकों की ओर से इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी, नेशनल हार्टीकल्चर बोर्ड जैसी विकास एजेंसियों / बोर्डों के पक्ष में गारंटियों के निर्गम की स्वीकृति दे सकते हैं ।

4.2.5 मूलभूत संरचना संबंधी परियोजनाएं

मूलभूत संरचना संबंधी परियोजनाओं के लिए उधार देने की प्रमुख विशिष्टताओं, अर्थात् ऋणदाता के स्तर पर मूल्यांकन कौशल की अ‘धिक मात्रा तथा परियोजना अवधि से मिलने वाली परिपक्वता के संसाधनों की उपलब्धता, को ध्यान में रखते हुए बैंकों को सिर्फ मूलभूत संरचना संबंधी परियोजनाओं के संबंध में निम्नलिखित शर्तों पर अन्य ऋणदाता एजेंसियों के पक्ष में गारंटियां जारी करने के मामले में विवेकाधिकार दिया गया है :

(i) गारंटी जारी करने वाला बैंक परियोजना की लागत के कम से कम 5 प्रतिशत के बराबर का निधिक शेयर लेता है तथा परियोजना के संबंध में सामान्य ऋण मूल्यांकन, निगरानी तथा तत्संबंधी अनुवर्ती कार्य करता है ।

(ii) गारंटीकर्ता बैंक के पास विवेकपूर्ण विनियमों जैसे पूंजी पर्याप्तता, ऋण जोखिम, आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान करने संबंधी मानदण्डों आदि के अनुपालन का संतोषजनक रिकॉर्ड हो ।

5. लागू की गयी गारंटियों की अदायगी

5.1 जहां गारंटी लागू की गयी हो, वहां लाभार्थियों को बिना विलंब के राशि अदा की जानी चाहिए। गारंटियों को तत्काल सकारना सुनिश्चित करने के लिए एक उपयुक्त प्रक्रिया निर्धारित की जानी चाहिए, ताकि इस कारण से विलंब न हो कि विधिक सलाह या उच्चतर प्राधिकारियों का अनुमोदन प्राप्त किया जा रहा है ।

5.2 गारंटी लागू किये जाने पर उन्हें सकारने में बैंकों के स्तर पर देरी किये जाने से बैंक गारंटियों के मूल्य, गारंटी योजना की पवित्रता और बैंकों की छबि को नुकसान पहुंचता है । इससे पक्षकारों को इस बात का अवसर मिलता है कि वे न्यायालय का आश्रय लें और निषेधाज्ञा प्राप्त करें । सरकारी विभागों के पक्ष में जारी की गयी गारंटियों के मामले में, इससे न सिर्फ राजस्व की वसूली के प्रयासों में देरी होती है, अपितु इससे ऐसी गलत धारणा भी बनती है कि बैंक की पक्षकारों से सक्रिय मिलीभगत है, जिससे बैंकिंग तंत्र की छबि खराब होती है ।

गारंटी संबंधी कारोबार को प्रोसेस करने के लिए प्रभावी प्रणाली होनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिन लोगों की ओर से गारंटी जारी की गयी हो वे कार्यनिष्पादन गारंटियों के मामले में अपना दायित्व पूरा करने और वित्तीय गारंटियों के मामले में जब कभी आवश्यक हो अपने निजी संसाधनों से वचनबद्धता सकारने की स्थिति में हों ।

5.3 गारंटी लागू करने के संबंध में तुरंत भुगतान करने के लिए बैंकों के सर्वोच्च प्रबंध-तंत्र को उचित प्रक्रिया विकसित करने की आवश्यकता की ओर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए, ताकि ऐसी शिकायतों की कोई गुंजाइश न रहे । जब जारी की गयी गारंटियों को न सकारने के संबंध में शिकायतें आयें, विशेष रूप से सरकारी विभागों से, तो मुख्य कार्यपालक अधिकारी सहित बैंक के शीर्ष प्रबंध-तंत्र को ऐसी शिकायतों के बारे में व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए ।

इस संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय ने लागू किये जाने पर गारंटियों की प्रतिबद्धता को तुरंत पूरा न करने में कतिपय बैंकों के विरुद्ध प्रतिकूल टिप्पणियां की हैं । यह पाया गया है कि बैंक गारंटी हिताधिकारी और बैंक के बीच एक संविदा है। जब हिताधिकारी बैंक-गारंटी लागू करता है और बैंक-गारंटी के अनुसार उक्त गारंटी को लागू करने का पत्र भेजा जाता है, तो बैंक के लिए हिताधिकारी को भुगतान करना बाध्यकारी होता है ।

5.4 उच्चतम न्यायालय ने डउ. प्र. सहकारी फेडरेशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम सिंह कंसल्टेंट्स एण्ड इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड (1988 आइसी एसएससी 174) यह कहा है कि बैंकों की प्रतिबद्धताएं न्यायालयों के हस्तक्षेप के बिना पूरी की जानी चाहिए ।

उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय से प्रासंगिक उद्धरण निम्नलिखित है :-

‘‘अत: हमारी राय में सही कानूनी स्थिति यह है कि बैंकों की वचनबद्धता न्यायालयों के हस्तक्षेप के बिना पूरी की जानी चाहिए और केवल अपवाद के मामले में, जैसे कि धोखाधड़ी के मामले में या ऐसी स्थिति में, जहां बैंक गारंटी के नकदीकरण की अनुमति देने पर अपूरणीय अन्याय हो जायेगा, न्यायालय को हस्तक्षेप करना चाहिए’’।

5.5 ऐसी स्थितियों से बचने के लिए बैंकों के लिए यह नितांत रूप से अनिवार्य है कि वे गारंटियों के प्रस्तावों का उतनी ही सावधानी और निष्ठापूर्वक मूल्यांकन करें जैसा कि निधि पर आधारित ऋण सीमाओं के लिए किया जाता है और मार्जिन के द्वारा पर्याप्त सुरक्षा प्राप्त करें, ताकि जब लागू की गयी गारंटियाें का बैंकों द्वारा भुगतान किया जाये, तो ग्राहकों में भुगतानों में चूक करने की प्रवृत्ति विकसित न हो ।

5.6 बैंक-गारंटी योजना के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि इसकी कार्यप्रणाली के संबंध में सरकारी विभागों में कोई भी असंतोष नहीं हो । बैंकों से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि वे उनके द्वारा जारी गारंटियों को गारंटी विलेख की शर्तों के अनुसार सरकारी विभागों द्वारा लागू किये जाने पर बिना किसी विलंब और संकोच के सकारें, जब तक कि किसी न्यायालय का अन्यथा आदेश न हो ।

लागू की गयी गारंटी के अंतर्गत दायित्व को न सकारने का कोई निर्णय समुचित रूप से वरिष्ठ स्तर पर ध्यानपूर्वक विचार करने के उपरांत लिया जाये और सिर्फ ऐसी परिस्थितियों में ही उक्त प्रकार का निर्णय लिया जाये जब बैंक इस बात से संतुष्ट हो कि हिताधिकारी को ऐसा कोई भुगतान भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गत गारंटी की शर्तों के अनुसार वैध भुगतान नहीं माना जायेगा ।

सरकारी विभागों से प्राप्त ऐसी शिकायतों के लिए बैंकों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदारी लेनी चाहिए । इस कार्य में लगे अधिकारियों को पर्याप्त अधिकार दिये जाने चाहिए, ताकि गारंटी वे अंतर्गत भुगतान के लिए उच्चतर प्राधिकारियों के पास मामला भेजने के कारण विलंब न हो ।

गारंटियों का तत्काल सकारना सुनिश्चित करने के लिए बैंकों को कोई समुचित क्रियाविधि भी शुरू करनी चाहिए, ताकि इस बहाने कोई विलंब न हो कि कानूनी राय या उच्चतर प्राधिकारियों का अनुमोदन प्राप्त किया जा रहा है ।

गारंटी का समय पर भुगतान न होने के लिए स्टाफ का उत्तरदायित्व तय किया जाना चाहिए और दोषी कर्मचारियों के विरुद्ध सभी स्तरों पर बर्खास्तगी जैसे कड़े दंड देने सहित सख्त अनुशासनिक कार्रवाई की जानी चाहिए ।

जहां बैंकों ने उच्च न्यायालयों के अंतरिम आदेशों के संदर्भ में विभेदक शुल्क राशियों को पूरा करने के लिए सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क प्राधिकारियों के पक्ष में बैंक गारंटियां निष्पादित की हैं, वहां न्यायालयों द्वारा स्थगन आदेशों को हटाये जाने पर गारंटी लागू होने की स्थिति में गारंटियों की राशि का तत्काल भुगतान किया जाना चाहिए । बैंकों को इस बहाने यह राशि रोकनी नहीं चाहिए कि इससे उनकी अर्थसुलभता (लिक्विडिटी) की स्थिति प्रभावित होगी ।

5.7 वित्त मंत्रालय से इस तरह की शिकायतें भी मिली हैं कि कुछ विभागों, जैसे राजस्व विभाग, भारत सरकार, के लिए विभिन्न न्यायालयों द्वारा उनके पक्ष में दिये गये निर्णयों को निष्पादित करना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि जब तक न्यायालय के निर्णयों की प्रमाणित प्रतिलिपि उन्हें उपलब्ध नहीं करा दी जाती, बैंक अपनी गारंटियों को सकारते नहीं हैं । इस संबंध में बैंक निम्नलिखित क्रियाविधि का अनुसरण करें :

जहां बैंक गारंटी को लागू करने के लिए सरकार द्वारा आरंभ की गयी कार्यवाही में बैंक एक पक्ष हो और न्यायालय द्वारा मामले का निर्णय सरकार के पक्ष में दिया गया हो तो बैंकों को निर्णय की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने के लिए आग्रह नहीं करना चाहिए, क्योंकि निर्णय / आदेश पक्षों /उनके वकीलों की उपस्थिति में खुले न्यायालय में सुनाया जाता है और बैंक इस निर्णय से अवगत होता है ।

यदि बैंक कार्यवाहियों में एक पक्ष नहीं है तो उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार / उप या सहायक रजिस्ट्रार द्वारा प्रमाणित आदेश के कार्यविवरण की हस्ताक्षरित प्रति या उच्च न्यायालय के निर्णय /आदेश की सरकारी वकील द्वारा सत्य प्रतिलिपि के रूप में अनुप्रमाणित साधारण प्रतिलिपि गारंटी के अंतर्गत प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी, यदि गारंटीकर्ता बैंक उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कोई अपील दायर नहीं कर रहा हो ।

गारंटी जब भी लागू की जाये, बैंकों को गारंटी विलेखों की शर्तों के अनुसार उनके द्वारा जारी की गयी गारंटियों को सकारना चाहिए । कोई विवाद होने पर यदि आवश्यक हो तो जारी की गयी गारंटियों का विरोध के साथ भुगतान किया जा सकता है और विवाद के मामले में अलग से अनुवर्ती कार्रवाई की जा सकती है ।

सरकार ने अपनी ओर से विभिन्न सरकारी विभागों, आदि को सूचित किया है कि गारंटियाँ लागू करने (इनवोकेशन) का निर्णय वरिष्ठ स्तर पर ध्यानपूर्वक यह विचार करने के बाद लिया जाये कि गारंटी विलेख में निहित गारंटियों की शर्तों के अनुसार चूक हुई है ।

लागू की गयी गारंटियों के अंतर्गत प्रतिबद्धताओं को सकारने के संबंध में इन अनुदेशों का अनुपालन न किया जाना भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अत्यधिक गंभीरता से लिया जायेगा और ऐसे बैंकों के विरुद्ध रिज़र्व बैंक निवारक कार्रवाई करने के लिए बाध्य होगा ।

6. बिलों की सह-स्वीकृति

6.1 सामान्य

रिज़र्व बैंक ने यह देखा है कि कुछ बैंक अपने ग्राहकों के बिलों को सह-स्वीकृत करते हैं और अन्य बैंकों द्वारा सह-स्वीकृत किये गये बिलों को सामान्य ढंग से भुनाते भी हैं। बाद में ये बिल सहयोगी संस्थाओं द्वारा एक दूसरे पर आहरित निभाव बिल निकलते हैं, जिनमें कोई वास्तविक व्यापारिक लेनदेन नहीं
होता। ऐसे बिलों को भुनाते समय बैंक इस महत्वपूर्ण पहलू को संभवत: अन्य बैंकों द्वारा दी गयी सह-स्वीकृति के कारण नजरंदाज कर देते हैं । अवधिपूर्णता पर ऐसे बिल आदेशितियों द्वारा सकारे नहीं जाते हैं और उन बैंकों को, जो इन बिलों को सह-स्वीकृत करते हैं, इन बिलों का भुगतान करना पड़ता है और बिलों के आहरणकर्ताओं /आदेशितियों से उक्त राशि वसूल करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है । बैंक बड़ी राशियों के ऐसे बिलों को भी बट्टाकृत करते हैं जो कतिपय शहरी सहकारी बैंकों द्वारा सह-स्वीकृत किये जाते हैं । अवधिपूर्णता पर ऐसे बिल सकारे नहीं जाते और उन सहकारी बैंकों के लिए भी, जो इन बिलों को सकारने के लिए उन्हें सह-स्वीकृत करते हैं, उनका भुगतान करना मुश्किल होता है । आवश्यकता होने पर सह-स्वीकृत करने वाले बैंक की वित्तीय स्थिति और क्षमता की जानकारी नहीं ली जाती है । ऐसे मामले भी पाये गये हैं जहां बिलों की सह-स्वीकृति के संबंध में विवरण बैंक की बहियों में अभिलिखित नहीं किये जाते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि निरीक्षणों के दौरान उनके विस्तार का सत्यापन नहीं किया जा सकता और प्रधान कार्यालय को सह-स्वीकृति का केवल तब पता चलता है जब भुनाने वाले बैंक से दावा प्राप्त होता है ।

6.2 सुरक्षा के उपाय

बैंकों को सुरक्षा के निम्नलिखित उपायों का ध्यान रखना चाहिए :

i. अपने ग्राहकों को सह-स्वीकृति सीमाएं मंजूर करते समय उसकी आवश्यकता सुनिश्चित करनी चाहिए और ऐसी सीमाओं की सुविधा केवल उन ग्राहकों को प्रदान की जानी चाहिए जिन्होंने बैंक से अन्य सीमाओं का लाभ उठाया हो ।

ii. केवल वास्तविक व्यापारिक बिल ही सह-स्वीकृत किये जाने चाहिए और बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सह-स्वीकृत बिलों में निहित माल वास्तव में उधारकर्ता के स्टॉक-खाते में प्राप्त हो गया है ।

iii. साथ में प्राप्त बीजक में उल्लिखित माल के मूल्यांकन का सत्यापन यह पता लगाने के लिए करना चाहिए वि स्टॉक का अति मूल्यांकन तो नहीं किया गया है ।

iv. बैंकों को समूह संस्थाओं द्वारा एक दूसरे पर आहरित आंतरिक बिलों /निभाव बिलों को अपनी सह-स्वीकृति प्रदान नहीं करनी चाहिए ।

v. अन्य बैंकों द्वारा सह-स्वीकृत ऐसे बिलों को बट्टाकृत करने वाले बैंकों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ये बिल निभाव बिल नहीं है और सह-स्वीकृत करने वाला बैंक आवश्यकता पड़ने पर दायित्व को उन्मोचित (रिडीम) करने की क्षमता रखता है ।

vi. अन्य बैंकों द्वारा सह-स्वीकृत बिलों को बट्टाकृत करने के लिए प्रत्येक बैंक के आकार को ध्यान में रखते हुए बैंकवार सीमाएं नियत की जानी चाहिए और अन्य बैंकों के अधिकारियों के संगत अधिकार बट्टाकर्ता बैंक के पास पंजीकृत कराये जाने चाहिए ।

vii. इस बात की सावधानी बरती जानी चाहिए कि किसी बैंक की सह-स्वीकृति देयता उसकी ज्ञात संसाधन स्थिति की तुलना में गैर-आनुपातिक नहीं हो ।

viii. बकाया बिलों के संबंध में सह-स्वीकृति देने वाले बैंकों की देयताओं की आवधिक पुष्टि प्राप्त करने की कोई प्रणाली आरंभ की जानी चाहिए ।

ix. प्रत्येक ग्राहक के लिए सह-स्वीकृत बिलों का उचित अभिलेख रखा जाना चाहिए, ताकि प्रत्येक ग्राहक के लिए प्रतिबद्धताओं और किसी एक शाखा में कुल प्रतिबद्धताओं का तुरंत पता लगाया जा सके और आंतरिक निरीक्षकों द्वारा इसकी जांच की जानी चाहिए और अपनी रिपोर्टों में इन पर टिप्पणियां देनी चाहिए ।

x भुनाने वाले बैंक के लिए यह भी वांछनीय है कि जब कभी ऐसा लेनदेन गैर-आनुपातिक या बड़ा प्रतीत हो तो उस बैंक के प्रधान कार्यालय /नियंत्रक कार्यालय को सूचित करें, जिसने इन बिलों को सह-स्वीकृत किया है ।

xi. समुचित आवधिक विवरणियां निर्धारित की जानी चाहिए, ताकि शाखा प्रबंधक अपने द्वारा निष्पादित इस प्रकार की सह-स्वीकृति की प्रतिबद्धताओं की नियंत्रण कार्यालयों को सूचना दे सकें ।

xii. ऐसी विवरणियों से उन बिलों की स्थिति भी प्रकट होनी चाहिए जो अतिदेय हो चुके हैं और सह-स्वीकृति दायित्व के अंतर्गत जिन्हें बैंक को पूरा करना पड़ा । इससे नियंत्रण कार्यालय, शाखाओं द्वारा प्रस्तुत इस प्रकार के सह-स्वीकृतियों पर निगरानी रख सकेंगे और कठिन मामले में समय पर उचित कार्रवाई कर सकेंगे ।

xiii.10,000 रुपये तथा इससे अधिक राशि के बिलों की सह-स्वीकृतियों पर दो अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से हस्ताक्षर होने चाहिए, इस नियम का व्यतिक्रम अपवादस्वरूप ही अर्थात् किसी शाखा पर दो अधिकारी न होने पर होना चाहिए ।

xiv.अन्य बैंकों द्वारा सह-स्वीकृत 2 लाख रुपये और उससे अधिक राशि के किसी एकल पक्ष के / उससे प्राप्त बिलों को भुनाने / क्रय करने से पहले बैंक को स्वीकृत करने वाले बैंक के संबद्ध नियंत्रण (क्षेत्रीय / मंडल / अंचल) कार्यालय की लिखित पुष्टि प्राप्त करनी चाहिए और उसका अभिलेख रखना चाहिए ।

xv. जब किसी एकल उधारकर्ता / उधारकर्ताओं के समूह के भुनाये जाने वाले /क्रय किये जाने वाले बिलों का (जो अन्य बैंकों द्वारा सह-स्वीकृत किये गये हैं) कुल मूल्य 20 लाख रुपये से अधिक हो रहा हो तो भुनाने वाले बैंक द्वारा सह-स्वीकृत करने वाले बैंक के प्रधान कार्यालय का लिखित पूर्वानुमोदन प्राप्त करना चाहिए ।

6.3 बिलों को सह-स्वीकृत करने में बैंकों द्वारा अपनाये जाने वाले उपर्युक्त सुरक्षा उपायों के अलावा यह नोट किया जाना चाहिए कि इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया लि. तथा अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं, यथा भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, पावर फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड (पी एफ सी) आदि द्वारा आरंभ की गयी क्रेता को ऋण सुविधा (बायर्स लाइन ऑफ क्रेडिट) योजनाओं के अंतर्गत आहरित बिल सह-स्वीकृत करने से बैंकों को निवारित किया गया है । उसी प्रकार बैंकों को गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा आहरित बिल को सह-स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए । इसके अतिरिक्त बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक योजना के अंतर्गत अपने क्रेताओं /ग्राहकों की ओर से सह-स्वीकृति प्रदान न करें ।

6.4 तथापि बैंक, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया लि.2 तथा अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाओं यथा भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, पावर फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड (पी एफ सी) आदि द्वारा परिचालित विक्रेता की ऋण सुविधा (सेलर्स लाइन ऑफ क्रेडिट) योजनाओं के अंतर्गत आहरित बिलों को क्रेता के भुगतान करने की क्षमता और व्यक्तिगत / समूह उधारकर्ताओं के लिए बैंक द्वारा निर्धारित ऋण जोखिम मानदंडों का अनुपालन करने की शर्त के अंतर्गत बिना किसी सीमा के सह-स्वीकृत कर सकते हैं ।

6.5 ऐसे उदाहरण हैं जिनमें बैंकों की शाखाएं अपने ग्राहकों की ओर से साखपत्र (एल /सी) खोलती हैं और ऐसे साखपत्रों के अंतर्गत बिलों को सह-स्वीकृत भी करती हैं । कानूनी रूप से यदि कोई बैंक अपने स्वयं के साखपत्र के अंतर्गत आहरित कोई बिल सह-स्वीकृत करता है तो इस प्रकार सह-स्वीकृत किया हुआ बिल एक स्वतंत्र दस्तावेज हो जाता है और वाणिज्यिक ऋणों पर लागू विशेष नियम ऐसे बिल पर लागू नहीं होते हैं तथा ऐसा बिल केवल विनिमय पत्रों से संबंधित कानून अर्थात् परक्राम्य लिखत अधिनियम द्वारा नियंत्रित होता है । ऐसे बिल के बेचान-कर्ता बैंक पर साखपत्र की शर्तों के संदर्भ में बिल के विवरणों की जांच करने की कोई बाध्यता नहीं है । अत: यह प्रथा अनावश्यक है और इससे साखपत्र जारी करने का प्रयोजन ही समाप्त हो जाता है । भुनाने वाले बैंकों को, पहले सह-स्वीकृत करने वाले बैंकों से अपने स्वयं के साखपत्र के अंतर्गत जारी बिलों की ऐसी सह-स्वीकृति के लिए कारण पता करने चाहिए और ऐसे लेनदेन की प्रामाणिकता के बारे में स्वयं संतुष्ट होने पर ही ऐसे बिलों को भुनाने पर विचार करना
चाहिए ।

6.6 यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बिलों की सह-स्वीकृति के समय शाखा अधिकारी उपर्युक्त अनुदेशों का कड़ाई से अनुपालन करते हैं । यह सूचित किया जाता है कि इस संबंध में स्पष्ट उत्तरदायित्व निश्चित किया जाना चाहिए और जो अधिकारी इन अनुदेशों का अनुपालन न करते हुए पाये जायें, उनके साथ सख्ती बरती जानी चाहिए ।

7. साख पत्र के मामले में ली जानेवाली पूर्वसावधानी

7.1 बैंकों को चाहिए कि वे ऐसी पार्टियों को जो उनके नियमित ग्राहक नहीं हैं, गैर-निधि आधारित सुविधाएं या अतिरिक्त/तदर्थ ऋण सुविधाएं प्रदान न करें और न ही ऐसे लाभान्वितियों के लिए, जो उनके नियमित ग्राहक नहीं हैं, साख पत्र के अधीन या अन्यथा आहरित बिलों की भुनाई करें । वस्तुओं के आयात के लिए साख पत्रों के मामले में बैंकों को शिपिंग दस्तावेजों के आधार पर विदेश स्थित आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान करते समय बहुत ही सतर्क रहना चाहिए । उन्हें ग्राहकों की तुलना करते समय पूर्व सावधानी और सतर्कता बरतनी चाहिए । दस्तावेज साख पत्रों की शर्तों के पूरी तरह अनुरूप हैं यह सुनिश्चित करने के बाद ही विदेशी पार्टियों को भुगतान जारी करना चाहिए । साख पत्र संबंधी कारोबार में कई अनियमितताएं देखी गयी हैं, जैसे - साख पत्र लेनदेनों को साख पत्र जारी करनेवाले अधिकारियों द्वारा शाखा की बहियों में दर्ज नहीं किया जा रहा है, साख पत्र की राशि अधिकारियों को प्राप्त शक्तियों से कहीं अधिक मात्रा में होना, कपट पूर्ण ढंग से साख पत्र जारी करना जिसमें लाभान्विती और ग्राहक के बीच षडयंत्र/मिलिभगत होती है । ऐसे मामलों में यदि आपराधिक षडयंत्र शामिल हो तो, संबंधित अधिकारियों तथा जिस ग्राहक की ओर से साख पत्र खोला गया है उसके और साख पत्र के लाभान्विती के विरुद्ध बैंकों को कार्रवाई करनी चाहिए ।

7.2 साख पत्र के अधीन दावों का निपटान

यदि साख पत्र के अधीन आहरित बिलों का भुगतान नहीं किया जाता है तो साख पत्र के स्वरूप तथा भुगतान के स्वीकृत माध्यम के रूप में संबंधित बिलों पर विपरीत असर पड़ेगा । इससे बैंकों के माध्यम से किये जानेवाले समूचे भुगतान तंत्र की साख भी प्रभावित होगी और बैंकों की छवि पर भी असर पड़ेगा । अत: बैंकों को चाहिए कि वे साख पत्र के अधीन अपनी वचनबद्धता को सकारें तथा तुरंत भुगतान करें ।


अनुबंध I

मास्टर परिपत्र

गारंटियां एवं सह-स्वीकृतियां

बैंक गारंटी बांड का संशोधित मॉडल फार्म

(पैराग्राफ 2.8 देखें)

 

गारंटी बांड

1. भारत के राष्ट्रपति (इसके बाद ‘सरकार’ के नाम से अभिहित) द्वारा ............................ (इसके बाद ‘उक्त ठेकेदार (रों)’ के नाम से अभिहित) का .............................................. और .........................................................................के बीच ............................ के लिए किये गये दिनांक ....................................................के एक करार (इसके बाद ‘उक्त करार’ के नाम से अभिहित) के अंतर्गत .....................................रुपये (............. ..............................................रुपये मात्र ) की बैंक गारंटी प्रस्तुत करने पर उक्त ठेकेदार (रों) द्वारा, उक्त करार में निहित शर्तें विधिवत पूरी करने के लिए जमानत राशि से छूट प्रदान करने के लिए सहमत हो जाने के परिणामस्वरूप हम, ..................................................... ...............................................डइसके बाद ‘बैंक’ नाम से अभिहित (बैंक का नाम इंगित करें)............................................................(ठेकेदार/रों) के अनुरोध पर उक्त करार में निहित शर्तों में से ठेकेदार/रों द्वारा किसी शर्त का उल्लंघन किये जाने के कारण सरकार को अधिकतम ......... .................रुपये की राशि अदा करने का वचन देते हैं ।

2. हम ................................................................(बैंक का नाम इंगित करें) एतद्द्वारा इस गारंटी के अंतर्गत नियत और देय राशियां, सरकार द्वारा मात्र यह कहते हुए मांग करने पर कि दावा की हुई राशि उक्त ठेकेदार (रों) द्वारा उक्त करार में निहित किसी शर्त का उल्लंघन करने या उक्त ठेकेदार(रों) के उक्त करार को निष्पादित करने में असफल होने से हुई या होने वाली या सरकार द्वारा वहन की गयी हानि या क्षति के कारण देय हो गयी है, बिना किसी आपत्ति के अदा करने का वचन देते हैं । इस गारंटी के अंतर्गत नियत और बैंक द्वारा देय राशि के संबंध में बैंक से की गयी ऐसी कोई मांग निर्णायक होगी।तथापि इस गारंटी के अंतर्गत हमारी देयता अधिकतम ....................रुपये की राशि तक सीमित होगी ।

3. हम इस संबंध में किसी न्यायालय अथवा अधिकरण के समक्ष लंबित किसी वाद अथवा कार्यवाही में ठेकेदार (रों) / आपूर्तिकर्ता (ओं) द्वारा उठाये गये किसी विवाद या किन्हीं विवादों के होते हुए भी इस प्रकार मांगी गयी राशि सरकार को अदा करने का वचन देते हैं - इस विलेख के अंतर्गत हमारी देयता पूर्ण और असंदिग्ध है ।

इस बांड के अंतर्गत हमारे द्वारा इस प्रकार किया हुआ भुगतान उसके अंतर्गत भुगतान के लिए हमारी देयता का वैध निर्वहन होगा और ऐसा भुगतान करने के लिए उक्त ठेकेदार (रों)/आपूर्तिकर्ता(ओं) का हम पर कोई दावा नहीं होगा ।

4. हम, ...............................................................(बैंक का नाम इंगित करें) आगे यह सहमति प्रदान करते हैं कि इसमें निहित गारंटी उक्त करार के निष्पादन के लिए ली जाने वाली अवधि के दौरान पूरी तरह मान्य और प्रभावी होगी और उक्त करार के अंतर्गत या उसके कारण जब तक सरकार की सभी देय-राशियों का पूरी तरह भुगतान नहीं हो जाते या उसके दावे पूरे या उन्मोचित नहीं हो जाते या जब तक.................................................कार्यालय /विभाग/मंत्रालय इस आशय का प्रमाणपत्र नहीं दे देता है कि उक्त ठेकेदार (रों) द्वारा उक्त करार की शर्तें पूर्णरूपेण और समुचित रूप से पूरी कर दी हैं और तदनुसार इस गारंटी को उन्मोचित किया जाता है, तब तक यह जारी रहेगी । ...............को या इससे पूर्व इस गारंटी के अंतर्गत यदि कोई मांग या दावा हम पर नहीं किया जाता है, तो इसके बाद हम इस गारंटी के अंतर्गत सभी देयताओं से मुक्त हो जायेंगे ।

5. हम, ...................................................................(बैंक के नाम का उल्लेख करें) सरकार के साथ आगे करार करते हैं कि सरकार को, हमारी सहमति के बिना और इसके अंतर्गत किसी भी तरह से हमारे दायित्वों को प्रभावित किये बिना, उक्त करार की किसी शर्त में परिवर्तन करने या समय समय पर उक्त ठेकेदार(रों) द्वारा कार्यनिष्पादन का समय बढ़ाने या सरकार द्वारा उक्त ठेकेदार (रों) के प्रति प्रयोग किये जानेवाले अधिकारों को किसी समय के लिए या समय समय पर स्थगित करने और उक्त करार से संबंधित किसी शर्त का प्रयोग न करने या लागू करने की पूरी छूट होगी और सरकार द्वारा ऐसे किसी परिवर्तन या उक्त ठेकेदार (रों) के लिए बढ़ायी गयी किसी समयावधि या सरकार की किसी प्रतिरति कार्य या विलोपन या उक्त ठेकेदार (रों) के प्रति सरकार के किसी अनुग्रह या किसी मामले या वस्तु आदि जिनके कारण जमानतों से संबंधित कानून के अंतर्गत, इस उपबंध के न होने की स्थिति में, हम दायित्व मुक्त हो जाते, के होते हुए भी हम अपने दायित्व से मुक्त नहीं होंगे ।

6. बैंक या उक्त ठेकेदार (रों) /आपूर्तिकर्ता(ओं) के गठन में परिवर्तन के कारण यह गारंटी उन्मोचित नहीं होगी ।

7. हम, .............................................................(बैंक के नाम का उल्लेख करें) अंत में यह वचन देते हैं कि लिखित रूप में सरकार की पूर्व सहमति के सिवाय हम इस गारंटी को इसकी चालू अवधि में प्रतिसंहृत नहीं करेंगे ।

8. .................................................................(बैंक के नाम का उल्लेख करें)के वास्ते ........................... ....................................................दिन ।


अनुबंध II

दिनांक 1 नवंबर 2004 के ए. पी. डीआइआर. सीरीज़ परिपत्र सं. 24 का अनुबंध

प्राधिकृत व्यापारियों द्वारा जारी /लागू गारंटियां/वचन पत्र /चुकौती आश्वासन पत्र (लेटर ऑफ कंफर्ट)

. . . . . . . . . .. को समाप्त तिमाही को

प्राधिकृत व्यापारी का नाम :

 

संपर्क व्यक्ति :

पता :

 

टेलीफोन :

ई- मेल :

 

फैक्स :

(मिलियन अमरिकी डॉलर)

निवासियों की ओर से

गांरटियां /वचनपत्र /चुकौती आश्वासन पत्र

जारी

खरीदार का उधार

आपूर्तिकर्ता का उधार

व्यापारिक उधार (3 वर्ष से कम)

   

(क) एक वर्ष तक

(ख) एक वर्ष से अधिक तथा तीन वर्ष से कम **

** (पूंजीगत वस्तुओं के आयात तक सीमित)


स्थान ...................................

   

प्राधिकृत हस्ताक्षरकर्ता
के हस्ताक्षर

दिनांक : . .. . . . . . . . .

डमुहर

   

परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र

गारंटियां और सह-स्वीकृतियां

पूर्व मास्टर परिपत्र के बाद जारी किये गये परिपत्रों की सूची

1.

ए.पी. (डीआइआर सीरीज़) परिपत्र सं.

29

27.03.2006

2.

फेमा अधिसूचना सं.

8/2000-आरबी

03.05.2000


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